शुक्रवार, 27 मई 2016

दूध का दूध और पानी का पानी

चलो हम ही दूध का दूध और पानी का पानी करते है । ये तो कहावत है ऐसी अनेक कहावते दूध से जुडी हुई हम सभी बचपन से सुनते आये है ।
आखिर कौन सा दूध जहर है कौन सा अमृत । आज दूध1 प्रत्येक परिवार की जरुरत है दूध2 हमेशा रात को ही पीना चाहिए महर्षि बांगभट्ट जी के अष्टांगहृद् यम ग्रन्थ के हिसाब से दूध को पचाने वाले एंजाइम केवल रात को चन्द्रमा की शीतलता में ही पैदा होते है ।माताये अपने नन्हे मुन्हे बच्चों को सुबह सुबह जबर दस्ती दूध पिलाकर स्कुल भेजती है यह गलत है कई बच्चे तो उलटी भी कर देते है इसलिए बच्चों को को दूध रात को ही देना चहिये तभी संपूर्ण आहार होगा ।
अब बात आती है बाजार के दूध की पैकिट के दूध की डेयरी के दूध की ।अधिकतर दूध जर्शी गाय की तरह दिखाई देने वाले प्राणी का होता है1 वह सूअर की नस्ल से तैयार है ऐसा विज्ञानं ने सावित भी कर दिया है जर्सी का दूध a1 श्रेणी में आता है जो की अधिकत र देशो में बेचना प्रतिबंध है ।उससे सैकड़ो बीमारियां होती है । इसकी चर्चा आगे करता हु ।
केवल a2 दूध ही पीना चाहिए जो की भारतीय नस्ल की गायो से मिलता है इससे सभी बीमारियों का समूल नष्ट होता है व्यक्ति चुस्त फुर्तीला होता है ।
गाय के दूध में प्रोलीन अपने स्थान 67 पर बहुत दृढ़ता से अपने पड़ोसी स्थान 66 पर स्थित अमीनोएसिड आइसोल्युसीन से जुड़ा रहता है। परन्तु जब (ए1 दूध में) प्रोलीन के स्थान पर हिस्टिडीन आ जाता है, तब इस हिस्तिडीन में अपने पड़ोसी स्थान 66 पर स्थित आइसोल्युसीन से जुड़े रहने की प्रबलता नहीं पाई जाती है।
Hestidine, मानव शरीर की पाचन क्रिया में आसानी से टूटकर बिखर जाता है और बीसीएम 7 नामक प्रोटीन बनता है। यह बीटा कैसो मार्फिन 7 अफीम परिवार का मादक पदार्थ (Narcotic) है जो बहुत प्रभावशाली आक्सीडेण्ट एजेंट के रूप में मनुष्य के स्वास्थ्य पर मादक तत्वों जैसा दूरगामी दुष्प्रभाव छोड़ता है। ऐसे दूध को वैज्ञानिकों ने ए1 दूध का नाम दिया है। यह दूध उन विदेशी गायों में पाया जाता जिनके डी. एन. ए. में 67वें स्थान पर प्रोलीन न होकर हिस्टिडीन होता है (दूध की एमीनो ऐसीड चेन में)।
न्युजीलैंड में जब दूध को बीसीएम 7 के कारण बड़े स्तर पर जानलेवा रोगों का कारण पाया गया तब न्यूजीलैंड के सारे डेयरी उद्योग के दूध का परीक्षण हुआ। डेयरी दूध पर किये जाने वाले प्रथम अनुसंधान में जो दूध मिला वह बीसीएम 7 से दूषित पाया गया, और वह सारा दूध ए1 कहलाया। तदुपरान्त विष रहित दूध की खोज आरम्भ हुई। बीसीएम 7 रहित दूध को ए2 नाम दिया गया। सुखद बात यह है कि देशी गाय का दूध ए2 प्रकार का पाया जाता है। देशी गाय के दूध से यह स्वास्थ्य नाशक मादक विषतत्व बीसीएम 7 नहीं बनता। आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान से अमेरिका में यह भी पाया गया कि ठीक से पोषित देशी गाय के दूध और दूध से बने पदार्थ मानव शरीर में कोई भी रोग उत्पन्न नहीं होने देते।
यदि भारतवर्ष का डेयरी उद्योग हमारी देशी गाय के ए2 दूध की उत्पादकता का महत्व समझ लें तो भारत तो भारत सारे विश्व डेयरी दूध व्यापार में विश्व का सबसे बड़ा पंचगव्य उत्पाद निर्यातक देश बन सकता है। यदि हमारी देशी गोपालन की नीतियों को समाज और शासन को प्रोत्साहन मिलता है तो सम्पूर्ण विश्व के लिए ए2 दूध आधारित पोषाहार का निर्यात भारतवर्ष से किया जा सकता है।
