बुधवार, 27 अप्रैल 2016

एक गाय ने पत्नी बन अपने ही पति को मार, लिया अपने खून का बदला!


           --<( गौ कथा )>--

एक गाय ने पत्नी बन अपने ही  पति को मार, लिया अपने खून का  बदला!

पौराणिक कथाये
एक बार एक कृष्ण भक्त अपनी भक्ति में रत था, तभी उसने देखा के एक  गाय भागती हुई आ रही है और पीछे  पीछे उसका मालिक उसे पकड़ने के  लिए दौड़ रहा था. उस व्यक्ति ने उस गाय को पकड़ लिया और मालिक को  सौंप दिया, असल में गाय का मालिक  एक कसाई था जो उसे हलाल करने  वाला था तब मौका पाके गाय भाग गई  थी.
उस कसाई ने गाय को लाके उसको  हलाल कर दिया, मरती हुई गाय की  इतनी भयंकर हाय लगी की मारने  वाला कसाई अगले जन्म में कसाई  बना और वो गाय उसकी ही पत्नी बनी. जिस कृष्ण भक्त ने गाय को वापस  कसाई को पकड़ाया था वो भी एक कसाई  ही बना और अपने पिछले जन्म के  पुण्य कर्म भूल चूका था. वो राजा  के यंहा बकरा हलाल करने का काम  करता था, एक दिन राजा को पता नहीं क्या सूझी की उसने अपने कसाई को  बकरे को पीछे से काटने बोला न की  पहले उसका सर.
राजाज्ञा का पालन करते हुए कसाई  बकरे को उसके कमर के पीछे के भाग  से हलाल करने लगा, तब एक आवाज सुन कर वो चौंक गया. कसाई ने देखा की  बकरा कुछ बोल रहा है इंसानो की  जुबान में, बकरे ने कहा की अरे  कसाई तू ये क्या कर रहा है मैं  तुझे देख भी नहीं पा रहा हूँ की  तू मुझे कैसे मार रहा है. अगर मैं ऐसा न कर सका तो अगले जन्म में,  मैं तुझे वापस कैसे मारूंगा,  इतना सुनते ही कसाई का दिमाग  ठिकाने आ गया और वो वंही बैठ कर  भगवान से क्षमा मांगने लगा.
सुबह से शाम हो गई और कसाई भगवान  की साधना में बैठा रहा, शाम होने  पर जब उसकी आँख खुली तो उसे ये  एह्साह हुआ की राजा के पास बकरे  का मांस नहीं पहुंचा है और राजा  उसे मार डालेगा. जैसे तैसे वो  हिम्मत करके राजमहल गया, तो राजा उलटे उस पर प्रसन्न होगया और  बोला आज का गोश्त तो कमाल का था  तुम इनाम मांगो क्या चाहिए? ये  सुन कर कसाई जिसका नाम सदन था  बोला महाराज मैंने तो बकरा हलाल  ही नहीं किया जो कोई भी आप के पास मांस पहुँचाने आया था वो और कोई  नहीं भगवान कृष्ण थे.
उसी दिन से सदन भगवान की भक्ति  में लग गया और जगन्नाथ पूरी के  लिए रवाना हो गया, रस्ते में वो  विश्राम करने उसी कसाई के घर  रुका जिसे पिछले जन्म में भागती  हुई गाय पकड़ाई थी और गाय उस कसाई  की पत्नी बनके जन्मी थी. अपने  समाज के व्यक्ति होने के कारण  उसे आदर मिला और रात में विश्राम की जगह, सदन कसाई रूपवान था और  कसाई की पत्नी उसपे रीझ गई.
पति के सोने के बाद कसाई की  पत्नी सदन के पास आई और उसके साथ  हमबिस्तर होने की बात रखी, पर  सदन ने मना कर दिया. कसाई की  पत्नी को लगा के शायद उसके पति  के डर से सदन मना कर रहा है तो वो अंदर गई और अपने पति को सोये हुए  ही हलाल कर दिया. ऐसा करके वो  वापस आई और उसने कहा की तुम्हे  अब मेरे पति से डरने की जरुरत  नहीं है मैं उसे मार आई हूँ, इस  पर भी सदन ने मना कर दिया तो कसाई की पत्नी ने हल्ला मचा दिया और  सदन पर आरोप लगा दिया की उसने ही  उसके पति को मार डाला है.
सजा में सदन को दोनों हाथ गंवाने पड़े और कटे हुए हाथो से ही वो  जगन्नाथ धाम के लिए रवाना हो  गया, जन्हा भक्ति से प्रसन्न होक भगवान ने उसके दोनों हाथ फिर से  लौटा दिए और उसे पिछले जन्म की  कथा बता कर गौ हत्या के भागी  होने का भी बोध कराया....

मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

गौ - महिमा - (गौदुग्ध/cow milk)

़़़़़़़़़़़़़़गौदूग्ध ़़़़़़़़़़़ 

१. प्रवरं जीवनीयानां क्षीरमुक्त्तं रसायनम् ।। 

अर्थात -सुश्रुत ने भी गौदूग्ध को जीवनीय कहा है । गौदूग्ध जीवन के लिए उपयोगी ।ज्वरव्याधि- नाशक रसायन ,रोग और वृद्धावस्था को नष्ट करने वाला ,क्षतक्षीणरोगीयों के लिए लाभकारी,बुद्धिवर्धक ,बलवर्धक ,दुग्धवर्धक,तथा किचिंत दस्तावरहै ।और क्लम (थकावट) चक्कर आना मद, अलक्ष्मी को दूर करता है ।और दूग्ध आयु स्थिर रखता है,और उम्र को बढ़ाता है । 

२. गाय के दूध का सेवन करते रहने पर कोलेस्ट्राल की वृद्धि नहीं होती ,क्योंकि उसमें विद्धमान" ओरोटिक अम्ल उसे कम कर नियन्त्रित रखता है ।गाय के दूध में कार्बोहाइड्रेट का स्त्रोत लैक्टोज है ,जो विषेशत: नवजात शिशुओ को ऊर्जा। प्रदान करता है ,मानव एंव गाय के दूध में इसकी मात्रा क्रमश:७ तथा ४.८प्रतिशत होती है । 

३. गौदूग्ध अमृततुल्य है ।इसमें ८७.१ प्रतिशत जल तथा १२.९ प्रतिशत घनपदार्थ है ।ए,डी,ई,बी,और सी जीवन सत्त्व है ।इसके अलावा प्रोटिओज, लैक्ओम्युसिन, और मद्धद्रावक प्रोटीन भी अंशत: पाये जाते है । 

४. दूध में प्रोटीन रहित नाईट्रोजन वाले पदार्थ (लैक्टोक्रोम क्रिएटीन, युरिया ,थियोसवनिक एसिड, ओरोटिक एसिड ,हाइपोक्सेन्थीन, जैन्थीन, और यूरिक एसिड ,कोलिनट्राइमेथिलेमिन,ट्राइमेथिलेमिन आक्साइड ,मेथिल ग्वेनिडिन और अमोनियाक्षार)पाये जाते है ।और फास्फोरस वाले पदार्थ (फ्री फास्फेट ,फास्फेट केसीन के साथ मिला हुआ लेसिथिन और सिफेलिन ,डाइमिनो मोनोफास्फोटाइड तथा तीन अम्ल द्रावक सेन्द्रिय फास्फोरस यौगिक ) पाये जाते है । 

५. दूध तत्वों की खास विशेषता यह है ,की वे हमारे भोजन के अन्य पदार्थ -आटा, चावल, आलू, फल-फूल ,शाक, आदि के दोष को नष्ट करने में ,इन पदार्थों को उच्चतर रूप में पलटने में ,इन्हें सुपाच्य बनाने में सहायता करता है । 

६. दूध में कम से कम ५० पदार्थ सवा सौ-- डेढ सौ रूपों में रहते है ।इतना सर्वगुणसम्पन्न और सब प्रकार से परिपूर्ण पौष्टिक और साथ ही बुद्धि में सात्विकता उत्पन्न करने वाला बहुत सस्ता आहार है ।

७. गौ का धारोष्णदूध बलकारक ,लघु ,शीत ,अमृत के समान ,अग्निप्रदीपक ,त्रिदोषशामक होता है । प्रात:काल पिया हुआ दूध वृष्य ,बृहण ,तथा अग्निदीपक होता है ,दोपहर में पिया हुआ दूध बलवर्धक ,कफनाशक ,पित्तनाशक होता है और रात्रि में पिया हुआ दूध बालक के शरीर को बढ़ाता है ।इसलिए दूध प्रतिदिन पीना चाहिए । 

८. शरीर के ९५ प्रतिशत रोग अमाशय के विकार ,रोग-कीटाणु ,वायु और अणुसृष्टि से उत्पन्न होते है ,इन सब विपत्तियों को टालने की शक्ति दूध-दही की अणुसृष्टि में है । दूध -दही में उत्तमप्रकार के पोषण पदार्थ (अणु )अधिक मात्रा में है । ३५ बूंद दूध ( १क्यूबिकसेंटीमीटर ) में ५ सें १० लाख और छाछ में ५ से १० करोड़ पोषक अणु रहते है ।इनका उपयोग रोगाणुओ को मार भगाना है । 

९. सभी दूध दही में एक ही प्रकार के उत्तम अणु नहीं होते ।इसलिए जो भी दूध- दही मिले उसे पीना ठीक नहीं है ।दूध -दही ,उनके बर्तनों की वातावरण आदि की सफाई का विषेश ध्यान रखना आवश्यक है ।दूध- दही छाछ में जो अणूदि्भजनक मूल्य होते वह विशेष रूप से लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया ,तथा बेसलिस बल्गेरिक्स जाति के है ।उनमें जीवन रक्षक तत्व होता है दूसरे प्रकार के अणुजीवों कें प्रवेश से दही खट्टा हो जाता है ,गंध ,रंग ,स्वाद में विकार उत्पन्न हो जाता है । 

१०. बिना तपाया हूआ दूध घंटों तक पड़ा रहे तो उसमें हवा धूल प्रकाश आदि के कारण हानिकारक परिवर्तन होता है । ताज़ा या धारोष्णदूध में अणुद्भिजों की बहुलता रहती है अत: वह दही जमाने के लिए अच्छा होता है ।दूध को मंदआँच पर उबाल लो ।फिर ठंडा करके उसमें पिछले दिन का साफ़ दही जामन के रूप में १ प्रतिशत ( जाड़े के दिन में २ प्रतिशत ) डालकर उसे अच्छी तरह हिलाकर छोडदे ।कँाच के बर्तन में दही अच्छा नहीं जमता ।मिट्टी के बर्तन आर्दश होते है जो दही एकसमान हो ,पानी न छूटा हो ,फुदकी न पड़ी हो ,स्वाद में खट्टामीठा हो वह दही लाभ करता है ।दही में ज्यादा जल डालने पर छाछ का पोषणमुल्य घटेगा । हवा ,प्काश ,धूप और धूऐं से उसके अनिवार्य सुक्ष्म तत्व घटेगे ।


11.उपनिषद्, महाभारत,चरकसंहिता,अष्टंागहृदय,भावप्रकाश,निघंटु,आर्यभिषेक,आिद ग्रंथों  में तथा विज्ञान और साहित्य में गाय के दूध की महिमा गाई गई है ।

