आज संसार में पशुओं का उत्पीडन जिस बुरी तरह से किया जा रहा है उसे देखकर किसी भी भावनाशील का ह्रदय दया से भरकर कराह उठता है। पशुओं पर होने वाला अत्याचार मनुता पर एक कलंक है। समस्त प्राणी-जगत में सबसे श्रेष्ट कहे जाने वाले मनुष्य का पशुओं के साथ क्रूरता करना कहाँ तक जायज़ है। साधारण-सी बात है कि संसार में रहने वाले सारे प्राणियों को उस एक ही परमिपता परमेश्वर ने जन्म दिया है। इस नाते वे सब आपस मैं भाई-बहन ही है, बुद्धि, विवेक तथा अधिकारों की दृष्टि से मनुष्य उन सबमे में बड़ा है और समस्त अन्य प्राणी उसके छोटे भाई-बहन है । बड़े तथा बुद्धिमान होने के कारण मनुष्य का धर्म है कि वह अपने छोटे जीव-जन्तुओ पर दया करे, उन्हें कष्ट से बचाए, पाले और रक्षा करे। किन्तु खेद है, कि बड़े भाई का कर्त्तव्य निभाने के बजाय मनुष्य उनसे क्रूरता का व्यवहार करता है। समता, दया एवं करुना के आधार पर ‘वसुधैव कुटुकम्’ का महान् सिद्धांत सनातन धर्मं समेत सभी धर्मो की आधारिशला है। यदि धर्म से दया तथा करूणा का निकाल दिया जाये तो वह एक महान् धर्म न रहकर न जाने कौन-सा रूप धारण कर ले। संसार के सारे धर्मो में जीवो पर दया करने का निर्देश दिया गया है। जब तक मनुष्य जीवो के लिए दया, और सनानुभुति नहीं रखेगा, भौतिक विकास तो हो संभव है लेकिन वास्तविक सुख-शांति नहीं मिल सकती । मनुष्य पशु पर कितना और किस – किस प्रकार से अत्याचार और उत्पीड़न करता है, इसको आये दिन सामान्य जीवन मैं देखा जा सकता है। और भी दुःख एवं खेद की बात है कि मनुष्य का यह अत्याचार उन्ही जीव-जन्तुओ पर चल रहा है जो उसके लिये उपयोगी, सेवक तथा सुख-दुःख के साथी तथा बच्चो की तरह ही भोले, निरीह और आज्ञाकारी है ।
गाय, बैल, भेंस, भेंसा, घोड़ा, गधा, बकरी आदि मनुष्य के युग-युग के साथी और बहुत ही उपयोगी साधन है । किन्तु मनुष्य उन पर कितना अत्याचार करता है, यह किसी से छिपा नहीं है। गाय पालते है , उससे दूध लेते है और बूढ़ी अथवा दूध न देने की स्थिति में या तो मारकर घर से निकाल देते है अथवा कसाई के हाथ कटने को बेच देते है। इतना ही नहीं, उसके जरा भी गलती करने पर अथवा कोई अप्रिय अभिव्यक्ति करने पर उस पर यह सोचे बिना डंडे बरसाने लगते है कि आखिर यह है तो एक पशु ही, गलती कर सकती है। अपने खेत पर आ जाने पर तो लोग दूसरों के जानवरों को इस बुरी तरह मारते है कि बेचारे कभी-कभी तो चीखकर गिर तक पड़ते है । बैल-भसों पर तो मनुष्य का अत्याचार देखकर यही लगता है कि यह बेचारे पशु अपने पूर्व जन्म के पापों का दंड पा रहे है और इनका वाहक मनुष्य न होकर मनुष्य रूप में यमराज है जो कि असहनीय यंत्रणा दे रहा है। गर्मी की दोपहरी में गाड़ी-ठेले पर तीस-तीस मन बोझ ढोने अथवा हल में चलने वाले अधिकाँश बैल-भैसों के कंधे घायल रहते है, वे जुआ अथवा हल की रगड़ से कट जाते है किन्तु उनका क्रूर स्वामी उसकी कोई परवाह न कर उन्ही घायल बैल-भैसों कों पर जुआ रख देते है, जिससे उस पीड़ित पशु के कंधो में स्थाई घाव हो जाता है जो फिर आजीवन अच्छा नहीं होता
भारतीय संविधान के अनुच्छे 51(A) के मुताबिक हर जीवित प्राणी के प्रति सहानुभूति रखना भारत के हर नागरिक का मूल कर्तव्य है। पशुओं के प्रति क्रूरता रोकथाम अधिनियम (Prevention of Cruelty to Animals Act) भारतीय संसद द्वारा १९६० में पारित एक अधिनियम है जिसका उद्देश्य पशुओं को दी जाने वाली अनावश्यक पीड़ा और कष्ट को रोकना है। पशुओं के साथ निर्दयता का अर्थ है मानव के अतिरिक्त अन्य पशुओं को नुकसान पहुँचाना या कष्ट देना। कुछ लोग इस परिभाषा को और अधिक व्यापक कर देते हैं और उनका मत है कि किसी विशिष्त लाभ के लिये पशुओं का नुकसान (जैसे वध करना) पशुओं के साथ निर्दयता के अन्तर्गत आता है।
(2) उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिए किसी स्वामी के बारे में यह तब समझा जाएगा कि उसने अपराध किया है जब वह ऐसे अपराध के निवारण के लिए समुचित देख-रेख और पयर्वेक्षण करने में असफल रहा हो : परन्तु जहां स्वामी केवल इसी कारण क्रूरता होने देने के लिए दोषी सिद्ध किया जाता है कि वह ऐसी देख-रेख और पयर्वेक्षण करने में असफल रहा है वहां वह जुमार्ने के विकल्प के बिना कारावास का दायी नहीं होगा।
(3) इस धारा के प्रावधान निम्नवर्णित कृत्यों पर लागू नहीं होंगे : (ए) निर्धारित प्रक्रिया से पशुओं के सींग काटना, बन्ध्याकरण करना, चिन्हीकरण तथा नकेल डालना।
(बी) आवारा कुत्तों को निर्धारित रीति से निर्धारित स्थानों (प्राणहांर कछो) में नष्ट किया जाना।
(सी) मनुष्यों के भोजन के लिए किसी पशु के विनष्टीकरण अथवा विनष्टीकरण के लिए तैयारी के दौरान कोई ऐसा कृत्य करना अथवा न करना, यदि विनष्टीकरण के लिए तैयारी से उस पशु को अनावश्यक पीड़ा व कष्ट न होता हो।
(दी) तत्समय प्रवत किसी विधि के प्राधिकार के अधीन किसी पशु का उन्मूलन करना या उसे नष्ट करना ।
(इ) कोई विषय, जो अध्याय 4 में वर्णित है ।
धारा 12 – फूका या डूम देव प्रक्रिया करने पर दंड यदि कोई व्यक्ति किसी गाय या अन्य दुधारू पशु पर ऐसी शल्य-क्रिया करे जिसे ‘फूका‘ या ‘डूम देव‘ कहा जाता है या अन्य प्रक्रिया जिसमें किसी भी पदार्थ का इंजेक्शन लगाए जिसका उद्देश्य अधिक दूध दुहना हो परन्तु जो पशु के स्वास्थ्य के लिए घातक हो या कोई व्यक्ति ऐसी प्रक्रिया अपने कब्जे या नियंत्रण के पशु पर करने की अनुमति देता हो तो उसे ऐसे अर्थदण्ड से दंडित किया जाएगा जो एक हजार रुपए तक हो या ऐसे कारावास से जो दो वर्षों तक हो सकेगा या दोनों से दंडित किया जा सकेगा और जिस पशुओं पर ऐसी प्रक्रिया की जाए वह सरकार के हित में जप्त कर लिया जायेगा।
धारा 28 – धर्म द्वारा निर्धारित ढंग से कत्ल संबंधी छूट किसी समुदाय के धर्म द्वारा वांछित रीति से किसी पशुओं का कत्ल इस अधिनियम के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।
धारा 29 – न्यायालय द्वारा दोष सिद्ध व्यक्ति को पशु के स्वामित्य से वंचित करना।
(1) यदि किसी पशु का स्वामी इस अधिनियम के अंतर्गत किसी अपराध के लिए दोषी पाया जाए, तो उसे उस दोष सिद्धि पर, यदि न्यायालय उचित समझे तो, अन्य सजा के अतिरिक्त, जिस पशु के संबंध में अपराधकिया गया उसके लिए, एक आदेश पारित कर सकता है कि वह पशु सरकार के पक्ष में जप्त माना जाएगा और साथ ही उस पशु के व्ययन ;क्पेचवेंसद्ध के लिए परिस्थितियों के अनुसार जैसा उपयुक्त समझे, आदेश दे सकेगा।
(2) उपधारा (1) के अंतर्गत कोई आदेश पारित नहीं किया जाएगा जब तक कि साक्ष्य द्वारा यह नहीं दिखे कि इस अधिनियम में पूर्व में दोष सिद्धि हुई थी या स्वामी के चरित्र के बारे में या अन्यथा पशु के साथ व्यवहार के बारे में, कि यदि पशु उसके स्वामी के साथ रखा गया तो यह संभावना है कि उसे आगे भी क्रूरता का सामना करना पड़ेगा।
(3) उपधारा (1) में किए प्रावधान को आंच पहुंचाए बिना, न्यायालय यह भी आदेश दे सकेगा कि इस अधिनियम के अंतर्गत किसी अपराध के लिए दोष सिद्ध व्यक्ति या स्थायी रूप से या आदेश में तय की गई अवधि के लिए किसी भी प्रकार के किसी पशु को धारित करने से वंचित रहेगा या न्यायालय जैसा उचित समझे, आदेश में निर्दिष्ट किसी प्रजाति या प्रकार का कोई पशु धारित नहीं करेगा।
(4) उपधारा (3) में कोई आदेश पारित नहीं किया जाएगा, जब तक कि निम्नांकित स्थिति न हो :- (क) उपधारा (3) के अंतर्गत तब तक कोई आदेश न दिया जाए जब तक कि पिछली किसी दोष सिद्धि के साक्ष्य से यह ज्ञात न हो जाए कि उस व्यक्ति का चरित्र कैसा था, उस पशु के साथ उसका व्यवहार कैसा था जिसके लिए उसे दोषी पाया गया है और यदि यह पशु इस व्यक्ति की अभिरक्षा में रहता तो उसके प्रति क्रूरता किए जाने की संभावना थी।
(ख) जिस शिकायत के आधार पर उसे दोषी पाया गया था, उसमें यह कहा गया है कि अभियुक्त की दोष सिद्धि के बारे में शिकायत की यह मंशा थी और उसमें पूर्वोक्तानुसार कोई आदेश पारित करने का अनुरोध किया गया था।
(ग) जिस अपराध के लिए उसे दोषी पाया गया था ऐसे किसी क्षेत्र में किया गया था जिसमें तत्समय प्रभावी कानून के अनुसार उस पशु को रखने के लिए कोई लाइसेन्स आवश्यक था, जिस पशु के लिए उसे दोषी पाया गया था।
5. तत्समय प्रभावी किसी कानून में इसके विपरीत किसी प्रावधान के होने के बावजूद ऐसा कोई व्यक्ति जिसके विषय में उपधारा (3) के अंतर्गत कोई आदेश दिया गया है उसे कोई अधिकार नहीं है कि वह उस आदेश के विपरीत किसी पशु को अभिरक्षा में रखे और यदि वह किसी आदेश के प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो उसे एक सौ रुपये तक के जुर्माने या तीन वर्ष तक की अवधि के कारावास या एक साथ दोनों दण्ड दिए जाएंगे।
धारा 30 – कुछ प्रकरणों में दोष संबंधी उपधारणा यदि किसी व्यक्ति पर धारा 11 की उपधारा (1)(एल) के प्रावधान का उल्लंघन कर बकरी, गाय उसकी संतति के कत्ल के अपराधों का आरोप हो और जिस समय आरोपित अपराध किया गया, यह सिद्ध हो कि उस समय में उसे आधिपत्य में इस धारा में संदर्भित पशु का चमड़ा पाया जाए तो, जब तक विपरीत सिद्ध न हो, यह उपधारणा की जाएगी कि वह पशु क्रूर तरीके से कत्ल किया गया।
धारा 31 – अपराधों की प्रसंज्ञेयता दंड प्रक्रिया संहिता 1898 में विपरीत कथन के रहते हुए भी, धारा 11 की उपधारा (1)(एल) या (एन) या (ओ) या धारा 12 के अंतर्गत दंडनीय अपराध, उस संहिता में प्रसंज्ञेय अपराध माने जायेंगे।
धारा 32 – तलाशी और जप्ती की शक्तियां
(1) यदि उप-निरीक्षक से अन्यून कोई पुलिस अधिकारी या इस हेतु राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति को यह विश्वास होने का कारण हो कि धारा 30 में संदर्भित पशु के संदर्भ में, धारा 11 की उपधारा (1)(एल) के संबंध में कोई अपराध हुआ है या किसी व्यक्ति के आधिपत्य में, ऐसे पशु का चमड़ा, उससे जुड़े हुए सिर के चमड़े के किसी भाग सहित पाया जाए तो वह उस स्थान में प्रवेश कर, तलाशी कर सकेगा या ऐसे स्थान जहां पर ऐसा चमड़ा पाया जा सकता है उसमें प्रवेश और तलाशी कर सकेगा और ऐसे अपराध की कारिति में उपयोग उद्देश्य से किसी वस्तु, पदार्थ या चमड़े को जप्त कर सकेगा।
(2) यदि उप-निरीक्षक से अन्यून कोई पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति को विश्वास करने के कारण हो कि उसके क्षेत्राधिकार में किसी पशु पर धारा 12 में संदर्भित ‘फूका‘ या ‘डूम देव‘ या अन्य किसी प्रकार की शल्य-क्रिया अभी-अभी हुई या होने की संभावना है तो वह ऐसे किसी भी स्थान में, जहां ऐसे पशु के होने की संभावना हो, प्रवेश कर सकता है, पशु को जप्त कर सकता है और जिस क्षेत्र में पशु जप्त किया गया उसके प्रभारी पशुचिकित्सक अधिकारी के समक्ष परीक्षण के लिए प्रस्तुत कर सकता है।
