सोमवार, 5 फ़रवरी 2018

कब लगेगा गौ हत्‍या पर प्रतिबंध

कब लगेगा गौ हत्‍या पर प्रतिबंध


भारत में गौ हत्या को लेकर कई आंदोलन हुए हैं और कई आज भी जारी हैं, लेकिन किसी में भी कोई ख़ास कामयाबी हासिल नहीं हो सकी. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि उन्हें जनांदोलन का रूप नहीं दिया गया. यह कहना क़तई ग़लत न होगा कि ज़्यादातर आंदोलन स़िर्फ अपनी सियासत चमकाने या चंदा उगाही तक सीमित रहे. अल कबीर स्लास्टर हाउस में रोज़ हज़ारों गाय काटी जाती हैं. कुछ साल पहले हिंदुत्ववादी संगठनों ने इसके ख़िलाफ़ मुहिम भी छेड़ी थी, लेकिन जैसे ही यह बात सामने आई कि इसका मालिक ग़ैर मुसलमान है तो अभियान को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. जगज़ाहिर है, गौ हत्या से सबसे बड़ा फ़ायदा तस्करों एवं गाय के चमड़े का कारोबार करने वालों को होता है. इनके दबाव के कारण ही सरकार गौ हत्या पर पाबंदी लगाने से गुरेज़ करती है. वरना क्या वजह है कि जिस देश में गाय को माता के रूप में पूजा जाता हो, वहां सरकार गौ हत्या रोकने में नाकाम है.

हैरत की बात यह है कि गौ हत्या पर पाबंदी लगाने की मांग लंबे समय से चली आ रही है. इसके बावजूद अभी तक इस पर कोई विशेष अमल नहीं किया गया, जबकि मुस्लिम शासनकाल में गौ हत्या पर सख्त पाबंदी थी. क़ाबिले ग़ौर है कि भारत में मुस्लिम शासन के दौरान कहीं भी गौकशी को लेकर हिंदू और मुसलमानों में टकराव देखने को नहीं मिलता.

अपने शासनकाल के आख़िरी साल में जब मुगल बादशाह बाबर बीमार हो गया तो उसके प्रधान ख़ली़फा निज़ामुद्दीन के हुक्म पर सिपहसालार मीर बाक़ी ने अवाम को परेशान करना शुरू कर दिया. जब इसकी ख़बर बाबर तक पहुंची तो उन्होंने क़ाबुल में रह रहे अपने बेटे हुमायूं को एक पत्र लिखा. बाबरनामे में दर्ज इस पत्र के मुताबिक़, बाबर ने अपने बेटे हुमायूं को नसीहत करते हुए लिखा-हमारी बीमारी के दौरान मंत्रियों ने शासन व्यवस्था बिगाड़ दी है, जिसे बयान नहीं किया जा सकता. हमारे चेहरे पर कालिख पोत दी गई है, जिसे पत्र में नहीं लिखा जा सकता. तुम यहां आओगे और अल्लाह को मंजूर होगा, तब रूबरू होकर कुछ बता पाऊंगा. अगर हमारी मुलाक़ात अल्लाह को मंजूर न हुई तो कुछ तजुर्बे लिख देता हूं, जो हमें शासन व्यवस्था की बदहाली से हासिल हुए हैं, जो तुम्हारे काम आएंगे.

