मंगलवार, 27 अगस्त 2019

गोमाताके देखभाल की सही पद्धति: २

गोमाताके देखभाल की सही पद्धति: २
गोमाता के भोजन की व्यवस्था गो भोजन स्थान के साथ जुडी हुई है, गोमाता को कितना भोजन दिया जाये यह बात पर जब मनुष्य निर्णय करता है तब भुल की संभावना बढ़ जाती है, आजकी वैज्ञानिक पद्धति गोपालक को यह समज देती है की गोमाता जितनी मात्रा में दुग्ध दे उतनी मात्रा में गोमाता को भोजन देना चाहिए, किन्तु दुग्ध के प्रमाण में उतार चढाव को भोजन के साथ जोड़ना नहीं चाहिए, जैसे की घरमे हमारे माता-पिता की कार्यशक्ति जब कम हो जाती है तब हम उनको खाना कम नहीं कर देते है, इस बात को ध्यान रखके हमने एक प्रयोग किया, २४ घंटे गो भोजन की जगह पर चारा और पानी रखा, और गोमाता को ही तय करने दिया की कब कितना चारा खाना है और कितना पानी पीना है|
मित्रो, केवल २ दिन ही गोमाता ने ज्यादा भोजन और पानी पिया, यह घटना एक आश्चर्य कर देने वाली है, केहनेका इरादा यह है की गोमाता उसके शरीर के हिसाब से ही भोजन करते है, तो हम सबसे यही बिनती करते है की गोमाता को स्वतंत्रता से चरने दे और भोजन लेने दे |
- वन्दे मातरम, जय गोमाता

गोमाताके देखभाल की सही पद्धति: १

गोमाताके देखभाल की सही पद्धति:
प्राचीन समय से ही गोपालन करते हुए मनुष्योके उपर गोमाताके निवास की जिमेदारी रही है, जब मनुष्यने यह कार्य का स्वीकार किया है तो इस विषय पर गंभीर सोच की आवश्यकता है, जैसे हम देखते है की ज्यादातर गोशाला और मकानमें गोमाता को बाँधनेकी व्यवस्था होती है, अवलोकन करते हुए यह बात ध्यान में आयी है की गोमाता दिन के ज्यादा तर हिस्से में बंधे हुए रहते है, कई बार तो गोमाता को बंधी हुयी रस्सी भी बहोत छोटी होती है, ऐसा नहीं होना चाहिए! हमारे विचार के अनुसार गोमाता को कदापि बांध कर नहीं रखना चाहिए |
गोमाता को कितना भी अच्छा भोजन क्यों ना दिया जाये पर हम उन्हें बाँध कर रखते है तो मानसिकता पर असर होगी ही | संक्षेप में गोमाताकी अनुभूतिको बराबर समज कर व्यव्हार करे तो बांधे बिना भी परिस्थिति को संभाला जा सकता है |
हमारी राय के अनुसार, आपकी आर्थिक व्यवस्थाका ख्याल रख कर छोटासा, गोमाताके लिए गो भोजन स्थान बनादे, वो आप नीलगिरि, बंबू, और लोह की पाइप से बना सकते है, और गोमाता आसानी से चारों ओर घूम फिर सके उतने विस्तार में होना चाहिए, गो भोजन वाले विस्तार को हम पक्का कर सकते है, लेकिन बचा हुवा विस्तार मिट्टीका ही रहने दीजिये क्योकि गोमाता मिट्टी मे बैठना ज्यादा पसंद करते है । ऐसा करने से गोमाता के पॉंव के जोड़ों, रुधिराभिसरण की प्रक्रिया एवं आँचल की लंबी अवधि की सुरक्षा केवल मिट्टी में है |
-वन्दे मातरम, जय गोमाता


