शनिवार, 21 जनवरी 2017

गाय के गोबर की खाद किसे बनाये सरल तरीका

१ गाय की सींग की खाद
गाय की सींग गाय का रक्षा कवच है। गाय को इसके द्वारा सीधे तौर पर प्राकृतिक ऊर्जा मिलती है। यह एक प्रकार से गाय को ईश्वर द्वारा प्रदत्त एंटीना उपकरण है। गाय की मृत्यु के 45 साल बाद तक भी यह सुरक्षित बनी रहती है। गाय की मृत्यु के बाद उसकी सींग का उपयोग श्रेठ गुणवत्ता की खाद बनाने के लिए प्राचीन समय से होता आ रहा है। सींग खाद भूमि की उर्वरता ब़ाते हुए मृदा उत्प्रेरक का काम करती है जिससे पैदावार बढ जाती है।
निर्माण सामग्री:
गाय की सींग, गोबर, बाल्टी
निर्माण विधि
सींग को साफकर उसमें ताजे गोबर को अच्छी तरह से भर लें। सितंबरअक्तूबर महीने में जब सूर्य दक्षिणायन पक्ष में हों, तब इस गोबर भरी सींग को एक से डेढ़    फिट गहरे गड्ढे में नुकीला सिरा ऊपर रखते हुए लगा देते हैं। इस सींग को गड्ढे से छः माह बाद मार्चअप्रैल में चंद्र दक्षिणायन पक्ष में भूमि से निकाल लेते हैं। इस खाद से मीठी महक आती है जो इसके अच्छी प्रकार से तैयार हो जाने का प्रमाण है। इस प्रकार एक सींग से तीनचार एकड़ खेत के लिए खाद तैयार हो सकती है।
प्रयोग कराने का तरीका :
इस खाद को प्रयोग करने के लिए 25 ग्राम सींग खाद को तेरह लीटर स्वच्छ जल में घोल लेते हैं। घोलने के समय कम से कम एक घंटे तक इसे लकड़ी की सहायता से हिलाते -मिलाते रहना चाहिए।
प्रयोग विधि
सींग खाद से बने घोल का प्रयोग बीज की बुआई अथवा रोपाई से पहले सायंकाल छिड़काव विधि से करना चाहिए।
२  सिलिका युक्त सींग की खाद
सिलिका पाउडर आटे की लोईनुमा बनाकर गाय की सींग में भर दें। छः माह बाद गोबर की सींग खाद के समान ही उसे निकाल कर जल में घोल लें। इसका भंडारण सदा शीशे के पात्र में करना चाहिए। इस प्रकार से निर्मित सिलिका खाद फंफूदनाशक के रूप में प्रभावी तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
3 गाय के ताजे गोबर की खाद
निर्माण सामग्री
गाय का ताजा गोबर
250 ग्राम बेन्टोनाइट पाउडर, काली मिट्टी या वसाल्ट
250 ग्राम अण्डे के छिलके का चूर्ण
बायोडायनामिक प्रिपरेशन नामक औषधीय कल्चर
ईंट, फावड़ा, टाट पट्टी आदि।
निर्माण विधिः
सबसे पहले तीन फुट चौड़ा, दो फुट लंबा और ड़ेढे फुट गहरा गड्ढा    तैयार कर लेते हैं। गड्ढे की दीवार ईंटों से चुन दें। अब 60 किलोग्राम गाय का कम से कम 24 घंटे पुराने गोबर में 250 ग्राम अण्डे के छिलके का चूर्ण और 250 ग्राम बसाल्ट पाउडर भलीभांति मिला लें। अब इस मिश्रण को गड्ढे में भरकर इसमें 23 इंच गहरे छिद्र बना लें। इन छिद्रों में बायोडायनमिक प्रिपरेशन भरकर छिद्रों को बंद कर दें। सतह को टाट पट्टी से ढंक दें।
इस प्रकार लगभग 40 से 45 किलोग्राम खाद हमें 80 दिन बाद उपयोग के लिए तैयार मिलेगी। ८० -९०  एकड़ भूमि में खेती के लिए इतनी खाद पर्याप्त है। सावधानी यह रखनी होगी कि खाद तैयार होते समय गड्ढे  में पानी नहीं जाना चाहिए।
प्रयोग विधि
