शुक्रवार, 2 सितंबर 2016

गौ माँ की गाथा

कान्हा तेरे द्वारे मैं अर्जी देने आई हूँ।हुआ करती थी कभी तेरी गौ मईया, आज दुखिया बन के मैं आई हूँ।सुनता नही कोई मेरा दुखडा, अपनी गाथा मैं तुम्हे सुनाती हूँ।दिखते नही मेरे आँसू किसी को, ये तुमको मैं दिखलाती हूँ।द्वापर में छोडा जैसा मुझको तुम आए, ना हाल मेरा अब वैसा है।क्या सुनाऊँ मैं तुम्हे अपनी कान्हा दुखो का टूटा पहाड मुझपे कैसा है।जिन कानो में तेरी मुरली की तान जाया करती थी।दर्शन कर के कभी मैं तेरे, घास चरा करती थी।उन्ही कानो में आज सत्ता खोरो के भाषण की चींखे गूंजा करती हैं।गौ माँ को हम बचाएगे कहते सभी, पर राेज मेरी संताने मरा करती है।झूठे भाषणो की इन चीखो में मैं, तेरी मुरली की ध्वनी आज भी ढूंढा करती हूँ।तू नही जाने रे मेरे कान्हा मैं तेरी धरती पर अब चारा नही पोलीथिन चबाया करती हूँ।पोलीथिन खा कर मेरे पेट में दर्द बहुत हाँ होता है।पर क्या करूँ ना मिलता है चारा, कोई देता भी है खाने को तो पाेलाेथिन में फेंका करता है।जिस गइया को तूने पूजा, उसे सरे बाजार पीटा जाता है।अब ताे आजा मेरे कान्हा इतना दुख ना अब झेला जाता है।रात काे भी मेरा घूमना ना गवारा किसी को आता है।जब साे जाती दुनियाँ नींद में तब अगवा मुझे किया जाताहै।उठाकर मुझकौ फिर कान्हा वाे दूर हाँ ले जाते है।चंद रुपयो की खातिर मुझे कान्हा माैत की नींद सुलाते है।माैत भी मुझको रे कान्हा ना आसान सी दी जाती है।पाँव पीट पीट कर तडपती मैं ऐसे रूह मेरी नाैंची जातीहै।तू ही बता मेरे कान्हा कैसे मैं धरती पर वास करूँ।ना दिखता मुझकाे तू वहाँ अब किसपे मैं कान्हा आस करूँ।दे दे मेरे सवालो का जवाब रे कान्हा पूछने मैं तुझसे आई हूँ।कान्हा तेरे द्वारे आज मैं अर्जी लगाने आई हूँ।है ठाकुर।।।।

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