गुरुवार, 10 अगस्त 2017

गौरक्षा में भारत सरकार की भूमिका

गौरक्षा में भारत सरकार की भूमिका

गायों की रक्षा में सबसे बड़ी समस्या चारा की है। यहां तो किसान के पास स्वयं के खाने के लिए पूरा नहीं है तो वह गायों को कहां से खिलाएगा
भारत  गौपालकों का देश कहा जाता रहा है। भारत से पूरी दुनिया भर के लोग गौवंश ले जाते रहे हैं। भारत एक ऐसा देश है जहां के बारे में कहा जाता था कि गौओं की बहुलता के कारण यहां दूध-घी की नदियां बहती थी। भारत के महान राजाओं, राजा दिलीप से लेकर छत्रपति राजा शिवाजी तक ने गाय की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी थी। दयानंद से लेकर महात्मा गांधी तक जैसे महापुरूषों ने गाय को बचाए जाने की बात कही है और उपाय तलाशने के प्रयास किए हैं। इसलिए यह दुर्भाग्यजनक होगा यदि भारत सरकार गाय की रक्षा के लिए कोई उपाय नहीं करे। गौरक्षा करनी हो तो सरकार के विभिन्न मंत्रालयों को निम्न कार्य करने होंगे।
गृह मंत्रालय
भारत की स्वाधीनता के पुरोधा महात्मा गांधी ने सपना देखा था कि स्वाधीन भारत में कहीं गौहत्या नहीं होगी। मानव स्वास्थ्य, चिकित्सा, खाद, कृषि, ऊर्जा एवं पर्यावरण सभी में गौवंश का वैज्ञानिक महत्व है। इतना महत्वपूर्ण पशु होने के बाद भी आज गौवंश पर महान संकट आन पड़ा है। देश में गौवंश की संख्या निरंतर घटती जा रही है। अनेक राज्यों में किए गए सर्वेक्षणों में यह पाया गया है कि देश में पशु-गणना के आंकड़ों से काफी कम गाएं हैं। इसलिए यदि तुरंत गौवध बंदी का कानून नहीं बनाया जा सकता तो कम से कम गौवंश को श्रेणी-2 के अंतर्गत संरक्षित प्राणी अविलंब घोषित किया जाय।
गौहत्या को अपराध बनाया जाए। पशु क्रूरता अधिनियम की धाराओं का सख्ती से पालन किया जाए। गौ तस्करी के अपराध के लिए सजा और जुर्माना बढ़ाया जाए। गाय के पैदल या वाहन द्वारा परिवहन की शर्तें और कड़ी की जाएं। तस्करी में लिप्त वाहन जब्त किया जाए। गौ-तस्करी करता वाहन जहां पकड़ा जाए, उससे पहले वह जिन-जिन पुलिस थानों से होकर गुजरा हो, उन सभी थानों के पुलिसकर्मियों को इसके लिए उत्तरदायी समझा जाए। श्री गुमानमल लोढ़ा आयोग की अनुशंसाओं को शीघ्रातिशीघ्र लागू किया जाय। साथ ही सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट द्वारा समय समय पर केन्द्र एवं राज्य सरकारों को गौरक्षा हेतु ठोस कदम उठाने के जो निर्देश दिये गये हैं, उनका अनुपालन किया जाये।
वित्त मंत्रालय
गौपालन को करमुक्त किया जाना चाहिए। वर्तमान में गौपालन को व्यावसायिक गतिविधि माना जाता है। इसलिए इस पर किए गए खर्च पर 12 ए के तहत आयकर में छूट नहीं मिलती है। कृषि की भांति गौपालन को भी करमुक्त घोषित कर देने से गौपालन करना सहज हो जाएगा।
खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय
देश की धर्मप्राण शाकाहारी जनता की एक बड़ी समस्या है पैकेज्ड खाद्य पदार्थों में मांस या फिर त्याज्य पदार्थों का मिलाया जाना। हालांकि पैकेटों में लाल और हरे निशान द्वारा इसका संकेत दिया जाना अनिवार्य किया गया है लेकिन पाया गया है कि अनेक पदार्थों में इसका पूर्ण परिपालन अभी भी नहीं हो रहा है। इसलिए सरकार से अपेक्षा है कि देश के सभी खाद्य पदार्थों, दवाईयों एवं दैनिक उपयोग की वस्तुओं मे पशु वधशाला से प्राप्त कोई भी पदार्थ मिलाया गया हो तो उसकी स्पष्ट जानकारी उपभोक्ता को दिया जाना अनिवार्य किया जाए ताकि भारत की गौप्रेमी जनता की भावनाओं व आस्था से खिलवाड़ न हो।
वाणिज्य मंत्रालय
भारत जैसे शाकाहारी संस्कृति वाले देश में मांस का व्यापार और आयात-निर्यात स्वाभाविक रूप से नहीं होना चाहिए था। यदि वर्तमान परिस्थितियों में सरकार इस पर प्रतिबंध नहीं लगा सकती तो कम से कम उसे दिए जाने वाले अनुदान पूरी तरह समाप्त किए जाने चाहिए ताकि इसे 
सरकारी प्रोत्साहन न मिले। सरकार मांस के निर्यातकों को इंसेंटिव देती है। यह बंद होना चाहिए। इसी प्रकार कत्लखानों को 50 प्रतिशत का अनुदान दिया जाता है। इसे भी तत्काल प्रभाव से बंद किया जाना चाहिए। तीसरा अनुदान कत्ल करने की मशीनों पर दिया जाता है, इसे भी बंद किया जाना चाहिए। सन्युक्त राष्ट्र भी इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि भविष्य में सब मनुष्यों के भोजन की व्यवस्था के लिए मांसाहार छोड़ कर सब को शाकाहारी होना पड़ेगा। 
कृषि एवं पशुपालन मंत्रालय 
स्वस्थ भूमि से ही पूरी तरह स्वास्थ्यप्रद अन्न मिल सकता है। आज यह साबित हो चुका है कि गोबर की खाद से भूमि की आर्द्रता बनी रहती है। गोबर की खाद से भूमि स्वस्थ बनती है, रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग की आवशकता भी नहीं रहती। इन्हीं कारणों से अमेरिका और ब्रिटेन में गोबर की खाद का बाजार मूल्य भारत वर्ष में गाय के गोबर की खाद से 20 गुना अधिक - एक डालर प्रति पौंड है। भूमि की उर्वरता को बनाए रखने से गोबर और गोमूत्र का अप्रत्यक्ष महत्व दूध से कहीं अधिक होता है और दूध न देने वाला गोवंश भी दूध देने वाले गोवंश से कम महत्व का नहीं होता और वह गोवंश भी अवध्य है। 
पशुपालन विभाग
प्रत्येक भारतीय नस्ल के गोवंश के संवर्धन और नस्ल सुधार के लिए कम से कम एक एक विशाल गौसंवर्धन केंद्र स्थापित हों। ये केंद्र राज्यवार हों तो अधिक उपयोगी होंगे। इन गौसंवर्धन केंद्रों में अधिक दूध देने वाली और शक्तिशाली बैल उत्पन्न करने वाली दोनों प्रकार की भारतीय नस्लों का संकर करके उत्तम नस्ल विकसित की जा सकती है।
आज दुनिया भर में भारतीय गौओं पर शोध हो रहा है। यह एक इतिहास है कि भारतीय गायों की महत्ता व गुणवत्ता से प्रभावित हो कर पूरी दुनिया के लोग भारत से नंदी और गाएं ले गए थे। परंतु अपने देश में अपनी गौओं पर शोध करने के लिए किसी प्रकार के शोध संस्थान का घोर अभाव है। भैंस पर अनुसंधान के लिए सरकार ने बैफ बनाया है, परंतु गौ पर शोध के लिए कुछ नहीं। इसलिए भारतीय गौवंश पर विशेष अध्ययन.अनुसन्धान के लिए एक केंद्रीय गौविज्ञान विश्वविद्यालय स्थापित किया जाना चाहिए। प्रत्येक राज्य मे गौविज्ञान एवं प्रोद्योगिकी संस्थान की स्थापना हो। केनेडा के प्रवासी भारतीय वैज्ञानिक आजाद कुमार कौशिक के अनुसंधान से साबित हुआ है कि गोवंश में सब जीवों मे उत्तम और अधिक प्राकृतिक रोग नाशक क्षमता पाई जाती है। इस श्रेणी के रोगनाशकों को बेक्टीरियाफेज कहा जाता है और इसी प्रकार के रोग हरण तत्व शु( गंगा जल में भी पाए जाते हैं। भारतवर्ष मे गौ और गंगा पर अनुसन्धान के लिए यह एक नवीन और सम्पूर्ण विश्व के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण विषय हैं।
ग्रामीण विकास मंत्रालय 
भारत में प्रचलित रही परम्परा के अनुसार गोपालन को स्वतंत्र व्यवसाय के रूप में पुनःस्थापित करने में सरकारें सहायता करें। गौपालन का गरीबी उन्मूलन से संबंध आज संयुक्त राष्ट्र भी समझने लगा है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य व कृषि संगठन ने इस पर एक रिपोर्ट भी प्रकाशित की है। उसके अनुसार खेती में गायों के उपयोग से गांवों की गरीबी दूर की जा सकती है। कुछ वर्ष पूर्व रवांडा में भी गाय से गरीबी उन्मूलन का एक सफल प्रयोग किया गया है। अफ्रीकन स्मॉलहोल्डर फारमर्स ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार इस योजना में शामिल 88 प्रतिशत किसानों की आय बढ़ गई और उनकी हालत सुधरी। ऐसा ही एक प्रयोग गुजरात में किया गया जहां जनजातीय लोगों को खेती करने के लिए बैल प्रदान किए गए। लगभग चालीस हजार बैल बांटे गए। ऐसी योजनाएं भारत में और भी सरलता से चलाई जा सकती हैं और वे अधिक लाभकारी भी हो सकती हैं। लोग स्वतःस्फूर्त प्रयासों के तहत गौपालन कर रहे हैं। उन्हें केवल प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