धारा 33 – तलाशी वारंट (1) यदि प्रथम या द्वितीय श्रेणी प्रेसीडेंसी दंडाधिकारी या पुलिस आयुक्त या जिला-पुलिस-अधीक्षक को लिखित सूचना मिलने पर और जैसी वह उचित समझे जांच के बाद यह विश्वास करने का कारण हो कि इस अधिनियम के अंतर्गत किसी स्थान पर कोई अपराध होने जा रहा है, या हो रहा है या हो चुका है, तब या तो वह स्वयं प्रवेश कर सकता है और तलाशी कर सकता है या उसके द्वारा जारी वारंट से, उप-निरीक्षक से अन्यून किसी पुलिस अधिकारी को प्रवेश और तलाशी हेतु अधिकृत कर सकता है। (2) इस अधिनियम के अंतर्गत तलाशियों के लिए, दंड प्रक्रिया संहिता 1898 के प्रावधान, जहां तक लागू करना संभव हों, लागू होंगे।
धारा 35 – पशुओं का उपचार और देखभाल (1) राज्य सरकार, सामान्य या विशेष आदेश से जिन पशुओं के संबंध में अपराध हुए हों, उनके उपचार और देखरेख के लिए उपचार-गृह स्थापित कर सकती है और दंडाधिकारी के समक्ष प्रस्तुति लंबित रहते उन उपचार गृहों में पशुओं को रखे रहने के लिए अधिकृत कर सकती है।
धारा 36 – अभियोजनों की परिसीमा अपराध घटित होने के तीन माह समाप्त होने के बाद उसका अभियोजन दर्ज नहीं किया जाएगा।
गाय, बैल, भेंस, भेंसा, घोड़ा, गधा, बकरी आदि मनुष्य के युग-युग के साथी और बहुत ही उपयोगी साधन है । किन्तु मनुष्य उन पर कितना अत्याचार करता है, यह किसी से छिपा नहीं है। गाय पालते है , उससे दूध लेते है और बूढ़ी अथवा दूध न देने की स्थिति में या तो मारकर घर से निकाल देते है अथवा कसाई के हाथ कटने को बेच देते है। इतना ही नहीं, उसके जरा भी गलती करने पर अथवा कोई अप्रिय अभिव्यक्ति करने पर उस पर यह सोचे बिना डंडे बरसाने लगते है कि आखिर यह है तो एक पशु ही, गलती कर सकती है। अपने खेत पर आ जाने पर तो लोग दूसरों के जानवरों को इस बुरी तरह मारते है कि बेचारे कभी-कभी तो चीखकर गिर तक पड़ते है । बैल-भसों पर तो मनुष्य का अत्याचार देखकर यही लगता है कि यह बेचारे पशु अपने पूर्व जन्म के पापों का दंड पा रहे है और इनका वाहक मनुष्य न होकर मनुष्य रूप में यमराज है जो कि असहनीय यंत्रणा दे रहा है। गर्मी की दोपहरी में गाड़ी-ठेले पर तीस-तीस मन बोझ ढोने अथवा हल में चलने वाले अधिकाँश बैल-भैसों के कंधे घायल रहते है, वे जुआ अथवा हल की रगड़ से कट जाते है किन्तु उनका क्रूर स्वामी उसकी कोई परवाह न कर उन्ही घायल बैल-भैसों कों पर जुआ रख देते है, जिससे उस पीड़ित पशु के कंधो में स्थाई घाव हो जाता है जो फिर आजीवन अच्छा नहीं होता
भारतीय संविधान के अनुच्छे 51(A) के मुताबिक हर जीवित प्राणी के प्रति सहानुभूति रखना भारत के हर नागरिक का मूल कर्तव्य है। पशुओं के प्रति क्रूरता रोकथाम अधिनियम (Prevention of Cruelty to Animals Act) भारतीय संसद द्वारा १९६० में पारित एक अधिनियम है जिसका उद्देश्य पशुओं को दी जाने वाली अनावश्यक पीड़ा और कष्ट को रोकना है। पशुओं के साथ निर्दयता का अर्थ है मानव के अतिरिक्त अन्य पशुओं को नुकसान पहुँचाना या कष्ट देना। कुछ लोग इस परिभाषा को और अधिक व्यापक कर देते हैं और उनका मत है कि किसी विशिष्त लाभ के लिये पशुओं का नुकसान (जैसे वध करना) पशुओं के साथ निर्दयता के अन्तर्गत आता है।
धारा 11 – (1) यदि कोई व्यक्ति
