गुरुवार, 10 अगस्त 2017

गौरक्षा में भारत सरकार की भूमिका

गौरक्षा में भारत सरकार की भूमिका

गायों की रक्षा में सबसे बड़ी समस्या चारा की है। यहां तो किसान के पास स्वयं के खाने के लिए पूरा नहीं है तो वह गायों को कहां से खिलाएगा
भारत  गौपालकों का देश कहा जाता रहा है। भारत से पूरी दुनिया भर के लोग गौवंश ले जाते रहे हैं। भारत एक ऐसा देश है जहां के बारे में कहा जाता था कि गौओं की बहुलता के कारण यहां दूध-घी की नदियां बहती थी। भारत के महान राजाओं, राजा दिलीप से लेकर छत्रपति राजा शिवाजी तक ने गाय की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी थी। दयानंद से लेकर महात्मा गांधी तक जैसे महापुरूषों ने गाय को बचाए जाने की बात कही है और उपाय तलाशने के प्रयास किए हैं। इसलिए यह दुर्भाग्यजनक होगा यदि भारत सरकार गाय की रक्षा के लिए कोई उपाय नहीं करे। गौरक्षा करनी हो तो सरकार के विभिन्न मंत्रालयों को निम्न कार्य करने होंगे।
गृह मंत्रालय
भारत की स्वाधीनता के पुरोधा महात्मा गांधी ने सपना देखा था कि स्वाधीन भारत में कहीं गौहत्या नहीं होगी। मानव स्वास्थ्य, चिकित्सा, खाद, कृषि, ऊर्जा एवं पर्यावरण सभी में गौवंश का वैज्ञानिक महत्व है। इतना महत्वपूर्ण पशु होने के बाद भी आज गौवंश पर महान संकट आन पड़ा है। देश में गौवंश की संख्या निरंतर घटती जा रही है। अनेक राज्यों में किए गए सर्वेक्षणों में यह पाया गया है कि देश में पशु-गणना के आंकड़ों से काफी कम गाएं हैं। इसलिए यदि तुरंत गौवध बंदी का कानून नहीं बनाया जा सकता तो कम से कम गौवंश को श्रेणी-2 के अंतर्गत संरक्षित प्राणी अविलंब घोषित किया जाय।
गौहत्या को अपराध बनाया जाए। पशु क्रूरता अधिनियम की धाराओं का सख्ती से पालन किया जाए। गौ तस्करी के अपराध के लिए सजा और जुर्माना बढ़ाया जाए। गाय के पैदल या वाहन द्वारा परिवहन की शर्तें और कड़ी की जाएं। तस्करी में लिप्त वाहन जब्त किया जाए। गौ-तस्करी करता वाहन जहां पकड़ा जाए, उससे पहले वह जिन-जिन पुलिस थानों से होकर गुजरा हो, उन सभी थानों के पुलिसकर्मियों को इसके लिए उत्तरदायी समझा जाए। श्री गुमानमल लोढ़ा आयोग की अनुशंसाओं को शीघ्रातिशीघ्र लागू किया जाय। साथ ही सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट द्वारा समय समय पर केन्द्र एवं राज्य सरकारों को गौरक्षा हेतु ठोस कदम उठाने के जो निर्देश दिये गये हैं, उनका अनुपालन किया जाये।
वित्त मंत्रालय
गौपालन को करमुक्त किया जाना चाहिए। वर्तमान में गौपालन को व्यावसायिक गतिविधि माना जाता है। इसलिए इस पर किए गए खर्च पर 12 ए के तहत आयकर में छूट नहीं मिलती है। कृषि की भांति गौपालन को भी करमुक्त घोषित कर देने से गौपालन करना सहज हो जाएगा।
खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय
देश की धर्मप्राण शाकाहारी जनता की एक बड़ी समस्या है पैकेज्ड खाद्य पदार्थों में मांस या फिर त्याज्य पदार्थों का मिलाया जाना। हालांकि पैकेटों में लाल और हरे निशान द्वारा इसका संकेत दिया जाना अनिवार्य किया गया है लेकिन पाया गया है कि अनेक पदार्थों में इसका पूर्ण परिपालन अभी भी नहीं हो रहा है। इसलिए सरकार से अपेक्षा है कि देश के सभी खाद्य पदार्थों, दवाईयों एवं दैनिक उपयोग की वस्तुओं मे पशु वधशाला से प्राप्त कोई भी पदार्थ मिलाया गया हो तो उसकी स्पष्ट जानकारी उपभोक्ता को दिया जाना अनिवार्य किया जाए ताकि भारत की गौप्रेमी जनता की भावनाओं व आस्था से खिलवाड़ न हो।
वाणिज्य मंत्रालय
भारत जैसे शाकाहारी संस्कृति वाले देश में मांस का व्यापार और आयात-निर्यात स्वाभाविक रूप से नहीं होना चाहिए था। यदि वर्तमान परिस्थितियों में सरकार इस पर प्रतिबंध नहीं लगा सकती तो कम से कम उसे दिए जाने वाले अनुदान पूरी तरह समाप्त किए जाने चाहिए ताकि इसे 
सरकारी प्रोत्साहन न मिले। सरकार मांस के निर्यातकों को इंसेंटिव देती है। यह बंद होना चाहिए। इसी प्रकार कत्लखानों को 50 प्रतिशत का अनुदान दिया जाता है। इसे भी तत्काल प्रभाव से बंद किया जाना चाहिए। तीसरा अनुदान कत्ल करने की मशीनों पर दिया जाता है, इसे भी बंद किया जाना चाहिए। सन्युक्त राष्ट्र भी इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि भविष्य में सब मनुष्यों के भोजन की व्यवस्था के लिए मांसाहार छोड़ कर सब को शाकाहारी होना पड़ेगा। 
कृषि एवं पशुपालन मंत्रालय 
स्वस्थ भूमि से ही पूरी तरह स्वास्थ्यप्रद अन्न मिल सकता है। आज यह साबित हो चुका है कि गोबर की खाद से भूमि की आर्द्रता बनी रहती है। गोबर की खाद से भूमि स्वस्थ बनती है, रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग की आवशकता भी नहीं रहती। इन्हीं कारणों से अमेरिका और ब्रिटेन में गोबर की खाद का बाजार मूल्य भारत वर्ष में गाय के गोबर की खाद से 20 गुना अधिक - एक डालर प्रति पौंड है। भूमि की उर्वरता को बनाए रखने से गोबर और गोमूत्र का अप्रत्यक्ष महत्व दूध से कहीं अधिक होता है और दूध न देने वाला गोवंश भी दूध देने वाले गोवंश से कम महत्व का नहीं होता और वह गोवंश भी अवध्य है। 
पशुपालन विभाग
प्रत्येक भारतीय नस्ल के गोवंश के संवर्धन और नस्ल सुधार के लिए कम से कम एक एक विशाल गौसंवर्धन केंद्र स्थापित हों। ये केंद्र राज्यवार हों तो अधिक उपयोगी होंगे। इन गौसंवर्धन केंद्रों में अधिक दूध देने वाली और शक्तिशाली बैल उत्पन्न करने वाली दोनों प्रकार की भारतीय नस्लों का संकर करके उत्तम नस्ल विकसित की जा सकती है।
आज दुनिया भर में भारतीय गौओं पर शोध हो रहा है। यह एक इतिहास है कि भारतीय गायों की महत्ता व गुणवत्ता से प्रभावित हो कर पूरी दुनिया के लोग भारत से नंदी और गाएं ले गए थे। परंतु अपने देश में अपनी गौओं पर शोध करने के लिए किसी प्रकार के शोध संस्थान का घोर अभाव है। भैंस पर अनुसंधान के लिए सरकार ने बैफ बनाया है, परंतु गौ पर शोध के लिए कुछ नहीं। इसलिए भारतीय गौवंश पर विशेष अध्ययन.