गौआधारित उद्यमों को सरकार विशेष अनुदान देने की व्यवस्था करे। गाय गांवों में कुटीर उद्योगों को भी बढ़ाने में सहायक है। आज गाय के गोबर और गोमूत्र से कई प्रकार के उत्पाद बनाए जा रहे हैं, जो न केवल काफी उपयोगी हैं, बल्कि वे पर्यावरण के अनूकूल भी हैं। अनेक गौशालाओं में इस पर कई प्रयोग हुए हैं। इस समय गाय के गोबर से निम्नलिखित वस्तुएं बनाई जा रही हैं। मच्छररोधी क्वायल, डिस्टेंपर ;सादा व आयलद्ध, नहाने का साबुन, फेस पाउडर, धूप स्टिक व धूप कांडी, हवन सामग्री, समिधा, पूजन लेप, गोमय कंडे, मुक्ता पाउडर, मुर्तियां, पौधों के लिए गमले, दंत-मंजन, कागज ;उत्तम कोटि काद्ध, विभिन्न प्रकार के टाइल्स ;खपरैल, पानी आग व ध्वनि रोधक तथा रेडिएशन मुक्तद्ध, पैकिंग का समान, नालीदार चादरें, जमीन पर बिछाने की मैटिंग, छत पर लगाने के पदार्थ ;रूफिंग मैटेरियलद्ध, कमरा ठंडा रखने के रखने के खपरैल, बंकर्स के लिए टाइल्स। गोमूत्र से भी अनेकानेक वस्तुएं बनाई जा रहीं हैं। अर्क, फिनाइल ;सफेद व कालीद्ध, नील, हैंडवास, ग्लास क्लीनर, नेत्र ज्योति, कर्ण सुधा, घनवटी, अन्य सुरक्षा, खुरपका मुहपका आदि पशुओं के अन्य रोगों की दवाएं, विभिन्न कीटनियंत्रक ;पेस्टीसाइड्सद्ध, आफ्टर शेव लोशन, मरहम, बाम इत्यादि। यदि गौआधारित उद्यमों को सरकार अनुदान दे तो इससे लोगों की आजीविका का एक साधन बढ़ेगा, रोजगार का सृजन होगा और गरीबी दूर होगी। साथ ही गाय की रक्षा का पुण्य कार्य भी संपन्न होगा।
गोमय से प्राप्त फाइबर से अच्छा कागज बनता है। इसके अनेक सफल प्रयोग देश में किए जा चुके हैं। आज अधिकांश कागज भूसे से बनाया जा रहा है जोकि वास्तव में पशुओं का आहार है। यदि गोमय के फाइबर का उपयोग कागज उद्योग में किया जाए तो इससे पशुओं का चारा तो बचेगा ही, गोमय के अच्छे दाम मिलने से किसानों को गाय के पालन में आसानी हो जाएगी। कागज कंपनियों को कागज के निर्माण के लिए पेड़ों की बजाय गोबर के फाइबर का उपयोग करने की राय दी जाए।
संसदीय कार्य मंत्रालय 
केंद्र और राज्य स्तर पर स्वतंत्र गौ मंत्रालय गठित हों। इसके कार्य व अधिकारों की व्याख्या पृथक से दी जा सकती है।
शिक्षा मंत्रालय
ग्रामीण क्षेत्रों के युवा वर्ग के लिए लिए प्रारम्भिक गोपालन की शिक्षा का योजना ब( कार्य होना चाहिए। शिक्षा का व्यक्ति के व्यावहारिक जीवन से संबंधित होना आवश्यक है। जिस देश की 60 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या कृषि और पशुपालन पर आश्रित हो, वहां की शिक्षा में इन दोनों विषयों का अभाव ठीक नहीं है। इसलिए स्वरोजगार की दृष्टि से प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में कृषि के साथ गोपालन का भी समावेश हो। वास्तव में शिक्षा को  और उपयोगी बनाने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है। 
उपाधि मिलने से पूर्व स्नातकोत्तर कृषि और पशुपालन के विद्यार्थियों को ग्रामीण क्षेत्रों और योजनाओं में कम से कम दो वर्ष का प्रशिक्षण अनिवार्य किया जाए। 
सूचना एवं प्रसार मंत्रालय
भारत सरकार की विभिन्न नई नीतियों पर राज्यसभा और मीडिया में व्यर्थ के बवाल को 
रोकने के लिए जनमत बनाने के लिए सामान्य समाज को सूचित और शिक्षित करने की अत्यंत आवश्यकता है। गौ के आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य और पर्यावरण के महत्व को साधारण शिक्षित समाज भी नहीं जानता। गोरक्षा, गोहत्या निषेध को धर्म और धार्मिक आस्था से जोड़ कर देखने की बजाए समाज के स्वास्थ्य और विकास  से जुड़ा देखने की आवश्यकता है। इसके लिए दूरदर्शन के चैनलों पर गाय पर आधारित डाक्यूमेंट्री फिल्में दिखाई जाएं। गो कृषि के विषय को धारावाहिक रूप से प्रसारित 
किया जाए।
पर्यावरण और वन मंत्रालय 
विशाल जनसंख्या के कारण सिमटती वनभूमि आदि के कारण हो रहे चारे के अभाव को दूर करने हेतु चारा खेती को सरकारें विशेष अनुदान दें। वनों में गोचारण पर प्रतिबंध दूर हो। एक शोध में यह साबित किया जा चुका है कि गाय में मिट्टी को पहचानने की क्षमता होती है। वह मिट्टी को सूंघ कर पता लगा लेती है कि कहां की मिट्टी की उत्पादकता कम है, फिर वह वहां अधिक गोबर करती है। इस शोध में उसे एक वैज्ञानिक कहा गया है। इसलिए गोचारण से वनों का संरक्षण होता है , नाश नहीं।
ऊर्जा मंत्रालय
आज देश की ऊर्जा जरूरतें बढ़ रही हैं और उन जरूरतों को पूरा करने के लिए देश की नदियों, पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के साथ-साथ देश के स्वाभिमान की भी बलि चढ़ानी पड़ रही है। यदि गोवंश के रूप में उपलब्ध पशु ऊर्जा को विकसित किया जाए तो इन सबसे बचा जा सकता है। परिवहन के साधन के रूप में आज भी हम बैलों पर निर्भरता का विकल्प नहीं ढूंढ पाए हैं। हालात ऐसे हैं राजधानी दिल्ली में भी बैलगाडियां चलती खूब दिखती हैं। ऐसे में उसे नकार कर अन्य विकल्पों में देश का धन बर्बाद करने का कोई औचित्य नहीं है। भारत के 6 लाख गांवों में से अधिकांश में यातायात योग्य डामरवाली सड़कें नहीं हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में जहाँ घोड़े कदम नहीं रख सकते, बैल आसानी से गाड़ियां खींच सकते हैं। बैलगाड़ियों का संवर्धन किया जाए तो सड़कों के निर्माण और उनके बारंबार किये जाने वाले पुनरू(ार पर होने वाले खर्च को सीमित किया जा सकता है।
परिवहन के अतिरिक्त गोवंश से प्राप्त गोबर से बनाई गई गैस से बिजली का उत्पादन तो आज काफी प्रसि( हो चुका है। पड़ोसी देश नेपाल में सभी 75 जिलों में गोबर गैस से बिजली बनाई जा रही है और इससे घर-घर में रसोई गैस की समस्या का समाधान किया जा रहा है और बिजली भी उपलब्ध कराई जा रही है। इसके लिए उसे अंतरराष्ट्र्रीय एशडेन पुरस्कार भी मिला है। नाभिकीय ऊर्जा जैसे खतरनाक साधनों पर दिमाग चलाने की बजाय यदि सरकार गोबर गैस पर काम करे तो इससे गांवों में रोजगार का भी सृजन होगा और बिजली भी मिलेगी। एलपीजी पर देश की निर्भरता को समाप्त करने के लिए गोबर गैस से बढिया और कोई विकल्प नहीं है। इसके अलावा गोबर गैस से ऑटो रिक्शा चलाने का प्रयोग भी सफल रहा है। कहा जा सकता है कि गाय व गोवंश के साथ-साथ पशुपालन देश की पूरी अर्थ व्यवस्था को सुधार सकते हैं। इसलिए
1. पशुऊर्जा के रूप में बैलों के उपयोग पर ध्यान दिया जाए और बैल चालित उपकरणों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाए।
2. गोबरगैस के प्रयोग को बढ़ाने हेतु गोबरगैस संयंत्र निर्माण पर सरकार अनुदान दे।
स्वास्थ्य मंत्रालय
गोमूत्र का चिकित्सा में उपयोग तो आज विश्व प्रसि( हो चुका है। इस पर गोसंवर्धन केंद्र, 
नागपुर ने अमेरिका में कई पेटेंट भी लिए हैं। गोमूत्र से औषधियों के निर्माण और उनका कैंसर जैसे भयावह रोग पर सफल प्रयोग अनेक गौशालाओं ने किया है और कर रही हैं।  गोमूत्र के अर्क और घनवटी के संयोजन से अनेक दवाओं का निर्माण और प्रयोग अनेक रोगों की चिकित्सा के लिए सफलतापूर्वक किया जा रहा है। इसके अलावा, गोदूग्ध, गोघृत आदि का चिकित्सकीय उपयोग तो आयुर्वेद में भी वर्णित है ही। इसलिए 1. पंचगव्य चिकित्सा को आयुर्वेद से भिन्न एक स्वतंत्र शाखा के रूप में स्वीकार किया जाए। इसे आयुष मंत्रालय के अधीन भी किया जा सकता है। 
2. पंचगव्य चिकित्सा के विकास के लिए अनुसंधान और दवाओं के निर्माण पर सरकार अनुदान दे। 