- किसी पशु को अनावश्यक पीड़ा या यातना पहुंचाने हेतु मारता है, लात लगाता है, अधिक सवारी करता या अधिक हांकता है, अधिक बोझा लादता है, दुःखी, क्लेशित करता है या अन्यथा ऐसा व्यवहार करता या करवाता है या स्वामी होने के नाते ऐसा करने की अनुमति देता है।
- उम्र या किसी रोग या शारीरिक अशक्तता, घाव, सड़न या अन्य कारण से ऐसे कार्य में लेने में अशक्त पशु को नियोजित करना, श्रम करवाना या अन्य प्रयोजन करवाना या पशु के स्वामी होने के नाते ऐसे किसी पशु को कार्य में लेने की अनुमति देता है ।
- किसी पशु को जानबूझ कर और अनुचित प्रकार से कोई हानिप्रद मादक द्रव्य या हानिप्रद पदार्थ देता है या किसी पशु को जानबूझकर और अनुचित प्रकार से मादक द्रव्य या हानिप्रद पदार्थ देने का प्रयत्न करता या कारित करता है।
- किसी पशु को अनावश्यक पीड़ा या यातना हो इस तरीके या स्थिति में ले जाता है या वाहन में या वाहन पर या अन्यथा परिवहन करता है।
- किसी पशु को ऐसे पिंजरे या अन्य पात्र में रखेगा या परिरुध्र करेगा, जिसकी ऊंचाई, लम्बाई और चौड़ाई इतनी पर्याप्त न हो पशु को उसम हिल -डुल सकने का उचित स्थान न हो सके । किसी पशु को अनुचित रूप से छोटी या अनुचित रूप से भारी किसी जंजीर या रस्सी में किसी अनुचित अवधि तक के लिए बांधकर रखना ।
- स्वामी होते हुए, किसी ऐसे कुत्ते को, जो अभ्यासत: जंजीर में बंधा रहता है या बंद रखा जाता है, उचित रूप से व्यायाम करने या करवाने की उपेक्षा करना।
- किसी पशु का स्वामी होते हुए उस पशु को पर्याप्त भोजन, पानी और शरण दे पाने में असफल होता है ।
- बिना औचित्यपूर्ण कारण के किसी पशु को ऐसी परिस्थितियों में छोड़ देता है कि उसे भूख-प्यास के कारण पीड़ा होने की संभावना हो ।
- किसी पशु को, उसका स्वामी जानबूझ कर किसी गलीकूचे में आवारा घूमने की छूट देता है जबकि वह पशु छूत या संक्रामक रोग से पीड़ित हो या बिना औचित्यपूर्ण कारण के, रोगी या अशक्त पशु, जिसका वह स्वामी है, को गलीकूचे में मर जाने देता है ।
- किसी ऐसे पशु को बिक्री के लिए प्रस्तुत करेगा, या बिना किसी उचित कारण के अपने कब्जे म रखेगा, जो अंगिवच्छेद, भुखमरी, प्यास, अतिभरण या अन्य दुव्यर्वहार के कारण पीड़ाग्रस्त हो ।
- किसी पशु का अंगिवच् छेद करेगा या किसी पशु को (जिसके अन्तगर्त आवारा कुत्ते भी है) हृदय में स्टिकनीन अन्तःक्षेपण की पधति का उपयोग करके या किसी अनावश्यक क्रूर ढंग से मार डालना ।
- केवल मनोरंजन करने के उदेश्य से
- (i) किसी पशु को ऐसी रीति से परिरुध्य करेगा या कराएगा (जिसके अन्तगर्त किसी पशु का किसी अन्य घर् या अन्य पशु वन में चारे के रूप म बांधा जाना भी है) कि वह किसी अन्य पशु का शिकार बन जाए ; अथवा
- (ii) किसी पशु को किसी अन्य पशु के साथ लड़ने के लिए या उसे सताने के लिए उद्दीप करना।
- पशु की लड़ाई के लिए या किसी पशु को सताने के प्रयोजनार्थ किसी स्थान को सुव्यविस्थत करेगा, बनाए रखेगा उसका उपयोग करेगा, या उसके प्रबंध के लिए कोई कार्य करेगा या किसी स्थान को इस प्रकार उपयोग में लाने देगा या तदर्थ प्रस्ताव करेगा, या ऐसे किसी प्रयोजन के लिए रखे गए या उपयोग में लाए गए किसी स्थान में किसी अन्य व्यक्ति के प्रवेश के लिए धन प्राप्त करेगा ।
- गोली चलाने या निशानेबाजी के किसी मैच या प्रतितयोगता को, जहां पशु को बंधुआ हालत से इसीलिए छोड़ दिया जाता है कि उन पर गोली चलाई जाए या उन्हें निशाना बनाया जाए, बढ़ावा देना या उसमें भाग लेगा ।
