शनिवार, 21 अक्तूबर 2023

कृषक (किसान) कैसे गौ सेवा कर सकते है

कृषक (किसान)

भारतीय अर्थव्यवस्था का मूल आधार कृषि है। वस्तुतः कृषि भारत की जीवन शैली है और इस जीवन का पोषक बिंदू कृषक है। सही मायने में तो राष्ट्र की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक काया की रीढ कृषक है। रीढ़ विहीन राष्ट्रीय शरीर की परिकल्पना असम्भव है। कृषक के लिए गोवंश प्राण शक्ति है। उसके अहर्निश जीवन शैली में गोवंश की अभिरक्षा और संवर्धन आप्लावित है। कृषि व पर्यावरण के क्षेत्र में गोवंश का महत्व बताते हुए सर अलबर्ट हावर्ड ने ने लिखा है - "घोडे और बैल के बदले बिजली की मोटर और तेल वाले इंजनों से खेती करने में एक हानि यह है कि इन मशीनों से गोबर और मूत्र नहीं मिलता, फलतः यह मिट्टी की उर्वरकता बनाये रखने में किसी काम के नहीं है।" (एग्रीकल्चर टेस्टामेंट) कृषक अपनी माँ, इस प्राण शक्ति को सुदृढता और सुदीर्घता प्रदान करने के लिए निम्न बिंदुओं का पालन कर सकते है:-

1. रासायनिक कृषि का विरोध करना चाहिए क्योंकि रासायनिक कीटनाशक व रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति एवं उत्पादन • क्षमता को भारी क्षति पहुँचती है।

2. कृषि कार्य हेतु उपयोग किए गए रासायनिक उर्वरक खाद्यान्न को विषाक्त बना देते हैं जिनको खाने से जन सामान्य के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और वे रक्तचाप, हृदय विकार, उदर विकार, कर्क रोग (कैंसर) जैसी बिमारीयों से पीड़ित हो जाते हैं।

3. रासायनिक कृषि के बजाय गोवंश आधारित जैविक कृषि को शत् प्रतिशत अपनाना चाहिए।

4. जैविक खाद, जैविक कीटनाशक और खरपतवार नाशक के उपयोग में रसायनों की तुलना में 75% कम लागत आती है। साथ ही भूमि की उत्पादन क्षमता बढ़ती है।

5. जैविक कृषि से लाभान्वित होने हेतु अधिक से अधिक गो वंश पालना चाहिए।

6. गो वंश आधारित कृषि से होनेवाले लाभकारी अनुभवों को अन्य किसान वर्ग तक प्रचारित प्रसारित कर उन्हें भी इस दिशा में अग्रसर होने हेतु प्रेरित करना चाहिए।

7. पंचगव्य निर्मित कीटनाशक, फसल रक्षक और उर्वरकों के उपयोगों को प्रधानना दी जानी चाहिए और उनके निर्माण का प्रशिक्षण लेना चाहिए।

8. फसल का एक भाग गोवंश के लिये निकालकर गो सेवा करना चाहिए। गो सेवा, गाय की पूजा और गो उत्सवों की महत्ता से परिचित होकर उन्हें अत्याधिक आनंद एवं उत्साह से मनाने की परम्परा डालना चाहिए। भारतीय परम्परा के गो पर्व उत्सव जैसे - गो वत्स द्वादशी, बलराम जयंती (हलधर षष्ठी), श्री कृष्ण जन्माष्टमी, गोपाष्टमी, मकर संक्रांति आदि उत्सवों को किसानों के अपने उत्सव के रूप में उल्लास के साथ मनाना चाहिए।

9. गोवंश से अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने हेतु पंचगव्य निर्मित मंजन, टिकिया, उबटन, धूप बत्ती, मच्छर प्रतिबंधक व अन्य औषधि निर्माण कार्य कर गोवंश आधारित समग्र ग्राम विकास की कल्पना को साकार करने का प्रयत्न करना चाहिए।

10. जुताई, फसल कटाई इत्यादि कृषि कार्यों के लिए ट्रॅक्टर एवं अन्य मशीनों की बजाए बैल तथा बैल चालित अन्य यत्रों का उपयोग कर राष्ट्रीय ईंधन व मूल्यवान बिजली की बचन करनी चाहिए।

11. भारतीय गोवंश के नस्लसुधार हेतु विदेशी संकरण का विरोध व देशी गोवंश में ही परस्पर संकरण करवाना चाहिये।

मंगलवार, 10 अक्तूबर 2023

गाय के गोबर की महिमा


🦚गाय के गोबर की  महिमा🦚

🦩हालिया कई अलग अलग अध्ययनों से पता चला है कि रेत, सीमेंट, सरिया, प्लास्टिक आदि से निर्मित मकानों में रहने, अधिक समय व्यतीत करने से व्यक्ति की इम्यून शक्ति तेजी से कमजोर पडती है, मन बेचैन बना रहता है, नींद कम आती है, उच्चाटन, झल्लाहट सा बना रहता है ब्लडप्रेशर में बार बार बदलाव बना रहता है, जबकि गोबर से लिपे और मिट्टी से बने मकानों में तो अनेक प्रकार के  तीव्र संक्रामक रोग जैसे प्लेग, हैजा, निमोनिया, दस्त के जीवाणु भी शीघ्र शांत पड जाते हैं! 