आज सम्पूर्ण विश्व में यह चेतना आ गई है कि बाल्यावस्था में बच्चो को केवक ए2 दूध ही देना चाहिए। विश्व बाजार में न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, कोरिया, जापान और अब अमेरिका में प्रमाणित ए2 दूध के दाम साधारण ए1 डेयरी दूध के दाम से कहीं अधिक हैं। ए2 दूध देने वाली गाय विश्व में सबसे अधिक भारतवर्ष में पाई जाती है।
होल्सटीन, फ्रीजियन प्रजाति की गाय, अधिक दूध देने के कारण सारे डेयरी दूध उद्योग की पसन्दीदा है। इन्हीं के दूध के कारण लगभग सारे विश्व में डेयरी का दूध ए1 पाया गया। विश्व के सारे डेयरी उद्योग और राजनेताओं की यही समस्या है कि अपने सारे ए1 दूध को एकदम कैसे अच्छे ए2 दूध में परिवर्तित करें। अतः आज विश्व का सारा डेयरी उद्योग भविष्य में केवल ए2 दूध के उत्पादन के लिए अपनी गायों की प्रजाति में नस्ल सुधार के लिए नये कार्यक्रम चला रहा है। विश्व बाजार में भारतीय नस्ल के गीर वृषभों की इसीलिए बहुत मां ग हो गई हो। साहीवाल नस्ल के अच्छे वृषभों की भी बहुत मांग बढ़ी है।
सबसे पहले यह अनुसंधान न्यूजीलैंड के वैज्ञानिकों ने किया था। परन्तु वहां के डेयरी उद्योग और सरकारी तंत्र की मिलीभगत से यह वैज्ञानिक अनुसंधान छुपाने के प्रयत्नों से उद्विग्र होने पर, 2007 में Devil in the milk illness, health and politics A1 and A2, नाम की पुस्तक कीथ वुड्फोर्ड (Keith Woodford) द्वारा न्यूजीलैंड में प्रकाशित हुई। इस पुस्तक में 30 वर्षों के अध्ययन के परिणाम दिए गए हैं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और रोगों के अनुसंधान के आंकड़ो से यह सिद्ध किया गया है कि बीसीएम 7 युक्त ए1 दूध मानव समाज के लिए विषतुल्य है, अनेक असाध्य रोगों का कारण है।
ए1 दूध का मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव
जन्म के समय बालक के शरीर में बीबीबी (ब्लड़ ब्रेन बैरियर) नहीं होता। स्तन पान कराने के बाद 3-4 वर्ष की आयु तक शरीर में यह ब्लड़ब्रेन बैरियर स्थापित हो जाता है। इसीलिए जन्मोपरान्त स्तन पान द्वारा शिशु को मिले पोषण का, बचपन में ही नहीं, बड़े हो जाने पर भी मस्तिष्क व शरीर की रोग निरोधक क्षमता, स्वास्थ्य और व्यक्तित्व के निर्माण पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
नन्हे मुन्हे बच्चों के रोग
भारतवर्ष ही नहीं सारे विश्व में, जन्मोपरान्त बच्चों में जो औटिज्म़ (बोध अक्षमता) और मधमेह (Diabetes Type 1) जैसे रोग बढ़ रहे हैं, उनका स्पष्ट कारण बीसीएम 7 वाला ए1 दूध है।
हमारे समाज के बढ़ते रोग समाज के रोग
मानव शरीर के सभी सुरक्षा तंत्र विघटन से उत्पन्न (Metabolic Degenerative) रोग जैसे उच्च रक्तचाप, हृदय रोग तथा मधुमेह का प्रत्यक्ष सम्बन्ध बीसीएम 7 वाले ए1 दूध से स्थापित हो चुका है। यही नहीं बुढ़ापे के मानसिक रोग भी बचपन में ग्रहण ए1 दूध के प्रभाव के रूप में भी देखे जा रहे हैं। दुनिया भर में डेयरी उद्योग आज चुपचाप अपने पशुओं की प्रजनन नीतियों में अच्छा दूध अर्थात् बीसीएम 7 मुक्त ए2 दूध के उत्पादन के आधार पर बदलाव ला रहा है
कुनिति, हमारी भूल
यूरोपीय देश अपने विषाक्त गौवंश से छुटकारा पाने के लिए उन्हें मंहगे मूल्यों पर भारत में भेज रहे हैं। ये हाल्स्टीन, जर्सी, एच एफ उन्हीं की देन है।