1२.गाय तो भगवान की भगवान है, भूलोक पर गाय सर्वश्रेष्ठ प्राणी है ।

1३.दूध जैसा पौष्टिक और अत्यन्त गुण वाला ऐसा अन्य कोई पदार्थ नहीं है ।दूध जो मृत्युलोक का अमृत है ।सभी दूधों में अपनी माँ का दूध श्रेष्ठ है,और माँ  का दूध कम पड़ा तो वहाँ से गाय का दूध बच्चों  के लिए अमृत सिद्ध हुआ है ।

1४.गौदु््ग्ध मृत्युलोक का अमृत है मनुष्यों के लिए । शक्तिवर्धक,रोगप्रतिरोधक,रोगनाशक तथा गौदुग्ध जैसा दिव्य पदार्थ त्रिभुवन में भी अजन्मा है ।

1५.गौदुग्ध अत्यन्त स्वादिष्ट स्िनग्ध,कोमल,मधुर,शीतल,रूचीकर,बुद्धिवर्धक,बलवर्धक,स्मृति वर्धक ,जीवनीय,रक्तवर्धक,तत्काल वीर्यवर्धक ,बाजीकरण,्स्थिरता प्रदान करने वाला,ओजप्रदान करने वाला ,देहकान्ति बढ़ाने वाला सर्वरोगनाशक ,अमृत के समान है ।


1६.आधुनिक मतानुसार गौदुग्ध में विटामिन "ए" पाया जाता है जो कि अन्य दूध में नहीं विटामिन "ए" रोग -प्रतिरोधक है जो आँख का तेज बढ़ाता है और बुद्धि को सतर्क रखता है ।

1७.गौदुग्ध शीतल होने से ऋतुओ के कारण शरीर में बढ़ने  वाली गर्मी नियन्त्रण  में रहती है वरन् हगंभीर रोगों के होने की प्रबल संभावना रहती है ।
1८.गौदुग्ध जीर्णज्वर मानसिकरोग,शोथरोग,मुर्छारोग,भ्रमरोग,संग्रहणीरोग,पाण्डूरोग,जलन,तृषारोग,हृदयरोग शूलरोग,उदावर्तगुल्म ,रक्तपित,योनिरोग,और गर्भस्राव में हमेशा उपयोगी है ।

1९.गौदुग्ध वात पित्तनाशक है,दमा,कफ,स्वास,खाँसी प्यास,भूख मिटाने वाला है ।गोलारोग,उन्माद,उदररोगनाशक है ।

2०.गौदुग्ध मू््त्ररोग तथा मदिरा के सेवन से होने वाले मदात्यरोग के लिए लाभकारी है ।गौदुग्ध जीवनोउपयोगी पदार्थ अतन्त श्रेष्ठ रसायन है तथा रसों  का आश्रय स्थान है जो कि बहुत पौष्टिक है ।

१.गौदुग्ध के प्रतिदिन सेवन करने वाले व्यकि्त को बुढापा नहीं सताता है वृद्धावस्था में होने वाली तकलीफो से मुक्ति मिल जाती है। 

२.शारीरिक ,बौद्धिक श्रम की थकावट तारे, दूध के सेवन से राहत दिलाती है। 

३.भोजन के पूर्व में छाती में दर्द या डाह होता है तो भोजन पश्चात गौदुग्ध केसेवन से दर्द/डाह शान्त हो जाता है। 

४.वे व्यकि्त जो अत्यन्त तीखा,खट्टा,कड़वा,खारा,दाहजनक गर्मी करने वाला अौर विपरीत गुणोंवाले पदार्थ खाते है उनको सा़ंयकाल भोजनोपरांत गौदुग्ध का सेवन करना चाहिए,जिससे हानिकारक भोजन से होने वाली विकृतियाे का दुष्प्रभाव समाप्त हो जाता है 

५.गौदुग्ध से तुरन्त वीर्यशिक्त उत्पन्न होती है,जबकि आवाज स्े वीर्यवर्धक पैदा होने में अनुमानत: एक माह का समय लगता है।माँस,अण्डे एंड अन्य दासी पदार्थों केसेवन से वीर्यवर्धक का नाश होता है जबकि गौदुग्ध से वृद्धि होती है ,लम्बी बीमारी से त्रस्त व्यकि्त को नवजीवन मिलता है। 

६.गौदुग्ध शरीर में उत्पन्न होनेवाले जहर का नाश करता है।एलौपैथि दवाईया ,फर्टीलाईजर,रासायनिक खाद,कीटनाशक दवाईयाें आदि से वायु जल एंव अन्न के द्वारा शरीर में उत्पन्न होने वाले जहर को समाप्त करने की क्षमता केवल गौदुग्ध में ही है। 

७.आयुर्वेद में गाय के ताजे निकाले दूध को अति उत्तम कहा गया है। 

८.गाय के ताजे दूध को ब्रहममुर्हत में प्रात: ४बजे से ६बजे के बीच में खड़े रहकर प्रतिदिन नाक के द्वारा पीने से रात्रि अंधकार में भी देखा जा सकता है। 

९.गाय के दूध से बनने वाले व्यंजन जैसे पैसे,बर्फी,छेड़, रसगूल्ला इत्यादि पौष्टिक स्वादिष्ट,बलवर्धक,वीर्यवर्धक एंव शरीर का तेज बढानेवाले होते है 

०.गौदुग्ध से बनने वाले व्यंजन लम्बे समय तक खराब नहीं होते जबकि भैंस एंव अन्य पशुओं के दूध से बनने वाले व्यंजन जल्दी खराब होते है 

१. गौदुग्ध दूग्ध में देवी तत्वों का वास है ।गाय के दूध में अधिक से अधिक तेज तत्व है ।प्रकृति सात्विक बनती है ।व्यक्ति के प्राकृतिक विकार एंव विकृति दूर होती है ।असामान्य और विलक्षण बुद्धि आती है । 

२.गाय की पाचनशक्ति श्रेष्ठ है ।अगर कोई जहरीला पदार्थ खा लेती है तो उसे आसानी से पचा लेती है फिर भी उसके दूध में जहर का कोई असर नहीं होता है ।डाॅ पीपल्स ने गोदुग्ध पर किये गये परीक्षणो में यह भी पाया कि यदि गाय कोई विषैला पदार्थ खा जाती है तो भी उसका प्रभाव उसके दूध में नहीं आता ।उसके शरीर में सामान्य विषों को पचाने की अदभूत शक्ति है 

३.गौदूग्ध से बनी व अन्य व्यन्जन बच्चो को खिलाने से उनमे तन्दुरूस्ती व चूस्तीफूर्ती बनी रहेगी,और मोटापा भी नहीं सतायेगा औरनिरोगी रहकर हंसीखुसी से अपना जीवन यापन करेगे । 

४.गौदुग्ध बड़ों व बच्चों में स्फूर्तिदायक,तृप्ति ,दिप्ति,प्रीति,सात्विकता ,सौम्यता,मधुरता,प्रज्ञा व और आयुष्मान बढ़ाने वाला है ।वह पूर्णरूपेण सर्वमान्य,सर्वप्रिय,अमृत तुल्य दूग्धाहार है । 

५.गाय का ताज़ा दूध तृषा,दाह,थकान मिटाने वाला और निर्बलता में विषेश उपयोगी है ।गौदुग्ध बुखार ,सर्दी,चर्मरोग ,प्रमाद(आलस्य) निंद्रा,वात,पित्तनाशक है । 

६.भारतीय संस्कृति ग्राम संस्कृति है,गौसंस्कृति है ।गौपालन,गौसंवर्धन,गौरक्षण,गौपूजन और गोदानभारतीयता की पहचान है ।कृषि की खोज में गाय के गोमय(गोबर)'गौमूत्र ने किसान को जीवनदान दिया है । 

७.गाय और गौदुग्ध ने अहिंसा के विकास में अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान दिया है ।गौदुग्ध में सात्विक तत्वों व पंचक तत्वों की प्रचुरता है । 

८.काली गाय का दूध त्रिदोषशामक और सर्वोत्तम है ।शाम को जंगल से चर कर आई गाय का दूध सुबह के दूध से हल्का होता है । 

९.सद्बुद्धि प्रदान करने वाला गौदुग्ध तुरन्त शक्ति देने वाले द्रव्यों में भी सर्वश्रेष्ठ माना गया है ।गौदुग्ध में पी.एच.अम्ल और चिकनाहट कम है ,जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है । 

4०.गौदुग्ध में २१ एमिनो एसिड है जिसमें से ८स्वास्थय की दृष्टि बहुत उपयोगी है विद्यमान सरि-ब्रोसाडस दिमाग़ एंव बुद्धि के विकास में सहायक है ।केवल गौदुग्ध में स्ट्रानटाइन तत्व है जो आण्विक विकारों के प्रतिरोधक है । 

गौ - महिमा (गोबर,गोमय/cow dung)

१. अग्रंमग्रं चरंतीना, औषधिना रसवने । 
तासां ऋषभपत्नीना, पवित्रकायशोधनम् ।। 
यन्मे रोगांश्चशोकांश्च , पांप में हर गोमय । 

अर्थात- वन में अनेक औषधि के रस का भक्षण करने वाली गाय ,उसका पवित्र और शरीर शोधन करने वाला गोबर ।तुम मेरे रोग औरमानसिक शोक और ताप का नाश करो । 

२. गोमय वसते लक्ष्मी - वेदों में कहा गया है कि गाय के गोबर लक्ष्मी का वास होता है ।गोमय गाय के गोबर रस को कहते है ।यह कसैला एंव कड़वा होता है तथा कफजन्य रोगों में प्रभावशाली है ।गोबर को अन्य नाम भी है गोविन्द,गोशकृत,गोपुरीषम्,गोविष्ठा,गोमल आदि। 

३. गोबर गणेश की प्रथम पुजा होती है और वह शुभ होता है ।मांगलिक अवसरों पर गाय के गोबर का प्रयोग सर्वविदित है ।जलावन एंव जैविक खाद आदि के रूप में गाय के गोबर की श्रेष्ठता जगत प्रसिद्ध है । 

४. गाय का गोबर दुर्गन्धनाशक,शोधक,क्षारक,वीर्यवर्धक ,पोषक,रसयुक्त ,कान्तिप्रद और लेपन के लिए स्िनग्ध तथा मल आदि को दूर करने वाला होता है । 

५. गोबर मे नाईट्रोजन ,फास्फोरस ,पोटेशियम ,आयरन ,जिंक,मैग्निज ,ताम्बा ,बोरोन,मोलीब्डनम्,बोरेक्स,कोबाल्ट-सलफेट,चूना ,गंधक,सोडियम आदि मिलते है । 

६. गाय के गोबर में एेन्टिसेप्टिक,एन्टिडियोएक्टिव एंव एन्टिथर्मल गुण होता है गाय के गोबर में लगभग १६ प्रकार के उपयोगी खनिज तत्व पाये जाते है । 

७. मैकफर्सन के अनुसार गोबर के समान सुलभ कीटनाशक द्रव्य दूसरा नहीं है रूसी वैज्ञानिक के अनुसार आण्विक विकिरण का प्रतिकार करने में गोबर से पुती दीवारें पूर्ण सक्षम है ।भोजन का आवश्यक तत्व विटामिन बी-१२ शाकाहारी भोजन में नहीं के बराबर होता है । 

८. गाय की बड़ी आँतो में विटामिन बी-१२ की उत्पत्ति प्रचूर मात्रा में होती है पर वहाँ इसका आवशोषण नहीं हो पाता अत: यह विटामिन गोबर के साथ बहार निकल आता है प्राचीनकाल में ऋषि-मूनि गोबर के सेवन से पर्याप्त विटामिन बी -१२ प्राप्त कर स्वास्थ्य लाभ लेते थे ।गोबर के सेवन तथा लेपन से अनेक व्याधियाँ समाप्त होती है । 