🦩मिट्टी के कच्चे किंतु गोबर से सने मकानों में मन शांत रहता है, गहरी और तनाव घटाने वाली गहरी नींद आती है! ऐसे मकानों में अधिक समय व्यतीत करने से ह्दय रोगों से भी शीघ्र मुक्ति मिल जाती है, क्योंकि गोबर मिट्टी की भीनी भीनी गंध मस्तिष्क के विशेष केन्द्रौ पर प्रभाव डाल कर ह्रदय की अनियमित धड़कन, उच्च रक्तचाप और ह्रदय की कमजोरी को समाप्त करने काम करते हैं? इसलिए गाय के गोबर को अति पवित्र मानते हुए गंगा जी का निवास स्थान माना हैं! 

🦩गोबर और गोमूत्र में जहर खींचने की भी विशेष शक्ति रहती है! यह तो सर्प विष को भी समाप्त करने काम करता है! 

👍अध्ययन परीक्षणों में देखा गया है कि वर्तमान में जिस तीव्र गति से साग सब्जियों फलफूल और अनाज आदि को दवाओं के निरंतर छिडकाव से विषाक्त बनाया जा रहा है और उसका दुष्प्रभाव मानव स्वास्थ्य के ऊपर दिखाई पड रहा है, विभिन्न रोगों के साथ आयु घट रही है, कैंसर जैसे भयंकर रोग सताने लगे हैं! इन सबके केवल गौमाता ही मुक्ति दिला सकती है! गोबर और गोमूत्र ही इस विषाक्तता का समाधान दे सकते हैं! 

👍वैसे भी सदियों से संखिया, भिलावा, जैसे अनेक विषों को विषहीन करने, इनके जहरीलेपन को शुद्ध करने के लिए गौमूत्र और गोबर काम में आते रहे हैं! 

🌷यदि आप गाय के गोबर का पूरा सदुपयोग करना, सही प्रयोग करना जान ले, तो आप गो पालन के कार्य को सहजता से कर सकते हैं, फिर आपके लिए गौसेवा बोझ बन कर नहीं रहता, गौरक्षा के कार्य को सहजता से जारी रख सकते हैं! 

🌷गाय के गोबर का 60℅ भाग तो ठोस रूप में रहता है! यह भाग मुख्यतः सैल्युलोज के रूप में रहता है! खाद के रूप में, भूमि संवर्धन के लिए मृदा में उपस्थित रहने वाले करोड़ों जीवाणुओं के लिए कोई ज्यादा महत्व नहीं रखता! क्योंकि जब तक यह ठोस सैल्युलोज भाग ह्यूमस के रूप में बदल नहीं जाता, तब तक इसका कोई लाभ नहीं मिलता! 

🌷जबकि गोबर का शेष तरल भाग में सैकड़ों प्रकार के सूक्ष्म जीवाणु, माइक्रोआर्गेनिज्म, एंजाइम और बायो कैमिकल्स रहते हैं! ये सभी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं! 
अगर गोबर तरल के साथ गौमूत्र घनसत्व का मिश्रण भी कर लिया जाए, तो यह मिश्रण बहुत ही प्रभावशाली बन जाता है! गोबर और गोमूत्र का यह मिश्रण खेती के लिए, मृदा के लिए अमृत रस से बढ़कर सिद्ध होता है! यह मिश्रण अद्वितीय रूप में मृदा की पौषकता को सैकड़ों गुना तक बढा देता है! गोबर और गोमूत्र का मिश्रण में बायोहेन्सर सक्रिय रूप में मृदा में विद्यमान जरा सूक्ष्म जीवाणुओं को अचानक सक्रिय बना देते हैं! इस तरह मृदा में अनेक प्रकार के सकारात्मक परिवर्तन होते हैं, खेत की पौषकता में वृद्धि होती है! इस मिश्रण के बाद किसी भी तरह फर्टिलाइजर, कीटनाशकों और खनिजों की आवश्यकता नहीं रह जाती है! 
इस मिश्रण के बाद भरपूर फसल की पैदा होती है! इसके साथ भूमि की उर्वरता भी यथावत बनी रहती है! 
विस्तार से समझने के लिए आगे पढ़े ----


