सोमवार, 16 मई 2016

(31) गौ चिकित्सा-घाव-फोड़ा,फुन्सी के कीड़े ।

गौ चिकित्सा-घाव-फोड़ा,फुन्सी के कीड़े । 

१ - सूजन (Swelling ) 
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प्राय: पशु के शरीर के किसी अंग मे चोट लग जाने ,गन्दा मादा एकत्रित हो जाने अथवा फोड़ा- फुन्सी आदि उठने, घाव पक जाने या सर्दी आदि कारणों से प्रभाव से सूजन उत्पन्न हो जाती है । 
जिस स्थान पर सूजन होती हैं ,पशु के शरीर का वह स्थान उभरा हुआ- सा दिखाई देता हैं । उसमे दर्द होता हैं और दबाने से कडापन महसुस होता हैं । स्पर्श करने से वह स्थान गरम भी प्रतीत होता हैं । पशु सूजन के कारण बेचैन रहता हैं तथा कभी- कभी उसे बुखार भी हो जाता है । 

यदि सूजन की उत्पत्ति का कारण चोट लगना अथवा घाव आदि हो तो - नीम के उबाले हुए जल से पीड़ित स्थान को भली-भाँति धोये तथा उसी से सेंक करे । तदुपरान्त निम्नांकित दवा तैयार करके उस स्थान पर लगा दे । 

१ - औषधि - तवे को चूल्हे पर चढ़ाकर उसमे घी और पिसी हुई हल्दी डालकर अच्छी तरह पका लें और फिर रूई के फ़ाहे पर रखकर सूजन वाले स्थान पर रखकर बाँध देना चाहिए । इस प्रयोग से १-२ दिन मे ही सूजन दूर हो जाती है । 
२ - औषधि - भुना हुआ कपूर अथवा खील किया हुआ सुहागा सममात्रा में तिल के तैल, गाय का घी अथवा वैसलीन या मक्खन मे मिलाकर सूजन के ऊपर लेप करने से भी , सूजन नष्ट होती हैं । 

३ - औषधि - यदि सूजन उत्पन्न होने का कारण ख़ून का खराब मादा एकत्रित होना हो अथवा फोड़ा - फुन्सी उठने के पुर्व सूजन पैदा हो गई हो तो ऐसी दशा मे - नीम के पत्ते अथवा मकोय को पानी मे उबालकर उससे सूजन को सेकें , तदुपरान्त - निम्नांकित लेपों मे से कोई एक लेप लगाना चाहिए 
४ - औषंधि -हल्दीपावडर और साबुन २-२ तौला की मात्रा में लेकर थोड़े- से पानी में पकाकर गरम- गरम सूजन स्थान पर लेप करें । 
५ - औषधि - गेरू १ तौला को २ तौला मकोय के रस मे मिलाकर आग पर थोड़ा गुनगुना करके सूजन पर लेप करें । 
६ - औषधि - हल्दीपावडर और चूना दोनों को सममात्रा मे मिलाकर गरम पानी या मकोय अथवा आकाश बेल के रस में मिलाकर गुनगुना करके सूजन पर लेप करें । 
७ - औषधि - सामान्य प्रकार की सूजन ठण्डे पानी की धार डालने अथवा कपड़ा तर करके सूजन पर रखने से भी सूजन दूर हो जाती हैं । 
८ - औषधि - गरम ईंट , रेत आदि गरम करके कपड़े की पोटली बाँधकर उससे सेंक करना भी लाभकारी सिद्ध होता हैं । किन्तु पोटली की सेंक करने से पहले सूजन पर थाडा तैल अथवा घी चुपड़ लेना चाहिए । 
९ - औषधि - कपूर १ तौला और १ छटाक तारपीन तैल को २५० ग्राम तिलों के तैल मे मिलाकर सूजन वाले स्थान पर मालिश करने से लाभ होता हैं । 
यदि उपरोक्त प्रयोगों से भी सूजन दूर न हो तो निम्नलिखित प्लास्टरू तैयार करके प्रयोग में लाना चाहिए । इस प्लास्टर के ही प्रयोग से शीघ्र ही सूजन दूर होगी - राई को पानी पानी मे पीसकर गरम करके, कपड़े पर मलहम की तरह फैलायें और सूजन पर चिपका दें । 
१० - औषधि - लहसुन १ भाग और २ भाग आटा लेकर सिलबट्टे पर पीसें । जब यह मरहम के रूप मे आ जाये तो उसे गरम करके कपड़े पर फैलाकर सूजन पर चिपका दें । 
रोग - पशुओं के घाव में कीड़े पड़ जाने पर । 
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औषधि - नीलकंठ पक्षी का पंख -- पशुओ के शरीर के घावों में कीड़े पड़ जाने पर नीलकंठ पक्षी के एक पंख को लेकर बारीक - बारीक काटकर रोटी में लपेटकर पशु को खिला देने से रोगी पशु के सारे कीड़े मर जायेंगे । और कैसा भी घाव होगा ७-८ दिन में अपने आप भर जायेगा । दवा को खाते ही कीड़े मरकर बाहर आ जायेंगे ।१% कीड़े नहीं मरे तो । तीन - चार दिन के बाद एक खुराक और दें देना चाहिए । 