गौमहिमा / पंचगव्य महिमा

ऋग्वेद में गाय को 'मा गामनागामदितिं वधिष्ट' कहा गया है। इसका अभिप्राय है कि गाय अदिति अर्थात अविनाशी अमृतत्व का अंश है। मनुष्य को स्वस्थ, हृष्ट पुष्ट और नीरोग रखना, ईश्वरीय प्रेरणा का कार्य है। जिसके लिए ईश्वर ने अनेकों वनस्पतियों व औषधियों की रचना की है, परंतु यदि कोई व्यक्ति अज्ञान से, आलस्य या प्रमाद से उन वनस्पतियों को या औषधियों को अपने प्रयोग में ना ला सके, तो वह गौमाता का पालन-पोषण कर उसके पंचगव्य से भी अपना काम चला सकता है। जिससे वह निरोग रहेगा। ईश्वर का यह अमृतमयी स्वरूप या तो वनस्पतियों या औषधियों में समाया है या फिर गाय माता में समाया है। इसलिए वह ईश्वर के अमृतत्व का प्रतीक होने से अवध्या है, अदिति है। अमृतत्व स्वयं अमृत होकर औरों को भी अमृत होने का मार्ग दिखाता है। इसकी रक्षा से मनुष्य ही नही सभी प्राणियों की रक्षा की जानी संभव है।


कई रोगों को दूर करता है ‘पंचगव्य’

कई रोगों को दूर करता है ‘पंचगव्य’


गाय से प्राप्त पांच गव्यों के मिश्रण को ‘पंचगव्य’ कहते हैं। पंचगव्य में गाय के ही गव्यों को महत्व क्यों दिया जाता है–

गो का दूध भैस और बकरी के दूध की पौष्टिकता से कम होता है। लेकिन संघटन की दृष्टि से गाय का दूध माता के दूध के समकक्ष होता है। मनुष्य का आहारनाल जितनी आसानी से गाय का दूध पचा लेती है उतनी आसानी से भैंस के दूध को नहीं पचा पाता क्योंकि गाय का दूध ही रोगी, वृद्ध तथा बच्चों को दिया जा सकता है। भैस के दूध से इन लोगों को कब्जियत हो सकती है। इसीलिए पंचगव्य में गौमाता के दूध, दही और घी का प्रयोग किया जाता है।

गौमाता का दूध पीने से मस्तिष्क तथा तंत्रिकातंत्र की कोशिकाओं की बढ़त, रखरखाव तथा मरम्मत होती है। जिन्दगी भर गौ दुग्ध पान करने वालों को कैंसर तथा खासतौर पर माताओं और बहनों को स्तन का कैंसर नहीं होता। गाय का दूध अन्य प्राणियों के दूध से अधिक गुणकारी होता है। इसलिए ‘पंचगव्य’ में गाय के दूध का प्रयोग होता है।

डॉ. ई. वैडीवेल की एक शोध के अनुसार चारा, दाना और पानी के साथ जो विषाक्त पदार्थ गोमाता खाती हैं उन्हें वह कभी भी अपने दूध, मूत्र या गोबर के माध्यम से बाहर नहीं निकालती जबकि बकरी, भैंस तथा सभी पशु विषाक्त पदार्थों को दूध, मूत्र तथा गोबर से बाहर निकाल देते हैं। उक्त प्रक्रिया के कारण गाय का दूध, मूत्र तथा गोबर पवित्र, पोषक तथा औषधिगुणों से युक्त माना गया है। जल, पृथ्वी, वायु, आकाश और अग्नि से पंच महाभूत शरीर की रचना होती है। पांचों तत्व सभी प्राणियों में भिन्न-भिन्न मात्रा में पाया जाात है, लेकिन गौ माता के शरीर में पांचों तत्व संतुलित मात्रा में पाया जाता है इसलिए गाय में दैविक शक्ति अधिक होती है।

वैदिक ग्रन्थों के अनुसार गौ माता के शरीर में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास माना गया है। अगर यह सत्य है तो इससे उत्पन्न होने वाले दूध, मूत्र तथा गोबर किसी न किसी देवी-देवता के सान्निध्य से गुजरते हैं। मान्यताओं के अनुसार गोबर में लक्ष्मी, गोमूत्र में गंगा तथा दूध में सरस्वती का निवास है। इसीलिए कहा जाता है कि गो दुग्ध के सेवन से बुद्धि तीव्र होती है। दूसरे अर्थों में गो दुग्ध में सोम, दही में वायु, गोबर में अग्नि तथा गोमूत्र में वरुण देव का निवास माना गया है। अत: गाय का दूध, मूत्र तथा गोबर दिव्य शक्तियों वाले माने जाते हैं।

‘पंचगव्य प्राशनम्‌ महापातक नाशनम्‌’

पंचगव्य को सर्वरोगहारी माना गया है। अलग-अलग रूपों में प्रत्येक गव्य त्रिदोष नाशक नहीं हैं। परन्तु पंचगव्य के रूप में एकात्मक होने पर यह त्रिदोषनाशक हो जाता है। अत: त्रिदोष से उत्पन्न सभी रोगों की चिकित्सा ‘पंचगव्य’ से सम्भव है।