९. प्रो.जी. ई. बीगेंड,- इटली के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक ने गोबर पर सतत प्रयोग से सिद्ध किया कि गोबर में मलेरिया एंव क्षयरोग के जीवाणुओ को तुरन्त नष्ट करने की क्षमता होती है । 

१०- गाय का गोबर मल नहीं है यह मलशोधक है ,दुर्गन्धनाशक है एंव उत्तम वृद्धिकारक तथा मृदा उर्वरता पोषक है ।यह त्वचा रोग खाज,खुजली,श्वासरोग,जोड़ो के दर्द सायटिका आदि में लाभदायक है ।गोबर में बारीक सुती कपड़े को गोबर को दबाकर छोड दे थोड़ी देर बाद इस कपड़े को निचोड़कर गोमय प्राप्त कर सकते है ।इससे अनेक त्वचा रोगों में स्नान करते है ,मुहासे दूर करके चेहरे की कान्ति बनाये रखता है ,गोमय के साथ गेरू तथा मूलतानी मिट्टी व नीम के पत्तों को मिलाकर नहाने का साबुन बनाया जाते है यह चेहरे की झुरियाँ दूर करता है । 


१. लक्ष्मीश्च गोमय नित्यं पवित्रा सर्वमड्गंला । 
गोमयालेपनं तस्मात् कर्तव्यं पाण्डुनन्दन ।। 

अर्थात- गाय के गोबर में परम पवित्र सर्वमंगलमयी श्री लक्ष्मी जी नित्यनिवास करती है ,इसिलिए गोबर से लेपन करना चाहिए । 

२. सामान्यता गोमय कटु,उष्ण ,वीर्यवर्धक ,त्रिदोषशामक तथा कुष्ठघ््न ,छर्दिनिग्रहण,रक्तशोधक,श्वासघ््न और विष्घ््न है ।यह विष नाशक है विषों में गोमय-स्वरस का लेप एंव अंजन उपयोगी साबित हुए है ।गाय का गोबर तिमिर रोग में ,नस्य रूप में प्रयुक्त होता है ।बिजौरा नींबू की जड़,गौघृत,मन:शिला को गोमय में पीसकर लेप करने से मुख की कान्ति बढ़ती है । 
३. आग से जल जाने पर गोबर का लेपन रामबाण औषधि है ।ताज़ा गोबर का बार-बार लेप करते हुए उसे ठंडे पानी से धोते रहना चाहिए यह व्रणरोपण एंव कीटाणु नाशक है । 

४. सर्पदंश ,विषधर साँप ,बिच्छु या अन्य जीव के काटने पर रोगी को गोबर पिलाने तथा शरीर पर गोबर का लेप करने से विष नष्ट होता है अति विषाक्त्ता की अवस्था में मस्तिष्क तथा हृदय को सुरक्षित रखता है ।बिच्छु के काटने पर उस स्थान पर गोबर लगाने से भी उसका जहर उतर जाता है । 

५. पञ्चगव्य घृत के सेवन से उन्माद ,अपस्मार शोथ ,उदररोग,बवासीर ,भगंदर ,कामला,विषमज्वर तथा गुल्म का निवारण होता है ।मनोविकारों को दूर कर पञ्चगव्य घृतस्ननायुतंत्र को परिपुष्ट करता है । 

६. चेन्नई के डा. किंग के अनुसार गाय के गोबर किटाणु मारने की क्षमता रहती है ,इसमें ऐसी बिमारी के समय दूषित पानी में गाय का गोबर पानी में मिलाकर पानी शुद्ध कर उपयोग से प्लेग नहीं होता है ।और जिस भाग में बिजली का करन्ट लगा हो उस भाग पर गाय का गोबर लगाने से बिजली के करन्ट के असर में कमी अाती है । 

७. गाय के गोबर से बनी राख का उपयोग किसान भाई अपनी फसल को किटाणुओ ,बिमारीयों व जीवजन्तुओ से बचाने के लिए आदिकाल से प्रयोग करते आ रहे है । 

८. वैज्ञानिकों के अनुसार सेन्द्रिय खाद से पैदा किया आनाज खाने से हार्टअटैक नहीं होता है ।क्योंकि देशी खाद से शरीर द्वारा चाही गयी ४००मिलीग्राम मैग्निशियम तत्व की मात्रा मिलती है ।जो रासायनिक खाद में नहीं मिलती है ।मेग्नेशियम तत्व शरीर में रक्तप्रवाह के लिए रहना आवश्यक है । 

९. अग्निहोत्र जो कि यज्ञ काआधार है पुरातन वैदिक विज्ञान की अनमोल देन है ।गोबर से बनी यज्ञ समिधा का गौघृत के साथ उपयोग आदि काल से करते आ रहे है ।अग्निहोत्र से कई क्षेत्रों में जैसे कृषि ,वातावरण,जैव प्रजन्न व मनचिकित्सा तथा प्रदुषण दूर करने में विस्मयकारी रूप से लाभ होता है । 

१०. गोबर के कंडों से किये गये अग्निहोत्र से सूक्ष्मऊर्जा,तरगें ,एंव पौष्टिक वायु वातावरण में नि:सृत होते है ।जिसमें वनस्पतियों को पोषण प्राप्त होकर फसल में वृद्धि होती है ।पशुधन के स्वास्थ्य में सुधार तथा दूग्ध की गुणवत्ता में और प्रमाण में वृद्धि होती है ।केचुएँ व मधुमक्खियों में भी वृद्धि पायी जाती है ।अग्निहोत्र का भस्म एक उत्तम खाद है एंव कीटनियंत्रक औषध बनाने में भी उपयोगी है ।अग्निहोत्र की भस्म से बीज प्रक्रिया एंव बीज संस्कार अंकुरण अत्यन्त प्रभावशाली ढंग से होता है ।


१. अपाने सर्वतीर्थानी गोमुत्रे जाहृनवी स्वंय । 
अष्टएैश्वर्यमयी लक्ष्मी गोमय वसते सदा ।। 

अथार्त - गाय के मुख से निकली श्वास सभी तीर्थों के समान पवित्र होती है ।तथा गौमूत्र में सदा गंगा जी का वास रहता है ।और आठ एैश्वर्यों से सम्पन्न लक्ष्मी गाय के गोबर में वास करती है । 

२. तृणं चरन्ती अमृतं क्षरन्ती :- गायमाता घास चरती है और अमृत की वर्षा करती है तथा गाय का गोबर देह पर लगाकर शरीर शुद्ध करते समय हमारे धर्म-कर्म में महत्व अधिक रहता है।इसलिए धर्मशास्त्र में गौ के गोबर को उच्च स्थान प्राप्त है ।गोबर को सारे शरीर पर मलकर धूप में बैठने से खाज ,खुजली आदि त्वचा रोग नष्ट हो जाते है । 

३. हमारे प्रायश्िचत विधान में पञ्चगव्य( गोबर,गोमूत्र ,दूग्ध ,दही,घी )सेवन का बड़ा मैहत्व बताया गया है । जैसे अग्नि में ईंधन जल जाता है ,से ही पञ्चगव्य प्राशन से पाप के दूषित संस्कार नष्ट हो जाते है ।गोबर रोगों के कीटाणु और गन्ध को दूर करने में अद्वितीय है । 

४. छोटे बच्चों को संस्पर्श के रोग से मुक्त करने के लिए गोबर का तिलक देने की प्रथा है ।भगवान की मूर्ति की प्रतिष्ठा में गोबर के भस्म से मूर्ति का मार्जन किया जाता है तथा उिच्छष्ठ स्थान को शुद्ध करने के लिए ,गोबर का चौका लगाया जाता है । 

५. मृतगर्भ ( पेट में मरा हूआ बच्चा ) बाहर निकालने के लिए गोमय (गोबर का रस) ७ तोला,गौदूग्ध में मिलाकर पिलाना चाहिए । बच्चा आराम से बाहर आ जायेगा ।और गोबर को उबालकर लेप करने से गठियारोग दूर होता है । 

६. पसीना बंद करने के लिए सुखाये हुए गोबर और नमक के पुराने मिट्टी के बर्तन इन दोनो के चूर्ण का शरीर पर लेप करना चाहिए ।और गुदाभ्रंश के लिए गोबर गर्म करके सेंक करना चाहिए ।और खुजली के लिए गोबर शरीर में लगाकर गरम पानी से स्नान करना चाहिए । 

७. शीतला माता के फूट निकले छालों पर गाय के गोबर को सुखाकर जलाकर राख को कपडें में छानकर उससे भर दें ।इसपर यही श्रेष्ठ उपाय है ।और साधारण व्रण (घाव) के ऊपर घी में राख मिलाकर लेप करना चाहिए ।गाय के ताजे गोबर की गन्ध से बूखार एंव मलेरिया रोगाणु का नाश होता है ( डा़़. बिग्रेड,इटली ) 

८. पेट में छोटे -छोटे कीडे हुए हो तो ,गोबर की सफेद राख २ तोला लेकर १० तोला पानी मिलाकर ,पानी कपडें में छान लें । तीन दिन तक सुबह - शाम यही पानी पीलायें ।और रतौंधी में ताजे गोमय को लेकर के आँख में आँजने से दस दिन में राेग से छुटकारा हो जायेगा । 

९. दाँत की दुर्गन्ध,जन्तु और मसूडें के दर्द पर गाय के गोबर को जलावें ,जब उसका धुआं निकल जायें तब उसे पानी में डालकर बुझा लें ,सुख जाने पर चूर्ण बनाकर कपडछान कर लें ,इस मंजन से प्रतिदिन दाँत साफ़ करने से दाँत के सब रोग नष्ट हो जाते है । 

१०. आयुर्वेदानुसार गाय के सूखे गोबर पावडर से धूम्रपान करने से दमे, श्वास के रोगी ठीक होते है ।और हैजा के कीटाणु से बचने के लिए शुद्ध पानी में गोबर घोल कर छानकर पीने से कीटाणुओं से बचाव होता है और हैजा से मुक्त रहते है ।(डा.किंग.मद्रास) । 





(30)- गौ - चिकित्सा .(गर्भ समस्या)

गौ - चिकित्सा .गर्भ समस्या ।



गर्भ सम्बंधी रोग व निदान
=======================

१ - गर्भपात रोग 

==============

कारण व लक्षण - यह एक प्रकार का छूत का रोग है । कभी-कभी कोई गर्भवती मादा पशु आपस में लड़ पड़ती है , उससे गर्भपात हो जाता है । गर्भिणी को अधिक गरम वस्तु खिला देने से और गर्मी में रखने से भी यह रोग हो जाया करता है । उस हालत में कभी कोई साँड़ या बैल या बछड़ा उसके साथ संयोग कर लें तो गर्भपात हो जाता है ।

रोगी गर्भिणी ( गाभिन गाय या भैंस आदि ) के गर्भाशय तथा योनिमार्ग पर सूजन आ जाती है । निश्चित समय के पूर्व ही बच्चा गिर जाता है । गर्भपात के पश्चात् जेर ( झर ) का न गिरना , पेशाब बदबूदार होना आदि इसके लक्ष्ण है । गर्भपात के बाद रोगी मादा पशु को दूसरी बार गर्भ रहे तो ५ माह बाद उसे नीचे लिखी दवा देनी चाहिए , ताकि उक्त बीमारी की आशंका न रहे ।

