शनिवार, 23 अक्तूबर 2021

जानें, अधिक दूध देने वाली गाय की 8 नस्लें

भारत दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान पर है। हमारे देश में गाय को देवी का दर्जा प्राप्त है। भारत में गाय समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है। आज भी गांवों में गाय पालन रोज़गार का प्रमुख साधन है।  गाय का दूध बहुत ही पौष्टिक होता है। यह बीमार और बच्चों के लिए बेहद उपयोगी आहार माना जाता है। गाय का घी और गोमूत्र अनेक आयुर्वेदिक औषधियां बनाने के काम आता है। गाय का गोबर फसलों के लिए सबसे उत्तम खाद है। गाय के मरने के बाद उसका चमड़ा, हड्डियां और सींग सहित सभी अंग किसी न किसी काम आते हैं 

 1- साहीवाल

 देशी और दुधारू नस्ल में साहीवाल सबसे अच्छी नस्ल है। यह मुख्य रूप से उत्तर पश्चिमी भारत और पाकिस्तान में मिलती है। यह नस्ल लाल रंग की होती है। इनका शरीर लंबा, ढीला और भारी होता है। इनके सिर चौड़े और सींग मोटे व छोटे होते हैं।   यह एक ब्यांत (lactation) में लगभग 2400-3000 लीटर दूध देती है। यह गाय एक बार मां बनने पर करीब 10 महीने तक दूध देती है। साहीवाल गाय की दूध में फैट (Fat) की मात्रा 4.0-4.5 प्रतिशत और एसएनएफ (SNF) की मात्रा 8.0-8.5 होती है। यही कारण है कि पशु पालक इसे सबसे ज़्यादा पसंद करते हैं। 

 2- गिर 

 गिर गाय का मूल स्थान गुजरात है। यह भारत की सबसे ज्यादा दूध देने वाली नस्लों में से एक है। इस गाय के थन बड़े होते हैं। ये गाय लाल रंग की होती है। इनके कान लंबे और लटके होते हैं।  यह एक ब्यांत (lactation) में लगभग 2200-2600 लीटर दूध देती है। भारत के अलावा इस गाय की विदेशों में भी डिमांड है। इज़राइल, ब्राजील में भी इन गायों को पाला जाता है। 

3- रेड सिंधी 

देशी नस्लों में रेड सिंधी गाय तीसरे स्थान पर है। इन गायों की दुग्ध उत्पादन क्षमता एक ब्यांत (lactation) में लगभग 1800-2200 होती है। यह गाय भी लाल रंग की होती है। इस नस्ल का मूल स्थान सिंध प्रांत है, लेकिन अब यह गाय पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और ओडिशा में भी पाई जाती है।  

4- हरियाणवी 

इस नस्ल की गाय सफेद रंग की होती है। इनसे दूध उत्पादन भी अच्छा होता है। यह नस्ल एक ब्यांत (lactation) में लगभग 2200-2600 लीटर दूध देती है। इस नस्ल के बैल खेती में अच्छा कार्य करते हैं, इसलिए हरियाणवी नस्ल की गायों का पालन दूध और कृषि दोनों में होता है। 

 5- थारपारकर

 इस नस्ल का संबंध थारपारकर जिला (अब पाकिस्तान) से है। इस नस्ल में गर्मी सहन करने की क्षमता ज़्यादा होती है। यह भारत में मुख्य रूप से जोधपुर, कच्छ और जैसलमेर में पाई जाती है। इस नस्ल का रंग राख के जैसा होता है। शरीर मध्यम और चौड़ा होता है। सींग वीणा के आकार के और किनारों पर तीखे होते हैं। यह गाय प्रति ब्यांत में 1800-2000 लीटर दूध देती है। 

6- राठी 

इस नस्ल का मूल स्थान राजस्थान है। भारतीय राठी गाय की नस्ल ज़्यादा दूध देने के लिए जानी जाती है। यह गाय राजस्थान के गंगानगर, बीकानेर और जैसलमेर इलाकों में पाई जाती हैं। यह गाय प्रति ब्यांत में 1500-1800 लीटर दूध देती है। यह नस्ल एक मिश्रित नस्ल  है। इस नस्ल के बैल खेत में भी अच्छा काम करते हैं। 

