गुरुवार, 28 अगस्त 2014

गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएँ

 गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएँ
 गणपति जी का सर पे हाथ हो;हमेशा उनका साथ हो;खुशियों का हो बसेरा;करें शुरुआत बप्पा के गुणगान सेमंगल फिर हर काम हो।गणेश चतुर्थी की शुभ कामनाभगवान श्री गणेश की कृपा, बनी रहे आप पर हर दम;हर काम में मिले सफलता, जीवन में आये आपके कोई गम;यह दुआ है कि गणपति जी दे आपको सारी खुशियां;बढ़ते रहें कामयाबी की तरफ आपके कदम।गणेश चतुर्थी की शुभ कामनाएं! विघ्नहर्ता,मंगलकर्ता सब के जीवन में नूतन उत्साह का संचार करें;समस्त विपत्तियों से आप सबके परिवार की रक्षा करें;सारी बुराइयो से दूर रख कर आप हमें अपने चरणों में स्थान दे। गोवत्स राधेश्याम रावोरियाwww.gokranti.com









स्वप्र में गौ दर्शन का फल


स्वप्र में गौ दर्शन का फल 

स्वप्र में गौ अथवा सांड के दर्शन से कल्याण-लाभ एवं व्याधि-नाश होता है इसी प्रकार स्वप्र में गौ के थन को चूसना भी श्रेष्ठ माना गया है 
स्वप्र में गौ का घर में ब्याना,बैल अथवा सांड की सवारी करना, तालाब के बीच में घृत-मिश्रित खीर का भोजन भीं उत्तम माना गया है
इनमें से घी सहित खीर का भोजन तो राज्य-प्राप्ति का सूचक माना गया है इसी प्रकार स्वप्र में ताजे दुहे हुए फेन सहित दुग्ध का पान करने वाले को अनेक भोगों की तथा दही के देखने से प्रसन्नता की प्राप्ति होती है
जो बैल अथवा सांड से युक्त रथ पर स्वप्र में अकेला सवार होता है और उसी अवस्था में जाग जाता है, उसे शीघ्र धन मिलता है
स्वप्र में दही मिलने से धन की, घी मिलने से यश की और और दही खाने से यश की प्राप्ति निश्चित है
इसी प्रकार यात्रा आरम्भ करते समय दही और दूध का दीखना शुभ माना जाता है
स्वप्र में सभी काली वस्तुओं का दर्शन निन्ध माना गया है, केवल कृष्णा गो का ही दर्शन शुभ होता है

गौ के प्रति हमारा कर्तव्य


गौ के प्रति हमारा कर्तव्य 

देव की कैसी विचित्र गति है कि जिस देश का तीन-चौथाई जन समाज गौ को माता कहकर पूजता है, वहां तो गोवंश का दिन-प्रतिदिन ह्रास हो और जहाँ लोग गो का मांस खाते हैं, वहां वह फले फूले, यह बात बहुत प्रसिद्ध है कि इंग्लैंड, हॉलैंड तथा जर्मनी जैसे देशों में गोएं हिन्दुस्तान की गायों की अपेक्षा औसत हिसाब से तिगुना-चौगुना दूध देती हैं
हिन्दुओं के पतन के साथ गौ के भी बुरे आये गौ के लिए जो प्रगाढ़ आदर और स्नेह हिन्दुओं का अपना विशेष गुण था,वह नष्टप्राय हो गया
हम हिन्दुओं के पूर्व पुरुषों का गौ के प्रति कैसा भाव था यह महाराजा दिलीप और उनकी महारानी की प्रगाढ़ गोभक्ति तथा आदर और प्रेमयुक्त सेवा देखने से पता लगता है, पर जो आदर्श हमारे लिए पूर्वपुरुष हमारे सामने रख गए, उसका हमने क्या आदर किया
अगर इस प्रश्न पर हमविचार से सोचकर अमल करें तो शायद ही गौ माता की रक्षा हो पायेगी अन्यथा वही =ढाक के तीन पात=