१ - औषधि - शिवलिंगी के बीज ८ नग ,बछड़े वाली गाय का घी २४० ग्राम , बीजों को महीन पीसकर घी में मिलाकर रोगी गर्भिणी पशु को बोतल द्वारा हिलाकर पिलाया जाय । इसी मात्रा में प्रतिमास रोगी पशु को सुबह के समय यह दवा पिलायी जाय ।

२ - औषधि - गाय के दूध से बनी दही ४८० ग्राम , गँवारपाठा ( घृतकुमारी ) ४८० ग्राम , पानी ७२० ग्राम , गँवारपाठा का गूद्दा निकालकर दही में मिलाकर पान के साथ रोगी पशु को पिलायें ।

--------------------------------- @ --------------------------------

२ - गाय- भैंस का गर्भ धारण न करना 
==========================

कारण व लक्षण - साधारणत: अधिक कमज़ोर पशु निश्चित समय पर गर्भ नहीं धारण करते । मादा पशु सयोंग करने की इच्छा नहीं प्रकट करती है और इस ओर से पुर्ण उदास रहती है ।

१ - औषधि - इस प्रकार के पशुओं को" ई" प्रकार का खाद्यान्न पदार्थ विटामिन अधिक मात्रा में खिलाना चाहिए ।उसे खिलाकर मादा पशु को तगड़ा बनाया जाय । हाड़जूड की पिंगरे २ नग , पिगरों को रोटी के साथ दबाकर रोगी पशु को ३ दिन तक रोज़ सुबह खिलायें ।

२ - औषधि - छुवारे ४नग सेंककर उसका बीज निकालकर फेंक दिया जाय । उसके गूदे को रोटी के साथ रोगी पशु को ८ दिन तक रोज़ सुबह खिलाया जायें ।

३ - औषधि - पलास ( ढाक) के पत्तों के पास की गाँठ के २ नग लेकर रोटी में रोगी पशु को ४ दिन तक रोज़ सुबह पिलायें ।

४ - औषधि - भिलावा ४ नग गुड १०० ग्राम , गुड़ के साथ भिलावें को मिलाकर रोगी पशु को ३ दिन तक खिला दिया जाय ।

५ - औषधि - रोगी पशु को मूँगफली का तैल ४८० ग्राम , एक दिन छोड़कर ४ बार पिलायें ।

६ - औषधि - गुँजाफल ( चोहटली ,रत्ती ) ४ नग कुटकर गुड़ में मिलाकर रोगी पशु को रोज़ सुबह ४ दिन तक खिलाये ।

--------------------------------- @ ------------------------------------


३ - गाय, भैंस का बार - बार गाभिन होना
=============================

कारण व लक्षण - यदि गाय , भैंस आदि को अधिक मात्रा में गरम चीज़ें खा लेने के कारण उनके शरीर का ताप बढ़ जाता है । और उनमे बार - बार गाभिन होने का रोग पैदा हो जाता है । साँड़ में कोई दोष होने के कारण भी ये रोग पैदा होता है । मादा पशु में अधिक चर्बी होने के कारण भी यह रोग होता है । ऐसी स्थिति में पशु बार- बार गाभिन होती रहती है और गाभिन नहीं रहती है ।

१ - औषधि - मादा पशु जैसै ही गर्भधारण करे याने संयोग करें वैसे ही उसे धीरे से ज़मीन पर गिराकर उसे ४-५ पल्टी दी जाय फिर उसका मुँह ऊपर करके बाँध दिया जाय । और १२ घन्टे तक उस पशु को बैठने नहीं दिया जाय । केवल उसे पानी ही पिलाया जाये और २४ घन्टे तक घास बिलकुल खाने दिया जायें ।

२ - औषधि - गाय का घी २४० ग्राम , कत्था ६० ग्राम , केले की जड़ का रस १२० ग्राम , पहले केले की जड़ को कूट कर उसका रस निकाल कर , घी को गरम करके सभी चीज़ें आपस में मिलाकर रोगी पशु को दोनों समय पिलाया जायें ।

३ - औषधि - असली सिन्दुर ९ ग्राम , गाय का दूध २४० ग्राम , मिट्टी ४० ग्राम , मिट्टी को दूध में घोलकर कपड़छान कर लें । यह दवा केवल एक दिन ही दोनों समय देनी चाहिए ।

४ - औषधि - रोगी पशु के कान काटकर कान मे कगोंरे बना दिये जायें जिससे पशु कमज़ोर होकर गर्भधारण कर लेगा और खान - पान में पशु को उत्तेजक पदार्थ नहीं खिलाना चाहिए ।

आलोक -:- मादा पशु के ज़्यादा तगड़ा होने से वह बार - बार गर्मी ( हीट ) पर आती है । इसलिए गर्भ नहीं ठहरता । अत: उसकी खुराक कम करके उसकी चर्बी घटने से उसको गर्भ ठहर सकेगा ।
------------- @ -----------


४ - पशुओं में डिलिवरी व हीट समस्या । 
=============================


१ - गाय को हीट पर लाना - गाय को हीट पर लाने के लिए काली तोरई पकने के बाद पेंड से तोड़कर आग मे भून लें ,और ठंडी कर लें तथा ठंडी होने पर तोरई की कुट्टी काट कर गाय को खिला दें । गाय दो से तीन दिन में हीट पर आ जायेगी ,तभी गर्भाधान करा दें तो गाय का गर्भ ठहर जायेगा वह गाभिन रहेगी ।

२ - छुवारे लेकर उनकी गीरी निकालकर छुवारों में गुड़ भरकर और छुवारों को गुड़ में लपेटकर रोटी में दबाकर ७-८ दिन तक गाय को खिलाने से गाय हीट पर आती है ।

३ - छुवारे की आधी गीरी को गुड़ में लपेटकर खिलायें तो गाय जल्दी ही जेर डाल देगी , तथा बाॅस के पत्ते भी खिलाकर जल्दी ही डाल देती है ।

५ - गाय - भैंस को हीट में लाने के लिए -- करन्जवा बीज ३० बीज , चोहटली बीज ( लाल कून्जा बीज ) ३० दाने , लौंग ३० दाने , मुहावले बीज १० दाने , सभी को लेकर कुटकर १५ खुराक बना लें । एक खुराक रोज़ सायं को केवल रोटी में देनी चाहिए ़, दवा गाय को हीट आने तक देवें ।

६ - पशुओं में गर्भधारण के लिए -- जो पशु बार-बार हीट पर आने पर भी गर्भ नही ठहरता इसके लिए सिंहराज पत्थर १५० ग्राम , जलजमनी के बीज १५० ग्राम , खाण्ड २५० ग्राम , खाण्ड को छोड़कर अन्य सभी दवाईयों को कूटकर तीनों दवाईयों को आपस में मिला लें और तीन खुराक बनालें , एक खुराक नई होने ( गर्भाधान ) कराने के तुरन्त बाद , दवाई में थोड़ा सा पानी मिलाकर लड्डू बनाकर गाय को खिला देना चाहिए ।५-५ घंटे के अन्तर पर तीनों खुराक देवें । गाय गर्भधारण करेगी ।


५ - - गर्भाधान के बाद गाय अवश्य गाभिन रहे इसके लिए -
===================================

औषधि - गर्भाधान से पहले गाय की योनि में किसी पलास्टीक के पतले पाईप मे ५ ग्राम सुँघने वाला तम्बाकू पीसकर भर लें और पाईप को योनि में अन्दर डालकर ज़ोर से फूँक मार दें, जिससे वह तम्बाकू योनि में अन्दर चला जायें,फिर गर्भाधान कराये तो गाय अवश्य ही गाभिन रहेगी ।



६ - गाय - भैंस डिलिवरी के बाद यदि जेर नहीं डालती तो उसका उपचार 
============================================

१ - औषधि - चिरचिटा ( अपामार्ग ) के पत्ते तोड़कर उन्हें रगड़कर बत्ती बनाकर गाय - भैंस के सींग व कानों के बीच में इस बत्ती को फँसा कर ,माथे के ऊपर से लेकर कान व सींगों के बीच से कपड़ा लेते हुए सिर के ऊपर गाँठ बाँध देवें , गाय तीन चार घंटे में ही जेर डाल देगी ।

२- औषधि - यदि ५-६ घंटे से ज़्यादा हो गये है तो चिरचिटा की जड़ ५०० ग्राम पानी में पकाकर , ५० ग्राम चीनी मिलाकर देने से लाभ होगा ।

३- औषधि - यदि ८-९ घण्टे हो गये है तो जवाॅखार १० ग्राम , गूगल १० ग्राम , असली ऐलवा १० ग्राम , इन सभी दवाईयों को कूटकर तीन खुराक बना लें ।१-१ घण्टे के अन्तर पर रोटी में रखकर यह खुराक देवें।

४- औषधि - यदि गाय को ७२ घण्टे बाद इस प्रकार उपचार करें-- कैमरी की गूलरी ५०० ग्राम , या गूलर की गूलरी ३०० ग्राम , अजवायन १०० ग्राम , खुरासानी अजवायन ५० ग्राम , सज्जी ७० ग्राम , ऐलवा असली ३० ग्राम , इन सभी दवाओं को लेकर कूटकर ५०-५० ग्राम की खुराक बना लें । ५०० ग्राम गाय के दूध से बना मट्ठा ( छाछ ) में एक उबाल देकर दवाईयों को मट्ठे में ही हाथ से मथकर पशु को नाल से दें दें । बाक़ी खुराक सुबह -सायं देते रहे ।


७ - जेर ( बेल ) डालने के लिए । 
========================

१ - औषधि - डिलिवरी के बाद जब गाय का बच्चा अपने पैरों पर खड़ा हो जाये , तब गाय का दूध निकाले और उसमें से एक चौथाई दूध को गाय को ही पीला दें ,और बाद मे बाजरा , कच्चा जौं , कच्चा बिनौला , आपस में मिलाकर गाय के सामने रखें इस आनाज को खाने के २-३ घंटे के अन्दर ही गाय जेर डाल देगी और उसका पेट भी साफ़ हो जायेगा ।



८ - रोग - गाय के ब्याने के बाद उसका पिछला हिस्सा ठण्डे पानी से धोने के कारण , गाय का
शरीर जूड़ जाने पर । 

===========================================================

१ - औषधि - अलसी के बीज १५० ग्राम को कढ़ाई में भूनकर , १५० ग्राम गुड में मिलाकर गाय को खिलाने से वह गाय जो अकड़ गयी थी वह खड़ी हो जायेगी तीसरे दिन फिर से एक खुराक देना चाहिए । बाद उसका पिछला हिस्सा ठण्डे पानी से धोने के कारण , गाय का शरीर जूड़ जाने पर । 

29गौ- चिकित्सा - (आँखों के रोग)

 

(२9)- गौ- चिकित्सा - आँखों के रोग। 

पशुओं में आँखों के रोग होना
=======================

१ - आँखों में जाला पड़ना ( दृष्टिमांद्य )
############################

कारण व लक्षण - पशुओं की आँख के अन्दर जो नीले रंग की पुतली दिखाई देती हैं और जब वह सफ़ेद रंग की या मैटमेले रंग से ढक जाती हैं तब अन्य प्राणियों के समान ही पशुओं को भी दृष्टिमांद्य हो जाता हैं इस रोग को ही गाँव के लोग आँख में जाला आना बोलते हैं । इस रोग में पशु को कम दिखाई देने लगता है बहुत पुरान होने पर दिखाई देना भी बन्द हो जाता है इसलिए इसका उपचार अनिवार्य रूप से करना चाहिए ।