शनिवार, 30 सितंबर 2023

गौ परिक्रमा से मिलते हैं ढेरों लाभ,


गौ परिक्रमा से मिलते हैं ढेरों लाभ,

 
विष्णुपुराण के अनुसार व्यक्ति के किसी भी अनिष्ट की निवृत्ति के लिए गौमाता के पूजन का विधान किया गया है। 
अनेक तरह के अरिष्टकारी भूचर, खेचर और जलचर आदि दुर्योग उस व्यक्ति को छू भी नहीं सकते जो नित्य गौमाता की सेवा करता है या फिर रोज गौमाता के लिए चारे या रोटी का दान करता है। 
तिल, जौ व गुड़ का बना लड्डू नौ गायों को खिलाने से व परिक्रमा करने से संतान प्राप्ति एवं मनोवांछित फल मिलता है। 
पति-पत्नी में आपसी मनमुटाव या क्लेश रहता हो तो दोनों गठजोड़े से गऊमाता की परिक्रमा करें एवं घर से रोटी बनाकर तिल के तेल से चुपड़ कर गुड़ के साथ नौ गायों को खिलाएं। 
घर में सुख-शांति बनी रहेगी। 

 
गर्भवती महिलाएं नौ माह में प्रत्येक अमावस्या व पूर्णिमा पर परिक्रमा कर लें तो सामान्य डिलीवरी से संतान होगी। 
प्रतिदिन भोजन करने से पहले एक रोटी व गुड़ अपने हाथ से देसी गाय को खिलाने से एवं गाय के मुंह से लेकर पूंछ तक हाथ फेर कर अपने शरीर पर हाथ फेरने से शरीर का संतुलन बना रहता है।

 
गाय को जौ खिलाएं और उसके गोबर में से जौ निकले, उसे धोकर खीर बना कर एक चम्मच गाय का घी डालकर गर्भवती महिलाएं अंतिम माह में खाएं। यह साधारण डिलीवरी में सहायक है। 
जिन बच्चों की शादी में अनावश्यक विलम्ब हो रहा हो, वे स्वयं विधिपूर्वक गाय की पूजा करके नौ रोटी व गुड़ खिलाएं जिससे मनवांछित फल प्राप्त होगा।

गुरुवार, 28 सितंबर 2023

इस्कॉन गौशालाओं का मुद्दा गर्म है।


इस्कॉन गौशालाओं का मुद्दा गर्म है। धन्यवाद मेनका गांधी जी का ! भारत में गौशाला एक पुण्य स्थान की तरह देखा जाता है। माना जाता है कि गौ सेवा भगवान का दिया हुआ कार्य है। और इसे करने वाले को पुण्य मिलता है। ऐतिहासिक आधार पर ऐसा विवरण मिलता है कि शहरों में स्थापित पहली गौशाला हरियाणा के रेवाड़ी शहर के नारनौल रोड़ स्थित कुतुबपुर रामपुरा में बनाई गई। श्री दयानन्द गौशाला का निर्माण वर्ष 1879 में कराया गया था. उस वक्त रेवाड़ी के शासक राव युधिष्ठिर सिंह थे. कहा जाता है कि वर्ष 1879 में स्वामी दयानन्द सरस्वती महाराज ने 17 दिनों के लिए रेवाड़ी में प्रवास किया था. प्रवास के बाद जयपुर जाते समय उन्होंने रेवाड़ी के इस स्थान पर छड़ी मारकर जमीन की निशानदेही की थी कि यहां गौशाला बनाई जाए। वैसे पहली गौरक्षिणी सभा का निर्माण 1882 में पंजाब में हुआ था। इसका उद्देश्य वृद्ध गायों और छोड़ दी गई बीमार गायों को शरण देना था। ये आंदोलन उत्तर भारत, बंगाल, बंबई, मद्रास प्रेसीडेंसी और सेंट्रल प्रॉविंस में ऐसा फैला कि उस समय साढ़े तीन लाख लोगों ने इसमें जुड़कर हस्ताक्षर किए। इसके बाद 1893 तक देश में गौ रक्षा (छोड़ी गई गायों) के लए बहुत सारी गौशालाएं खुली। आज की बात करें तो राजस्थान के सांचौर जिले में देश की बड़ी गौशाला है जहां करीब 150,000 गाय और बैल रहते हैं। 

गाय को लेकर केंद्र सरकार से राज्य सरकार तक कई नीतियां है। दूध, दही, घी, पनीर, गौमूत्र के अलावा उनकी स्थानीय प्रजातियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए भी कई संस्थान है। राज्यों में गौरक्षा के लिए भी संगठन है। हिंदू-जैन-सिख धर्म में धार्मिक मान्यता से गौशालाएं संचालित हैं। हिंदूओं के हर आश्रम-मठ-मंदिर के प्रांगण में गौ सेवा एक धर्म है। NITI Aayog की “गौशाला” की आर्थिक व्यवहार्यता में सुधार पर जारी इस साल की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1962 के पशु कल्याण बोर्ड (AWBI) के तहत 5000 से ज्यादा गौशालाओं को मान्यता प्राप्त है। AWBI में वैसे 3678 पशु कल्याण संगठन रजिस्टर्ड है, जिनमें से अधिकतर गौशालाएं हैं। इन 3678 में से 1755 गौशाला और पंजरापोल्स हैं। पंजरापोल्स मतलब गायों को आश्रय वाले पशुघर हैं। पंजरापोल्स का जैन धर्म से गहरा नाता है। 

