सोमवार, 5 फ़रवरी 2018

गौ संरक्षण हमारी एक महती आवश्यकता

गौ संरक्षण हमारी एक महती आवश्यकता


अपने देश में गौरक्षा का गौ-पालन और गौ-पूजा का महत्व बहुत है। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी अभिरुचि इस दिशा में सबसे अधिक प्रदर्शित करके सर्वसाधारण का ध्यान इस ओर आकर्षित किया था कि उन्हें गौ का महत्व और उपयोग भली प्रकार समझना चाहिये और इस संदर्भ में व्यवहारतः कुछ करते रहना चाहिए
मानवी स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए जिस पौष्टिक आहार की आवश्यकता है, उसमें गौ दुग्ध अग्रणी है। यों दूध तो भैंस और भेड़-बकरी का भी मिलता है और कहीं-कहीं गधी और ऊँटनी का भी प्रयुक्त होता है पर विटामिन ‘ए’ जैसे बहुमूल्य तत्त्व जितनी मात्रा में गाय के दुग्ध में है, उतने और किसी में नहीं। देखने में भैंसा या भेड़ का दूध चिकना, गाढ़ा निकलता है पर गुणों में गोरस से उनकी कोई तुलना नहीं। जितने उपयोगी खनिज, लवण, रोग निरोधक, बलवर्धक जीवन तत्त्व गाय के दूध में हैं, और शिक्षित देशों में जो गुण और लाभ को परखना जानते हैं, केवल गौदुग्ध ही उपयुक्त होता है। योरोप और अमेरिका का समस्त देश प्रायः गौ दुग्ध ही सेवन करता है। भैंस तो अफ्रीका और भारत को छोड़कर अन्यत्र पाई भी नहीं जाती।
आयुर्वेद शास्त्र में भी गौदुग्ध का ही प्रतिपादन है। धर्म ग्रन्थों में जहाँ कहीं दूध, घी की आवश्यकता का वर्णन है, वहाँ गौरस का ही उल्लेख समझना चाहिये। दूरदर्शी ऋषियों को शारीरिक दृष्टि से गोरस की शारीरिक उपयोगिता विदित ही थी, इसके अतिरिक्त वे उसके मानसिक और आध्यात्मिक गुणों से भी परिचित थे। गाय में, गाय के बछड़े में-जैसी फुर्ती और चतुरता रहती है, वैसी भेड़ या भैंस में नहीं। स्पष्टतः इन पशुओं का मानसिक स्तर भी दूध में धुला रहता है। भैंस का दूध पीने से उसी जैसा आलस्य, प्रमाद एवं बुद्धूपन बढ़ता है। ‘भेड़चाल’ उक्ति में उस प्राणी की अदूरदर्शिता का ही वर्णन है। गाय इन सबसे निराली है। उसकी स्फूर्ति एवं चतुरता बात-बात में परखी जा सकती है। मार्ग में खेलते हुए बच्चे को गाय बचाती हुई चलेगी पर भैंस अपनी राह चलती जाएगी, चाहे बूढ़ा, बच्चा कोई भी क्यों न कुचल जाय। तनिक-सी गर्मी-सर्दी और थकान, बर्दाश्त करना भैंस के लिए कठिन है। पर गाय की सहिष्णुता प्रख्यात है। यही गुण उसके दूध में रहते है। माता के दूध का बच्चे पर असर पड़ता है। माता का जैसा स्वभाव होता है, बच्चा भी वैसी प्रकृति का बन जाता है। यह दूध का गुण है। भैंसा या भेड़-बकरी का दूध पीने वाले उन्हीं जैसे हेय गुणी वाले बनते चले जाते हैं।
गाय की सबसे बड़ी विशेषता उसमें पाई जाने वाली आध्यात्मिक विशेषता है। हर पदार्थ एवं प्राणी में कुछ अति सूक्ष्म एवं रहस्यमय गुण होते हैं। सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण की मात्राएँ सबमें पाई जाती हैं। जिस प्रकृति के पदार्थों और प्राणियों से हम संपर्क रखते हैं, हमारी अंतःस्थिति भी उसी प्रकार छलने लगती है। हँस पाल कर बढ़ता हुआ सतोगुण और कौआ पाल कर घर में में बढ़ता हुआ तमोगुण कभी भी अनुभव किया जा सकता है। भेड़-बकरी और भैंस को तमोगुण प्रधान माना गया है। गाय में सतोगुण की भारी मात्रा विद्यमान् है। अपने बच्चे के प्रति गाय की ममता प्रसिद्ध है। वह अपने पालन करने वाले तथा उस परिवार को भी बहुत प्यार करती है। जंगलों में शेर, बाघ का सामना होने पर अपने ग्वाले की चारों और से घेर कर गाय झुण्ड बना लेती हैं और अपनी जान पर खेल कर अपने रक्षक को बचाने का त्याग, बलिदान एवं कृतज्ञता आत्मीयता का आदर्श भरा उदाहरण प्रस्तुत करती है। ऐसी आध्यात्मिक विशेषता और किसी प्राणी में नहीं पाई जाती। इस स्तर के उच्च सद्गुण उन लोगों में भी बढ़ते हैं जो उसका दूध पीते हैं। बैल की परिश्रम-शीलता ओर सहिष्णुता प्रख्यात है। यह विशेषताएँ गौ दुग्ध का उपयोग करने वाले में भी बढ़ती है।
गौरस एक सर्वांगपूर्ण परिपुष्ट आहार है। उसमें मानसिक स्फूर्ति एवं आध्यात्मिक सतोगुणी तत्त्वों का बाहुल्य रहता है, इसलिए मनीषियों तथा शास्त्रकारों ने-गाय का वर्चस्व स्वीकार करते हुए उसे पूज्य, संरक्षणीय एवं सेवा के योग्य माना है। गाय की ब्राह्मण से तुलना की है और उसे अवध्य-मारे न जाने योग्य घोषित किया गया है। गोपाष्टमी और गोवर्धन दो त्यौहार ही गौरक्षा की और जनसाधारण का ध्यान स्थिर रखने के लिए बनाये गये हैं। चूँकि ये पहली रोटी गाय के लिए निकालने की परम्परा भी इसीलिये है कि गाय को एक कुटुम्ब का प्राणी समझते रहा जाय। राजा दिलीप जैसे ऐतिहासिक महापुरुषों की गौ-भक्ति प्रसिद्ध है जिसके कारण उन्होंने सुसन्तति प्राप्त की। आज भी वह तथ्य ज्यों का त्यों है। गाय के संपर्क में रहने वाले, गोरस पीने वाले पति-पत्नि निस्सन्देह सुयोग्य और स्वस्थ सन्तान पैदा कर सकते हैं, उनका पुरुषत्व साँड़ की तरह सुस्थिर बना रहता है। पुराणों में गौ भक्ति और गौ सेवा के लिये बहुत कुछ करने वाले सत्पुरुषों के अगणित उदाहरण विद्यमान् है। उस समय-शिक्षा की गुरुकुल प्रणाली थी। हर छात्र को आश्रम की गौएं चरानी पड़ती थी और आहार में गोरस की समुचित मात्रा मिलती थी। उस समय के छात्रों की प्रतीक्षा परिपुष्टता एवं सज्जनता की अभिवृद्धि के जो महत्त्वपूर्ण लाभ मिलते थे, उसमें गौ संपर्क भी एक बहुत बड़ा कारण था।

भारत कृषि प्रधान देश है। यहाँ जुताई, सिंचाई और गुड़ाई, (अन्न को पौधे से अलग करना) के लिए बैल की अनिवार्य आवश्यकता है। गाय का गोबर अपने ढंग का अति उर्वरक खाद्य है। अपने देश की कृषि गौवंश पर निर्भर है। रासायनिक खाद अचार, चटनी की तरह है, उनसे धरती की भूख नहीं बुझ सकती, वह तो गोबर से ही सम्भव है। महंगी बार-बार बिगड़ने वाली, खर्चीली ओर तकनीकी ज्ञान की अपेक्षा रखने वाली मशीनें भारत की कृषि समस्या को हम नहीं कर सकती। अनेक कारणों से यहाँ तो बैल ही सफल होगा। अन्न और दूध हम गौवंश की कृपा से ही प्राप्त कर सकते हैं, इसलिये उसका संरक्षण सब प्रकार से उपयुक्त है।
गोबर से लीपने पर घर रोग कीटाणु मुक्त होते हैं। गौ मूत्र असाध्य रोगों में भी रामबाण औषधि का काम करता है। इनकी गन्ध से विषैले रोगकर्मी अनायास ही मरते हैं और स्वास्थ्य रखा की एक सहज व्यवस्था बनती रहती है।
आवश्यकता है कि हम गौरक्षा पर ध्यान दें और अपनी शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, आर्थिक एवं धार्मिक स्थिति की परिपुष्ट बनाने के लिए इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाये
यह एक दुर्भाग्य ही है कि जिस देश में गौ को पूज्य और गौरक्षा को धर्म माना जाता है, उसी में उसकी सबसे अधिक दुर्गति हो। गौ नस बुरी तरह खराब हो चुकी है। जरा सा दूध देती और बेकार समझी जाती है। कलाई को छुरी के नीचे ही उन्हें आश्रय मिलता है। गौवंश बुरी तरह घटता और नष्ट होता चला जा रहा है। उसका एक मात्र कारण उस ओर बरती जाने वाली हमारी उपेक्षा ही प्रधान कारण है। माँसाहारी देशों में गायें एक-एक मन दूध दें और गौरस की नहरें बहे और हम गौ-भक्तों में उसका दर्शन भी दुर्लभ रहें, यह कैसी विडम्बना है।
हमें चाहिये कि गौ-दूध की उपयोगिता स्वीकार करें और उसी की माँग करें। ऐसी दशा में भैंस पालने वाले सहज ही गौ पालने लगेंगे। जिसकी माँग होगी उसका उत्पादन भी होगा और उसका स्तर भी उठेगा। हम जय गाय की बोलते हैं और दूध भैंस का पीते हैं। इस प्रकार गौरक्षा कैसे सम्भव होगी? जिस दिन जनसाधारण की समझ में गौरस की उपयोगिता आ जाएगी, उसी की माँग की जाएगी तो देखते-देखते यह देश गौधन से भरा-पूरा गौ संवर्धन और गोरस उत्पादन के लिए बड़े पैमाने पर व्यवसायिक स्तर पर काम करें, चाय वालों की तरह गोरस की महत्ता समझने के लिए व्यापक प्रचार करें और धन, पुण्य तथा राष्ट्र की महती सेवा का सुयोग प्राप्त करें। सरकार और जनता ये दोनों वर्ग मिलकर गौरक्षा के लिए कुछ ठोस काम करें, यह आज की एक महती आवश्यकता है।
(‘गौरस बेचन हरि मिलन’ पुस्तिका का एक अंश)
(प. श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा लिखित )

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