पंचगव्य एक अच्छा प्रोबायोटिक है। प्रोबायोटिक रोग न उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर मनुष्य को उपयोगी किस्म का फ्लोरा उपलब्ध कराते हैं। प्रोबायोटिक शरीर की व्याधियों को कम करके प्राणी की उत्पादन क्षमता, प्रजनन क्षमता ओज और रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाते हैं। पंचगव्य एक अच्छा एन्टीआक्सीडेन्ट तथा एक अच्छा विषशोधक है। पंचगव्य में मौजूद घी विष शोधक का कार्य करता है। उपर्युक्त गुणों के अतिरिक्त पंचगव्य का प्रयोग रक्तचाप, शुगर, मिर्गी तथा अन्य बहुत से रोगों में भी लाभकारी हैं इस प्रकार से सर्वविदित है कि कैंसर जैसे रोगों के अलावा अन्य कई रोगों में भी ‘पंचगव्य’ की भूमिका महत्वपूर्ण है।

पंचगव्य एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था

पंचगव्य एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था

हमारे देश की 70 प्रतिशत से ज्यादा जनता ग्रामीण क्षेत्र में रहती है। प्रचीन काल से ही हमारे गाँव आर्थिक, सामाजिक एवं व्यावसायिक तौर से आत्मनिर्भर थे। परंतु आजकल नजारा बदल गया है। बड़े-बड़े कारखाने खड़े कर दिए गए है। गाँवों को कच्चा माल देने वाला एक माध्यम बना लिया है। गाँव के अंदर जो अनेक कारीगर थे बढ़ई, लुहार, राजमिस्त्री, उन सब लोगों की रोजी-रोटी छिन गई। गाँव के लोग बेकार हो गए हैं और शहर की तरफ दौड़ने के अलावा उनके पास और कोई चारा भी नहीं है। शहर में भी कोई काम न मिलने के कारण वे अनेक गैरकानूनी कामों में लिप्त हो गए है। भारत की अर्थव्यवस्था जो सदियों से कायम थी, छिन्न-भिन्न हो गई है।

