शिक्षक व शिक्षालय
शिक्षालय (विद्यालय) वे कारखाने हैं जहाँ राष्ट्रीय चरित्र को दिग्दर्शित करने वाले उपकरण (विद्यार्थी) गढे जाते हैं। यहाँ का मुख्य अभियांत्रिक शिक्षक है। शिक्षक राष्ट्र निर्माता है। शिक्षालयों को गौ संवर्धन व गौरक्षण का प्रेरणा केन्द्र निम्नांकित निश्चयों से बनाया जा सकता है :-
१. विद्यार्थियों को बाल्यकाल से ही गोवंश की महिमा व अनिवार्यता का बोध कराया जाना चाहिए। शास्त्रों, पुराणों इत्यादि भारतीय वांङ्गमय में उद्धृत गौ माता सम्बंधी उध्दरणों को कक्षाओं में पढ़ाया जाना चाहिए।
२. प्रत्येक विद्यालय में गाय रखी जावें और शिक्षक विद्यार्थी मिलकर गो सेवा करें जिससे अल्पायु से ही गो भक्त नागरिक तैयार हों।
३. शिक्षक कक्षाओं में पंचगव्य का महत्व बतावें।
४. पाठ्यक्रमों में गो सेवा व गो महिमा के अध्याय सम्मिलित किये जावें।
५. शिक्षक पंचगव्य से निर्मित मंजन, साबुन, शैम्पू, औषधियों का उपयोग करें व विद्यार्थियों से इनका प्रयोग करने का आग्रह करे।
६. जैविक खाद के उपयोग से पैदा अन्न, फल, सब्जी का उपयोग करने का आग्रह विद्यालयों में किया जावें।
७. विद्यार्थियों को भारतीय नस्त की गाय के गौदुग्ध पान के महत्व का व्यापक प्रचार किया जावे। विद्यालयों में गौ दुग्ध उपलब्ध हो।
८. स्वास्थ्य व पर्यावरण के हित में गौ वंश के महत्त्व को प्रचारित कर विद्यार्थियों को सुशिक्षित किया जाए।
९. विद्यालयों में पंचगव्य औषधि व जैविक कृषि, गो रक्षा का महत्व, जैसे विषयों पर निबंध, वाद-विवाद, भाषण, पोस्टर प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाएँ।
१०. विद्यालयों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, गोपाष्टमी, बलराम जयंती इत्यादि गोपौँ व गो उत्सवों को मनाया जाए।
११. रासायनिक कृषि के भुमी, स्वास्थ्य व पर्यावरण पर पडनेवाले दुष्प्रभावों की विद्यार्थियों को जानकारी देनी चाहिये।
१२. गौशाला, पंचगव्य औषधि व कृषि उत्पाद तथा पंचगव्य से निर्मित उर्जा केन्द्रों में विद्यार्थियों की शैक्षणिक का आयोजन करें।