7- कांकरेज 

कांकरेज नस्ल का मूल स्थान गुजरात और राजस्थान है। यह गाय मुख्य रूप से राजस्थान के बाड़मेर, सिरोही और जालौर जिलों में पाए जाते हैं। इस नस्ल की गाय प्रति ब्यांत 1800-2000 लीटर दूध देती है। इस नस्ल का मुंह छोटा और चौड़ा होता है। इस नस्ल के बैल भी अच्छे भार वाहक होते हैं। 

8- हल्लीकर नस्ल 

हल्लीकर गाय का मूल स्थान कर्नाटक है। हल्लीकर के गोवंश मैसूर (कर्नाटक) में सर्वाधिक पाए जाते हैं। इस नस्ल की गायों की दूध देने की क्षमता काफी अच्छी होती है।    

मंगलवार, 5 अक्तूबर 2021

किसी गोभक्त ने पूछा कि आप गौ भक्त है?

किसी गोभक्त ने पूछा कि आप गौ भक्त है? मैं भी गौ भक्त हूं और गौ माता की किस प्रकार से सेवा कर सकते हैं इस संबंध में मुझे जानकारी देने की कृपा करें । जय गौ माता। 

मेरी समझ से मैंने कुछ निवेदन किया है। बाकी आप समस्त गोभक्तों को, गोसेवकों, गोरक्षकों को लिखना है।

हम गोमाता की सेवा करना चाहें तो इनमें से कोई एक या अधिक तरीके काम में ले सकते है--
1. घर पर गाय या बैल रखकर उनकी सेवा करें।
2. गोशाला खोलकर(अकेले या कुछ लोग मिलकर) गौसेवा करें।
3. गोव्रत लेकर(इस व्रत में गो के लिए नियमित चारा, दाना, गुड़, तेल, राशि आदि द्रव्य समर्पित करना, केवल गाय के दूध, दही, घी, मिठाई , छाछ ही आहार में प्रयोग किये जायें, जहां तक संभव हो गोबर खाद से पके अन्न, फल, सब्जियों को लेना। यदि ये पदार्थ गाय के उपलब्ध न हों तो तेल में बनी सब्जी ले लें। ऐसा करने से दूध बेचने वाले गायों को पालेंगे। यदि गो गव्यों की हम मांग ही नहीं करेंगे तो लोग गाय क्यों रखेंगे? हमारे गोवर्ती बनने से किसी न किसी घर में जहां से हम दूध, घी, अन्न, सब्जी आदि ले रहे हैं वो गाय की सेवा करेगा।
4. नजदीकी गोशाला में सहयोग करके। धन से या हाथों से सेवा करके।
5. किसी भी गोशाला में जहाँ जरूरत हो सेवा करके।
6. जहाँ कही भी बीमार, दुर्घटनाग्रस्त गोवंश दिखे उसका इलाज करवाकर या गोरक्षकों को सूचना देकर।
7. जहाँ कहीं गायों के लिए पीने के पानी की व्यवस्था करके।
8. गोशालाओं में चारा भिजवाकर।
9. गोशाला को भूमि दानकर।
10. गोशाला चलाने वालों को किसी भी प्रकार से सपोर्ट करके।
11. कत्लखाने जानेवाले गोवंश को छुड़वाकर।
12. कत्लखाने जाने से छुड़वाए गोवंश की सेवा करके।
13. अपने घर या दुकान, कार्यालय में दानपात्र लगाकर प्रतिदिन व जन्मदिन आदि विशेषः दिनों को राशि दान कर।
14. अपने परिचितों को गौसेवा के लिए प्रोत्साहित कर, उनको गो व्रती बनाकर, उनके वहाँ दान पात्र लगाकर।

बुधवार, 8 सितंबर 2021

में सांड हूँ

मैं सांड़ हूं, लोग कहते हैं कि मैं तुम्हारी फसल उजाड़ रहा हूँ, सड़कों पर कब्जा कर रहा हूँ, मैं तुम मनुष्यों से पूंछता हूँ कि कितने कम समय में मैं इतना अराजक हो गया, मैं तो हजारो वर्षों से तुम्हारे पूर्वजों की सेवा करता आया हूं ! मैं मनुष्यों का दुश्मन कैसे बन गया ।
अभी कुछ सालों पहले तो लोग मुझे पालते थे, चारा देते थे, लेकिन मनुष्य ज्यादा सभ्य हो गया, ट्रैक्टर ले आया, पम्पिंग सेट से पानी निकालने लगा और मुझे खुला छोड़ दिया, मैं कहाँ जाता ? कहाँ चरता ? मनुष्य ने चरागाहों पर कब्जा कर लिया, अब पापी पेट का सवाल है,  अपने पेट के लिए अपने मित्र मनुष्य से संघर्ष शुरू हो गया।
यहां तक कि कुछ लोगों ने अपना पेट भरने के लिए मुझे काटना भी शुरू कर दिया। मैं फिर भी चुप रहा, चलो किसी काम तो आया तुम्हारे । मेरी माँ ने मेरे हिस्से का दूध देकर तुम्हे और तुम्हारे बच्चों को पाला लेकिन अब तो तुमने उसे भी खुला छोड़ दिया ।
इधर, पिछले सालों से कई मनुष्य मित्रों ने मुझे कटने से बचाने के लिए अभियान चलाया, लेकिन जब मैं अपना पेट भरने गलती से उनकी फसल खा गया तो वही मित्र मुझे बर्बादी का कारण बताने लगे, शायद अब यही चाहते हैं कि मैं काट ही दिया जाता।
मित्र बस इतना कहना चाहता हूं कि मैं तुम्हारी जीवन भर सेवा करूंगा, तुम्हारे घर के सामने बंधा रहूँगा, थोड़े से चारे के बदले तुम्हारे खेत जोत दूंगा, रहट से पानी निकाल दूंगा, गाड़ी से सामान ढो दूंगा, बस मुझे अपना लो 
लेकिन क्या मेरे इस निवेदन का तुम पर कोई असर होगा ?
अरे तुम लोग तो अपने लाचार मां बाप को भी घर से बाहर निकाल देते हो, फिर मेरी क्या औकात..??

गो वंश की रक्षा के लिए हमारे पूर्वजों ने बछ बारस मनाने की परंपरा शुरू की थी, इसे गौवत्स द्वादशी भी कहते हैं- बछ बारस, भाद्रपदं महीने की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनाई जाती है।


बछ यानि बछड़ा गाय के छोटे बच्चे को कहते हैं । इस दिन को मनाने का उद्देश्य गाय व बछड़े का महत्व समझाना है। यह दिन गोवत्स द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है। गोवत्स का मतलब भी गाय का बच्चा ही होता है। बछ बारस का यह दिन कृष्ण जन्माष्टमी के चार दिन बाद आता है । कृष्ण भगवान को गाय व बछड़ा बहुत प्रिय थे,, गाय में सैकड़ों देवताओं का वास माना जाता है। गाय व बछड़े की पूजा करने से कृष्ण भगवान का गाय में निवास करने वाले देवताओं का और गाय का आशीर्वाद मिलता है जिससे परिवार में खुशहाली बनी रहती है, ऐसा माना जाता है।

शास्त्रों के अनुसार इस दिन गाय की सेवा करने से, उसे हरा चारा खिलाने से परिवार में महालक्ष्मी की कृपा बनी रहती है तथा परिवार में अकालमृत्यु की आशंकाएं समाप्त होती हैं। 

गुरुवार, 2 सितंबर 2021

इलाहाबाद हाईकोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी, गाय भारत की संस्कृति; मौलिक अधिकार देकर घोषित किया जाए राष्ट्रीय पशु

इलाहाबाद हाईकोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी, गाय भारत की संस्कृति; मौलिक अधिकार देकर घोषित किया जाए राष्ट्रीय पशु

अद्भुत सांस्कृतिक ऑर कानूनी ज्ञान सदियों  बाद किसी जज का फैसला।
मुझे तो लगता है की यह सज्जन निश्चित ही मलुकपीठ वाले महाराज जी की कथा सुनते है।

शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

नंदी के कान में क्यों बोली जाती है मनोकामना ? जानिए इसके पीछे का रहस्य . . .




नंदी के कान में क्यों बोली जाती है मनोकामना ? 

जानिए इसके पीछे का रहस्य . . .

जब भी हम किसी शिव मंदिर जाते हैं तो अक्सर देखते हैं कि कुछ लोग शिवलिंग के सामने बैठे नंदी के कान में अपनी मनोकामना कहते हैं। ये एक परंपरा बन गई है। इस परंपरा के पीछे की वजह एक मान्यता है। आज हम आपको उसी के बारे में बता रहे हैं, जो इस प्रकार है..