१ - औषधि - हाथी के नाख़ून को तीन साफ़ पत्थर पर २-२ बून्द पानी की डालकर नाख़ून को चन्दन की तरह घिसकर तैयार कर लें और रोगी पशु की आँख में आँज दें ( आँख में लगाना ) यह दवा ३-४ हफ़्ते तक लगाने से पशु की आँख ठीक हो जाती हैं ।

२ - औषधि - गुम्मा ( द्रोणपुष्पी ) के पत्तों का रस निकालकर कपड़े में छानकर रोगी पशु की आँख में पाँच- पाँच बून्द २-३ बार डालने से ही लाभ हो जाता हैं । और यह औषंधि आँखों के हरप्रकार की बिमारी में चमत्कारी सिद्ध होता हैं ।

३ - औषधि - शोरा मीठा १० ग्राम ,तथा गेरू १० ग्राम - दोनों को बारीक पीसकर रख लें और प्रतिदिन कोई काग़ज़ की ६ इंच लम्बी व आधा इंच मोटी नली बनाकर उसमे २ ग्राम पावडर भरकर पशु की आँख के पास लेजाकर नली में ज़ोर से फूँक मार दें जिससे दवाई पशु की आँख में चली जाये ,ठीक होने तक करना होगा ।

४ - औषधि - कटैरी ( कण्टकारी ) ज़मीन पर फैलती है छोटे- छोटे टमाटर जैसे सफ़ेद फल लगते है और पककर फल पीले हो जाते है तथा इसके पत्तों पर काँटे होते है इसको लेकर पलों का रस निचोड़ लें । इस रस को रोगी पशु की आँख में ५-५ बून्द प्रतिदिन टपकाने से उसकी आँख का जाला जड़ से जाता रहता हैं किन्तु यह दवा आँख में डालने के बाद पशु की आँख लाल होकर उसमें सूजन आ जाती हैं लेकिन धीरे-धीरे सूजन उतर जाती हैं और पशु की आँख ठीक अवश्य हो जाती हैं ।

५ - औषधि - शिंगरफ और मिश्री समान मात्रा में लेकर एक नींबू के रस में खरल करकें रख लें और प्रतिदिन मुर्ग़े के पंख से इस दवा को पशु की आँख में प्रतिदिन लगाने से आराम आता हैं और जाला नष्ट हो जाता हैं ।

६ - औषधि - ममीरा व नीला थोथा और सिन्दुर को सममात्रा में लेकर काग़ज़ी नींबू का रस में ख़ूब घोटकर नैत्रो में अंजन करते रहने से ही लाभ हो जाता हैं ।


२ - आँख में फूली अथवा फूल पड़ना ' ढेढर ( आँख में चोट लगने के कारण भी )
=============================================

५ - औषधि - अधिक दिनों तक आँखों के दुखते रहना तथा समुचित इलाज न किये जाने के कारण कभी- कभी पशुओं की आँख में घाव हो जाता हैं आँख की पुतली पर सफ़ेद - सफ़ेद जाला सा आ जाता हैं तथा उसे कम दिखाई देने लगता हैं और आँखों से हर समय पानी और कीचड़ बहता रहता हैं और अन्त में आँख मे फफोला सा पड़ जाता हैं । यदि शीघ्र इलाज नहीं किया तो ऐसा रोगी पशु अन्धा हो जाता हैं ।

# - कभी- कभी पशु की आँख पर चोट लगने से भी फूली पड़ जाती है और पानी बहता रहता है ।

१ - औषधि - गुम्मा ( द्रोणपुष्पी ) की पत्तियों का रस आँख में डालना लाभकारी सिद्ध होता हैं । यह औषधि आँख की समस्त प्रकार के रोगों का निदान करती हैं यह रामबाण औषधि हैं ।

२ - औषधि - सरसों का शुद्ध तेल भी आँख में डालना हितकारी रहता हैं ।

३ - औषध - चीनीपत्थर के कटोरे में नींबू का रस निकालकर चुटकी भर सादा नमक डालकर लोहे की मूसली या किसी वस्तु से घोटकर आँख में डालना उपयोगी रहता हैं ।

४ - औषधि - गाय घी १ छटांक , आधा छटांक फिटकरी , अफ़ीम १ रत्ती लेंकर पहले घी को आग में गरम करे और गरम होने पर इसमें फिटकरी का चूर्ण डाल दें ( इसको डालते ही घी में झाग उठने लगेंगे और अफ़ीम डालते ही बन्द हो जायेंगे ) इसके बाद उसे ठन्डा करके दिन में ३-४ बार आँख में प्रतिदिन लगाने से आँख ठीक हो जाती हैं ।

५ - औषधि - मिट्टी के ढक्कन दार बर्तन में मदार ( आक ) का दूध डालकर उसमे साठी के चावल भिगोवें । उस बर्तन के मुख को कच्ची मिट्टी का गारा बनाकर उससे मुँह बन्द कर दें और आँच पर चढ़ा दें । जब चावल ख़ूब जल जायें तब ठन्डा करके पीसकर कपडछान करके रखें और प्रतिदिन पशु की आँख मे आँजना लाभकारी सिद्ध होता हैं ।

६ - औषधि - काला सूरमा १ तौला , चाकसू ६ माशा , ( ऐसा चाकसू जिसे इमली के पत्तों में पकाकर उसका छिल्का उतार कर रख लिया हो ) तथा कलमीशोरा - सभी को काग़ज़ी नींबू के रस में डालकर एक दिन लगातार खरल करके चने के बराबर गोलियाँ बनाकर सुरक्षित रख लें । और एक गोली प्रतिदिन सफ़ेद पत्थर पर दो बून्द पानी डालकर ,घीसकर पेस्ट बनालें ओर इस पेस्ट को पशु की आँख में लगाने से कुछ दिनों में आँख का जाला , फोले , धुन्ध आदि कटकर दृष्टि साफ़ हो जाती हैं ।

७ - औषधि - शीतल चीनी १ रत्ती , लौंग २ रत्ती , बड़ी इलायची डेढ़ माशा , त्रिफला चूर्ण डेढ़ माशा , कालीमिर्च १ रत्ती , महीन पीसकर कपडछान करके नीम का रस ५ छटांक , डालकर अच्छी तरह से घोट लें । फिर इसमें कपूर पावडर ६ रत्ती , पिपरमेन्ट पावडर २ रत्ती मिलाकर एक शीशी में भरकर रखँ लें तथा प्रतिदिन सलाईँ द्वारा पशु की आँख में लगाने से जाला , फोला , धुन्ध , मोतियाँ बिन्द आदि समस्त नेत्र रोगों में लाभ होता हैं तथा दृष्टि तेज व साफ़ होती हैं ।
८ - औषधि - पशु की आँख में चोट लगने पर -- घरेलू पालतू कबुतर की बीट को पत्थर पर दो बून्द पानी डालकर घीसकर पेस्ट बनाकर पशु की आँख में लगाने से पशु की आँख की पीड़ा चली जाती हैं । कबूतर की बीट में चोट की पीड़ा हरने की बड़ी क्षमता होती हैं ।

९ - औषधि - मदार ( आक ) १० ग्राम , गन्ने के शीरे की सात बून्द डालकर मिला लें ।रविवार के दिन दूध में अंगुली भिगोकर भीगी हूई अंगुली से पशु की आँख के चारों ओर अंगुली से सात चक्कर बना दे । ध्यान रहे चक्कर बनाते समय अंगुली न उठे । इस प्रकार दवा लगाने से जहाँ चक्कर बनाये थे वहाँ से बाल व खाल उड़ जायेंगे और फूली में आराम आ जायेगा ।

१० - औषधि - काँच की हरी चूड़ियों १० ग्राम ,को खरल में डालकर बहुत महीन पीसकर कपडछान कर लें । इसके बाद सिरस के पत्तों का रस १० ग्राम , लेकर खरल में डालकर बहुत खरल करें जिससे घुटकर काजल व सूरमे की भाँति चिकना हो जायें फिर किसी शीशी में भरकर रख लें और प्रतिदिन एक चुटकी दवा लेकर रोगी पशु की आँख में लगाने से पशु की आँख की फूली या ढेढर बिलकुल ठीक हो जायेगी


३ - आँख की फूली
============

कारण व लक्षण - गाय- भैंस व अन्य पशु की आँख आ जाने से ( किसी पशु की दोनों आँखें एक साथ आ जाती हैं और किसी पशु की एक आँख आती है ) और अचानक चोट लग जाने से फूली बन जाती है । पहले पशु आँख बन्द रखता है और उसकी आँख से पानी बहता है, फिर पशु की आँख में सफ़ेद झिल्ली की टीकिया बन जाती है। उसके बाद पशु को आँख से नहीं दिखता । उसकी आँख बिलकुल ख़राब हो जाती है। आँख में फूली पड़ते ही इसका इलाज जल्दी होना चाहिए , वरना बाद में इलाज होना कठिन है ।

१ - औषधि --फूली बनते ही पशु की आँख को कनपटी पर चाक़ू द्वारा लगभग अठन्नी की जगह भर, चौथाई हिस्से के बाल खुरचकर निकाल देने चाहिए। इससे वहाँ की जगह लाल हो जायेगी। इसके बाद थोड़ी - सी रूई लेकर उसमें २-३ भिलावें कूट लो । उसका तैल रूई द्वारा सोख लिया जायेगा। भिलावें का बचा हुआ कचरा गिरा देना चाहिए। फिर तैल युक्त रूई लेकर कनपटी पर खुरची हुई जगह पर दोनों तरफ़ की कनपटी पर बार लगा देनी चाहिए , ८ दिन में ज़ख़्म आराम हो जायेगा ।

आलोक-- जिस पशु को यह दवा लगायी जाय, उसे लगभग ८ दिन तक गर्मी में न जाने दिया जाय, क्योंकि सूर्य का प्रकाश वह सहन नहीं कर सकता है। पानी बरसे तो उसको घर बाँधकर रखना चाहिए। पशु यदि पानी में भीगेगा तो दवा रोग पर काम नहीं करेगी ।

२ - औषधि-- पहले बताये गये अनुसार पशु की दोनों कनपटी के बाल उखाड़कर चम्पाथुवर का दूध ( डंडाथुवर ) रूई द्वारा लगभग ८ दिन तक एक समय लगाया जाय।

३ -औषधि-- रोगी पशु की आँख में आगे लिखा हुआ घोल लगभग ८ दिन तक छिड़कना चाहिए-घोल बनाने के लिए , पानी ९६० ग्राम , तम्बाकू ९ ग्राम , चूना डेढ़ ग्राम ,नमक १२ ग्राम , सबको महीन पीसकर पानी में डालकर उबाल लेना चाहिए। फिर छानकर कुनकुना पानी आँखों में छिड़कना चाहिए ।

४ - औषधि -- पानी में घीसा हुआ साभँर ( बारहसिंगा ) का सिंग ३ ग्राम , नींबू का रस ३ ग्राम , ३ ग्राम , मक्खन ३ ग्राम , कामिया सिंदूर ( असली सिंदूर ) ३ ग्राम , सबको मिलाकर तथा मरहम बनाकर रोगी पशु की आँख में ८-१० दिन दोनों समय लगाना चाहिए।

५ - औषधि -- गुराड़ ( सफ़ेद शिरस ) के पौधे की जड़ लाकर तथा पानी द्वारा धोकर उसे गोमूत्र के साथ घिसना चाहिए। इस प्रकार बना हुआ मरहम रोगी की आँख में दोनों समय लगभग १० दिन तक लगाना चाहिए।

६ - औषधि -- गाय का घी और नमक का मरहम बनाकर ८ दिन लगायें पशु की आँख में लगाते रहे ।

