गुरुवार, 6 जून 2019

गाय की महत्ता और आवश्यकता

गाय की महत्ता और आवश्यकता -3-

                    प्रश्नोत्तर

     प्रश्न‒गाय के घी से आहुति देनेपर वर्षा होती है‒ऐसा शास्त्रों में आता है । आजकल प्रायः लोग गाय के घी से यज्ञ, होम आदि नहीं करते तो भी वर्षा होती ही है‒इसका कारण क्या है ?

     उत्तर‒प्राचीन काल से जो यज्ञ, होम होते आये हैं, उनका संग्रह अभी बाकी है । उसी संग्रह से अभी वर्षा हो रही है । परंतु अभी यज्ञ आदि न होने से वैसी व्यवस्था नहीं रही है, इसलिये कहीं अतिवृष्टि और कहीं अनावृष्टि हो रही है । वर्षा भी बहुत कम हो रही है ।

     प्रश्न‒वर्षा अग्नि में आहुति देने से ही होती है या कर्तव्य का पालन करने से होती है ?

     उत्तर‒कर्तव्य-पालन के अन्तर्गत यज्ञ, होम, दान, तप आदि सब कर्म आ जाते हैं । गीता ने भी यज्ञ आदि को कर्तव्य-कर्म के अन्तर्गत ही माना है । अगर मनुष्य अपने कर्तव्य का पालन करेंगे तो सूर्य, वरुण, वायु आदि देवता भी अपने कर्तव्य का पालन करेंगे और समयपर वर्षा करेंगे ।

     प्रश्न‒विदेशों में यज्ञ आदि नहीं होते, फिर वहाँ देवतालोग वर्षा क्यों करते हैं ?

     उत्तर‒जिन देशों में गायें नहीं हैं अथवा जिन देशों के लोग यज्ञ आदि नहीं करते, वहाँ भी अपने कर्तव्य-कर्म का पालन तो होता ही है । वहाँ के लोग अपने कर्तव्य का पालन करते हैं तो देवता भी अपने कर्तव्य का पालन करते हैं अर्थात् वहाँ वर्षा आदि करते हैं ।

     प्रश्न‒ट्रैक्टर आदि यन्त्रों से खेती हो जाती है, फिर गाय-बैल की क्या जरूरत है ?

     उत्तर‒वैज्ञानिकों ने कहा है कि अभी जिस रीति से तेल खर्च हो रहा है, ऐसे खर्च होता रहा तो लगभग बीस वर्षों में ये तेल आदि सब समाप्त हो जायँगे, जमीन में तेल नहीं रहेगा । जब तेल ही नहीं रहेगा, तब यन्त्र कैसे चलेंगे ? उस समय गाय-बैल ही काम आयेंगे ।

     प्रश्न‒तेल नहीं रहेगा तो उसकी जगह कोई नया आविष्कार हो जायगा, फिर गायों की क्या आवश्यकता ?

     उत्तर‒नया आविष्कार हो अथवा न हो, पर जो चीज अभी अपने हाथ में है, उसको क्यों नष्ट करें ? जो चीज अभी हाथ में नहीं है, भविष्यपर निर्भर है, उसको लेकर अभी की चीज को नष्ट करना बुद्धिमानी नहीं है । जैसे, गर्भ के बालक की आशा से गोद के बालक को समाप्त करना बुद्धिमानी नहीं है, प्रत्युत बड़ी भारी भूल है, महान् मूर्खता है, घोर पाप, अन्याय है । गायों की परम्परा तो युगोंतक चलती रहेगी, पर आविष्कारों की परम्परा भी चलती रहेगी‒इसका क्या भरोसा ? अगर विश्वयुद्ध छिड़ जाय तो क्या आविष्कार सुरक्षित रह सकेंगे ? पीछे को कदम तो उठा लिया और आगे जगह मिली नहीं तो क्या दशा होगी ? इसलिये आगे आविष्कार होगा‒इस विचार को लेकर गायों का नाश नहीं करना चाहिये, प्रत्युत प्रयत्नपूर्वक उनकी रक्षा करनी चाहिये । उत्पादन के जितने उपाय हों, उतना ही बढ़िया है । उनको नष्ट करने से क्या लाभ ? अगर आगे आविष्कार हो भी जाय तो भी गायें निरर्थक नहीं हैं । गायों के गोबर-गोमूत्र से अनेक रोग दूर होते हैं । उनसे बनी खाद के समान कोई खाद नहीं है । गाय के दूध के समान कोई दूध नहीं है । गाय से होनेवाले लाभों की गणना नहीं की जा सकती ।
जय गौ माता

'साधन-सुधा-सिन्धु' पुस्तक से, पुस्तक कोड- 465, विषय- गाय की महत्ता और आवश्यकता, पृष्ठ-संख्या- ९४०, गीताप्रेस गोरखपुर

ब्रह्मलीन श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज

सोमवार, 3 जून 2019

श्रीकृष्ण और उनकी प्रिय गाये

श्रीकृष्ण और उनकी प्रिय गायें.........