रविवार, 18 अगस्त 2019

बहुला चौथ पूजा विधि

*बहुला चौथ*
*व्रत, पूजा विधि एवं कथा*
*19 अगस्त*
बहुला चौथ का त्यौहार भगवान कृष्ण के अनुयायी मुख्य रूप से मनाते है। इस दिन गाय, बछड़े की पूजा की जाती है। कृष्ण के जीवन में गायों का बहुत महत्व था, वे खुद एक गाय चराने वाले थे, जो गौ को माता की तरह पूजते थे।
*बहुला चौथ पूजा विधि*
इस दिन पूरा दिन का व्रत होता है, जो शाम को पूजा के बाद खोला जाता है।
इस दिन मिट्टी से गाय एवं बछड़ा बनाया जाता है, कुछ लोग सोने एवं चांदी के बनवाकर उसकी पूजा करते है।
●शाम को सूर्यास्त के पश्चात् इन गाय, बछड़े की पूजा की जाती है, साथ ही गणेश एवं कृष्ण जी की पूजा की जाती है।
●कुछ लोग ज्वार एवं बाजरा से बनी वस्तु भोग में चढ़ाते और बाद में उसे ही ग्रहण करते है।
●पूजा के बाद बहुला चौथ की कथा को शांति से सुनना चाहिए।
●इस दिन दूध और उससे बनी चीजें जैसे चाय, काफी, दही, मिठाइयाँ खाना बिलकुल माना होता है।
●कहते है जो यह व्रत रखता है, उसे संकट से आजादी मिलती है, साथ ही उसे संतान की प्राप्ति होती है। इस व्रत से धन ऐश्वर्या मिलता है।
●पूजा अर्चना के बाद, मिट्टी से बने गाय बछड़े के जोड़े को किसी नदी या तालाब में सिरा दिया जाता है।
*बहुला चौथ की कथा*
विष्णु जी जब कृष्ण रूप में धरती में आये थे, तब उनकी बाल लीलाएं सभी देवी देवता को भाती थी। कृष्ण जी की लीलाओं को देखने के लिए कामधेनु जाति की गाय ने बहुला के रूप में नन्द की गोशाला में प्रवेश किया।
कृष्ण जी को यह गाय बहुत पसंद आई, वे हमेशा उसके साथ समय बिताते थे। बहुला का एक बछड़ा भी था, जब बहुला चरने के लिए जाती तब वो उसको बहुत याद करता था।
एक बार जब बहुला चरने के लिए जंगल गई, चरते चरते वो बहुत आगे निकल गई, और एक शेर के पास जा पहुंची। शेर उसे देख खुश हो गया और अपना शिकार बनाने की सोचने लगा। बहुला डर गई, और उसे अपने बछड़े का ही ख्याल आ रहा था। जैसे ही शेर उसकी ओर आगे बढ़ा, बहुला ने उससे बोला कि वो उसे अभी न खाए, घर में उसका बछड़ा भूखा है, उसे दूध पिलाकर वो वापस आ जाएगी, तब वो उसे अपना शिकार बना ले।
शेर ये सुन हंसने लगा, और कहने लगा मैं कैसे तुम्हारी इस बात पर विश्वास कर लूँ। तब बहुला ने उसे विश्वास दिलाया और कसम खाई कि वो जरुर आएगी।
बहुला वापस गौशाला जाकर बछड़े को दूध पिलाती है, और बहुत प्यार कर, उसे वहां छोड़, वापस जंगल में शेर के पास आ जाती है। शेर उसे देख हैरान हो जाता है। दरअसल ये शेर के रूप में कृष्ण होते है, जो बहुला की परीक्षा लेने आते है।कृष्ण अपने वास्तविक रूप में आ जाते है, और बहुला को कहते है कि मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हुआ, तुम परीक्षा में सफल रही।
समस्त मानव जाति द्वारा भादव महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन तुम्हारी पूजा अर्चना की जाएगी और समस्त जाति तुम्हे गौमाता कहकर संबोधित करेगी। कृष्ण ने कहा कि जो भी ये व्रत रखेगा उसे सुख, समृद्धि, धन, ऐश्वर्या व संतान की प्राप्ति होगी।
बहुला चौथ का व्रत भादव महीने में आता है, इस समय मानसून रहता है, और हर जगह बहुत अधिक बारिश होती है। इस त्यौहार के द्वारा सभी पशुओं की सुरक्षा की प्रार्थना की जाती है, ताकि वे अधिक बारिश, बाढ़ में सुरक्षित रह सकें। कृषि प्रधान देश में अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में मवेशियों का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है।
*बहुला गौमाता की जय*
*श्रीगोविन्द भगवान की जय*