इसलिए नंदी के कान में कहते हैं मनोकामना
मान्यता है जहां भी शिव मंदिर होता है, वहां नंदी की स्थापना भी जरूर की जाती है क्योंकि नंदी भगवान शिव के परम भक्त हैं। जब भी कोई व्यक्ति शिव मंदिर में आता है तो वह नंदी के कान में अपनी मनोकामना कहता है। इसके पीछे मान्यता है कि भगवान शिव तपस्वी हैं और वे हमेशा समाधि में रहते हैं। ऐसे में उनकी समाधि और तपस्या में कोई विघ्न ना आए। इसलिए नंदी ही हमारी मनोकामना शिवजी तक पहुंचाते हैं। इसी मान्यता के चलते लोग नंदी को लोग अपनी मनोकामना कहते हैं।

शिव के ही अवतार हैं नंदी
शिलाद नाम के एक मुनि थे, जो ब्रह्मचारी थे। वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने उनसे संतान उत्पन्न करने को कहा। शिलाद मुनि ने संतान भगवान शिव की प्रसन्न कर अयोनिज और मृत्युहीन पुत्र मांगा। भगवान शिव ने शिलाद मुनि को ये वरदान दे दिया। एक दिन जब शिलाद मुनि भूमि जोत रहे थे, उन्हें एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। एक दिन मित्रा और वरुण नाम के दो मुनि शिलाद के आश्रम आए। उन्होंने बताया कि नंदी अल्पायु हैं। यह सुनकर नंदी महादेव की आराधना करने लगे। प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और कहा कि तुम मेरे ही अंश हो, इसलिए तुम्हें मृत्यु से भय कैसे हो सकता है? ऐसा कहकर भगवान शिव ने नंदी का अपना गणाध्यक्ष भी बनाया।

रविवार, 30 मई 2021

गौरक्षा के लिए कौन क्या कर रहा है इसके बारे में सोचने से अच्छा है कि हम यह सोचें कि हम गौरक्षा के लिए क्या कर रहे हैं

गौरक्षा के लिए कौन क्या कर रहा है इसके बारे में सोचने से अच्छा है कि हम यह सोचें कि हम गौरक्षा के लिए क्या कर रहे हैं -आज क्या किया और कल इससे भी बेहतर कैसे कर सकते हैं -
गौमाता के नाम पर अच्छा करने वालों के साथ बहुत अच्छा होता है और गलत करने वालों के तंबू भी उखड़ जाते हैं -
जो गौवंश सदियों से भारत का रक्षक रहा है  दुर्भाग्य से आज उसे आपके सहारे की जरूरत है - चंदा देने का मन नहीं है तो बिल्कुल मत दो पर किसी भी गौशाला के उत्पाद तो खरीदो ।
सच मानना मित्रो , गौमाता किसी का अहसान अपने सिर पर नहीं रखती - सौ गुना करके वापस लौटा देती है । बेशक आजमा कर देख लो - 


रविवार, 16 मई 2021

गाय अब सजावट की वस्तु बनती जा रही है !

समय बदल रहा है !
  गाय अब सजावट की वस्तु बनती जा रही है ! 
       मनुष्य को चाहिए कि जिस गाय को हम गौ माता मानते हैं और उसकी पूजा-अर्चना करते हैं, उस गौ माता को बचाने का संकल्प सभी को लेना चाहिए, खास कर बिच्छू के डंक से न डरते हुए भी जीव मात्र पर दया करने वाला, उसे डूबने से बचाने वाले सनातन हिन्दू समाज को जो मानव जीवन और प्रकृति तथा पर्यावरण की दृष्टि से भी अति महत्वपूर्ण है। 
   गाय बचेंगी तभी देश बचेगा, राष्ट्र बचेगा और हम सब भी जी पाएंगे। 
   अत: हम सब यह संकल्प लें कि हम हर हाल में गाय की रक्षा करेंगे और पर्यावरण को प्रदूषित करने वाली पॉलिथिन का उपयोग न करके गायों को जीवनदान देने के साथ-साथ हम अपना योगदान देकर हर प्राणिमात्र की रक्षा का संकल्प करेंगे। 
 ।

गुरुवार, 11 मार्च 2021

शिवजी का वाहन


शिवजी का वाहन
यह उस समय की बात है, जब भगवान शिव के पास कोई वाहन न था। उन्हें पैदल ही जंगल-पर्वत की यात्रा करनी पड़ती थी। एक दिन माँ पार्वती उनसे बोलीं,‘आप तो संसार के स्वामी हैं। क्या आपको पैदल यात्रा करना शोभा देता है?’
शिव जी हँसकर बोले-‘देवी,हम तो रमते जोगी है। हमें वाहन से क्या लेना-देना? भला साधु भी कभी सवारी करते हैं?’
पार्वती ने आँखों में आँसू भरकर कहा,‘जब आप शरीर पर भस्म लगाकर, बालों की जटा बनाकर, नंगे-पाँव, काँटों-भरे पथ पर चलते हैं तो मुझे बहुत दुख होता है।’
शिव जी ने उन्हें बार-बार समझाया परंतु वह जिद पर अड़ी रही। बिना किसी सुविधा के जंगल में रहना पार्वती को स्वीकार था परंतु वह शिवजी के लिए सवारी चाहती थीं।अब भोले भंडारी चिंतित हुए। भला वाहन किसे बनाएँ। उन्होंने देवताओं को बुलवा भेजा। नारदमुनि ने सभी देवों तक उनका संदेश पहुँचाया।
सभी देवता घबरा गए। कहीं हमारे वाहन न ले लें। सभी कोई-न-कोई बहाना बनाकर अपने-अपने महलों में बैठे रहे। पार्वती उदास थीं। शिवजी ने देखा कि कोई देवता नहीं पहुँचा। उन्होंने एक हुंकार लगाई तो जंगल के सभी जंगली जानवर आ पहुँचे।
‘तुम्हारी माँ पार्वती चाहती है कि मेरे पास कोई वाहन होना चाहिए। बोलो कौन बनेगा मेरा वाहन?’
सभी जानवर खुशी से झूम उठे। छोटा-सा खरगोश फुदककर आगे बढ़ा- ‘भगवन्, मुझे अपना वाहन बना लें, मैं बहुत मुलायम हूँ।’
सभी खिलखिलाकर हँस पड़े। शेर गरजकर बोला-‘मूर्ख खरगोश,मेरे होते,तेरी जुर्रत कैसे हुई, सामने आकर बोलने की?’बेचारा खरगोश चुपचाप कोने में बैठकर गाजर खाने लगा। शेर हाथ जोड़कर बोला,‘प्रभु, मैं जंगल का राजा हूँ,शक्ति में मेरा कोई सामना नहीं कर सकता। मुझे अपनी सवारी बना लें।’
उसकी बात समाप्त होने से पहले ही हाथी बीच में बोल पड़ा-‘मेरे अलावा और कोई इस काम के लिए ठीक नहीं है। मैं गर्मी के मौसम में अपनी सूँड में पानी भरकर महादेव को नहलाऊँगा।’
जंगली सुअर कौन-सा कम था? अपनी थूथन हिलाते हुए कहने लगा-‘शिव जी, मुझे सवारी बना ले,मैं साफ-सुथरा रहने की कोशिश करूँगा।’ कहकर वह अपने शरीर की कीचड़ चाटने लगा। कस्तूरी हिरन ने नाक पर हाथ रखा और बोला-‘छिः, कितनी गंदी बदबू आ रही है, चल भाग यहाँ से, मेरी पीठ पर शिवजी सवारी करेंगे।’
उसी तरह सभी जानवर अपना-अपना दावा जताने लगे। शिवजी ने सबको शांत कराया और बोले‘कुछ ही दिनों बाद मैं सब जानवरों से एक चीज माँगूगा, जो मुझे वह ला देगा, वही मेरा वाहन होगा।’
नंदी बैल भी वहीं खड़ा था। उस दिन के बाद से वह छिप-छिपकर शिव-पार्वती की बातें सुनने लगा। घंटों भूख-प्यास की परवाह किए बिना वह छिपा रहता। एक दिन उसे पता चल गया कि शिवजी बरसात के मौसम में सूखी लकड़ियाँ माँगेंगे। उसने पहले ही सारी तैयारी कर ली। बरसात का मौसम आया। सारा जंगल पानी से भर गया। ऐसे में शिवजी ने सूखी लकड़ियों की मांग की तो सभी जानवर एक-दूसरे मुँह ताकने लगे। बैल गया और बहुत सी लकड़ियों के गट्ठर ले आया।
भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए। मन-ही-मन वे जानते थे कि बैल ने उनकी बातें सुनी हैं। फिर भी उन्होंने नंदी बैल को अपना वाहन चुन लिया। सारे जानवर उनकी और माँ पार्वती की जय-जयकार करते लौट गए।

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

शिवाजी महाराज ने गौ माता के लिए लड़ी थी एक लड़ाई !

हिन्दू सम्राट छत्रपति गौभक्त श्री शिवाजी महाराज जी की जयंती पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।

मात्र दस वर्ष की उम्र में शिवाजी महाराज ने गौ माता के लिए लड़ी थी एक लड़ाई !

