शनिवार, 16 जून 2018

गो-सेवा - घर बैठे!

गो-सेवा - घर बैठे!

गोवंश रक्षण यह विष्वस्तरिय अतिव्यापक विषय है। मनुष्य को निरोगी रखने के लिये भी यह अतीआवष्यक विषय हैं। इसी लिये संपूर्ण मनुष्य जाती का इसमें सहभाग आवष्यक है। प्रत्येक व्यक्ति में तथा हर घर में यह जागृती आना आवष्यक है। कुछ पहलू इतने आसान है कि रोज के जीवन में हमे अतिरिक्त/अलग से समय निकालने की भी आवष्यकता नहीं हैं।

गोवंश रक्षण यह विष्वस्तरिय अतिव्यापक विषय है। मनुष्य को निरोगी रखने के लिये भी यह अतीआवष्यक विषय हैं। इसी लिये संपूर्ण मनुष्य जाती का इसमें सहभाग आवष्यक है। कहते भी है वो की किसी भी कठिण कार्य को एक व्यक्ती के लिये महत्कठिण हैं। कुछ लोगों के लिये थोडा कठिण है तथा सभीको मिलकर योजना बद्ध तरिके से करने पर वह आसान होता हैं। गोरक्षा का विषय भी इस प्रकारका कठिण परंतू सभी मनुष्य ने तय करने पर एक आसान विषय ही हैं। परंतु प्रत्येक व्यक्ति में तथा हर घर में यह जागृती आना आवष्यक है। कुछ पहलू इतने आसान है कि रोज के जीवन में हमे अतिरिक्त/अलग से समय निकालने की भी आवष्यकता नहीं हैं।

हर घर में रोज खाना पकता है तथा अनेक घरों मे उसमेसे गो-ग्रास निकालने की पद्धती है जो हमारी संस्कृती का अभिन्न अंग भी हैं, पर यही पकाया हुआ अन्न ज्यादा मात्रा में गाय के पेट में जानेपर गाय की पचन संस्था को बिगाडता है क्योंकी गाय की पचन संस्था मनुष्य की तरह पका अन्न पचानेको अक्षम हैं। इसीलिये यह गोग्रास अल्प मात्रा में निकाले। तथा हमेषा ताजा गोग्रास ही दें। पका गोग्रास खाने से गाय के दूध, गोबर तथा गोमूत्र के गुणवत्ता में फर्क पडता हैं तथा गाय बिमार भी पड सकती हैं।

ष्    षहरोंमे अभी गोवंष की संख्या बहुत ही मर्यादित हुई हैं। लगभग 500 घरोंकी आवासिय क्षेत्र में एकाध गाय दिखती हैं। अब इन 500 घरों से उस गाय को पका हुआ गोग्रास मिलातो उस गाय का क्या होगा, एक चिंतनिय बात हैं। इसलिये इसे प्रतिनिधिक तरिकेसे अल्प मात्र में लेकर गाय को घर मे लाये हुये सब्जियों के टंडल, फलों की छाल जिन्हे हम घरके कचरेकी टोकरीयों में डालकर कचरे में फेंकते हैं जहाँ वह सड़ गल जाता हैं इसकी बजाय व टंडल तथा छाल जो की तंतूमय होने से गायके लिये अतिपौष्टिक रहता हैं, यह गाय को खाने को दे सकते हैं। परंतु इनचिजों को प्लास्टिक पन्नी में डालकर गायको न दे। क्योंकी आज प्लॅस्टिक पन्नीया सर्वत्र उपलब्ध व उपयोग के लिये आसान होने के कारण यह सर्व व्यापी हो गयी हैं। परंतु इसीने अभीतक हजारों गोवंष का प्राण लिया हैं।

हमारे संबंधित लोग जो किसानी/खेती कर रहे हैं उन्हे गो आधारित सेंद्रिय खेती करने के लिये हम आग्रह कर सकते हैं।इस प्रकार से उत्पादित अनाज को हम अपने प्रयत्नोंसे ग्राहक बनाकर दे सकते हैं। 

