शनिवार, 21 अक्तूबर 2023

कृषक (किसान) कैसे गौ सेवा कर सकते है

कृषक (किसान)

भारतीय अर्थव्यवस्था का मूल आधार कृषि है। वस्तुतः कृषि भारत की जीवन शैली है और इस जीवन का पोषक बिंदू कृषक है। सही मायने में तो राष्ट्र की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक काया की रीढ कृषक है। रीढ़ विहीन राष्ट्रीय शरीर की परिकल्पना असम्भव है। कृषक के लिए गोवंश प्राण शक्ति है। उसके अहर्निश जीवन शैली में गोवंश की अभिरक्षा और संवर्धन आप्लावित है। कृषि व पर्यावरण के क्षेत्र में गोवंश का महत्व बताते हुए सर अलबर्ट हावर्ड ने ने लिखा है - "घोडे और बैल के बदले बिजली की मोटर और तेल वाले इंजनों से खेती करने में एक हानि यह है कि इन मशीनों से गोबर और मूत्र नहीं मिलता, फलतः यह मिट्टी की उर्वरकता बनाये रखने में किसी काम के नहीं है।" (एग्रीकल्चर टेस्टामेंट) कृषक अपनी माँ, इस प्राण शक्ति को सुदृढता और सुदीर्घता प्रदान करने के लिए निम्न बिंदुओं का पालन कर सकते है:-

1. रासायनिक कृषि का विरोध करना चाहिए क्योंकि रासायनिक कीटनाशक व रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति एवं उत्पादन • क्षमता को भारी क्षति पहुँचती है।

2. कृषि कार्य हेतु उपयोग किए गए रासायनिक उर्वरक खाद्यान्न को विषाक्त बना देते हैं जिनको खाने से जन सामान्य के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और वे रक्तचाप, हृदय विकार, उदर विकार, कर्क रोग (कैंसर) जैसी बिमारीयों से पीड़ित हो जाते हैं।

3. रासायनिक कृषि के बजाय गोवंश आधारित जैविक कृषि को शत् प्रतिशत अपनाना चाहिए।

4. जैविक खाद, जैविक कीटनाशक और खरपतवार नाशक के उपयोग में रसायनों की तुलना में 75% कम लागत आती है। साथ ही भूमि की उत्पादन क्षमता बढ़ती है।

5. जैविक कृषि से लाभान्वित होने हेतु अधिक से अधिक गो वंश पालना चाहिए।

6. गो वंश आधारित कृषि से होनेवाले लाभकारी अनुभवों को अन्य किसान वर्ग तक प्रचारित प्रसारित कर उन्हें भी इस दिशा में अग्रसर होने हेतु प्रेरित करना चाहिए।

7. पंचगव्य निर्मित कीटनाशक, फसल रक्षक और उर्वरकों के उपयोगों को प्रधानना दी जानी चाहिए और उनके निर्माण का प्रशिक्षण लेना चाहिए।

8. फसल का एक भाग गोवंश के लिये निकालकर गो सेवा करना चाहिए। गो सेवा, गाय की पूजा और गो उत्सवों की महत्ता से परिचित होकर उन्हें अत्याधिक आनंद एवं उत्साह से मनाने की परम्परा डालना चाहिए। भारतीय परम्परा के गो पर्व उत्सव जैसे - गो वत्स द्वादशी, बलराम जयंती (हलधर षष्ठी), श्री कृष्ण जन्माष्टमी, गोपाष्टमी, मकर संक्रांति आदि उत्सवों को किसानों के अपने उत्सव के रूप में उल्लास के साथ मनाना चाहिए।

9. गोवंश से अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने हेतु पंचगव्य निर्मित मंजन, टिकिया, उबटन, धूप बत्ती, मच्छर प्रतिबंधक व अन्य औषधि निर्माण कार्य कर गोवंश आधारित समग्र ग्राम विकास की कल्पना को साकार करने का प्रयत्न करना चाहिए।

10. जुताई, फसल कटाई इत्यादि कृषि कार्यों के लिए ट्रॅक्टर एवं अन्य मशीनों की बजाए बैल तथा बैल चालित अन्य यत्रों का उपयोग कर राष्ट्रीय ईंधन व मूल्यवान बिजली की बचन करनी चाहिए।

11. भारतीय गोवंश के नस्लसुधार हेतु विदेशी संकरण का विरोध व देशी गोवंश में ही परस्पर संकरण करवाना चाहिये।

मंगलवार, 10 अक्तूबर 2023

गाय के गोबर की महिमा


🦚गाय के गोबर की  महिमा🦚

🦩हालिया कई अलग अलग अध्ययनों से पता चला है कि रेत, सीमेंट, सरिया, प्लास्टिक आदि से निर्मित मकानों में रहने, अधिक समय व्यतीत करने से व्यक्ति की इम्यून शक्ति तेजी से कमजोर पडती है, मन बेचैन बना रहता है, नींद कम आती है, उच्चाटन, झल्लाहट सा बना रहता है ब्लडप्रेशर में बार बार बदलाव बना रहता है, जबकि गोबर से लिपे और मिट्टी से बने मकानों में तो अनेक प्रकार के  तीव्र संक्रामक रोग जैसे प्लेग, हैजा, निमोनिया, दस्त के जीवाणु भी शीघ्र शांत पड जाते हैं! 