देश में दूध की जरूरत पूरी करने के नाम पर, दूध बढ़ाने के लिए अपनी सन्तानों और देशवासियों को विषैला, रोगकारक दूध पिलाना उचित कैसे हो सकता है? आखिरकार इन नीति निर्धारक नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के परिवार, बच्चे और वे स्वयं भी तो इन रोगों का शिकार बन रहे होंगे। सच तो यह है कि वे सब इन खतरों से अनजान है। जो चन्द वैज्ञानिक व नागरिक इसके बारे में जानते हैं, उनकी आवाज़ इतनी ऊँची नहीं कि सच सब तक पहुंचे। विदेशी व्यापारी ताकतें और बिका मीडिया इन तथ्यों को दबाने, छुपाने के सब सम्भव व उपाय व्यापारी ताकतों के हित में करता रहता है।
हमारा कर्तव्य, एक आह्वान
ज़रा विहंगम दृष्टि से देश व विश्व के परिदृश्य को निहारें। तेजी से सब कुछ बदल रहा है, सात्विक शक्तियां बलवान होती जा रही हैं। हम सब भी सामथ्यानुसार, सम्भव सहयोग करना शुरू करें, सफलता मिलती नजर आएगी। कम से कम अपने आसपास के लोगों को उपरोक्त तथ्यों की जानकारी देना शुरू करें, या इससे अधिक जो भी उचित लगे करें। सकारात्मक सोच, साधना, उत्साह बना रहे, देखें फिर क्या नहीं होता।
अगर अच्छा लगे तो अपने परिवार का दूध बदलिये नही तो अपने माँता पिता जी से चर्चा जरूर कीजिये ।नही कर सकते तो सन्देश किसी और ग्रुप में भेजिए ।

सोमवार, 23 मई 2016

महाभारत में गौमाता का माहात्म्य,

~~~ महाभारत में गौमाता का माहात्म्य,
तथा  गौमाता के दैनिक जाप,
प्रार्थना तथा प्रणाम के मन्त्र -
भगवान् श्री राम के गुरुदेव महर्षि वसिष्ठ  जी इक्ष्वाकुवंशी महाराजा सौदास से “गवोपनिषद्” (गौओं की महिमा के गूढ रहस्य को प्रकट करने वाली विद्या) का निरूपण करते हुए महाभारत में कहते हैं –
**हे राजन्! मनुष्य को चाहिये कि सदा सबेरे और  सायंकाल आचमन करके इस प्रकार जप करे – “घी और दूध देने वाली, घी की उत्पत्ति का स्थान, घी को प्रकट करने वाली, घी की नदी तथा घी की भंवर रूप गौएं मेरे घर में सदा निवास करें। गौ का घी मेरे हृदय में सदा स्थित रहे। घी मेरी नाभि में प्रतिष्ठित हो। घी मेरे सम्पूर्ण अंगों में व्याप्त रहे और घी मेरे मन में स्थित हो। गौएं मेरे आगे रहें। गौएं मेरे पीछे भी रहें। गौएं मेरे चारों ओर रहें और मैं गौओं के बीच में निवास करूं”। इस प्रकार प्रतिदिन जप करने वाला मनुष्य दिन भर में जो पाप करता है, उससे छुटकारा पा जाता है।
--गौ सबसे अधिक पवित्र, जगत् का आधार और  देवताओं की माता है। उसकी महिमा अप्रमेय है। उसका सादर स्पर्श करे और उसे दाहिने रख कर ही चले। प्रतिदिन यह प्रार्थना करनी चाहिये कि सुन्दर एवं अनेक प्रकार के रूप-रंग वाली विश्वरूपिणी गोमाताएं सदा मेरे निकट आयें। संसार में गौ से बढ़ कर दूसरा कोई उत्कृष्ट प्राणी नहीं है। त्वचा, रोम, सींग, पूंछ के बाल, दूध और मेदा आदि के साथ मिल कर गौ दूध दही घी आदि के द्वारा सभी यज्ञों व पूजाओं का निर्वाह करती है, अतः उससे श्रेष्ठ दूसरी कौन-सी वस्तु है।
--अन्त में वे गौमाता को परमात्मा का स्वरूप  मान कर प्रणाम करते हैं - जिसने समस्त चराचर जगत् को व्याप्त कर रखा है, उस भूत और भविष्य की जननी गौ माता को मैं मस्तक झुका कर प्रणाम करता हूं॥
-----(महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय ८० श्लोक १,२,३,४,१०,१३,१४,१५)