क्या होता है , उसके बाद? आप जानते हो?

अक्सर जब किसी शहर में गायों/सांडों की गिनती बढ़ जाती है,🐄🐂 तो हम लोग कहते हैं कि इन सब को इकट्ठा करके गौशालाओं में छोड़ा जाए। और हमारे कहने पर ये हो भी जाता है।

क्या होता है , उसके बाद? आप जानते हो?

लोगों के कहने पर सभी गाय और सांड उठा के गाड़ीयों में पटके जातें हैं 🚛🚚और गौशालाओं में, जहां पहले से ही जगह नहीं है, वहां ठूंस दी जाती हैं।

नई गायों/सांड के कारण जब जगह कम पड़ जाती है, तो आपस में झगड़ा होता है, और बहुत सी गायों की टांग इत्यादि इस चक्कर में टूट जाती है 💉🌡और वो आजीवन अपाहिज हो जाती है।😭

इधर हम लोग खुश हो रहे होते हैं कि हमने गायों को गौशाला भेज कर नाजाने कितना पुण्य का काम किया।

हमें चाहिए कि या तो हम गौशालाओं का दायरा बढ़ाऐं, उन्हें खुला वातावरण दें, या फिर चुप रहें। कम से कम थोड़ी सी जगह में गायों को ठूंसने के लिए किसी अफसर को पत्र मत लिखें। क्योंकि वो भी यही करेंगे।

   

रविवार, 11 अगस्त 2019

नंदीजी और बैल साक्षात धर्म-स्वरुप है !

नंदीजी और बैल साक्षात धर्म-स्वरुप है !

  भगवान भोलेनाथ तो हमेशां नंदीजी पर ही सवारी करके विचरण करते है !

( मेरे भोले है भंडारी करे नंदी कि सवारी भोलेनाथ रे ...)

   नंदीजी के बिना कोइ शीवालय कि कल्पना भी कैसे हो सकती है !?

   कृष्ण के नजदिक गाय का होना और शीवजी के पास मे ही नंदीजी का नितान्त रहना ही,-- वैष्णवों एवं शैवों के लीये गौवंश कि महीमा और आवश्यक्ताओं को निर्दिष्ट करने वाला बडा सुचक है यह !!

    जब हमारे उपास्य इष्टदेव ही गौवंश के बिना नही रह पाते तो हम कैसे उपासक है जो गौवंश कि सेवा,सुरक्षा,संवर्धन से नाता जोडे बिना शैव या वैष्णव कहलाने के काबिल अपने आपको मान लेते है !?

   फेसबुक पर कई शूद्ध भक्तों ने अन्य अशुद्ध गौपालक भक्तों के लीये ही खास शुद्धभक्ति के बारे मे चिंता जताइ है, यह अच्छी एवं शुद्ध चिंता है!

   पर आप शुद्ध भक्त और अन्य मेरे जैसे अशुद्ध भक्त भी ... कमसेकम शुद्ध देशी गाय से प्राप्त शुद्ध दूध,दहीं,छाछ,मक्खन,घी और गव्यामृतों के संयोग से बने अन्य मेवा-मिठाईयों को पुर्णतः शुद्ध तौर पर अपने शुद्ध श्री-भगवान श्यामसुंदर या शीव को अर्पण करने हेतु शुद्ध दिल और दिमाग से खुद गौवंश के पालन मे नही लगोगे तो शुद्ध-पंचगव्यामृताधारित राजभोग अपने इष्टदेव को कैसे  भोग लगा पाओगे !? और कैसे खुद भी शुद्ध-राजभोग का आस्वादन शुद्ध-महाप्रसाद के रुप मे ले पाओगे भला हं !?