अनुसन्धान के लिए एक केंद्रीय गौविज्ञान विश्वविद्यालय स्थापित किया जाना चाहिए। प्रत्येक राज्य मे गौविज्ञान एवं प्रोद्योगिकी संस्थान की स्थापना हो। केनेडा के प्रवासी भारतीय वैज्ञानिक आजाद कुमार कौशिक के अनुसंधान से साबित हुआ है कि गोवंश में सब जीवों मे उत्तम और अधिक प्राकृतिक रोग नाशक क्षमता पाई जाती है। इस श्रेणी के रोगनाशकों को बेक्टीरियाफेज कहा जाता है और इसी प्रकार के रोग हरण तत्व शु( गंगा जल में भी पाए जाते हैं। भारतवर्ष मे गौ और गंगा पर अनुसन्धान के लिए यह एक नवीन और सम्पूर्ण विश्व के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण विषय हैं।
ग्रामीण विकास मंत्रालय 
भारत में प्रचलित रही परम्परा के अनुसार गोपालन को स्वतंत्र व्यवसाय के रूप में पुनःस्थापित करने में सरकारें सहायता करें। गौपालन का गरीबी उन्मूलन से संबंध आज संयुक्त राष्ट्र भी समझने लगा है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य व कृषि संगठन ने इस पर एक रिपोर्ट भी प्रकाशित की है। उसके अनुसार खेती में गायों के उपयोग से गांवों की गरीबी दूर की जा सकती है। कुछ वर्ष पूर्व रवांडा में भी गाय से गरीबी उन्मूलन का एक सफल प्रयोग किया गया है। अफ्रीकन स्मॉलहोल्डर फारमर्स ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार इस योजना में शामिल 88 प्रतिशत किसानों की आय बढ़ गई और उनकी हालत सुधरी। ऐसा ही एक प्रयोग गुजरात में किया गया जहां जनजातीय लोगों को खेती करने के लिए बैल प्रदान किए गए। लगभग चालीस हजार बैल बांटे गए। ऐसी योजनाएं भारत में और भी सरलता से चलाई जा सकती हैं और वे अधिक लाभकारी भी हो सकती हैं। लोग स्वतःस्फूर्त प्रयासों के तहत गौपालन कर रहे हैं। उन्हें केवल प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
गौआधारित उद्यमों को सरकार विशेष अनुदान देने की व्यवस्था करे। गाय गांवों में कुटीर उद्योगों को भी बढ़ाने में सहायक है। आज गाय के गोबर और गोमूत्र से कई प्रकार के उत्पाद बनाए जा रहे हैं, जो न केवल काफी उपयोगी हैं, बल्कि वे पर्यावरण के अनूकूल भी हैं। अनेक गौशालाओं में इस पर कई प्रयोग हुए हैं। इस समय गाय के गोबर से निम्नलिखित वस्तुएं बनाई जा रही हैं। मच्छररोधी क्वायल, डिस्टेंपर ;सादा व आयलद्ध, नहाने का साबुन, फेस पाउडर, धूप स्टिक व धूप कांडी, हवन सामग्री, समिधा, पूजन लेप, गोमय कंडे, मुक्ता पाउडर, मुर्तियां, पौधों के लिए गमले, दंत-मंजन, कागज ;उत्तम कोटि काद्ध, विभिन्न प्रकार के टाइल्स ;खपरैल, पानी आग व ध्वनि रोधक तथा रेडिएशन मुक्तद्ध, पैकिंग का समान, नालीदार चादरें, जमीन पर बिछाने की मैटिंग, छत पर लगाने के पदार्थ ;रूफिंग मैटेरियलद्ध, कमरा ठंडा रखने के रखने के खपरैल, बंकर्स के लिए टाइल्स। गोमूत्र से भी अनेकानेक वस्तुएं बनाई जा रहीं हैं। अर्क, फिनाइल ;सफेद व कालीद्ध, नील, हैंडवास, ग्लास क्लीनर, नेत्र ज्योति, कर्ण सुधा, घनवटी, अन्य सुरक्षा, खुरपका मुहपका आदि पशुओं के अन्य रोगों की दवाएं, विभिन्न कीटनियंत्रक ;पेस्टीसाइड्सद्ध, आफ्टर शेव लोशन, मरहम, बाम इत्यादि। यदि गौआधारित उद्यमों को सरकार अनुदान दे तो इससे लोगों की आजीविका का एक साधन बढ़ेगा, रोजगार का सृजन होगा और गरीबी दूर होगी। साथ ही गाय की रक्षा का पुण्य कार्य भी संपन्न होगा।