पंचगव्य
प्राचीन काल से ही गाय को पूरे भारत वर्ष में माता की तरह पूजा जाता है। यह किसी करुणा वश या प्रेम भाव में बहकर नहीं किया जाता। अपितु हमारे पूर्वजों ने गाय के महत्त्व को समझा एवं सब कुछ जानने के बाद ही वह इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि गाय में पूरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सम्भालने की क्षमता है। आयुर्वेद में प्राचीन काल से गाय दूध, घी, दही, गोमूत्र, गोमय (गोबर) आदि का स्थान-स्थान पर महत्त्व बतलाया गया है। इन द्रव्यों को आयुर्वेद में 'गव्य' कहा गया है। पाँचों को मिलाकर पंचगव्य कहते हैं। हमारा भारत वर्ष अभी कितनी ही अनगिनत समस्याओं से जूझ रहा है। इस वर्तमान अर्थव्यस्था में गोपालन एवं पंचगव्य ही एकमात्र ऐसी शक्ति है, जो हमारे गाँव को पुनः आत्मनिर्भर बना सकती है। पंचगव्य एंव गोपालन ग्रामीण कृषि, ऊर्जा स्रोत, चिकित्सा, घरेलू उपयोगी वस्तुएँ, रोजगार आदि का मूल आधार बने तो हमारे ग्रामीण क्षेत्रों का नजारा ही बदल सकता है।
पंचगव्य एवं कृषि
गाय के गोबर से सर्वोत्तम खाद तथा गोमूत्र से कीट नियंत्रक औषधियाँ निर्मित होती हैं—यह एक अभिप्रमाणित तथ्य है। गौ आधारित कीटनाशक तथा जैविक खाद कम खर्च में तथा ग्रामीण क्षेत्रों में ही तैयार किए जा सकते हैं। यह भी प्रमाणित हो चुका है कि जैविक खाद एवं कीटनाशक जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं एवं यह पर्यावरण मित्रवत भी है। इनसे उत्पादित पदार्थों की गुणवत्ता, पौष्टिकता एवं प्रति यूनिट उत्पादन क्षमता में निरंतर वृद्धि होती है। जैविक खादों में कम लागत व गुणोत्तर उत्पादन से सकल आय में बढ़ोत्तरी होती है। जैविक खेती गाँवों के बेरोजगार लोगों को रोजगार के नए अवसर भी प्रदान करती है। कई पश्चिमी देश भी रासायनिक विधि को छोड़कर जैविक खेती की ओर जा रहे हैं।
भारत में कृषि क्षेत्र छोटे-छोटे वर्गों में बँटा हुआ है, जहाँ हरेक के लिए ट्रैक्टर रख पाना सम्भव नहीं है। कई शोधों द्वारा यह पता चला है कि ट्रैक्टर के प्रयोग से हमारी धरती की उर्वरा शक्ति कम हो रही है तथा यह प्रदूषण का भी कारण है। बैलचालित आधुनिक ट्रैक्टर द्वारा इन सब समस्याओं का हल किया जा सकता है। यह भी प्रमाणित हो चुका है कि भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों के लिए बैलचालित ट्रैक्टर ही आर्थिक तौर पर सही है।
पंचगव्य ग्रामीण ऊर्जा का स्रोत
भारत वर्ष में कृषि, व्यावसायिक व घरेलू उपयोग में प्रयोग की जा रही ऊर्जा का मुख्य स्रोत पेट्रोलियम है। इसके लिए हमें विदेशों पर आश्रित रहना पड़ता है। कुल गोवंशीय पशुओं से हमारे देश में लगभग 11,500 लाख टन गोबर प्रतिवर्ष मिलता है। यदि इस गोबर से बायोगैस प्लांट संचालित किया जाए तो हमारी अधिकांश ऊर्जा समस्या समाप्त हो जाएगी और हमें किसी पर आश्रित भी नहीं रहना पड़ेगा। 
गोबर गैस संयंत्र अनुपयोगी गोवंश के गोबर से भी चलाया जा सकता है। इससे प्राप्त गैस का प्रयोग ईंधन व रोशनी के लिए किया जा सकता है, जिससे वनों की कटाई के दबाव को कम किया जा सकता है और पेट्रोलियम की खपत भी कम की जा सकती है। ग्रामीणों को बिना धुएं का स्वच्छ ईंधन भी मिल जाएगा। गोबर गैस संयंत्र से जेनरेटर चलाकर बिजली भी पैदा की जा सकती है। कृषि के सभी कार्यों के साथ-साथ भारवाहन यातायात का मुख्य स्रोत गाँवों में बैल ही है। बैलचालित ट्रैक्टर, बैलचालित जेनरेटर तथा बैलगाड़ी के प्रयोग से गाँव की वर्तमान स्थिति को बदला जा सकता है जो कि पेट्रोलियम पर आधारित है। इनके प्रयोग से रोजगार के अवसर भी खुलेंगे।
बायोगैस बॉटलिंग पर भी आजकल शोध चल रहे हैं। वैज्ञानिकों ने इस पर भी काफी सफलता हासिल कर ली है। इसके पूरा हो जाने पर बायोगैस को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने के लिए पाइपों की जरूरत नहीं पड़ेगी।
पंचगव्य चिकित्सा
दवाओं, डॉक्टरों और अस्पतालों पर आजकल करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं फिर भी रोग और रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। गाँवों के गरीब महंगी आधुनिक चिकित्सा कराने में असमर्थ हैं। हमारा आर्ष साहित्य गो महिमा से भरा हुआ है। अब विज्ञान भी गोबर व गोमूत्र के गुणों को समझने लगा है। आयुर्वेद शास्त्र में गोदुग्ध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र की स्वास्थ्य संरक्षण एवं संवर्धन के संबंध में असीम महिमा वर्णित की गई है। अधिकतर सभी रोगों का इलाज 'पंचगव्य' चिकित्सा में मौजूद है। इससे सम्बन्धित कई प्रमाण वैज्ञानिकों ने पेश किए हैं। गोमूत्र में ताम्र, लौह, कैल्शियम, फास्फोरस और अन्य खनिज जैसे—कार्बोलिक एसिड, पोटाश और लैक्टोज नामक तत्व मिलते हैं। गोबर में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, आयरन, जिंक, मैग्जीन, कॉपर, बोरीन, मालीन्डनम आदि तत्व पाए जाते हैं, इन तत्वों के कारण गोमूत्र-गोबर से विविध प्रकार की औषधियाँ बनती हैं और यह सभी प्रकार के रोगों पर काम करती है।
पंचगव्य एवं मनुष्य का पोषण
गाय का दूध किसी भी अन्य दूध के मुकाबले ज्यादा श्रेष्ठ है इसीलिए आज भी डॉक्टर नन्हें-मुन्हें बच्चों को ऊपर का दूध पिलाने के लिए गाय के दूध की ही सलाह देते हैं। गाय के दूध में वसा, कार्बोहाइट्रेट, प्रोटीन के अलावा अन्य एन्जायम पाए जाते हैं जो हमारे भोजन को सुपाच्य बनाते हैं। धरती पर दूध ही एक ऐसा तत्व है जिसे पूर्ण आहार माना गया है। इसमें हमारे शरीर के विकास व वृद्धि के लिए आवश्यक सभी तत्व उपलब्ध हैं। दूध एवं दूध के अन्य उत्पाद से गाँव में रोजगार के काफी अवसर खुल जाएंगे।
पंचगव्य घरेलू उपयोगी वस्तुएँ
गोमूत्र व गोमय की विशिष्टताओं के कारण न केवल उनका प्रयोग रोगों के शमन के लिए किया जा सकता है बल्कि अनेक ऐसे उत्पाद बनाए जा सकते हैं जो कुटीर उद्योग व ग्रामोद्योग का आधार बन सकते हैं। इससे त्वचा रक्षक साबुन, दंतमंजन, डिस्टेम्पर, धूपबत्ती, फिनायल, शैम्पू, उबटन, तेल, मच्छर विनाशक, मरहम आदि बनते हैं। इन सभी वस्तुओं का उत्पादन गौशालाएँ आयुर्वेद के आधार पर कर रही हैं, जिनका संतुष्टी विश्लेषण भी किया गया है। इस रिपोर्ट के हिसाब से सभी उपभोक्ता 80-90 प्रतिशत संतुष्ट हैं तथा सभी ने इन वस्तुओं के अनेक फायदे भी बताए हैं।
पंचगव्य एवं रोजगार
उपर्युक्त सभी बातों से यह स्पष्ट हो चुका है कि अगर गोवंश को ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार बनाया जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों की कई समस्याओं के साथ रोजगार की सबसे बड़ी समस्या भी दूर हो जाएगी, फिर से गाँव आत्मनिर्भर हो जाएंगे तथा जो अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई थी फिर से कायम हो जाएगी।
वैज्ञानिक विश्लेषण
आज गोवंश एंव पंचगव्य के महत्त्व को सारे विश्व ने माना है। इसके कुछ प्रमाण, संक्षेप में इस प्रकार हैं :
1. अभी हाल ही में अमेरिका ने गोमूत्र का पेटेंट नं. 6410059 दिया है। पेटेंट का शीर्षक है, 'फार्मास्युटिकल कम्पोजीशन कन्टेनिंग काऊ-यूरीन डिस्टीलेट एण्ड एन एन्टीबायोटिक' एन्टीबायोटिक्स औषधियों तथा कैंसर-रोधी दवाओं की खुराक की मात्रा में पर्याप्त कमी करना उसका प्रत्यक्ष प्रभाव है जो जीवाणुओं को अधिक सशक्त करता है। आज इसके लिए सोलह वैज्ञानिक सहायक शोधकर्ता के रूप में सतत संलग्न हैं।
2. गाय के दूध में रेडियो विकिरण (एटॉमिक रेडिएशन) से रक्षा करने की सर्वाधिक शक्ति होती है। —शिरोविच रूसी वैज्ञानिक
3. गोमूत्र एक सशक्त कीटनाशक है—यह एक अभिप्रमाणित तथ्य है। कई किसानों ने भी इसे अपने खेतों में प्रयोग करके प्रमाण दिया है।
4. गोबर तथा इससे बने जैविक खाद धरती की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं। गो-आधारित कृषि, रासायनिक कृषि से बेहतर है तथा अक्षय विकास का एकमात्र उपाय है। (किसानों द्वारा प्रमाण दिए गए हैं)
5. पंचगव्य चिकित्सा किडनी की बीमारियों, कैंसर, चमड़ी की बीमारियों आदि में लाभदायक। (क्लिनिकल ट्रायल, आदर्श गोसेवा एवं अनुसंधान प्रकल्प, अकोला एवं गोविज्ञान अनुसंधान केंद्र, नागपुर)
6. माइटोसीन-सी जो एक सशक्त एंटी-ट्यूमर एजेंट है, डी.एन.ए. को छोटा कर देता है। इस पर गोमूत्र अर्क का लाभदायक असर देखा गया है। (गोविज्ञान अनुसंधान केंद्र, नागपुर)
7. गोधृत (घी) शरीर की रोगों से लड़ने की शक्ति को बढ़ाता है, घावों को जल्दी भरने में सहायक है तथा यादाश्त बढ़ाने में मदद करता है।
8. गोमूत्र में एंटी-माइक्रोबियल प्रोपर्टी भी है। (रोगाणु से लड़ने की क्षमता)
9. ऐसे और भी बहुत सारे प्रमाण हैं, जिसके आधार पर हम पंचगव्य के महत्त्व को साबित कर सकते हैं, जिन्हें यहाँ लिख पाना संभव नहीं है।
सुझाव
1. पंचगव्य एंव गो आधारित वस्तुओं को गाँवों तक ले जाने में गोशालाएँ, पंचायतें, एन.जी.ओ. प्रचारक आदि सहायता दें। वे सभी अपने-अपने गाँवों के गोवंश को बचाने में, देखभाल करने में तथा रोजगार स्थापित करने में मदद करें।
2. भारतीय देसी नस्ल की गाएं ज्यादा बेहतर हैं क्योंकि वह हमारे मौसम एवं पर्यावरण के हिसाब से ज्यादा बेहतर हैं तथा भारतीय देसी नस्ल को बचाने में तथा गोवंश बढ़ाने में सभी संलग्न व्यक्ति, वैज्ञानिक आदि मदद करें।
3. महिलाएँ ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन में काफी संलग्न हैं तथा उनकी दशा गाँवों में सही नहीं है। महिलाओं को भी रोजगार (गो आधारित) स्थापित करने में शामिल करना चाहिए।
4. पशु चारा का इन्तजाम ग्राम स्तर पर सही तरह से संचालित किया जाए, ताकि गोपालक को किसी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े।
5. सरकार को पंचगव्य आधारित वस्तुओं पर से टैक्स मुक्त कर देना चाहिए ताकि ग्रामीणों को रोजगार स्थापित करने में प्रोत्साहन मिले।
6. पेट्रोलियम और पंचगव्य में कोई लड़ाई नहीं है, परंतु उसका प्रयोग वहीं करना चाहिए जहाँ वह आर्थिक तौर पर लाभदायक है और जहाँ ज्यादा प्रदूषण नहीं है। 
निष्कर्ष
आधुनिकता एवं पश्चिमी देशों के प्रभाव में आकर आज हमने पंचगव्य की महिमा को बिलकुल नकार दिया है। इसके परिणाम हमारे सामने हैं। अगर हमें ग्रामीण क्षेत्रों को रोजगार तथा आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाना है, तो आवश्यकता है पंचगव्य एवं गोवंश के महत्त्व को समझा जाए। पंचगव्य एवं गोवंश के महत्त्व को समझकर, उसके ग्रामीण क्षेत्रों में पुनः स्थापना के प्रयास करने होंगे, एक नए ढंग से, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ किया जा सके।
(लेखकद्वय ग्रामीण विकास एवं प्रौद्योगिकी केंद्र, आई.आई.टी, दिल्ली में क्रमशः सहायक प्रोफेसर एवं शोध छात्रा हैं) 













पंचगव्य (गोमूत्र और गोबर एकत्रित करने के नियम)