बैलों को कब और कैसे हांकें


बैलों को कब और कैसे हांकें 

गाड़ी में जुते हुए बैलों को हुंकार की आवाज से या पत्ते वाली पेड़ की डाली से हांके, डंडे,छड़ी या रस्सी से मारकर न हांकें 
भूख प्यास और परिश्रम से घबड़ाये हुए बैलों को गाड़ी में न जोतें 
जिनकी इन्द्रियां विकल हो रही हों या जो आँख इत्यादि से हीन हों उनको भी न जोते
जब तक भूखे प्यासे बैलों को पूरा खिला-पिला ना दिया जाये तब तक मालिक आप न खाए
दुपहर में बैलों को आराम देना चाहिए
संध्या के समय अपनी रूचि के अनुसार यथावश्यक उनसे काम लें
जो विश्राम के समय बैलों को जोतता है उसे भ्रूण हत्या जैसा पाप लगता है
जो मनुष्य मूर्खता से बैलों के शरीर से खून निकाल देता है वह पापी इस पाप के फलस्वरूप निस्चय ही नरक में जाता है और वहां क्रम से १००-१०० वर्ष तक एक-एक नरक में रहकर फिर इस मनुष्य लोक में बैल का जन्म पाता है


मुख्य बात यह है कि गौ की दुर्दशा के लिए हम हिन्दू स्वयं ही जिम्मेदार हैं

मुख्य बात यह है कि गौ की दुर्दशा के लिए हम हिन्दू स्वयं ही जिम्मेदार हैं 

इस समय हम लोगों की जो दुर्दशा हो रही है, वह इसी पाप का प्रायश्चित हो रहा है जगत का सारा व्यवहार इसी नियम पर चलता है कि जहाँ जिस चीज की मांग होगी, वहीँ उसकी पूर्ति भी होगी, हम लोग भैंस का दूध अधिक पसंद करते हैं और यह नहीं जानते कि भैंस गौ का काल है
गांधी जी चिल्ला - चिल्ला के लोगों से यह कह चुके हैं कि केवल गौ के दूध का सेवन करो
यदि हम लोग हिन्दू होकर गौ का इतना आदर और उसके लिए इतना त्याग न कर सकें कि अधिक दाम देकर भी गौ का दूध ही लें और भैंस के दूध के स्वाद की इच्छा न करें तो हम लोग गौ को गोमाता कहकर पूजने के अधिकारी नहीं हैं, इसमें स्वाद की इच्छा का त्याग भी नहीं है
वैज्ञानिक रीति से यह बात साबित हो चुकी है कि गाय का दूध भैंस से कहीं ज्यादा उत्तम है
जब तक कोई चीज कीमती नहीं होती तब तक उसकी बर्बादी नहीं रोकी जा सकती है
गोओं को हम बचा सकते हैं, यदि हम गाय के ही दूध का सेवन और गाय के दूध से बने पदार्थों का सेवन करें तो अवश्य ही गाय माता की रक्षा होगी
जय गऊ माता की

गोओं के दान की प्रथा

गोओं के दान की प्रथा 
गायों के दान की प्रथा वैदिक समय से चली आ रही है 
वैदिक कल में गाय का दान करने से कोई नहीं रोक सकता था, दान का समय आने पर धनिकों को आनन्द होता था 
राजा गौ का दान करता है; इन्द्र,अग्नि,सोम,विश्वेदेव,भूमि आदि देवता भी गोओं का दान करते हैं इसलिए मनुष्य को भी उचित है कि वह भी गोओं का दान करे
रोगी के उपयोग के लिए भी गाय के दान की प्रथा थी जिससे वह गाय का दूध पीकर रोग मुक्त हो जाये
वैदिक काल में आशीर्वाद के रूप में भी 'तुझे उत्तम गौ प्राप्त हो' यह कहने की प्रथा थी, दान में उत्तम दुधारू तरुण गौ के ही देने का विधान है
दाता को चाहिए कि वह दान में दी गयी गौ के चरने के लिए गोचरभूमि का भी प्रबंध करे
राजा लोग गोओं पर कर भी इसलिए देते थे कि जिससे वे अपने राष्ट्र में गोधन की अभिवृद्धि कर सकें
गोओं के साथ उत्तम बछड़ों के दान का भी विधान पाया जाता है
जिस देश में हजारों की संख्या में गोओं के दान का उल्लेख मिलता हो, उस देश में गो धन की कितनी प्रचुरता थी इसका अनुमान सहज में ही लगाया जा सकता है

गो-मन्त्र जाप से पापनाश [हिन्दीउच्चारण]

गो-मन्त्र जाप से पापनाश [हिन्दीउच्चारण] गाय घृत और दूध देने वाली हैं घृत की उत्पत्ति स्थान, घृत को प्रकट करने वाली घृत की नदी और घृत की भँवर रूप हैं। 
वे सदा मेरे घर में निवास करें घृत सदा मेरे हृदय में रहे और मेरी नाभि में रहे तथा मेरे सारे अंगों में रहे और मेरे मन में स्थित रहें
गाय सदा मेरे आगे रहें, गाय सदा मेरे पीछे रहें गाय मेरे चारों ओर रहें तथा मैं गायों के बीच में निवास करूँ ।

