शनिवार, 30 सितंबर 2023

गौ परिक्रमा से मिलते हैं ढेरों लाभ,


गौ परिक्रमा से मिलते हैं ढेरों लाभ,

 
विष्णुपुराण के अनुसार व्यक्ति के किसी भी अनिष्ट की निवृत्ति के लिए गौमाता के पूजन का विधान किया गया है। 
अनेक तरह के अरिष्टकारी भूचर, खेचर और जलचर आदि दुर्योग उस व्यक्ति को छू भी नहीं सकते जो नित्य गौमाता की सेवा करता है या फिर रोज गौमाता के लिए चारे या रोटी का दान करता है। 
तिल, जौ व गुड़ का बना लड्डू नौ गायों को खिलाने से व परिक्रमा करने से संतान प्राप्ति एवं मनोवांछित फल मिलता है। 
पति-पत्नी में आपसी मनमुटाव या क्लेश रहता हो तो दोनों गठजोड़े से गऊमाता की परिक्रमा करें एवं घर से रोटी बनाकर तिल के तेल से चुपड़ कर गुड़ के साथ नौ गायों को खिलाएं। 
घर में सुख-शांति बनी रहेगी। 

 
गर्भवती महिलाएं नौ माह में प्रत्येक अमावस्या व पूर्णिमा पर परिक्रमा कर लें तो सामान्य डिलीवरी से संतान होगी। 
प्रतिदिन भोजन करने से पहले एक रोटी व गुड़ अपने हाथ से देसी गाय को खिलाने से एवं गाय के मुंह से लेकर पूंछ तक हाथ फेर कर अपने शरीर पर हाथ फेरने से शरीर का संतुलन बना रहता है।

 
गाय को जौ खिलाएं और उसके गोबर में से जौ निकले, उसे धोकर खीर बना कर एक चम्मच गाय का घी डालकर गर्भवती महिलाएं अंतिम माह में खाएं। यह साधारण डिलीवरी में सहायक है। 
जिन बच्चों की शादी में अनावश्यक विलम्ब हो रहा हो, वे स्वयं विधिपूर्वक गाय की पूजा करके नौ रोटी व गुड़ खिलाएं जिससे मनवांछित फल प्राप्त होगा।

गुरुवार, 28 सितंबर 2023

इस्कॉन गौशालाओं का मुद्दा गर्म है।


इस्कॉन गौशालाओं का मुद्दा गर्म है। धन्यवाद मेनका गांधी जी का ! भारत में गौशाला एक पुण्य स्थान की तरह देखा जाता है। माना जाता है कि गौ सेवा भगवान का दिया हुआ कार्य है। और इसे करने वाले को पुण्य मिलता है। ऐतिहासिक आधार पर ऐसा विवरण मिलता है कि शहरों में स्थापित पहली गौशाला हरियाणा के रेवाड़ी शहर के नारनौल रोड़ स्थित कुतुबपुर रामपुरा में बनाई गई। श्री दयानन्द गौशाला का निर्माण वर्ष 1879 में कराया गया था. उस वक्त रेवाड़ी के शासक राव युधिष्ठिर सिंह थे. कहा जाता है कि वर्ष 1879 में स्वामी दयानन्द सरस्वती महाराज ने 17 दिनों के लिए रेवाड़ी में प्रवास किया था. प्रवास के बाद जयपुर जाते समय उन्होंने रेवाड़ी के इस स्थान पर छड़ी मारकर जमीन की निशानदेही की थी कि यहां गौशाला बनाई जाए। वैसे पहली गौरक्षिणी सभा का निर्माण 1882 में पंजाब में हुआ था। इसका उद्देश्य वृद्ध गायों और छोड़ दी गई बीमार गायों को शरण देना था। ये आंदोलन उत्तर भारत, बंगाल, बंबई, मद्रास प्रेसीडेंसी और सेंट्रल प्रॉविंस में ऐसा फैला कि उस समय साढ़े तीन लाख लोगों ने इसमें जुड़कर हस्ताक्षर किए। इसके बाद 1893 तक देश में गौ रक्षा (छोड़ी गई गायों) के लए बहुत सारी गौशालाएं खुली। आज की बात करें तो राजस्थान के सांचौर जिले में देश की बड़ी गौशाला है जहां करीब 150,000 गाय और बैल रहते हैं। 

