शनिवार, 19 दिसंबर 2020

गायों के भरण पोषण का भार ठाकुर जी ने हम मनुष्यों को सौंपा है


गायों के भरण पोषण का भार ठाकुर जी ने हम मनुष्यों को सौंपा है इससे हम पल्ला नहीं झाड़ सकते

 🚣🏻‍♀️ एक मल्लाह नाविक नाव खेकर अपने एवं अपने परिवार का भरण पोषण करता था एक बार बारिश के मौसम में उसको कुछ परदेसी यात्रियों को नदिया के पार पहुंचाना था परदेसियों ने मौसम का रुख देखकर उस पार जाने में असमर्थता व्यक्त की लेकिन नाविक ने उन्हें कुशलतापूर्वक उस पार पहुंचाने का आश्वासन देकर अपनी नाव में बिठा लिया जैसे ही नाव बीच धार में पहुंची तेज हवाएं चलने लगी जिस से नाव में भय का वातावरण निर्मित हो गया नाविक को लग गया था कि आज नाव नहीं बच पाएगी इतने यात्रियों के जीवन का भार मेरे ऊपर है अब क्या करूं जब मेरे ही प्राण खतरे में है जैसे तैसे  मैं अपने प्राण तो बचाऊ यह सोचकर उसने यात्रियों से कहा कि अपने अपने प्राण बचाओ मैं तो चला और यह कह कर उसने नदी में छलांग लगा दी मल्लाह के नदी में कूदने से यात्री और ज्यादा भयभीत हो गए थोड़ी देर में तेज बारिश शुरू हो गई और मल्लाह सहित सारे के सारे यात्री नदी में डूब कर मर गए यह प्रकरण जब यमराज के पास पहुंचा तो यमराज ने इस घटना को संज्ञान में लेकर चित्रगुप्त से पूछा की बताओ चित्रगुप्त इतने जनों की मृत्यु का पाप किसके सिर पर मढ़ा जाए चित्रगुप्त ने न्यायोचित विचार कर उत्तर दिया कि यह पाप इस मल्लाह के सिर पर ही मढा जाना चाहिए इस पर मल्लाह ने  गिड़गिड़ा कर अनुनय विनय करते हुए कहा कि महाराज मेरे लाख प्रयत्न करने पर भी नाव को मैं बचा नहीं पाता इसलिए मैं अपने प्राण बचाने के लिए नदी में कूद गया इसमें मेरी क्या गलती है तब यमराज ने कहा इसमें सारी गलती तुम्हारी है जैसे ही तुमने इन यात्रियों को अपनी नाव में बिठाया इन सबके प्राणों का भार तुम्हारे ऊपर आ गया था तुम्हारा नैतिक कर्तव्य बनता था की इनके प्राणों की रक्षा करते लेकिन इनकी प्राण रक्षा की थोड़ी सी भी कोशिश किए बिना ही तुम यह समझ कर पानी में कूद गए की अब बचना मुश्किल है अगर तुम नाव को तूफान से बचाने की कोशिश में मारे जाते तो तुम्हारा कोई दोष नहीं होता किंतु दूसरे के प्राणों का भार तुम्हारे ऊपर होने पर भी  तुमने अपने कर्तव्य को नहीं समझा और स्वयं के प्राण बचाने के चक्कर में तुमने इन सबके जीवन के साथ खिलवाड़ किया अतः इन सारे यात्रियों की अकाल मृत्यु का पाप तुम्हारे सिर पर मढा जाकरतुम्हें घोर यम यातना का दंड दिया जाता है भैया यह कहानी तो यहीं समाप्त हो गई लेकिन इस कहानी में एक संदेश छुपा हुआ है  कि हम मनुष्यों को धरती पर गौ माता के भरण पोषण का भार ठाकुर जी ने सौंपा है लेकिन आज हम अपनी स्वार्थ पूर्ति के वशीभूत होकर इस उत्तरदायित्व से उस मल्लाह की तरह ही विमुख होकर गौ माता को  मौत के मुंह में डाल रहे हैं जरा सोचिए जब हम भगवान के यहां जाएंगे और भगवान हमसे यह पूछेंगे कि मैंने जो तुम्हें गौ माता के भरण पोषण का भार तुम्हें सौंपा था तुमने तो गौ माता को जीते जी स्वयं की स्वार्थ सिद्धि के वशीभूत होकर मार दिया भाइयों इस पाप से हम बच नहीं सकते इसलिए हमारा यह नैतिक कर्तव्य बनता है की इस संसार में रहते हुए हमारे आस पड़ोस में जो भी गऊ माता भूखी प्यासी घूम रही है  उन्हें कभी भी भूख से बीमारी से मरने नहीं देना है क्योंकि भगवान के घर में जब न्याय होगा तो इसके जिम्मेदार उस मल्लाह की तरह हम ही ठहराए जाएंगे 

