सोमवार, 1 दिसंबर 2014

गाय एवं गाय के विज्ञान से जुड़े प्रश्नोत्तर एवं आयुर्वेदिक दृष्टी से गौ माता का महत्व

गाय एवं गाय के विज्ञान से जुड़े प्रश्नोत्तर एवं आयुर्वेदिक दृष्टी से गौ माता का महत्व

प्रश्नोत्तर
गाय एवं गाय के विज्ञान से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले कुछ प्रश्नोत्तर यहाँ दिये गए है| अगर आपके मन में इन प्रश्नों के अलावा भी कोई प्रश्न आए तो आप इस पेज पर कमेंट के रूप में हम से पूछ सकते है| आपके द्वारा पूछे गए अच्छे प्रश्नों को हम यहाँ जोड़ कर सभी के लिए उसका उत्तर उपलब्ध करवाएँगे|
प्रश्न 1.) गाय क्या है?
उत्तर 1.) गाय ब्रह्मांड के संचालक सूर्य नारायण की सीधी प्रतिनिधि है| इसका अवतरण पृथ्वी पर इसलिए हुआ है ताकि पृथ्वी की प्रकृति का संतुलन बना रहे| पृथ्वी पर जितनी भी योनियाँ है सबका पालन-पोषण होता रहे| इसे विस्तृत में समझने के लिए ऋगवेद के 28वें अध्याय को पढ़ा जा सकता है|
प्रश्न 2.) गौमाता और विदेशी काऊ में अंतर कैसे पहचाने?
उत्तर 2.) गौमाता एवं विदेशी काऊ में अंतर पहचानना बहुत ही सरल है| सबसे पहला अंतर होता है गौमाता का कंधा (अर्थात गौमाता की पीठ पर ऊपर की और उठा हुआ कुबड़ जिसमें सूर्यकेतु नाड़ी होती है), विदेशी काऊ में यह नहीं होता है एवं उसकी पीठ सपाट होती है| दूसरा अंतर होता है गौमाता के गले के नीचे की त्वचा जो बहुत ही झूलती हुई होती है जबकि विदेशी काऊ के गले के नीचे की त्वचा झूलती हुई ना होकर सामान्य एवं कसीली होती है| तीसरा अंतर होता है गौमाता के सिंग जो कि सामान्य से लेकर काफी बड़े आकार के होते है जबकि विदेशी काऊ के सिंग होते ही नहीं है या फिर बहुत छोटे होते है| चौथा अंतर होता है गौमाता कि त्वचा का अर्थात गौमाता कि त्वचा फैली हुई, ढीली एवं अतिसंवेदनशील होती है जबकि विदेशी काऊ की त्वचा काफी संकुचित एवं कम संवेदनशील होती है| पांचवा अंतर होता है गौमाता के
प्रश्न 3.) अगर थोड़ा सा भी दही नहीं हो तब दूध से दही कैसे बनाएँ?
उत्तर 3.) हल्के गुन-गुने दूध में नींबू निचोड़ कर दही जमाया जा सकता है| इमली डाल कर भी दही जमाया जाता है| गुड़ की सहायता से भी दही जमाया जाता है| शुद्ध चाँदी के सिक्के को गुन-गुने दूध में डालकर भी दही जमाया जा सकता है|
प्रश्न 4.) किस समय पर दूध से दही बनाने की प्रक्रिया शुरू करें?
उत्तर 4.) रात्री में दूध को दही बनने के लिए रखना सर्वश्रेष्ठ होता है ताकि दही एवं उससे बना मट्ठा, तक्र एवं छाछ सुबह सही समय पर मिल सके|
प्रश्न 5.) गौमूत्र किस समय पर लें?
उत्तर 5.) गौमूत्र लेने का श्रेष्ठ समय प्रातःकाल का होता है और इसे पेट साफ करने के बाद खाली पेट लेना चाहिए| गौमूत्र सेवन के 1 घंटे पश्चात ही भोजन करना चाहिए|
प्रश्न 6.) गौमूत्र किस समय नहीं लें?
उत्तर 6.) मांसाहारी व्यक्ति को गौमूत्र नहीं लेना चाहिए| गौमूत्र लेने के 15 दिन पहले मांसाहार का त्याग कर देना चाहिए| पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति को सीधे गौमूत्र नहीं लेना चाहिए, गौमूत्र को पानी में मिलाकर लेना चाहिए| पीलिया के रोगी को गौमूत्र नहीं लेना चाहिए| देर रात्रि में गौमूत्र नहीं लेना चाहिए| ग्रीष्म ऋतु में गौमूत्र कम मात्र में लेना चाहिए|
प्रश्न 7.) क्या गौमूत्र पानी के साथ लें?
उत्तर 7.) अगर शरीर में पित्त बढ़ा हुआ है तो गौमूत्र पानी के साथ लें अथवा बिना पानी के लें|
प्रश्न 8.)अन्य पदार्थों के साथ मिलकर गौमूत्र की क्या विशेषता है? (जैसे की गुड़ और गौमूत्र आदि संयोग)
उत्तर 8.) गौमूत्र किसी भी प्रकृतिक औषधी के साथ मिलकर उसके गुण-धर्म को बीस गुणा बढ़ा देता है| गौमूत्र का कई खाद्य पदार्थों के साथ अच्छा संबंध है जैसे गौमूत्र के साथ गुड़, गौमूत्र शहद के साथ आदि|
प्रश्न 9.) गाय का गौमूत्र किस-किस तिथि एवं स्थिति में वर्जित है? (जैसे अमावस्या आदि)
उत्तर 9.) अमावस्या एवं एकादशी तिथि तथा सूर्य एवं चन्द्र ग्रहण वाले दिन गौमूत्र का सेवन एवं एकत्रीकरण दोनों वर्जित है|
प्रश्न 10.) वैज्ञानिक दृष्टि से गाय की परिक्रमा करने पर मानव शरीर एवं मस्तिष्क पर क्या प्रभाव एवं लाभ है?
उत्तर 10.) सृष्टि के निर्माण में जो 32 मूल तत्व घटक के रूप में है वे सारे के सारे गाय के शरीर में विध्यमान है| अतः गाय की परिक्रमा करना अर्थात पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करना है| गाय जो श्वास छोड़ती है वह वायु एंटी-वाइरस है| गाय द्वारा छोड़ी गयी श्वास से सभी अदृश्य एवं हानिकारक बैक्टेरिया मर जाते है| गाय के शरीर से सतत एक दैवीय ऊर्जा निकलती रहती है जो मनुष्य शरीर के लिए बहुत लाभकारी है| यही कारण है कि गाय की परिक्रमा करने को अति शुभ माना गया है|
प्रश्न 11.) गाय के कूबड़ की क्या विशेषता है?