१. उपर्युक्त “गवोपनिषद्” में से दैनिक जप के संस्कृत मन्त्र (महर्षि वसिष्ठ द्वारा उपदिष्ट) -
घृतक्षीरप्रदा गावो घृतयोन्यो घृतोद्भवाः।
घृतनद्यो घृतावर्तास्ता मे सन्तु सदा गृहे॥
घृतं मे हृदये नित्यं घृतं नाभ्यां  प्रतिष्ठितम्।
घृतं सर्वेषु गात्रेषु घृतं मे मनसि स्थितम्॥
गावो ममाग्रतो नित्यं गावः पृष्ठत एव च।
गावो मे सर्वतश्चैव गवां मध्ये वसाम्यहम्॥
++अनुवाद = घी और दूध देने वाली, घी की उत्पत्ति का स्थान, घी को प्रकट करने वाली, घी की नदी तथा घी की भंवर रूप गौएं मेरे घर में सदा निवास करें। गौ का घी मेरे हृदय में सदा स्थित रहे। घी मेरी नाभि में प्रतिष्ठित हो। घी मेरे सम्पूर्ण अंगों में व्याप्त रहे और घी मेरे मन में स्थित हो। गौएं मेरे आगे रहें। गौएं मेरे पीछे भी रहें। गौएं मेरे चारों ओर रहें और मैं गौओं के बीच में निवास करूं
--२. गौमाता की दैनिक प्रार्थना का मन्त्र  (महर्षि वसिष्ठ द्वारा उपदिष्ट) -
सुरूपा बहुरूपाश्च विश्वरूपाश्च मातरः।
गावो मामुपतिष्ठन्तामिति नित्यं  प्रकीर्तयेत्॥
++अनुवाद = प्रतिदिन यह प्रार्थना करनी  चाहिये कि सुन्दर एवं अनेक प्रकार के रूप-रंग वाली विश्वरूपिणी गोमाताएं सदा मेरे निकट आयें
---३. गोमाता को परमात्मा का साक्षात् विग्रह  जान कर उनको प्रणाम करने का मन्त्र (महर्षि वसिष्ठ द्वारा उपदिष्ट) -
यया सर्वमिदं व्याप्तं जगत् स्थावरजङ्गमम्।
तां धेनुं शिरसा वन्दे भूतभव्यस्य मातरम्॥
++अनुवाद = जिसने समस्त चराचर जगत् को व्याप्त कर रखा है, उस भूत और भविष्य की जननी गौ माता को मैं मस्तक झुका कर प्रणाम करता हूं॥
क्रिपा जरुर पढें और गौ माता की सेवा करें ऐवं अपने बच्चों या छोटों से करवायें...
ॐ जय गौ राम ॐ

सोमवार, 16 मई 2016

(31) गौ चिकित्सा-घाव-फोड़ा,फुन्सी के कीड़े ।

गौ चिकित्सा-घाव-फोड़ा,फुन्सी के कीड़े । 

१ - सूजन (Swelling ) 
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प्राय: पशु के शरीर के किसी अंग मे चोट लग जाने ,गन्दा मादा एकत्रित हो जाने अथवा फोड़ा- फुन्सी आदि उठने, घाव पक जाने या सर्दी आदि कारणों से प्रभाव से सूजन उत्पन्न हो जाती है । 
जिस स्थान पर सूजन होती हैं ,पशु के शरीर का वह स्थान उभरा हुआ- सा दिखाई देता हैं । उसमे दर्द होता हैं और दबाने से कडापन महसुस होता हैं । स्पर्श करने से वह स्थान गरम भी प्रतीत होता हैं । पशु सूजन के कारण बेचैन रहता हैं तथा कभी- कभी उसे बुखार भी हो जाता है । 

यदि सूजन की उत्पत्ति का कारण चोट लगना अथवा घाव आदि हो तो - नीम के उबाले हुए जल से पीड़ित स्थान को भली-भाँति धोये तथा उसी से सेंक करे । तदुपरान्त निम्नांकित दवा तैयार करके उस स्थान पर लगा दे । 

१ - औषधि - तवे को चूल्हे पर चढ़ाकर उसमे घी और पिसी हुई हल्दी डालकर अच्छी तरह पका लें और फिर रूई के फ़ाहे पर रखकर सूजन वाले स्थान पर रखकर बाँध देना चाहिए । इस प्रयोग से १-२ दिन मे ही सूजन दूर हो जाती है । 
२ - औषधि - भुना हुआ कपूर अथवा खील किया हुआ सुहागा सममात्रा में तिल के तैल, गाय का घी अथवा वैसलीन या मक्खन मे मिलाकर सूजन के ऊपर लेप करने से भी , सूजन नष्ट होती हैं । 

३ - औषधि - यदि सूजन उत्पन्न होने का कारण ख़ून का खराब मादा एकत्रित होना हो अथवा फोड़ा - फुन्सी उठने के पुर्व सूजन पैदा हो गई हो तो ऐसी दशा मे - नीम के पत्ते अथवा मकोय को पानी मे उबालकर उससे सूजन को सेकें , तदुपरान्त - निम्नांकित लेपों मे से कोई एक लेप लगाना चाहिए 