बड़ी ही मधुर लीला है जरूर पढ़े

आगे गाय पाछे गाय, इत गाय उत गाय, गोविन्द को गायन में बसवोई भावे।
गायन के संग धाये, गायन में सचु पाये, गायन की खुररेणु अंग लपटावे॥

गायन सो ब्रज छायो बैकुंठ बिसरायो, गायन के हेत कर गिरि ले उठायो।
छीतस्वामी गिरिधारी विट्ठलेश वपुधारी, ग्वारिया को भेष धरे गायन में आवे॥

भगवान श्रीकृष्ण को गाय अत्यन्त प्रिय है।

भगवान ने गोवर्धन पर्वत धारण करके इन्द्र के कोप से गोप, गोपी एवं गायों की रक्षा की।
अभिमान भंग होने पर इन्द्र एवं कामधेनु ने भगवान को ‘गोविन्द’ नाम से विभूषित किया।

गो शब्द के तीन अर्थ हैं:- इन्द्रियाँ, गाय और भूमि, श्रीकृष्ण इन तीनों को आनन्द देते हैं।

गौ, ब्राह्मण तथा धर्म की रक्षा के लिए ही श्रीकृष्ण ने अवतार लिया है।

            'नमो ब्रह्मण्यदेवाय गोब्राह्मणहिताय च।
          जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नम:॥'

श्रीरामचरितमानस में भी लिखा है:-

        'बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।
          निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार॥'

गोमाता मातृशक्ति की साक्षात् प्रतिमा है, वेदों में कहा गया है कि गाय रुद्रों की माता, वसुओं की पुत्री, अदिति-पुत्रों की बहन और घृतरूप अमृत का खजाना है।

भविष्यपुराण में श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा है:-समुद्रमंथन के समय क्षीरसागर से लोकों की कल्याणकारिणी जो पांच गौएँ उत्पन्न हुयीं थीं उनके नाम थे - नन्दा, सुभद्रा, सुरभि, सुशीला और बहुला, इन्हें कामधेनु कहा गया है।

संसार में पृथ्वी और गौ से अधिक क्षमावान और कोई नहीं है, ब्राह्मणों में मंत्रों का निवास है और गाय में हविष्य स्थित है।

गाय को सर्वतीर्थमयी कहा गया है, गाय को इहलोक में मुक्ति दिलाकर परलोक में शान्ति दिलाने का माध्यम माना गया है।

श्रीकृष्ण की बाललीला का मुख्य पात्र गौएं ही थीं, श्रीकृष्ण का गाय चराने जाना, उनकी मधुर वंशी ध्वनि पर गायों का उनकी ओर भागते चले आना, श्रीकृष्ण का छोटी उम्र में हठ करके गाय का दूध दूहना सीखना एवं प्रसन्न होना, गाय का माखन चुराना आदि।

नंदबाबा के पास नौ लाख गौएँ थीं।

श्रीकृष्ण कुछ बड़े हुए तो उन्होंने गोचारण के लिए माँ यशोदा से आज्ञा माँगी:-

मैया री! मैं गाय चरावन जैंहौं।
तूँ कहि, महरि! नंदबाबा सौं, बड़ौ भयौ, न डरैहौं॥

श्रीदामा लै आदि सखा सब, अरु हलधर सँग लैहौं।
दह्यौ-भात काँवरि भरि लैहौं, भूख लगै तब खैहौं॥

बंसीबट की सीतल छैयाँ खेलत में सुख पैहौं।
परमानंददास सँग खेलौं, जाय जमुनतट न्हैहौं॥

माता यशोदा का हृदय तो धक्-धक् करने लगा कि इतनी दूर वन में मेरा प्राणधन अकेला कैसे जायेगा।

उन्होंने बहुत समझाया कि बेटा अभी तुम छोटे हो पर कृष्ण की जिद के आगे वह हार मान ही गयीं।

