गुरुवार, 5 सितंबर 2019

गोमाता का सांस्कृतिक महत्व : ७

गोमाता का सांस्कृतिक महत्व : ७

' यत्र गाव: प्रसन्ना: स्यु प्रसन्नास्तत्र सम्पद:' अर्थात जहा गोमाता प्रसन्न है; वहा सभी पशु एवं मनुष्य प्रसन्न रहेंगे, गोमाता को प्रसन्न रखना अर्थात गोमाता का पालन पोषण करना और संवर्धन करना, पृथ्वी स्वरूपा गोमाता यग्नपयोगी पदार्थो को देने वाली है, सनातन धर्म की माता है, बालक, वृद्ध, रोगी, और योगी सबका एक समान हित करने वाले है, गोमाता के शरीर में इतनी ताकत है की कोई भी प्रकार का अन्न अमृत हो जाता है |

जहा गोमाता है वहा गंगा है अर्थात गोमूत्र में गंगाजी की पवित्रता है, जहा गोमाता है वहा लक्ष्मीजी अर्थात गोबर में लक्ष्मीजी की समृद्धि है जो किसानो को अखुट पाक देता है क्योकि गोमाता के शरीरमे ब्रह्माजी स्थित है |

जिस देशके गोमाता दुखी है उस देश के मनुष्य कैसे सुख-शांति प्राप्त कर सकते है ? गोमाता की अहवेलना करना वह अपनी संस्कृति की अहवेलना करने के सामान ही है | आज कलियुग में गोरक्षा हमारे शरीर की रक्षासे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है, यदि अंधकार हटाना होतो हमें गोमाता की सेवा, पालन-पोषण करना चाहिए | ' गावो विश्वस्य मातर' गोमाता पुरे विश्व की माता है ऐसा हमारे वेदो, ऋषिमुनियोंने कहा था, गोमाता पवित्र है और उसका दर्शन मंगलकारी है | 
- वन्दे मातरम, जय गोमाता

गोमाता का सांस्कृतिक महत्व ६ :

गोमाता का सांस्कृतिक महत्व ६ :

कई बार ख्याल आता है की.. प्राचीन समय में कितनी गोमाताए थी?

श्री कृष्णा भगवान के प्रागट्य यानी की नंदोत्सव के समय पांच लाख गोमाता का दान किया गया था | जनक राजा ने सीतामाता के विवाह के दौरान हज़ारो गोमाता का दान किया था | सिर्फ बेटी या संबधियो को ही नहीं परन्तु समाज के हर एक स्तर पे गोमाता का दान किया जाता था |

समाज में उच्च स्तर के लोग, छोटे बड़े त्यौहार व प्रसंग मे पवित्र गोमाता का दान करते थे | यह रामायण, महाभारत, तथा उपनिषद उल्लेखित है | गोमाता का दान समृद्धि के दान समान ही है | गोमाता भगवान श्री कृष्ण के जीवन का अभिन्न अंग है |

भगवान श्री कृष्ण स्वयं गोपालन करते और भारत भर मे सचमुच दुग्ध और घी की नदिया बहती अर्थात यह खूब ज्यादा मात्रा में प्राप्य था | हर एक इंसान के पास गोमाता प्राप्य थी और हर शाम गोमाता घर को वापिस लौटते समय दुग्ध का दोहन किया जाता था | ब्रह्म मुहरत में  लोग उठकर के सीधा गोमाता की सेवामे पूरा दिन समर्पित कर देते थे | आज आधुनिक युग में पैसे खर्च करके भी शुद्ध पंचगव्य प्राप्त करना मुश्किल बन गया है | सुविधाएं बढ़ी संस्कृति बदली और देखते ही देखते गोमाता का यह महत्व हमारी जिंदगी से धीरे धीरे कम होता गया | और इस का परिणाम आज हमारे सामने है ।

- वन्दे मातरम, जय गोमाता


गोमाता का सांस्कृतिक महत्व - ५ :

गोमाता का सांस्कृतिक महत्व - ५ :
हर एक मनुष्य को गोमाता की सेवा अपने संतान की तरह सबंध रख कर सेवा करनी चाहिए | गोमाता के सेवक को गोशाला में ही रहना चाहिए, गोमाता के लिए तभी बढ़ेगा जब गोपालक गोमाता के साथ रहे और उनकी रोज बरोज देखभाल करे, ऐसा करने से गोमाता की वृद्धि जल्द से बढ़ेगी, उसके पीछे हमारी संवेदना और वैज्ञानिक कारण भी जिम्मेदार है - अथर्वेद ३,१४,५-६