४ - औषंधि -हल्दीपावडर और साबुन २-२ तौला की मात्रा में लेकर थोड़े- से पानी में पकाकर गरम- गरम सूजन स्थान पर लेप करें । 
५ - औषधि - गेरू १ तौला को २ तौला मकोय के रस मे मिलाकर आग पर थोड़ा गुनगुना करके सूजन पर लेप करें । 
६ - औषधि - हल्दीपावडर और चूना दोनों को सममात्रा मे मिलाकर गरम पानी या मकोय अथवा आकाश बेल के रस में मिलाकर गुनगुना करके सूजन पर लेप करें । 
७ - औषधि - सामान्य प्रकार की सूजन ठण्डे पानी की धार डालने अथवा कपड़ा तर करके सूजन पर रखने से भी सूजन दूर हो जाती हैं । 
८ - औषधि - गरम ईंट , रेत आदि गरम करके कपड़े की पोटली बाँधकर उससे सेंक करना भी लाभकारी सिद्ध होता हैं । किन्तु पोटली की सेंक करने से पहले सूजन पर थाडा तैल अथवा घी चुपड़ लेना चाहिए । 
९ - औषधि - कपूर १ तौला और १ छटाक तारपीन तैल को २५० ग्राम तिलों के तैल मे मिलाकर सूजन वाले स्थान पर मालिश करने से लाभ होता हैं । 
यदि उपरोक्त प्रयोगों से भी सूजन दूर न हो तो निम्नलिखित प्लास्टरू तैयार करके प्रयोग में लाना चाहिए । इस प्लास्टर के ही प्रयोग से शीघ्र ही सूजन दूर होगी - राई को पानी पानी मे पीसकर गरम करके, कपड़े पर मलहम की तरह फैलायें और सूजन पर चिपका दें । 
१० - औषधि - लहसुन १ भाग और २ भाग आटा लेकर सिलबट्टे पर पीसें । जब यह मरहम के रूप मे आ जाये तो उसे गरम करके कपड़े पर फैलाकर सूजन पर चिपका दें । 
रोग - पशुओं के घाव में कीड़े पड़ जाने पर । 
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औषधि - नीलकंठ पक्षी का पंख -- पशुओ के शरीर के घावों में कीड़े पड़ जाने पर नीलकंठ पक्षी के एक पंख को लेकर बारीक - बारीक काटकर रोटी में लपेटकर पशु को खिला देने से रोगी पशु के सारे कीड़े मर जायेंगे । और कैसा भी घाव होगा ७-८ दिन में अपने आप भर जायेगा । दवा को खाते ही कीड़े मरकर बाहर आ जायेंगे ।१% कीड़े नहीं मरे तो । तीन - चार दिन के बाद एक खुराक और दें देना चाहिए । 


२ - घाव में कीड़े पड़ना 
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कारण व लक्षण - अक्सर यह रोग घाव पर एक प्रकार की हरी मक्खी के बैठने से होता है । पहले मक्खी घाव पर अपना सफ़ेद मल ( अघाडी ) छोड़ देती है । वही मल दिनभर में कीड़े के रूप में बदल जाता है । एक विशेष प्रकार की सफ़ेद मक्खी , जो कि आधा इंच लम्बी होती है , वह मल के रूप में कीड़े ही छोड़ती है । 

१ - औषधि - रोग - ग्रस्त स्थान पर, घाव में बारीक पिसा हुआ नमक भर दिया जाय और पट्टी बाँध दी जाय, जिससे घाव पक जायगा और कीड़े भी मर जायेंगे । घाव पकने पर कीड़े नहीं पड़ते हैं । 

२ - औषधि - करौंदे की जड़ १२ ग्राम , नारियल का तैल २४ ग्राम , करौंदे की जड़ को महीन पीसकर छान लें । फिर उसमें तैल मिलाकर ,घाव में भरकर , ऊपर से रूई रखकर पट्टी बाँध दें । तत्पश्चात् पीली मिट्टी या कोई भी मिट्टी बाँध कर लेप कर दें । 

३ - औषधि - अजवायन के तैल को रूई से घाव पर लगाकर पट्टी बाँध देने से कीड़े एकदम मर जाते है । अजवायन का तैल किसी और जगह पर लग जाय तो तुरन्त नारियल का तैल लगा देना चाहिए , अन्यथा चमड़ी निकलने का भय रहता है । 