७ - औषधि -- गुराड़ सफ़ेद सिरश के पौधे की जड़ को गोघृत के साथ घिसकर दोनों समय २० दिन तक लगाना चाहिए ।
८ - औषधि -- जिस पशु की आँख आ जायें ( किसी पशु की एक और किसी पशु की दोनों आँखे आ जाती हैं ) तो उसे मीठे प्याज़ का रस ९ ग्राम , फिटकरी साढ़े चार ग्राम , आबाँहल्दी भी साढ़े चार ग्राम , लेकर । फिटकरी व आबाँहल्दी को महीन पीसकर उसे प्याज़ के रस में मिलाकर अंजन बना लें। उसे रोगी पशु को रोज़ाना दोनों समय आराम होने तक लगाया जायें ।

९ - औषधि -- अच्छा होने तक रोगी पशु के दोनों सींगों की जड़ के चारों ओर लगभग २० ग्राम , ताज़े नींबू का रस दोनों समय मला जाय। यह आँख आने पर तथा आँख में फूली होने पर भी लाभ करता है।



४ - रोग - आँख में सफ़ेद कीचड़ सा ( क्लेद ) आना

१ - औषधि - गाय का ताज़ा मक्खन -- गाय या भैंस की आँखों में जब सफ़ेद कीचड़ सा आये तो गाय का ताज़ा मक्खन लेकर थोड़ा - थोड़ा हाथ में लेकर बिमार पशु के सींग की जड़ में मक्खन की मालिश करें । यह क्रिया दो - तीन दिन तक करनी चाहिए रोगी पशु स्वस्थ हो जायेंगे तथा आँख में कीचड़ आना बन्द हो जायेगा ।


२ - गाय की आँख मे ढीड़ आना -- ताज़े पानी में नमक मिलाकर , पानी की घूँट भर कर गाय की आँख के ऊपर कुल्ला करें । दिन में तीन चार बार करें,२-३ दिन में ठीक हो जायेगा ।


५ - आँख में भिलावा लगना
====================

कारण व लक्षण - कभी- कभी पशु की आँखों में भिलावा लग जाता हैं । भिलावा तेज़ विष औषधि हैं इसके लग जाने से आँखों में सूजन आ जाती हैं लाल हो जाती है है क्योंकि इसमें तेल होता हैं वह त्वचा पर जहाँ लग जाता है वहाँ जला देता है ।

१ - औषधि - कुटकी २ छटांक लेकर पीस कर कपडछान करके रोगी पशु की आँख में लगाने से लाभ होने लगता हैं ।


६ - आँख उठना , आँखें लाल होकर दूखना
= ================================

कारण व लक्षण - आँख में चोट लगने से अथवा धूल पड़ने से पशुओं की भी आँखें उठ जाती हैं । इस रोग में - आँखें लाल हो जाती हैं । हर समय आँखों से पानी बहता रहता है तथा पशु को कम दिखाई देने लगता हैं । इस रोग की यदि शीघ्र समुचित चिकित्सा नहीं की जाती हैं तो पशु की आँखो में फूली हो जाती हैं ।

# - औषधि - सबसे पहले फिटकरी के पानी से पशु की आँखों की धुलाई व सफ़ाई करनी चाहिए । इसके बाद इन दवाओं का प्रयोग करना चाहिए ।

१ - औषधि - छोटी हरड़ को गाय के घी में भूनकर इसके बाद उसे थोड़े से साजे नमक के साथ मिलाकर तीन- चार बून्द पानी डालकर घोटकर लेप बना लें फिर उसको पशु की आँख के चारों ओर लगा देना चाहिए । यह क्रिया दिनभर में ३-४ बार करनी चाहिए । लाभ अवश्य होगा ।

२ - औषधि - लाल चन्दन , हल्दी , अफ़ीम , १-१ छटांक , आम ३-४ पत्तियाँ , कुटपीसकर । सेहुड़ का दूध २ छटांक लेकर उसमें मिलाकर आँख के चारों तरफ़ सावधानी से लगाये । ध्यान रहे की दवाई पशु की आँख में अन्दर नहीं जानी चाहिए । क्योंकि सेहुड़ का दूध आँख में लगने से पशु अन्धा हो जाता हैं ।


७ - आँखें दूखना ( आँख मे तिनका पड़ने से या किसी कीट के काटने पर )
=============================================

कारण व लक्षण - पशु की आँख में चोट लगने व आँख में तिनका गिर जाने व ज़हरीले कीट के गिर जाने व उसके काट लेने के कारण आँखें लाल होकर सूज जाती है । आँख से दिन मे पानी बहता रहता हैं और रात में कीचड़ आ जाता हैं रोगी पशु हर समय आँखें बन्द किये रहता हैं ।

१ - औषधि - यदि किसी चीज़ के आँख में पड़ जाने के कारण आँख दुखने लगी हैं तो आँख के अन्दर से उस चीज़ को सावधानी पूर्वक निकलना चाहिए । और बाद मे २-२ बून्द अरण्डी के तेल की आँखों में डालनी चाहिए । इसके बाद गुलाबी फिटकरी १० रत्ती , को आधा छटांक गुलाब जल में घोलकर इस लोन की बून्दे आँखों में टपकाना चाहिए ।

२ - औषधि - यदि पशु की आँख में सूजन हो तो खशखश के छिलके पानी में पकाकर साफ़ रूई से सेंक करें । पहली अवस्था में रूई तर करके बाँध देने से भी आराम हो जाता हैं । किन्तु २-४ दिन के बाद सेंक ही करना पड़ेगा ।

३ - औषधि - यदि मक्खी - मच्छर या कीट आदि ने काटा हो तो पशु की आँख से पानी व कीचड़ आता हैं । मिश्री , सेंधानमक , फिटकरी , प्रत्येक १-१ तौला लेकर , नीला थोथा ४ रत्ती , रसौत ६ माशा , गुलाबजल या उबला हूआ पानी १ लीटर ठन्डा करके , सभी दवाओं को पीसछानकर गुलाबजल या पानी में घोल लें इससे रोगी पशु की आँखों में छबके मारने चाहिए और दो- चार बून्द आँखों में भी डालनी चाहिए । यह क्रिया दिन मे ३-४ बार करनी चाहिए ।

टोटका :-
१ - थोड़ी सी मात्रा में पशु को सुअर की विष्टा देने से भी आँखों का दूखना ठीक हो जाता हैं ।

२ - आटे की लोई में भुजायल पक्षी के पंख को रखकर रोगी पशु को खिलाने से भी रोग जाता रहता हैं । और आँखें ठीक हो जाती हैं ।

३ - मंगलवार या रविवार के दिन रजस्वला स्त्री ( ऐसी महिला जिसको M c - मासिक धर्म ) हो रहा हो । ऐसी महिला के ख़ून में भीगा हुआ कपड़े का थोड़ा सा टुकड़ा लेकर पशु को खिला देने से रोग समाप्त होसजाता हैं ।

४ - गुम्मा का रस आँख में डालने से भी यह रोग जाता रहता है ।


८ - रतौंधी ( Night blindness )
==========================

कारण व लक्षण - यह रोग पशुओं में प्राय : दिमाग़ की कमज़ोरी से होता हैं । इसमें पशु को दिन में तो साफ़ दिखाई देता हैं किन्तु सांय होते- होते ही ( सूरज ढलने के बाद ) उसे कुछ भी दिखाईं नहीं देता हैं । इस रोग का यदि प्रारम्भ में ही ठीक प्रकार से इलाज हो जाये तो ठीक हो जाता है वरना बाद में पशु अन्धा हो जाता हैं चूँकि इस रोग में दिन में दिखाई देता है और रात में नहीं दिखाई देता इसलिए इस रोग को ( रात + अन्ध =रातअन्ध , रात का अन्धा ) रतौंधी कहते हैं ।

१ - औषधि - हुक्के का मैल पानी में पीसकर आँखों में लगाने से रतौंधी में लाभ होता हैं ।

२ - औषधि - अलसी या अरण्डी का तेल पशु के सिर के ऊपर मालिश करना भी गुणकारी सिद्ध होता हैं ।

३ - औषधि - चिरमिटी के पत्तों का रस पशु की आँखों में लगाने से भी लाभ होता हैं ।

४ - औषधि - मछली के पित्ता ४ छटांक , व शुद्ध शहद ४ छटांक , दोनों को मिलाकर ५-६ दिन तक आँखो में डालने से पशु का रतौंधी रोग ठीक हो जाता हैं ।

५ - औषधि - गाय के गोबर में एक साफ़ रूमाल को उसके अन्दर दबाकर ५ -१० मिनट के लिए छोड़ दें उसके बाद कपड़ा निकालकर एक बर्तन में निचोड़ ले और इस गोबर के रस की ४-५ बून्दे आँख में डालने बिलकुल ठीक हो जाता हैं ।=


९ - आँख कोया निकलना
==================

कारण व लक्षण - आँख का कोया निकल जाने के तीन कारण है ।-१ - वज़न खींचते समय झटका लग जाना । २ - पशुओ का आपस में लड़ जाना । ३ -पशु का पैर अचानक गड्ढे में गिर जाना । इन कारणों से पशु की यह बिमारी होती है । आँख का कोया जब बाहर आता है तो आँख में लाल -लाल दिखाई देता है ।

१ -औषधि - बासी पानी ( रात का बचा हुआ पानी ) ९६०ग्राम , सादा नमक २४ ग्राम , नमक को लेकर पीसकर पानी में डालकर पानी को गर्म किया जाये । फिर उसे छानकर कुनकुना होनेपर रोगी पशु की खुलीआँखों में दोनों समय अच्छा होने तक पानी को मुँह में भरकर आँख पर कुल्ला करें या अंजुली भर कर आँख पर छींटें मारे ।

२ - औषधि - सादा नमक १२ ग्राम , गुनगुना पानी ९६० ग्राम , दोनों को लेकर छान लें । और रोगी पशु की आँख पर हाथ से छींटना चाहिए । आँख का कोया बैठ जायगा और पशु को आराम हो जायेगा । दोनों समय ७-८ दिन तक एेसा करना चाहिए । यह दवाई गाय के शरीर जैसा बड़ा या छोटा । हो वैसे ही खुराक बढ़ा व घटा सकते है ।

१० - आँख में चिर्मियाँ होना
====================

कारण व लक्षण - जाला , ये एक प्रकार के महीन कीड़े है , जो पशु की आँख को अन्दर ही अन्दर खाया करते है । ग़ौर से देखने पर हमें रोगी पशु की आँख में वे दिखाई देते है । ये कीड़े रंग में सफ़ेद , लम्बे , बारीक होते हैं और ये आँख में इधर से उधर घुमा करते है , भीगी रूई से निकालने से वे निकल भी जाते है । पशु की आँख से पानी बहता रहता है । उसमें कीचड़ आ जाता है , जिससे पशु आँख बन्द रखता है ।

१ - औषधि - सेंधानमक २ तोला या २४ ग्राम पानी ८० तोला या ९६० ग्राम नमक को पीसकर ४० तोला पानी में उबालना चाहिए । िफर उसे छानकर कुनकुना पानी रोगी पशु की आँख पर दोनों समय अच्छे होने तक छिड़कना चाहिए ।

२ - औषधि - नीम की पत्ती १२ ग्राम , पानी ९६० ग्राम , नमक २४ ग्राम , नीम की पत्ती व नमक को पीसकर पानी में उबालना चाहिए । फिर उसे छानकर गुनगुने पानी को हाथ की अंजुली में लेकर पशु की आँख पर सुबह-सायं छींटें मारने चाहिए यह उपाय आँख ठीक होने तक करना चाहिए ।

