शनिवार, 26 सितंबर 2015

गो गव्य ही सर्वोत्तम आहार हैं।

गो गव्य ही सर्वोत्तम आहार हैं।

यज्ञ में काम लिया जाने वाला घृत केवल और केवल गो-घृत ही होना चाहिये, तभी देवता उसको ग्रहण करेंगे। बाजारू घृत जो कि चर्बीयुक्त हो सकता है या फिर अन्य पशुओं का घृत जो कि अशुद्ध माना जाता है, देवता नहीं दानव ग्रहण करेंगे। उससे देव शक्ति की बजाय दानवी शक्ति का पोषण होगा। परिणाम हमारे लिये निश्चित उल्टा ही होगा। अतः यज्ञ में केवल गो-गव्यों का ही प्रयोग करना चाहिये। शास्त्र विरुद्ध किया गया कार्य पूरी सृष्टि के लिये हानिकारक होता है। शास्त्र में जहाँ भी दूध, दही, छाछ, मक्खन, घृत आदि उल्लेख किया गया है वो केवल गाय के गव्य ही हैं, क्योंकि उस समय भैंस, जर्सी, हॉलिस्टीयन जैसे पशुओं का व्यवहार कहीं भी शास्त्र में आया ही नहीं है।
बीमारियों से बहुत दुःखी होने के बाद भी आम आदमी में यहाँ तक कि बुद्धिजीवियों और बड़े-बड़े कई साधु-संतों में भी सजगता देखने में नहीं आ रही है। दूध और घी के विषय में तो वे बिल्कुल लापरवाह या अनभिज्ञ से नजर आ रहे हैं। हृदयघात और ब्लोकेज में कॉलेस्ट्राल मुख्यतः गोघृत के अलावा खाया गया घृत है, जिससे हमारा पाचन तंत्र पचा नहीं पाया।
इसके अलावा गुणों में गाय का दूध सात्विक, भैस का राजसी व जर्सी-हॉलिस्टीयन का तामसी होता है। इनको खाने से इनके जैसा ही हमारा मन मस्तिष्क और हृदय बनता है। सफेद रंग का हरेक पदार्थ दूध नहीं होता है।
वर्तमान में गाय का जो त्याग और तिरस्कार है वो मुख्यरूप से दूध की मात्रा को लेकर किया जा रहा है। वजह केवल व्यापार। बेचने वाला तो रुपये कमाने के लिये ऐसा कर रहा है, पर खरीददार दूध के प्रति शिक्षित नहीं होने के कारण शुद्ध गाय के दूध की माँग नहीं कर रहे हैं।
लगातार अनदेखी से हमारे देश में गायों की नस्ल में भारी गिरावट आई है, जिससे वे कम दूध दे रही है। देश में दूध की माँग केवल दो फालतू के कार्यों हेतु है- 1. चाय और 2. मिठाई। अगर लोग चाय पीना छोड़ दें, जो कि जीवन निर्वाह हेतु कतई आवश्यक नहीं है, तो दूध की खपत एकदम गिर जायेगी। जो मिठाई वर्तमान में लोग खा रहे हैं, उससे स्वास्थ्य को लाभ की बजाय हानि अधिक हो रही है, केवल जीभ का स्वाद लेने के लिये बीमारी का घर खा रहे हैं। ऐसी मिठाई का भी यदि त्याग कर दें तो दूध की खपत और घट जायेगी। ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम रह गयी है जो स्वास्थ्य के लिये दूध पीते हैं। बच्चे अभी भी दूध जरूर पीते हैं।
जब माँग कम होगी तो उसकी पूर्ति केवल गायों से हो जायेगी। इससे लाभ यह होगा कि हमें वाकई में पीने को दूध मिलेगा। हमारा स्वास्थ्य और करोड़ों का खर्च बच जायेगा।
चाय और मिठाई के लिये अधिक दूध की माँग ने गाय को घर से बाहर कर दिया और उसे बूचड़खानों की और धकेल दिया।
कुछ सज्जन मेरे यहाँ से गाय का शुद्ध दूध ले गये और अपने बच्चों को पिलाया। मैंने 10 दिन बाद उन बच्चों को पूछा कि गाय का दूध कैसा लग रहा है? उनका उत्तर थ कि अंकलजी हमने जीवन में व्हाइट दूध ही पहली बार पीया है। अब तक स्वाद न होने के कारण हम बोर्नवीटा मिलाकर कलर्ड (रंगीन) दूध ही पी पाते थे। अब तो वे गाय के दूध के अलावा दूध पीने को तैयार ही नहीं हैं।
अकबर ने एक बार बीरबल को पूछा कि सबसे अच्छा दूध किसका होता है। हाजिर जवाब बीरबल ने तपाक से उत्तर दिया भैंस का। अकबर को बीरबल से यह उम्मीद कतई नहीं थी। वो उसे हिन्दूवादी और गाय का प्रबल पक्षधर समझता था, इसलिये बीरबल के इस उत्तर से वह आश्चर्यचकित था। अकबर यह अच्छी तरह जानता था कि बीरबल कभी गलत उत्तर नहीं दे सकता, पर आज ऐसा कैसे हुआ? अकबर ने अगला प्रश्न किया कि- कैसे और क्यों?
बीरबल ने उत्तर दिया -जहाँपनाह, दूध तो केवल दो ही जानवर देते हैं। एक भैंस और दूसरी बकरी। इनमें भैंस का ठीक है। महाराज गाय दूध नहीं, साक्षात् अमृत देती है। मैं उसे दूध की श्रेणी में नहीं गिना सकता।
  अतः मित्रों, मात्रा नहीं दूध की गुणवत्ता देखें। सफेद जहर से बचें।
आज इतना ही । जय गोमाता ! जय गोपाल !

