श्री सुरभ्यै नम:
॥राम कृष्ण की प्यारी गैया॥
राम कृष्ण की प्यारी गैया, सारे जग की माता है।
धर्म, अर्ध अरू काम, मोक्ष की दाता भाग्य विधाता है॥
नन्दगांव, गोकुल, वरसाना, गौ से शोभा पाता है।
भारत की शोभा गायों से, गौ ही भारत माता है॥
रोम रोम में बसे देवता, ऋषि मुनि हरि शिव धाता है।
गंगा मूत्र, लक्ष्मी गोमय, पंचगव्य सुखदाता है॥
दूध, दही, घृत, मक्खन से ही, सब जग पोषण पाता है।
विधवा सी धरती बंजर है, गोमय खाद न पाता है॥
अन्न नहीं, जल वायु नहीं, धन धर्म नहीं, संस्कार नहीं।
गाय बचैगी देश बचैगा, गाय बिना सब जाता है॥
नहीं भक्ति यदि गोमाता में, हिन्दु नहीं कहाता है।
शासक वर्ग कसाई समझो, यदि गोवध करवाता है॥
राम कृष्ण की प्यारी गैया, नन्दी शिव को भाता है।
श्रद्धा रूपा गाय नहीं तो, धर्म वृषभ नहीं आता है॥
हिन्दु नहीं, न देश हिन्द है, जहाँ नहीं गोमाता है।
गाय सुखी तो देश सुखी है, गाय बिना दुःख पाता है॥
धरती माता सी गोमाता, सब जग पोषण पाता है।
दूध दही की नदियाँ बहती, यह इतिहास बताता है॥
है विनाश निश्चत विनाश है, समाधान नहीं पाता है।
गोपालन ही समाधान है, यह धर्म शास्त्र बतलाता है॥