गोमय से प्राप्त फाइबर से अच्छा कागज बनता है। इसके अनेक सफल प्रयोग देश में किए जा चुके हैं। आज अधिकांश कागज भूसे से बनाया जा रहा है जोकि वास्तव में पशुओं का आहार है। यदि गोमय के फाइबर का उपयोग कागज उद्योग में किया जाए तो इससे पशुओं का चारा तो बचेगा ही, गोमय के अच्छे दाम मिलने से किसानों को गाय के पालन में आसानी हो जाएगी। कागज कंपनियों को कागज के निर्माण के लिए पेड़ों की बजाय गोबर के फाइबर का उपयोग करने की राय दी जाए।
संसदीय कार्य मंत्रालय 
केंद्र और राज्य स्तर पर स्वतंत्र गौ मंत्रालय गठित हों। इसके कार्य व अधिकारों की व्याख्या पृथक से दी जा सकती है।
शिक्षा मंत्रालय
ग्रामीण क्षेत्रों के युवा वर्ग के लिए लिए प्रारम्भिक गोपालन की शिक्षा का योजना ब( कार्य होना चाहिए। शिक्षा का व्यक्ति के व्यावहारिक जीवन से संबंधित होना आवश्यक है। जिस देश की 60 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या कृषि और पशुपालन पर आश्रित हो, वहां की शिक्षा में इन दोनों विषयों का अभाव ठीक नहीं है। इसलिए स्वरोजगार की दृष्टि से प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में कृषि के साथ गोपालन का भी समावेश हो। वास्तव में शिक्षा को  और उपयोगी बनाने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है। 
उपाधि मिलने से पूर्व स्नातकोत्तर कृषि और पशुपालन के विद्यार्थियों को ग्रामीण क्षेत्रों और योजनाओं में कम से कम दो वर्ष का प्रशिक्षण अनिवार्य किया जाए। 
सूचना एवं प्रसार मंत्रालय
भारत सरकार की विभिन्न नई नीतियों पर राज्यसभा और मीडिया में व्यर्थ के बवाल को 
रोकने के लिए जनमत बनाने के लिए सामान्य समाज को सूचित और शिक्षित करने की अत्यंत आवश्यकता है। गौ के आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य और पर्यावरण के महत्व को साधारण शिक्षित समाज भी नहीं जानता। गोरक्षा, गोहत्या निषेध को धर्म और धार्मिक आस्था से जोड़ कर देखने की बजाए समाज के स्वास्थ्य और विकास  से जुड़ा देखने की आवश्यकता है। इसके लिए दूरदर्शन के चैनलों पर गाय पर आधारित डाक्यूमेंट्री फिल्में दिखाई जाएं। गो कृषि के विषय को धारावाहिक रूप से प्रसारित 
किया जाए।
पर्यावरण और वन मंत्रालय 
विशाल जनसंख्या के कारण सिमटती वनभूमि आदि के कारण हो रहे चारे के अभाव को दूर करने हेतु चारा खेती को सरकारें विशेष अनुदान दें। वनों में गोचारण पर प्रतिबंध दूर हो। एक शोध में यह साबित किया जा चुका है कि गाय में मिट्टी को पहचानने की क्षमता होती है। वह मिट्टी को सूंघ कर पता लगा लेती है कि कहां की मिट्टी की उत्पादकता कम है, फिर वह वहां अधिक गोबर करती है। इस शोध में उसे एक वैज्ञानिक कहा गया है। इसलिए गोचारण से वनों का संरक्षण होता है , नाश नहीं।
ऊर्जा मंत्रालय