1.      तुम्हारी ज़िंदगी में धार्मिक भेदभाव के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. तुम्हें निष्पक्ष होकर इंसाफ़ करना चाहिए. जनता के सभी वर्गों की धार्मिक भावना का हमेशा ख्याल रखना चाहिए.
2.      तुम्हें गौ हत्या से दूर रहना चाहिए. ऐसा करने से तुम हिंदुस्तान की जनता में प्रिय रहोगे. इस देश के लोग तुम्हारे आभारी रहेंगे और तुम्हारे साथ उनका रिश्ता भी मज़बूत हो जाएगा.
3.      तुम किसी समुदाय के धार्मिक स्थल को न गिराना. हमेशा इंसाफ़ करना, जिससे बादशाह और प्रजा का संबंध बेहतर बना रहे और देश में भी चैन-अमन क़ायम रहे.
हदीसों में भी गाय के दूध को फ़ायदेमंद और मांस को नुक़सानदेह बताया गया है-
1.      उम्मुल मोमिनीन (हजरत मुहम्मद साहब की पत्नी) फरमाती हैं कि नबी-ए-करीम हज़रत मुहम्मद सल फ़रमाते हैं कि गाय का दूध व घी फ़ायदेमंद है और गोश्त बीमारी पैदा करता है.
2.      नबी-ए-करीम हज़रत मुहम्मद सल. फ़रमाते हैं कि गाय का दूध फ़ायदेमंद है, घी इलाज है और गोश्त से बीमारी बढ़ती है.
(इमाम तिबरानी व हयातुल हैवान)
3.      नबी-ए-करीम हजरत मुहम्मद सल. फ़रमाते हैं कि तुम गाय के दूध और घी का सेवन किया करो और गोश्त से बचो, क्योंकि इसका दूध और घी फ़ायदेमंद है और इसके गोश्त से बीमारी पैदा होती है.
(इबने मसूद रज़ी व हयातुल हैवान)
4.      नबी-ए-करीम हज़रत मुहम्मद सल. फ़रमाते हैं कि अल्लाह ने दुनिया में जो भी बीमारियां उतारी हैं, उनमें से हर एक का इलाज भी दिया है. जो इससे अंजान है वह अंजान ही रहेगा. जो जानता है, वह जानता ही रहेगा. गाय के घी से ज़्यादा स्वास्थ्यवर्द्धक कोई चीज़ नहीं है.
(अब्दुल्लाबि मसूद हयातुल हैवान)
क़ुरआन में कई आयतें ऐसी हैं, जिनमें दूध और ऊन देने वाले पशुओं का ज़िक्र किया गया है.
भारत में गौ हत्या को बढ़ावा देने में अंग्रेज़ों ने अहम भूमिका निभाई. जब 1700 ई. में अंग्रेज़ भारत आए थे, उस वक़्त यहां गाय और सुअर का वध नहीं किया जाता था. हिंदू गाय को पूजनीय मानते थे और मुसलमान सुअर का नाम तक लेना पसंद नहीं करते थे, लेकिन अंग्रेजों को इन दोनों ही पशुओं के मांस की ज़रूरत थी. इसके अलावा वे भारत पर क़ब्ज़ा करना चाहते थे. उन्होंने मुसलमानों को भड़काया कि क़ुरआन में कहीं भी नहीं लिखा है कि गाय की क़ुर्बानी हराम है. इसलिए उन्हें गाय की क़ुर्बानी करनी चाहिए. उन्होंने मुसलमानों को लालच भी दिया और कुछ लोग उनके झांसे में आ गए. इसी तरह उन्होंने दलित हिंदुओं को सुअर के मांस की बिक्री कर मोटी रकम कमाने का झांसा दिया. ग़ौरतलब है कि यूरोप दो हज़ार बरसों से गाय के मांस का प्रमुख उपभोक्ता रहा है. भारत में अपने आगमन के साथ ही अंग्रेज़ों ने यहां गौ हत्या शुरू करा दी. 18वीं सदी के आख़िर तक बड़े पैमाने पर गौ हत्या होने लगी. अंग्रेज़ों की बंगाल, मद्रास और बंबई प्रेसीडेंसी सेना के रसद विभागों ने देश भर में कसाईखाने बनवाए. जैसे-जैसे यहां अंग्रेज़ी सेना और अधिकारियों की तादाद बढ़ने लगी, वैसे-वैसे गौ हत्या में भी बढ़ोत्तरी होती गई.
गौ हत्या और सुअर हत्या की आड़ में अंग्रेज़ों को हिंदू और मुसलमानों में फूट डालने का भी मौक़ा मिल गया. इस दौरान हिंदू संगठनों ने गौ हत्या के ख़िला़फ मुहिम छेड़ दी. आख़िरकार महारानी विक्टोरिया ने वायसराय लैंस डाउन को पत्र लिखा. महारानी ने कहा, हालांकि मुसलमानों द्वारा की जा रही गौ हत्या आंदोलन का कारण बनी है, लेकिन हक़ीक़त में यह हमारे ख़िलाफ़ है, क्योंकि मुसलमानों से कहीं ज़्यादा गौ वध हम कराते हैं. इसके ज़रिए ही हमारे सैनिकों को गौ मांस मुहैया हो पाता है. आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र ने भी 28 जुलाई, 1857 को बकरीद के मौक़े पर गाय की क़ुर्बानी न करने का फ़रमान जारी किया था. साथ ही चेतावनी दी थी कि जो भी गौ वध करने या कराने का दोषी पाया जाएगा, उसे मौत की सज़ा दी जाएगी. इसके बाद 1892 में देश के विभिन्न हिस्सों से सरकार को हस्ताक्षरयुक्त पत्र भेजकर गौ वध पर रोक लगाने की मांग की जाने लगी. इन पत्रों पर हिंदुओं के साथ मुसलमानों के भी हस्ताक्षर होते थे. इस समय भी देशव्यापी अभियान चलाया जा रहा है, जिसमें केंद्र सरकार से गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने और भारतीय गौवंश की रक्षा के लिए कठोर क़ानून बनाए जाने की मांग की जा रही है.
गाय की रक्षा के लिए अपनी जान देने में भारतीय मुसलमान किसी से पीछे नहीं हैं. उत्तर प्रदेश के सहारनपुर ज़िले के गांव नंगला झंडा निवासी डॉ. राशिद अली ने गौ तस्करों के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ रखी थी, जिसके चलते 20 अक्टूबर, 2003 को उन पर जानलेवा हमला किया गया और उनकी मौत हो गई. उन्होंने 1998 में गौ रक्षा का संकल्प लिया था और तभी से डॉक्टरी का पेशा छोड़कर वह अपनी मुहिम में जुट गए थे. गौ वध को रोकने के लिए विभिन्न मुस्लिम संगठन भी सामने आए हैं. दारूल उलूम देवबंद ने एक फ़तवा जारी करके मुसलमानों से गौ वध न करने की अपील की है. दारूल उलूम देवबंद के फतवा विभाग के अध्यक्ष मुती हबीबुर्रहमान का कहना है कि भारत में गाय को माता के रूप में पूजा जाता है. इसलिए मुसलमानों को उनकी धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए गौ वध से ख़ुद को दूर रखना चाहिए. उन्होंने कहा कि शरीयत किसी देश के क़ानून को तोड़ने का समर्थन नहीं करती. क़ाबिले ग़ौर है कि इस फ़तवे की पाकिस्तान में कड़ी आलोचना की गई थी. इसके बाद भारत में भी इस फ़तवे को लेकर ख़ामोशी अख्तियार कर ली गई.
गाय भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक अहम हिस्सा है. यहां गाय की पूजा की जाती है. यह भारतीय संस्कृति से जुड़ी है. महात्मा गांधी कहते थे कि अगर निस्वार्थ भाव से सेवा का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण कहीं देखने को मिलता है तो वह गौ माता है. गाय का ज़िक्र करते हुए वह लिखते हैं, गौ माता जन्म देने वाली माता से श्रेष्ठ है. हमारी माता हमें दो वर्ष दुग्धपान कराती है और यह आशा करती है कि हम बड़े होकर उसकी सेवा करेंगे. गाय हमसे चारे और दाने के अलावा किसी और चीज़ की आशा नहीं करती. हमारी मां प्राय: रूग्ण हो जाती है और हमसे सेवा की अपेक्षा करती है. गौ माता शायद ही कभी बीमार पड़ती है. वह हमारी सेवा आजीवन ही नहीं करती, अपितु मृत्यु के बाद भी करती है. अपनी मां की मृत्यु होने पर हमें उसका दाह संस्कार करने पर भी धनराशि व्यय करनी पड़ती है. गौ माता मर जाने पर भी उतनी ही उपयोगी सिद्ध होती है, जितनी अपने जीवनकाल में थी. हम उसके शरीर के हर अंग-मांस, अस्थियां, आंतों, सींग और चर्म का इस्तेमाल कर सकते हैं. यह बात जन्म देने वाली मां की निंदा के विचार से नहीं कह रहा हूं, बल्कि यह दिखाने के लिए कह रहा हूं कि मैं गाय की पूजा क्यों करता हूं.
ग़ौरतलब है कि उत्तराखंड देश का ऐसा पहला राज्य है, जहां सरकार ने गौ हत्या एक्ट में संशोधन कर सज़ा को दस साल करने का प्रावधान किया है. पिछले साल पंजाब में गौ सेवा बोर्ड ने गौ हत्या रोकने के लिए दस साल की सज़ा का प्रस्ताव बनाकर मुख्यमंत्री के पास भेजा था, जिसे विधानसभा से मंज़ूरी मिलने के बाद राष्ट्रपति को भेजा जा चुका है. इसके अलावा गौ सेवा बोर्ड के प्रस्ताव में राजाओं द्वारा गौधन की सेवा के लिए दान दी गई ज़मीनों को भू-माफ़ियाओं के क़ब्ज़े से छुड़ाने, सुप्रीमकोर्ट एवं हाईकोर्ट के गौधन संबंधी आदेश लागू करना भी शामिल है. जम्मू-कश्मीर सरकार ने भी गौ हत्या और गौ तस्करी रोकने के लिए कड़े क़दम उठाए थे. दरअसल भारत में गौ वध रोकने के लिए ईमानदारी से प्रयास किए जाने की ज़रूरत है. मुसलमान तो गाय का गोश्त खाना छोड़ देंगे, लेकिन गाय के चमड़े का कारोबार करने वाले क्या इससे हो रही मोटी कमाई छोड़ने के लिए तैयार हैं. इस बात में कोई दो राय नहीं कि गौ हत्या से सबसे ज़्यादा फ़ायदा ग़ैर मुसलमानों को है और उन्हीं के दबाव में सरकार गौ हत्या पर पाबंदी नहीं लगाना चाहती.

गौ संरक्षण हमारी एक महती आवश्यकता

गौ संरक्षण हमारी एक महती आवश्यकता


अपने देश में गौरक्षा का गौ-पालन और गौ-पूजा का महत्व बहुत है। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी अभिरुचि इस दिशा में सबसे अधिक प्रदर्शित करके सर्वसाधारण का ध्यान इस ओर आकर्षित किया था कि उन्हें गौ का महत्व और उपयोग भली प्रकार समझना चाहिये और इस संदर्भ में व्यवहारतः कुछ करते रहना चाहिए
मानवी स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए जिस पौष्टिक आहार की आवश्यकता है, उसमें गौ दुग्ध अग्रणी है। यों दूध तो भैंस और भेड़-बकरी का भी मिलता है और कहीं-कहीं गधी और ऊँटनी का भी प्रयुक्त होता है पर विटामिन ‘ए’ जैसे बहुमूल्य तत्त्व जितनी मात्रा में गाय के दुग्ध में है, उतने और किसी में नहीं। देखने में भैंसा या भेड़ का दूध चिकना, गाढ़ा निकलता है पर गुणों में गोरस से उनकी कोई तुलना नहीं। जितने उपयोगी खनिज, लवण, रोग निरोधक, बलवर्धक जीवन तत्त्व गाय के दूध में हैं, और शिक्षित देशों में जो गुण और लाभ को परखना जानते हैं, केवल गौदुग्ध ही उपयुक्त होता है। योरोप और अमेरिका का समस्त देश प्रायः गौ दुग्ध ही सेवन करता है। भैंस तो अफ्रीका और भारत को छोड़कर अन्यत्र पाई भी नहीं जाती।
आयुर्वेद शास्त्र में भी गौदुग्ध का ही प्रतिपादन है। धर्म ग्रन्थों में जहाँ कहीं दूध, घी की आवश्यकता का वर्णन है, वहाँ गौरस का ही उल्लेख समझना चाहिये। दूरदर्शी ऋषियों को शारीरिक दृष्टि से गोरस की शारीरिक उपयोगिता विदित ही थी, इसके अतिरिक्त वे उसके मानसिक और आध्यात्मिक गुणों से भी परिचित थे। गाय में, गाय के बछड़े में-जैसी फुर्ती और चतुरता रहती है, वैसी भेड़ या भैंस में नहीं। स्पष्टतः इन पशुओं का मानसिक स्तर भी दूध में धुला रहता है। भैंस का दूध पीने से उसी जैसा आलस्य, प्रमाद एवं बुद्धूपन बढ़ता है। ‘भेड़चाल’ उक्ति में उस प्राणी की अदूरदर्शिता का ही वर्णन है। गाय इन सबसे निराली है। उसकी स्फूर्ति एवं चतुरता बात-बात में परखी जा सकती है। मार्ग में खेलते हुए बच्चे को गाय बचाती हुई चलेगी पर भैंस अपनी राह चलती जाएगी, चाहे बूढ़ा, बच्चा कोई भी क्यों न कुचल जाय। तनिक-सी गर्मी-सर्दी और थकान, बर्दाश्त करना भैंस के लिए कठिन है। पर गाय की सहिष्णुता प्रख्यात है। यही गुण उसके दूध में रहते है। माता के दूध का बच्चे पर असर पड़ता है। माता का जैसा स्वभाव होता है, बच्चा भी वैसी प्रकृति का बन जाता है। यह दूध का गुण है। भैंसा या भेड़-बकरी का दूध पीने वाले उन्हीं जैसे हेय गुणी वाले बनते चले जाते हैं।
गाय की सबसे बड़ी विशेषता उसमें पाई जाने वाली आध्यात्मिक विशेषता है। हर पदार्थ एवं प्राणी में कुछ अति सूक्ष्म एवं रहस्यमय गुण होते हैं। सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण की मात्राएँ सबमें पाई जाती हैं। जिस प्रकृति के पदार्थों और प्राणियों से हम संपर्क रखते हैं, हमारी अंतःस्थिति भी उसी प्रकार छलने लगती है। हँस पाल कर बढ़ता हुआ सतोगुण और कौआ पाल कर घर में में बढ़ता हुआ तमोगुण कभी भी अनुभव किया जा सकता है। भेड़-बकरी और भैंस को तमोगुण प्रधान माना गया है। गाय में सतोगुण की भारी मात्रा विद्यमान् है। अपने बच्चे के प्रति गाय की ममता प्रसिद्ध है। वह अपने पालन करने वाले तथा उस परिवार को भी बहुत प्यार करती है। जंगलों में शेर, बाघ का सामना होने पर अपने ग्वाले की चारों और से घेर कर गाय झुण्ड बना लेती हैं और अपनी जान पर खेल कर अपने रक्षक को बचाने का त्याग, बलिदान एवं कृतज्ञता आत्मीयता का आदर्श भरा उदाहरण प्रस्तुत करती है। ऐसी आध्यात्मिक विशेषता और किसी प्राणी में नहीं पाई जाती। इस स्तर के उच्च सद्गुण उन लोगों में भी बढ़ते हैं जो उसका दूध पीते हैं। बैल की परिश्रम-शीलता ओर सहिष्णुता प्रख्यात है। यह विशेषताएँ गौ दुग्ध का उपयोग करने वाले में भी बढ़ती है।
गौरस एक सर्वांगपूर्ण परिपुष्ट आहार है। उसमें मानसिक स्फूर्ति एवं आध्यात्मिक सतोगुणी तत्त्वों का बाहुल्य रहता है, इसलिए मनीषियों तथा शास्त्रकारों ने-गाय का वर्चस्व स्वीकार करते हुए उसे पूज्य, संरक्षणीय एवं सेवा के योग्य माना है। गाय की ब्राह्मण से तुलना की है और उसे अवध्य-मारे न जाने योग्य घोषित किया गया है। गोपाष्टमी और गोवर्धन दो त्यौहार ही गौरक्षा की और जनसाधारण का ध्यान स्थिर रखने के लिए बनाये गये हैं। चूँकि ये पहली रोटी गाय के लिए निकालने की परम्परा भी इसीलिये है कि गाय को एक कुटुम्ब का प्राणी समझते रहा जाय। राजा दिलीप जैसे ऐतिहासिक महापुरुषों की गौ-भक्ति प्रसिद्ध है जिसके कारण उन्होंने सुसन्तति प्राप्त की। आज भी वह तथ्य ज्यों का त्यों है। गाय के संपर्क में रहने वाले, गोरस पीने वाले पति-पत्नि निस्सन्देह सुयोग्य और स्वस्थ सन्तान पैदा कर सकते हैं, उनका पुरुषत्व साँड़ की तरह सुस्थिर बना रहता है। पुराणों में गौ भक्ति और गौ सेवा के लिये बहुत कुछ करने वाले सत्पुरुषों के अगणित उदाहरण विद्यमान् है। उस समय-शिक्षा की गुरुकुल प्रणाली थी। हर छात्र को आश्रम की गौएं चरानी पड़ती थी और आहार में गोरस की समुचित मात्रा मिलती थी। उस समय के छात्रों की प्रतीक्षा परिपुष्टता एवं सज्जनता की अभिवृद्धि के जो महत्त्वपूर्ण लाभ मिलते थे, उसमें गौ संपर्क भी एक बहुत बड़ा कारण था।