अगर हिन्दू इतिहास के सबसे बड़े गौ-भक्तों के नाम के जगह लिखे जायें तो शिवाजी महाराज का नाम शुरूआती क्रम में रहेगा.
लेकिन जिस तरह से हमारे इतिहास से खिलवाड़ किया गया है उसका उदाहरण आज हम आपको पेश करने वाले हैं. हम अगर बोलते हैं कि हिन्दू इतिहास से खिलवाड़ किया गया है तो बुद्धिजीवी लोग इसका उदाहरण मांगते हैं. आज हम आपको शिवाजी महाराज की ऐसी कहानी बताने वाले हैं जो अब इतिहास से हटा दी गयी है.

गौ भक्त शिवाजी महाराज के लिए गाय सदैव पूजनीय रही थी. वह हमेशा बोलते थे कि गाय हिन्दू धर्म की शान है. जो भी इसको मात्र पशु समझ रहा है वह अज्ञानी है. खुद शिवाजी महाराज की दिनचर्या में गौ माता की सेवा शामिल थी. ऐसा ही एक किस्सा है, जो अब भूला दिया गया है. बचपन से ही शिवाजी गाय को आदरणीय और पूजनीय मानते थे और मात्र 10 वर्ष की आयु में ही शिवाजी ने यह सिद्ध कर दिया था कि उनका जन्म पापियों का नाश करने के लिए ही हुआ है.

जब शिवाजी महाराज ने गौ माता के लिए काट दिया था कसाई का सर।
हिन्दवी स्वराज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज ने राज्याभिषेक के पश्चात् गो ब्राह्मण प्रतिपालक की उपाधि धारण करके स्वयं को गौरवान्वित किया था.

यह घटना शिवाजी महाराज के बाल्यकाल की है.

अपने पिता के साथ वे बादशाह के यहाँ जा रहे थे. यह बात बीजापुर की है. शिवाजी महाराज बचपन से हिन्दू लोगों के प्रिय भी थे. जब पिता और पुत्र दोनों रास्ते से गुजर रहे थे तो दोनों देखते हैं कि रास्ते में एक कसाई गाय को घसीटते हुए ले जा रहा था और वहां के बाजार के हिन्दू सर झुकाए बैठे हुए थे. मुग़ल शासन था, कौन क्या कर सकता था? उस समय शिवाजी की उम्र दस वर्ष की थी. कुछ इतिहास की पुस्तकें बताती हैं कि लोगों के मन में मुग़ल शासन का ऐसा डर था कि वह कुछ नहीं बोलते थे. हिन्दू मंदिर तोड़े जा रहे थे, गायों का क़त्ल हो रहा था और घर से बहू-बेटियां उठाई जा रही थीं. किन्तु कोई भी कुछ नहीं बोलता था.

जब बालक गौ भक्त शिवाजी यह देखते हैं कि कसाई गो-माता पर अत्याचार करते हुए, उनको काटने ले जा रहा है वह तभी अपनी तलवार निकालते हैं और पहले तो गाय की रस्सी काटकर उसे बंधन मुक्त करते हैं और वह कसाई कुछ कहता इससे पहले ही उसका सर धड़ से अलग कर देते हैं.

जब हिन्दुओं ने देखी बालक की बहादुरी

जब हिन्दू लोगों ने एक बालक गौ भक्त शिवाजी की इतनी बहादुरी देखी तो सबसे अन्दर जैसे नई ऊर्जा शक्ति का संचार हो गया था.

इस बात का जब बादशाह को पता चला तो वह कोई भी कार्यवाही इसलिए नहीं कर सका था क्योकि एक तो यह कार्य करने वाला एक बालक था और दूसरा कि उस समय सभी हिन्दुओं का साथ गौ भक्त शिवाजी को प्राप्त हो गया था.

लेकिन कुछ इतिहासकारों ने गौ भक्त शिवाजी की इस वीरतापूर्ण कहानी को किताबों से हटवा दिया ताकि हिन्दू इस कहानी को ना पढ़ सकें.