बुधवार, 23 सितंबर 2015

बकरीद पर बेजुबान जीवों की सामूहिक हत्या अनुचित...

“नहीं पहुँचते अल्लाह के पास गोश्त और लहू के लुकमे,
पहुचती है अल्लाह के पास तेरी परहेजगारी और दयानतगारी।”
बकरीद पर बेजुबान जीवों की सामूहिक हत्या अनुचित...
मेरे हृदय से किसी भी मुश्लिम मित्र को 'बकरीद' के दिन मुबारकबाद नहीं निकलती है।
मेरे कुछ मुस्लिम मित्र भी जानकार हैं, लेकिन उन्हें भी मैं बकरीद के दिन मुबाकरबाद नहीं दे सकता ।
अनेकों को शायद बुरा भी लगता होगा, लगे तो लगे, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।
जो लोग धर्म की आड़ में मूक जानवरों की हत्या करते हैं, मैं उन्हें कभी भी मुबारकबाद दे ही नहीं सकता ।
बकरीद का दिन (इस साल 25 सितम्बर, 2015) एक ऐसा दिन जो साल के 365 दिन में मेरे लिये सबसे दुखद दिन होता है।
बकरीद के दिन धर्म के नाम पर, बेजुबान और बेगुनाह जानवरों की सामूहिक हत्या करके 'ईद' अर्थात् खुशियाँ मनाना कहीं से भी गले नहीं उतरता है।
मैं किसी की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता ।
किसी भी जीव की हत्या करना मेरी नजर में अधर्म है।
मैंने इस्लाम धर्म की अनेक प्रतिष्ठित पुस्तकों को पढा है।
मुस्लिम विद्वानों द्वारा हिन्दी में अनुवादित कुरान को भी पढा है।
मुझे कहीं भी मोहम्मद साहब का ऐसा कोई सन्देश पढने को नहीं मिला, जिसमें यह कहा गया हो कि निर्दोष और मूक जानवर की बली देने से खुदा प्रसन्न होता है या इस्लाम को मानने वाले को निर्दोष और मूक जानवर की हत्या करना जरूरी शर्त है।
फिर धर्म के नाम पर बेजुबान जीवों की हत्या करने का औचित्य समझ से परे है?
ऐसा भी नहीं है कि बकरों आदि अनेक जीवों की हत्या सामान्य दिनों में नहीं होती है, निश्चय ही रोज गाय-भैंस, भेड़-बकरों आदि जीवों का कत्ल होता है।
विश्व स्तर पर इस तथ्य को भी मान्यता मिल चुकी है कि यदि लोग मांस का सेवन नहीं करेंगे तो भूखों मरने की नौबत आ सकती है।
इसके अलावा अनेक मांसाहारी लोगों द्वारा ऐसे तर्क भी दिये जाते हैं कि पर्यावरण एवं प्रकृति को संन्तुलित बनाये रखने के लिये भी गैर-जरूरी जीवों को नियन्त्रित रखना जरूरी है।
लेकिन मुझे लगता है की प्रकृति के सन्तुलन को तो सबसे ज्यादा मानव ने बिगाड़ा है, तो क्या मानव की हत्या करके उसके मांस का भी भक्षण शुरू कर दिया जाना चाहिये।
मुझे पता है कि मांस भक्षण करने वालों की संख्या तेजी से बढ रही है।
इस्लाम धर्म में बकरीद के दिन निर्दोष जीवों की बलि जरूरी हो चुकी है, इन सब बातों को रोकना असम्भव है।
फिर भी संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार व्यक्त करने की आजादी देता है। इसलिये मैं अपने विचारों को अभिव्यक्ति देकर अपने आपको हल्का अनुभव कर रहा  हूँ।
मैं मुस्लिम समुदाय के सभी लोगों से अपील करता  हूँ की बकरीद पर गाय-बैल आदि बेजुबान जीवों की हत्या ना करे....
हम निर्बल है मूक जीव बस ऐसे ही रह जाते हैं,
सुबह सलामत देखते हैं पर शाम हुई कट जाते हैं...
कितने हैं इंसान लालची, गिरे हुए यह मत पूछो,
मांस मिले गर खाने को तो मजहब से हट जाते हैं।"

