मंगलवार, 15 अक्तूबर 2013

गौमाता ------- धार्मिक महत्त्व


हमारी संस्कृति के अनुसार गाय और मंदिरों का एक दूसरे से मज़बूत रिश्ता है, धार्मिक अनुष्ठानों में गाय की अपनी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
गाय को दैविक माना गया है, तथा हिन्दू संस्कृति के अनुसार दिन की शुरुआत गाय की पूजा से शुरू होती है। गाय को खिलाना और उसकी पूजा करना दैविक अनुष्ठान है ।
पारिवारिक उत्सवों तथा त्योहारों में गाय की प्रधानता है, ऐसे अनेक त्योहार है, जहाँ गाय अपना एक प्रमुख स्थान रखती है।
अनेक मंदिरों के प्रवेशद्वार पर गाय का छप्पर होता है जिससे मनुष्य में पवित्रता की भावना बढ़ती है।
हिंदुओं के हर धार्मिक कार्यों में सर्वप्रथम पूज्य गणेश उनकी माता पार्वती को गाय के गोबर से बने पूजा स्थल में रखा जाता है।

धार्मिक अनुष्ठानों में गाय की महत्ता

हमारी संस्कृति में गायों और मंदिरों में एक मजबूत रिश्ता है ।

गो तुलाभार

गाय को दैविक माना गया है ।
दिन गाय की पूजा से शुरू होता है ।
गाय को खिलाना और उसकी पूजा करना दैविक अनुष्ठान है ।
पारिवारिक उत्सवों में गाय की प्रधानता है ।
ऐसे अनेक त्योहार हैं जहाँ गाय प्रमुख होती है ।
अनेक मंदिरों के प्रवेशद्वार पर गाय का छप्पर होता है जिससे पवित्रता की भावना बढ़ती है ।
पंचगव्य से सफाई और शुद्धि की हमारी परंपरा है ।
भगवान की मूर्तियों को दूध, दही और घी से स्नान कराते हैं ।
पवित्र प्रदीप प्रज्जवलन हेतु हम घृत का प्रयोग करते हैं । देवताओं को भी घी का नैवेद्य चढ़ाते हैं ।
भगवान के प्रसाद में घी और दूध डाला जाता है ।
देवताओं के शृंगार में मक्खन का प्रयोग होता है ।

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