🦩मिट्टी के कच्चे किंतु गोबर से सने मकानों में मन शांत रहता है, गहरी और तनाव घटाने वाली गहरी नींद आती है! ऐसे मकानों में अधिक समय व्यतीत करने से ह्दय रोगों से भी शीघ्र मुक्ति मिल जाती है, क्योंकि गोबर मिट्टी की भीनी भीनी गंध मस्तिष्क के विशेष केन्द्रौ पर प्रभाव डाल कर ह्रदय की अनियमित धड़कन, उच्च रक्तचाप और ह्रदय की कमजोरी को समाप्त करने काम करते हैं? इसलिए गाय के गोबर को अति पवित्र मानते हुए गंगा जी का निवास स्थान माना हैं! 

🦩गोबर और गोमूत्र में जहर खींचने की भी विशेष शक्ति रहती है! यह तो सर्प विष को भी समाप्त करने काम करता है! 

👍अध्ययन परीक्षणों में देखा गया है कि वर्तमान में जिस तीव्र गति से साग सब्जियों फलफूल और अनाज आदि को दवाओं के निरंतर छिडकाव से विषाक्त बनाया जा रहा है और उसका दुष्प्रभाव मानव स्वास्थ्य के ऊपर दिखाई पड रहा है, विभिन्न रोगों के साथ आयु घट रही है, कैंसर जैसे भयंकर रोग सताने लगे हैं! इन सबके केवल गौमाता ही मुक्ति दिला सकती है! गोबर और गोमूत्र ही इस विषाक्तता का समाधान दे सकते हैं! 

👍वैसे भी सदियों से संखिया, भिलावा, जैसे अनेक विषों को विषहीन करने, इनके जहरीलेपन को शुद्ध करने के लिए गौमूत्र और गोबर काम में आते रहे हैं! 

🌷यदि आप गाय के गोबर का पूरा सदुपयोग करना, सही प्रयोग करना जान ले, तो आप गो पालन के कार्य को सहजता से कर सकते हैं, फिर आपके लिए गौसेवा बोझ बन कर नहीं रहता, गौरक्षा के कार्य को सहजता से जारी रख सकते हैं! 

🌷गाय के गोबर का 60℅ भाग तो ठोस रूप में रहता है! यह भाग मुख्यतः सैल्युलोज के रूप में रहता है! खाद के रूप में, भूमि संवर्धन के लिए मृदा में उपस्थित रहने वाले करोड़ों जीवाणुओं के लिए कोई ज्यादा महत्व नहीं रखता! क्योंकि जब तक यह ठोस सैल्युलोज भाग ह्यूमस के रूप में बदल नहीं जाता, तब तक इसका कोई लाभ नहीं मिलता! 

🌷जबकि गोबर का शेष तरल भाग में सैकड़ों प्रकार के सूक्ष्म जीवाणु, माइक्रोआर्गेनिज्म, एंजाइम और बायो कैमिकल्स रहते हैं! ये सभी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं! 
अगर गोबर तरल के साथ गौमूत्र घनसत्व का मिश्रण भी कर लिया जाए, तो यह मिश्रण बहुत ही प्रभावशाली बन जाता है! गोबर और गोमूत्र का यह मिश्रण खेती के लिए, मृदा के लिए अमृत रस से बढ़कर सिद्ध होता है! यह मिश्रण अद्वितीय रूप में मृदा की पौषकता को सैकड़ों गुना तक बढा देता है! गोबर और गोमूत्र का मिश्रण में बायोहेन्सर सक्रिय रूप में मृदा में विद्यमान जरा सूक्ष्म जीवाणुओं को अचानक सक्रिय बना देते हैं! इस तरह मृदा में अनेक प्रकार के सकारात्मक परिवर्तन होते हैं, खेत की पौषकता में वृद्धि होती है! इस मिश्रण के बाद किसी भी तरह फर्टिलाइजर, कीटनाशकों और खनिजों की आवश्यकता नहीं रह जाती है! 
इस मिश्रण के बाद भरपूर फसल की पैदा होती है! इसके साथ भूमि की उर्वरता भी यथावत बनी रहती है! 
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