गोमाता के सुन्दर नाम रखने चाहिए, उनसे गोमाता आपके अधिक नजदीक आयेंगे और अपने साथ गोमाता का आंतरिक जोड़ बढ़ जाता है, और गोमाता प्रेम और सेवा से प्रसन्न हो कर सात्विक एवं मधुर दुग्धकी मात्रा बढ़ेगी - अथर्वेद २,२६,४

सविता भगवान यानि संतृप्तिना देव, जो गोमाता मे लगातार बह रहा है, हमारी चेतना और संवेदना के साथ जुड़े हुए है, ऐसी चेतना के साथ गोमाता का दोहन किया जाये तो उसका फल हमें जरूर मिलता है - अथर्ववेद
- वन्दे मातरम, जय गोमाता

गोमाता का सांस्कृतिक महत्व - ४ :

गोमाता का सांस्कृतिक महत्व - ४ :
आज हम गोमाता का महत्व भूल गए है | उसका मुख्य कारण यह है की आज की युवापेढ़ी को गोमाता की  वैज्ञानिक उपयोगिता का सच्चा मूल्य नहीं है | हर युगमे सभी राजाओ द्वारा गोमाता की उपयोगिता की समज प्राप्त होती गई और उस वजह से ही यह दैवी सम्पदा हमारे तक पहुच सकी है | किन्तु हमारी गैरजवाबदारी के फल स्वरूप कई ऐसा न हो के यह दैवी धरोहर धीरे-धीरे हमारे यहा से विनाश की और न चले जाये
आज हम गोमाता को भूल गए है, इसलिए हम दुखी है | हम गोमाता के मूल्यांकन के लायक नहीं है, गोमाता का महिमा क्या है वो भी पता नहीं है | पश्चिमी देश मे गोमाता मांसाहारी स्त्रोत है, किन्तु हमारे लिए तो सामाजिक, धार्मिक, एवं आर्थिक संस्कृति की धरोहर गोमाता ही है |
- वन्दे मातरम, जय गोमाता

गोमाता का सांस्कृतिक महत्व - 3 :

गोमाता का सांस्कृतिक महत्व - 3 :
वैसे तो गोमाता की पूजा करने से सभी देवो की पूजा हो जाती है | गोमाता की पूजा यह मात्र कुमकुम, तिलकसे पूजा करने की बात नहीं है किन्तु गोमाता के लालन पालन में मग्न हो कर और निःस्वार्थ भाव से ही सचमुच मनको शांति का अहसास होता है | गोमाता का पूजन स्वयं श्री कृष्ण भगवानने किया था ऐ बात सर्ववेदित है | भगवान श्री कृष्णे गोवर्धनपूजन के अवसर पर स्वयं गो-यज्ञ करवाया था | गो-यज्ञ में वेदोक्त, गो-सूक्तो से गोरक्षार्थ हवन, गो-पूजन, वृषभ पूजन आदि करवाए थे, उसे गो-सरक्षण, गो-संवर्धन, गो-वंशवर्धन, एवं गो-महत्व के द्वारा पुरे भारत वर्षको विशेष लाभ करवाया था |
भगवान महर्षि च्यवन सरिता के जल में बैठ कर तपस्या कर रहे थे | एक बार वो मछुआरा के जाल में फस गए | मछुआरा जाल निकालके देखते है तो महर्षि के दर्शन होते है, और सब डर गए की कई श्राप ना दे दे, किन्तु महर्षि ने कहा.. मेरी वजह से आपकी महेनत निष्फल नहीं जानी चाहिए, तो आप लोग मछली की तरह मुझे ही बाजार में बेच दो, महर्षि की आज्ञा मानकर मछुआरे महर्षि को बाजार में बेचने के लिए गए, किन्तु कोई महर्षि को  खरीद नहीं रहा था | उस वक्त राजा नहुषको यह समाचार मिले तो राजा दौड़ते हुए वहा पहुँचे, महर्षि च्यवन बहोत बड़े तपस्वी थे वो राजा बराबर जानते थे, राजा ने आ कर  महर्षि को सास्टांग दंडवत प्रणाम किए और हाथ जोड कर आज्ञा की प्रतीज्ञा करते हुए खड़े रहे | महर्षि बोले की.. राजन आप मुझे खरीद लीजिये..!! तब राजाने संकोचवश पूछा की क्या में आपका मूल्य दे पाउँगा ? मेरा क्या मूल्य ? महर्षि ने यह सुनकर कहा की राजन..!! आपकी सारी समृद्धि से मेरा मूल्य नहीं चूका पाओगे, किन्तु एक श्रेठ गोमाता के बराबर मेरा मूल्य हो सकता है और इन लोगो को एक श्रेठ गोमाता दे सकते हो | उसके बाद राजाने मछुआरा को एक श्रेठ गोमाता दे दी | इस घटना से हम समज सकते है की गोमाता का मूल्य कितना है और गोमाता का महत्व कितना है |
जय गोमाता