उत्तर 11.) गाय के कूबड़ में ब्रह्मा का निवास है| ब्रह्मा अर्थात सृष्टि के निर्माता| कूबड़ हमारी आकाश गंगा से उन सभी ऊर्जाओं को ग्रहण करती है जिनसे इस सृष्टि का निर्माण हुआ है| और इस ऊर्जा को अपने पेट में संग्रहीत भोजन के साथ मिलाकर भोजन को ऊर्जावान कर देती है| उसी भोजन का पचा हुआ अंश जिससे गोबर, गौमूत्र और दूध गव्य के रूप में बाहर निकलता है वह अमृत होता है|
प्रश्न 12.) गौमाता के खाने के लिए क्या-क्या सही भोजन है? (सूची)
उत्तर 12.) हरी घास, अनाज के पौधे के सूखे तने, सप्ताह में कम से कम एक बार 100 ग्राम देसी गुड़ , सप्ताह में कम से कम एक बार 50 ग्राम सेंधा या काला नमक, दाल के छिलके, कुछ पेड़ के पत्ते जो गाय स्वयं जानती है की उसके खाने के लिए सही है, गाय को गुड़ एवं रोटी अत्यंत प्रिय है|
प्रश्न 13.) गौमाता को खाने में क्या-क्या नहीं देना है जिससे गौमाता को बीमारी ना हो? (सूची)
उत्तर 13.) देसी गाय जहरीले पौधे स्वयं नहीं खाती है| गाय को बासी एवं जूठा भोजन, सड़े हुए फल नहीं देना चाहिए| गाय को रात्रि में चारा या अन्य भोजन नहीं देना चाहिए| गाय को साबुत अनाज नहीं देना चाहिए हमेशा अनाज का दलिया करके ही देना चाहिए|
प्रश्न 14.) गौमाता की पूजा करने की विधि? (कुछ लोग बोलते है कि गाय के मुख कि नहीं अपितु गाय कि पूंछ कि पूजा करनी चाहिए और अनेक भ्रांतियाँ है|)
उत्तर 14.) गौमाता की पूजा करने की विधि सभी जगह भिन्न-भिन्न है और इसके बारे में कहीं भी आसानी से जाना जा सकता है| लक्ष्मी, धन, वैभव आदि कि प्राप्ति के लिए गाय के शरीर के उस भाग कि पूजा की जाती है जहां से गोबर एवं गौमूत्र प्राप्त होता है| क्योंकि वेदों में कहा गया है की “गोमय वसते लक्ष्मी” अर्थात गोबर में लक्ष्मी का वास है और “गौमूत्र धन्वन्तरी” अर्थात गौमूत्र में भगवान धन्वन्तरी का निवास है|
प्रश्न 15.) क्या गाय पालने वालों को रात में गाय को कुछ खाने देना चाहिए या नहीं?
उत्तर 15.) नहीं, गाय दिन में ही अपनी आवश्यकता के अनुरूप भोजन कर लेती है| रात्रि में उसे भोजन देना स्वास्थ्य के अनुसार ठीक नहीं है|
प्रश्न 16.) दूध से दही, घी, छाछ एवं अन्य पदार्थ बनाने के आयुर्वेद अनुसार प्रक्रियाएं विस्तार से बताईए|
उत्तर 16.) सर्वप्रथमड दूध को छान लेना चाहिए, इसके बाद दूध को मिट्टी की हांडी, लोहे के बर्तन या स्टील के बर्तन (ध्यान रखे की दूध को कभी भी तांबे या बिना कलाई वाले पीतल के बर्तन में गरम नहीं करें) में धीमी आंच पर गरम करना चाहिए| धीमी आंच गोबर के कंडे का हो तो बहुत ही अच्छा है| पाँच-छः घंटे तक दूध गरम होने के बाद गुन-गुना रहने पर 1 से 2 प्रतिशत छाछ या दही मिला देना चाहिए| दूध से दही जम जाने के बाद सूर्योदय के पहले दही को मथ देना चाहिए| दही मथने के बाद उसमें स्वतः मक्खन ऊपर आ जाता है| इस मक्खन को निकाल कर धीमी आंच पर पकाने से शुद्ध घी बनता है| बचे हुए मक्खन रहित दही में बिना पानी मिलाये मथने पर मट्ठा बनता है| चार गुना पानी मिलने पर तक्र बनता है और दो गुना पानी मिलने पर छाछ बनता है|
प्रश्न 17.) दूध के गुणधर्म, औषधीय उपयोग| किन-किन चीजों में दूध वर्जित है?
उत्तर 17.) गाय का दूध प्राणप्रद, रक्तपित्तनाशक, पौष्टिक और रसायन है| उनमें भी काली गाय का दूध त्रिदोषनाशक, परमशक्तिवर्धक और सर्वोत्तम होता है| गाय अन्य पशुओं की अपेक्षा सत्वगुणयुक्त है और दैवी-शक्ति का केंद्रस्थान है| दैवी-शक्ति के योग से गोदुग्ध में सात्विक बल होता है| शरीर आदि की पुष्टि के साथ भोजन का पाचन भी विधिवत अर्थात सही तरीके से हो जाता है| यह कभी रोग नहीं उत्पन्न होने देता है| आयुर्वेद में विभिन्न रंग वाली गायों के दूध आदि का पृथक-पृथक गुण बताया गया है| गाय के दूध को सर्वथा छान कर ही पीना चाहिए, क्योंकि गाय के स्तन से दूध निकालते समय स्तनों पर रोम होने के कारण दुहने में घर्षण से प्रायः रोम टूट कर दूध में गिर जाते हैं| गाय के रोम के पेट में जाने पर बड़ा पाप होता है| आयुर्वेद के अनुसार किसी भी पशु का बाल पेट में चले जाने से हानि ही होती है| गाय के रोम से तो राजयक्ष्मा आदि रोग भी संभव हो सकते हैं इसलिए गाय का दूध छानकर ही पीना चाहिए| वास्तव में दूध इस मृत्युलोक का अमृत ही है|
“अमृतं क्षीरभोजनम्”
प्रश्न 18.) दही के गुणधर्म, औषधीय उपयोग| किन-किन चीजों में दही वर्जित है?
उत्तर 18.)
प्रश्न 19.) छाछ के गुणधर्म, औषधीय उपयोग| किन-किन चीजों में छाछ वर्जित है?
प्रश्न 20.) श्रीखंड के गुणधर्म, औषधीय उपयोग| किन-किन चीजों में श्रीखंड वर्जित है?
उत्तर 20.) श्रीखंड में मुख्यरूप से जलरहित दही, जायफल एवं देसी मिश्री होते है| जायफल कुपित हुए कफ को संतुलित करता है एवं मस्तिष्क को शीत एवं ताप दोनों से बचाता है| चूंकि श्रीखंड में जायफल के साथ जलरहित दही की घुटाई होती है इसलिए इस प्रक्रिया में जायफल का गुण 20 गुना बढ़ जाता है| इस कारण श्रीखंड मेघाशक्ति को बढ़ाता है, कफ को संतुलित रखता है एवं मस्तिष्क को शीत एवं ताप दोनों से बचाता है| अत्यधिक शीत ऋतु, अत्यधित वर्षा ऋतु में श्रीखंड का सेवन वर्जित माना गया है| ग्रीष्म ऋतु में श्रीखंड का सेवन मस्तिष्क के लिए अमृततुल्य है| श्रीखंड निर्माण के बाद 6 घंटे के अंदर सेवन कर लिया जाना चाहिए| फ्रीज़ में रखे श्रीखंड का सेवन करने से उसके गुण-धर्म बदल कर हानी उत्पन्न कर सकते है अर्थात इसे सामान्य तापमान पर रख कर ताज़ा ही सेवन करें|
प्रश्न 21.) गोबर के गुणधर्म, औषधीय उपयोग| किन-किन चीजों में गोबर वर्जित है?
प्रश्न 22.) घी के गुणधर्म, औषधीय उपयोग| किन-किन चीजों में घी वर्जित है?
प्रश्न 23.) गौमूत्र अर्क बनाने का बर्तन किस धातु का होना चाहिए?
उत्तर 23.) मिट्टी, शीशा, लोहा या मजबूरी में स्टील|
प्रश्न 24.) गाय और बैल के सिंग को ऑइलपेंट और किसी भी तरह कि सजावट क्यों नहीं करनी चाहिए?
उत्तर 24.) गाय और बैल के सिंग को ऑइलपेंट और किसी भी तरह कि सजावट इसलिए नहीं करनी चाहिए क्योंकि सिंग चंद्रमा से आने वाली ऊर्जा को अवशोषित करते शरीर को देते है| अगर इसे पेंट कर दिया जाए तो वह प्रक्रिया बाधित होती है|
प्रश्न 25.) अगर गाय का गौमूत्र नीचे जमीन पर गिर जाये तो क्या उसे हम अर्क बनाने में उपयोग कर सकते है?
उत्तर 25.) नहीं, फिर उसे केवल कृषि कार्य के उपयोग में ले सकते है|
प्रश्न 26.) भिन्न प्रांत की नस्ल वाली गाय को किसी दूसरे वातावरण में पाला जाये तो उसकी क्या हानियाँ है?
उत्तर 26.) भिन्न-भिन्न नस्लें अपनी-अपनी जगह के वातावरण के अनुरूप बनी है अगर हम उन्हे दूसरे वातावरण में ले जा कर रखेंगे तो उन्हें भिन्न वातावरण में रहने पर परेशानी होती है जिसका असर गाय के शरीर एवं गव्यों दोनों पर पड़ता है| और आठ से दस पीड़ियों के बाद वह नस्ल बदल कर स्थानीय भी हो जाती है| अतः यह प्रयोग नहीं करना चाहिए|
प्रश्न 27.) क्या ताजा गौमूत्र से ही चंद्रमा अर्क बना सकते है, पुराने से नहीं?
उत्तर 27.) हाँ, चंद्रमा अर्क सूर्योदय से पहले चंद्रमा की शीतलता में बनाया जाता है|
प्रश्न 28.)गाय का घी और उसके उत्पाद महंगे क्यों होते है?
उत्तर 28.) एक लीटर घी बनाने में तीस लीटर दूध की खपत होती है जिसका मूल्य कम से कम 30 रु. लीटर के हिसाब से 900 रुपये केवल दूध का होता है| और इसे बनाने में मेहनत आदि को जोड़ दिया जाये तब घी का न्यूनतम मूल्य 1200 रुपये प्रति लीटर होता है|
प्रश्न 1: गौमूत्र किस गाय का लेना चाहिए?
उत्तर – जो वन में विचरण करके, व्यायाम करके इच्छानुसार घास का सेवन करे, स्वच्छ पानी पीवे, स्वस्थ हो; उस गौ का गौमूत्र औषधि गुणवाला होता है। शास्त्रीय निर्देश है कि – ‘‘अग्रमग्रं चरन्तीनामोषधीनां वने वने’’।
प्रश्न 2: गौमूत्र किस आयु की गौ का लेना चाहिए?
उत्तर – किसी भी आयु की- बच्ची, जवान, बूढ़ी-गौ का गौमूूत्र औषधि प्रयोग में काम में लाना चाहिए।
प्रश्न 3: क्या बैल, छोटा बच्चा या वृद्ध बैल का भी गौमूत्र औषधि उपयोग में आता है?
उत्तर: नर जाति का मूत्र अधिक तीक्ष्ण होता है, पर औषधि उपयोगिता में कम नहीं है, क्योंकि प्रजाति तो एक ही है। बैलों का मूत्र सूँघने से ही
बंध्या (बाँझ) को सन्तान प्राप्त होती है। कहा है: ‘‘ऋषभांष्चापि, जानामि राजनपूजितलक्षणान्। येषां मूत्रामुपाघ्राय, अपि बन्ध्या प्रसूयते।।’’ (संदर्भ-महाभारत विराटपर्व)
अर्थ: उत्तम लक्षण वाले उन बैलों की भी मुझे पहचान है, जिनके मूत्र को सूँघ लेने मात्र से बंध्या स्त्री गर्भ धारण करने योग्य हो जाती है।
प्रश्न 4: गौमूत्र को किस पात्र में रखना चाहिए?
उत्तर: गौमूत्र को ताँबे या पीतल के पात्रा में न रखंे। मिट्टी, काँच, चीनी मिट्टी का पात्र हो एवं स्टील का पात्र भी उपयोगी है।
प्रश्न 5: कब तक संग्रह किया जा सकता है ?
उत्तर: गौमूत्र आजीवन चिर गुणकारी होता है। धूल न गिरे, ठीक तरह से ढँका हुआ हो, गुणों में कभी खराब नहीं होता है। रंग कुछ लाल, काला ताँबा व लोहा के कारण हो जाता है। गौमूत्र में गंगा ने वास किया है। गंगाजल भी कभी खराब नहीं होता है। पवित्रा ही रहता है। किसी प्रकार के हानिकारक कीटाणु नहीं होते हैं।
प्रश्न 6: जर्सी गाय के वंश का गौमूत्र लिया जाना चाहिए या नहीं?
उत्तर: नहीं लेना चाहिए।
गव्यं पवित्रं च रसायनं च , पथ्यं च हृदयं बलबुद्धिम |
आयुः प्रदं रक्तविकारहारि, त्रिदोषहृद्रोगविषापहं स्यात ||
अनुवाद: भारतीय गाय से प्राप्त होने वाले गव्य पवित्र हैं, रसायन हैं और हृदय के लिए औषधी हैं, वे बल एवं बुद्धि को बढ़ाते हैं| वे लंबी आयु देते हैं, रक्त के विकारों को हर दूर करते हैं, तीनों दोषों (वात, पित्त, कफ) को संतुलित रखते हैं, वे सभी रोगों का उपचार एवं शरीर को विष(दोष) रहित करते हैं|
वेदों से संदर्भ: शांत स्वर में नंदिनी नामक एक गाय राजा दिलीप (राजा रघु के वंशज एवं श्रीराम के पूर्वज) से कहती हैं :
न केवलं पयसा प्रसुतिम, वे ही मन कम दुग्हम प्रसन्नम
अनुवाद: जब भी मैं प्रसन्न और खुश रहती हूँ मैं सभी इच्छाओं को पूरा कर सकती हूँ| मुझे सिर्फ दुग्ध आपूर्तिकर्ता मत समझो|
गाय में देवताओं का निवास है| वह साक्षात कामधेनु (इच्छा पूरक) है| ईश्वर के सभी अवतार गाय के शरीर में वास करते हैं| वह सभी आकाशीय तारामंडल से शुभ किरणों को ग्रहण करती है| इस प्रकार उसमे सभी नक्षत्रों का प्रभाव शामिल हैं| जहाँ कहीं भी एक गाय है, वहाँ सभी आकाशीय तारामंडल के प्रभाव है, सब देवताओं का आशीर्वाद है| गाय एकमात्र देव्य जीव है जिसकी रीढ़ की हड्डी से सूर्यकेतु नाड़ी (सूरज से संपर्क में रहने वाली नाड़ी) गुज़रती है| इसीलिए गाय के दूध, मक्खन और घी का रंग सुनहरा होता है| ऐसा इसलिए है क्योंकि सूर्यकेतु नाड़ी, सौर किरणों के संपर्क में आकर उसके रक्त में सोने के लवण का उत्पादन करती है| यह लवण गाय के दूध और अन्य शारीरिक तरल पदार्थों में मौजूद हैं, जो चमत्कारिक ढंग से कई रोगों का इलाज करते हैं|
मातृह सर्व भूतानाम, गावः सर्व सुख प्रदा
अनुवाद: सभी जीवों की माँ होने के नाते गाय हर किसी को सभी सुख प्रदान करती है|
यदि संयोगवश कुछ ज़हरीली या हानिकारक सामग्री भारतीय गाय के भोजन में प्रवेश करती है, तो वह उसे अपने मांस में अवशोषित कर लेती है| वह उसे गोमूत्र, गोबर या दूध में जाने नहीं देती या बहुत छोटी मात्रा में स्त्रावित (छोड़ती) करती है| इन परिणामों की तुलना दुनिया भर के अन्य शोधकर्ताओं ने अन्य जानवरों के साथ की है, उन्हें विभिन्न वस्तुएं खिला कर उनके दूध और मूत्र का परीक्षण किया गया लेकिन भारतीय वंश की गाय के अलावा किसी में यह विशेषता नहीं मिली| इस बात का वैज्ञानिक आधार यह है की भारतीय वंश की गायों में अमीनो एसिडों की एक श्रंखला होती है, उस श्रंखला में 67वें स्थान पर एक प्रोटीन पाया जाता है जिसे प्रोलाइन कहा जाता है| गाय के शरीर में एकत्रित हुआ विष भी एक प्रोटीन के रूप में मिलता है जिसे BCM7 कहा जाता है और यह बहुत ही हानिकारक होता है लेकिन भारतीय गाय के शरीर में मौजूद प्रोलाइन इस BCM7 को अपने साथ इतनी मजबूती से पकड़ लेता है की वह विष गाय के किसी भी गव्य (गौमूत्र, गोबर अथवा दूध) में मिल ही नहीं पाता है या बहुत ही कम मिल पाता है जबकि विदेशी नस्ल की गाय जैसी दिखने वाली जीव अपने शरीर में प्रोलाइन नहीं बना पाती है और उसकी जगह हिस्टिडाइन नामक प्रोटीन का निर्माण करती है जो BCM7 विष को उसके गोबर, मूत्र या दूध में जाने से रोकने में सक्षम नहीं है| इसलिए भारतीय गाय का गौमूत्र, गोबर और दूध शुद्ध हैं और विषाक्त पदार्थों को दूर करते हैं| गाय का दूध निश्चित रूप से विष विरोधक है| गौमूत्र “पंचगव्य” में शामिल है| “पंचगव्य” को सभी जीवों की हड्डी से त्वचा तक के सभी रोगों का संसाधक कहा जाता है|
यात्वगास्थी गतम पापं देहे तिष्ठति मामके
परास्नात पंच्गाव्यस्य दहसग्निरिवेंध्नाम
अनुवाद: त्वचा से हड्डियों तक, जो भी पाप(रोग) मेरे शरीर में हैं, पंचगव्य द्वारा नष्ट हो जाते हैं वैसे ही जैसे आग ईंधन को नष्ट कर देती है|
आयुर्वेद वेदों की शाखा है, जो औषधीय जड़ी बूटियों का उपयोग करके स्वास्थ्य के विभिन्न समग्र पहलुओं के साथ संबंधित है | स्वास्थ्य का मतलब शरीर, मन और आध्यात्म से भी है |