हमारे परिजनों को सेंद्रिय खेती में बना अनाज लेने के लिये हम आग्रह कर सकते हैं।


सब्जियाँ तथा खाने की चिजें हम अपनी सुविधा नुसार प्लॅस्टिक पन्नीयों में रखते हैं तथा फेंकते समय भी इन्ही पन्नीयों सहित फेंकते हैं। इन प्लॅस्टिक पन्नीयों में रखे खादय पदार्थो के आकर्षण से गोवंष उसे पन्नी सहित खाता हैं। गाव कस की गाय तथा षहरी गाय इनमें तुलना करनेपर षहरों में सडकों पर गायें दिखती है वह लगभग सभी गर्भवती गाय के समान बडे पेटवाली दिखती हैं। क्योंकी रोज लगभग 100 ग्राम प्लास्टिक पन्नीया उसकी पेट में जाकर जमा होते रहती है तथा वह गोबर के साथ बाहर न निकलने के कारण वही जमा रहकर पेट में जहर फैलाती हैं। कुछ गायोंका आॅपरेषन करने पर उनके पेटसे लगभग 40 किलो तक पन्नीया निकली हैं। हमारे आधुनिकता का प्रतिक प्लास्टिक पन्नीया गाय के लिये मात्र मृत्युदंड साबित हो रही हैं। कसाई द्वारा हम प्रयत्न पूर्वक गायको बचा सकते हैं। पर जाने अनजाने में हम ही छुपे कसाई बन रहे हैं। उसका क्या! खाने की कुछ भी चिजें प्लास्टिक पन्नी में न फेंकना तथा हो सके तब तक पतली प्लास्टिक पन्नीया ही न वापरना यह आज के युग की सबसे बड़ी गोसेवा तथा गोरक्षा सिद्ध होगी।
    
हमारे परिवार को स्वस्थ रखने के लिये हम देसी गाय के दूध तथा घी का आग्रह रख सकते है। निरोगी स्वस्थ जीवन की यह प्राथमिक नीव हैं। परंतू आज सर्वत्र संकरित विदेषी गाय का दूध तथा घी मिल रहा है जो उतना आरोग्य दायी नहीं हैं। कहे तो आरोग्य घतक हैं। इससे बचना होगा।
   
कुछ घरों में ग्वाले दूध देते हैं। उनसे हम देसी गाय काही दूध मांगकर उन्हे देसी गाय के पालन के लिये प्रोत्साहित कर सकते है तथा गोपाष्टमी वसुबारस आदी गाय संबंधित मंगलपर्वपर उनके गोषाला के रखरखाव का निरिक्षण कर वह गाय की स्थिती भी देख सकते हैं। आवष्यक दिषानिर्देष वह ग्वाला सहर्ष स्विकार करेगा क्योकी हमसे मिले पैसे ही तो उसका जीवननिर्वाह हैं। इससे वहा की गायों के रखरखाव में भी सुधार आयेगा। याने गाय की पूजा भी होगी और वास्तव में दिर्घकालीन गोसेवा भी।
    
अनेक गोषालाये नित्या उपयोग वस्तूएँ बनाती हैं। उदा. दंतमंजन, नहाने का साबून, पूजा की धूपबत्ती, बालोंको धोने कालोषन, मच्छर अगरबत्ती आदी इन चिजोंकी गुणवत्ता में वास्तव में कही भी नही टिकती। गोबर से बने दंतमंजन से दातों में कीड भी नही पडती तथा दात दिर्घकाल निरोगी रहते हैं। गोबर से बने साबून से त्वचा भी निरोगी रहती हैं तथा रक्तचाप भी योग्य रहता हैं। गोमूत्र से बने केष उत्पादोंसे (तेल, लोषल) बालों का झड़ना तथा रूसीं का सफल उपचार होना हैं। नियमित उपचार से बाल चमकिले तथा निरोगी बनते हैं।
    
रोज के जीवन में देसी गाय का घी हमारी भूक को वृद्धिंगत करता हैं तथा पचनसंस्था को भी मजबूत रखना हैं। रोज रात को सोते समय देसी गाय के दूध में 1, 2 चम्मच देसी गाय का घी डालकर लेते है तो सुबह पेट अच्छा साफ होता हैं। हमारे देष में इतनी सादी चिज के लिये लोग गोलिया तथा न जाने क्या क्या दवाईयाँ लेते हैं।
    
गोबर से बनी धुपबत्ती घर में षुद्ध हवा रहने में मदत कर वातावरण मंगलमय बनाती हैं। इन सभी चिजों का हम वापर कर दुसरों को इसके लिये प्रोत्साहित करना यह हमारी सामुहिक गोसेवा नहीं हैं क्या?

अगर हमारे पास हमारे दैनंदिन कार्यो के बावजुद कुछ अतिरिक्त समय है, या हम सेवानिवृत्त हैं तो हम बाकी लोगों से कुघ अलग भी कर सकते हैं। गाय विषय पर जो स्वास्थ संबंधित तथा कृषि संबंधि अपने क्षेत्र में प्रसिद्ध होनेवाले पत्र पत्रिकाओं में प्रसिद्ध कर सकते हैं।
हमारे संबंधित लोग जो किसानी/खेती कर रहे हैं उन्हे गो आधारित सेंद्रिय खेती करने के लिये हम आग्रह कर सकते हैं।इस प्रकार से उत्पादित अनाज को हम अपने प्रयत्नोंसे ग्राहक बनाकर दे सकते हैं। हमारे परिजनों को सेंद्रिय खेती में बना अनाज लेने के लिये हम आग्रह कर सकते हैं।
यह सभी बिंदू ऐसे है जो हम हमारे रोज के व्यवहारिक कार्य करते समय भी आसानीसे कर सकते हैं।

क्या हम रोज गोसेवा नहीं कर रहें हैं?

साम्भार : Dr. Nandini Bhojraj

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