मंगलवार, 21 अक्तूबर 2014

मारवाड़ी कविता "सुख समृद्धि छावो देश में रोको कटती गांया ने"

जै गो माता की
तर्ज: - कबुतरा की मकी बेचदे
बार बार अरज करू में भारत का भाया ने ।
सुख समृद्धि छावो देश में रोको कटती गांया ने ।।
ईतिहास भी है गवाही जद जद गांया पे वार विया ।
धर्म की रक्षा के खातिर ईश्वर का अवतार विया ।।
जगत पिता भी बण्यो गुवालो चराणे खातिर गांया ने ।। 1 ।।
अग्नि ज्यू धरण लगे हुरज तपे आकाशा ।
आषाढ मीनो लागता ही बंधे हैं जग ने आशा ।।
गायां खातर बरसे ईन्द्र भी पाणी पावे तसायां ने ।। 2 ।।
गाय गुवाडे बंधी रेती रोग दोग ने हरती ।
सुख संपदा का भंडार सदा ही मा भरती ।।
अंग्रेजी खाणो आग्यो भूल्या दूध
मलांया ने ।। 3 ।।
हल खींचकर धरती फाडता जैठ बैसाखा में धोरी ।
हीरा मोत्यां की खेती निपजती भर भर ने लाता बोरी ।।
मशीनरी का जुग में आकर भूल्या गौ का जायां ने ।।4 ।।
गाय गंगा गीता गायत्री घर घर तुलसी वेती ।
सारां ही पेली की रोटी मायड गाय ने देती ।।
ऊंच नीच को भेद मिटाकर भूल गया हथायां ने ।। 5 ।।
गौ माता के रोम रोम में राम जी को वास है ।
देव रमण ने आवे जठे गाय को निवास है ।।
चारो पाणी दिज्ये धराणी  केवे रामेश्वर माया ने ।। 6 ।।
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गौ चरणों का दास
गोवत्स राधेश्याम रावोरिया

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