हरियाणा सरकार ने काऊ टास्क फोर्स बनाकर गौरक्षा को एक अमली जामा पहनाया। मध्यप्रदेश गौवंश संरक्षण और रक्षा के लिए कड़े कानून लागू करने वाले देश के अग्रणी राज्यों में एक हैं। गौवंश वध प्रतिशेध अधिनियम में गाय का वध करने पर 7 साल की सजा का प्रावधान है। प्रदेश में 1762 गौशालाओं में 2 लाख 87 हजार गौवंश का पालन हो रहा है। वर्ष 2022-23 में इनके चारे के लिए 202 करोड़ 34 लाख का अनुदान वितरित किया गया। वहीं उत्तर प्रदेश गो-सेवा आयोग अधिनियम 1999 के उत्तर प्रदेश में गो-सेवा आयोग की स्थापना की गयी थी। इसके हिसाब से उत्तर प्रदेश में 525 पंजीकृत गौशालाएं है और 92 सक्रिय। कोई भी गो-सेवा आयोग को दान भी दे सकता है। वैसे प्रदेश के 12 कारागारो मे गोशालाये संचालित है। प्रदेश में संचालित 6719 बेसहारा गोवंश संरक्षण स्थलों में 11.33 लाख से ज्यादा गोवंश जानवर रखे गए हैं. इसके लिए सरकार प्रति गाय 900 रूपए देती है। सरकार का दावा है कि गोवंश के संरक्षण हेतु चलाए गए आक्रामक अभियान के सकारात्मक परिणामस्वरूप 11.5 लाख गोवंश को संरक्षण दिया जा सका है। 

अब बात करते हैं इस्कॉन की। भारत में इस्कॉन 60 गौशालाएं चलाती है। भगवान कृष्ण के भक्त इस्कॉन के साधु नि:संदेह गायों के प्रति भाव रखते हैं। उनकी गौशालाएं साफ सुथरी और दूध देने वाली गाएं भारतीय प्रजाति की होती हैं। समय समय पर इनकी गौशालाओं में छोड़ी गई गायों को भी शरण दी जाती है, पर हां वो गौ आश्रय के स्थान नहीं है। इन गौशालाओं में गायों के दूध को इस़्कॉन अपने मंदिर-आश्रम को चलाने के लिए उपयोग करता है। गायों को भारतीय संस्कृति के अनुसार नाम दिया जाता है और उनके बच्चों को सही से पाला जाता है। ये आरोप गलत है कि वे कसाई खाने को सौपें जाते हैं। आप इस वीडियो को देखकर कुछ समझ सकते हैं कि इस्कॉन कैसे वृद्ध गायों और बछियों की सेवा करता है। (https://www.youtube.com/watch?v=M0c4pz3HIhE)

भारत की सभी गौशालाों के हाल बहुत अच्छे नहीं है, इसीलिए वे गौ-धन और पंचामृत के कार्य में लगे हैं। मेरी अपनी जानकारी में देश की बड़ी बड़ी गौैशालाओं आर्थिक संकट में है। 

धार्मिक आधार पर गौ सेवा करने वाले संंत और कथा वाचक आज भी गायों को लेकर संवेदनशील हैं। वे सरकारी मदद से ज्यादा दान और भक्तों को सीधे संदेश देकर गायों की सेवा में लगे रहते हैं। इससे देश में भावना, सेवा और सामर्थ्य के बीच सामंजस्य नहीं बना है। गाय के दूध की सभी को जरूरत है। लेकिन ये कोआपरेटिव और किसान स्तर पर प्रोफेशनली विकसित हुआ है। धार्मिक आधार पर गौ-सेवा अभी भी कई स्तरों पर अविकसित है। 

सोमवार, 5 जून 2023

गोसेवा कई प्रकार की हो सकती है,

गोसेवा कई प्रकार की हो सकती है, यहां कुछ प्रमुख गोसेवा के प्रकार दिए जा रहे हैं:

1. गौशाला संचालन: यह एक गोसेवा का प्रमुख रूप है, जिसमें गौशालाओं की स्थापना की जाती है और गोमाताओं की देखभाल, आहार, इलाज, आवास, और दूध उत्पादन के लिए संगठित रूप से काम किया जाता है।

2. गौवंश पालन: यह एक व्यक्तिगत स्तर पर गोसेवा है, जहां व्यक्ति एक या एक से अधिक गायों को अपने घर पर पालता है और उनकी देखभाल करता है। यह उन लोगों के लिए अच्छा होता है जो अपने घर के पास गोशाला स्थापित करने की संभावना नहीं रखते हैं।

3. गोवंश शाला दान: इस प्रकार की गोसेवा में व्यक्ति गोशाला या गोवंश शाला का निर्माण करता है और उसे दान करता है। इससे उन्हें गोमाताओं की सेवा करने और उनके लिए एक सामुदायिक संसाधन प्रदान करने का अवसर मिलता है।