२ - घाव में कीड़े पड़ना 
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कारण व लक्षण - अक्सर यह रोग घाव पर एक प्रकार की हरी मक्खी के बैठने से होता है । पहले मक्खी घाव पर अपना सफ़ेद मल ( अघाडी ) छोड़ देती है । वही मल दिनभर में कीड़े के रूप में बदल जाता है । एक विशेष प्रकार की सफ़ेद मक्खी , जो कि आधा इंच लम्बी होती है , वह मल के रूप में कीड़े ही छोड़ती है । 

१ - औषधि - रोग - ग्रस्त स्थान पर, घाव में बारीक पिसा हुआ नमक भर दिया जाय और पट्टी बाँध दी जाय, जिससे घाव पक जायगा और कीड़े भी मर जायेंगे । घाव पकने पर कीड़े नहीं पड़ते हैं । 

२ - औषधि - करौंदे की जड़ १२ ग्राम , नारियल का तैल २४ ग्राम , करौंदे की जड़ को महीन पीसकर छान लें । फिर उसमें तैल मिलाकर ,घाव में भरकर , ऊपर से रूई रखकर पट्टी बाँध दें । तत्पश्चात् पीली मिट्टी या कोई भी मिट्टी बाँध कर लेप कर दें । 

३ - औषधि - अजवायन के तैल को रूई से घाव पर लगाकर पट्टी बाँध देने से कीड़े एकदम मर जाते है । अजवायन का तैल किसी और जगह पर लग जाय तो तुरन्त नारियल का तैल लगा देना चाहिए , अन्यथा चमड़ी निकलने का भय रहता है । 

४ - औषधि - बड़ी लाजवन्ती का पौधा ३६ ग्राम , लेकर रोगी पशु को रोटी के साथ दिन में दो बार खिला दें । इससे कीड़े मर जायेंगे । उसकी एक बीटी भी बनाकर रोगी पशु के गले में काले धागे से बाँध दें । 

५ - औषधि - मालती ( डीकामाली ) १२ ग्राम , नारियल का तैल १२ ग्राम , मालती को बारीक पीसछानकर नारियल के तैल में घोंट लें ।फिर पशु के घाव पर लगाकर रूई रखकर पट्टी बाँध दें । दवा हमेशा ताज़ी ही काम मे लानी चाहिए । 

६ - औषधि - मोर पंख जलाकर राख १२ ग्राम , नारियल तैल १२ ग्राम । मोरपंख को जलाकर छान लें फिर उसे तेल में मिलाकर घाव पर लगा दें । और रूई भिगोकर घाव पर रखकर ऊपर से पट्टी बाँध दें । फिर मिट्टी से उस पर लेप कर दें । 
७ - औषधि - यदि घाव मे कीड़े पड़ गये हो तो उन्हे अच्छी तरह से साफ़ करके सरसों के तैल में - तारपीन का तैल या युकलिप्टस का तैल या कपूर का तैल मिलाकर लगाना लाभप्रद होता है । 

