गुरुवार, 28 अगस्त 2014

गोओं के दान की प्रथा

गोओं के दान की प्रथा 
गायों के दान की प्रथा वैदिक समय से चली आ रही है 
वैदिक कल में गाय का दान करने से कोई नहीं रोक सकता था, दान का समय आने पर धनिकों को आनन्द होता था 
राजा गौ का दान करता है; इन्द्र,अग्नि,सोम,विश्वेदेव,भूमि आदि देवता भी गोओं का दान करते हैं इसलिए मनुष्य को भी उचित है कि वह भी गोओं का दान करे
रोगी के उपयोग के लिए भी गाय के दान की प्रथा थी जिससे वह गाय का दूध पीकर रोग मुक्त हो जाये
वैदिक काल में आशीर्वाद के रूप में भी 'तुझे उत्तम गौ प्राप्त हो' यह कहने की प्रथा थी, दान में उत्तम दुधारू तरुण गौ के ही देने का विधान है
दाता को चाहिए कि वह दान में दी गयी गौ के चरने के लिए गोचरभूमि का भी प्रबंध करे
राजा लोग गोओं पर कर भी इसलिए देते थे कि जिससे वे अपने राष्ट्र में गोधन की अभिवृद्धि कर सकें
गोओं के साथ उत्तम बछड़ों के दान का भी विधान पाया जाता है
जिस देश में हजारों की संख्या में गोओं के दान का उल्लेख मिलता हो, उस देश में गो धन की कितनी प्रचुरता थी इसका अनुमान सहज में ही लगाया जा सकता है

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