आज देश की ऊर्जा जरूरतें बढ़ रही हैं और उन जरूरतों को पूरा करने के लिए देश की नदियों, पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के साथ-साथ देश के स्वाभिमान की भी बलि चढ़ानी पड़ रही है। यदि गोवंश के रूप में उपलब्ध पशु ऊर्जा को विकसित किया जाए तो इन सबसे बचा जा सकता है। परिवहन के साधन के रूप में आज भी हम बैलों पर निर्भरता का विकल्प नहीं ढूंढ पाए हैं। हालात ऐसे हैं राजधानी दिल्ली में भी बैलगाडियां चलती खूब दिखती हैं। ऐसे में उसे नकार कर अन्य विकल्पों में देश का धन बर्बाद करने का कोई औचित्य नहीं है। भारत के 6 लाख गांवों में से अधिकांश में यातायात योग्य डामरवाली सड़कें नहीं हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में जहाँ घोड़े कदम नहीं रख सकते, बैल आसानी से गाड़ियां खींच सकते हैं। बैलगाड़ियों का संवर्धन किया जाए तो सड़कों के निर्माण और उनके बारंबार किये जाने वाले पुनरू(ार पर होने वाले खर्च को सीमित किया जा सकता है।
परिवहन के अतिरिक्त गोवंश से प्राप्त गोबर से बनाई गई गैस से बिजली का उत्पादन तो आज काफी प्रसि( हो चुका है। पड़ोसी देश नेपाल में सभी 75 जिलों में गोबर गैस से बिजली बनाई जा रही है और इससे घर-घर में रसोई गैस की समस्या का समाधान किया जा रहा है और बिजली भी उपलब्ध कराई जा रही है। इसके लिए उसे अंतरराष्ट्र्रीय एशडेन पुरस्कार भी मिला है। नाभिकीय ऊर्जा जैसे खतरनाक साधनों पर दिमाग चलाने की बजाय यदि सरकार गोबर गैस पर काम करे तो इससे गांवों में रोजगार का भी सृजन होगा और बिजली भी मिलेगी। एलपीजी पर देश की निर्भरता को समाप्त करने के लिए गोबर गैस से बढिया और कोई विकल्प नहीं है। इसके अलावा गोबर गैस से ऑटो रिक्शा चलाने का प्रयोग भी सफल रहा है। कहा जा सकता है कि गाय व गोवंश के साथ-साथ पशुपालन देश की पूरी अर्थ व्यवस्था को सुधार सकते हैं। इसलिए
1. पशुऊर्जा के रूप में बैलों के उपयोग पर ध्यान दिया जाए और बैल चालित उपकरणों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाए।
2. गोबरगैस के प्रयोग को बढ़ाने हेतु गोबरगैस संयंत्र निर्माण पर सरकार अनुदान दे।
स्वास्थ्य मंत्रालय
गोमूत्र का चिकित्सा में उपयोग तो आज विश्व प्रसि( हो चुका है। इस पर गोसंवर्धन केंद्र, 
नागपुर ने अमेरिका में कई पेटेंट भी लिए हैं। गोमूत्र से औषधियों के निर्माण और उनका कैंसर जैसे भयावह रोग पर सफल प्रयोग अनेक गौशालाओं ने किया है और कर रही हैं।  गोमूत्र के अर्क और घनवटी के संयोजन से अनेक दवाओं का निर्माण और प्रयोग अनेक रोगों की चिकित्सा के लिए सफलतापूर्वक किया जा रहा है। इसके अलावा, गोदूग्ध, गोघृत आदि का चिकित्सकीय उपयोग तो आयुर्वेद में भी वर्णित है ही। इसलिए 1. पंचगव्य चिकित्सा को आयुर्वेद से भिन्न एक स्वतंत्र शाखा के रूप में स्वीकार किया जाए। इसे आयुष मंत्रालय के अधीन भी किया जा सकता है। 
2. पंचगव्य चिकित्सा के विकास के लिए अनुसंधान और दवाओं के निर्माण पर सरकार अनुदान दे। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें