बुधवार, 21 मार्च 2018

दिव्य_धेनु_मानस

#दिव्य_धेनु_मानस


1)   गौसेवा रस लहै अपारा।
      रास रचाईं भाव की धारा।।
2)  अकथ अलोकिक सब रस माहिं।
      तिभुअन छाड़ि वृंदाबन आहि।।


#अर्थ:-


गौसेवा में बहुत अपार रस मिलता है। इसलिये भगवान ने रास रचाकर भाव की धारा बहाई। सब रसों में अलोकिक रस एवं अकथनीय है, यह रस जो वृंदावन छोड़कर त्रिभुवन में नहीं है।


3)  श्रीमुख लट लटके घुंघरारी।
      बेला गौधूरि अति पिआरी।।
4)  जे पद कमल गाय के पीछे।
      छाति परहि सकल दुख खींचे।।


#अर्थ:-


हे प्रभु आपके श्रीमुख पर घुंघरारे केश लटक रहे हैं, गौ धूलि की पवित्र प्यारी बेला है, जो पदकमल गाय माता के पीछे चलते हैं, हमारी छाती पर उन्हे रखे जो सारे दुखों को खींच लेते है।


5)  नित भगवंत चरावहि धेनु।
      बन बिचरन संग गौधन रेनु।।
6)  रिषि मुनि बन बसि साधहिं जोगु।
      जीवन सफल न भावय भोगु।।


#अर्थ:-


भगवान सदा गौ चराते है। वन-वन विचरण करते हुये गौ माता की चरण धूरि को प्राप्त करते हैं। ऋषि मुनि लोग वन मे रहकर योग साधना करते है। उन्हे भोग अच्छा नहि लगता है, अपना जीवन सफल बनाते हैं।



शनिवार, 17 मार्च 2018

गाय मरी तो मरता कौन? गाय बची तो बचता कौन?


गाय मरी तो मरता कौन? गाय बची तो बचता कौन?  

डॉ. मनमोहन बजाज, डॉ. इब्राहिम एवं डॉ. विजय राज ने अपने शोधों से यह साबित कर दिया है कि “पृथ्वी पर भूकंप अधिकांशत: ई.पी. वेव्स के कारण ही आते हैं | ये वेव्स गाय एवं अन्य प्राणियों को क़त्ल करते समय उत्पन्न दारुण वेदना एवं चीत्कार से निकलती है|” कटती गायों की चीत्कार से पृथ्वी की रक्षा कवच कही जानेवाली ओजोन परत में 2 करोड़ 70 लाख वर्ग किलोमीटर का छिन्द्र हो गया है| यदि गायों की हत्या इसी प्रकार चलती रही तो वर्ष 2020 तक प्रलय की सम्भावना निश्चित है|

क्या आप जानते है ? 
कोल्डड्रिंक्स, फास्टफूड, घी, बिस्किट आदि में गाय का मांस, रक्त और चर्बी मिलायी जाती है|

देश की आज़ादी के समय   – 90 करोड़ गोधन
सन् 2000 में रह गया        – 10 करोड़ गोधन
सन् 2010 में रह गया        – 3 करोड़ गोधन 


गौरक्षा - गाय की सुरक्षा : सर्वस्व की रक्षा

गौरक्षा - गाय की सुरक्षा : सर्वस्व की रक्षा  

“गावो विश्वस्य मातर |”

                   गौमाता जो आजीवन हमें अपने दूध- दही- घी आदि से पोषित करती है| अपने इन सुंदर उपहारों से जीवनभर हमारा हित करती है| ऐसी गौमाता की महानता से अनभिज्ञ होकर मात्र उसके पालन-पोषण का खर्च वहन ना कर पाने के बहाने उन्हें कत्लखानों के हवाले करना विकास का कौन सा मापदंड है ? क्या गौमाता के प्रति हमारा कोई कर्त्तव्य नहीं है ?
   
 पंडित मदन मोहन मालवीयजी ने कहा है: ’यदि हम गौओं की रक्षा करेंगे तो गौएँ भी हमारी रक्षा करेंगी |’
सदियों से अहिंसा का पुजारी भारतवर्ष आज हिंसक और मांस निर्यातक देश के रूप में उभरता जा रहा है| यह बड़ी विडम्बना है कि एशिया का सबसे बड़ा कत्लखाना अन्य इस्लामिक देशों में नहीं बल्कि भारत के महाराष्ट्र प्रान्त में है, जहाँ हजारों गायें रोज कटती है| दूसरी अल कबीर गोवधशाला आंध्रप्रदेश में है | यहाँ रोज 6 हजार गौएँ , इससे दुगुनी भैसें तथा पड़वे  काटे जाते है| इसका लगभग 30,000 टन मांस विदेशों में निर्यात होता है |


क्या आप जानते हैं जिस गौमाता की आप पूजा करते हैं, उसे किस प्रकार निर्दयतापूर्वक मारा जाता है ?

क्या आप जानते हैं जिस गौमाता की आप पूजा करते हैं, उसे किस प्रकार निर्दयतापूर्वक मारा जाता है ?
कत्लखाने में स्वस्थ गौओं को मौत के कुँए में 4 दिन तक भूखा रखा जाता है| अशक्त होकर गिरने पर घसीटते हुए मशीन के पास ले जाकर उन्हें पीट-पीटकर खड़ा किया जाता है| मशीन की एक पुली (मशीन का पकड़नेवाला एक हिस्सा) गाय के पिछले पैरों को जकड़ लेती है | तत्पश्चात खौलता हुआ पानी 5 मिनट तक उस पर गिराया जाता है| पुली पिछले पैरों को ऊपर उठा देती है| जिससे गायें उलटी लटक जाती हैं| फिर इन गायों की आधी गर्दन काट दी जाती है ताकि खून बाहर आ जाये लेकिन गाय मरे नहीं | तत्काल गाय के पेट में एक छेद करके हवा भरी जाती है, जिससे गाय का शरीर फूल जाता है | उसी समय चमड़ा उतारने का कार्य होता है | गर्भवाले पशु का पेट फाड़कर जिन्दा बच्चे को बाहर निकला जाता है | उसके नर्म चमड़े को (काफ-लेदर) को बहुत महंगे दामों में बेचा जाता है|

सोमवार, 12 मार्च 2018

गोपियुष अमृततुल्य ही है !

गोपियुष अमृततुल्य ही है !


        गोपियुष अर्थात प्रसूती पश्‍चात ४८ से ७२ घंटों में गाय द्वारा प्राप्त प्रथम दूध । गोपियुष और माता द्वारा प्राप्त पियुष में वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत सी समानता पाई गई है । गोपियुष में रोगप्रतिकारक शक्ति और शरीर की सुदृढता के लिए आवश्यक ९० से अधिक पोषकतत्त्व हैं । गोपियुष सुदृढ मानवीय शरीर हेतु ईश्‍वरप्रदत्त अनमोल देन है । आयुर्वेद में इसे ‘अमृततुल्य’ कहा गया है । दस वर्षों से भी पहले विश्‍वविद्यालय तथा मेडिकल रिसर्च सेंटर द्वारा किए गए विविध चिकित्सकीय शोध द्वारा प्रमाणित हुआ है कि गोपियुष में मानवीय शरीर के लिए आवश्यक आण्विक संयोजन एवं विकास घटक समाविष्ट हैं । इसमें शरीर में रोगप्रतिकारक शक्ति विकसित करने की प्रचंड क्षमता भी है ।

प्राकृतिक ऊर्जा की अपेक्षा रासायनिक ऊर्जा की पूर्ति करनेवाला मानव !


        रोग का मूल कारण है, रोगप्रतिकारक शक्ति का अभाव । शरीर, प्रकृति द्वारा प्रदान एक अनमोल संपदा है; परंतु बाल्यावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक इसकी उपेक्षा की जाती है । शरीर का प्रत्येक अवयव अत्यंत सावधानीपूर्वक अपना कार्य करता रहता है । इस समय उसे प्राकृतिक ऊर्जा की ही आवश्यकता होती है; परंतु हम रासायनिक ऊर्जा देकर शरीर की कार्यप्रणाली में बाधा लाते हैं । इससे अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं । शरीर प्रकृति द्वारा निर्मित व्यवस्था है, इसलिए वह प्रकृति के नियमों के अनुसार ही कार्य करेगा; परंतु हम इसकी उपेक्षा कर उसे सदैव अपनी सुविधानुसार चलाने का प्रयत्न करते हैं ।

        भाग-दौड भरी जीवनप्रणाली में प्रकृति द्वारा निर्मित संपदा को प्रकृति के विरुद्ध जाकर अपनी इच्छा अनुसार संभालने की भूल मनुष्य द्वारा सदैव होती रहने से गांव-गांव में चिकित्सालय फैले हुए हैं । अंत में अपने बलबूते पर प्रकृति को जीतने की दौड में हम सदैव पराभूत हो रहे हैं । प्रकृति द्वारा निर्मित अनमोल शरीरव्यवस्था को रोगयुक्त बनाकर हम दु:खी जीवन जी रहे हैं ।

शरीर निरोगी रखनेवाले ‘गोपियुष’ का सेवन करें !


        प्रतिदिन ‘गोपियुष’ का सेवन करने का अर्थ है, उत्तम रोगप्रतिकारक शक्ति निर्माण करना । गोपियुष अर्थात अवयवों के लिए नित्य आवश्यक ऊर्जास्रोत और रोगों को शरीर में प्रवेश न देने की प्रचंड शक्ति का भंडार । गोपियुष में इम्युनोग्लोब्युुलिन्स, एमिनो एसिड्स, ग्रोथ फैक्टर्स, एन्टी ऑक्सीडेंट, प्रोटीन्स, स्नायु बलवान बनाने के लिए आवश्यक घटक, रक्तपरिसंचार तंत्र, पाचन तंत्र, मानसिक संतुलन उत्तम रहने के लिए आवश्यक घटक, संप्रेरक, ग्रोथ हार्मोन्स आदि होते हैं । परिणामस्वरूप शरीर निरोगी रखने में यह बहुत सहायक होता है । मधुमेह, कर्करोग, अधसीसी, रोगप्रतिकारक शक्ति का अभाव, घुटनों की व्याधियां, थाइरॉईड, महिलाआें की विविध व्याधियां, बच्चों की व्याधियां, वायरल अस्थमा, अल्सर, रक्तचाप, अपच, एच.आइ.वी., फिट्स जैसे विविध भयानक रोगों से गोपियुष हमारी रक्षा करता है । पियुष अमृततुल्य है । गोपियुष के सेवन से एलोपैथी की भांति किसी भी प्रकार के दुष्परिणाम नहीं होते ।

        अनेक लोग गोपियुष से अनभिज्ञ होते हैं । इसलिए इसका वैज्ञानिक दृष्टि से प्रसार होना आवश्यक है । वर्तमान में गायों की संख्या अल्प होती जा रही है । इसलिए दूध का उत्पाद घट रहा है । अतः ‘जहां गांव वहां गोशाला’ इसे वास्तविकता में लाने के लिए शासन, सामाजिक संस्था तथा उद्यमियों को प्रयत्न करना आवश्यक है ।

चिकित्सालय के व्यय की तुलना में गोपियुष सस्ता !


        गोपियुष विशिष्ट स्थानों पर ही उपलब्ध होता है । उत्कृष्ट श्रेणी की गोपियुष पाऊडर बनानेवाले कारखाने अत्यल्प हैं । महाराष्ट्र में तो एक भी कारखाना नहीं है । अत्यल्प स्थानों पर मिलने के कारण उसका मूल्य भी अनियंत्रित रहता है । तत्पश्‍चात भी औषधियां, परीक्षण तथा चिकित्सालय के व्यय की तुलना में गोपियुष का मूल्य कई गुना अल्प है । साथ ही वह दुष्परिणामों से भी मुक्त है ।

आइए, प्रकृति द्वारा निर्मित आयुर्वेद का स्वीकार करें !