500 ग्राम खाद एक ड्रम में 40 लीटर पानी में अच्छी प्रकार से घोल लें। इस घोल का सूर्यास्त के बाद या सूर्योदय से पूर्व खेत में या फसल पर छिड़काव करें। यह खाद पौधों के लिए कीटनियंत्रक का काम भी करती है। इसमें बीजशोधन करने से अंकुरण अच्छा होता है।
४ बायो डायनामिक तरल कीटनियंत्रक
यह कीटनियंत्रक गोबर, गोमूत्र तथा विभिन्न औषधीय पौधों एवं वृक्षों की पत्तियों द्वारा तैयार किया जाता है।
निर्माण सामग्री:
प्लास्टिक ड्रम, गोबर, गोमूत्र, बी.डी.उपक्रम, आवश्यकतानुसार दलहनी पौधे, नीम, मदार, करंज आदि की पत्तियां
निर्माण विधिः
5 लीटर गोमूत्र एवं 5 किलोग्राम गोबर को 200 लीटर क्षमता वाले प्लास्टिक ड्रम में डालकर 150 लीटर पानी भरें। बायोडायनामिक उत्प्रेरकों के एक सेट कपड़े की छोटीछोटी पोटली में लटका दें या पत्तियों में रखकर पैकेट बनाकर ड्रम में डालें। इस प्रकार निर्मित तरल को दिन में दो बार लकड़ी की सहायता से हिलाते-मिलाते रहें। ड्रम को बोर या जाली से कस कर रखें। 30 से 35 डिग्री तापमान पर यह तरल कीटनियंत्रक ३४  सप्ताह में तैयार हो जाता है। कीटनाशक का प्रभाव बढ़ाने  के लिए इस तरल में नीम, सदाबहार, कनेर, करंज, मदार तथा अरण्डी आदि की पत्तियों का प्रयोग किया जाता है।
प्रयोग विधिः
एक लीटर तरल खाद को 45 लीटर पानी में घोलकर पौधों और वृक्षों पर आवश्यकतानुसार छिड़काव करने से पौधे के स्वास्थ्य पर अनुकूल असर पड़ता है।
५  नेडेप कम्पोस्ट खाद
निर्माण सामग्री:
100 किलोग्राम गोबर, वनस्पतियों के अवशिष्ट  एक क्विंटल से डेढ़  क्विंटल, खेत या नाले की सूखी छनी मिट्टी, 1500 से 2000 लीटर पानी, गोमूत्र एवं अन्य पशुओं का मूत्र आदि
निर्माण विधिः
सर्वप्रथम 12 फिट लंबा, 5 फिट चौड़ा एवं 3 फिट गहरा गड, ईंटों से चुना हुआ, निर्मित करें। सबसे पहले गड्ढे के फर्श  को गोबर एवं पानी छिड़ककर गीला कर लें। उसके बाद उसमें वानस्पतिक अपशिष्ट ६ इंच ऊंचाई तक भर दें। इसमें 3 से 4 प्रतिशत तक कड़वे नीम की पत्तियां या पलास की हरी पत्ती मिलाना लाभदायक रहता है।
इसके बाद दूसरी परत में 125 से 150 लीटर पानी में 5 किलो गोबर घोलकर इस प्रकार छिड़काव करें कि वनस्पति अपशिष्ट की परत पूरी तरह से भीग जाए।
इसके बाद साफ, सूखी और छनी मिट्टी जो वजन में वनस्पति अपशिष्ट की मात्रा की आधी हो, उसे समतल रूप में वनस्पति की परत के ऊपर बिछा दें। फिर इस पर थोड़ा पानी छिड़क दें।
15 से 20 दिनों के बाद उपरोक्त सामग्री गड्ढे  में 8 से 9 इंच अंदर चली जाएगी। अब पुनः वानस्पतिक अपशिष्ट भरें और उसके ऊपर गोबर के घोल का छिड़काव कर इसे तीन इंच तक मिट्टी से भर दें। अब इसे लीपकर सीलबंद कर दें।
अब इस खाद को तैयार होने में 90 से 120 दिन लगते हैं। बीच-बीच में गोबर के घोल का छिड़काव गड्ढे में करते रहना चाहिए ताकि नीचे तक नमी बनी रहे।
तीन से चार महीने बाद गहरे भूरे रंग की खाद तैयार हो जाती है। इसमें दुर्गंध की बजाए मीठी खुशबू आने लगती है। यह खाद सूखनी नहीं चाहिए और इसे नम रहते हुए ही खेतों में डालना चाहिए।