४ - औषधि - बड़ी लाजवन्ती का पौधा ३६ ग्राम , लेकर रोगी पशु को रोटी के साथ दिन में दो बार खिला दें । इससे कीड़े मर जायेंगे । उसकी एक बीटी भी बनाकर रोगी पशु के गले में काले धागे से बाँध दें । 

५ - औषधि - मालती ( डीकामाली ) १२ ग्राम , नारियल का तैल १२ ग्राम , मालती को बारीक पीसछानकर नारियल के तैल में घोंट लें ।फिर पशु के घाव पर लगाकर रूई रखकर पट्टी बाँध दें । दवा हमेशा ताज़ी ही काम मे लानी चाहिए । 

६ - औषधि - मोर पंख जलाकर राख १२ ग्राम , नारियल तैल १२ ग्राम । मोरपंख को जलाकर छान लें फिर उसे तेल में मिलाकर घाव पर लगा दें । और रूई भिगोकर घाव पर रखकर ऊपर से पट्टी बाँध दें । फिर मिट्टी से उस पर लेप कर दें । 
७ - औषधि - यदि घाव मे कीड़े पड़ गये हो तो उन्हे अच्छी तरह से साफ़ करके सरसों के तैल में - तारपीन का तैल या युकलिप्टस का तैल या कपूर का तैल मिलाकर लगाना लाभप्रद होता है । 

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फोड़ा - फुन्सी व घाव 
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कारण व लक्षण - चोट , सर्दी , गर्मी , अथवा अन्य किसी ख़राबी के कारण पीव - मवाद एकत्रित हो जाने से कभी - कभी पशु के शरीर के किसी हिस्से में सूजन हो जाती हैं , जिसे फोड़ा या फुन्सी कहते हैं । 

१- औषधि - फुंसियाँ निकलते ही यदि समुचित उपाय किया जाय तो सूजन पटक जाती हैं , इस हेतू सेमरवृक्ष ( सेम्भल वृक्ष ) की छाल और कचनार की छाल को जल मे पीसकर बाँधना चाहिए । 

२ - औषधि - गेरू व जामुन की छाल , नीम व मकोय के पत्ते पानी मे पीसकर गुनगुना करके बाँधना चाहिए व लेप करना चाहिए । 

३ - औषधि - नीम की छाल , अजवायन , या रूस के पत्ते ( प्रत्येक सममात्रा मे लेकर ) पानी मे मिलाकर पीसकर गरम करके बाँधने से फुन्सियाँ पटक जाती हैं । 

४ - औषधि - सोया का बीज हल्दी ,धनिया , बाबूना के पत्ते , सभी सममात्रा मे लेकर पानी मे पीसकर गरम करके फोड़ा पर बाँध देना चाहिए । 

# - यदि इन सभी दवाओं के प्रयोग से फोड़ा न बैठे तो नीचे लिखी दवाओं का प्रयोग करके फोड़े को पकाकर उसका पस ( मवाद ) निकाल देना चाहिए । 

५ - औषधि - चावल को गाय के दूध से बनी मट्ठा ( छाछ ) के साथ पीसवाने के बाद उसमे नमक मिलाकर आग पर पका लें तदुपरान्त इस पुल्टिस को फोड़े पर बाँधें इस प्रयोग से फोड़ा पककर फूट जायेगा । 

६ - औषधि - मुल्हैटी , सम्मभालू के पत्ते और मैनफल सभी को सम्भाग लेकर पानी के साथ पीसकर गुनगुना करके फोड़े पर बाँधने से फोड़ा पककर फूट जायेगा । 

७ - औषधि - गुगल पीसकर उसमे शहद मिलाकर गरम करके इसका लेप करना कारगर सिद्ध होता हैं । 

८ - औषधि - गेहू का दलिया और दही पकाकर गुनगुना ही फोडे पर बाँधने से फोड़ा पककर फूट जाता हैं । 

# - यदि फुन्सी मे माँस बढ़ जाये तो निम्नांकित चिकित्सा करनी चाहिए -- 

९ - औषधि - एक किरकेटा ( गिरगिट ) लाकर उसके पाँव व पूँछ काटकर फेंक दें और उसका पेट चीरकर उसकी आँते निकाल उसके धड़ को तिल के तैल मे पकाकर ( यह ध्यान रहे कि वह जलकर राख न हो ) ठन्डा करके रख लें और निरन्तर इस तैल को फोड़ा पर लगाते रहने से लाभ होता हैं । 

१० - औषधि - आरने ( गाय जब जंगल मे चरती हुई गोबर करती है और जगह-जगह वह गोबर की चौथ पड़ती है और बाद मे वह सूख जाती है तो इसी को आरना या आरने कहते है इसकी आँच बहुत तेज होती है वह हीरे की भस्म इसी से बनायी जाती हैं ) की भस्म और सीप का चूना २-२ पैसे भर की मात्रा मे लेकर २५० ग्राम अलसी के तैल मे पकाकर मरहम बनाकर इसको नित्य - प्रति पशुओ के घाव पर लगाने से घाव शीघ्र ठीक होते हैं । 