(2) उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिए किसी स्वामी के बारे में यह तब समझा जाएगा कि उसने अपराध किया है जब वह ऐसे अपराध के निवारण के लिए समुचित देख-रेख और पयर्वेक्षण करने में असफल रहा हो : परन्तु जहां स्वामी केवल इसी कारण क्रूरता होने देने के लिए दोषी सिद्ध किया जाता है कि वह ऐसी देख-रेख और पयर्वेक्षण करने में असफल रहा है वहां वह जुमार्ने के विकल्प के बिना कारावास का दायी नहीं होगा।
(3) इस धारा के प्रावधान निम्नवर्णित कृत्यों पर लागू नहीं होंगे : (ए) निर्धारित प्रक्रिया से पशुओं के सींग काटना, बन्ध्याकरण करना, चिन्हीकरण तथा नकेल डालना।
(बी) आवारा कुत्तों को निर्धारित रीति से निर्धारित स्थानों (प्राणहांर कछो) में नष्ट किया जाना।
(सी) मनुष्यों के भोजन के लिए किसी पशु के विनष्टीकरण अथवा विनष्टीकरण के लिए तैयारी के दौरान कोई ऐसा कृत्य करना अथवा न करना, यदि विनष्टीकरण के लिए तैयारी से उस पशु को अनावश्यक पीड़ा व कष्ट न होता हो।
(दी) तत्समय प्रवत किसी विधि के प्राधिकार के अधीन किसी पशु का उन्मूलन करना या उसे नष्ट करना ।
(इ) कोई विषय, जो अध्याय 4 में वर्णित है ।
धारा 12 – फूका या डूम देव प्रक्रिया करने पर दंड यदि कोई व्यक्ति किसी गाय या अन्य दुधारू पशु पर ऐसी शल्य-क्रिया करे जिसे ‘फूका‘ या ‘डूम देव‘ कहा जाता है या अन्य प्रक्रिया जिसमें किसी भी पदार्थ का इंजेक्शन लगाए जिसका उद्देश्य अधिक दूध दुहना हो परन्तु जो पशु के स्वास्थ्य के लिए घातक हो या कोई व्यक्ति ऐसी प्रक्रिया अपने कब्जे या नियंत्रण के पशु पर करने की अनुमति देता हो तो उसे ऐसे अर्थदण्ड से दंडित किया जाएगा जो एक हजार रुपए तक हो या ऐसे कारावास से जो दो वर्षों तक हो सकेगा या दोनों से दंडित किया जा सकेगा और जिस पशुओं पर ऐसी प्रक्रिया की जाए वह सरकार के हित में जप्त कर लिया जायेगा।
धारा 28 – धर्म द्वारा निर्धारित ढंग से कत्ल संबंधी छूट किसी समुदाय के धर्म द्वारा वांछित रीति से किसी पशुओं का कत्ल इस अधिनियम के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।
धारा 29 – न्यायालय द्वारा दोष सिद्ध व्यक्ति को पशु के स्वामित्य से वंचित करना।
(1) यदि किसी पशु का स्वामी इस अधिनियम के अंतर्गत किसी अपराध के लिए दोषी पाया जाए, तो उसे उस दोष सिद्धि पर, यदि न्यायालय उचित समझे तो, अन्य सजा के अतिरिक्त, जिस पशु के संबंध में अपराधकिया गया उसके लिए, एक आदेश पारित कर सकता है कि वह पशु सरकार के पक्ष में जप्त माना जाएगा और साथ ही उस पशु के व्ययन ;क्पेचवेंसद्ध के लिए परिस्थितियों के अनुसार जैसा उपयुक्त समझे, आदेश दे सकेगा।
(2) उपधारा (1) के अंतर्गत कोई आदेश पारित नहीं किया जाएगा जब तक कि साक्ष्य द्वारा यह नहीं दिखे कि इस अधिनियम में पूर्व में दोष सिद्धि हुई थी या स्वामी के चरित्र के बारे में या अन्यथा पशु के साथ व्यवहार के बारे में, कि यदि पशु उसके स्वामी के साथ रखा गया तो यह संभावना है कि उसे आगे भी क्रूरता का सामना करना पड़ेगा।
(3) उपधारा (1) में किए प्रावधान को आंच पहुंचाए बिना, न्यायालय यह भी आदेश दे सकेगा कि इस अधिनियम के अंतर्गत किसी अपराध के लिए दोष सिद्ध व्यक्ति या स्थायी रूप से या आदेश में तय की गई अवधि के लिए किसी भी प्रकार के किसी पशु को धारित करने से वंचित रहेगा या न्यायालय जैसा उचित समझे, आदेश में निर्दिष्ट किसी प्रजाति या प्रकार का कोई पशु धारित नहीं करेगा।