जो मनुष्य प्रतिदिन प्रातःकाल और सांयकाल आचमन करके उपर्युक्त मन्त्र का जप है, उसके दिनभर के पाप नष्ट हो जाते हैं।

गाय हमारे जीवन के लिए अत्यंत लाभ देने वाली है और गाय से ही हर मनुष्य का जीवन हुआ है

गाय हमारे जीवन के लिए अत्यंत लाभ देने वाली है और गाय से ही हर मनुष्य का जीवन हुआ है 
गाय को हम अपनी जीवन की रेखा कहा करते हैं पर अपनी ही जीवन रेखा को हम संभाल नहीं पा रहे हैं 
आज-कल हम नेट पर,अखबारों में, टीवी चैनलों आदि पर देखते हैं कि कैसे हजारों गाय काटी जा रही हैं और हम मुँह ताके देख रहे हैं
आखिर हम और हमारी सरकार कब समझेंगे कि गाय कोई मामूली जानवर नहीं है जिसे हम काटने दें
शास्त्रों में कहा गया है कि गाय के शरीर में ३३ करोड़ देवता निवास करते हैं और यह बात सभी {विशेषकर हिन्दुओं} को पता है फिर भी हम गाय को नहीं बचा पा रहे हैं।
दरअसल बात यह है कि हम अपने आपको कमजोर समझ रहे हैं
और सही बात यह है कि हम किसी से कम नहीं हैं फिर भी पता नहीं क्यों हाथ-पर-हाथ रखकर बैठे हुए हैं
हिन्दुओं जागो वरना अंजाम क्या होगा ये तो वक्त बताएगा और अब भी बता रहा है

विज्ञान की दृष्टी में गौवंश।


विज्ञान की दृष्टी में गौवंश।

1.जर्सी नस्ल की गाय का दूध पीने से 30 प्रतिशत कैन्सर बढने की संभावना हैं। ----- नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट आॅफ अमेरिका
2.गाय अपने सींग के माध्यम से काॅस्मिक पाॅवर ग्रहण करती हैं। ------ रूडल स्टेनर,जर्मन वैज्ञाानिक
3.गोबर की खाद की जगह रासायनिक खाद का उपयोग करने के कारण महिलाओं का दूध दिन प्रतिदिन विषैला होता जा रहा हैं। ----- डाॅ. विजयलक्ष्मी सेन्टर फाॅर इण्डियन नोलिज सिस्टम
4.गौमूत्र के उपयोग से हदय रोग दूर होता है तथा पेशाब खुलकर होता है कुछ दिन तक गौमूत्र सेवन से धमनियों में रक्त का दबाव स्वाभाविक होने लगता हैं, गौमूत्र सेवन से भूख बढती है, यह पुराने चर्म रोग की उत्तम औषधि है। ----- डाॅ. काफोड हैमिल्टन, ब्रिटेन
5.गौमूत्र रक्त में बहने वाले दूषित कीटाणुओं का नाश करता है। ---- डाॅ.सिमर्स, ब्रिटेन
6.विश्व में केवल गौवंश ही ऐसा दिव्य जीव है जो अपनी निश्वास में आॅक्सीजन छोडती हैं। ----- कृषि वैज्ञानिक डाॅ. जूलिशस एवं डाॅ. बुक जर्मन
7.शहरों से निकलने वाले कचरे पर गोबर के घोले को डालने से दुर्घन्ध पैदा नहीं होती है व कचरा खाद के रूप में परिवर्तित हो जाता हैं। --- डाॅ.कान्ति सेन सर्राफ मुम्बई
8.गौ दूध में विद्यमान सेरिब्रासाइय मस्तिक और स्मरण शक्ति के विकास में सहायक होती हैं साथ ही एम.डी.जी.आई. प्रोटीन के कारण रक्तर्कोँणकाओं में कैंसर प्रवेश नहीं कर सकता हैं। ----- प्रो. रानाल्ड गौ रायटे कारनेल विश्व विद्यालय
9.समस्त दुधारू प्राणियों में गाय ही एक ऐसा प्राणी हे जिसकी बडी आंत 180 फीट लम्बी होती है इसकी विशेषता यह है कि जो चारा ग्रहण करती है उससे दुग्ध में केरोटीन नामक पदार्थ बनता है यह मानव शरीर में पॅंहूचकर विटामीन ए तैयार करता है तो नेत्र त्योति के लिए आवश्यक है। -----डॉ अनाम
10.गौमाता के गोबर में हैजे के कीटाणुओं को समाप्त करने की अद्भूत क्षमता होती है। ----- प्रसिद्ध डाॅ. किंग मद्रास
11.जिन घरों में गौमाता के गोबर से लिपाई-पुताई होती है वह घर रेडियों विकिरण से सुरक्षित रहते है। ---- प्रसिद्ध वैज्ञानिक शिरोवीच, रूस

