शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2017

गौ संरक्षण की आवश्यकता क्यों पड़ी ??

गौमाता की बात अंधश्रद्घा की बात नहीं है

मित्रों..., आप सभी जानते हैं कि आज कृषि कार्य बहुत महंगा हो गया है। विगत कुछ वर्षो से किसानों को लगातार अकाल जैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। विगत वर्षो में छत्तीसगढ़ के गरियाबंददेवभोग व छुरा क्षेत्रों में आर्थिक तंगी एवं चारे की कमी के कारण किसानों ने मात्र 4० से 8० रू.तक में अपने गाय बैल बेच दिये। मध्य प्रदेश के राजगढ़ क्षेत्र में तो स्थिति और भी खराब हो गई थी। वहाँ किसान अपने जानवरों को हांकते हुए गांव की सीमा तक ले गए और उनकी रस्सियाँ खोल दीं। फिर प्रणाम करते हुए कह दिया जाओ गौ माता... अब हम ना तो तुम लोगों को रख सकते हैं, और ना ही अपनी आंखों के सामने तुम्हें भूखा मरते देख सकते हैं..... हे भगवान हम क्या करें.... हमें माफ कर देना। 
   आज लोग, गौ संरक्षण की बात गंभीरता से नहीं लेते। कहते हैं, यहाँ आदमी मरे जा रहे हैं और तुम्हें गायों की पड़ी है। गौ पालन का अब एक ही अर्थ बचाहै, वो है दूध का धंधा बस। जब तक वह दूध दे उसे रखो नहीं तो फिर किनारे कर दो, वह किसी काम की नहीं रही। गाय, गौ माता न रही... दूध देने वाली मशीन हो गई है। मित्रों अब, या तो गाय को माता कहना बंद कर दो.... कह दो यह जानवर है... मां थोड़े ही है। या फिर घर में मां को भी तब तक ही रखो जब तक वह दूध पिलाती रहे। 
   मित्रों, गौमाता की बात अंधश्रद्घा की बात नहीं है। सोच कर देखें क्या मां याने केवल दूध ही होता है ?? अरे वह हमसे कितना प्रेम करती है, हमारी सेवा करती है। घर की व्यवस्था रखती है। हमें मार पड़ती है तो उसे पीड़ा होती है....वह हमें बचाने आती है। हमें बीमारियों से बचाती है, हमारे भीतर श्रेष्ठगुणोंका विकास करती है...... और फिर माता केवल जन्म देने वाली को ही कहते हैं, ऐसा तो है नहीं। 
   छत्रपति शिवाजी के पिता मुगल राजा के सेवक मात्र थे, लेकिन उनकी माता ने उन्हें शिवाजी बना दिया...  . छत्रपति शिवाजी। क्या वो शिवाजी कोजिंदगी भर अपना दूध ही पिलाती रही ?? राष्ट्रप्रेम, शौर्य, साहस, विचारशीलता, धर्म कर्त्तव्य के लिए बलिदान की भावना, इन सारे गुणों को उसी नेबढ़ाया था तभी तो बच्चा शिवाजी बन सका। जन्म देने का महत्त्व कम नहीं, किन्तु पालन- पोषण और श्रेष्ठ गुणों को बढ़ाने के लिए अपने आपको खपा देना भी महत्त्पूर्ण होता है। 
   चित्तौड़ की एक मामूली सी पन्ना धाय मात्र कुछ घंटे मातृत्व का फ$र्ज निभा कर राजकुमार उदयसिंह की माता बनी तो उसकी कुर्बानी ने उसे इतिहास में अमर बना दिया। देवकी ने भले ही कृष्ण को जन्म दिया था परन्तु पालन- पोषण संवर्धन करने वाली, यशोदा मैय्या बनी रही। 
   मित्रों गाय ने भले ही सारे विश्व वसुधा को बनाया ना हो किन्तु वह पोषण संवर्धन सभी का करती है। इसी से हमारे यहां कहा गया है... गावो विश्वस्यमातरः। वह न केवल मनुष्य बल्कि, पशु- पक्षी, नदी, तालाब, खेत, जंगल, हवा, पानी, आकाश आदि सभी का पालन पोषण करती है। उन्हें शुद्घ पवित्र रखती है। मनुष्य के कई रोग तो, उसके साथ रहने व उसे प्रेम से सहलाने मात्र से नष्ट हो जाते हैं। गोमूत्र के नियमित पान से तो प्रायः सारे रोग नष्ट हो जाते हैं, उसके द्वारा दिये जाने वाले हर पदार्थ अमृत गुणों से युक्त और जीवनदायी है। माता तो माता ही है, किन्तु जिस दिन हमारा ध्यान मात्र दूध देने वाले गुण से हटकर उसके पालन पोषण संरक्षण करने वाले गुणों पर जाएगा, तो मित्रों हम सब सुखी हो जाएंगे। यह गीता की ही तरह महत्त्वपूर्ण संदेश है जो भगवान कृष्ण ने स्वयं दिया है। अधिक जानकारी के लिए गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित कल्याण का गौ सेवा अंक पढ़ कर देखना चाहिए। 

   मित्रों... बच्चा, सबसे ज्यादा दुखी तब होता है जब वह अपनी मां से, उसके आशीर्वाद से, उसके प्रेम से वंचित हो जाता है। उसे ऐसी दशा में कभी चैन नहींपड़ता, उसका अन्तर्मन हर कहीं अपनी माता को ढूंढते रहता है। मां का साथ उसे संतोष सुरक्षा एवं ठोस सहारे की अनुभूति देता है। यह माता की कल्याण कारी उपस्थिति का ही प्रभाव है। गौमाता का ठीक से पोषण संवर्धन और सदुपयोग नहीं होने के कारण ही आज हमें, पोषक अन्न, पीने को शुद्घ पानी और श्वास लेने को शुद्घ वायु नहीं मिल पा रही है... 
   आज हमें खेती में पानी कम पड़ता है, तो इसका एक कारण तो यह है, कि हम उसे सहेज कर नहीं रख पाते। किन्तु साथ ही यह भी महत्त्वपूर्ण बात है, कि हम अपने खेतों में रासायनिक खाद डालते हैं जिसकी वजह से जमीन जल्दी सूख जाती है। यदि हम गोबर से बनी कम्पोस्ट खाद प्रयुक्त करें तो जमीन में नमी बनी रहती है और कम पानी में काम चल जाता है। रासायनिक खाद से पैदा होने वाली सब्जियों व अन्न में ना स्वाद होता है, ना खुशबू और ना ही प्राण तत्व। जहरीले कीट नाशकों का प्रयोग करने से हवा, पानी, मिट्टी सभी कुछ खराब हो जाता है। यही कारण है कि आज आदमी दिखता तो ठीक ही है पर उसे सतत् कुछ ना कुछ होते ही रहता है। 
   आज कारखानीकरणडीजल व पेट्रोल के ज्यादा उपयोग और प्लास्टिक, रबर आदि जलाये जाने के कारण वायु मंडल जहरीला हो गया है। पहले लोग नित्य हवन करते थे जिसमें गाय के घी और जड़ी- बूटियों का उपयोग होता था, तब हवा भी स्वच्छ रहती थी। मनुष्य के विचारों में भी सात्विकता और सेवा भावना के गुण पनपते थे। 
यदि हम मात्र हल चलाने और परिवहन के क्षेत्र में ही बैलों का उपयोग करने लगें तो भी बहुत बड़ी बेरोजगारी दूर हो सकती है। यदि हम गांव के लोग मिलकर सामुहिक रूप से गौ शालाओं को चलाएं तो अनियंत्रित चराई, आवारा पशुओं की समस्या तथा गौवंश के नस्ल सुधार जैसे कार्यक्रम तो चल ही सकते हैं। पंचगव्यों से अनेकों औषधियां, कीट नियंत्रक एवं साबुन, मंजन, तेल, शैम्पू जैसी सामग्रियां बनती हैं... जो सामने स्टॉल पर रखी भी हुई हैं। इनका निर्माण करके गांव में, रोजगार के अतिरिक्त अवसर भी पैदा किये जा सकते हैं। शहरों में रहने वाले भी इन्हें खरीद कर गौ संरक्षण में सहयोग कर सकते हैं। 
मित्रों, हमने अपनी ही करनी से पानी, मिट्टी, हवा, खानपान की वस्तुओं और वैचारिक जगत में प्रदूषण फैला दिया है। गाय विश्वमाता है, उसमें इतनी ताकत है कि वह इन सभी को ठीक कर सकती है। यदि हम गाय को नहीं बचा पाए तो आगे चलकर मुसीबत और बढ़ेगी। गाय बैल चलेंगे तो रोजगार भीबढ़ेंगे और सुख समृद्घि भी। 
