बुधवार, 13 नवंबर 2013

सनातन संस्कृति में गाय को "माता" का स्थान क्यों ?

जय श्री कृष्णा

वन्दे धेनुमातरम् 

गौ माता की रक्षा हो - बूचड़खाने बंद हों

किसी बालक का जन्म होने पर वह जन्मदात्री माता का दूध पीता है और शेष पूर्ण जीवन गौ माता का दूध पीने को मिलता है क्योंकि गौ माता का दूध माँ के दूध की भाँति सुपाच्य एवं पौष्टिक होता है । गौ माता के दूध से मन में न केवल सात्विक विचार आते हैं, अपितु हमारा शरीर भी निरोगी रहता है । जो लोग भैंस का दूध पीते हैं, उनकी विचार शक्ति अधिक प्रखर नहीं होती । गौ माता का न केवल दूध ही काम आता है अपितु गोबर एवं गौमूत्र भी अनेक प्रकार की औषधियों में काम आता है । सनातन ग्रंथों में ऐसा भी वर्णन है की गौमाता के शरीर पर हाथ मात्र फेरने से असाध्य रोग ठीक हो जाते हैं । यह मेरा निजी अनुभव भी है ।

मेरा यह भी निजी अनुभव रहा है कि जिस घर में गौ माता है, उन घर में यदि किसी परिवार के सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो गौ माता अन्न जल का त्याग कर देती है । आज वही गौ माता की हमारी आँखों के सामने यह परिस्थति हो तो हमारे मनुष्य जन्म पर धिक्कार है ।

यही कारण है कि सनातन संस्कृति में "गौ माता" सदैव पूजनीय रही है और आज इस देश का दुर्भाग्य है कि भगवान बुद्ध और महावीर के देश में लाखों-करोड़ों की संख्या में गौ हत्याएँ हो रही है । यही परिस्थिति रही और हम सभी ने इसका विरोध न किया तो "गौ-वंश" ही समाप्त हो जाएगा ।
आगे आइये और खुद से रक्षा करिए अपनी गौ माता की।

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