भारत कृषि प्रधान देश है। यहाँ जुताई, सिंचाई और गुड़ाई, (अन्न को पौधे से अलग करना) के लिए बैल की अनिवार्य आवश्यकता है। गाय का गोबर अपने ढंग का अति उर्वरक खाद्य है। अपने देश की कृषि गौवंश पर निर्भर है। रासायनिक खाद अचार, चटनी की तरह है, उनसे धरती की भूख नहीं बुझ सकती, वह तो गोबर से ही सम्भव है। महंगी बार-बार बिगड़ने वाली, खर्चीली ओर तकनीकी ज्ञान की अपेक्षा रखने वाली मशीनें भारत की कृषि समस्या को हम नहीं कर सकती। अनेक कारणों से यहाँ तो बैल ही सफल होगा। अन्न और दूध हम गौवंश की कृपा से ही प्राप्त कर सकते हैं, इसलिये उसका संरक्षण सब प्रकार से उपयुक्त है।
गोबर से लीपने पर घर रोग कीटाणु मुक्त होते हैं। गौ मूत्र असाध्य रोगों में भी रामबाण औषधि का काम करता है। इनकी गन्ध से विषैले रोगकर्मी अनायास ही मरते हैं और स्वास्थ्य रखा की एक सहज व्यवस्था बनती रहती है।
आवश्यकता है कि हम गौरक्षा पर ध्यान दें और अपनी शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, आर्थिक एवं धार्मिक स्थिति की परिपुष्ट बनाने के लिए इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाये
यह एक दुर्भाग्य ही है कि जिस देश में गौ को पूज्य और गौरक्षा को धर्म माना जाता है, उसी में उसकी सबसे अधिक दुर्गति हो। गौ नस बुरी तरह खराब हो चुकी है। जरा सा दूध देती और बेकार समझी जाती है। कलाई को छुरी के नीचे ही उन्हें आश्रय मिलता है। गौवंश बुरी तरह घटता और नष्ट होता चला जा रहा है। उसका एक मात्र कारण उस ओर बरती जाने वाली हमारी उपेक्षा ही प्रधान कारण है। माँसाहारी देशों में गायें एक-एक मन दूध दें और गौरस की नहरें बहे और हम गौ-भक्तों में उसका दर्शन भी दुर्लभ रहें, यह कैसी विडम्बना है।
हमें चाहिये कि गौ-दूध की उपयोगिता स्वीकार करें और उसी की माँग करें। ऐसी दशा में भैंस पालने वाले सहज ही गौ पालने लगेंगे। जिसकी माँग होगी उसका उत्पादन भी होगा और उसका स्तर भी उठेगा। हम जय गाय की बोलते हैं और दूध भैंस का पीते हैं। इस प्रकार गौरक्षा कैसे सम्भव होगी? जिस दिन जनसाधारण की समझ में गौरस की उपयोगिता आ जाएगी, उसी की माँग की जाएगी तो देखते-देखते यह देश गौधन से भरा-पूरा गौ संवर्धन और गोरस उत्पादन के लिए बड़े पैमाने पर व्यवसायिक स्तर पर काम करें, चाय वालों की तरह गोरस की महत्ता समझने के लिए व्यापक प्रचार करें और धन, पुण्य तथा राष्ट्र की महती सेवा का सुयोग प्राप्त करें। सरकार और जनता ये दोनों वर्ग मिलकर गौरक्षा के लिए कुछ ठोस काम करें, यह आज की एक महती आवश्यकता है।
(‘गौरस बेचन हरि मिलन’ पुस्तिका का एक अंश)
(प. श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा लिखित )