जय गौ माता जय गोपाल

बुधवार, 9 दिसंबर 2020

'गोसेवा' भारतीय संस्कृति का प्रमुख अंग है

'गोसेवा' भारतीय संस्कृति का प्रमुख अंग है, गाय का महत्व 'गौ-सेवा' शब्द से ही प्रकट होता है क्योंकि सेवा के दो प्रधान कारण हैं, एक तो हम बिना उपयोग किसी की सेवा नहीं करते और दूसरा यदि बिना सेवा किए हुए किसी का उपयोग करेंगे तो वह गुनाह होगा। गाय का उपयोग तो स्वतः प्रकट है, जन्म काल से लेकर मृत्यु पर्यन्त किसी न किसी रूप में मनुष्य गाय के प्रति ऋणी रहता ही है और यह ऋण तभी चुकाया जा सकता है जब हम गो-वंश को विकसित करें, गाय की मजबूत बछड़े देने की शक्ति को बढ़ाएं, उसकी दूध देने की शक्ति में वृद्धि करें। हृष्ट-पुष्ट गायों का दूध भी स्वास्थ्यवर्धक होगा। मजबूत बैल ही हमारे खेत भली प्रकार से जोत सकते हैं। हमारी गौ-सेवा का यह अर्थ नहीं है कि जब तक गौ हमें दूध दे तभी तक हम उसका ध्यान रखें और बूढ़ी हो जाने पर उसे मरने के लिए छोड़ दें। यह तो एक निकृष्ट सेवा है। गाय को उचित समय पर उचित मात्रा में चारा-पानी देना, उसके रहने की अच्छी व्यवस्था करना, काम लेने में ज्यादती न करना, उसके सुख-दुख का ध्यान रखना और बूढ़ी हो जाने पर उसको मरने तक खाना देना, इतनी बातें गौ-सेवा में आती हैं इस प्रकार की नीति के द्वारा हम गो वंश की वृद्धि और गो-वध कतई बन्द करना चाहते हैं प्राचीन संस्कृति को कायम रखने के लिए और मनुष्यत्व की रक्षा के लिए जिस गाय ने जीवन भर मनुष्य मात्र की सेवा की उसका बुढ़ापे में वध करना किसी को मंजूर नहीं हो सकता, गाय से हमारा मतलब गाय, बैल, बछड़े, बछड़ी अर्थात् पूरे गो-वंश से है।

गुरुवार, 3 दिसंबर 2020

गौ के समान उपकारी जीव मनुष्य के लिये दूसरा कोई भी नहीं है

गौ के समान उपकारी जीव मनुष्य के लिये दूसरा कोई भी नहीं है
(परम श्रद्धेय गोऋषि स्वामी श्री दत्तशरणानंदजी महाराज)
ब्रह्म सूर्यसमं ज्योतिद्र्यौः समुद्रा समँसरः।
इन्द्र पृथिव्यै वर्षीयान् गोस्तु मात्रा न विद्यते।। (यजुर्वेद 23/48)
जिस ब्रह्मविद्या द्वारा मनुष्य परम सुख को प्राप्त करता है, उसकी सूर्य से उपमा दी जा सकती है। इसी प्रकार द्युलोक की समुद्र से तथा विस्तीर्ण पृथ्वी की इन्द्र से उपमा दी जा सकती है। किन्तु प्राणी मात्र के अनन्त उपकारों को अकेली सम्पन्न करने वाली गौ की किसी से उपमा नहीं दी जा सकती गो निरूपमा है, वास्तव में मनुष्य के लिये गौ के समान उपकारी जीव दूसरा कोई भी नहीं है।
अतएव सभी मानवों को गोमाता की सेवा करने के लिये वेद भगवान का आदेश हुआ। जो व्यक्ति सब प्रकार से अपना कल्याण चाहता हो वह वेद भगवान के आदेश का पालन करे।
 श्रुती स्मृति के प्रमाणानुसार पूज्या गोमाता साक्षात सर्वदेव विग्रह है। पूज्या गोमाता की सेवा से, स्मरण से, उनके सान्ध्यि से तथा पंचगव्य सेवन से मानव में देवत्व का अवतरण होता है। क्योंकि पूज्या गोमाता सत्व का समुद्र है। मन, वाणी तथा कर्म से गोमाता की सेवा करने वाला व्यक्ति पृथ्वी का साक्षात देवता हो जाता है। सत्व से ही देवत्व का निर्माण होता है। मानव का आहार शुद्ध ऊर्जावान एवं सत्व युक्त हो तो मानव देव कोटी प्राप्त कर सकता है। एक मात्र पूज्या गोमाता ही मानव जाति को ऐसा पवित्रतम, ऊर्जावान दिव्य आहार प्रदान कर सकती है।

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020

गोवंश संवर्धन और गोवंश वृद्धि में नन्दी की भूमिका

गोवंश संवर्धन और गोवंश वृद्धि के लिए सुंदर, स्वस्थ, बलिष्ठ, उत्तम नस्ल का नंदी होना आवश्यक है। 50 गो पर एक नंदी होना चाहिए। जिस नस्ल की गो हो उसी नस्ल का नंदी होना चाहिए। अर्थात् कांकरेज गो के लिए कांकरेज नस्ल का नंदी, सांचौरी नस्ल के लिए सांचौरी नस्ल का नंदी, गिर गो के लिए गिर नस्ल का नंदी होना चाहिए। कारण कि हर नस्ल की गो का आकार, वजन आदि अलग अलग होते हैं, उनके गर्भाशय आदि की साइज अलग अलग होती है। अगर छोटी नस्ल के पेट में बड़ी नस्ल का बछड़ा होगा तो जन्म के समय बड़ी समस्या होगी और गो के प्राण तक जा सकते हैं।
नंदी की बहुत अच्छी तरह से देखभाल हो। केवल सूखा चारा पर नंदी को न रखें। उसे दाना, तेल, गुड़, हरा चारा आदि पोष्टिक आहार भरपूर मात्रा में देना चाहिए तथा मुक्त विचरण करने देना चाहिए।
अगर अधिक दूध देने वाली गो का बेटा होगा तो उसकी बेटियों के भी अधिक दूध होगा। नंदी को बचपन में मां का भरपूर दूध पिलाना चाहिए। जब उस नंदी की बछड़ियो 3 वर्ष की हो जाय, तब उस नंदी को वहां से हटा देना चाहिए या ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि उनका आपस में संसर्ग न होने पाए।नंदी शिव का स्वरूप होता है, इसलिए उनके प्रति शिव का भाव रखना चाहिए। नंदी के गले मिलने से बड़े से बड़ा श्राप खत्म हो जाता है।

बुधवार, 21 अक्तूबर 2020

गोरक्षा-सम्बन्धी विशेष बात


गोरक्षा-सम्बन्धी विशेष बात
(साभार: साधक संजीवनी)
 मनुष्योंके लिये गाय सब दृष्टियोंसे पालनीय है। गायसे अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष—इन चारों पुरुषार्थोंकी सिद्धि होती है। आजके अर्थप्रधान युगमें तो गाय अत्यन्त ही उपयोगी है। गोपालनसे, गायके दूध, घी, गोबर आदिसे धनकी वृद्धि होती है। हमारा देश कृषिप्रधान है। अत: यहाँ खेतीमें जितनी प्रधानता बैलोंकी है, उतनी प्रधानता अन्य किसीकी भी नहीं है। भैंसेके द्वारा भी खेती की जाती है, पर खेतीमें जितना काम बैल कर सकता है, उतना भैंसा नहीं कर सकता। भैंसा बलवान् तो होता है, पर वह धूप सहन नहीं कर सकता। धूपमें चलनेसे वह जीभ निकाल देता है, जबकि बैल धूपमें भी चलता रहता है। कारण कि भैंसेमें सात्त्विक बल नहीं होता, जबकि बैलमें सात्त्विक बल होता है। बैलोंकी अपेक्षा भैंसे कम भी होते हैं। ऐसे ही ऊँटसे भी खेती की जाती है, पर ऊँट भैंसेसे भी कम होते हैं और बहुत मँहगे होते हैं। खेती करनेवाला हरेक आदमी ऊँट नहीं खरीद सकता। आजकल अच्छे-अच्छे जवान बैल मारे जानेके कारण बैल भी मँहगे हो गये हैं, तो भी वे ऊँट जितने मँहगे नहीं हैं। यदि घरोंमें गायें रखी जायँ तो बैल घरोंमें ही पैदा हो जाते हैं, खरीदने नहीं पड़ते। विदेशी गायोंके जो बैल होते हैं, वे खेतीमें काम नहीं आ सकते; क्योंकि उनके कन्धे न होनेसे उनपर जुआ नहीं रखा जा सकता।

 गाय पवित्र होती है। उसके शरीरका स्पर्श करनेवाली हवा भी पवित्र होती है। गायके गोबर-गोमूत्र भी पवित्र होते हैं। गोबरसे लिपे हुए घरोंमें प्लेग, हैजा आदि भयंकर बीमारियाँ नहीं आतीं। इसके सिवाय युद्धके समय गोबरसे लिपे हुए मकानोंपर बमका उतना असर नहीं होता, जितना सीमेन्ट आदिसे बने हुए मकानोंपर होता है। गोबरमें जहर खींचनेकी विशेष शक्ति होती है। काशीमें कोई व्यक्ति साँप काटनेसे मर गया। लोग उसकी दाह-क्रिया करनेके लिये उसको गंगाके किनारे ले गये। वहाँपर एक साधु रहते थे। उन्होंने पूछा कि इस व्यक्तिको क्या हुआ? लोगोंने कहा कि यह साँप काटनेसे मरा है।

 साधुने कहा कि यह मरा नहीं है, तुमलोग गायका गोबर ले आओ। गोबर लाया गया। साधुने उस व्यक्तिकी नासिकाको छोड़कर उसके पूरे शरीरमें (नीचे-ऊपर) गोबरका लेप कर दिया। आधे घण्टेके बाद गोबरका फिर दूसरा लेप किया। इससे उस व्यक्तिके श्वास चलने लगे और वह जी उठा। हृदयके रोगोंको दूर करनेके लिये गोमूत्र बहुत उपयोगी है। छोटी बछड़ीका गोमूत्र रोज तोला-दो-तोला पीनेसे पेटके रोग दूर हो जाते हैं। एक सन्तको दमाकी शिकायत थी, उनको गोमूत्र-सेवनसे बहुत फायदा हुआ है। आजकल तो गोबर और गोमूत्रसे अनेक रोगोंकी दवाइयाँ बनायी जा रही हैं। गोबरसे गैस भी बनने लगी है।

 खेतोंमें गोबर-गोमूत्रकी खादसे जो अन्न पैदा होता है, वह भी पवित्र होता है। खेतोंमें गायोंके रहनेसे, गोबर और गोमूत्रसे जमीनकी जैसी पुष्टि होती है, वैसी पुष्टि विदेशी रासायनिक खादोंसे नहीं होती। जैसे, एक बार अंगूरकी खेती करनेवालेने बताया कि गोबरकी खाद डालनेसे अंगूरके गुच्छे जितने बड़े-बड़े होते हैं, उतने विदेशी खाद डालनेसे नहीं होते। विदेशी खाद डालनेसे कुछ ही वर्षोंमें जमीन खराब हो जाती है अर्थात् उसकी उपजाऊ-शक्ति नष्ट हो जाती है। परन्तु गोबर-गोमूत्रसे जमीनकी उपजाऊ-शक्ति ज्यों-की-त्यों बनी रहती है। विदेशोंमें रासायनिक खादसे बहुत-से खेत खराब हो गये हैं, जिन्हें उपजाऊ बनानेके लिये वे लोग भारतसे गोबर मँगवा रहे हैं और भारतसे गोबरके जहाज भरकर विदेशोंमें जा रहे हैं।

 हमारे देशकी गायें सौम्य और सात्त्विक होती हैं। अत: उनका दूध भी सात्त्विक होता है, जिसको पीनेसे बुद्धि तीक्ष्ण होती है और स्वभाव शान्त, सौम्य होता है। विदेशी गायोंका दूध तो ज्यादा होता है, पर उन गायोंमें गुस्सा बहुत होता है। अत: उनका दूध पीनेसे मनुष्यका स्वभाव क्रूर होता है। भैंसका दूध भी ज्यादा होता है, पर वह दूध सात्त्विक नहीं होता। उससे सात्त्विक बल नहीं आता। सैनिकोंके घोड़ोंको गायका दूध पिलाया जाता है, जिससे वे घोड़े बहुत तेज होते हैं। एक बार सैनिकोंने परीक्षाके लिये कुछ घोड़ोंको भैंसका दूध पिलाया, जिससे घोड़े खूब मोटे हो गये। परन्तु जब नदी पार करनेका काम पड़ा तो वे घोड़े पानीमें बैठ गये। भैंस पानीमें बैठा करती है; अत: वही स्वभाव घोड़ोंमें भी आ गया। ऊँटनीका दूध भी निकलता है, पर उस दूधका दही, मक्खन होता ही नहीं। उसका दूध तामसी होनेसे दुर्गति देनेवाला होता है। स्मृतियोंमें ऊँट, कुत्ता, गधा आदिको अस्पृश्य बताया गया है।