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फोड़ा - फुन्सी व घाव 
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कारण व लक्षण - चोट , सर्दी , गर्मी , अथवा अन्य किसी ख़राबी के कारण पीव - मवाद एकत्रित हो जाने से कभी - कभी पशु के शरीर के किसी हिस्से में सूजन हो जाती हैं , जिसे फोड़ा या फुन्सी कहते हैं । 

१- औषधि - फुंसियाँ निकलते ही यदि समुचित उपाय किया जाय तो सूजन पटक जाती हैं , इस हेतू सेमरवृक्ष ( सेम्भल वृक्ष ) की छाल और कचनार की छाल को जल मे पीसकर बाँधना चाहिए । 

२ - औषधि - गेरू व जामुन की छाल , नीम व मकोय के पत्ते पानी मे पीसकर गुनगुना करके बाँधना चाहिए व लेप करना चाहिए । 

३ - औषधि - नीम की छाल , अजवायन , या रूस के पत्ते ( प्रत्येक सममात्रा मे लेकर ) पानी मे मिलाकर पीसकर गरम करके बाँधने से फुन्सियाँ पटक जाती हैं । 

४ - औषधि - सोया का बीज हल्दी ,धनिया , बाबूना के पत्ते , सभी सममात्रा मे लेकर पानी मे पीसकर गरम करके फोड़ा पर बाँध देना चाहिए । 

# - यदि इन सभी दवाओं के प्रयोग से फोड़ा न बैठे तो नीचे लिखी दवाओं का प्रयोग करके फोड़े को पकाकर उसका पस ( मवाद ) निकाल देना चाहिए । 

५ - औषधि - चावल को गाय के दूध से बनी मट्ठा ( छाछ ) के साथ पीसवाने के बाद उसमे नमक मिलाकर आग पर पका लें तदुपरान्त इस पुल्टिस को फोड़े पर बाँधें इस प्रयोग से फोड़ा पककर फूट जायेगा । 

६ - औषधि - मुल्हैटी , सम्मभालू के पत्ते और मैनफल सभी को सम्भाग लेकर पानी के साथ पीसकर गुनगुना करके फोड़े पर बाँधने से फोड़ा पककर फूट जायेगा । 

७ - औषधि - गुगल पीसकर उसमे शहद मिलाकर गरम करके इसका लेप करना कारगर सिद्ध होता हैं । 

८ - औषधि - गेहू का दलिया और दही पकाकर गुनगुना ही फोडे पर बाँधने से फोड़ा पककर फूट जाता हैं । 

# - यदि फुन्सी मे माँस बढ़ जाये तो निम्नांकित चिकित्सा करनी चाहिए -- 

९ - औषधि - एक किरकेटा ( गिरगिट ) लाकर उसके पाँव व पूँछ काटकर फेंक दें और उसका पेट चीरकर उसकी आँते निकाल उसके धड़ को तिल के तैल मे पकाकर ( यह ध्यान रहे कि वह जलकर राख न हो ) ठन्डा करके रख लें और निरन्तर इस तैल को फोड़ा पर लगाते रहने से लाभ होता हैं । 

१० - औषधि - आरने ( गाय जब जंगल मे चरती हुई गोबर करती है और जगह-जगह वह गोबर की चौथ पड़ती है और बाद मे वह सूख जाती है तो इसी को आरना या आरने कहते है इसकी आँच बहुत तेज होती है वह हीरे की भस्म इसी से बनायी जाती हैं ) की भस्म और सीप का चूना २-२ पैसे भर की मात्रा मे लेकर २५० ग्राम अलसी के तैल मे पकाकर मरहम बनाकर इसको नित्य - प्रति पशुओ के घाव पर लगाने से घाव शीघ्र ठीक होते हैं । 

११ - औषधि - यदि फोड़ा पकने लगा हो तो पूरी तरह पकाकर फूटने पर उसका मवाद अच्छी तरह साफ़ करके नीम के पत्तों के उबाले हुए जल से धोकर प्याज़, कुकरौंदा अथवा गुलाब बाँस की पत्ती पानी से पीसकर व गरम करके दिन में २-३ बार बाँधने से लाभ हो जाता हैं। 