रविवार, 4 फ़रवरी 2018

गौ पूजन से पुण्य फल की प्राप्ति

गौ पूजन से पुण्य फल की प्राप्ति

जिस घर में गौ-पालन किया जाता है उस घर के लोग संस्कारी और सुखी होते हैं। इसके अलावा जीवन-मरण से मोक्ष भी गौमाता ही दिलाती है। मरने से पहले गाय की पूँछ छूते हैं ताकि जीवन में किए गए पाप से मुक्ति मिले।

लोग पूजा-पाठ करके धन पाने की इच्छा रखते हैं लेकिन भाग्य बदलने वाली तो गौ-माता है। उसके दूध से जीवन मिलता है। रोज पंचगव्य का सेवन करने वाले पर तो जहर का भी असर नहीं होता और वह सभी व्याधियों से मुक्त रहता है। गाय के दूध में वे सारे तत्व मौजूद हैं जो जीवन के लिए जरूरी हैं। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि गाय के दूध में सारे पौष्टिक तत्व मौजूद होते हैं। मीरा जहर पीकर जीवित बच गई क्योंकि वे पंचगव्य का सेवन करती थीं। लेकिन कृष्ण को पाने के लिए आज लोगों में मीरा जैसी भावना नहीं बची।

गौ माता की महिमा अपरंपार है। मनुष्य अगर जीवन में गौ माता को स्थान देने का संकल्प कर ले तो वह संकट से बच सकता है। मनुष्य को चाहिए कि वह गाय को मंदिरों और घरों में स्थान दे, क्योंकि गौमाता मोक्ष दिलाती है। पुराणों में भी इसका उल्लेख मिलता है कि गाय की पूँछ छूने मात्र से मुक्ति का मार्ग खुल जाता है।

गाय की महिमा को शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता। मनुष्य अगर गौमाता को महत्व देना सीख ले तो गौ माता उनके दुख दूर कर देती है। गाय हमारे जीवन से जु़ड़ी है। उसके दूध से लेकर मूत्र तक का उपयोग किया जा रहा है। गौमूत्र से बनने वाली दवाएँ बीमारियों को दूर करने के लिए रामबाण मानी जाती है।

रोज सुबह गौ दर्शन हो जाए तो समझ लें कि दिन सुधर गया, क्योंकि गौ-दर्शन के बाद और किसी के दर्शन की आवश्यकता नहीं रह जाती। लोग अपने लिए आलीशान इमारतें बना रहे हैं यदि इतना धन कमाने वाले अपनी कमाई का एक हिस्सा भी गौ सेवा और उसकी रक्षा के लिए खर्च करें तो गौमाता उनकी रक्षा करेगी। इसलिए गौ दर्शन सबसे सर्वोत्तम माना जाता है।

गाय और ब्राह्मण कभी साथ नहीं छोड़ते हैं लेकिन आज के लोगों ने दोनों का ही साथ छोड़ दिया है। जब पांडव वन जा रहे थे तो उन्होंने भी गाय और ब्राह्मण का साथ माँगा था। समय के बदलते दौर में राम, कृष्ण और परशुराम आते रहे और उन्होंने भी गायों और संतों के उद्धार का काम किया। इसकी बड़ी महिमा सूरदास और तुलसीदास ने गौ कथा का वर्णन किया है।

लोग दृश्य देवी की पूजा नहीं करते और अदृश्य देवता की तलाश में भटकते रहते हैं। उनको नहीं मालूम की भविष्य में बड़ी समस्याओं का हल भी गाय से मिलने वाले उत्पादों से मिल सकता है। आने वाले दिनों में संकट के समय गौमाता ही लोगों की रक्षा करेंगी। इस सच्चाई से लोग अनजान हैं

गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

गौ-रक्षा के लिए, संत कबीर ने शादी से भी कर दिया था इंकार !

गौ-रक्षा के लिए, संत कबीर ने शादी से भी कर दिया था इंकार !