 सम्पूर्ण धार्मिक कार्योंमें गायकी मुख्यता है। जातकर्म, चूड़ाकर्म, उपनयन आदि सोलह संस्कारोंमें गायका, उसके दूध, घी, गोबर आदिका विशेष सम्बन्ध रहता है। गायके घीसे ही यज्ञ किया जाता है। स्थान-शुद्धिके लिये गोबरका ही चौका लगाया जाता है। श्राद्ध-कर्ममें गायके दूधकी खीर बनायी जाती है। नरकोंसे बचनेके लिये गोदान किया जाता है। धार्मिक कृत्योंमें 'पंचगव्य’ काममें लाया जाता है, जो गायके दूध, दही, घी, गोबर और गोमूत्र—इन पाँचोंसे बनता है।

 कामनापूर्तिके लिये किये जानेवाले यज्ञोंमें गायका घी आदि काममें आता है। रघुवंशके चलनेमें गायकी ही प्रधानता थी। पौष्टिक, वीर्यवर्धक चीजोंमें भी गायके दूध और घीका मुख्य स्थान है।

 निष्कामभावसे गायकी सेवा करनेसे मुक्ति होती है। गायकी सेवा करनेमात्रसे अन्त:करण निर्मल होता है। भगवान् श्रीकृष्णने भी बिना जूतीके गोचारणकी लीला की थी, इसलिये उनका नाम 'गोपाल’ पड़ा। प्राचीन-कालमें ऋषिलोग वनमें रहते हुए अपने पास गाय रखा करते थे। गायके दूध, घीसे उनकी बुद्धि प्रखर, विलक्षण होती थी, जिससे वे बड़े-बड़े ग्रन्थोंकी रचना किया करते थे। आजकल तो उन ग्रन्थोंको ठीक-ठीक समझनेवाले भी कम हैं। गायके दूध-घीसे वे दीर्घायु होते थे। इसलिये गायके घीका एक नाम 'आयु’ भी है। बड़े-बड़े राजालोग भी उन ऋषियोंके पास आते थे और उनकी सलाहसे राज्य चलाते थे।

 गोरक्षाके लिये बलिदान करनेवालोंकी कथाओंसे इतिहास, पुराण भरे पड़े हैं। बड़े भारी दु:खकी बात है कि आज हमारे देशमें पैसोंके लोभसे रोजाना हजारोंकी संख्यामें गायोंकी हत्या की जा रही है! अगर इसी तरह गो-हत्या चलती रही तो एक समय गोवंश समाप्त हो जायगा। जब गायें नहीं रहेंगी, तब क्या दशा होगी, कितनी आफतें आयेंगी—इसका अन्दाजा नहीं लगाया जा सकता। जब गायें खत्म हो जायँगी, तब गोबर नहीं रहेगा और गोबरकी खाद न रहनेसे जमीन भी उपजाऊ नहीं रहेगी। जमीनके उपजाऊ न रहनेसे खेती कैसे होगी? खेती न होनेसे अन्न तथा वस्त्र (कपास) कैसे मिलेगा? लोगोंको शरीर-निर्वाहके लिये अन्न-जल और वस्त्र भी मिलना मुश्किल हो जायगा। गाय और उसके दूध, घी, गोबर आदिके न रहनेसे प्रजा बहुत दु:खी हो जायगी। गोधनके अभावमें देश पराधीन और दुर्बल हो जायगा। वर्तमानमें भी अकाल, अनावृष्टि, भूकम्प, आपसी कलह आदिके होनेमें गायोंकी हत्या मुख्य कारण है। अत: अपनी पूरी शक्ति लगाकर हर हालतमें गायोंकी रक्षा करना, उनको कत्लखानोंमें जानेसे रोकना हमारा परम कर्तव्य है।

 गायोंकी रक्षाके लिये भाई-बहनोंको चाहिये कि वे गायोंका पालन करें, उनको अपने घरोंमें रखें। गायका ही दूध-घी खायें, भैंस आदिका नहीं। घरोंमें गोबर-गैसका प्रयोग किया जाय। गायोंकी रक्षाके उद्देश्यसे ही गोशालाएँ बनायी जायँ, दूधके उद्देश्यसे नहीं। जितनी गोचर-भूमियाँ हैं, उनकी रक्षा की जाय तथा सरकारसे और गोचर-भूमियाँ छुड़ाई जायँ। सरकारकी गोहत्या-नीतिका विरोध किया जाय और सरकारसे अनुरोध किया जाय कि वह देशकी रक्षाके लिये पूरे देशमें तत्काल पूर्णरूपसे गोहत्या बन्द करे

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2020

कैसे पहचानें कि घर में रोजाना लिया जाने वाला दूध असली है या नकली?


अगर अब तक आपको लगता है कि दूध में केवल पानी की मिलावट होती है तो आप गलत है। कई बार दूध में पानी के अलावा कई हानिकारक सामग्री जैसे साबुन, डिटर्जेंट और केमिकल्स आदि को मिलाया जाता है जिससे की दूध एकदम असली जैसा लगे। हम आपको बता रहे हैं कि रोजाना इस्तेमाल होने वाले दूध को कैसे पहचाने कि वह असली है या नकली? आइए, जानते हैं 8 टिप्स -

1 सबसे पहले दूध में पानी की मिलावट को परखने के लिए किसी लकड़ी या पत्थर पर दूध की एक या दो बूंद गिराइए। अगर दूध बहकर नीचे की तरफ गिरे और सफेद निशान बन जाए तो दूध पूरी तरह से शुद्ध है।

2 दूध में डिटर्जेंट की मिलावट को पहचानने के लिए, दूध की कुछ मात्रा को एक कांच की शीशी में लेकर जोर से हिलाइए। अगर दूध में झाग निकलने लगे तो इस दूध में डिटरर्जेंट मिला हुआ है। अगर यह झाग देर तक बना रहे, तो दूध के नकली होने में कोई संशय नही है।

3 दूध को सूंघकर देखें। अगर दूध नकली है, तो उसमें साबुन की तरह गंध आएगी, और अगर दूध असली है, तो उसमें इस तरह की गंध नहीं आती।