गोमाता का सांस्कृतिक महत्व - २ :

गोमाता का सांस्कृतिक महत्व - २ :
गोवंश अमृतदाता, कल्याणदाता, और सुख-समृद्धि बढ़ाने वाला हे इस लिए सभी आश्रम में गोशाला रहती थी और शिष्यों को भी गोपालन शिखाया जाता था | शास्त्रों में गोमाता को सर्वदेवमई और सर्वतीर्थमई कहा जाता है | गोमाता के पीठमें ब्रह्माजी बिराजमान है अर्थात गोमाता के पीठ में अनंत मुदिता और अनंत करुणा है, ऐसे ब्रह्माजी के जैसे गुण गोमाता में है | गोमाता के कंठमे भगवान विष्णुजी है जो समग्र पृथ्वी का पालन पोषण करते है तो गोमाता ऐसे ही हमारा पालन पोषण करते है | गोमाता के ललाट में शिवजी बिराजमान है | शिवजी यानि कल्याण | गोमाता का मुख इतना शांत होता है की गोमाता को देखते ही अपना मन कल्याणकारी हो जाता है |
गोमाता के मध्यमें देवलोक है | वैज्ञानिक और मानसिक तरीके से देखने जाये तो गोपालन का कार्य इतना कल्याणकारी है की गोपालन करते करते किसी भी मनुष्य का मन शांति का अनुभव करता है तो वो देवलोक समान है, उसके रोम रोम में महर्षिगण अर्थात ऋषि सम आभा है | जो उसकी पवित्रता का दर्शन करवाता है | गोमाता के पूछ के भाग में अनंत करुणा है | गोमाता के पांवोमें पर्वतो, नेत्रोमे सूर्य-चंद्र एवं गोमूत्र में गंगाजी बिराजमान है | गोमाता के रोम-रोम में देवगण का वास होता है | इसलिए कहा गया है..की गोमाता में ३३ करोड़ देवी देवताओ का वास है |

बुधवार, 4 सितंबर 2019

गोमाता का सांस्कृतिक महत्व - १ :

गोमाता का सांस्कृतिक महत्व - १ :
गौमाता के बारे मे वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, श्रीमद भागवत, वेदो, पुराणो, एवं चरकसंहिता, सुशरूतसंहिता, वाग्भट्टसंहिता, सारंगधरसंहिता, आर्यभिषेक, भावप्रकाश और माधवीनदान जैसे महान ग्रंथोमे खूब लिखा गया हे | गौमाता की प्रवित्रता, पूजनीयता एवं महानता के लिए भी शाश्त्रो में लिखा गया हे | परन्तु गौमाता के अनुभूतिके स्तर को समझने का समय अब आ गया है |
गौमाता मानवजाति क लिए सचमुच कितनी अमूल्य, पवित्र एवं कल्याणप्रद जीव है? परन्तु यह बात अनुभूति तक पहुचे तो महत्व की हे | शुक्ल यजुर्वेद में एक प्रश्न हे की 'कस्य मात्र न विद्यते (यजुर्वेद २३-४७)', अर्थार्थ संसार में ऐसा कोनसा पदार्थ हे ? ऐसी कोनसी चीज हे जिसकी तुलना नहीं हो सकती, प्रश्न के उत्तर में उल्लेखित है की 'गोस्तु मात्र न विधते (यजुर्वेद २३-४७)', अर्थार्थ संसार में गौमाता की कोई उपमा नहीं है |
ऋग्वेद में गौमाता की प्रशंशा करते हुए कहा गया है की, 'गावो भग:' अर्थार्थ गौमाता ऐश्वर्य हे | यहां भग शब्द भगवान को सम्बोधित किया हुआ शब्द है | भग शब्द पचीसों साल पुराना शब्द है | जिसमे भगवान के जैसे गुण होते है.. उनके लिए भग शब्द का प्रयोग होता था |