एक दिन=समय गोसाईं कबीर पूरब की धरती नगर बनारस में रहते थे। जब कबीर अठारह बरस के भए तो उनके माता-पिता ने विचारा कि इसका ब्याह कर दिया जाए। कबीर बहुत उदासीन हो रहा है, क्या पता ब्याहे का मन टिक जाए, कबीर को ब्याह ही दें।
जहां पर कबीर को बुलवाया गया था, वहां पर कबीर का होने वाला ससुर पूछने लगा : अरे भाई समधियो ! इसे हमारे यहां ब्याह दो। तब कबीर के मां-बाप ने कहा कि भला होए जी ! चलिए ब्राह्मण से जा कर पूछते हैं, जो साहा जुड़े वह साहा मान लेते हैं। तब कबीर का पिता और ससुर उठ खड़े हुए और मिल कर ब्राह्मण के पास गए। पत्री कढाई, साहा निर्मल निकला, ब्राह्मण से साहा जुड़ाया, साहा जोड़- बांध कर दोनों के हाथ में थमा दिया गया। उसे लेकर कबीर का पिता और भावी ससुर अपने-अपने घर चले आए।
अनाज की सामग्री एकत्र की जाने लगी। घी-शक्कर लिया, चावल-दही लिया। और कबीर का जो काका था, कबीर के बाप का छोटा भाई, तिसको काका कहते हैं। वह कबीर जी का काका जाकर एक गाय मोल ले आया वध करने के निमित्त। तब परिवार के लोग कह उठे कि कबीर का काका एक गाय वध करने को ले लाया है। जब गोसाईं कबीर ने सुना कि काका जी गाय वध करने को ले आया है, तब कबीर बाहर आए। जब देखा कि काका जी गाय ले आया है, तब कबीर जी ने पूछा : ऐ काका जी ! यह गऊ तुम काहे को लाए हो। तब कबीर के काका ने कहा : कबीर ! यह गऊ वध करने को लायी गई है।
तब कबीर ने यह बानी बोली राग गुजरी में :
काका ऐसा काम न कीजै।
इह गऊ ब्रहमन कउ दीजै।। रहाउ ।।
तिसका परमार्थ : तब गोसाईं कबीर ने कहा : काका जी ! यह गऊ वध नहीं करनी है, यह गऊ ब्राह्मण को दे दीजिए। यह गऊ वध करने योग्य नहीं, ब्राह्मण को देने योग्य है। तब गोसाईं कबीर के काका ने कहा : गाय वध किए बिना हमारा कारज नहीं संवरता। यहां बहुत लोग जुड़ेंगे। जब गोवध करेंगे तब ही किसी महमान आए का आदर होगा। तुम यह गोवध मना मत करो।
तब गोसाईं कबीर ने यह बानी बोली :
रोमि रोमि उआ के देवता बसत है।। ब्रहम बसै रग माही।
बैतरनी मिरतक मुकति करत है। सा तुम छेदहु नाही।।
तिसका परमार्थ : तब गोसाईं कबीर ने कहा : काका जी ! तुम इस गऊ के गुण सुन लो। इस गऊ के जितने रोम हैं, इसके रोम-रोम में देवता बसते हैं। और इसकी रगों में स्वयं ब्रह्म ही बसता है। और जी ! इसका एक यह बड़ा गुण है कि वैतरणी मृतक चलते-चलते ब्राह्मण को मिलती है। तब उस मृतक को वह गऊ भव जल तार देती है। ऐसी यह गऊ है जी। इस गऊ का नाम भवजल-तारिणी है जी। इस गऊ का वध करना ठीक नहीं। यह गऊ तुम ब्राह्मण के प्रति धर्मार्थ दे दो जी।
काका कहने लगा : तू यह कहता है कि यह गऊ ब्राह्मण को दे दो और हमारे बड़े बुज़ुर्ग इसे कोह=मार कर लोगों को खिलाते थे। हमें भी उसी राह चलना चाहिए। यदि ऐसा नहीं करेंगे तो लोग कहेंगे कि ये गुमराह हो गए हैं, इनसे यह चीज़ होने को न आई। कबीर जी ! गऊ वध करनी ही भली है। इसे, छोड़ देना हमें समझ नहीं आता। बलिहारी जाऊं कबीर जी ! यह गुनाह हमें बख़्शो जी।
तब गोसाईं कबीर ने यह बानी बोली :
दूधु दही घृत अंब्रित देती। निरमल जा की काइआ।
गोबरि जा के धरती सूची। सा तै आणी गाइआ।।
तिसका परमार्थ : तब गोसाईं कबीर ने कहा : सुनिए काका जी ! यह गाय जो है सो कैसी है, पहले इसका गुण सुन लें कि यह गाय कैसी है। यह गाय ऐसी है जी : यह दूध देती है, तिसका दही होता है जी। दूध से खीर होती है। दही से अमृत वस्तु घृत निकलता है जी। उस से सब भोजन पवित्र होते हैं जी। देवताओं-सुरों नरों को भोग चढ़ता है। इस घृत का धूप वैकुण्ठ लोक जाता है। ठाकुर जी को दूध-दही-घृत भोग चढ़ता है जी और इस गऊ की काया जो है सो निर्मल है। जी ऐसी निर्मला यह गऊ है जिसके गोबर से धरती पवित्र होती है, उसका तुम बुरा चाहते हो ! सो इस बात में तुम्हारा भला नहीं। बलिहार जाऊं काका जी ! यह गऊ तुम ब्राह्मण को दे दो जी, वध करने में भला नहीं।