4. गौवंश शिक्षा: इस प्रकार की गोसेवा में गोवंशों के संरक्षण, देखभाल,

शुक्रवार, 19 मई 2023

युवा शक्ति कैसे गौ सेवा कर सकती है

युवा शक्ति

'एक भारतीय आत्मा के नाम से विख्यात परमादरणीय माखनलाल चतुर्वेदी (दद्दा) ने अपनी एक ओजस्वी कविता में युवा शक्ति की अपने संकल्पों के प्रति दृढ़ रहने की प्रेरणा देते हुए कहा है :-

खून हो जाए न तेरा देख पानी।
मरण का त्यौहार जीवन की जवानी ।।

किसी भी राष्ट्र में किसी बड़े परिवर्तन की संकल्प शक्ति देश की युवा शक्ति में अन्तर्निहित होती है। युवा शक्ति की दृढ संकल्पना, प्रलयंकारी परिवर्तनों का द्योतक होती है। इसी परिप्रेक्ष्य में ऋषि भतृहरि का कथन है- "जिस प्रकार सूर्य अकेला ही अपनी किरणों से समस्त संसार को प्रकाशमान कर देता है, उसी प्रकार एक ही युवा "वीर" अपनी शूरता, पराक्रम और साहस से सारी पृथ्वी को अपने पैरों तले कर सकता है।" इस रूप में गोवंश व संवर्धन इस राष्ट्रीय कर्तव्य की पूर्णता युवा शक्ति के निम्न संकल्पों में अन्तर्निहित है :-

1. युवक गौ रक्षा के अभियान में सक्रिय भूमिका अदा करें। गो रक्षक समूह बनाकर गो हत्यारों के चंगुल से गोवंश को छुडाने हेतु अपनी अमित शक्ति का प्रयोग करें।

2. गो दुग्ध पान स्वयं करे एवं उसका सम्यक प्रचार करें।

3. पंच गव्य (गोदुग्ध, गोबर, गोमूत्र, गोघृत, गोदधि) का अधिकतर प्रयोग करें व अन्य को इसके प्रयोग की प्रेरणा दें।

4. भोजन के समय गो माता के निमित्त गो ग्रास निकालने की अपनी भारतीय परम्परा का पालन करें।

5. गो पर्व, गो उत्सव, गोपाष्टमी, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, गोवत्स द्वादशी,बलराम जयंती (हलधर षष्ठी) इत्यादि का आयोजन उत्साहपूर्वक करने का दायित्व लेवें।

6. गाँवो व किसानों के मध्य जैविक कृषि का प्रचार प्रसार करें। गोवंश के महत्त्व का प्रचार करें।

7. गोशालाओं के लिए सहयोग एवं सहायता के प्रति समाज को जागृत करें। 

8. शहरों में घनी आबादी के बीच गोमाता को प्रताड़ित कर भगाया जाता है। ऐसी स्थितियों में गो माना के प्रति श्रध्दा भाव निर्मित करें व उनकी उचित व्यवस्था करने की जिम्मेदारी लेवें।

9. गो हत्यारों को सामाजिक व कानूनी रूप से प्रताडित करें।
 10. अधर्मी व विदेशी शक्तियों द्वारा गो सेवा व गो माता के प्रति किए जा रहे दुष्प्रचार का मुँह तोड़ जवाब देवें ।

गुरुवार, 11 मई 2023

प्रौढ महिलाएं कैसे गौसेवा कर सकती है।

प्रौढ महिलाएं

आप परिवार को सुसंस्कृत, सुदृढ एवम् प्रगतिशील बनाने में प्रमुख भूमिका निभाती हैं। परिवार मे युवाओं को आप मार्गदर्शन करती है। परिवार को समय-समय पर आपके सलाह एवम् उपदेशों की आवश्यकता पड़ती है। अपनी इन्ही सलाहों में एवम् उपेदशों में गोसेवा, गोसंस्कृति को शामिल कर परिवार को और मजबूत बनायें।

१. परिवार के सदस्यों को गाय का धार्मिक, पौराणिक महत्व व भगवान श्रीकृष्ण, श्रीराम व म. गांधी  जैसे महापुरुषों की गौभक्ति व गौसेवा से अवगत करवाना चाहिये।

२. गोपाष्टमी, बारस जैसे अनेक गोउत्सवों पर गौपूजन, गौसंवर्धन का विशेष महत्व बताना चाहिये।

३. गौमाता के रक्षार्थ आस-पडोस से धन एकत्रकर चारे की व्यवस्था करनी चाहिये। ४. परिवार के सभी सदस्यों को गोग्रास की आदत डलवानी चाहिये।

५. गौसेवा का महत्व समझाकर बहु-बेटियों, परिवार के पुरुषवर्ग व अन्य संबधियों को किसी गोशाला के सत्कार्यों से जोडने का प्रयास करना चाहिये।

६. पूजा स्थलों, मंदिरों में गाय के महत्व को विशद कर इसी विषय पर कीर्तन, प्रवचन व्याख्यान का आयोजन करने हेतु प्रेरित करना चाहिये।