आज आवश्यकता है कि इस तरह की कहानियों को एक जगह एकत्रित किया जाये ताकि आने वाली पीढ़ियों तक सही इतिहास पहुँचाया जा सके. जय हिन्द जय गौमाता।

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021

श्री आनंदवन परिसर, गोधाम पथमेड़ा के गौसेवा सदन(गोष्ठ) के आवश्यक तत्व :

श्री आनंद वन परिसर, गोधाम पथमेड़ा के गौसेवा सदन(गोष्ठ) के आवश्यक तत्व :- 
1. गोष्ठ की साइज - 3 से 4 बीघा।
2. गोष्ठ में गोवंश की संख्या - 100 से 125
3. गोवंश का वर्गीकरण - प्रत्येक गोष्ठ में एक ही प्रकार का, एक ही उम्र का गोवंश रखा जाता है। नर व मादा गोवंश अलग अलग, बीमार, विकलांग, सूरदास, कमजोर, बूढ़ा, वत्स, गर्भवती, दूधारू, 1 वर्ष से कम, 1 से 2 वर्ष का, 2 वर्ष से 3 वर्ष का आदि आदि कई प्रकार से वर्गीकृत करके जगोवंश को अलग अलग गोष्ठ में रखा जाता है।
4 . गोष्ठ की दीवार - प्रत्येक गोष्ठ को पक्की दीवार या लोहे की जाली लगी हुई है। 
5. मुख्य गोष्ठ के अंदर छोटा गोष्ठ - प्रत्येक गोष्ठ के अंदर एक कोने में एक छोटा गोष्ठ होता है। जब चारा, दा ला या पोष्टिक आहार आदि देना होता है या सफाई करनी हो तो सभी गोवंश को उस छोटे गोष्ठ में भेजकर गेट बंद कर देते हैं। फिर कार्य पूर्ण होने पर सबको बड़े गोष्ठ में आने दिया जाता है।
6. गोष्ठ का प्रवेश द्वार - प्रत्येक गोष्ठ के एक बड़ा दरवाजा लगा होता है जिसमें बैलगाड़ी, ट्रैक्टर, बड़ी गाड़ी अंदर अा सके। ग्वालों व अन्य लोगों के आने जाने के लिए बड़े द्वार में एक छोटा दरवाजा लगा रहता है।
7. ग्वाला - प्रत्येक गोष्ठ में आवश्यकतानुसार कम से कम एक ग्वाला परिवार होता है। दूधारू या बीमार गोवंश में अधिक भी ग्वाल होते हैं। 10 से 12 ग्वालों के ऊपर एक व्यवस्थापक होता है।
8. चारा की व्यवस्था करना - गोवंश को चारा देने हेतु बैलगाड़ी की व्यवस्था होती है। प्रत्येक गोष्ठ में एक बैलगाड़ी बेलों की जोड़ी सहित होती है। चारा परोसने के लिए लंबी नाद होती है या वृत्ताकार फर्में होते हैं। जिनकी प्रतिदिन नियमित सफाई होती है।
9. पानी की व्यवस्था - प्रत्येक गोष्ठ में एक होद या फर्मा पानी के लिए होता है जिसमें बड़े टैंक से पाइप द्वारा कनेक्शन किया होता है। 24 घंटे अनवरत पानी सप्लाई चालू रहती है। प्रत्येक पानी के होद में सप्ताह में एक बार चूने की पुताई की जाती है। जिससे जल एकदम स्वच्छ रहता है।
10. सेंधा नमक - प्रत्येक गोष्ठ में गोवंश के सेवन हेतु प्रर्याप्त मात्रा में सेंधा नमक रखा जाता है। गोमाता प्रेम से नमक चाटती रहती है जिससे पोषक लवणीय तत्वों की पूर्ति होती है।
11. सर्दी, गर्मी, बरसात से बचाव - हरेक गोष्ठ में कई छायादार जाल के वृक्ष हैं तथा एक बड़ा शेड बना होता है।
12. गोबर धन - प्रत्येक गोष्ठ में नियमित रूप से दिन में कई बार गोमय लिया जाकर एक बड़ी ढेरी बनाई जाती है। इसे बाद में सेंद्रिय खाद बनाने में काम लेते हैं या सीधा गोबर खाद के रूप में बेचा जाता है।

रविवार, 7 फ़रवरी 2021

पशुशाला और गौशाला में भेद


।।पशुशाला और गौशाला में भेद।।

भगवान् शिव ने लक्षणा-शब्द शक्ति के रूप में गौशाला की परिभाषा को परिभाषित करते हुए कहते हैं:-

स्वगां भोजित्वा तु  यत्फलं  लभेत  नर:।
द्विगुणं तस्य लभते परगां भोजयेद् यदि।
गुरोर्गां भोजयित्वा तु चतुर्गुणफलं लभेत्।। 
               संदर्भ:-श्री गौ तंत्र २.१४-१५