(4) उपधारा (3) में कोई आदेश पारित नहीं किया जाएगा, जब तक कि निम्नांकित स्थिति न हो :- (क) उपधारा (3) के अंतर्गत तब तक कोई आदेश न दिया जाए जब तक कि पिछली किसी दोष सिद्धि के साक्ष्य से यह ज्ञात न हो जाए कि उस व्यक्ति का चरित्र कैसा था, उस पशु के साथ उसका व्यवहार कैसा था जिसके लिए उसे दोषी पाया गया है और यदि यह पशु इस व्यक्ति की अभिरक्षा में रहता तो उसके प्रति क्रूरता किए जाने की संभावना थी।
(ख) जिस शिकायत के आधार पर उसे दोषी पाया गया था, उसमें यह कहा गया है कि अभियुक्त की दोष सिद्धि के बारे में शिकायत की यह मंशा थी और उसमें पूर्वोक्तानुसार कोई आदेश पारित करने का अनुरोध किया गया था।
(ग) जिस अपराध के लिए उसे दोषी पाया गया था ऐसे किसी क्षेत्र में किया गया था जिसमें तत्समय प्रभावी कानून के अनुसार उस पशु को रखने के लिए कोई लाइसेन्स आवश्यक था, जिस पशु के लिए उसे दोषी पाया गया था।
5. तत्समय प्रभावी किसी कानून में इसके विपरीत किसी प्रावधान के होने के बावजूद ऐसा कोई व्यक्ति जिसके विषय में उपधारा (3) के अंतर्गत कोई आदेश दिया गया है उसे कोई अधिकार नहीं है कि वह उस आदेश के विपरीत किसी पशु को अभिरक्षा में रखे और यदि वह किसी आदेश के प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो उसे एक सौ रुपये तक के जुर्माने या तीन वर्ष तक की अवधि के कारावास या एक साथ दोनों दण्ड दिए जाएंगे।
धारा 30 – कुछ प्रकरणों में दोष संबंधी उपधारणा यदि किसी व्यक्ति पर धारा 11 की उपधारा (1)(एल) के प्रावधान का उल्लंघन कर बकरी, गाय उसकी संतति के कत्ल के अपराधों का आरोप हो और जिस समय आरोपित अपराध किया गया, यह सिद्ध हो कि उस समय में उसे आधिपत्य में इस धारा में संदर्भित पशु का चमड़ा पाया जाए तो, जब तक विपरीत सिद्ध न हो, यह उपधारणा की जाएगी कि वह पशु क्रूर तरीके से कत्ल किया गया।
धारा 31 – अपराधों की प्रसंज्ञेयता दंड प्रक्रिया संहिता 1898 में विपरीत कथन के रहते हुए भी, धारा 11 की उपधारा (1)(एल) या (एन) या (ओ) या धारा 12 के अंतर्गत दंडनीय अपराध, उस संहिता में प्रसंज्ञेय अपराध माने जायेंगे।
धारा 32 – तलाशी और जप्ती की शक्तियां
(1) यदि उप-निरीक्षक से अन्यून कोई पुलिस अधिकारी या इस हेतु राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति को यह विश्वास होने का कारण हो कि धारा 30 में संदर्भित पशु के संदर्भ में, धारा 11 की उपधारा (1)(एल) के संबंध में कोई अपराध हुआ है या किसी व्यक्ति के आधिपत्य में, ऐसे पशु का चमड़ा, उससे जुड़े हुए सिर के चमड़े के किसी भाग सहित पाया जाए तो वह उस स्थान में प्रवेश कर, तलाशी कर सकेगा या ऐसे स्थान जहां पर ऐसा चमड़ा पाया जा सकता है उसमें प्रवेश और तलाशी कर सकेगा और ऐसे अपराध की कारिति में उपयोग उद्देश्य से किसी वस्तु, पदार्थ या चमड़े को जप्त कर सकेगा।
(2) यदि उप-निरीक्षक से अन्यून कोई पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति को विश्वास करने के कारण हो कि उसके क्षेत्राधिकार में किसी पशु पर धारा 12 में संदर्भित ‘फूका‘ या ‘डूम देव‘ या अन्य किसी प्रकार की शल्य-क्रिया अभी-अभी हुई या होने की संभावना है तो वह ऐसे किसी भी स्थान में, जहां ऐसे पशु के होने की संभावना हो, प्रवेश कर सकता है, पशु को जप्त कर सकता है और जिस क्षेत्र में पशु जप्त किया गया उसके प्रभारी पशुचिकित्सक अधिकारी के समक्ष परीक्षण के लिए प्रस्तुत कर सकता है।