देसी गाय के घी के वैज्ञानिक लाभ-
1- देसी गाय का घी हृदय रोगियों के लिए भी लाभदायक है व मोटापा कम करता है l
2- देसी गाय का 10 ग्राम घी का दीपक जलने से वातावरण शुद्ध होता है l
3- देसी गाय का घी आसानी से पच जाता है तथा मानव शरीर में (Lubricant) का कार्य करता है l
4- देसी गाय का घी बच्चो, गर्भवती महिलाओ व युवाओं के लिए आवश्यक व लाभदायक है l
5- देसी गाय के घी में (Butyric) एसिड होता है, जो कैंसर और वाइरल जेसे रोगों की रोकथाम करता है l
6- देसी गाय का घी सुक्ष्म कण का होता है, जो दिमाग की प्रत्येक नस नाडी तक पहुंचकर स्मरण शक्ति बढाता है l
7- देसी गाय का घी त्रिदोष (कफ ,वात ,पित्त) नासक है l

मंगलवार, 26 अगस्त 2014

कृपया प्लास्टिक का प्रयोग नही करे।

हम सबका अब एक ही संकल्प होना चाहिये कि देश की एक भी 'गाय' पोलीथीन खाकर न मरे तथा कसाई खानों में जाकर न कटे।

हम सभी अगर सोच ले कि हम ही बदलाव ला सकते हैं तो बदलाव निश्चित है...

इसकी शुरूआत हमे स्वयं अपने घरो से करनी होगी।

आखिर जब हम गाय को माता मानते हैं
तो उसका ध्यान क्यों नहीं रखते ?
क्या माँ को बुढापे में सडकों पर कचरा, पॉलीथीन और डंडे खाने के लिए छोड़ देना चाहिए ?

कितने समय से हम सभी को बताया जा रहा है कि पॉलीथीन की थैलियाँ हमारे पर्यावरण ओर गौमाता के लिए बहुत घातक हैं।
परन्तु कोई भी अपनी इस जरा सी सुविधा को त्यागने को तैयार नहीं है।
सभी को सामान पॉलीथीन में ही चाहिए।

हमारे माता पिता भी तो कपड़े के थैलों में समान लाते थे।
क्या अपने साथ कपड़े की थैली ले जाना इतना कठिन हो गया है ?

आज गाय जिसे गाय माता कहते है कचरा खाने को मजबूर है।
कचरे के साथ हमारी गौ माताएँ पॉलीथीन भी खा लेती हैं।
इससे उनके पेट में इस पॉलीथीन की मात्रा बढ़ती जाती है तो उन्हें कष्ट होता है।
ओर ये पॉलीथीन एक दिन उनकी जान ले लेता है।

सैकड़ों लोगों के सामने पशु चिकित्सक गायों का औपरेशन करके ये पॉलीथीन
की थैलियाँ निकाल रहे हैं।
हाल में ही एक गाय के पेट में से ३५ किलो तो दूसरी के पेट से ८० किलो पॉलीथीन व प्लास्टिक निकाला गया।

अब हम सबको मिलकर लोगों में जन जागरण फैलाना होगा कि पॉलीथीन व प्लास्टिक हमारे पर्यावरण व हमारी गायों के लिए कितना हानिकारक है।

बहुत से लोग यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लेते है की यह काम सरकार का है हमारा नहीं।

ऐसे लोगो से सिर्फ इतना ही कहूँगी की सरकार भी आप और हम मिलकर ही बनाते है।
सरकार कुछ नही कर रही ऐसा कहकर हमे अपने कर्तव्य से पल्ला नही झाड़ना चाहिये।

अब घरो मे बैठकर जय गौमाता के नारे लगाने से गौरक्षा नही होगी हम सबको मिलकर गौमाता के प्रति अपना कर्तव्य निभाना होगा।

अब यदि गाय के प्रति श्रद्धा के कारण ही लोग पॉलीथीन का उपयोग कम कर दें तो यह धर्म व धार्मिक भावनाओं का एक सकारात्मक उपयोग होगा।

पॉलीथीन के खिलाफ प्रचार से हमारी गायों के साथ साथ हमारी धरती की भी रक्षा हो जाए तो मैं आप सभी की आभारी रहूँगी।

आपके द्वारा इस संदेश को लाईक से ज्यादा अच्छा यह होगा के इस संदेश को हम सभी शेयर करे।

शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

किसी को कष्ट मत दो ...