4 दूध को दोनों हाथों में लेकर रगड़कर देखें। अगर दूध असली है, तो सामान्य तौर पर चिकनाहट महसूस नहीं होगी। लेकिन अगर दूध नकली है, तो इसे रगड़ने पर बिल्कुल वैसी ही चिकनाहट महसूस होगी, जैसी कि डिटर्जेंट को रगड़ने पर होती है।

5 दूध को देर तक रखने पर, असली दूध अपना रंग नहीं बदलता है। जबकि दूध अगर नकली है, तो वह कुछ समय बाद पीला पड़ने लगेगा।

6 असली दूध को उबालने पर उसका रंग बिल्कुल नहीं बदलेगा, लेकिन नकली दूध का रंग उबलने पर पीला हो जाएगा।

7 सिंथेटिक दूध में अगर यूरिया मिला हुआ है, तो वह गाढ़े पीले रंग का हो जाता है।

8 स्वाद के मामले में असली दूध हल्का-सा मीठा स्वाद लिए हुए होता है, जबकि नकली दूध का स्वाद डिटर्जेंट और सोडा मिला होने की वजह से कड़वा हो जाता है।

9. यदि कॉस्टिक अथवा डिटर्जेंट एवं तेल की सहायता से (सिंथेटिक दूध) बनाया गया है तो यह हल्दी का रंग लाल कर देगा, दूध में एक चुटकी हल्दी मिलाकर जांच कीजिये।

सोमवार, 19 अक्तूबर 2020

भाग्य बदलती है गौमाता, गौ पूजन से मिलेगी पापों से मुक्ति

  पुण्य फल की प्राप्ति के लिए प्रतिदिन करें गौ-दर्शन

गौमाता की महिमा अपरंपार है। मनुष्य अगर जीवन में गौमाता को स्थान देने का संकल्प कर ले तो वह संकट से बच सकता है। मनुष्य को चाहिए कि वह गाय को मंदिरों और घरों में स्थान दे, क्योंकि गौमाता मोक्ष दिलाती है। पुराणों में भी इसका उल्लेख मिलता है कि गाय की पूंछ छूने मात्र से मुक्ति का मार्ग खुल जाता है। 

 

गाय की महिमा को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। मनुष्य अगर गौमाता को महत्व देना सीख ले तो गौमाता उनके दुख दूर कर देती है। गाय हमारे जीवन से जु़ड़ी है। उसके दूध से लेकर मूत्र तक का उपयोग किया जा रहा है। गौमूत्र से बनने वाली दवाएं बीमारियों को दूर करने के लिए रामबाण मानी जाती हैं।

 

गोपाष्टमी के दिन गाय का पूजन करके उनका संरक्षण करने से मनुष्य को पुण्य फल की प्राप्ति होती है। जिस घर में गौपालन किया जाता है उस घर के लोग संस्कारी और सुखी होते हैं। इसके अलावा जीवन-मरण से मोक्ष भी गौमाता ही दिलाती है। मरने से पहले गाय की पूंछ छूते हैं ताकि जीवन में किए गए पापों से मुक्ति मिले।

 

लोग पूजा-पाठ करके धन पाने की इच्छा रखते हैं लेकिन भाग्य बदलने वाली तो गौ-माता है। उसके दूध से जीवन मिलता है। रोज पंचगव्य का सेवन करने वाले पर तो जहर का भी असर नहीं होता और वह सभी व्याधियों से मुक्त रहता है। गाय के दूध में वे सारे तत्व मौजूद हैं, जो जीवन के लिए जरूरी हैं। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि गाय के दूध में सारे पौष्टिक तत्व मौजूद होते हैं। मीरा जहर पीकर जीवित बच गई, क्योंकि वे पंचगव्य का सेवन करती थीं। लेकिन कृष्ण को पाने के लिए आज लोगों में मीरा जैसी भावना ही नहीं बची।

 

रोज सुबह गौ-दर्शन हो जाए तो समझ लें कि दिन सुधर गया, क्योंकि गौ-दर्शन के बाद और किसी के दर्शन की आवश्यकता नहीं रह जाती। लोग अपने लिए आलीशान इमारतें बना रहे हैं यदि इतना धन कमाने वाले अपनी कमाई का एक हिस्सा भी गौ सेवा और उसकी रक्षा के लिए खर्च करें तो गौमाता उनकी रक्षा करेगी इसलिए गौ-दर्शन को सबसे सर्वोत्तम माना जाता है। 

 

गाय और ब्राह्मण कभी साथ नहीं छोड़ते हैं लेकिन आज के लोगों ने दोनों का ही साथ छोड़ दिया है। जब पांडव वन जा रहे थे तो उन्होंने भी गाय और ब्राह्मण का साथ मांगा था। समय के बदलते दौर में राम, कृष्ण और परशुराम आते रहे और उन्होंने भी गायों और संतों के उद्धार का काम किया। इसकी बड़ी महिमा सूरदास और तुलसीदास ने गौ कथा का वर्णन कर की है।

 

लोग दृश्य देवी की पूजा नहीं करते और अदृश्य देवता की तलाश में भटकते रहते हैं। उनको नहीं मालूम कि भविष्य में बड़ी समस्याओं का हल भी गाय से मिलने वाले उत्पादों से मिल सकता है। आने वाले दिनों में संकट के समय गौमाता ही लोगों की रक्षा करेगी। इस सच्चाई से लोग अनजान हैं।