११ - औषधि - यदि फोड़ा पकने लगा हो तो पूरी तरह पकाकर फूटने पर उसका मवाद अच्छी तरह साफ़ करके नीम के पत्तों के उबाले हुए जल से धोकर प्याज़, कुकरौंदा अथवा गुलाब बाँस की पत्ती पानी से पीसकर व गरम करके दिन में २-३ बार बाँधने से लाभ हो जाता हैं। 

१२ - औषधि - एक तौला आटा, १ माशा हल्दी , १ तौला मीठा तैल ,१ माशा सुहागा, १ माशा सिन्दुर , २ रत्ती तूतीया - इन सब औषधियों को लेकर , मिलाकर आग पर और पुल्टिस बनाकर गरम- गरम ही बाँधने से बड़े - से - बड़ा कच्चा फोड़ा भी शीघ्र ही पककर फूट जाता है । यदि फोड़ा शीघ्र नही फूटे तो - चाक़ू को पानी मे ख़ूब उबालकर ठण्डा कर उसमे चीरा करने के लिए निम्नांकित उपचार करने चाहिए - 

१३ - औषधि - नीम के तैल मे थोड़ा - सा सल्फानिलेमाइड का पावडर मिलाकर मलहम की भाँति प्रयोग करते रहने से घाव ठीक हो जाता हैं । 

१४ - औषधि - यदि घाव मे कीड़े पड़ गये हो तो उन्हे अच्छी तरह से साफ़ करके सरसों के तैल मे - तारपीन का तैल या युकलिप्टस का तैल अथवा कपूर का तैल मिलाकर लगाना लाभप्रद हैं । 

१५ - औषधि - घाव की मक्खियाँ आदि से बचाने के लिए - नीम के तैल मे थोड़ा - सा कपूर मिलाकर लगाना लाभप्रद होता हैं । 

१६ - औषधि - घाव को प्रतिदिन रूई से साफ़ करके अथवा गरमपानी मे बोरिकएसिड पावडर लगाकर साफ़ करके मलहम आदि लगाकर पट्टी बाँधते रहना चाहिए अन्यथा मवाद भरा रहकर अन्दर ही अन्दर घाव को बढ़ा देगा । 



घाव मे कीड़े हो जाना 
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कारण व लक्षण - प्राय: घाव हो जाने पर असावधानीवश तथा उसको किसी उचित किटाणुनाशक घोल से धोकर साफ़ न करने के कारण पशुओं के घाव में कीड़े हो जाते हैं । जिसके कारण पीड़ित पशु को अत्यधिक कष्ट होता हैं , पशुओं के घाव पर मक्कियाँ बैठकर मल त्याग कर देती हैं । इसको साफ़ न करने से भी घाव मे कीड़े पड़ जाते हैं । 

# - सर्वप्रथम घाव को हुक्के के पानी से धोकर साफ़ कर लेना चाहिए तदुपरान्त आगे लिखी दवाओं का प्रयोग करना चाहिए -- 

१ - औषधि - यदि पशु के घाव मे कीड़े अधिक मात्रा मे पड़ गये हैं तो और लापरवाही वश काफी समय व्यतीत होने से वे बड़े आकार के हो गये हैं तो ऐसे घाव मे घोडबच ( घुड़बच ) भर देने से कीड़े शीघ्र ही मर जाते हैं । 

२ - औषधि - तम्बाकू के पत्ते और फिटकरी पीसकर पशुओ के घाव मे भर देने से कीड़े मर जाते हैं । 

३ - औषधि - तारपीन का तैल २५० ग्राम , और कपूर १० ग्राम , आग मे कुछ गरम करके पिचकारी देने से भी कीड़े मर जाते हैं । 

४ - औषधि - गाय के गोबर से बने कण्ड़े या आरने की राख को छानकर सरसों के तैल मे मिलाकर पशुओं के कृमियुक्त घाव मे लगाने से उनके घाव के कीड़े मर जाते हैं । 

५ - औषधि - सरसों का तैल १ किलो , नीम का तैल , कनइल ( कर्णिकर ) प्याज़ की लूगदी और तुतिया प्रत्येक २५०-२५० ग्राम , लेकर सभी सभी को महीन पीसकर और एक ही में मिलाकर तथा पकाकर मलहम बनाकर सुरक्षित रख लें । इस मलहम को प्रतिदिन पशुओ के ज़ख़्म पर लगाने से घाव में उत्तपन्न हो जाने वाले कीड़े मर जाते हैं । 