३ - औषधि - पानी ९६० ग्राम , तम्बाकू १२ ग्राम , नमक १२ ग्राम , नमक व तम्बाकू को महीन पीसकर पानी में डालकर गरम किया जाय । फिर छानकर गुनगुना पानी पशु की की आँख में ठीक होने तक दोनों समय हाथ से छींटें मारने चाहिए ।

४ - औषधि - गाय की दही २४ ग्राम , अफिम २ ग्राम , अफिम को पानी में घिस लें और दही में मिलाकर अंजन बना लें । रोगी पशु की की आँख में सुबह -सायं यही अंजन रोज़ाना बना कर लगाते रहे , अच्छा होने तक लगाया जायें।

५ - औषधि - वराहीकन्द को पानी में घीसकर क्रीम जैसा बनाकर रोगी पशु की आँख में दोनों समय अंजन बनाकर अच्छा होने तक लगाया जाय।

६ - औषधि - मीठे प्याज़ का रस १० ग्राम , लेकर रोगी पशु की आँख में दोनों समय डालते रहे, अच्छा होने तक इस क्रिया को करते रहें ।


११ - अन्धा हो जाना
==============

कारण व लक्षण - कभी - कभी पशुओं को चरते समय खरगोश और गोच आदि जानवर आँख में फूँक मार देते है , जिससे पशु अक्सर अन्धे हो जाते है ।

१ - रोगी पशु की आँख में रोज़ सुबह - सायं दोनों समय ५-५ बूँद नींबू का रस छानकर अच्छा होने तक डालना चाहिए ।

२ - कचनार के छोटे पौधे की जड़ लाकर उसे धोकर गोमूत्र के साथ पत्थर पर खड़ी घिसना चाहिए फिर उसे छान लीजिए । और सुबह- सायं ठीक होने तक आँख में आंजना चाहिए । 

28.गौ- चिकित्सा - मुखरोग ।


(28) गौ- चिकित्सा - मुखरोग । 


१ - गलफर में काँटे हो जाना ( अबाल रोग )
=====================================
कारण व लक्षण :- पशु के गलफर में काटें हो जाते हैं इस रोग को अबाल रोग कहते हैं अनछरा रोग में जीभ पर काँटे होते हैं इस रोग में गालों में होते हैं तथा इस रोग में गलफर में चिप- चिप होती रहती हैं पशु चारा नहीं खा पाता हैं
# - जो दवा अनछरा रोग में लाभ करती हैं वह गलफर में भी काम करती हैं ।
१ - औषधि - हल्दी व नमक पीसकर गालों में चुपड़ते रहना लाभकारी हैं दवा करने से पहले बाँस की खपच्ची से गलफर में उत्पन्न काँटों को धीरे-धीरे छीलकर बाद में दवा को रगड़ कर लगायें ।


२ - जिह्वा कण्टक ( अनछरा रोग या जीभ का काँटा )
========================================

कारण व लक्षण :- पशु की जीभ के ऊपर छोटें- छोटें नोंकदार दानें - इस रोग में निकल आते हैं , जिन्हें आम बोलचाल में काटें कहते हैं । इस रोग से ग्रसित पशु खाने की तो इच्छा करता हैं किन्तु काटें चुभने के कारण खा नहीं पाता हैं ।

१ - औषधि - हल्दी व नमक पीसकर तैयार रखें , इसके बाद बाँस की खपच्ची लेकर जीभ पर रगड़कर काँटों को छील दें फिर दवा को सरसों के तेल में मिलाकर रगड़कर लगायें । इससे आराम आयेगा ।

२ - औषधि - काला ज़ीरा , काली मिर्च और अम्बा हल्दी - इन तीनों को सममात्रा में लेकर महीन कर लें और रोगी पशु की जीभ पर बार- बार लगायें ।

३ - औषधि - धाय के फूल २ तौला , रात्रि में में पानी में भिगोकर रख दें प्रात होने पर सेंधानमक कलमीशोरा , और समुद्रीफेन , प्रत्येक १-१ तौला , और रसवत ६ माशा , लेकर सबको बारीक पीसकर जीभ पर मलते रहना लाभकारी हैं ।
प्रात: काल रोगी पशु को कुछ भी खिलाने से पूर्व अदरक , पान तथा कालीमिर्च खिला देने से मुख के अन्दर उत्पन्न होने वाले तथा सभी जगहों के काँटों में लाभ होता हैं ।


३ - सूतबाम ( सुकभामी ) रोग
===========================

कारण व लक्षण :- इस रोग में तालु अथवा तारू में छेद हो जाता हैं । इस रोग को सूतबाम या सुकभामी के नामों से जानते हैं । इसरोग में पशु की आँखों से पानी बहता हैं , उसे भूख नहीं लगती हैं जिसके कारण दिन- प्रतिदिन पशु दूबला होता जाता हैं पशु पानी पीने से डरता हैं । जब छेद में पानी पड़ता हैं तो दर्द अधिक बढ़ जाता हैं । इस पीड़ा से पशु की आँखों से आँसू निकल पड़ते हैं । इसी पीड़ा के भय के कारण पशु पानी नहीं पीता हैं । रोगी का मुख खोलकर देखने पर तालू का छेद साफ़ दिखाई देता हैं ।

१ - औषधि - लोहे खुब गरम करके छिद्र को दाग देना लाभकारी उपाय हैं । दागने के बाद घाव में देशी सिन्दुर व पीसी हूई हल्दी और गाय का घी मिलाकर मरहम तैयार करके पहले ही रखें दागने के तुरन्त बाद घाव में भर देंना चाहिए यह गुणकारी उपाय हैं ।


४ - मेझुकी ( कठभेलुकी या भेलुकी रोग
=================================

कारण व लक्षण :- इस रोग में पशु की जीभ के ऊपर सूजन हो जाती हैं । इस रोग को मेझुकी, कठभेलुकी , भेलुकी , आदि नामों से लोग जानते हैं । इस रोग में पशु चारा न खा पाने के कारण पशु दुर्बल हो जाता हैं । इस रोग से ग्रस्त पशु चारा कम खाता हैं और पानी पीने में भी कम रूची रखता हैं ।

१ - औषधि -पशु की जीभ पर हल्के गरम लोहे से दाग लगाकर ऊपर की जली हुई खाल को खींचकर उतार दें इसके बाद गाय का घी , हल्दीपावडर , देशी सिन्दुर मिलाकर मरहम की तरह बनाकर जीभ पर लगायें इस योग को ठीक होने तक लगाना चाहिए ।

२ - औषधि - एक पक्षी होता है मैली बुगली उसको मारकर, पकाकर शोरबा बनाकर खिलाने से भी लाभ होता हैं । साथ-साथ उसके शरीर से निकली हूई हड्डियों को पीसकर पशु की जीप पर लगायें तो जल्दी आराम आता हैं ।


५ - बहता रोग
=============

कारण व लक्षण :- इस रोग में पशु की जीभ बहुत अधिक फूल जाती हैं , जिसके कारण उसके मुख से हर समय लार टपकती रहती हैं । रोगी पशु के नेत्रों से पानी बहने लगता हैं जिसके कारण रोगी पशु बहुत विकल्प रहता हैं , आँख से हर समय पानी बहता रहता हैं इसिलिए किसान इस रोग को बहता रोग कहते हैं ।

१ - औषधि - पशु की जीभ के नीचे वाले हिस्से के चारों रंगों में चार फस्दया फश्त खोल देना ही इस रोग का मुख्य इलाज हैं । नश्तर के घाव में - हल्दी पावडर , देशी सिन्दुर , गाय का घी मलना लाभकारी रहता है ।



६ - जिह्वा व्रण ( जीभ के घाव )
==========================

कारण व लक्षण - पशु की जीभ पर घाव हो जाते हैं । जिसके कारण पशु ठीक प्रकार से खाना- पीना ठीक से नहीं कर पाता है और वह बहुत परेशान रहता हैं । यह रोग गायों को बहुत अधिक होता हैं ।

१ - औषधि - पशु की जीभ पर घाव होतों - पीपल की छाल जलाकर उसकी महीन राख जीप्रणाम रगड़कर कुछ देर के के लिए रोगी पशु के मुँह को बाँध देना चाहिए । दबाकर न बाँधे इतना बाँधे की पशु जबड़ा न चला पाये लेकिन नाक से साँस बन्द न हो । कभी इतना टाईट बाँध दें कि वह साँस भी न लें सकें ध्यान रहें ।


७ - गरदब्बा
===============

कारण व लक्षण :- इस रोग में जीभ की जड़ में अधिक सूजन आ जाती हैं जिसके कारण रोगी पशु का मुख काफ़ी गरम प्रतित होता हैं । यह भयंकर रोग हैं इसे भी जहरबाद की तरह असाध्य समझा जाता हैं । अत: इस रोग के लक्षण प्रकट होते ही तुरन्त इलाज करना चाहिए । पशु के मुँह में हाथ डालकर देखने पर मुँह अन्दर से काफ़ी ठण्डा रहता हैं ,जबकि गलाघोटू रोग में पशु का मुख अन्दर से काफ़ी गरम रहता हैं ।

१ - औषधि - मेंथी आधा पाँव प्याज़ ३ छटांक , पानी १ किलो में पकाकर पशु को नाल द्वारा पिलाने से लाभ होता हैं ।

२ - औषधि - सरसों का तेल १० ग्राम , अफ़ीम ५ ग्राम , मिलाकर पशु के नाक में डालने से आराम आता हैं ।

३ - औषधि - बंडार, कालीजीरी और मकोय तीनों को थोड़ा पानी डालकर पीस लें फिर गरम करके , महुए पुत्री बनाकर पुन: पतरी को रूई में रखकर हलक के ऊपर बाँधना भी लाभदायक हैं ।

४ - औषधि - धतुरे का पत्ता , मेउड़ का पत्ता , बकायन के पत्ते , आकाश बंवर का पत्ता और अरूस का पत्ता - इन सबको उबालकर सूजन के ऊपर बफारा ( भाँप देना ) देने से लाभ होता हैं ।

५ - औषधि - इस रोग में उपयुक्त दवाओं के प्रयोग से लाभ होता हैं । यदि इनके प्रयोग से कोई लाभ न हो तो रोगग्रस्त स्थान को लोहा छड़ को गरम करके दाग लगाना चाहिए ।


८ - दाँत हिलना
================

१ - औषधि - पशुओं के हिलते हुए दाँत की जड़ में पीसी हुई हल्दी रखकर उपर से शुद्ध सरसों का तेल डाल देने से पशु का हिलता हुआ दाँत जम जाता है ।

२ - फिटकरी पावडर में पानी की बूँदें डालकर दाँत की जड़ पर लगाने से दाँत हिलने बन्द हो जाते हैं ।



९ - परिहुल ( मसूड़े फूलना )
=====================

कारण व लक्षण :- इस बिमारी में पशुओं के दाँतों की जड़े ( मसूड़े ) फूलकर मोटे हो जाते हैं । जिसके फलस्वरूप पशु का मुख बड़ा गरम हो जाता हैं । शुरूआत में फूले हुए मसूड़े काफ़ी कठोर रहते हैं किन्तु कुछ दिनों के बाद वे पक जाते हैं और उनसे मवाद निकलने लगता हैं । इस रोग से ग्रस्त पशु न तो चारा ही चर सकता है और न ही दाना खा पाता हैं ।