मंगलवार, 18 अगस्त 2020

समस्त विश्व में यदि मां की पूर्ति कोई कर सकता है तो वो है - गौमाता ।

“ मां ” इस एक शब्द में सब कुछ समाहित है , इसकी परिभाषा तो विश्व में एक नवजात शिशु के अलावा कोई और बयां नहीं कर सकता है ।
समस्त विश्व में यदि मां की पूर्ति कोई कर सकता है तो वो  है - गौमाता । 
कितना प्यारा शब्द है “ गौमाता ” करुणा व प्रेम भाव से परिपूर्ण । लेकिन आज मानवीय हिंसा के चलते ना तो घर में “ बूढ़ी मां ” सुरक्षित है और ना ही हमारी “ गौमाता ” । आखिर मानव किस बात का प्रतिशोध लेने पर तुला हुआ है । परमात्मा ने धरती मां की संरचना की फिर उस पर  प्रकृति की संरचना की और उसके बाद इन सबसे परे एक शिशु की रक्षा के लिए “ मां ” की रचना की , लेकिन प्रभु ने अपनी छवि का दर्शन देने हेतु “ गौमाता ” की रचना की ।
ईश्वर के समस्त गुणों तथा मातृत्व के प्रेम से परिपूर्ण गौमाता दर - दर भटक रही है , आखिरकार क्या ऐसी ताक़त है कि मानव स्वयं को ईश्वरीय शक्ति से भी बड़ा मानने पर उतारू है । विश्व में केवल “ मां और गौमाता ” ही ऐसी शक्तियां है , जो अदृश्य नहीं है , जिनकी कोई परिभाषा नहीं है , लेकिन मानव गौमाता की केवल स्वार्थवश ही सेवा करता है , और सेवा के नाम पर महज दिखावा । 
आज आदमी “ गौमाता ” के दूध से बनी महंगी - महंगी मिठाईयां और पकवान बड़े ही चटकारे ले - लेकर खाता है , परन्तु गौमाता को पालने की जब बात आती है तो चुपचाप खिसक जाता है । केवल गौमाता को थोड़े दिन पालकर दूध खाने वालों आखिर स्वार्थ पूर्ति होने पर इनको लावारिस क्यो छोड़ देते हो , क्या धर्म केवल पैसा कमाने तक ही सीमित हो गया है । अगर सेवा करनी है तो बड़े प्यार से और नि:स्वार्थ भाव से भी कर सकते है । 
धन - दौलत और पद - प्रतिष्ठा से  मोह रखने वालों जीवन में सेवा नाम की भी एक बहुमूल्य दौलत है जिसे अर्जित करना धन - दौलत कमाने से कई गुना ज्यादा है । धन से व्यक्ति अपना कर्ज चुका सकता है ,किन्तु जीवन में किए गए अच्छे व बुरे कर्मो से मुक्ति पाने के लिए भी कुछ ना कुछ अर्जित करना ही पड़ता है वो है “ गौमाता की सेवा ”।
गौमाता का त्याग करने वालों को जरा शर्म करनी चाहिए , आपको पता है आपके द्वारा जिसकी उलाहना की जा रही है वो किन - किन संकटों के दौर से गुजरेगा।  गांव - शहर , गली - मुहल्लों में ठोकरें खा - खाकर गौमाता कितना कष्ट सहन कर रही है , करे भी क्यो ना वो एक मां जो है । वैसे भी वर्तमान युग में मानव को मां - बाप के लिए वक़्त ही कहां मिलता है , बेटे अफसर जो बन गए ।
खैर जो भी हो परिस्थितियों को देखते हुए आज मानव इतना तो लायक है कि गौमाता के लिए साथ ही समस्त मूक प्राणियों के लिए खाने - पीने की व्यवस्था कर सके । गौशाला में जो सेवा की जा रही है , उसमे सभी गौमाता की सेवा कर पाना मुश्किल है । जीवन भर आदमी धन के पीछे भागता है और अंत समय में अपनी संतान के लिए सब कुछ छोड़ के चला जाता है , तो क्यो ना उस धन से गौमाता की रक्षा के लिए कोई पुण्य कार्य करे , ताकि परलोक बड़ी ही शांति से सुधर सके ।
हालांकि गौमाता को छोड़ने वाले कितने बड़े पाप के भागीदार बनेंगे , कहना मुश्किल है परन्तु उनको भूखी - प्यासी देखते हुए भी लोग मुंह मोड़ लेते है , यकीन मानिए आप अपनी मां के साथ छल कर रहे हैं । हर किसी व्यक्ति को गौमाता के पुण्य पाने का सौभाग्य नहीं प्राप्त होता है , लाखों योनियां भटकने के बाद मानव जीवन प्राप्त होता है , परमात्मा के इस प्रसाद का मजाक मत बनाइए , गौमाता की रक्षा कीजिए ,  बूचड़खानों में गौमाता को कटने से रोकिए । गौमाता के नाम पर संस्था चलाने वाले सेवाभावी लोगो को गौमाता की रक्षा करने के साथ उनको क्रूर एवम् हिंसक लोगो से बचाए रखना ही सच्ची सेवा है। 
अतः समस्त गौपालक गौमाता को खुला ना छोड़े , आपके बाद उनका स्वामी कोई नहीं है , इसलिए गौमाता की सच्चे हृदय से सेवा करे । एक - एक गौ माता की सेवा एक - एक देश वासी यदि संपूर्ण प्रेमभाव व भाईचारे के साथ करे तो निश्चित ही हमारा सत्य सनातन धर्म पुनः स्थापित होगा एवम् देश की उन्नति होगी , जहां पुनः दूध की नदियां बहेगी और वही भारत जो सालों पीछे चला गया , हमारे समक्ष पुनः स्थापित होगा । इसलिए गौ सेवा , मातृ सेवा , राष्ट्र सेवा ,,, सत्य सनातन धर्म की सेवा ,,, गौमाता बचाए ,,,देश बचाए ,,,!