   शुद्धभक्तिभाव बहुत ही बढीया है ! पर शुद्धभक्ति कि बाते करने से पहले हम शुद्धभक्ति करने का वातावरण या साधन न जूटा पायें तो शुद्धभक्ति तो ठिक,-- साधनाभक्ति भी उचीत ढंग से होनी कठिन होगी !

   शुद्धसाधन,भजन,भक्तिभाव से अपने उपास्य इष्टदेव कि संतुष्टि और उनकि प्राप्ति के लीये हमे प्राथमिक आवश्यक्ता के तौर पर शुद्ध साधनभजन के अनुकूल शुद्ध-वातावरण बनाना तो होगा ही !

सोमवार, 5 अगस्त 2019

शास्त्रीय, वैज्ञानिक भारतीय व्यवस्था का एक प्रमाण : गोबर-लेपन

शास्त्रीय, वैज्ञानिक भारतीय व्यवस्था का एक प्रमाण : गोबर-लेपन

देशी गाय का गोबर शुद्धिकारक, पवित्र व मंगलकारी है | यह दुर्गन्धनाशक एवं सात्त्विकता व कांति वर्धक है | भारत में अनादि काल से गौ-गोबर का लेपन यज्ञ-मंडप, मंदिर आदि धार्मिक स्थलों पर तथा घरों में भी किया जाता रहा है |

भगवन श्रीकृष्ण कहते हैं :
सभी प्रपा गृहाश्चापि देवतायतनानि च |
शुध्यन्ति शकृता यासां किं भूतमधिकं तत: ||

‘जिनके गोबर से लीपने पर सभा-भवन, पौसले (प्याउएँ), घर और देव-मंदिर भी शुद्ध हो जाते हैं, उन गौओं से बढ़कर और कौन प्राणी हो सकता है ?’ (महाभारत, आश्वमेधिक पर्व)

मरणासन्न व्यक्ति को गोबर-लेपित भूमि पर लिटाने का रहस्य !                                     
मरणासन्न व्यक्ति को गोबर-लेपित भूमि पर लिटाये जाने की परम्परा हमारे भारतीय समाज में आपने-हमने देखी ही होगी | क्या आप जानते हैं कि इसका क्या कारण हैं ?

गरुड पुराण के अनुसार ‘गोबर से बिना लिपी हुई भूमि पर सुलाये गये मरणासन्न व्यक्ति में यक्ष, पिशाच एवं राक्षस कोटि के क्रूरकर्मी दुष्ट प्रविष्ट हो जाते हैं |’

वैज्ञानिकों द्वारा किये गये अनुसंधानों का निष्कर्ष भी इस भारतीय परम्परा को स्वीकार करता है | अनुसंधानो के अनुसार गोबर में फॉस्फोरस पाया जाता है, जो अनेक संक्रामक रोगों के कीटाणुओं को नष्ट कर देता है | मृत शरीर में कई प्रकार के संक्रामक रोगों के कीटाणु होते हैं | अत: उसके पास उपस्थित लोगों के स्वास्थ्य-संरक्षण हेतु भूमि पर गोबर-लेपन करना अनिवार्य माना | अत: उसके पास उपस्थित लोगों के स्वास्थ्य-संरक्षण हेतु भूमि पर गोबर-लेपन करना अनिवार्य माना गया है |