७. परिवार को गोवंश हत्या से प्रेरित खाद्य पदार्थ सौंदर्य प्रसाधन व • औषधि का बहिष्कार करने हेतु प्रेरित करना चाहिये।

८. परिवार के सभी सदस्यों को गोदुग्धपान का आग्रह करना चाहिये। ९. घर में पंचगव्य उत्पादों के अधिकाधिक उपयोग पर बल देना चाहिये।

एक ग्रहणी कैसे गोसेवा कर सकती है

समाज की मूल इकाई परिवार है। परिवार के आकार-प्रकार, सुख-शांति, सम्पन्नता का आधार बिंदु गृहिणी ही है। 'गृहस्थी' है क्यों कि 'गृहिणी' है। संसार की प्रथम पाठशाला, परिवार की मुख्य अध्यापिका गृहिणी ही है। गोवंश रक्षा एवं संवर्धन के महायज्ञ में प्रथम आहुति गृहिणी की ही हो सकती है। निम्न मुख्य बिंदुओं का पालन कर गृहिणी गौ माता के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर सकती है :-

१. घर में गाय के दूध, दही, गोघृत का उपयोग करें। पंच गव्य निर्मित साबुन, शैम्पू व उबटन का ही उपयोग करें। बीमारियों में यथासम्भव पंचगव्य औषधियों का उपयोग करें।

२. प्रतिदिन प्रातः गो दर्शन कर दिन का शुभारम्भ करें।

३. भोजन से पहले गो ग्रास देने की आदत परिवार के प्रत्येक सदस्य में डालें।

४. परिवार के बच्चे, बहू-बेटियाँ व अन्य सदस्यों को गो महिमा समझाकर गोसेवा हेतु प्रवृत्त करें।

५. गोपाष्टमी, गोवत्सद्वादशी, बलराम जयंती (हलधर षष्ठी), श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, मकर संक्राति इत्यादि गो पर्व तथा गो उत्सव मनाने की परम्परा प्रारम्भ करें। परिवार में गौ कीर्तन व गो महिमा से सम्बधित शास्त्रों का पठन पाठन करे।

६. फलों व सब्जियों का उपयोग में न आने वाला हिस्सा कचरे में न फेंकते हुए गोवंश को दें। घर के सामने आनेवाले गोवंश को पानी पिलायें। परिवार के भोजन के बाद बचा हुआ अन्न सब्जी भी गोवंश को खिलावें।

७. प्लास्टिक की थैलियों का कम से कम उपयोग करें। कचरा प्लास्टिक की थैलियों में भरकर न फेंके क्यों कि ये थैलियाँ ही गाय का आहार बनती हैं तथा प्लास्टिक की थैलियाँ खाने से गौ माता अस्वस्थ होकर मृत्यु का ग्रास बनती है।

८. गौमाता में समस्त देवी-देवताओं का वास होता है। घर में गोमाता का एक चित्र अवश्य लगवायें तथा परिवार समेत नमन करें ताकि परिवार में गो श्रध्दा व गो सेवा का भाव जगे ।

९. गो सेवा हेतु कम से कम एक रुपया प्रतिदिन एक डिब्बे में डालें व वर्ष में एक बार गोशाला या गो सेवा से सम्बधित संस्था को दान देवें।

१०. भारतीय नस्ल की गाय पालें व गो सेवा के आनंद का प्रत्यक्ष अनुभव करें।

गुरुवार, 20 अप्रैल 2023

जन सामान्य कैसे गौसेवा कर सकता है?

जन सामान्य

आपके आचरण व व्यवहार से विश्व में राष्ट्र की छबि बनती हैं, आपके विचारों से, आपके कार्यों से राष्ट्र को परिचय मिलता है, आपकी कर्मठता व लगन से यह राष्ट्र प्रगतिपथ पर हैं, आप इस राष्ट्र के निर्माता है. आप ही के हाथों में इस राष्ट्र का वर्तमान व भविष्य सुरक्षित हैं। धर्म, अध्यात्म के प्रति आपके रुझान से ही यह राष्ट्र विश्व को संदेश दे रहा हैं, संस्कृति से आपके गहरे प्रेम के बदौलत ही आज विश्वपटल पर यह राष्ट्र अपना वजूद बचाने में सफल रहा हैं। आईये, गोवंश और मातृभूमि की करुण पुकार को सुने और कुछ अधोलिखित पुनीत कार्य कर इस संस्कृति का पोषण करें एवम् स्वास्थ्य, खाद्यान्न, प्रदूषण व उर्जा के संकटो से इस राष्ट्र को मुक्त कर एकबार फिर इसे अपना खोया वैभव व सम्मान दिलाकर विश्व का सिरमौर बनायें।

१. चूँकी गायों में समस्त देवी-देवताओं का वास होता हैं, इसलिये सदैव प्रातः उठकर गोदर्शन करें।