तब फिर उन कबीर के बाबा=पिता और चाचा ने कहा : जिन शरीकों=रिश्तेदारों भाइयों के यहां हमने यह वस्तु खायी थी वह तो उनको भी खिलानी चाहिए। यदि हम उन्हें यह खिलाएंगे नहीं तो वे उठ जाएंगे। अतः पुत्र जी ! गऊ अवश्य वध करनी चाहिए। ऐसे हमारी इज़्ज़त नहीं रहती।
तब गोसाईं कबीर ने यह बानी बोली :
काहे कउ तुमि बीआहु करतु हउ । कहत कबीर बीचारी।
जिसु कारणि तुमि गऊ बिणासहु। सा हमि छोडी नारी।।
तिसका परमार्थ : तब गोसाईं कबीर ने कहा : सुनिए बाबा-काका जी ! तुम जो हमारा ब्याह करते हो सो किस कारण करते हो जी। जिस कारण तुम गऊ विनाशते हो जी कि हमारा कारज संवरे, वह तुम अपना कारज रख छोड़ो। हमने वह स्त्री ही छोड़ी तो तुम किसका ब्याह करते हो। हमने वह नारी ही छोड़ दी। अजी ! तुम जानो और तुम्हारा ब्याह। हमने तो वह नारी ही छोड़ दी जी।
इस प्रकार जब गोसाईं कबीर कुपित हो उठे, तब उन सभी का अभिमान छिटक गया। उन्होंने आपस में मसलत करी कि जिस कबीर ने यह बात कही है वह ब्याह न करेगा। आओ अब यह गऊ ब्राह्मण को दे दें और हम सीधा अनाज करें जैसा कबीर कहता है।
तब कबीर गोसाईं के पास परिवार के सब लोग मिल कर आए और बोले : भला हो कबीर जी ! जैसा तेरा जी है वैसा ही करेंगे। यह गऊ ब्राह्मण को दीजिए जी। और जो प्रसाद=भोजन तुम कहते हो हम वही प्रसाद सेवन करेंगे जी। बस ! तुम अब स्त्री न छोड़ो जी, अब तुम स्त्री ब्याह लो। तब गोसाईं कबीर ने कहा : न बाबा जी ! हमारे मुख से निकल चुका है, सो अब मैं स्त्री नहीं ब्याहता। तब जितना परिवार था सब कबीर जी को निवेदन करने लगे कि ना जी ! अब हमने गऊ छोड़ दी तो तुम स्त्री न छोड़ो जी।तब गोसाईं कबीर ने कहा : मैं स्त्री तभी न छोड़ूंगा जी जब तुम स्त्री के मां-बाप को भी जाकर कहो कि गोवध नहीं करना। यदि तुम्हारे कहने लगकर वे गोवध नहीं करेंगे तो मैं उस स्त्री से ब्याह कर लूंगा। यदि वे गोवध करेंगे तो मैं वहां न जाऊंगा, न ही मैं वह स्त्री ब्याह कर लाऊंगा।
तब उन्होंने कहा : भला हो जी ! वे लोग चलते-चलते उनके पास पहुंचे और बोले : भाई रे ! हमने जो गऊ वध के लिए लायी थी वह कबीर ने ब्राह्मण को दिलवा दी। उन्होंने सारी बात कह सुनाई कि यह बात ऐसे-ऐसे घटी है। अब कबीर कहता है कि हमारे सास-ससुर को कहो कि हम तब ही तुम्हारे घर आवेंगे जब तुम गोवध न करोगे। तब उन लोगों ने कहा : भाड़ में जाए वह बात जो कबीर जी को न भावे। हम तो तुम्हारे लिए ही गोवध करने वाले थे। क्यों जी ! जब तुम्हीं ख़ुश हो तो हम गोवध नहीं करेंगे। तब कबीर के परिवारी लोग बोले : हमें इस बात में खरी ख़ुशी होगी, यदि तुम लोग गोवध न करो। तब सब मिल कर कबीर जी के पास लौट आए। माता-पिता और सास-ससुर सबने आकर नमस्कार किया और कहा : कबीर जी ! जो तुमने कहा वह हम सबने मान लिया। हमने गाय छोड़ दी जी। पर अब तुम जो आज्ञा करोगे हम वैसा ही प्रसाद बनाएंगे बारात के आवभगत के लिए।
तब गोसाईं कबीर ने कहा : अब तुम यही प्रसाद करो : यही शक्कर-भात-घी-दही मिश्रित प्रसाद करो। तुम्हारा भला होगा।
तब उन लोगों ने गोसाईं कबीर से कहा : भला जी ! हम यही प्रसाद बनाएंगे जी। पर जी ! अब तो तुम्हें ख़ुशी है न हमारे ऊपर। तब गोसाईं कबीर ने कहा : तुम्हारे ऊपर ठाकुर जी की ख़ुशी है, तुम्हारा भला होगा। तब वे सास-ससुर अपने घर चले गए। इधर बाबा-काका-परिवार के सब लोग ख़ुश हुए। इस प्रकार गोसाईं कबीर ब्याहे गए और राम-नाम स्मरण करने लगे।
जनमसाखी भगत कबीर जी की
मूल पंजाबी रचयिता : सोढी मनोहरदास मेहरबान
रचनाकाल : १६६७ विक्रमी, साखी नं• ४ का अनुवाद
राजेन्द्र सिंह(हिन्दी अनुवादक)