हालांकि गौमूत्र को दवा के रूप में इस्तेमाल करना इसका प्रथम उपयोग है, इसे तीन या अधिक अमेरिकी पेटेंट दिए गए हैं: 5616593, 6410059 और 5972382| यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण सत्य है कि भारत में कई लोगों ने भारतीय चिकित्सा की पारंपरिक प्रणाली में विश्वास खो दिया है, चूँकि अब पश्चिमी वैज्ञानिक समुदाय ने चिकित्सा में गौमूत्र की उपयोगिता को फिर से मानना शुरू किया है, तो अब हमारे देश के कुछ पश्चिम की तरफ देखने वाले लोग अपने स्वयं की चिकित्सा प्रणालियों की प्रभावकारिता पर आश्वस्त हो सकेंगे, व्यापक रूप से इसे स्वीकार करेंगे, इसे इस्तेमाल करेंगे और अपने स्वास्थ्य को सुधारने में इसका लाभ ले सकेंगे| पश्चिमी अनुसंधान से पता चला है कि गोमूत्र एंटीबायोटिक, रोगाणुरोधी, फंगसरोधी और तपेदिक विरोधी है| गौमूत्र अर्क गतिविधि बढ़ाने वाला और संक्रमण-विरोधी और कैंसर-विरोधी होने के साथ-साथ बायोएक्टिव अणुओं की उपलब्धता को सुविधाजनक बनाने वाला सिद्ध हो चुका है|
जालोर तथा बनासकांठा जिलों के गाँवो में तथा गोसेवा आश्रमों में प्रतिवर्श दस से बारह हजार गो वत्सों का पालन पोषण करके तैयार किया जाता है इनको पोष्टिक आहार, हरा-चारा, औषधि,स्नान, प्रेम आदि द्वारा पूर्ण देखभाल की जाती है तथा इनमें से विभिन्न गो प्रजातियों का चयन करके वर्गीकरण होता है। इन वर्गीकृत गो बछड़ियों को संवर्धन हेतु गांवो, घरों तथा आश्रमों में गोधाम महातीर्थ केवल प्रमाणिक सेवा एवं आजीवन संरक्षण की शर्त पर निःशुल्क वितरित करता है।
गो-परिचय
गाय सृष्टि का सर्वोत्तम प्राणी हैं यह बात शास्त्र कहते है तथा गाय की महत्ता,उपादेयता,आवश्यकता आध्यात्मिक,धार्मिक तथा वैज्ञानिक दृष्टि कोण से सर्वविदित है। इस बारे में खूब लिखा और कहा गया है तथा यह जानकारी सब को हैं। यहाँ केवल मैं व्यवहारिक रुप में जो हम प्रतिदिन गाय की सेवा करते हैं उस सम्बन्ध में कुछ आवश्यक बातें लिखने का प्रयास कर रहा हूँ जिससे गोवंश सुखपूर्वक रह सके और हमे भी ज्यादा से ज्यादा लाभ हो। बछड़े के जन्म से ही शुरु कर देते हैं -
(1) बछड़ा जब जन्म ले उस समय से उसकी पूरी देखभाल करें। गाय व्याहने के बाद जैसे ही बछड़ा खड़ा होने की कोशिश करे उस समय उसे पकड़ कर तुरन्त गाय के थन से लगावे और दूध पिलाये और दूध पिलाने से पूर्व गोमाता के चारो थनो में से थोड़ा-थोड़ा गूँता निकाल देवें बाद में बछड़े को थन मुँह में देवे। यदि जन्म के काफी समय के बाद भी बछड़ा खड़ा न होवे तो उसे हाथो से पकड़ कर थन मुँह में देना चाहिए और दूध पिलाना चाहिए। ध्यान रहे बछड़ा ज्यादा दूध न पिये। बाद में उसी बछड़े को नाप से ही दूध पिलावें। न भूखा रहे और न ही अधिक पिये। अधिक दूध पीने पर दस्त लग सकती है। जब बछड़ा 15 दिन का हो जावे,तब उसे आटे में नमक व हल्दी डालकर खिलाना शुरु करना चाहिए। बछड़े को कम से कम 3 माह तक पर्याप्त दूध मिलना चाहिए। गाय को दुहना छोड़ दे उस के बाद भी बछड़े को अच्छी प्रकार सम्भालना चाहिए। चारे के साथ साथ चूरी दाना,पौष्टिक आहार देना चाहिए। इससे बछड़ा जल्दी उपयोगी बनेगा। प्रायः लोग बछड़े को बिल्कुल ही दूध नहीं पिलाते हैं इस कारण बछड़े कुपोषण के शिकार होकर बड़ी मुश्किल से बड़े होते हैं और बहुत कमजोर हो जाते है। ऐसा होने से हानि हमको ही होती है। सेवा करने से 3 वर्ष की बछड़ी ब्याहती हैं। और कुपोषण की शिकार होने पर 5-6 साल में जाकर कही काम आती हैं।
(2) बछड़ो में अगर बछड़ी हो तो बड़ी होने पर सील में आने पर अच्छे नन्दी से गर्भाधान कराना चाहिए। जैसे तैसे नकारा नन्दी के सम्पर्क में नहीं आने देना चाहिए। ऐसा करने से आगे की नस्ल सुधर जाएगी । यदि बछड़ा हो तो छोटे समय में ही डाक्टर को बुलाकर उसे बैल बना देना चाहिए ताकी उसकी जिन्दगी बच सके। बैल न बनाकर वैसा ही नन्दी छोड़ देते हैं वो मारे-मारे भटकते है और दुःखी होते है। बैल किया हआहो तो बिक जाता है।
(3) व्याहने वाली गाय को व्याहने से पहले ही उसे बांधना,हाथ फेरना,पौष्टिक आहार देना आदि शुरु कर देना चाहिए। व्याहने के समय एक व्यक्ति को गाय के पास रहना चाहिए ताकी वो आराम से सेवा करने देती है वरना किसी को बाद में पास में नहीं आने देगी। घरों में इस बात का ध्यान रखतें है परन्तु गोशालाओं में ऐसा नहीं कर पाते हैं। इस कारण गाय और ग्वाले सबको बाद में बहुत समस्या का सामना करना पड़ता हैं। गाय मारती है। नजदीक नहीं आने देती है। प्रसव पीड़ा,रस्सा बाँधना,दुहना सब नया नया एक साथ होने से गाय भड़क जाती है जो बड़ी मुश्किल से धीरे-धीरे लाईन पर आती है। अतः हमे पहले से ही इसका ध्यान रखना चाहिए।
