गुरुवार, 13 जुलाई 2017

गौ सुखी तो राष्ट्र सुखी (3)

गौ सुखी तो राष्ट्र सुखी

गो-रक्षा हिन्दू धर्म का एक प्रधान कार्य है। प्रायः प्रत्येक हिन्दू गौ को माता कहकर पुकारता है और माता के समान ही उसका आदर करता है। जिस प्रकार कोई भी पुत्र अपनी माता के प्रति किए गए अत्याचार को सहन नहीं करेगा, उसी प्रकार एक आस्तिक और सच्चा हिन्दू गोमाता के प्रति निर्दयता के व्यवहार को नहीं सहेगा। आज हिन्दू आपसी फूट एवं कलह के कारण छिन्न-भिन्न हो रहे हैं तथा अपनी जीवनी-शक्ति खो बैठे हैं। मूक पशुओं की भांति दूसरों के द्वारा हाँके जा रहे हैं। सबसे ज्यादा दुर्भाग्य की बात तो यह है कि आज हम सभी बातों पर पाश्चात्य दृष्टिकोण से ही विचार करने लगे हैं। यही कारण है कि हमारी इस पवित्र भूमि पर प्रतिवर्ष लाखों-करोड़ों की संख्या में गाय व बैल काटे जा रहे हैं और हम इसके विरोध में आवाज भी नहीं उठाते। रात-दिन गौ काटी जा रही हैं, सब कुछ चुपचाप देखना, यह नपुंसकता नहीं तो और क्या है?
गौ के लिए हमारी आदर बुद्धि केवल कहने भर के लिए रह गई है। दूसरे देशों में क्षेत्रफल के हिसाब से गौओं की संख्या भारत की अपेक्षा कहीं अधिक है और प्रति मनुष्य दूध की खपत भी अधिक है। वहाँ की गौएँ हमारी गौओं की अपेक्षा दूध भी अधिक देती हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि यद्यपि हम अपने को गो-पूजक और गोरक्षक कहते हैं, वस्तुतः आज हम गोरक्षा में बहुत पिछड़े हुए हैं। गो-जाति के प्रति हमारे इस अनादर एवं उपेक्षा का परिणाम भी प्रत्यक्ष ही है। अन्य देशों की अपेक्षा हम भारतीयों की आयु बहुत ही कम है और हमारे यहाँ के बच्चे बहुत अधिक संख्या में मरते हैं। वास्तव में, दूध और दूध से बने हुए पदार्थों की कमी ही हमारी शोचनीय अवस्था का मुख्य कारण है।
हमारे शास्त्र कहते हैं कि गाय से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष- चारों पुरूषार्थों की सिद्धि होती है। दूसरे शब्दों में, धार्मिक, आर्थिक, सांसारिक और आध्यात्मिक - सभी दृष्टियों से गाय हमारे लिए अत्यन्त उपयोगी है। अतः गाय की रक्षा करें, गाय के दुग्ध व इससे बने पदार्थों का सेवन करें। इससे हर व्यक्ति स्वस्थ होगा और देश का स्वास्थ्य अच्छा होगा और देश वास्तव में सही उन्नति करेगा।



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें