शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2017

गौ संरक्षण की आवश्यकता क्यों पड़ी ??

गौमाता की बात अंधश्रद्घा की बात नहीं है

मित्रों..., आप सभी जानते हैं कि आज कृषि कार्य बहुत महंगा हो गया है। विगत कुछ वर्षो से किसानों को लगातार अकाल जैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। विगत वर्षो में छत्तीसगढ़ के गरियाबंददेवभोग व छुरा क्षेत्रों में आर्थिक तंगी एवं चारे की कमी के कारण किसानों ने मात्र 4० से 8० रू.तक में अपने गाय बैल बेच दिये। मध्य प्रदेश के राजगढ़ क्षेत्र में तो स्थिति और भी खराब हो गई थी। वहाँ किसान अपने जानवरों को हांकते हुए गांव की सीमा तक ले गए और उनकी रस्सियाँ खोल दीं। फिर प्रणाम करते हुए कह दिया जाओ गौ माता... अब हम ना तो तुम लोगों को रख सकते हैं, और ना ही अपनी आंखों के सामने तुम्हें भूखा मरते देख सकते हैं..... हे भगवान हम क्या करें.... हमें माफ कर देना। 
   आज लोग, गौ संरक्षण की बात गंभीरता से नहीं लेते। कहते हैं, यहाँ आदमी मरे जा रहे हैं और तुम्हें गायों की पड़ी है। गौ पालन का अब एक ही अर्थ बचाहै, वो है दूध का धंधा बस। जब तक वह दूध दे उसे रखो नहीं तो फिर किनारे कर दो, वह किसी काम की नहीं रही। गाय, गौ माता न रही... दूध देने वाली मशीन हो गई है। मित्रों अब, या तो गाय को माता कहना बंद कर दो.... कह दो यह जानवर है... मां थोड़े ही है। या फिर घर में मां को भी तब तक ही रखो जब तक वह दूध पिलाती रहे। 
   मित्रों, गौमाता की बात अंधश्रद्घा की बात नहीं है। सोच कर देखें क्या मां याने केवल दूध ही होता है ?? अरे वह हमसे कितना प्रेम करती है, हमारी सेवा करती है। घर की व्यवस्था रखती है। हमें मार पड़ती है तो उसे पीड़ा होती है....वह हमें बचाने आती है। हमें बीमारियों से बचाती है, हमारे भीतर श्रेष्ठगुणोंका विकास करती है...... और फिर माता केवल जन्म देने वाली को ही कहते हैं, ऐसा तो है नहीं। 
   छत्रपति शिवाजी के पिता मुगल राजा के सेवक मात्र थे, लेकिन उनकी माता ने उन्हें शिवाजी बना दिया...  . छत्रपति शिवाजी। क्या वो शिवाजी कोजिंदगी भर अपना दूध ही पिलाती रही ?? राष्ट्रप्रेम, शौर्य, साहस, विचारशीलता, धर्म कर्त्तव्य के लिए बलिदान की भावना, इन सारे गुणों को उसी नेबढ़ाया था तभी तो बच्चा शिवाजी बन सका। जन्म देने का महत्त्व कम नहीं, किन्तु पालन- पोषण और श्रेष्ठ गुणों को बढ़ाने के लिए अपने आपको खपा देना भी महत्त्पूर्ण होता है। 
   चित्तौड़ की एक मामूली सी पन्ना धाय मात्र कुछ घंटे मातृत्व का फ$र्ज निभा कर राजकुमार उदयसिंह की माता बनी तो उसकी कुर्बानी ने उसे इतिहास में अमर बना दिया। देवकी ने भले ही कृष्ण को जन्म दिया था परन्तु पालन- पोषण संवर्धन करने वाली, यशोदा मैय्या बनी रही। 
   मित्रों गाय ने भले ही सारे विश्व वसुधा को बनाया ना हो किन्तु वह पोषण संवर्धन सभी का करती है। इसी से हमारे यहां कहा गया है... गावो विश्वस्यमातरः। वह न केवल मनुष्य बल्कि, पशु- पक्षी, नदी, तालाब, खेत, जंगल, हवा, पानी, आकाश आदि सभी का पालन पोषण करती है। उन्हें शुद्घ पवित्र रखती है। मनुष्य के कई रोग तो, उसके साथ रहने व उसे प्रेम से सहलाने मात्र से नष्ट हो जाते हैं। गोमूत्र के नियमित पान से तो प्रायः सारे रोग नष्ट हो जाते हैं, उसके द्वारा दिये जाने वाले हर पदार्थ अमृत गुणों से युक्त और जीवनदायी है। माता तो माता ही है, किन्तु जिस दिन हमारा ध्यान मात्र दूध देने वाले गुण से हटकर उसके पालन पोषण संरक्षण करने वाले गुणों पर जाएगा, तो मित्रों हम सब सुखी हो जाएंगे। यह गीता की ही तरह महत्त्वपूर्ण संदेश है जो भगवान कृष्ण ने स्वयं दिया है। अधिक जानकारी के लिए गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित कल्याण का गौ सेवा अंक पढ़ कर देखना चाहिए। 

   मित्रों... बच्चा, सबसे ज्यादा दुखी तब होता है जब वह अपनी मां से, उसके आशीर्वाद से, उसके प्रेम से वंचित हो जाता है। उसे ऐसी दशा में कभी चैन नहींपड़ता, उसका अन्तर्मन हर कहीं अपनी माता को ढूंढते रहता है। मां का साथ उसे संतोष सुरक्षा एवं ठोस सहारे की अनुभूति देता है। यह माता की कल्याण कारी उपस्थिति का ही प्रभाव है। गौमाता का ठीक से पोषण संवर्धन और सदुपयोग नहीं होने के कारण ही आज हमें, पोषक अन्न, पीने को शुद्घ पानी और श्वास लेने को शुद्घ वायु नहीं मिल पा रही है... 
   आज हमें खेती में पानी कम पड़ता है, तो इसका एक कारण तो यह है, कि हम उसे सहेज कर नहीं रख पाते। किन्तु साथ ही यह भी महत्त्वपूर्ण बात है, कि हम अपने खेतों में रासायनिक खाद डालते हैं जिसकी वजह से जमीन जल्दी सूख जाती है। यदि हम गोबर से बनी कम्पोस्ट खाद प्रयुक्त करें तो जमीन में नमी बनी रहती है और कम पानी में काम चल जाता है। रासायनिक खाद से पैदा होने वाली सब्जियों व अन्न में ना स्वाद होता है, ना खुशबू और ना ही प्राण तत्व। जहरीले कीट नाशकों का प्रयोग करने से हवा, पानी, मिट्टी सभी कुछ खराब हो जाता है। यही कारण है कि आज आदमी दिखता तो ठीक ही है पर उसे सतत् कुछ ना कुछ होते ही रहता है। 
   आज कारखानीकरणडीजल व पेट्रोल के ज्यादा उपयोग और प्लास्टिक, रबर आदि जलाये जाने के कारण वायु मंडल जहरीला हो गया है। पहले लोग नित्य हवन करते थे जिसमें गाय के घी और जड़ी- बूटियों का उपयोग होता था, तब हवा भी स्वच्छ रहती थी। मनुष्य के विचारों में भी सात्विकता और सेवा भावना के गुण पनपते थे। 
यदि हम मात्र हल चलाने और परिवहन के क्षेत्र में ही बैलों का उपयोग करने लगें तो भी बहुत बड़ी बेरोजगारी दूर हो सकती है। यदि हम गांव के लोग मिलकर सामुहिक रूप से गौ शालाओं को चलाएं तो अनियंत्रित चराई, आवारा पशुओं की समस्या तथा गौवंश के नस्ल सुधार जैसे कार्यक्रम तो चल ही सकते हैं। पंचगव्यों से अनेकों औषधियां, कीट नियंत्रक एवं साबुन, मंजन, तेल, शैम्पू जैसी सामग्रियां बनती हैं... जो सामने स्टॉल पर रखी भी हुई हैं। इनका निर्माण करके गांव में, रोजगार के अतिरिक्त अवसर भी पैदा किये जा सकते हैं। शहरों में रहने वाले भी इन्हें खरीद कर गौ संरक्षण में सहयोग कर सकते हैं। 
मित्रों, हमने अपनी ही करनी से पानी, मिट्टी, हवा, खानपान की वस्तुओं और वैचारिक जगत में प्रदूषण फैला दिया है। गाय विश्वमाता है, उसमें इतनी ताकत है कि वह इन सभी को ठीक कर सकती है। यदि हम गाय को नहीं बचा पाए तो आगे चलकर मुसीबत और बढ़ेगी। गाय बैल चलेंगे तो रोजगार भीबढ़ेंगे और सुख समृद्घि भी। 
   एक आखरी बात..... यदि गाय की इज्जत करने की बात दिमाग में आती है तब विदेशी नस्ल के सांडों का बहिष्कार करना पड़ेगा। आज मात्र अधिक दूध के लालच में विदेशी बीज भारतीय नस्ल की गायों में डाल कर, सारे गौवंश का सत्यानाश किया जा रहा है। भाइयों बहनों, आज से कसम खाएं कि जब हम अपनी बहन- बेटी को किसी ऐरेगैरे के हवाले नहीं करते, तब अपनी गायों के लिए भी हम अच्छी नस्ल के देशी सांडों का ही उपयोग करेंगे... ऐसी कसम खा लें। गौवंश को अच्छा रखेंगे काम का रखेंगे। 
   यहाँ एक तथ्य महत्वपूर्ण है कि गाय के नाम से पुकारा जाने वाला हर चौपाया वह कामधेनु गाय नहीं है जिसकी महिमा का वर्णन सर्वत्र किया जा रहा है। भारतीय नस्ल की गाय के कंधे पर एक विशिष्ट उभार होता है यहां से होकर सूर्यकंतु नामक एक नाड़ी गुजरती है। इसी के प्रभाव से भारतीय नस्ल की गाय सूर्य की ऊर्जा को अवशोषित करके कैराटीन नामक द्रव्य का निर्माण करती है जो कि गाय के दूध और घृत को पीला रंग भी प्रदान करता है। यही वह तत्व है जो कि प्राणशक्ति बढ़ाने वाला तथा विशिष्ट रोग नामक शक्ति से युक्त होता है। विगत लगभग ३५ वर्षों से भारतीय नस्ल की इन गायों के वंश नाश को कुचक्र गाय के नस्ल सुधार के नाम पर चल रहा है। अधिक दूध पाने की लालच में हम स्वतः भी इस नाश के क्रम को अनजाने में बढ़ावा ही दे रहे है। हासेस्टीन तथा जर्सी आदि नस्लों के प्रभाव में आकर हमारा आकर हमारा अधिकांश गोधन धीरे- धीरे कत्लखानों में जाने लगा है क्योंकि ये शंकर गाय न तो स्वस्थ रह पाती हैं और न ही ठीक से दूध दे पाती हैं और न ही इनसे उत्पन्न नर पशु कृषि कार्य में उपयोगी हो पाता हैं। 

इस समय युग परिवर्तन की प्रक्रिया चल रही है। भारत देश के, हम सभी के अच्छे दिन आने वाले हैं। ग्वाल बालों का संगठन इस कार्य के लिए बनाएं। भगवान कृष्ण के बताए मार्ग पर चलकर गौ का संरक्षण, संवर्धन करें। 


हम ध्यान नहीं दे रहे इसीलिए हमारे गाय बैल, माटी के मोल बिक रहे हैं। इन्हें निर्दयता पूर्वक मार- काट कर डिब्बों में बंद करके विदेशों में बेचा जा रहा है। गाय के रक्त और मांस के अनुपयोगी भागों से साबुन, क्रीम, लिपस्टिकपीपरमेंट, मंजन,  टूथपेस्ट और फेवीकोल जैसी चीजें बना बना कर हमें बेची जा रही हैं.... कम से कम इनका तो हम बहिष्कार करें ही। लेकिन हमें जीवन देने वाली मां ही मर रही है तो हमें कौन बचा सकेगा ?? भगवान कृष्ण ने तो पहले ही कह दिया है कि सर्व प्रथम गाय को बचाओ... 

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