कार्तिकमास के शुक्लपक्ष की अष्टमी को गोचारण का मुहूर्त निकला।
माता यशोदा ने प्रात:काल ही सब मंगलकार्य किये और श्रीकृष्ण को नहला कर सुसज्जित किया।

सिर पर मोरमुकुट, गले में माला, तथा पीताम्बर धारण करवाया, हाथ में बेंत तथा नरसिंहा दिया।

फिर पैरों में जूतियाँ पहनाने लगीं तो कृष्ण ने जूते पहनने से मना कर दिया और माँ से कहा:- ‘यदि तू मेरी सारी गौओं को जूती पहना दे तो मैं इनको पहन लूँगा, जब गैया धरती पर नंगे पाँव चलेगी तो मैं भी नँगे पाँव जाऊँगा।’

श्रीकृष्ण जब तक ब्रज में रहे उन्होंने न तो सिले वस्त्र पहने, न जूते पहने और न ही कोई शस्त्र उठाया।

श्रीकृष्ण ने गोमाता की दावानल से रक्षा की, ब्रह्माजी से छुड़ाकर लाए, इन्द्र के कोप से रक्षा की।

गायों को श्रीकृष्ण से कितना सुख मिलता है यह अवर्णनीय है, जैसे ही गायें कृष्ण को देखतीं वे उनके शरीर को चाटने लगतीं हैं।

हर गाय का अपना एक नाम है, कृष्ण हर गाय को उसके नाम से पुकारते हैं तो वह गाय उनके पास दौड़ी चली आती है और उसके थनों से दूध चूने लगता है, समस्त गायें उनसे आत्मतुल्य प्रेम करती थीं।

गौ के बिना जीवन नहीं, गौ के बिना कृष्ण नहीं, कृष्णभक्ति भी नहीं।
जो व्यक्ति अपने को कृष्ण भक्त मानता है और शारीरिक व मानसिक रूप से वृन्दावन में वास करता है उन्हें तो विशेष रूप से कृष्ण की प्रसन्नता के लिए गोपालन, गोरक्षा व गोसंवर्धन पर ध्यान देना चाहिए।

नमो गोभ्य: श्रीमतीभ्य: सौरभेयीभ्य: एव च।
नमो ब्रह्मसुताभ्यश्च पवित्राभ्यो नमो नम:॥

जय श्री राधे कृष्ण
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शनिवार, 1 जून 2019

विश्व दूध दिवस पर विशेष लेख अवश्य पढ़ें

वन्दे गो मातरम....!!
          "विश्व दूध दिवस" पर विशेष लेख अवश्य पढ़ें

    आज "विश्व दूध दिवस" है इसलिये काले दूध की हकीकत जाननी जरूरी है सबसे पहले WHO की रिपोर्ट है कि भारत मे 68% दूध नकली है जिसके कारण भारत मे 2025 तक लोगो मे भयंकर बीमारिया होने वाली है दूसरा सिकर जिले में साढ़े तीन लाख लीटर दूध गाये व अन्य पशुओं के प्रतिदिन का उत्पादन होता है और खपत है 7 लाख लीटर की अब समझ लो काले दूध की हकीकत ये ही नही इसके साथ मावा,घी,पनीर,दही व छाछ सभी वस्तुएं नकली केमिकल से बनाई जाती है और सब लोग खा रहे है और बीमारियों को निमंत्रण दे रहे।
                 उपाय क्या है......?
           सबसे पहले तो जिस परिवार के घर मे गाय रखने की व्यवस्था है वो गाय रखे और शुद्ध दूध प्राप्त करे इसके अलावा सभी गो वर्ती बने संकल्प ले कि में भारतीय वेद लक्षणा गाय का दूध अथवा दूध से निर्मित अन्य चीजें ग्रहण करूँगा अन्यथा सादा रोटी व सब्जी खाऊंगा ....... हमने कभी शुद्ध वस्तू की मांग ही नही की  भारत मे जीतने शराबी है उससे आधे भी गो वर्ती बन जाये तो गली गली में शुद्ध दूध मिलने लग जाये...... पर नही नकली मंजूर है,बीमारी मंजूर है,होटल मे पैसे बर्बाद करना मंजूर है,भयंकर बीमारी से पूरे परिवार में बिखराव मंजूर है.......पर शुद्ध भोजन प्राप्त हो उसके लिये एक विचार करना भी मंजूर नही है......इसे ही तो कलयुग कहते है।
                    गाय नही पालेंगे खेती नही करेंगे
                    तो कैसे शुद्ध आहार प्राप्त करेंगे

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