भावार्थ:- स्वयं की गौ की सेवा करने से उसके ग्रास देने से जो पुण्य प्राप्त होता हैं, उससे दुगुना पुण्य दूसरे द्वारा छोड़ी हुई गौ की सेवा करने से होता है। अगर गुरु द्वारा स्थापित गौशाला में गौओं की सेवा की जाए तो उसका चारगुणा ज्यादा पुण्य प्राप्त होता हैं। ऐसा क्यों? क्योंकि गुरु द्वारा संचालित गौशाला में जो गौएं हैं उनकी महिमा का नित गान होता हैं, वे सब गौएं सबला हैं, प्रसन्न रहती हैं, वहां आने वाले भक्त गौ महिमा से परिचित होते हैं और वहां गाय पशु नहीं 'माता' कहलाती हैं इसलिए चारगुणा अधिक पुण्य है। जबकि अन्य जगह पे जो गौएं घूम रही हैं,उनको घर में लाकर पूजने से अधिक पुण्य है। अर्थात् जहां गौ महिमा नहीं हैं यदि गोग्रास देने वाला गौ महिमा से परिचित नहीं हैं तो गौ भी अवला रूप में रहती है और सेवा का उतना ही पुण्य प्राप्त होता हैं जितना किसी पशु पर दया करने का पुण्य है।
ॐ जगदम्बायै च विद्महे पशुरूपायै धीमहि सा नो धेनु: प्रचोदयात्।।
गाय पशु रूप में होते हुए भी जगदम्बा हैं और यह देवी हमें मोक्ष की राह पर ले जाएगी किन्तु यह तभी सम्भव है जब सेवक स्वयं को गोपुत्र मानकर और गौ को माता मानकर सेवा करें और गौ महिमा से परिचित हो!
                           ।।मां।।

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021

माँ की ममता

माँ की ममता

इस हिन्दोस्तां के माटी की महिमा अपरम्पार है
गौ गंगा गीता से निर्मित इसका श्यामल सार है
परम पूज्य व पाप हारिणी गौ गंगा और गीता हैं
तरण तारिणी मोक्ष दायिनी तीनो परम पुनीता हैं
रोम रोम में देव रमे हों ऐसी पवित्र गौ माता है
चार धाम का पुण्य भी गौ सेवा से मिल जाता है
जो जन इसकी सेवा करते भव सागर तर जाते हैं
वेद पुराण उपनिषद भी इसकी महिमा बतलाते हैं
सकल पदारथ दूध दही घी औषधि गुणकारक हैं
स्वस्थ प्रदायक मंगलकारक समूल रोग निवारक हैं
भगवान कृष्ण ग्वालों संग खुद भी गायें चराते थे
बछड़ों के संग क्रीड़ा करते दूध दही घी खाते थे
प्रेम पास में बंधी गायें कान्हा को देख रंभातीं थीं
मोहक बंसी ध्वनि सुनकर आप लौट आ जाती थीं
गौ सेवा का पुण्य प्रताप ऋषि मुनियों भी गाया है
गौ माता के आगे खुद भगवन ने शीश नवाया है
इसी मात के जीवन में अब गहरा संकट आया है
त्राहि त्राहि कर मात पुकारे कैसा कलियुग आया है
यह अपने ही पुत्रों के आगे दर दर आज भटकती है
पेट पालने को गौ माता त्रण को आज तरसती है
कुछ अधम नीच निशाचर हैं हमको आज लटा रहे
हैं सठ कामी पापी पिशाच गैया को आज कटा रहे
घनघोर पिशाच प्रवृत्ति अब यहाँ दिखाई जाती हैं
झुण्ड झुण्ड में गायें आज आरों से कटाई जाती हैं
गर ऐसी पिशाच प्रव्रत्ति पर अंकुश न लगाया जायेगा
दूर नही किंचित वह दिन जब यहाँ विनाश आ जायेगा
अपने ही पुत्रों के आगे गर कोई माता ऐसे तड़पेगी
तुम्ही बताओ अंतर्मन से सन्तान कैसे सुखी रहेगी
अब गौ माता की सेवा का प्रण हम सबको करना होगा
धर्म धर्म और धर्म की खातिर हम सबको लड़ना होगा
इस गोवंश की रक्षा खातिर कुछ ऐसा आज प्रबंध हो
होय वधिक को फांसी जब फिर फौरन गोवध बंद हो