सोमवार, 18 नवंबर 2013

इंदिरा गांधी को पूज्य करपात्री जी महाराज ने श्राप दिया था |

इंदिरा गांधी को पूज्य करपात्री जी महाराज ने श्राप दिया था |

और वो सच हुआ था !!!

1966 में लगभग २५० संतों की हत्या इंदिरा गाँधी ने कराई थी,,,,

इंदिरा गांधी के लिये उस वक्त चुनाव जीतना बहुत मुश्किल था।

शास्त्री जी की हत्या के बाद कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में इंदिरा गाँधी चुनाव में खड़ी
हुई थीं,

उनका जीतना संदेहास्पद था क्यों कि जन मानस में उनकी छवि अत्यंत खराब थी.

करपात्री जी महाराज के आशीर्वाद से इंद्रा गांधी चुनाव जीती ।

इंद्रा ग़ांधी ने उनसे वादा किया था चुनाव जीतने के बाद गाय के सारे
कत्ल खाने बंद हो जायेगें ।जो अंग्रेजो के समय से चल रहे हैं ।

और जैसा की आप जानते हैं । वादे से मुकरना नेहरु परिवार की खानदानी आदत है ।
चुनाव जितने के बाद कृपात्री जी महाराज ने कहा और मेरा काम करो न,,,
गाय के सारे कत्ल खाने बंद करो ।

इंद्रा ग़ांधी ने धोखा दिया । कोई कत्लखाना बंद नहीं किया गया ।
(तब रोज कि 15000 गाय कत्ल की जाती थी.अब एक लाख से अधिक गऊएं
काटी जाती हैं,,,

आज तो मनमोहन सिंह ने गाय का मास बेचने वाले देशो भारत को पुरी दुनिया
में तीसरे नंबर पर ला दिया है ।)

खैर तो फ़िर करपात्री जी महाराज का धैर्य टूट गया !

करपात्री जी ने एक दिन लाखो भगतो,,संतों के साथ संसद क़ा घिराव कर दिया |

और कहा की गाय के कतलखाने बंद होगे इसके लिये बिल पास करो |

बिल पास करना तो दूर...

इंद्रा गांधी ने उन पर भगतो,,संतों के उपर गोलिया चलवा दी सैंकड़ो गौ सेवक एवं
संत मारे गए !

तब करपात्री जे ने उन्हे श्राप दे दिया की जिस तरह तुमने गौ सेवको पर गोलिया
चलवाई है उसी तरह तुम मारी जाओगी.

जिस दिन इंद्रा गांधी ने गोलिया चलवाई थी उस दिन गोपा अष्टमी थी.
(गाय के पूजा का सब्से बड़ा दिन)

और जिस दिन इंद्रा गांधी को गोली मारी गई उस दिन भी गोपा अष्टमी थी !

करपात्री जी महाराज का श्राप फलित हुआ,,,,,

अतः कांग्रेसियों से,समस्त सेकुलर पंथियों से अनुरोध है कि अति शीघ्र गऊ हत्या
बंद कराएं अन्यथा गऊ माता के श्राप के कारण कभी सुख से ना तो शासन कर पायेंगे और ना ही रह पायेंगे,,,,

गऊ माता की रक्षा के लिए प्रत्येक भारतवासी उस नेता को चुनें जो गोहत्या को बंद कराने के पक्ष में हो।

प्रत्येक भारतवासी ऐसी सरकार को चुनें जो गोहत्या को बंद कराने के पक्ष में हो।

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पूज्य करपात्री जी महाराज के आंदोलन एवं अन्य आंदोलनों का विवरण
---पांचजन्य से साभार

कांग्रेस नहीं चाहती थी सो नहीं रुका गोवध

स्वतन्त्रता के कई वर्ष पूर्व और आज 66 वर्ष बाद हमारे गौरक्षा के कई आन्दोलनों,
बहुत सारे बलिदानों और अनेकानेक जन चेतना के कार्यक्रमों का परिणाम यह
दर्शाता है कि गाय को बचाने में हम बुरी तरह परास्त हुए हैं।

हमारे बहुत सारे प्रयत्नों में कुछ ऐतिहासिक, कुछ दुखद और कुछ जनचेतना के आन्दोलन हुए।

इनमें सबसे दु:खदायी 7 नवम्बर, 1966 को गोवध बन्द करने का आन्दोलन संतों
और अन्य गोप्रेमियों का हुआ,

जिसमें लगभग 250 संतों ने अपने प्राणों की आहुति दी।

उन्हें बड़ी बेरहमी से अन्धाधुन्ध गोलियों की बौछार से भून दिया गया।

ऐसा वातावरण बनाया गया था जैसे सरकार जान लेने पर तुली हुई थी।

यही नहीं, रात के अन्धेरे में मरे और अधमरे हुए संत और अन्य गोभक्तों को बड़ी बेरहमी से ट्रकों में लादकर दिल्ली से बाहर रिज़ पर ले जाया गया और बिना देखे कि उनमें कुछ जीवित हैं, उन पर पेट्रोल डालकर जला दिया गया।