१२ - औषधि - एक तौला आटा, १ माशा हल्दी , १ तौला मीठा तैल ,१ माशा सुहागा, १ माशा सिन्दुर , २ रत्ती तूतीया - इन सब औषधियों को लेकर , मिलाकर आग पर और पुल्टिस बनाकर गरम- गरम ही बाँधने से बड़े - से - बड़ा कच्चा फोड़ा भी शीघ्र ही पककर फूट जाता है । यदि फोड़ा शीघ्र नही फूटे तो - चाक़ू को पानी मे ख़ूब उबालकर ठण्डा कर उसमे चीरा करने के लिए निम्नांकित उपचार करने चाहिए - 

१३ - औषधि - नीम के तैल मे थोड़ा - सा सल्फानिलेमाइड का पावडर मिलाकर मलहम की भाँति प्रयोग करते रहने से घाव ठीक हो जाता हैं । 

१४ - औषधि - यदि घाव मे कीड़े पड़ गये हो तो उन्हे अच्छी तरह से साफ़ करके सरसों के तैल मे - तारपीन का तैल या युकलिप्टस का तैल अथवा कपूर का तैल मिलाकर लगाना लाभप्रद हैं । 

१५ - औषधि - घाव की मक्खियाँ आदि से बचाने के लिए - नीम के तैल मे थोड़ा - सा कपूर मिलाकर लगाना लाभप्रद होता हैं । 

१६ - औषधि - घाव को प्रतिदिन रूई से साफ़ करके अथवा गरमपानी मे बोरिकएसिड पावडर लगाकर साफ़ करके मलहम आदि लगाकर पट्टी बाँधते रहना चाहिए अन्यथा मवाद भरा रहकर अन्दर ही अन्दर घाव को बढ़ा देगा । 



घाव मे कीड़े हो जाना 
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कारण व लक्षण - प्राय: घाव हो जाने पर असावधानीवश तथा उसको किसी उचित किटाणुनाशक घोल से धोकर साफ़ न करने के कारण पशुओं के घाव में कीड़े हो जाते हैं । जिसके कारण पीड़ित पशु को अत्यधिक कष्ट होता हैं , पशुओं के घाव पर मक्कियाँ बैठकर मल त्याग कर देती हैं । इसको साफ़ न करने से भी घाव मे कीड़े पड़ जाते हैं । 

# - सर्वप्रथम घाव को हुक्के के पानी से धोकर साफ़ कर लेना चाहिए तदुपरान्त आगे लिखी दवाओं का प्रयोग करना चाहिए -- 

१ - औषधि - यदि पशु के घाव मे कीड़े अधिक मात्रा मे पड़ गये हैं तो और लापरवाही वश काफी समय व्यतीत होने से वे बड़े आकार के हो गये हैं तो ऐसे घाव मे घोडबच ( घुड़बच ) भर देने से कीड़े शीघ्र ही मर जाते हैं । 

२ - औषधि - तम्बाकू के पत्ते और फिटकरी पीसकर पशुओ के घाव मे भर देने से कीड़े मर जाते हैं । 

३ - औषधि - तारपीन का तैल २५० ग्राम , और कपूर १० ग्राम , आग मे कुछ गरम करके पिचकारी देने से भी कीड़े मर जाते हैं । 

४ - औषधि - गाय के गोबर से बने कण्ड़े या आरने की राख को छानकर सरसों के तैल मे मिलाकर पशुओं के कृमियुक्त घाव मे लगाने से उनके घाव के कीड़े मर जाते हैं । 

५ - औषधि - सरसों का तैल १ किलो , नीम का तैल , कनइल ( कर्णिकर ) प्याज़ की लूगदी और तुतिया प्रत्येक २५०-२५० ग्राम , लेकर सभी सभी को महीन पीसकर और एक ही में मिलाकर तथा पकाकर मलहम बनाकर सुरक्षित रख लें । इस मलहम को प्रतिदिन पशुओ के ज़ख़्म पर लगाने से घाव में उत्तपन्न हो जाने वाले कीड़े मर जाते हैं । 