१ - औषधि - शुरूआत में तो ३-४ बार साँभरनमक तथा हल्दी बारीक पीसकर व कपडछान करके मलते रहना चाहिए । यदि कुछ दिन तक मलने से सूजन नरम पड़ जाये तो नश्तर से चीरा देकर मवाद निकाल देनी चाहिए । उसके बाद पान के पत्ते पर बुरककर कालीमिर्च व सोंठ पावडर सूजन पर लगाना चाहिए ।

२ - औषधि - मेंथी , सांभर नमक और अलसी - प्रत्येक को समान मात्रा में लेकर पुलटीश बनाकर लेंप करना चाहिए यह उपयोगी होता है ।

३ - औषधि - यदि रोग की तीव्रता के कारण पशु को बुखार हो जाये और वह बुखार से परेशान होकर चक्कर काट रहा हो तो - गुड़ और चिरायता ५००-५०० ग्राम , लेकर लगभग १ लीटर पानी में औटायें । जब आधा पानी रह जाये तब छानकर रोगी पशु को गुनगुना ही पिला देना लाभप्रद होता हैं ।

# - मुलायम घास व अलसी या चावल का माण्ड में नमक मिलाकर पशु को पिलाना चाहिए ।


१० - दाँतों मे पायरिया
=================

कारण व लक्षण :- इस रोग को पिंग रोग के नाम से भी जानते हैं । तथा कहीं- कहीं इस रोग को "गहन " रोग से भी पुकारते हैं । यह दाँतों का भयंकर रोग है । इसमें दाँतों की जड़ों का माँस गल- गलकर क्षीण होने लगता हैं । दाँतों की जड़े खोखली हो जाती हैं और वे हिलने लगते हैं । पायरिया रोग में रोगी पशु को चारा दाना खाने का कष्ट रहता हैं ।

१ - औषधि - सरसों के तेल में रूई को भिगोकर दाँत की जड़ में रखे । साधारण गर्म लोहे को रूई के ऊपर रखें , ताकि तेल गर्म होकर दाँतों की जड़ों में चला जायें । इसके बाद बरगद का दूध रूई में भिगोकर दाँतों की जड़ों में रखने से दाँतों की जड़े मज़बूत हो जाती हैं ।


११ - दाँतों का अनियमित बढ़ना
==========================

कारण व लक्षण :- आमतौर पर यह रोग बूढ़े पशुओं को होता हैं । उनके दाँत ऊँचे - नीचें हो जाते हैं । तथा दाढें बढ़ जाती हैं , जिसके कारण उन्हें चारा - दाना खाने में कष्ट होता हैं । इस रोग से ग्रस्त पशु चारे को दाँतों से भलीप्रकार चबा नहीं पाता हैं और उसे चबाने में कष्ट होता हैं ।
१ - औषधि - इस रोग के इलाज हेतु पशु को किसी सुयोग्य डाक्टर के पास जाकर दाँतों को रितवा देना चाहिए अथवा अनियमित रूप से बढ़े दाँतों को निकलवा देना चाहिए ।


१२ - मुँह पका रोग
=================

१ - मूहँ पकारोग - जूवाॅसा - १५० ग्राम , अजमोदा - १५० ग्राम , चीता ( चित्रक सफ़ेद ) -१०० ग्राम , बड़ी इलायची - ५० ग्राम , इलायची को कूटकर बाक़ी सभी दवाओं को साढ़े तीन किलो पानी में उबालकर ,छानकर पानी की एक-एक नाल सुबह-सायं देने सेल लाभ होता है ।


१३ - जीभ पर छालें पड़ जाना
=======================

कारण व लक्षण - कभी - कभी गरम चीज़ें खा लेने के कारण शरीर का ताप बढ़ जाता है , या बदहजमी के कारण यह रोग हो जाता है , यह रोग फेफड़ों में भी हो सकता है । पशु की जीभ में छालें पड़ जाते है । मुँह से दुर्गन्ध आती है । लार टपकती है ।खाना - पीना तथा जूगाली करना कम हो जाता है । पश सुस्त रहता है और दिनोंदिन कमज़ोर होता जाता है ।

१ - बछाँग की जड़ ( जलजमनी ) ६० ग्राम , गाय का घी २४० ग्राम , जड़ को महीन कूटकर उसे घी में गुनगुना गरम करके , बिना छाने , रोगी पशु को एक समय , चार - पाँच दिन तक , दी जाय । उससे अवश्य आराम होगा ।

२ - औषधि - मुर्ग़ी का अण्डा १ नग , गाय का दूध ९६० ग्राम , अण्डे को फोड़कर और गूद्दे को दूध में मिलाकर ख़ूब फेंट लिया जाय । फिर रोगी पशु को दोनो समय ,तीन दिन तक , पिलाया जाय ।

आलोक -:- रोगी पशु को पहले जूलाब दिया जाय । उसके बाद जलजमनी की पत्तियाँ खिलाने से वह अच्छा हो जाता है । यदि वह न खाये , तो उसे बारीक पीसकर पानी के साथ मिलाकर पिलाये ।

३ -औषधि - फिटकरी ६० ग्राम , पानी २४० ग्राम , फिटकरी को पानी में मिलाकर रोगी पशु का सिर धोना चाहिए तथा उसे पिलाना भी चाहिए ।

४ - औषधि - इलायची १२ ग्राम , शीतल चीनी २४ ग्राम , पानी २४० ग्राम , इलायची और शीतल चीनी को पीसकर , पानी में मिलाकर गुनगुना करके , रोगी पशु को आठ दिन तक , देना चाहिए ।

------------------- @ --------------------


१४ - पान कोशी
=======================

कारण व लक्षण - मुहँपका रोग में या माता की बिमारी में पशु के भूखे रहने से यह बिमारी हो जाती है । इस रोग में पशु अधिक गर्मी नहीं सहन कर सकता । रोगी पशु अधिक हाँफता हैं । उसे दम चलती है । वह हमेशा छाया में या पानी में रहने की कोशिश करता है । उसके रोयें बढ़ जाते है और काले पड़ जाते हैं । अगर रोगी मादा पशु हो तो गाभिन नहीं होता और हुआ भी तो दूध नहीं देता है ,उसका दूध प्रतिदिन सूखता जाता है।

१ - औषधि - बत्तख का अण्डा १ नग ,गाय का दूध ९६० ग्राम , प्रतिदिन अण्डे को फोड़कर और दूध के साथ ख़ूब फेंटकर रोगी पशु को ८ दिन तक पिलाया जाय। अगर इसके बीच रोगी पशु अच्छा हो जाय तो फिर एक समय यह दवा पिलानी चाहिए ।

२ - औषधि - मुर्ग़ी का अण्डा २ नग , गाय का दूध १ लीटर , अण्डों को तोड़कर , दूध में मिलाकर , रोगी पशु को दोनों समय ८ दिन तक देना चाहिए ।

टोटका -:-
३ - औषधि - गाय के दूध की छाछ १४४० ग्राम , कालीमिर्च ३० ग्राम , कालीमिर्च को महीन पीसकर उसे छाछ में मिला लिया जाय । फिर लोहे के टुकड़े को या पत्थर को लाल गरम करके उसे छाछ में एक दम डालकर तुरन्त ढँक दिया जाय । १५ मिनट बाद उस लोहे के टुकड़े को निकालकर , गुनगुनी छाछ रोगी पशु को दोनों समय , एक माह तक ,इसी मात्रा में पिलायी जाय ।

४ - औषधि - नीम की पत्ती १०० ग्राम , २५० ग्राम पानी में पीसकर पिलानी चाहिए । बाद मे २५० ग्राम , गाय का घी भी दोनों समय देना चाहिए ।

---------------------- @ ---------------------

१५ - फाँसी या छड़ रोग, जीभ के नीचे नसों में काला ख़ून इक्कठा होना ।
========================================================

कारण व लक्षण - यह रोग गाय व भैंस और मादा पशुओं की जीभ के नीचे यह प्राय: होता है । यह रोग अन्य पशुओं को नहीं होते देखा गया है । यह रोग गर्मियों में अधिक होता है । पशुओं को सूखी घास खाने तथा ठीक समय पर पानी न मिलने के कारण यह रोग होता है । जीभ के नीचे के भाग की नसों में काला ख़ून भर जाता है । पशु का शरीर अकड़ जाता है। उसकी कमर को ऊपर से दबाने से वह एकदम नीचे झुक जाता है । यह रोग अधिकतर दूधारू भैंसों को होता है । दूधारू पशु दूध देने तथा खाने में कमी करते हैं।

१ - औषधि - पहले रोगी पशु को धीरे से ज़मीन पर लिटा देना चाहिए । फिर उसकी जीभ बाहर निकालकर उसकी बड़ी - बड़ी दो नसों को ( जिनमें काला ख़ून भरा हो ) , जोकि कई छोटी -छोटी नसों को मिलाती है । उसे सुई से तोड़कर काला ख़ून बाहर निकाल देना चाहिए ।और बाद में २४ ग्राम हल्दी, गाय का घी २४ ग्राम , दोनों को मिलाकर जीभ पर नसों के पास लगा दें । इससे ज़ख़्म नर्म और ठीक हो जायगा ।

# - रोगी पशु की पूँछ के नीचे के भाग में थोड़ा - सा चीरा ( नश्तर) लगाकर ख़ून निकाल दिया जाना चाहिए । उसे ऊपर से नीचें की ओर लौटाना चाहिए , जिससे काला रक्त निकल जायेगा । अच्छी तरह दबाकर काला ख़ून निकाल देना चाहिए । काला ख़ून निकल जाने के बाद ज़ख़्म में अफ़ीम चार रत्ती पानी में मिलाकर नरम करकें , भर देनी चाहिए । इससे रोगी को यह रोग दूसरी बार नहीं होगा ।

---------------------- @ -------------------------


१६ - मुँह मे आँवल या मुँह में काँटों का बढ़ना
======================================

कारण व लक्षण - यह रोग गौ वर्ग को होता है कभी - कभी गाय को नमक क्षारयुक्त पदार्थ न मिलने पर भी यह रोग हो जाता है । जिस गाय बैल को सदैव कब्जियत रहती है । उसे यह रोग अधिक होता है । इस रोग में रोगी के मुँह के आँवल बढ़ जाते है । ये आँवल गाय व बैल के जबड़े के अन्दर अग़ल - बग़ल दोनों ओर रहते है । ये काँटे लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई में बढ़ जाते है । जिससे पशु घास ठीक प्रकार नहीं खा सकता है । वह दिनोंदिन कमज़ोर होने लगता है । दाना भी कम खाता है ।दूधारू गाय दूध देना कम कर देती है ।

१ - औषधि - रोगी पशु को सबसे पहले जूलाब देकर उसका पेट साफ़ कर देना चाहिए ।

२ - औषधि - रोगी पशु को प्रतिदिन २४ ग्राम , पिसानमक उन काँटों पर हाथ से मलना चाहिए ।

३ - औषधि - नारियल के रेशे , कत्थे की रस्सी को या भाभड़ के बाण को इन काँटों पर रगड़ें तथा ख़ूब मलना चाहिए ।

४ - औषधि - रोगी पशु के ज़मीन पर लेटाकर फिर उसके बढ़े हुए काँटे तेज़ कैची द्वारा काट दिये जायँ फिर बाद में हल्दी २४ ग्राम , गाय का घी या मक्खन २४ ग्राम , दोनों को मिलाकर काटो के स्थान पर हाथ से मला जायें । यह क्रिया केवल एक ही दिन करनी होती है । इससे पशु को आराम होगा । तथा ध्यान रहे की रोगी पशु को मुलायम घास , हल्की पतली ,पोषक घास देनी चाहिए । और पशु को हर चौथे नमक देना पड़ता है ।