इसका प्रमाण वे लोग हैं, जिन्होंने जान की बाजी लगाकर उन ट्रकों का पीछा किया जिसमें मरे हुए और मूर्छित हुए संतों को ऐसे लादा गया जैसे गेहूँ की बोरियों को
एक दूसरे के ऊपर लादा जाता है।

उस समय के वरिष्ठ नेता और सरकार के अन्दर की जानकारी रखने वालों का
कहना है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने गृहमंत्री गुलजारी लाल नन्दा
को कहा कि आन्दोलनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दे दो।

इसके उत्तर में नन्दा ने कहा कि यह कार्य उचित नहीं है जिसके बाद उन्होंने
अपना त्यागपत्र दे दिया।

यह तो थोड़े से शब्दों का ब्यौरा है, जिस आन्दोलन ने समाज को दुखी तो किया
लेकिन समाज की आत्मा को इतना नहीं झकझोरा कि वह उस समय की सरकार को मतदान के बल से उखाड़ फेंके।

गोग्राम यात्रा

ऐसा ही एक और आन्दोलन गोग्राम यात्रा का था। जिसमें गोभक्तों ने गांव-गांव में
जाकर जनता को गोरक्षा के लिए लोगों को जागृत किया।

इस आन्दोलन की अवधि लम्बी रही, इस आन्दोलन से लोगों में चेतना तो आई
परन्तु यह चेतना इतनी भयंकर न थी कि जनता उन लोगों को चुनकर विधानसभा
और लोकसभा में न भेजें जो गोवध बन्द करने के विधेयक का समर्थन नहीं करते हैं।

उस आन्दोलन का एक प्रभावशाली पहलू यह रहा कि गौशालाओं में वृद्घि हुई
और गोरक्षा की संस्थाओं के साथ ऐसे लोग जुड़े जो आये दिन कत्लखानों में ले
जाई जा रही गायों को बचाते रहे।

लोकसभा में विधेयक

ऐसे ही एक बहुत बड़ा कदम गोरक्षा के सम्बन्ध में वर्ष 1952 में लोकसभा में उठा।
जब वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सेठ गोविन्द दास ने दूध देने वाली गायों को कत्ल न करने
वाला विधेयक संसद के समक्ष रखा।
क्योंकि यह विधेयक सरकारी नहीं था।

इसलिए हर वर्ष थोड़े-थोड़े समय के लिए वर्ष 1955 तक उस पर चर्चा होती रही।

सेठ गोविन्ददास ने कहा कि वर्ष 1947-48 में जो समिति बनी थी उसने गोवध पर
पूरा और प्रभावशाली प्रतिबन्ध लगाने को कहा था।

उन्होंने यह भी कहा कि महात्मा गांधी ने कहा था कि राज्य सरकारें बूढ़ी, अपंग
और बीमार गायों की देख रेख करें।

विनोबा भावे ने भी इस प्रस्ताव की सराहना की थी।

सेठ गोविन्ददास का कहना था कि जब तक गोमांस और गाय की खाल का निर्यात
बन्द नहीं हो जाता तब तक गायों का कटना बंद नहीं होगा।

उन्होंने यह भी कहा कि वन विभाग की जमीन की देखरेख ऐसी की जाये जहां गायें आराम से चर सकें।

दु:ख की बात यह है कि जब ये प्रस्ताव सेठ गोविन्ददास ने लोकसभा में रखा तो जवाहर लाल नेहरू ने उठकर कहा कि वह चाहते हैं कि लोकसभा इस प्रस्ताव को नकार दे।

यही नहीं इस प्रस्ताव पर 2 अप्रैल 1955 की बैठक में जबकि सब सदस्य इसे पारित कराने के पक्ष में थे तो नेहरू ने कहा कि वह इस बात को साफ-साफ कहना चाहते हैं
कि लोकसभा इसे नकारे और

अगर यह विधेयक पास किया गया तो वह प्रधानमंत्री के पद से त्यागपत्र दे देंगे।

पांच वर्ष की अवधि में इस बिल पर छ: बार विचार हुआ और जितने भी सदस्यों ने
इसमें भाग लिया सभी ने इसका समर्थन किया।

एक महत्वपूर्ण बात तो यह कि उस समय के प्रभावशाली खाद्य-मंत्री रफी अहमद किदवई ने भी इस बिल की सराहना की और कहा कि एक बड़ा जनसमूह गाय को
माता का दर्जा देता है और समूह की भावना गाय काटने से आहत होती है तो इसलिए
इस विधेयक को पास किया जाये।

उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में इतने बड़े जनसमूह का आदर होना चाहिए।

इन सब बलिदान और जनचेतनाओं से गोवध बन्द तो नहीं हुआ बल्कि गोप्रेमियों
को चिढ़ाने के लिए कत्लखाने बढ़ा दिए गए,,,

और मांस और खाल का निर्यात कई गुणा अधिक बढ़ा दिया गया।

यही नहीं रात के सन्नाटे में गलियों दर गलियों के अन्दर चोरी-छिपे कई घरों में
अवैध रूप से गाय काटी जाती है।

गाय के मांस और उसकी खाल के निर्यात में तो चौंका देने वाली वृद्घि हुई है।

गाय की आबादी जो स्वतन्त्रता के समय 117 करोड़ थी वह आज घटकर 12 करोड़
के लगभग रह गई है।

गाय की कई उत्तम नस्लें समाप्त हो गई हैं और कई नस्लें तो लुप्त होने के कगार
पर पहुंच गई हैं।

यह तो दुखद दास्तान हमारी पूज्य गोमाता- जो देश में सब बच्चों, हिन्दू, मुस्लिम,
सिख, ईसाई, का अपने दूध द्वारा पालन करती है लेकिन फिर भी यह लाखों की
संख्या में भारत में काटी जाती हैं।

इसको रोकने के लिए सभी समुदायों को एकजुट होकर प्रयत्न करना चाहिए।
हर सभी भारतवासियों को सोचना चाहिए कि गाय कैसे बचे और इसकी वृद्घि कैसे
हो ताकि दूध की बढ़ती आवश्यकता को पूरा किया जा सके।

साथ ही हिन्दुओं की भावनाओं को भी आहत होने से रोका जा सके।

कारगर कदम

हमने सभी प्रयत्न कर लिए परन्तु गोवध बन्द नहीं हुआ और न ही बन्द होने के कोई आसार दिखाई दे रहे हैं।

हमें इस विषय पर सोचना है कि गाय को कैसे बचाया जाय।

इसके लिए प्रत्येक भारतवासी उस नेता को चुनें जो गोहत्या को बंद कराने के पक्ष
में हो।

ऐसे लोगों को बिल्कुल भी अपना मत न दें, जो गोहत्यारों के पक्षधर हो।

दूसरा उपाय यह है कि गाय के हर उत्पाद, विशेषकर गोबर और गोमूत्र, का पूरा लाभकारी उपयोग करना होगा।

देश की कुछ बड़ी और छोटी गौशालाओं में गोबर और गोमूत्र से कई वस्तुएं बनाई जा
रही हैं और इसके हमें लाभकारी नतीजे भी मिल रहे हैं।

परन्तु यह काफी नहीं है।

अगर हमें गोवंश को बचाना है तो गोबर और गोमूत्र के प्रयोग से हमें हर वह वस्तु
बनानी होगी जो मनुष्य मात्र के लिए उपयोगी हो।

गोमूत्र का उपयोग दवाईयों के बनाने में भी हो रहा है और गोमूत्र से बनी दवाईयां
कई असाध्य रोगों को ठीक करने में भी कामयाब हुई हैं।

जरूरत इस चीज़ की है कि इन वस्तुओं के बनाने में उद्योपतियों को आगे आना चाहिए।

गोबर और गोमूत्र की हर गांव और हर घर से खरीद करनी चाहिए ताकि गाय पालने
वालों को इतना लाभ हो कि गाय-पालक और अधिक गाय खरीदें और बूढ़ी और दूध ने देने वाली गायों को अपने संरक्षण में रखेंं।

उससे उन्हें इतना लाभ हो कि वह अपनी किसी भी गाय को किसी भी मूल्य पर देने
को सहमत ही न हो।

उद्योगपतियों के द्वारा थोड़ा या अधिक दान गौशाला में देने से काम नहीं चलेगा,

उन्हें ऐसे उद्योग, जो लाभकारी हों, लगाकर गाय के और उसके उत्पादों की महिमा
को आम नागरिक के सामने लाना होगा।

गाय पालकों को गाय के गोबर और गोमूत्र बेचकर इतना धन मिले कि कोई गाय
पालक और किसान अपनी गाय को पशुबाजार में ले जाने की आवश्यकता ही न समझे।


3 टिप्‍पणियां:

  1. ab time a gaya h gow raksha karne ka, modi sarkar h jo hoga abi hoga baad me kuchh nahi, ab congress ka katl karo bharat me.

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  2. qya aap jaante hai gaay paani me nahi jaati, fir bhi saaf aur svachh rahati hai jabki bhains ko pani se bahar nikalne ke liye latthh (danda) ka pryog karna jaroori hai.
    gaay ke gobar se lipi hui jagah makkhhi-machhar nahi aate. yah hindustan ka hazaro saal purana all out aur kachhuaa chhap hai

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