(4)गोमाता के व्याहने के बाद जब तक उसके मैली न गिरे तब तक उसके पास रहना चाहिये। कई गाये मैली गिरते ही एकदम वो खा लेती है। मैली खाना बहुत हानिकारक है अतः उसे गिरते ही वहाँ से उठाकर गड्डा खोदकर गाड़ देना चाहिये ताकि कुत्ते तंग न करें। यदि मैली नहीं गिरे तो पांच-छः सणियों की जड़ों को साफ घोकर उसके टुकड़े करके गुड़ के साथ पानी में उबाले। उसके बाद वह पानी दिन में दो बार तीन दिन तक गाय को पिलाने से मैली गिर जाती है।
(5)जब गाय के प्रसव का समय हो उसके तुरन्त पहले हो सके तो आधा किलो घी देना चाहिये ताकि प्रसव आराम से हो सके।10-15 दिन पूर्व 2-4 किलो घी पहले से ही दिया हुआ हो तो और भी अच्छा रहता है।
(6) व्याहने पर सबसे पहले खुराक में बाजरी देनी चाहिये। बाजरी पकाकर और कुत्तर में या जो भी चारा हो उस में मिला देना चाहिये।अकेली बाजरी नहीं खिलानी चाहिये। पहली बार थोड़ी बाजरी बिना पकाये दे सकते हैं। बाजरी भी थोड़ी थोड़ी दिन में 3-4 बार खिलाना चाहिये।एक साथ ज्यादा मात्रा में नहीं खिलाना चाहिये। बाजरा के साथ गुड़ व अजवायन भी दें सकते हैं। सप्ताह भर बाजरा देने के बाद फिर सुआवड़ शुरू करनी चाहिये। सुआवड़ में गेहू का भरड़ा,मैथी,गुड़,सुआ,माखनिया भाटा,खोपरे आदि देना चाहिये। ब्याहने के बाद 10-15 दिन तक हरा चारा नहीं देना चाहिये। व्याहने के बाद 2-3 दिन तक नवाया पानी पिलावे ज्यादा ठंडा न पिलावे। नवाये पानी से पूरे षरीर को साफ कर देना चाहिये।
(7) गाय के व्याहने के पूर्व अगर आर (गर्भाश्य बाहर आना) की शिकायत हो तो ब्याहने के बाद थोड़ी देर बैठने नहीं देना चाहिये। वरना सभी आँते बाहर आकर गाय की जान जा सकती है अगर व्याहने के बाद थोड़े दिनो में ही आयन कठोर हो जायें या थन में खून आवे तो डाक्टरको दिखाना चाहिए। तुरन्त ईलाज न होने पर थन जा सकता हैं।
(8) गोशाला मैं प्रायः बड़े बड़े बछड़े गायों के दूध पीते रहते हैं। दुह कर उन्हें अपनी माँ के साथ थोड़ी देर छोड़ देते है इस कारण वे बिना दूध ही अपनी मां को तंग करते है। अतः 5-6 महीने बाद बछड़ा दुबारा नहीं छोड़ना चाहिये । ऐसा करने पर उसके बहुत ही कम दूध होता हैं।
(9) प्रायः लोगों की शिकायत रहती हैं कि गाय मारती है, दुहने नहीं देती, बाँधने नहीं देती आदि। पहली बात तो यह है कि गाय के साथ कभी जोर जबरदस्ती नहीं करें और नहीं मारे-पीटे। उसे प्रेम से अपने वश में करें। सबसे सरल तरीका यह है कि आप उनके पास कुछ दूर बैठ जाएँ, फिर थोड़ा नजदीक आवें, फिर चले जावें, फिर आवें, फिर बैठें, फिर कुछ खिलावें। खिलाकर चले जावें । फिर आपके पास वो नजदीक आवे तो धीरे से हाथ फेरने की कोशिश करें और कुछ खिलावे। धीरे-धीरे विश्वास होने पर वो अपने आप आपके पास आयेगी या आप उसके पास जाओगे तो कोई प्रतिकार नहीं करेगी। कैसी भी खराब गाय हो, उसे धीरे-धीरे अपने वश में कर सकते है । हमेशा शरीर पर हाथ फैरना चाहिये और प्रेम से बुलाना चाहिये। ऐसा करेगें तो गाय आपके पीछे-पीछे फिरेगी।
(10) गाय कैसी भी सीधी और सरल हो तो भी दुहते समय हमेशा उसके नोजणा (पीछे के पैरो मे रसा बांधना) देकर ही दुहना चाहिये।
(11) गाय को दुहते समय पहले बछड़े को छोडें ,बछड़े को चाटकर जब गाय के थनों में पूरा दूध भर आवे तब उसे नोजणा (पीछे के पैरो मे रसा बांधना) दे, पहले न देवे। आगे वाँटा रखें और थोड़ी नजदीक से बांधे और बछड़े को पास में ही बांधे ताकि वह आराम से दूध देती है। बछड़ा पास में न हो और खाने को भी न हो तो दुहते समय वह इधर उधर सरकती हैं। अतः पहली बार से ही वैसी आदत डाले ताकि न दुहने देने की शिकायत कभी आवे ही नहीं। गाय के पास बछड़ा दुहते समय बांधने से बछड़ा भी जल्दी खाना खाना सीखता है। खाने के लिये वांटा रखकर दुहने से कभी बछड़ा मर जाये तो गाय बाँटे पर दुहने देती हैं।
(12)गाय को दुहने से पहले व बाद में थनांे को अच्छी प्रकार से धो लेना चाहिए।
(13) प्रायः लोग जब तक गाय दूध देती है तब तक अनाज चूरी या गोपौष्टिक आहार जो भी हो वो देते रहते हैं परन्तु जैसे ही दुहना बंद किया तो अनाज, चूरी बंद कर देतें हैं। ऐसा नहीं करना चाहिये। मात्रा थोड़ी कम कर सकते है पर बिल्कुल बन्द नहीं करना चाहिये। इससे गाय थक जाती है तथा आगे दूध पर भी असर पड़ता हैं। जब हम 2-3 महीनें गाय दुहना छोड़ देते हैं उस समय अच्छी खुराक मिलने से गााय की व्याहत में दूध अच्छा मिलता हैं।