किसी को कष्ट मत दो

चार दिन की जिंदगी में भी अगर आप किसी को [चाहे वह पशु-पक्षी ही क्यों न हों] कष्ट दे रहे हैं तो इससे ज्यादा शर्मनाक बात कोई नहीं है\
अगर आप किसी को सुख नहीं दे सकते तो दुःख भी मत दीजिये
यदि मेरे मांस खाने से मेरे किसी भाई को कष्ट होता है तो मैं संसार की अंतिम स्थिति तक केवल मांस खाना ही नहीं छोड़ता बल्कि यह भी चाहता हूँ कि मुझसे किसी तरह भी किसी भी भाई को कष्ट न पहुंचे
इसलिए आप सब से गुजारिश है की कृपया मांस न खाएं\

बच्छ बारस की हार्दिक शुभकामनाये

बछ बारस गाय बछड़े की पूजा (वत्स द्वादशी )
बछ बारस , गाय बछड़े की पूजा (वत्स द्वादशी ) चाकू का काटा नहीं खायेंगी माताएं प्राचीन हिंदू परंपरा के अनुसार सुहागिनें और माताएं आज शुक्रवार को बछ बारस (वत्स द्वादशी) पर्व मनाएंगी। इस पर्व में हषरेल्लास के साथ बछड़े वाली गाय की पूजा करते हुए संतान की सकुशलता की कामना की जाएगी। परंपरा के अनुसार इस दिन महिलाएं चाकू से कटी भोजन सामग्री से परहेज करेंगी।
मक्का की रोटी से खोलेंगी व्रत " वत्स द्वादशी के मौके पर सुहागिनों द्वारा संतान सुख और माताओं द्वारा संतान की सकुशलता की कामना की जाएगी। इस मौके पर व्रतधारी महिलाएं गाय और बछड़े की पूजा करेंगी। व्रत खोलने के लिए भोजन में कड़ी और मक्का की रोटी, मूंग, चने के बरवे, भुजिया आदि बनाए जाएंगे ।
संतान को झेलाएंगी खोपरे ,,,गाय, बछड़े की पूजा के बाद महिलाओं द्वारा अपनी संतान को नारियल और खोपरे झेलाकर, तिलक लगाकर उनकी सकुशलता व लंबी उम्र की कामना की जाएगी। पूजा अनुष्ठान के बाद बहुएं परिवार की बड़ी, बुजुर्ग महिलाओं को चरण स्पर्श किया जाएगा।
बछ बारस व्रत की कथा ,,,,एक परिवार में सास और बहू साथ रहती थी। उनके घर में गाय और उसके दो बछड़े थे, जिन्हें सास बच्चों से भी ज्यादा प्यार से रखती थी। घर से पूजा कार्य के लिए निकली सास ने बहू से गंवलिया और जंवलिया (गेहूं व जौ) पकाने को कहा। गाय के बछड़ों का नाम भी गंवलिया और जंवलिया होने से नादान बहू ने दोनों बछड़ों को काट कर पकाने के लिए चूल्हे पर चढ़ा दिया। पूजा कर वापस लौटी सास ने घर में गाय के बछड़े नहीं होने पर बहू से जवाब मांगा। बहू ने कहा कि मैंने गंवलिया और जंवलिया को तो पकाने के लिए चूल्हे पर चढ़ा दिया है। यह सुनकर पीड़ा में डूबी सास ने दोनों बछड़े वापस लौटाने की कामना भगवान से की। ईश्वर की कृपा से वे दोनों बछड़े दौड़कर आ गए, जिन्हें बहू ने चूल्हे पर चढ़ा दिया था।
ॐ सर्वदेवमये देवि लोकानां शुभनन्दिनि।मातर्ममाभिषितं सफलं कुरु नन्दिनि।।
ॐ माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभि:।
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट नमो नम: स्वाहा।।