पंचगव्य
  1. पंचगव्यों से संबंधी सामान्य नियम : दूध, दही अथवा छाछ, नवनीत (मक्खन) अथवा घी, गोमूत्र एवं गोमय (गोबर) से सर्व गव्य भारतीय गाय के ही लें ।
  2. घी संबंधी नियम : औषधियों में प्रयोग किया जाने वाला घी पारंपरिक पद्धती से, अर्थात दूध से दही जमाना, दही मथकर मक्खन बनाना तथा इस मक्खन को पिघलाकर घी बनाना, इन चरणों में बनाया गया हो ।
  3. औषधियों के लिए गोमूत्र और गोबर एकत्रित करने के 10 नियम
  • गाय की देह से संबंधित 4 नियम
  1. स्वास्थ्य : गोवंश निरोगी होना चाहिए। रोगी गाय-बैलों के गव्य न लें । गाय-बैल के कान ठंडे हों तथा उनके होंठ सूखे हुए हों, तो समझ लें कि वे अस्वस्थ हैं ।
  2. आयु : गोवंश जननक्षम बनने पर अर्थात साधारणतः उनके जन्म के ढ़ाई वर्ष उपरांत ही उनके मूत्र का उपयोग औषधि के लिए करना चाहिए, उसके पूर्व उसका उपयोग न करें ।
  3. आहार : गोवंश दिनभर एक ही स्थान पर बंधा हुआ न रहे । दिन में न्यूनतम 5 घंटे जंगल में चरने वाला हो । चरने वाले गोवंश के मूत्र में ही असाध्य रोगों में लाभकारी औषधीय गुण धर्म होते हैं ।
  4. प्रजनन : बैल का गाय से संगम होने पर 2- 3 दिन गाय का मूत्र औषधि के लिए नहीं लेना चाहिए । गाय प्रसूत तो होने से 45 दिन पूर्व तथा प्रसूत होने के 45 दिन पश्चात उसका मूत्र नहीं लेना चाहिए, क्योंकि इन दिनों में उसके मूत्र में गर्भजनित अशुद्धि रहती है ।
  • काल से संबंधित 3 नियम
  1. तिथि : एकादशी और अमावस्या इन तिथियों पर गोमूत्र और गोमय एकत्रित नहीं करनी चाहिए । एकादशी के दिन चंद्र की किरणें पृथ्वी पर एक विशिष्ट कोण से आती हैं तथा अमावस्या के दिन आकाश में चंद्र दिखाई नहीं देता । इसलिए गोमूत्र पर चंद्र किरणों का संस्कार नहीं होता । पूर्णिमा की रात बना गोमूत्र सर्वधिक फलदायी होता है, क्योंकि उस पर चंद्र किरणों का सुयोग्य संस्कार होता है ।
  2. ऋतु : सूर्य जब पृथ्वी से अत्यधिक दूर होता है अर्थात अत्यधिक शीत रितु में गोमूत्र और गोबर एकत्रित नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसे गोमूत्र में सूर्य की अपेक्षित उर्जा पर्याप्त मात्रा में नहीं होती । वर्षा ऋतु में वातावरण में मेघ छाए हुए होते हैं तथा दिनभर चंद्र-सूर्य दिखाई नहीं देते उस समय गव्य एकत्रित नहीं करने चाहिए ।
  3. ग्रहण : चंद्रग्रहण अथवा सूर्य ग्रहण के दिन भी एकत्रित नहीं करने चाहिए ।
  • गव्यों से संबंधित 2 नियम
  1. भूमि से संयोग : भूमि पर पड़े गव्य औषधि के लिए नहीं लेने चाहिए । उन्हें ऊपर ही झेलना चाहिए ।
  2. संग्रह पत्र : गव्य धातु के पात्रों में एकत्रित नहीं करनी चाहिए । गव्य एकत्रित करने के लिए मिट्टी,कांच अथवा उच्च स्तरीय प्लास्टिक के पात्र का उपयोग करना चाहिए । गोमय के लिए वृक्ष के बड़े पत्ते का अथवा बांस से बनी छोटी टोकरी का उपयोग करना चाहिए ।
औषधियों के लिए गव्यों का उपयोग करना हो, तो गव्य एकत्रित करते समय उक्त नियमों का पालन आवश्यक है । कृषि अथवा गृह उपयोगी उत्पाद अर्थात मच्छर प्रतिबंधक धूपबत्ती और बर्तन स्वच्छ करने वाला चूर्ण बनाने हेतु इन नियमों का पालन करने की आवश्यकता नहीं है ।
  • गोपालक की श्रद्धा से संबंधित एक नियम
  1. गव्य एकत्रित करते समय गौ माता साक्षात देवता है, ऐसा गोपालक का भाव होना चाहिए । गव्य एकत्रित करने से पूर्व गौ माता से भावपूर्ण प्रार्थना करें ।
  • गोमूत्र कब और कैसे एकत्रित करें? : गोमूत्र एकत्र करने के 10 नियमों का पालन करें और गाय जब मूत्र करे तब उसे एकत्र करें ।
    • गोमूत्र लेने के लिए जाते समय-मन-ही मन गाय के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर आगे दी हुई प्रार्थना करें ।‘ हे गौमाता, आपका मूत्र साक्षात अमृत ही है । आपकी कृपा से मैं औषधि बना सकता हूं । ‘आपसे मिलने वाले इस अमृत से रोगी के रोग दूर हों’, यह आपसे प्रार्थना है ।
    • सामान्यतः दूध देने के पहले गाय एक बार गोमूत्र देती है । प्रातः और सायं गाय का दूध निकालते समय गोमुत्र इकट्ठा करें ।
    • सायंकाल गाय का दूध निकालने के पश्चात रात में 3-3 घंटे पर गाय को उठाकर मूत्र त्यागने का अभ्यास कराया जा सकता है । सायंकाल 6:00 बजे दूध दूहने के पश्चात रात में 9,12 और 3 बजे गोमूत्र इकट्ठा करें ।
    • गाय बैठी हो, तब उसे प्रेम से थपथपा कर उठाएं । उसके उठने पर उसकी पीठ को धीरे-धीरे थपथपाएं अथवा मूत्र मार्ग को धीरे से उंगली लगाएं । इससे गाय को मूत्र करने की उत्तेजना मिलती है और वह मूत्र करने लगती है । इस प्रकार अभ्यास कराने पर गाय निर्धारित समय पर मूत्र करने लगती है ।
    • गाय का अभ्यास होने तक आरंभ में कुछ दिन गोमूत्र अल्प मिलता है । एक बार अभ्यास हो जाने पर ‘गोपालक मूत्र लेने के लिए आया है’, यह समझने पर वह अपने आप खड़े होकर मूत्र करने लगती है । कभी-कभी हमें गाय के पास पहुंचने में विलंब हो जाता है, तब वह हमारे पहुंचने तक मूत्र रोके रहती है । गाय से हम जितना प्रेम करते हैं उस से दस गुना वह हम से प्रेम करते हैं ।
  • एकत्र किए गोमूत्र का उपयोग और भंडारण
  • पीने के लिए ताजे गोमूत्र का उपयोग करें ।
  • रात में एकत्र किए गए गोमूत्र को प्रातः सूर्योदय के पहले अर्क यंत्र में डालकर गोमूत्र चंद्रमा अर्क बनाना आरंभ करें ।
  • शेष बचे गोमुत्र को अच्छी श्रेणी के प्लास्टिक के पीपों में भरकर रखें । इस गोमूत्र का उपयोग अन्य औषधियां बनाने हेतु कर सकते हैं ।
  • गोठे की नाली से बहने वाले गोमूत्र का उपयोग क्रषि के लिए करें ।