गौमाता के आशीर्वाद से गोपालक बने द्वारिकाधीश



श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की सभी को बहुत बहुत शुभकामनाएं। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के साथ बहुत सी पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। लेकिन सबसे अहम है श्रीकृष्ण का गऊ माता से प्रेम और अटूट रिश्ता। श्रीकृष्ण के सैंकड़ो नामों में सबसे मधुर, प्रिय और प्रचलित नाम गौमाता से जुड़े गोपाल या गोविंद ही हैं। प्राचीन काल में सबसे पहले श्रीकृष्ण ने ही हमें गऊ माता की पूजा के लिए प्रेरित किया था। भगवान के जन्म के साथ ही कामधनु भी बहुला नाम से जन्म लेकर नन्द जी की गायों में शामिल हो गई थी। दरअसल भगवान श्रीकृष्ण ने मानव मात्र को सन्देश दिया कि गाय ही हमारे जीवन का आधार है। उन्होंने गाय के दूध, गऊमूत्र, गोबर यानी गोधन को लोगों के जीवन से जोड़ा। गोवर्धन पूजा के दिन गाय के गोबर से बने गोवर्धन की पूजा की जाती है। इसलिए गोवर्धन को आप गौसंवर्धन अथवा गोबरधन का अपभ्रंश मान सकते हैं। कथाओं के मुताबिक गोकुल में नंद बाबा के पास सवा लाख गायें थीं और उनकी गणना क्षेत्र के सबसे समृद्ध व्यक्तियों में होती थी। उस समय गौधन ही समृद्धि का प्रतीक था। जनता से कर के रूप में मथुरा का राजा कंस दूध, दही और मक्खन लेता था। श्रीकृष्ण ने अपने बाल्यकाल में गाय चराकर ग्वाले और गौपालक का कार्य किया और गोधूलि की महिमा अपने बाल सखाओ को बताई।
पूतना वध के बाद गोपियों ने कान्हा के अंगों पर पदमा गाय के गोमूत्र, गोरज व गोमय लगा कर उन्हें शुद्ध किया क्योंकि उन्होंने पूतना के मृत शरीर को छुआ था। गाय की पूंछ को चारों ओर घुमाकर उनकी नजर उतारती। तीनों लोकों के कष्ट हरने वाले श्रीकृष्ण के अनिष्ट हरण का काम गाय करती है।
बाल कृष्ण यमुना में अपने हाथों से मल-मल कर गायों को स्नान कराते हैं। अपने वस्त्रों से गायों का शरीर पोंछते हैं। बछड़ों को पुचकारते और सहलाते हैं। उनका श्रृंगार करते हैं और स्वयं चारा एकत्र कर अपने हाथों से खिलाते हैं। गौपालक कृष्ण गायों को वन में नंगे पांव चराने जाते थे। यह बताने के लिए कि गाय उनकी आराध्य हैं और आराध्य का अनुगमन पादुका पहनकर नहीं होता। कृष्ण गायों को चराने के लिए जाते समय हाथ में छड़ी नही बल्कि मुरली रखते थे।
श्री कृष्ण और बलदाऊ की शक्ति का रहस्य गौसेवा और पंचगव्य ही था। श्रीकृष्ण द्वारा ग्यारह वर्ष की अवस्था में मुष्टिक, चाणूर, मदमस्त हाथी और कंस का वध गोरस के अद्भुत चमत्कार के प्रमाण हैं। इसी गो दुग्ध का पान कर भगवान श्रीकृष्ण ने दिव्य गीता रूपी अमृत संसार को दिया। गौमाता की भक्ति से प्राप्त शक्ति ने गोकुल के माक्खनचोर गोपाल को द्वारकाधीश बना दिया। आज एक बार फिर हमें गाय के महत्व को समझना है। भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए गौ आधारित व्यवस्था की तरफ लौटना होगा। आइए, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर हम प्रण करें कि भारतीय नस्ल की गाय को न केवल बचाएंगे, बल्कि उसके संवर्द्धन के लिए गौ उत्पादों के प्रयोग को प्राथमिकता देंगे। श्रीकृष्ण भगवान का भी यही सन्देश है।

मंगलवार, 2 जून 2020

विश्व की सबसे बड़ी गौशाला पथमेड़ा गौधाम में लॉकडाउन के चलते खड़ी हो गई ये बड़ी मुसीबत!

 विश्व की सबसे बड़ी गौशाला में लॉकडाउन के चलते खड़ी हो गई ये बड़ी मुसीबत!
 
कोरोना महामारी के चलते हुए लॉकडाउन से पूरा विश्व प्रभावित हुआ है. ऐसे में विश्व की सबसे बड़ी गौशाला और गौ-क्रांति की जनक गौधाम महातीर्थ आनंदवन पथमेड़ा पर भी लॉकडाउन का असर देखने को मिला है. इस अवधि के दौरान गौशाला में चारे का भारी संकट खड़ा हो गया, जिसके बाद गौशाला से जुड़े ट्रस्टी और कार्यकर्ताओं ने किसानों से सम्पर्क कर चारे का प्रबंध किया. इस गौशाला की कुल 64 शाखाएं हैं, जिनमें लगभग 1 लाख 44 हजार से ज्यादा गौवंश हैं, जिनकी यहां देखभाल की जाती है. इसके साथ ही बीमार और निराश्रित गायों के लिए इलाज और सार संभाल की भी यहां उत्तम व्यवस्था है.

जालोर. विश्व को सबसे बड़ी गौधाम महातीर्थ आनंदवन गोशाला भी अब वैश्विक महामारी कोरोना की चपेट में आ गया है. विश्व में गौ क्रांति का आगाज करने वाली ये गौशाला भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है. इस गौशाला की कुल 64 शाखाएं है. इन सभी शाखाओं में कोरोना के बचाव को लेकर लागू किए गए लॉकडाउन में चारे का भारी संकट खड़ा हो गया है, जिसके कारण गौशाला प्रबंधन को अब चारे की व्यवस्था करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में इस गौशाला में लगभग 1 लाख 44 हजार से ज्यादा गौवंश के लिए चारे की व्यवस्था करना काफी बड़ी चुनौती बन गया है.

महातीर्थ आनंदवन गौशाला पर चारे का संकट

गौधाम महातीर्थ आनंदवन पथमेड़ा के संचालक मंडल के विठ्ठल कृष्ण महाराज ने बताया कि कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के बीच लागू हुए लॉकडाउन के कारण आवागमन पूरी तरह से बंद कर दिया था, जिसके कारण गौशाला में चारे की किल्लत हो गई थी. इसके बाद कार्यकर्ताओं ने आसपास के क्षेत्रों और गुजरात में नर्मदा नहर के किनारे किसानों से प्रतिदिन की जरूरत के हिसाब से चारे की व्यवस्था की गई, तब जाकर इतनी बड़ी संख्या में गौवंश को बचाया जा सका. साथ ही बताया कि गौशाला की पूरे भारत में 64 शाखाएं है, जिसमें 1 लाख 44 हजार से ज्यादा गौवंश हैं. इनके चारे की व्यवस्था को लेकर काफी प्रयास किये जा रहे हैं, लेकिन कोरोना महामारी से पहले जिस प्रकार से गौभक्तों का सहयोग मिलता था, वैसा अब नहीं मिल पा रहा है.