हानिकारक विकिरणों से रक्षा का उपाय
वर्तमान समय में वातावरण में हानिकारक विकिरण (radiations) फेंकनेवाले उपकरणों का इस्तेमाल तेजी से बढ़ता जा रहा है | इन विकिरणों तथा आणविक प्रकल्पों व कारखानों एवं परमाणु हथियारों के प्रयोग से निकलनेवाले विकिरणों से सुरक्षित रहने का सहज व सरल उपाय भारतीय ऋषि-परम्परा के अंतर्गत चलनेवाली सामाजिक व्यवस्था में हर किसीको देखने को मिल सकता है |

इस बात को स्पष्ट करते हुए डॉ. उत्तम माहेश्वरी कहते हैं : “घर की बाहरी दीवार पर गोबर की मोटी पर्त का लेपन किया जाय तो वह पर्त हानिकारक विकिरणों को सोख लेती है, जिससे लोगों का शरीरिक-मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षित रखने में मदद मिल सकती है |”

भारतीय सामजिक व्यवस्था संतो-महापुरुषों के सिद्धांतों के अनुसार स्थापित व प्रचलित होने से इसके हर एक क्रियाकलाप के पीछे सूक्ष्मातिसूक्ष्म रहस्य व उन महापुरुषों की व्यापक हित की भावना छुपी रहती है | विज्ञान तो उनकी सत्यता और महत्ता बाद में व धीमे-धीमे सिद्ध करता जायेगा और पूरी तो कभी जान ही नहीं पायेगा | इसलिए हमारे सूक्ष्मद्रष्टा, दिव्यदृष्टा महापुरुषों के वचनों पर, उनके रचित शास्त्रों-संहिताओं पर श्रद्धा करके स्वयं उनका अनुभव करना, लाभ उठाना ही हितकारी है |

शनिवार, 3 अगस्त 2019

गाय का दूध ही क्यों पीये:-

गाय का दूध ही क्यों पीये:-

गाय के दूध का सूक्ष्म गुण सतोगुण प्रधान होता है। गाय के दूध के अंदर स्थित उस का मुख्य घटक स्वर्णक्षार,  जल तत्व और संतुलित बाशा है। जो प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता है ।इसीलिए गाय का दूध मन, बुद्धि और आत्मा तीनों को शुद्ध कर उसे सात्विक बना देता है तथा शरीर के अंदर स्थित विषाक्त को नष्ट कर शरीर को निरोग बना देता है इसीलिए गाय के दूध को  मानव जीवन के लिए  जीवनी शक्ति और अमृत कहां गया है।
इस विश्व ब्रह्मांड में सबसे उत्तम और पवित्र जल गाय के दूध के अंदर ही पाया जाता है ।जिस जल को धर्मशास्त्र में वरुण देवता कहा गया है। वह जल बुद्धि को अति सूक्ष्म बना देता है जिससे मानव मस्तिष्क के अंदर ज्ञान तंत्र, बुद्धि और विवेक बल की सूक्ष्म शक्ति जागृत हो जाती है इसीलिए गाय का दूध पीने वाला बालक तेज बुद्धि का होता है।

उसके साथ सामान्य जल जो हम लोग प्रतिदिन बाहर से पीते हैं। उस जल के अंदर कोई तत्वों की कमी है तो गाय के दूध में पाई जाने वाली जल तत्व हमारे शरीर के अंदर उस जल तत्वों की पूर्ति कर जीवन को निरोग बना देता है इसीलिए गाय के दूध को आरोग्य कहा गया है।
गाय के दूध में पाई जाने वाली सात्विक बसा हमारे शरीर के अंदर स्थित अनावश्यक वाशा को संतुलित कर देता है ।जिससे हमारे शरीर के अंदर स्थित मोटापा घाट जाता है ।रक्त को तरल बना देता है। इससे शरीर के सभी भागों में रक्त का प्रवाह पहुंचने लगता है ।शरीर के अंदर पुरानी सेल को नष्ट कर नया सेल निर्माण का कार्य गाय का दूध  करते रहता है इससे बुढापा जल्दी नहीं आता है। इसीलिए गाय का दूध ही मनुष्य को पीना चाहिए।