धारा 33 – तलाशी वारंट (1) यदि प्रथम या द्वितीय श्रेणी प्रेसीडेंसी दंडाधिकारी या पुलिस आयुक्त या जिला-पुलिस-अधीक्षक को लिखित सूचना मिलने पर और जैसी वह उचित समझे जांच के बाद यह विश्वास करने का कारण हो कि इस अधिनियम के अंतर्गत किसी स्थान पर कोई अपराध होने जा रहा है, या हो रहा है या हो चुका है, तब या तो वह स्वयं प्रवेश कर सकता है और तलाशी कर सकता है या उसके द्वारा जारी वारंट से, उप-निरीक्षक से अन्यून किसी पुलिस अधिकारी को प्रवेश और तलाशी हेतु अधिकृत कर सकता है। (2) इस अधिनियम के अंतर्गत तलाशियों के लिए, दंड प्रक्रिया संहिता 1898 के प्रावधान, जहां तक लागू करना संभव हों, लागू होंगे।
धारा 35 – पशुओं का उपचार और देखभाल (1) राज्य सरकार, सामान्य या विशेष आदेश से जिन पशुओं के संबंध में अपराध हुए हों, उनके उपचार और देखरेख के लिए उपचार-गृह स्थापित कर सकती है और दंडाधिकारी के समक्ष प्रस्तुति लंबित रहते उन उपचार गृहों में पशुओं को रखे रहने के लिए अधिकृत कर सकती है।
धारा 36 – अभियोजनों की परिसीमा अपराध घटित होने के तीन माह समाप्त होने के बाद उसका अभियोजन दर्ज नहीं किया जाएगा।
यातनाग्रस्त पशु को नष्ट करना
- जहां कि किसी पशु का स्वामी धारा 11 के अधीन किसी अपराध के लिए दोषी किया जाता है वहां, यदि न्यायालय का समाधान हो गया है कि पशु को जीवित रखना क्रूरता होगी तो, न्यायालय के लिए यह वैध होगा कि वह यह निर्देश दे कि उस पशु को नष्ट कर दिया जाए और उस प्रयोजन के लिए उसे किसी उपयुक्त व्यक्ति को सौप दिया जाए, तथा जिस व्यक्ति को वह पशु इस प्रकार सौंपा जाए वह, उसे अनावश्यक यातना दिए बिना, अपनी उपिस्थित में यथासंभव शीघ नष्ट कर देगा या करवा देगा तथा न्यायालय यह आदेश दे सकेगा कि उस पशु को नष्ट करने में जो भी उचित व्यय हुआ है वह उसके स्वामी से वैसे ही वसूल कर लिया जाए मानो वह जुमार्ना हो : परन्तु यदि स्वामी उसके लिए अपनी अनुमित नहीं देता है तो इस धारा के अधीन कोई भी आदेश, उस छेत्र के भारसाधक पशु चिकित्सा अधिकारी के साछ के बिना, नही दिया जाएगा ।
- जब किसी मजिस्टेट, पुलिस आयुक्त या जिला पुलिस अधीक्षक के पास यह विश्वास करने का कारण हो कि किसी पशु के संबंध में धारा 11 के अधीन कोई अपराध किया गया है तो वह उस पशु के तुरन्त नष्ट किए जाने का निर्देश दे सकेगा यदि उसे जीवित रखना उसकी राय में क्रूरता हो ।
- कांस्टेबल की पंक्ति से ऊपर का कोई पुलिस अधिकारी या राज्य सरकार द्वारा इस निमित प्राधिकृत कोई व्यक्ति , जो किसी पशु को इतना रुग्ण या इतने गंभीर रूप से छतिग्रस्त या ऐसी शारीरिक स्थति में पाता है कि उसकी राय म उसे क्रूरता के बिना हटाया नहीं जा सकता है तो वह, यदि स्वामी अनुपिस्थत है या उस पशु को नष्ट करने के लिए अपनी सहमित देने से इंकार करता है तो, तुरन्त उस छेत्र के भारसाधक पशु चिकित्सा अधिकारी को, जिसमे वह पशु पाया गया हो, आहूत कर सकेगा और यदि भारसाधक पशु चिकित्सा अधिकारी यह प्रमाणित करता है कि वह पशु घातक रूप से छतिग्रस्त है या इतने गंभीर रूप से छतिग्रस्त है या ऐसी शारीरिक स्थिति में है कि उसे जीवित रखना क्रूरतापूर्ण होगा तो, यथास्थिति , वह पुलिस अधिकारी या प्राधिकृत कोई व्यक्ति, मजिस्टेट के आदेश प्राप्त करने के पश्चात्, उस छतिग्रस्त पशु को ऐसी रीति से, जो विहित की जाए, नष्ट कर सकेगा या नष्ट करा सकेगा ।
- पशुओं को नष्ट करने के संबंध में मजिस्टेट के किसी आदेश के खिलाफ कोई भी अपील नहीं होगी ।
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