# - यह मरहम प्रत्येक प्रकार के कीड़ों पर लगाया जाये तो सभी का सफ़ाया करने मे कारगर सिद्ध हुआ हैं । 



चोट लगना या कट जाना 

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१ - औषधि - यदि किसी तेज़धार वाले औज़ार से या किसी कठोर वस्तु से पशु के किसी अंग के कट जाने अथवा चोट लग जाने के कारण रक्त प्रवाहित होने लगे तो भूना हुआ सुहागा ( सुहागा खील ) पीसकर कटे हुए स्थान पर लगा देने से रक्त निकलना रूक जाता हैं । 

२ - औषधि - पीने वाले तम्बाकू की जली हुई राख ( तम्बाकू गुल ) को बारीक पीसकर उसे पशु के शरीर आक्रान्त स्थान पर भरकर ऊपर से केले का पत्ता कसकर बाँध देने से बहता हुआ रक्त रूक जाता हैं । 

३ - औषधि - पुराने कम्बल को जलाकर उसकी भस्म घाव मे भर देने से पशु के शरीर से ख़ून का स्राव रूक जाता हैं । 

# - प्राथमिक उपचार के रूप मे किसी भी कटे स्थान को कपड़े से कसकर बाँध देना चाहिए तथा ऊपर से बर्फ़ से सिकाई करने से बहता हुआ ख़ून जमकर रूक जायेगा । 



३ - नासूर ( घाव ) 
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कारण व लक्षण - यह रोग फोड़े होने पर होता है । या नस में छेद हो जाने पर होता हैं । कभी - कभी कोई हड्डी रह जाने पर भी नासूर हो जाता है । यह काफ़ी बड़ा फोड़ा हो जाता है और नस में छेद होने पर ख़ून निकलता रहता है । 

१ - औषधि - आवॅला १२ ग्राम , कौड़ी २४ ग्राम , नीला थोथा ५ ग्राम , गाय का घी ५ ग्राम , आॅवले और कचौड़ी को जलाकर , ख़ाक करके , पीसलेना चाहिए । फिर नीले थोथे को पीसकर मिलाना चाहिए । उसमें घी मिलाकर गरम करके गुनगुना कर नासूर में भर देना चाहिए । 

२ - औषधि - नीला थोथा १२ ग्राम , गोमूत्र ९६० ग्राम , नीलेथोथे को महीन पीसकर , उसे गोमूत्र में मिलाकर , पिचकारी द्वारा नासूर में भर देना चाहिए । 

३ - औषधि - काला ढाक , पलाश,की अन्तरछाल २४ ग्राम , गोमूत्र ६० ग्राम , छाल को महीन पीसकर , कपड़े से छानकर , गोमूत्र में मिलाकर , पट्टी से बाँध देना चाहिए । यह पट्टी २४ घन्टे बाद रोज़ बदलते रहना चाहिए । 

५ - औषधि - हल्दी, फिटकरी , गन्धक , प्रत्येक आधा- आधा पाँव , नीला थोथा १ छटांक , हींग ढाई तौला , लहसुन का रस १ पाँव , अदरक का रस आधा किलो , धतुरे के पत्तों के का रस १ किलो कड़वा ( सरसों ) का तेल डेढ़ पाँव - सभी को मिलाकर मन्द- मन्द आँच पर पकायें । जब पानी जल जाये और तेल शेष रह जायें तो छानकर साफ़ - स्वच्छ शीशी में भरकर सुरक्षित रख लें । यह तेल भी उत्तम कीटाणुनाशक है हैं । साथ ही यह तेल - नासूर , घाव , फोड़े ,फुन्सी , खाज , छाजन आदि समस्त चर्मरोग के लिए भी लाभकारी हैं । यह दवा घाव भरने की अच्छी औषधि हैं । 



२ - ज़ख़्म पर टाँका लगाना 
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उपचार - ज़ख़्म पर सुई - धागा द्वारा टाँका लगा देना चाहिए तथा गोमूत्र से धुलाई करके महकवा का रस डालने से ख़ून बन्द हो जायेगा तथा बाद मे दण्डोत्पलक की जड़ को घिसकर उसका पेस्ट बनाकर गेन्दें के रस में मिलाकर मरहम की तरह लगा देवें । 


सोमवार, 2 मई 2016

गौ महिमा राधे श्याम रावोरिया द्वारा सम्पादित कुछ चित्र

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गौमाता सुविचार फोटोज राधेश्याम रावोरिया द्वारा सम्पादित

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