# - यह मरहम प्रत्येक प्रकार के कीड़ों पर लगाया जाये तो सभी का सफ़ाया करने मे कारगर सिद्ध हुआ हैं । 



चोट लगना या कट जाना 

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१ - औषधि - यदि किसी तेज़धार वाले औज़ार से या किसी कठोर वस्तु से पशु के किसी अंग के कट जाने अथवा चोट लग जाने के कारण रक्त प्रवाहित होने लगे तो भूना हुआ सुहागा ( सुहागा खील ) पीसकर कटे हुए स्थान पर लगा देने से रक्त निकलना रूक जाता हैं । 

२ - औषधि - पीने वाले तम्बाकू की जली हुई राख ( तम्बाकू गुल ) को बारीक पीसकर उसे पशु के शरीर आक्रान्त स्थान पर भरकर ऊपर से केले का पत्ता कसकर बाँध देने से बहता हुआ रक्त रूक जाता हैं । 

३ - औषधि - पुराने कम्बल को जलाकर उसकी भस्म घाव मे भर देने से पशु के शरीर से ख़ून का स्राव रूक जाता हैं । 

# - प्राथमिक उपचार के रूप मे किसी भी कटे स्थान को कपड़े से कसकर बाँध देना चाहिए तथा ऊपर से बर्फ़ से सिकाई करने से बहता हुआ ख़ून जमकर रूक जायेगा । 



३ - नासूर ( घाव ) 
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कारण व लक्षण - यह रोग फोड़े होने पर होता है । या नस में छेद हो जाने पर होता हैं । कभी - कभी कोई हड्डी रह जाने पर भी नासूर हो जाता है । यह काफ़ी बड़ा फोड़ा हो जाता है और नस में छेद होने पर ख़ून निकलता रहता है । 

१ - औषधि - आवॅला १२ ग्राम , कौड़ी २४ ग्राम , नीला थोथा ५ ग्राम , गाय का घी ५ ग्राम , आॅवले और कचौड़ी को जलाकर , ख़ाक करके , पीसलेना चाहिए । फिर नीले थोथे को पीसकर मिलाना चाहिए । उसमें घी मिलाकर गरम करके गुनगुना कर नासूर में भर देना चाहिए । 

२ - औषधि - नीला थोथा १२ ग्राम , गोमूत्र ९६० ग्राम , नीलेथोथे को महीन पीसकर , उसे गोमूत्र में मिलाकर , पिचकारी द्वारा नासूर में भर देना चाहिए । 

३ - औषधि - काला ढाक , पलाश,की अन्तरछाल २४ ग्राम , गोमूत्र ६० ग्राम , छाल को महीन पीसकर , कपड़े से छानकर , गोमूत्र में मिलाकर , पट्टी से बाँध देना चाहिए । यह पट्टी २४ घन्टे बाद रोज़ बदलते रहना चाहिए । 

५ - औषधि - हल्दी, फिटकरी , गन्धक , प्रत्येक आधा- आधा पाँव , नीला थोथा १ छटांक , हींग ढाई तौला , लहसुन का रस १ पाँव , अदरक का रस आधा किलो , धतुरे के पत्तों के का रस १ किलो कड़वा ( सरसों ) का तेल डेढ़ पाँव - सभी को मिलाकर मन्द- मन्द आँच पर पकायें । जब पानी जल जाये और तेल शेष रह जायें तो छानकर साफ़ - स्वच्छ शीशी में भरकर सुरक्षित रख लें । यह तेल भी उत्तम कीटाणुनाशक है हैं । साथ ही यह तेल - नासूर , घाव , फोड़े ,फुन्सी , खाज , छाजन आदि समस्त चर्मरोग के लिए भी लाभकारी हैं । यह दवा घाव भरने की अच्छी औषधि हैं । 



२ - ज़ख़्म पर टाँका लगाना 
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उपचार - ज़ख़्म पर सुई - धागा द्वारा टाँका लगा देना चाहिए तथा गोमूत्र से धुलाई करके महकवा का रस डालने से ख़ून बन्द हो जायेगा तथा बाद मे दण्डोत्पलक की जड़ को घिसकर उसका पेस्ट बनाकर गेन्दें के रस में मिलाकर मरहम की तरह लगा देवें । 


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