(14)गोमाता को वांटे के साथ हमेशा थोड़-2 सेंधा नमक देते रहना चाहिये। स्वास्थ्य के लिये नमक अतिआवश्यक हैं।
(15) पुराने समय में तो चारागाह आदि सब सुविधा थी और लोग भी गायांे पर खूब ध्यान देते थे पर अब सबकी कार्य क्षमता घट गयी है। घरों में सर्दी,गर्मी,वर्षा आदि ऋतुओ के अनुसार गाय के रहने की सुविधा हम नहीं कर पा रहे हैं। बरसात के मौसम में जब तक बारिश होती रहती है तब तक गाय खड़ी रहती है बैठती नहीं है। वर्षात बन्द हो जाती है तो भी अगर गाय बन्धी रहती हैं, वहाँ पानी होगा तो गाय नहीं बैठेगी इस कारण वर्षात के मौसम में विशेष ध्यान रखना चाहिये और कीचड़ में और पानी में गाय को नहीं रखें साफ व सूखे स्थान पर बाँधे। हमेशा उसी स्थान पर न रखकर हेरा फेरी करते रहें और स्थान को सुखा कर ठीक करते रहे । तभी गाय रह पायेगी। वर्षा के मौसम में 2-3 दिन तक खड़े रहते गाय को मैने देखा है। कीचड़ से बाहर ले जाने पर ही गाय बैठी ऐसा प्रत्यक्ष कई बार देखा गया हैं। इसी प्रकार गर्मी व सर्दी में भी उचित व्यवस्था होनी चाहिये। जो गायें रात दिन बंधी रहती है उनको सर्दी के मौसम में दिन में एक बार धूप में अवश्य ले जाये गर्मी में छांया के हिसाब से हेरा फेरी करते रहें। वैसे भी दिन में व रात में रहने का स्थान अलग-अलग होना चाहिए। प्रायः कई गोशालाओ में देखा गया है कि बहुत ऊँची-2 दीवारें तथा रहने के लिये पक्के मकान तथा नीचे ईटें-पत्थर बिछा देते है एवं बहुत ही छोटे स्थान पर निर्धारित मात्रा से अधिक गायें रखते है और चारो ओर से बन्द होने से हवा प्रकाश नहीं आता है। गायो के लिये ऐसा जरूरी नहीं है और अनुकूल भी नहीं है। गायो को केवल सर्दी,गर्मी व वर्षा से थोड़ा बचाव होना चाहिये। बाकी स्थान खुला रहे। जहाँ दिन मे गाये रहती है वहाँ रात्रि में नहीं रह सकती और जहाँ रात्रि में रहती है वह स्थान दिन मे अनुकूल नहीं पड़ता है। जैसे पक्का कमरा है वहाँ छाया होने से दिन में तो गाय रह जायेगी पर रात्रि में वहाँ भंयकर गर्मी लगेगी। अतः गर्मी की रात्रि में बिल्कुल खुले स्थान मे रखना आवश्यक है। इसी प्रकार सर्दियो की रात्रि में कमरे में रह जाऐगी दिन में एक बार धूप में लाना अनिवार्य है उसी प्रकार बैठने का स्थान भी रेतीला हो जहाँ आराम से बैठ सके। पत्थर पर चैबीसो घंटे गाये को रखने से तकलीफ पाती है। अतः ऐसा हमें व्यावहारिक दृष्टि से सब देख कर रख रखाव व्यवस्था करनी चाहिये।
(16) जो क्षेत्र सिंचित है उस क्षेत्र के घरो में गायें हमेशा बंधी रहती है। वे छोड़ते नहीं है यह भी ठीक नहीं हैं। गाय के लिये फिरना भी आवश्यक हैं। बिना फिरे खुराक हजम नहीं होगी और चर्बी बढ जायगी। अतः खेत में जमीन थोड़ा थोड़ा हिस्सा गायो के लिये छोड़ें ताकि वहाँ चर-फिर सके। जमीन भी वो शुद्ध रहेगी और गायों को भी आराम रहेगा। जमीन की कमी है फिर भी चाहकर ऐसा करना चाहिए। गोशालाओ में जहाँ अधिक गायें होती है और खुली रहती है वहाँ सबको नहलाना सम्भव नहीं हो सकता हैं परन्तु घरो में जहाँ थोड़ी गाये है और बाधतें है उनको 15 दिन में एक बार गर्मियों के मौसम में सवेरे के समय (धूप निकलने से पहले) नहलाना चाहिये।
(17) गायो को चारा और दाना अनाज या गोपुष्टिक आहार जो भी हो सब उसकी क्षमता के अनुसार दें। आवश्यकता से अधिक मात्रा में भी न दें, वो खा तो जायेगी पर हजम नही होगा और हर समय चारा आगे पड़ा रहने से वो चारा भी कम खाएगी गोशालाओ में तो ऐसा करना सम्भव नहीं है पर घरो में यह कर सकते कि समय पर ही आवश्यकता के अनुसार चारा दें। व्यवस्थित और समय पर चारा पानी देने से गाय जल्दी ही स्वस्थ व हष्ट-पुष्ट बन जाती हैं।
(18) मारवाड़ी में कहावत हैं ‘‘ज्यादा खिलाकर प्राप्त किया जाता है और थोड़ा खिलाकर गवायाँ जाता है’’ अर्थात् जितना आवश्यक हों उतनी ही खुराक को देनी चाहिये तभी हमें दूध, घी,मखन आदि पर्याप्त मात्रा में मिलेगा अन्यथा थोड़ा खिलाते है तो कोई लाभ नहीं होता है। धन भी कमजोर रहता है और हमे भी प्रतिफल नहीं मिलता है।