विठ्ठल कृष्ण महाराज ने बताया कि ज्यादातर लोगों का व्यापार इस लॉकडाउन में प्रभावित होने के कारण गौ ग्रास दान आना बंद हो गया है. अब आगे भी साल भर तक ऐसे ही हालात बने रहने के आसार हैं. इसलिए बड़े स्तर पर गौवंशों को बचाने के लिए राज्य और केंद्र सरकार को आगे आना चाहिए. उन्होंने बताया कि राज्य सरकार एक साल में 9 महीने तक अनुदान देती है, जिसमें जनवरी, फरवरी और मार्च का अनुदान तो प्राप्त हो गया है, लेकिन यह अनुदान तीन-तीन महीनों के अंतराल में मिलता है और चारे की व्यवस्था प्रति दिन करनी पड़ती है. ऐसे में अगर यह अनुदान 9 महीने की जगह 12 महीने और तीन-तीन महीनों के अंतराल की जगह प्रत्येक महीने दिया जाता है तो गौशालाओं में गौवंश को बचाने में संबल मिल सकता.

गौशाला से चलता हैं 4,000 लोगों का परिवार...

बता दें कि गौधाम महातीर्थ आनंदवन पथमेड़ा गौशाला की पूरे देश में 64 शाखाएं हैं, जिसमें से 10 शाखाएं अकेले जालोर जिले में हैं. वहीं, हनुमान नंदी गौशाला गोलासन में करीब 15 हजार नंदी हैं. इसके अलावा अन्य गोशालाओं में करीबन डेढ़ लाख गौवंश हैं, जिनकी देखभाल करने के लिए गौशाला से करीबन 4 हजार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लोग जुड़े हुए हैं, जिनके परिवार की आजीविका इसी गौशाला पर निर्भर करती है. लेकिन कोरोना महामारी के बीच गौ दान आना बंद हो जाने के कारण इन 4 हजार परिवारों पर संकट खड़ा हो गया है. इस गौशाला में पूरे 1065 स्थाई कर्मचारी हैं, जबकि 2,500 लोग गायों की देखभाल करने के अलावा चारा लेकर आने वाले ट्रक चालक, चारा खाली करने वाले मजदूर हैं, जो सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं.

प्रतिदिन इतने चारे की पड़ती है जरूरत...

गौधाम महातीर्थ आनंदवन पथमेड़ा से जुड़ी सभी 64 शाखाओं में 1 लाख 44 हजार गौवंश हैं, जिसमें जालोर और सिरोही जिले में कुल 45 हजार गौवंश हैं, इसमें ज्यादातर गाय निराश्रित हैं. इन गायों के लिए गौशाला प्रबंधन को प्रतिदिन 250 टन सूखा चारा, 30 टन पौष्टिक आहार और 300 टन हरे चारे की जरूरत पड़ती है. इसक अलावा बीमार गायों के लिए भारी मात्रा में दवाइयों की आवश्यकता रहती है.

बीमार गायों के लिए है अलग से स्पेशल व्यवस्था

इस गौशाला में बीमार और बिल्कुल निराश्रित गायों की देखभाल स्पेशल तरीके से की जाती है. इस गौशाला में धन्वंतरी विभाग बना हुआ है, जिसमें केवल बीमार गायों को ही रखा जाता है, जिनकी सेवा के लिए चार से पांच गौ पालक हर वक्त मौजूद रहते हैं. इस विभाग में गायों के उपचार करने के अलावा पूरी तरह से गर्मी से बचाने के लिए पंखे एवं कूलर तक लगाए गए हैं. ताकि बीमार गौवंश को परेशान नहीं होना पड़े. वहीं, इस गौशाला का साल 2018 में वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम भी दर्ज हो चुका है.

पथमेड़ा वाले महाराज जी ने कहा: एक भी गौभक्त को नहीं हुआ कोरोना वायरस

गौशाला प्रबंधन समिति से जुड़े महाराज विठ्ठल कृष्ण जी महाराज ने बताया कि जो पंचगव्य अमृत का प्रतिदिन सेवन करते हैं, उन्हें कोरोना असर नहीं कर पाया. उन्होंने बताया कि पूरे भारत में फैली गौधाम पथमेड़ा की गौशालाओं से लाखों की तादाद में गौभक्त जुड़े हुए हैं, जो प्रतिदिन गौमाता से प्राप्त पंचगव्य अमृत का सेवन करते हैं, जिसके कारण देशभर में कही से यह समाचार नहीं आया कि एक भी गौशाला से जुड़ा हुआ गौभक्त कोरोना ग्रसित हुआ हो.

गौशाला की शुरुआत

गौधाम महातीर्थ आनंदवन गौशाला की 1993 में 8 गायों से शुरुआत हुई थी. अब इस गोशाला की विभिन्न शाखाओं में 1 लाख 44 हजार गौवंश हैं. वहीं, अकेले जालोर और सिरोही जिले में 45 हजार निराश्रित गायों की देखभाल की जाती है. वहीं, इन दोनों गौशालाओं में 1065 स्थाई कर्मचारी हैं. साथ ही गौशाला प्रबंधन को इन गायों के लिए प्रतिदिन 250 टन सूखा चारा, 30 टन पौष्टिक आहार और 300 टन हरा चारे की आवश्यकता होती है. वहीं, सूखे चारे की अनुमानित कीमत लगभग 20 लाख रुपए, हरा चारे की कीमत लगभग 8 लाख रुपए और पौष्टिक आहार की कीमत लगभग 10 लाख रुपए यानी की कुल मिलाकर लगभग 38 लाख रुपए की प्रतिदिन जरूरत पड़ती है.