२. स्वास्थलाभ हेतु प्रतिदिन गोतीर्थ, गोदुग्ध गोमूत्रपान करना चाहिये। 

3. गौओं का नाम-कीर्तन किये बिना न सोवे और प्रातः उनका स्मरण करके ही उठे शास्त्रानुसार इससे मनुष्य को बल एवं पुष्टि प्राप्त होती हैं।

४. अपने इहलोक व परलोक उध्दार हेतु गार्यो को गोग्रास प्रदान करने के पश्चात ही भोजन करें।

५. अपने समस्त दोष पापों के शमन व मनःशांति हेतु गायों के शरीर को खुजलायें, सहलायें।

६. संभव हो तो घर में कम से कम एक गाय अवश्य पालें, स्थान की कमी परंतु आर्थिक शक्ति हो तो गोशाला की कम से कम १ गाय के पालन- पोषण का खर्च वहन कर गोसेवा करें।

७. गोलोकप्राप्ति हेतु गोदान अवश्य करें ।

८. प्रतिदिन गोदानापात्र में कम से कम एक रुपया डालकर गोसेवा का पूण्य प्राप्त करें।

९. दैनिक जीवन की आवश्यकताओं में पंचगव्य निर्मित स्वस्त व लाभप्रद मंजन, टिकिया (साबुन), शॅम्पू, उबटन, धूप, मच्छर निरोधक अगरबती जैसे उत्पादों का ही उपयोग कर गौसंवर्धन कार्य में योगदान दें।

१०. घर में देशी गाय का दूध, दही, तक्र, घृत का ही उपयोग करें।

 ११. बीमारीयों में ऍलोपॅथी औषधियों की तुलना में स्वस्त सुलभ व अपायरहित होने के कारण पंचगव्य औषधियों का ही उपयोग करें। 

१२. किसी न किसी गोशाला से जुड़कर अपनी शैक्षणिक व शारीरिक योग्यता के अनुसार गौरक्षा, गोसंवर्धन के कार्यों में हाथ बँटायें। 

१३. १५ दिन या महिने में एक बार मित्र परिवार सहित गोशाला में श्रमदान अवश्य करें। 


१४. गोरक्षा, गोसंवर्धन हेतु समय-समय पर होनेवाले आन्दोलनो में सक्रिय सहयोग दें।

१५. सर्वदेवमयी गोमाता का चित्र घर में अवश्य लगाना चाहीये।

१६. दैनंदिन पूजा-पाठ, भोग, हवन में देसी गाय से प्राप्त पंचगव्यों व उनसेप्राप्त उत्पादों का ही उपयोग करें।

१७. व्यक्तिगत गोशाला या समाज में जनजागरण कर सार्वजनिक गोशाला बनवायें: शास्त्रानुसार इससे सात कुल का उध्दार होता है। 

१८.  लाखों गोवंश के मृत्यु का कारण बनी प्लास्टिक थैलियों के उपयोग का विरोध व इस विषय में जनजागरण करें। 

१९. विपत्ति में पड़े व कत्लखानों में जा रहे गोवंश को छुड़ाने में सहयोग करें: इससे अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता हैं। 

२०. चाँदी के वर्क लगी मिठाइयों का विरोध करें।

२१. पीडित व रुग्ण गोवंश का औषधोपचार करें: इससे निरोगी देह का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं।

२२. शास्त्रानुसार ब्रम्ह हत्या के पाप से बचने के लिये भूख प्यास से व्याकुल गोवंश को भोजन जल ग्रहण करते समये, मल-मूत्र परित्याग करते समय बाधा पहुँचाकर उन्हें उद्विग्न न करें।

२३. जूता या खड़ाऊँ पहन कर गायों के बीच न जायें। 

२४. अज्ञानता व अनभिज्ञता के कारण हम गोवंश हत्या से प्रेरित हिसंक उत्पादों का उपयोग कर रहे हैं। जैसे खाल व चमड़े से बने जूते, चप्पल, चांदी वर्क, कोट, पर्स, सूटकेस, बिस्तरबंद, बेल्ट, गलीचा, फर्नीचर कवर, ढोलक, वाद्ययंत्र क्रिकेट बॉल, फुटबॉल, कलात्मक मूर्तियाँ, टोपी, हाथपोस, बेबीसूट, गोमांस व चर्बी से बने नकली घी, बेकरी उत्पाद, आईस्क्रीम, चॉकलेट, टुथपेस्ट व पावडर, कुछ साबुन, सौंदर्य प्रसाधन जैसे कोल्ड क्रीम, वेनेशिंग क्रीम, लिपिस्टीक, परफ्युम, नेलपॉलीश, डाई, लोशन, शॅम्पू, सिंथेटिक दूध, खिलौने इत्यादी सैकड़ों वस्तुओं के उपयोग का व बिक्री का विरोध करें तथा समाज में इस विषय पर जनजागरण करें।