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

घरों में निकली गाय -बैलों के गले की रस्सी ही आज प्रत्येक किसान की ख़ुदकुशी का सबसे बड़ा कारण ||

ये कहने की बात नही,ये तो जानने और समझने की बात है,
भारत की आजादी से पहले और बाद तक की ये बात है;
भारत एक ऐसा देश रहा यहाँ भारत का प्रत्येक इंसान धनी था!
इसको देख कर और देशों को आश्चर्य रहता था की ऐसा क्या है की यहाँ के लोग इतने धनी होते;धनी होने का मुख्य कारण था हमारे गाय-बैल;
जिनसे उत्तम खाद,पौष्टिक दूध ,दही,लस्सी,माखन जैसे पदार्थों का सेवन प्रत्येक वर्ग के लोगों के घरों में पाया जाता था!
ऐसे में बहुत से अंग्रेज,ब्रिटिश लोगों ने भारत देश को अपने कब्जे में करना चाहा!!
परंतु यहाँ इस देश की पावन मीट्टी में ऐसे सूरवीर योद्धा पैदा हुये जिनसे भारी हार का सामना उन लोगों को करना पड़ा!
इसीसे उनका ध्यान पड़ा भारती गाय,बैलों पर;
इसीसे से उन् लोगों ने धर्म के नाम से हम भारतीय हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई को आपस पे दुश्मन बना दिया|
भारत आजाद तो हुआ ,परन्तु हमारे धर्मों के नाम से झगड़े आज तक समाप्त नही हुए;
और उनसे मिले कुछ सरकारी टुकड़ों पर पल रहे देश के गद्दार जो आज भी हम सभी को आपस में बटवारा करने पर तुले;
आज प्रत्येक घर में दूध,दही,माखन की जगह शराब बीड़ी तम्बाकू ऐसे कोई और तरह के नशे सेवन किय जा रहे||
खेती को बन्ज़िर बनाया जा रहा नशीली रासायनिक दवाइयों के द्वारा|
1.आधुनिक की चकचौंक में इंसान सबकुछ भूल चूका!
देसी हाल्ट-ट्यूबिल्ल के द्वारा बैलों के ज़रिये कम खर्च से ज्यादा पानी का प्राप्त करना|
इसके उल्टा आज बिजली की सहायता से कम पानी और खर्च ज्यादा|

2,खर्च के बिन फसलों में गोबर खाद का उपयोग होना
इसके उल्टा आज महंगी दाम में यूरिया मोनोसेल ज़हरीले रसायन खाद दवाइयों का उपयोग में लाना!

3.कभी खेती बैलों के द्वारा की जाती थी कम खर्च में
इसके उल्टा आज ट्रैक्टर ट्रॉली महंगे भाव के डीजल पैट्रोल पर चलने वाले!

4.कभी ढोया-धवाइ में बैलों क8 मदद ली जाती थी
और आज ये काम सभी महंगे भाव से चल रहे !

इन्हीं कारण आज भारत वर्ष की कई एकड़ जमीन बन्ज़िर हो चुकी/
और हमने ने इस आधुनिक दुनियां को अपनाने के कारण गौ-बैलों को रस्से खोल,घरों से बाहर कर दिया,
परिणाम सामने है
ज़हरीली सब्जियों,फलों के सेवन से केन्सर जैसी ला इलाज बिमारी प्रत्येक घर पर वार कर रही|
आधुनिक मशीनरी कारण ही रोजाना नजाने कितने हादसे होते!!
घरों में निकली गाय -बैलों के गले की रस्सी ही आज प्रत्येक किसान की ख़ुदकुशी का सबसे बड़ा कारण ||

जागो किसान जागो

वन्दे गौ मातरम्

शनिवार, 5 सितंबर 2015

श्री कृष्ण जन्मास्टमी की हार्दिक शुभ कामनाये

श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अलौकिक पर पर्व हम सभी संकल्पित हो कि उनकी प्यारी दुलारी पूज्या गोमाता की रक्षा एवं सेवा में अपना सर्वस्व अर्पण करने को अपना परम सौभाग्य माने। यही उनके जन्म की सच्ची शुभकामना है।
एक बार श्री कृष्ण से पूछा गया कि आपकी अन्तिम इच्छा क्या है? तब कनैया ने कहा कि "गाय मेरे आगे हो, गाय मेरे पीछे हो, गाय मेरे अगल हो,गाय मेरे बगल हो, गोमाता मेरे हृदय में हो और मैं गोमाता के मध्य निवास करुं। जब कनैया भी यह कामना करता है तो फिर हम उनकी प्रसन्नता प्राप्त करने के लिये उनकी भी पूज्या गोमाता की सेवा क्यों नहीं कर पाते है? अगर प्रत्येक भारतवासी प्रत्यक्ष गोसेवा एवं गव्यों का सेवन करने लग जाये एक भी गोवंश निराश्रित घूमता हुआ नहीं मिलेगा उनकी आदर पूर्वक सेवा होगी तब ही श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाना सार्थक है नहीं तो अपने स्वयं के साथ भंयकर धोखा ही है।