गो-चिकित्सा पद्धति

गो-चिकित्सा पद्धति

गो-चिकित्सा पद्धति वह उपचार-पद्धति है, जिसके अन्तर्गत मानव अथवा मवेशियों की बीमारियों का उपचार गो-उत्पादों से किया जाता है, जैसे पंचगव्य। अर्थात् गाय से मिलने वाली पांच वस्तुएं दूध, घी, दही, मूत्र और गोबर। हमारे प्राचीन आयुर्वेद साहित्य में इसे पंचगव्य-चिकित्सा का नाम दिया गया। हालके वर्षो में विश्व के वैज्ञानिक समुदाय में भारतीय तकनीकी जानकारी के विकास या उसकी वैज्ञानिक वैधता स्थापित करने में रूचि पैदा हुई , ताकि एक वैकल्पिक उपचार-पद्धति या रोगनिवारक पद्धति के रूप में उसे स्थापित किया जा सके। आधुनिक ऐलोपैथिक उपचार, विशेषकर सूक्ष्म जीवाणुओं में प्रतिरोध क्षमता विकसित होने और आनुष्गिक प्रभावों (साइड इफेक्ट्स) की प्रवृत्तियों से स्पष्ट हुआ है कि वैकल्पिक चिकित्सा-पद्धति के अन्वेष्णपर न केवल भारत में, बल्कि विश्व-स्वास्थ्य-संगठनद्वारा भी ध्यान दिया जा रहा है। डब्ल्यू.एच.ओ. ने ऐसी पद्धतियों को मान्यता भी प्रदान की है। वास्तव में पश्चिमी जगत् में भी वैज्ञानिकों को जीवाणुओं में विभिन्न औषधियों की प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने, खाद्य-खला में एंटीबायोटिक अवशेष विद्यमान रहने और मनुष्य में सम्बद्ध एलर्जी तथा स्वत: रोगप्रतिरक्षण-विकृतियां पैदा होने की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
     विश्व-स्वास्थ्य-संगठन के अनुसार 20वीं सदी की आश्चर्यजनक औषधियाँ-’एंटिबॉयोटिक्स’ सन् 2020 ई . तक प्रभावकारी नहीं रहेंगी और लगभग बेअसर हो जायेंगी, तब फिर संक्रमण यानी इन्फैक्शन्सपर नियन्त्रण करने के लिए मानव को वैकल्पिक उपचार-पद्धतियों पर विचार करना होगा। वास्तव में ज्यादातर एंटीबोयाटिक दवाओं का स्वरूप बैक्टीरियोस्टेटिक होता है और वे बैक्टीरियाकों मारती नहीं हैं, बल्कि उनकी बढ़ोतरी रोकती हैं या उस पर अंकुश लगाती हैं और बैक्टीरिया का अन्त शरीर के स्वयं के रक्षातन्त्र, जिसे ‘फैगोसिटिक सिस्टम’ कहा जाता है, के माध्यम से होता है। इसमें मैक्रोफैगस (रक्त के मोनोसाइट्स) की अहम भूमिका होती है।
     पिछले कुछ वर्षो में यह देखा गया है कि पर्यावरण प्रदूषण और भोजन में कीटनाशकों, भारी धातुओं, फंगल टॉक्सिन्स आदि की मौजूदगी के कारण इन मैक्रोगफैगसकी सक्षमता में भारी कमी आयी है। इसकी वजह खेती में कृषि-रसायनों का भारी उपयोग और अनाज का संग्रह ठीक से न किये जाने को बताया गया है। मैक्रोफैगसकी कार्यप्रणाली में अक्षमता के कारण एंटीबोयाटिक दवाएं बेअसर हो रही हैं, बैक्टीरिया में प्रतिरोधक क्षमता का विकास हो रहा है। इन्फैक्शन पुन: सक्रिय हो रहे हैं और किसी भी व्यक्ति की रोग-प्रतिरक्षण-क्षमता के स्तर में कमी आ रही है। हालके अनुसन्धों से पता चला है कि गो-मूत्र व्यक्ति की प्रतिरक्षण-क्षमता के स्तर को बढ़ाता है। उससे मैक्रोफैगसको सक्रिय बनाने और उनकी बैक्टीरिया निगलने और नष्ट करने की क्षमता बढ़ाने में मदद मिलती है। इस अनुसंधान से चिकित्सा विज्ञान में एक नये अध्याय का सूत्रपात हुआ और वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद-सी.एस.आर्इ.आर. ने गोमूत्र के बॉयो क्षमता बढाने वाले गुणों और क्षयरोगियों उपचार में उसकी उपयोगिता के बारे में अमेरिका से पेटेण्ट हासिल किया है। क्षयरोग के उपचार की परम्परागत औषधियों के साथ-साथ अगर रोगी गोमूत्र का भी सेवन करे तो क्षयरोग-प्रतिरोधी दवा की मात्रा कम होने पर भी उसका असर बढ़ जाएगा। इससे उपचार की लागत में कमी आयेगी और रोगी को स्वस्थ होने में समय भी कम लगेगा।
     हाल ही में अनुसंधानकर्ताओं ने यह पाया है कि एंटीबॉयोटिक के साथ गोमूत्र-पान करने से रोगाणुओं में प्रतिरोध क्षमता विकसित नहीं होती। यह माना जा रहा है कि गोमूत्र आर-फैक्टरको अवरुद्ध कर देता है। आर-फैक्टर एंटीबैक्टीरियल प्रतिरोध के विकास के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया के प्लैज्मिड जेनोम का हिस्सा है। सी.एस.आर.आर., अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, जी.बी.पंत विश्वविद्यालय, पंतनगर और भारतीय पशु-चिकित्सा अनुसंधान संस्थानसहित विभिन्न प्रयोगशालाओं और गैर-सरकारी संगठनों के कई वैज्ञानिक गौमूत्र के विभिन्न औषधीय गुणों पर अनुसंधान कर रहे हैं। वास्तव में गैर-सरकारी संगठनों के पास गोमूत्र से बनी कई औषधियों का विपणन भी कर रहे हैं और कुछ स्वैच्छिक संगठन तो इन दवाओं की मांग पूरी भी नहीं कर पा रहे हैं। यह देखा गया है कि गोमूत्र शरीर की रोग-प्रतिक्षण-क्षमता और संक्रमणों से लड़ने की प्रतिरोध क्षमता को बढ़ा देता है। गोमूत्र में एंटीऑक्सिडेण्ट गुण होते हैं और यह फ्री रेडिकल्सपर अनुक्रिया के जरिये शरीर में उत्पन्न ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस को सामान्य बनाता है। यह भी सिद्ध हुआ है कि गोमूत्र से क्षतिग्रस्त डी.एन.ए. की मरम्मत होती है और इस तरह यह कैंसर के उपचार में कारगर है। वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है कि कीटनाशक बहुत कम मात्रा में लेने पर डी.एन.ए. के विखण्डन के जरिये रक्त और टिश्युओं के लिम्फोसाइट्स में अपोपटोसिस (सेल नष्ट होना) को अंजाम देते हैं और गोमूत्र लिम्फोसार्इट्स को आत्महत्या से रोकने और अपना अस्तित्व बनाये रखने में सहायता करता है। इसके अलावा गोमूत्र पोल्ट्री में पक्षियों की रोग-प्रतिरक्षण क्षमता बढ़ाता है और उन्हें बेहतर संरक्षण प्रदान करता है।

     देश में कई गैर-सरकारी संगठन इस व्यापार में लगे हुए हैं। वे गोमुत्र का अर्क तैयार करते हैं, यानी 50-60 प्रतिशत गोमूत्र आसवन करते हैं। आधुनिक उपकरणों की सहायता से की गयी कैमिकल फिंगरप्रिटिंग से पता चलता है कि भारतीय गायों का मूत्र अधिक असरदार है और संकर गायों, विदेशी गायों, भैंसों आदि के मूत्र में ओषधिय गुण लगभग शून्य या अत्यन्त अल्प ही पाये जाते हैं। भारतीय गायों के मूत्र में रसायन-तत्व मौजूद हैं जो प्रतिरक्षण-प्रणाली को मॉडयूलेट करने और बायो तत्व बढ़ाने में मददगार हैं। केवल गोमूत्र ही आश्चर्यजनक उत्पाद नहीं है, बल्कि गायके दूध, घी, दही और अन्य उत्पाद भी विभिन्न बीमारियों के उपचार और अन्य कायोर में समान रूप से असरदार हैं। गोमूत्र और उसमें नीम की पतियां मिलाकर अद्भुत जैव कीटनाशक तैयार किया जा सकता है। ऐसे जैव कीटनाशक इस्तेमाल की दृष्टि से सुरक्षित हैं, जो भोजन-श्रंखला में एकत्र नहीं होते और वास्तव में रासायनिक कीटनाशकों की भांति नुकसानदायक भी नहीं होते । गायका गोबर बेहतरीन खाद का काम करता है और अगर उसे प्रोसेस करके वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया जाए तो एक बड़े खेत के लिए वर्मी कम्पोस्ट की थोड़ी सी मात्रा पर्याप्त रहती है। इसी प्रकार गाय के दूध, घी और दही से अनेक दवाईया तैयार की जाती हैं, किन्तु समस्या है इन उत्पादों की वैज्ञानिक वैघता सिद्ध करने की ।

     इस्तेमाल करके फायदा उठाने वालों के दावे अनेक हैं, किन्तु उन दावों की वैज्ञानिक वैधता अपेक्षित हैं। एलोपैथी दवाओं के बोझ से तंग आये लोग गो-चिकित्सा पद्धति की औषधियों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस तरह वैज्ञानिक वैधता के बिना ही लोग इन उत्पादों का इस्तेमाल करके उनसे लाभ उठा रहे हैं।