२५. औषधियों के साहित्य में बोवाईन (Bovine) लिखे होने का मतलब औषधि में गोवंश के माँस का उपयोग समझना चाहिये। उदाहरणार्थ गोवंश के पॅनक्रिआज से प्राप्त इंसुलिन गाय के रक्त से बनी डेक्सोरेंज सीरप, जिलेटीनवाली कॅपसुल हड्डी से बनी Heamaccel औषधि (Hoechst Marion Roussel Co.) व कई कॅलशियम पूरक औषधियाँ ऐसी औषधियों के उपयोग, बिक्री का विरोध व इस विषय पर जन जागरण करें।

२६. आजकल बछड़ों के पॅनक्रीआज से प्राप्त रेनेट का उपयोग पनीर बनाने मे होता हैं, ऐसे पनीर के उपयोग, बिक्री का विरोध व इस विषय पर जनजागरण करें।

२७. पंचगव्य आधारित जैविक कृषि से उत्पन्न खाद्यान्नों के उपयोग पर बल देना चाहिये।


बुधवार, 29 मार्च 2023

स्थानीय नस्ल का गोवंश है, उसी का संरक्षण, संवर्धन, सेवा करें।

हम जिस क्षेत्र में रहते हैं, उस क्षेत्र में जिस नस्ल का गोवंश है, उसी का संरक्षण, संवर्धन, सेवा करें। अन्य क्षेत्र के गोवंश के रूप, दूध, स्वभाव आदि को देखकर अपने यहां के गोवंश की उपेक्षा कर उसका त्याग कर अन्य नस्ल के गोवंश को रखते हैं तो उचित नहीं हैं। क्योंकि प्रकृति ने क्षेत्र विषश के अनुरूप ही वहां सभी प्राणियों को व्यवस्थित किया हैं। स्थान विशेष का गोवंश वहां की भौगोलिक स्थिति से पूर्ण परिचित होता हैं, उसका चारा वहां उत्पन्न होने वाली फसल और घास होती हैं। उसका शरीर कद काठी सींग आदि वहां की धरती के अनुरूप होते हैं। जैसे हिमालय पहाड़ों की बद्री गोमाता छोटी पहाड़ों पर घूम फिरने योग्य, रंग की काली या गहरे रंग की, शरीर पर बाल ताकि ठंड से बचाव हो आदि लक्षणों से युक्त होती हैं, उसे अगर राजस्थान की गर्म जलवायु में रखेंगे तो उचित नहीं होगा, गोमाता कष्ट में रहेगी।
इसलिए समय आ गया हैं कि अपने क्षेत्र की गोमाता का संरक्षण करें, उसका संवर्धन कर उसकी नस्लों को उन्नत बनावे ताकि कुछ वर्ष बाद हमें उसी नस्ल से अनुरूप दूध भी मिलने लग जायेगा तथा नस्लें समाप्त भी नहीं होगी।
अपने घर में मां की उपेक्षा कर अन्य महिला के कपड़े, गहने, रूप अच्छा देखकर मां के स्थान पर घर में रख लेंगे तो क्या होगा? यही बात गोवंश की नस्लों के संबंध में हैं

रविवार, 12 फ़रवरी 2023

नन्दीशालाओं की स्थापना एवं संचालन में तन-मन-धन से सहयोग करे

आदरणीय सज्जनों 
सादर सप्रेम हरिस्मरण जय शिवशंकर जय नन्दीश्वर ।

गोभक्त धर्मात्माओं आप सभी नित्य देखते होंगे कि प्रत्येक नगर, गली, गाँव तथा सड़कों पर सर्वत्र गोवंश विशेषकर नन्दीदेवता निराश्रित विचरण करते व कचरे के ढेर में मुख मारते हुए मिलेंगे, यह गोवंश भूख से व्यथित कृषि वाले खेतों में जाने पर किसान के क्रोध का शिकार बनता है, अखाद्य पदार्थ खाकर असाध्य रोगग्रस्त हो जाता है, गतिशील वाहन से दुर्घटनाग्रस्त होता है और इस गोवंश से भयंकर नस्लक्षरण भी हो रहा है, गोवंश के असहनीय दुखों का अभिशाप जाने अनजाने पूरे समाज को लग रहा है, इसके परिणाम स्वरूप प्राकृतिक आपदाओं का संकट मानवजाति को भोगना पड़ेगा।

अतः मानवजाति को गोअपराधों से मुक्त करने के लिए आगामी महाशिवरात्रि पर्व के दिन शिववाहन वृषभ देवता का प्रत्येक शिवमन्दिर में पूजन-अर्चन करते हुए निराश्रित गोवंश के आश्रय और आहार का प्रबंध करने के लिए घर-घर गाय गाँव- गाँव गोशाला और खण्ड खण्ड नन्दीशालाओं की स्थापना एवं संचालन में तन-मन-धन से सहयोग करने का संकल्प लेकर महाशिवजी का मंगल आशीर्वाद प्राप्त करें ।

।। जय श्री कामधेनु कृष्ण ।।

आपका अपना आस्था केन्द्र 
श्री गोधाम महातीर्थ पथमेड़ा