नॉडेप पद्धति से खाद बनाते समय यदि बायोडायनमिक कल्चर अर्थात विभिन्न औषधीय  महत्व की वनस्पतियों और उनकी पत्तियों का प्रयोग किया जाए तो इसकी गुणवत्ता में सुधार होने लगता है।
६  जीवामृत खाद
निर्माण सामग्री:
गाय का गोबर, गोमूत्र, दही, दाल का आटा एवं गुड़।
निर्माण विधि
60 किलोग्राम गोबर, 10 लीटर गोमूत्र, किसी दाल का 2 किलो आटा, 2 किलोग्राम गुड़, 2 किलोग्राम दही को अच्छी प्रकार मिलाकर मिश्रण बना लें और इसे दो दिनों तक छाया में रखें।
प्रयोग विधिः
दो दिन बाद तैयार मिश्रण को 200 लीटर जल में मिलाकर एक एकड़ खेत में बिखेर दें या छिड़काव करें। यह खाद खेत में असंख्य लाभप्रद जीवाणुओं को पैदा कर देगी। किसी फलदार वृक्ष में तने से 2 मीटर दूर एक फुट चौड़ी तथा एक फुट गहरी नाली खोदकर खेत पर उपलब्ध कूड़ा-करकट भर दें और इसे जीवामृत खाद से अच्छे से गीला करें। इसका परिणाम फलोत्पादन पर पड़ता है। पेड़ की पैदावार ब़ढ जाती है।
७ मटका खाद
निर्माण सामग्री:
गाय का गोबर, गोमूत्र एवं गुड़
निर्माण विधिः 15 किलोग्राम गाय के ताजे गोबर और 15 लीटर ताजे गोमूत्र को 15 लीटर पानी एवं आधा किलोग्राम गुड़ में अच्छी तरह से घोलकर मिला लें। उपरोक्त सामग्री को मिट्टी के बड़े घड़े में रखें और घड़े का मुंह ठीक प्रकार से किसी कपड़े की सहायता से बंद कर दें।
प्रयोग विधिः
46 दिन बाद 200 लीटर पानी मिलाकर इस घोल को एक एकड़ खेत में समान रूप से बोने से 15 दिन पूर्व तथा बुआई के एक सप्ताह बाद दूसरा छिड़काव करें।
8 केंचुआ खाद
निर्माण सामग्री:
पौधों के डंठल, पत्तियां, भूसा, गन्ने की खोई, खरपतवार, फूल, सब्जियों के छिलके, केले के पत्ते व तने, नारियल के पत्ते, जटाएं, पशुओं के मलमूत्र एवं बायोगैस सलरी आदि। शहरी कूड़ाकचरा, रसोई का कचरा, मण्डी का कचरा, फलफूलों को कचरा आदि एवं गोबर
निर्माण विधिः
किसी छायादार स्थान पर गड खोद लें। इस गड्ढे को तीन परतों से भरते हैं। पहली परत में 6 सेंटीमीटर तक मोटे बांस, बजरी, चारा, लकड़ी, नारियल, जूट आदि भरते हैं। दूसरी बीच की परत में 9 सेंटीमीटर ऊंचाई तक पुरानी खाद, सलरी, पुराना गोबर आदि भर देते हैं। ऊपरी परत में 30 सेंटीमीटर ऊंचाई तक 20 दिन पुराना नमीयुक्त गोबर, भूसा, हरे पत्ते, फलसब्जियों के छिलके व अन्य कचरा भर दिया जाता है। कभी भी गड्ढे  में ताजा एवं गरम गोबर नहीं भरना चाहिए क्योंकि इसमें केंचुए जीवित नहीं रह पाते।
इस प्रकार 45 सेंटीमीटर अर्थात लगभग डेढ़  फीट तक कार्बनिक पदार्थ की बेड तैयार कर 25 से 30 किलो केंचुए इस गड्ढे में डाल दिए जाते हैं। यह केंचुए धीरेधीरे खाद की परत छोड़ते हुए नीचे की ओर barhate  चलते हैं। केंचुओं द्वारा छोड़ी गई परत को एकत्रित कर अलग करते रहना चाहिए।
अब इस खाद का प्रयोग खेतों में करना चाहिए। इस खाद के प्रयोग से फलों, सब्जियों एवं अनाजों के स्वाद, आकार, रंग एवं उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि देखी गई है।

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