गाय हम सब की मां।

गाय हम सब की मां।
दुग्धाहार, श्रेष्ठाहार- दूध स्तनधारी प्राणियों के लिये वरदान है उस ईश्वर का जिसने दुनिया में उन्हें भेजा। गाय के साथ-साथ भैंस और बकरी के दूध का भी हम इस्तेमाल करते हैं। शायद ही ऐसा कोई मनुष्य हो जो दूध का पान किए बगैर ही बड़ा हो गया हो। “मातृ क्षीरंत अमृतं शिशुभ्य:” मां का दूध बच्चे के लिये अमृत है।
गौमाता की सुरक्षा के लिए संकल्प लीजिए, गौमाता की पूजा के लिये संकल्प लीजिए। चाहे किसी भी जाति सम्प्रदाय के हों, दूध पीने की आदत डालें। प्रक्रिया जो भी हो, मांस लाल होता है, दूध सफेद होता है। सफेद यानी शांति का प्रतीक। यह भी ईश्वर का एक संकेत ही है।
गाय को लेकर विशेष चर्चा इसलिए है कि गाय को बचाने के प्रयास हो रहे हैं। गाय हमारी माता है। हम सब उसके बच्चे हैं, उसके दूध पर आश्रित हैं। गाय का दूध गिलास में लेकर हम पीते हैं तो यह पुष्टिका है, कम से कम इतना तो कहा जा सकता है। गाय के दूध की उपयोगिता का वर्णन प्राय: असंभव है। ये बड़ी-बड़ी डेयरियां कहां से चलती हैं? ये पकवान कहां से बनते हैं? ये चाकलेट कहां से बनती है? ये मिठाइयां कहां से बनती हैं? स्वादिष्ट पनीर, दही, मावा सब के सब दूध से ही ताे बनते हैं। एक तरह से दूध न होता तो संसार नहीं होता।
गौमाता को अपने घर में रखकर तन-मन-धन से सेवा करनी चाहिये, ऐसा कहा गया है जो तन-मन-धन से गौ की सेवा करता है, तो गौमाता उसकी सारी मनोकामनाएँ पूरी करती है।



पंचगव्य

पंचगव्य
पंचगव्य का धार्मिक महत्व
इसे विविध रूपों में प्रयोग किया जाता है। हिन्दुओं के कोई भी मांगलिक कार्य इनके बिना पूरे नहीं होते। भारत के गांव-गांव और शहर-शहर में आज भी मांगलिक उत्सवों, पूजा-पाठ में प्रसाद के रूप में पंचगव्य वितरण को ही प्रधानता दी जाती है। गृह शुद्धि और शरीर शुद्धि के लिए पंचगव्यों का प्रयोग किया जाता है। "धर्मशास्त्र" के अनुसार किसी पाप के प्रायश्चित के रूप में पंचगव्यों को पान करने का विधान है। पंचगव्य का पान करने से पहले बोलें - "हे सूर्यदेव! हे अग्निदेव! आप तन, मन, बुद्धि और हड्डियों तक के रोगों को नष्ट करने वाले हैं। मैं इसका पान करता हूँ।" ऐसा 3 बार बोलें। फिर 2-3 घंटे तक कुछ नहीं खाना-पीना चाहिये।

पंचगव्य का चिकित्सकीय महत्व
आयुर्वेद में इसे औषधि की मान्यता है। पांचों का सम्मिश्रण कर यदि विधि पूर्वक उसका प्रयोग किया जाए तो यह हमारे आरोग्य और स्वास्थ्य के लिए रामबाण हो जाता है। पंचगव्य द्वारा शरीर के रोगनिरोधक क्षमता को बढाकर रोगों को दूर किया जाता है। यह सब अलग-अलग और एक सम्मिश्रण के रूप में श्रेष्ठ औषधीय गुण रखते हैं, वह भी बिना किसी परावर्ती दुष्प्रभाव के। इसके अतिरिक्त यदि हम कोई अन्य औषधि ले रहे हैं तो पंचगव्य एक रासायनिक उत्प्रेरक (कैटलिस्ट) का काम करता है।

पंचगव्य के घटक
पंचगव्य का प्रत्येक घटक अपने में पूर्ण, महत्त्वपूर्ण गुणों से संपन्न और चमत्कारिक है।

गाय का दूध (गोदुग्ध)

इनमें गाय के दूध के समान पौष्टिक और संतुलित आहार कोई नहीं है। इसे अमृत माना जाता है। यह विपाक में मधुर, शीतल, वातपित्त शामक, रक्तविकार नाशक और सेवन हेतु सर्वथा उपयुक्त है।

गाय का दही (गोदधि)

गाय का दही भी समान रूप से जीवनीय गुणों से भरपूर है। दही में सुपाच्य प्रोटीन एवं लाभकारी जीवाणु होते हैं जो भूख को बढ़ाने में सहायता करते हैं। गाय के दही से बना छाछ पचने में आसान और पित्त का नाश करने वाला होता है। दूध का प्रयोग विभिन्न प्रकार से भारतीय संस्कृति में पुरातन काल से होता आ रहा है।

गाय का घी (गोघृत)

गाय का घी विशेष रूप से नेत्रों के लिए उपयोगी है। घी का प्रयोग शरीर की क्षमता को बढ़ाने एवं मानसिक विकास के लिए किया जाता है। इसका सेवन कांतिवर्धक माना जाता है।

गाय का मूत्र (गोमूत्र)

महर्षि चरक के अनुसार गोमूत्र कटु तीक्ष्ण एवं कषाय होता है। इसके गुणों में उष्णता, राष्युकता, अग्निदीपक प्रमुख हैं। गोमूत्र प्लीहा रोगों के निवारण में परम उपयोगी है। रासायनिक दृष्टि से देखने पर इसमें नाइट्रोजन, सल्फर, अमोनिया, कॉपर, लौह तत्त्व, यूरिक एसिड, यूरिया, फास्फेट, सोडियम, पोटेशियम, मैंगनीज, कार्बोलिक एसिड, कैल्सियम, क्लोराइड, नमक, विटामिन बी, ऐ, डी, ई; एंजाइम, लैक्टोज, हिप्पुरिक अम्ल, क्रियेटिनिन, आरम हाइद्रक्साइद मुख्य रूप से पाये जाते हैं। गोमूत्र में प्रति ऑक्सीकरण की क्षमता के कारण डीएनए को नष्ट होने से बचाया जा सकता है। गोमूत्र कफ नाशक, शूल गुला, उदर रोग, नेत्र रोग, मूत्राशय के रोग, कष्ठ, कास, श्वास रोग नाशक, शोथ, यकृत रोगों में राम-बाण का काम करता है। चिकित्सा में इसका अन्त: बाह्य एवं वस्ति प्रयोग के रूप में उपयोग किया जाता है। यह अनेक पुराने एवं असाध्य रोगों में परम उपयोगी है। यूरिया मूत्रल, कीटाणु नाशक है। पोटैसियम क्षुधावर्धक, रक्तचाप नियामक है। सोडियम द्रव मात्रा एवं तंत्रिका शक्ति का नियमन करता है। मेगनीसियम एवं कैल्सियम हृदयगति का नियमन करते हैं।

गाय का गोबर (गोमय)

गोबर का उपयोग वैदिक काल से आज तक पवित्रीकरण हेतु भारतीय संस्कृति में किया जाता रहा है। यह दुर्गंधनाशक, पोषक, शोधक, बल वर्धक गुणों से युक्त है। विभिन्न वनस्पतियां, जो गाय चरती है उनके गुणों के प्रभावित गोमय पवित्र और रोग-शोक नाशक है। गाय के गोबर का चर्म रोगों में उपचारीय महत्व सर्वविदित है। अपनी इन्हीं औषधीय गुणों की खान के कारण पंचगव्य चिकित्सा में उपयोगी साबित हो रहा है।

पंचगव्य का निर्माण
सूर्य नाड़ी वाली गायें ही पंचगव्य के निर्माण के लिए उपयुक्त होती हैं। देसी गायें इसी श्रेणी में आती हैं। इनके उत्पादों में मानव के लिए जरूरी सभी तत्त्व पाये जाते हैं।