   एक आखरी बात..... यदि गाय की इज्जत करने की बात दिमाग में आती है तब विदेशी नस्ल के सांडों का बहिष्कार करना पड़ेगा। आज मात्र अधिक दूध के लालच में विदेशी बीज भारतीय नस्ल की गायों में डाल कर, सारे गौवंश का सत्यानाश किया जा रहा है। भाइयों बहनों, आज से कसम खाएं कि जब हम अपनी बहन- बेटी को किसी ऐरेगैरे के हवाले नहीं करते, तब अपनी गायों के लिए भी हम अच्छी नस्ल के देशी सांडों का ही उपयोग करेंगे... ऐसी कसम खा लें। गौवंश को अच्छा रखेंगे काम का रखेंगे। 
   यहाँ एक तथ्य महत्वपूर्ण है कि गाय के नाम से पुकारा जाने वाला हर चौपाया वह कामधेनु गाय नहीं है जिसकी महिमा का वर्णन सर्वत्र किया जा रहा है। भारतीय नस्ल की गाय के कंधे पर एक विशिष्ट उभार होता है यहां से होकर सूर्यकंतु नामक एक नाड़ी गुजरती है। इसी के प्रभाव से भारतीय नस्ल की गाय सूर्य की ऊर्जा को अवशोषित करके कैराटीन नामक द्रव्य का निर्माण करती है जो कि गाय के दूध और घृत को पीला रंग भी प्रदान करता है। यही वह तत्व है जो कि प्राणशक्ति बढ़ाने वाला तथा विशिष्ट रोग नामक शक्ति से युक्त होता है। विगत लगभग ३५ वर्षों से भारतीय नस्ल की इन गायों के वंश नाश को कुचक्र गाय के नस्ल सुधार के नाम पर चल रहा है। अधिक दूध पाने की लालच में हम स्वतः भी इस नाश के क्रम को अनजाने में बढ़ावा ही दे रहे है। हासेस्टीन तथा जर्सी आदि नस्लों के प्रभाव में आकर हमारा आकर हमारा अधिकांश गोधन धीरे- धीरे कत्लखानों में जाने लगा है क्योंकि ये शंकर गाय न तो स्वस्थ रह पाती हैं और न ही ठीक से दूध दे पाती हैं और न ही इनसे उत्पन्न नर पशु कृषि कार्य में उपयोगी हो पाता हैं। 

इस समय युग परिवर्तन की प्रक्रिया चल रही है। भारत देश के, हम सभी के अच्छे दिन आने वाले हैं। ग्वाल बालों का संगठन इस कार्य के लिए बनाएं। भगवान कृष्ण के बताए मार्ग पर चलकर गौ का संरक्षण, संवर्धन करें। 


हम ध्यान नहीं दे रहे इसीलिए हमारे गाय बैल, माटी के मोल बिक रहे हैं। इन्हें निर्दयता पूर्वक मार- काट कर डिब्बों में बंद करके विदेशों में बेचा जा रहा है। गाय के रक्त और मांस के अनुपयोगी भागों से साबुन, क्रीम, लिपस्टिकपीपरमेंट, मंजन,  टूथपेस्ट और फेवीकोल जैसी चीजें बना बना कर हमें बेची जा रही हैं.... कम से कम इनका तो हम बहिष्कार करें ही। लेकिन हमें जीवन देने वाली मां ही मर रही है तो हमें कौन बचा सकेगा ?? भगवान कृष्ण ने तो पहले ही कह दिया है कि सर्व प्रथम गाय को बचाओ... 

सामुहिक गौशाला

सामुहिक गौशाला

यदि आप कालोनी में या शहर में रहते हैं... आपका दो कमरे का मकान है... या आप कहीं चौथी मंजिल पर रहते हैं, तो भी आप गौपालन कर सकते हैं ।। भारतीय गौवंश के संरक्षण में आप भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं... यह काम आर्थिक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से तोमहत्वपूर्ण है ही... स्वास्थ्य रक्षण का बेहतरीन काम भी सामुहिक रूप से गौशाला खोलकर किया जा सकता है... 
एक बात.. सौ टके की... 
     भारतीय नस्ल की गाय विश्व में सर्वोत्तम मानी जाती है ।। पुराणों में और आयुर्वेद में दूध के जो श्रेष्ठ गुण वर्णित हैं, उनका संबंध कामधेनु कहलाने वाली भारतीय नस्ल की गायें से ही है ।। मां के दुध के पश्चात् सर्वाधिक लाभदायक, रोगों से लड़ने की शक्ति देने वाला, सुपाच्य, कम वसा युक्त, दैवी संस्कारों से युक्त तथा कैरोटीन युक्त दूध केवल भारतीय नस्ल की गाय ही देती है ।। इसी के दही, छाछ और घी का महत्व वर्णन किया जाता है ।। 
    भैंस का, जर्सी या संकर गायों का, सोयाबीन का या रासायनिक दूध, वह दूध नही है जिससे सही अर्थों में हमारा तन- मन स्वास्थ रह सके ।। मगर बाजार में तो यही सब मिल रहा है और मजबूरी में हम इसे ही ले भी रहे हैं ।। अब तो प्लास्टिक थैली में पैक दूध और पावडर दूध चलन में है जिसकी गुणवत्ता के बारे में कुछ कहना ही बेकार है ।। 
बजारू दूध से बढ़ती बीमारियाँ- 
    राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान के पशु शरीर क्रिया विज्ञान के वैज्ञानिकों के अनुसार आजकल पशुपालक दूध निकालने की प्रक्रिया में आक्सीटोसीनहार्मौन्स इंजेक्शन का बहुतायत से प्रयोग कर रहे हैं ।। यह इंजेक्शन सस्ता और लगाने में आसान होता है, इसके लगाने से पशु 20 प्रतिशत तक अधिक दूध देता है ।। अतः आजकल इसका अंधाधुंध उपयोग हो रहा है परन्तु इससे स्वास्थ्य भी तेजी से बिगड़ते जा रहा है ।। 
महिलाओं में बार- बार गर्भपात होना, लड़कियों का कम उम्र में वयस्क हो जाना, स्तन कैंसर की शिकायतों का बढ़ना, बच्चों की आंखें, फेफड़े व दिमाग में खराबी आदि की शिकायतों के पीछे ऐसा दूध ही कारण है ।। जिन पशुओं को आँक्सीटोसीन देकर दूध निकाला जाता है, उनके दूध में कैल्शियम और वसा की कमी हो जाती है और सोडियम तथा नमक की मात्रा बढ़ जाती है ।। 
सामुहिक गौशाला खोलिये- 
   आज जब आदमी 40- 40 हजार रु. की मोटर सायकल खरीद रहा है तब कुछ लोग थोड़ी- थोड़ी रकम लगाकर 10- 15 देशी गाय खरीदकर सामुहिक रूप से एक जगह उनका पालन- पोषण कर सकते हैं ।। अलग- अलग गाय पालने से यह बेहतर है ।। गौसेवा का पुण्य मिलेगा, शुद्ध दूध भी मिलेगा, आप एक परिवार को रोजगार भी दे सकेंगे और चाहे तो गोबर एवं गौ मूत्र से अन्य छोटे उद्योग भी चलाए जा सकते हैं ।। यह सामुहिक प्रयास समाज में सहकारिता, सहयोग और पारिवारिक भावना बढ़ाने वाला भी होगा... तब क्या विचार है... ?? 
    गाय का जीवन... हमारे स्वास्थ्य, संस्कृति, प्राकृतिक पर्यावरणीय संतुलन, अर्थतंत्र, कृषि, ऊर्जा सभी क्षेत्रों में कल्याणकारी प्रभाव डालता है। औद्योगिकीकरण, सर्वत्र हो रहा रासायनीकरण, शहरीकरण एवं तथाकथित आधुनिकीकरण के बढ़ते प्रयासों ने आज अनेकों उपद्रव खड़े कर दिये हैं। गौ पालन एवं संवर्धन द्वारा समाज में पुनः सुख समृद्घि का वातावरण लाया जा सकता है। इसी निमित्त से जन मानस को तैयार करना, इन गौ संवर्धन दीपयज्ञों का उद्देश्य है। 
   इन दीप यज्ञों का आयोजन ग्रामीण एवं शहरी दोनों ही क्षेत्रों में किया जाना है। शहरों में इसलिए क्योंकि गौ आधारित औषधि उत्पादनों की शहरी क्षेत्रों में अधिक आवश्यकता है तथा हमारे शहर उन उत्पादों की बिक्री के लिए अच्छे बाजार का काम कर सकते हैं। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह कि शहरों में धन साधन अधिक हैं, जिन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में भेजकर गौ संरक्षण संवर्धन की योजनाओं को बल प्रदान किया जा सकता है। 

समाधान सरल है :-

समाधान सरल है :-
वर्तमान संकर नसल का गौवंश ‘ए-1’ तथा ‘ए-2’ के संयुक्त गुणों वाला है। इनमें ५०% से ६०% दोनो गुण हों तो स्वदेशी गर्भधन की व्यवस्था से अगली पीढ़ी में ‘ए-1’ २५% दूसरी बार १२% तथा तीसरी बार ६% रह जाएगा। बिगाड़ने वालों ने सन् 1700 से आज तक 300 साल धैर्य से काम किया, हम 10-12 साल प्रयास क्यों नही कर सकते? करने में काफी सरल है।
समस्या का विचारणीय पक्ष एक और भी है.
दूध् बढ़ाने के लिये दिए जाने वालो ‘बोविन ग्रोथ हार्मोन’ या ‘आक्सीटोसिन’ आदि के इंजैक्शनो से अनेक प्रकार के कैंसर होने के प्रमाण मिले हैं । इन इंजैक्शनों से दूध् में आई जी एफ-1 ;इन्सुलीन ग्रोथ फैक्टर-1 नामक अत्यधिक शक्तिशाली वृद्धि हार्मोन की मात्रा सामान्य से बहुत अधिक बढ़ जाती है और मुनष्यों में , स्तन, कोलन, प्रोस्टेंट, फेफड़ो, आतों, पैक्रिया के कैंसर पनपने लगते हैं।
इलीनोयस विश्वविद्यालय के ‘डा. सैम्यूल एपस्टीन’ तथा ‘नैशनल इंस्टीटयुट’ आॅफ हैल्थ;अमेरीकाद्ध जैसी अनेक संस्थाओं और विद्वानों ने इस पर खोज की है।
ध्यान दें कि जिस हार्मोन के असर से मनुष्यों को कैंसर जैसे रोग होते हैं उनसे वे गाय-भैंस गम्भीर रोगो का शिकार क्यों नही बनेगे ? आपका गौवंश पहले 15-18 बार नए दूध् होता था, अब 2-4 बार सूता है। गौवंश के सूखने और न सूने का प्रमुख कारण दूध् बढ़ाने वाले हार्मोन हैं। आज लाखों गउएं सड़कों पर भटक रही हैं और उनका दूध् सूख गया है तो इसका बहुत बड़ा कारण ये दूध् बढाने वाले हारमोन हैं, इसे समझना होगा।
गौपालकों को भारत की वर्तमान परिस्थियों में अनेकों कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। इन समस्याओं का एक आयाम गौवंश चिकित्सा है। एलोपैथी चिकित्सा के अत्यधिक प्रचार का शिकार बनकर हम अपनी प्रमाणिक पारम्परिक चिकित्सा को भुला बैठे हैं। परिणामस्वरूप चिकित्सा व्यय बहुत बढ़ गया और दवांओं के दुष्परिणाम भी भोगने पड़ रहें हैं। दवाओं से विषाक्त बने मृत पशुओं का मांस खाकर गिद्धों की वंश समाप्ति का खतरा पैदा हो गया है।
जरा विचार करें कि इन दवाओं के प्रभाव वाला दूध्, गोबर, गौमूत्रा कितना हानिकारक होगा। इन दवाओं के दुष्प्रभावों से भी अनेकों नए रोग होते हैं, जीवनी शक्ति घटती चली जाती है।
आधुनिक विज्ञान के आधार पर स्वदेशी और विदेशी गोवंश के अंतर को समझलेना ही पर्याप्त नहीं. भारतीय इतिहास व संस्कृति के प्रति विद्वेष व अनास्था रखनेवाली पश्चिमी दृष्टी के आधार पर भारतीय साहित्य व दर्शन को ठीक से नहीं समझा जा सकता. गो के आध्यात्मिक व अलौकिक पक्ष को जानने-समझने के लिए भारतीय विद्वानों व भारतीय साहित्य का सहारा लेना ही पडेगा. यहाँ यह दोहरा देना प्रासंगिक होगा कि पश्चिमी शिक्षा के प्रभाव से उपजी मानसिकता से मुक्ति पाए बिना हम अपने साहित्य में वर्णित सामग्री के अर्थ समझने योग्य नहीं बन पायेंगे. आयुर्वेदिक चिकित्सकों द्वारा भारी मात्रा में हानिकारक एलोपैथिक दवाओं का प्रयोग पश्चिम के प्रचारतंत्र से उपजी हीनता का एक प्रत्यक्ष प्रमाण है. योजनाबद्ध ढंग से आयुर्वेद के पाठ्यक्रम को विकृत किये जाने के कारण भी ऐसा हुआ हो सकता है.
अस्तु गोवंश के अंतर को थोड़ा समझ लेने के बाद अब पंचगव्य चिकित्सा की चर्चा उचित होगी. सामान्य रूप से प्रचलित पंचगव्य चिकित्सा पर ६ पृष्ठों की सामग्री वितरण हेतु उपलब्ध करवाई जा रही है. अतः उन प्रयोगों पर बात न करते हुए कुछ ऐसे प्रयोगों पर चर्चा करना उचित होगा जो थोड़े असामान्य प्रकार के हैं. निसंदेह जब भी गो उत्पादों की हम बात करेंगे तो वह शुद्ध भारतीय गोवंश के सन्दर्भ में होगी. जिस गो में जितना भारतीय अंश कम होगा, उसके परिणाम भी उतने कम होंगे. विदेशी गोवंश के प्रभाव से कुछ हानि की आशंका भी हो सकती है. गभीर रोगों की चिकित्सा में पंचगव्य का प्रयोग करते समय यह भी ध्यान रखना होगा कि गो को रासायनिक फीड या अन्य रसायन युक्त आहार न दिया जा रहा हो.
१. यदि गो के गोबर का लगभग ३-४ इंच लंबा और १-२ इंच चौड़ा टुकडा गो घृत लगा कर प्रातः- सायं धूप की तरह जलाया जाये तो इससे लगभग सभी फंगस, रोगाणु, कीटाणु सरलता समाप्त हो जाते हैं. इसके ऊपर एक-दो दाने दाख, मुनक्का या गुड का छोटा सा टुकड़ा रख दें तो प्रभाव और अधिक बढ़ जाता है. अर्थात सभी कीटाणु जनित रोग इस सरल से प्रयोग से सरलता से नियंत्रित हो सकते हैं. यहां तक कि तपेदिक तक के रोगाणु इस छोटे से प्रयोग से नष्ट हो जायेंगे. नियमित रूप से गोबर की इस धूप के प्रयोग के कारण रासायनिक सुगंधों वाली धूप के कारण पैदा होने वाले अनेकों मानसिक और शारीरिक रोगों से भी बचाव हो जाएगा.
२. रात को सोते समय गोघृत का स्नेहन करने ( लगाने से ) अनेकों रोगों से रक्षा होती है. पाँव के तलवों, गुदाचक्र ( एक इंच गहराई तक ) , नाभि, नाक, आँख और सर में सोते समय और प्रातः काल यदि गो घृत लगाएं तो शरीर के सारे अंग, मस्तिष्क, ऑंखें स्वस्थ बने रहते हैं. स्मरण शक्ती आयु बढ़ने के साथ कम होने के स्थान पर निरंतर बढ़ती रहती है. कभी ऐनक नहीं लगती और न ही कभी मोतियाबिंद जैसे रोगों के होने की संभावना होती है.
३. अधरंग के रोगी को गोघृत की नसवार देने से अद्भुत परिणाम मिलते हैं. तत्काल नसवार देने से रोगी उसी समय ठीक होता है और पुराने रोगी को नियमित नसवार देने से चंद मास में वह रोगी ठीक होजाता है. आश्चर्य की बात तो यह है कि मर चुके स्नायुकोश भी फिर से बन जाते हैं जिसे कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में असंभव समझा जाता है. इसका अर्थ तो यह हुआ कि एल्ज़िमर्ज़ डिसीज़, पार्किन्सन डिसीज़, मधुमेह से मृत कोष, हृदयाघात से ह्रदय की क्षतिग्रस्त कोशिकाए पुनः बन जायेंगी. ऑटिज्म. मिर्गी अदि अनेकों असाध्य समझे जाने वाले रोगों में गो घृत प्रयोग के अद्भुत परिणाम हो सकते हैं. आवश्यकता है कि इस पर धैर्य के साथ शोध कार्य करने की आवश्यकता है.
४. मुम्बई के एक कैंसर के रोगी को चिकित्सक ने जवाब दे दिया और कहा कि १२-१४ दिन का जीवन शेष है. लीवर का कैंसर था जो बहुत अधिक फ़ैल जाने के कारण शल्य चिकित्सा संभव नहीं रही थी. वह रोगी लिखता है कि घर आकर उसने बेर के बराबर गोबर और २५-३० मी.ली. गोमूत्र को घोल कर कपडे में छाना और पीकर सो गया. कुछ देर बाद उसे भयंकर बदबू वाला पाखाना हुआ और गहरी नीद आ गयी. सोकर उठा तो कई दिन बाद उसे भूख लगी. रोगी को अंगूर का ताज़ा रस दिया गया. स्मरणीय है कि उन दिनों अंगूर बिना विषयुक्त स्प्रे के मिल जाता था. २१ दिन यही चिकित्सा चली. रोगी को लगा कि वह रोग मुक्त हो चुका है. शरीर में शक्ती और चेहरे पर अच्छी रौनक आगई थी. वह अपने चिकित्सक के पास गया तो उसे विश्वास हे नहीं आया कि यह वही कैंसर का रोगी है. प्राथमिक जांच में वह पूरी तरह कैंसर मुक्त नज़र आ रहा था. कोई लक्षण नहीं था जिससे वह रोगी लगता.
अंत में इतना निवेदन है कि आज संसार का सञ्चालन परदे के पीछे से जो शक्तियां कर रही हैं उनमें सबसे बड़ी भूमिका दवा निर्माता कंपनियों की है. वे इतनी शक्तिशाली और कुटिल हैं कि अपनी दवाओं के बाज़ार को बढाने व लाभ कामाने के लिए हर प्रकार के अनैतिक, अमानवीय हथकंडे अपनाती हैं. बहुत संभव है कि जिस प्रकार वे संसार भर के चिकित्सा शोध, स्वास्थ्य योजनाओं और पाठ्यक्रमों को अपने अनुसार चलाती है; उसी प्रकार अपने रास्ते में बाधा बनने वाले भारतीय गोवंश की समाप्ती के उपाय भी कर रही हों अन्यथा कोई कारण नहीं कि जिस भारतीय गो वंश का संवर्धन-पालन विश्व के देश अनेक वर्षों से कर रहे हैं, भारत में उसकी समाप्ति की सारी योजनायें बे रोकटोक जारी हैं. जिस विशकारक गो वंश को अमेरिका तक अपने देश में समाप्त करने के व्यापक प्रयास कर रहा है, उस हानिकारक हॉलीस्टीन अदि अमेरिकी गोवंश को भारत पर थोंपा जा रहा है, गोवंश संवर्धन के नाम पर.
अतः आवश्यक है कि हम अपने देश के हित में भारतीय गोवंश के संरक्षण व संवर्धन के उपाय व चिकत्सक होने के नाते पंचगव्य के प्रयोग के संकल्पबद्ध प्रयास करें. यह सब तभी संभव है जब हमें अपनी सामर्थ्य व सांस्कृतिक श्रेष्ठता पर विश्वास हो. फिर इस सब में बाधक बनने वाली शक्तियों के कुटिल प्रयासों का शिकार हम नहीं बनेगे और अपने शत्रु-मित्र की पहचान सरलता से कर सकेंगे . तब हम भारत-भारतीयता यानी राष्ट्र विरोधियों से निपटने के उपाय भी जीवन के हर क्षेत्र में कर सकेंगे. आज चिकित्सा क्षेत्र में भी राष्ट्र विरोधी शक्तियों को पहचानने व उनके निराकरण की आवश्यकता है. हमारे अमूल्य गोवंश के विनाश के पीछे भी तो राष्ट्र विरोधी प्रयासों को हम तभी पहचान पाएंगे और उनका समाधान कर पायेंगे जब हम मैकाले की दी दुर्बुधि से मुक्ती पायेंगे और अपने देश समाज, राष्ट्र व संस्कृति को अपनी खुद की दृष्टी से देखना सीखेंगे.
मेरी किसी बात से किसी की को कष्ट हुआ हो तो मैं उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ पर मैंने जो कुछ भी लिखा है वह सबके कल्याण की दृष्टी से है, किसी को अपमानित करने या कष्ट देने के लिए नहीं.
वन्दे मातरम ! गो माता कि जय!!