गाय को लेकर केंद्र सरकार से राज्य सरकार तक कई नीतियां है। दूध, दही, घी, पनीर, गौमूत्र के अलावा उनकी स्थानीय प्रजातियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए भी कई संस्थान है। राज्यों में गौरक्षा के लिए भी संगठन है। हिंदू-जैन-सिख धर्म में धार्मिक मान्यता से गौशालाएं संचालित हैं। हिंदूओं के हर आश्रम-मठ-मंदिर के प्रांगण में गौ सेवा एक धर्म है। NITI Aayog की “गौशाला” की आर्थिक व्यवहार्यता में सुधार पर जारी इस साल की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1962 के पशु कल्याण बोर्ड (AWBI) के तहत 5000 से ज्यादा गौशालाओं को मान्यता प्राप्त है। AWBI में वैसे 3678 पशु कल्याण संगठन रजिस्टर्ड है, जिनमें से अधिकतर गौशालाएं हैं। इन 3678 में से 1755 गौशाला और पंजरापोल्स हैं। पंजरापोल्स मतलब गायों को आश्रय वाले पशुघर हैं। पंजरापोल्स का जैन धर्म से गहरा नाता है। 

हरियाणा सरकार ने काऊ टास्क फोर्स बनाकर गौरक्षा को एक अमली जामा पहनाया। मध्यप्रदेश गौवंश संरक्षण और रक्षा के लिए कड़े कानून लागू करने वाले देश के अग्रणी राज्यों में एक हैं। गौवंश वध प्रतिशेध अधिनियम में गाय का वध करने पर 7 साल की सजा का प्रावधान है। प्रदेश में 1762 गौशालाओं में 2 लाख 87 हजार गौवंश का पालन हो रहा है। वर्ष 2022-23 में इनके चारे के लिए 202 करोड़ 34 लाख का अनुदान वितरित किया गया। वहीं उत्तर प्रदेश गो-सेवा आयोग अधिनियम 1999 के उत्तर प्रदेश में गो-सेवा आयोग की स्थापना की गयी थी। इसके हिसाब से उत्तर प्रदेश में 525 पंजीकृत गौशालाएं है और 92 सक्रिय। कोई भी गो-सेवा आयोग को दान भी दे सकता है। वैसे प्रदेश के 12 कारागारो मे गोशालाये संचालित है। प्रदेश में संचालित 6719 बेसहारा गोवंश संरक्षण स्थलों में 11.33 लाख से ज्यादा गोवंश जानवर रखे गए हैं. इसके लिए सरकार प्रति गाय 900 रूपए देती है। सरकार का दावा है कि गोवंश के संरक्षण हेतु चलाए गए आक्रामक अभियान के सकारात्मक परिणामस्वरूप 11.5 लाख गोवंश को संरक्षण दिया जा सका है। 

अब बात करते हैं इस्कॉन की। भारत में इस्कॉन 60 गौशालाएं चलाती है। भगवान कृष्ण के भक्त इस्कॉन के साधु नि:संदेह गायों के प्रति भाव रखते हैं। उनकी गौशालाएं साफ सुथरी और दूध देने वाली गाएं भारतीय प्रजाति की होती हैं। समय समय पर इनकी गौशालाओं में छोड़ी गई गायों को भी शरण दी जाती है, पर हां वो गौ आश्रय के स्थान नहीं है। इन गौशालाओं में गायों के दूध को इस़्कॉन अपने मंदिर-आश्रम को चलाने के लिए उपयोग करता है। गायों को भारतीय संस्कृति के अनुसार नाम दिया जाता है और उनके बच्चों को सही से पाला जाता है। ये आरोप गलत है कि वे कसाई खाने को सौपें जाते हैं। आप इस वीडियो को देखकर कुछ समझ सकते हैं कि इस्कॉन कैसे वृद्ध गायों और बछियों की सेवा करता है। (https://www.youtube.com/watch?v=M0c4pz3HIhE)

भारत की सभी गौशालाों के हाल बहुत अच्छे नहीं है, इसीलिए वे गौ-धन और पंचामृत के कार्य में लगे हैं। मेरी अपनी जानकारी में देश की बड़ी बड़ी गौैशालाओं आर्थिक संकट में है। 

धार्मिक आधार पर गौ सेवा करने वाले संंत और कथा वाचक आज भी गायों को लेकर संवेदनशील हैं। वे सरकारी मदद से ज्यादा दान और भक्तों को सीधे संदेश देकर गायों की सेवा में लगे रहते हैं। इससे देश में भावना, सेवा और सामर्थ्य के बीच सामंजस्य नहीं बना है। गाय के दूध की सभी को जरूरत है। लेकिन ये कोआपरेटिव और किसान स्तर पर प्रोफेशनली विकसित हुआ है। धार्मिक आधार पर गौ-सेवा अभी भी कई स्तरों पर अविकसित है।