(19) गाय के बारे में जब चर्चा होती है तो यह बात सामने आती है कि गाय दूध कम देती है। उसका मूल्य भी कम है। इस प्रकार आर्थिक दृष्टि से गाय पालना महंगा पड़ता है। दूसरी तरफ लोग भैसों को अच्छी तरह पालते है। यदि केवल आर्थिक पक्ष देखें तो भी गाय-भैंस से आगे रहती है। यदि आपके घर में बछड़ी बड़ी हुई है और सेवा की है तथा ब्याहने के बाद में अच्छी प्रकार सेवा करे तो भैस से कम खर्चें में भैस के बराबर दूध करती है। अन्तर यह रह जाता है कि जिस प्रकार बचपन से लेकर दूहने तक छोटी पाडी भैंस की बच्ची की हम सेवा करते है और आगे भी चराते है और दूध देना बन्द किया। तब भी चाकरी भैंस की करते है जबकि गाय को केवल दुहने के समय ही मामूली चराते है। यदि अच्छी प्रकार भैंस की तरह ही गाय की सेवा करें तो भैस से गाय का दूध ज्यादा ही होगा,कम नहीं होगा यह पक्की बात है या वैसे कर लो कि एक के खर्चे में दो गायें पल जायेगी और दो गायें मिलकर भैंस से आगे रहेगी।
गाय का मूल्य बढ़ाने और दूध बढ़ाने के लिये नस्ल सुधार करना आवश्यक है। लोगों ने वैसे ही आवारा नन्दी छोड़ दिये है। जिससे गायों का स्तर गिर गया है। इस कारण जिसके घर में संसाधन हो, पानी हो,जमीन हो, उनको अपने घर की गायों के लिये अच्छी नस्ल का सांड रखना चाहिये ताकि अपनी गायें सुधर जाय और गांव में दूसरी गायें भी सुधरें। अच्छी नस्ल के सांड की बछड़ी ब्याहेगी तो एक समय का 8-10 लीटर दूध करेगी। ऐसा कार्य कई स्थानों पर हो रहा है। हम खुद थरा (गुजरात) में देखकर आये हैं। वहाँ सभी गायें, बछड़े खूब सुन्दर है व दूध भी अच्छा है। उन्होंने नस्ल सुधार किया है। अपने यहाँ दाता में भाखरारामजी विश्नोई के खेत में वे स्वयं का अच्छा सांड रखते है वहाँ अन्य लोग भी गायें लेकर आते है। इससे कई गायों की नस्ल सुधर जायगी। जिस गाय के दूध अच्छा हो उस गाय का नन्दी बड़ा कर उसे गायों में रखना चाहियें। अगर हम सब वैसा करें और आवारा नन्दियों को बन्द कर दे तो आने वाली पीढ़ी पूरी सुधर जायेगी। तब गाय को अनुपयोगी मानकर कोई नहीं छोड़ेगा। गाय रहने के बाद नन्दी को कम से कम एक किलो गुड़ गाय मालिक द्वारा खिलाना चाहिये।
वैसे भी अब तो फेट पर भैंस से गाय के दूध का पैसा ज्यादा मिलता है इस प्रकार भैस के बराबर दूध की कीमत आ जाती है। इस कारण गायों की तरफ लोंगो का ध्यान जाने लगा है। गाय के दूध में फेंट कम होता है परन्तु दूसरे सभी आवश्यक तत्व होते है। केवल फेट वाला दूध शरीर के लिये उपयोगी नहीं है। शरीर के लिये सभी तत्वों की जरुरत है। गाय के दूध में सभी तत्व होते हैं जिससे शरीर स्वस्थ रहता है इस कारण भी भैस की बजाय गाय का दूध अधिक उपयोगी है। इसलिये ज्यादा पैसे देकर भी सदैव गाय का दूध ही खरीदना चाहिये।
हम अगर गोरस का बखान करते करते मर जाए तो भी कुछ अंग्रेजी सभ्यता वाले हमारी बात नहीं मानेगे क्योकि वे लोग तो हम लोगो को पिछड़ा, साम्प्रदायिक और गँवार जो समझते है| उनके लिए तो वही सही है जो पश्चिम कहे तो हम उन्ही के वैज्ञानिक शिरोविच की गोरस पर खोज लाये हैं जो रुसी वैज्ञानिक है|
गाय का घी और चावल की आहुती डालने से महत्वपूर्ण गैसे जैसे – एथिलीन ऑक्साइड,प्रोपिलीन ऑक्साइड,फॉर्मल्डीहाइड आदि उत्पन्न होती हैं । इथिलीन ऑक्साइड गैस आजकल सबसे अधिक
प्रयुक्त होनेवाली जीवाणुरोधक गैस है,जो शल्य-चिकित्सा (ऑपरेशन थियेटर) से लेकर जीवनरक्षक औषधियाँ बनाने तक में उपयोगी हैं । वैज्ञानिक प्रोपिलीन ऑक्साइड गैस को कृत्रिम वर्षो का आधार मानते है । आयुर्वेद विशेषज्ञो के अनुसार अनिद्रा का रोगी शाम को दोनों नथुनो में गाय के घी की दो – दो बूंद डाले और रात को नाभि और पैर के तलुओ में गौघृत लगाकर लेट
जाय तो उसे प्रगाढ़ निद्रा आ जायेगी ।
गौघृत में मनुष्य – शरीर में पहुंचे रेडियोधर्मी विकिरणों का दुष्प्रभाव नष्ट करने की असीम क्षमता हैं । अग्नि में गाय का घी कि आहुति देने से उसका धुआँ जहाँ तक फैलता है,वहाँ तक का
सारा वातावरण प्रदूषण और आण्विक विकरणों से मुक्त हो जाता हैं । सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि एक चम्मच गौघृत को अग्नि में डालने से एक टन प्राणवायु (ऑक्सीजन) बनती हैं जो
अन्य किसी भी उपाय से संभव नहीं हैं|
देसी गाय के घी को रसायन कहा गया है। जो जवानी को कायम रखते हुए, बुढ़ापे को दूर रखता है। काली गाय का घी खाने से बूढ़ा व्यक्ति भी जवान जैसा हो जाता है।गाय के घी में स्वर्ण छार पाए जाते हैं जिसमे अदभुत औषधिय गुण होते है, जो की गाय के घी के इलावा अन्य घी में नहीं मिलते । गाय के घी से बेहतर कोई दूसरी चीज नहीं है। गाय के घी में वैक्सीन एसिड, ब्यूट्रिक एसिड, बीटा-कैरोटीन जैसे माइक्रोन्यूट्रींस मौजूद होते हैं। जिस के सेवन करने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से बचा जा सकता है। गाय के घी से उत्पन्न शरीर के माइक्रोन्यूट्रींस में कैंसर युक्त तत्वों से लड़ने की क्षमता होती है।
यदि आप गाय के 10 ग्राम घी से हवन अनुष्ठान (यज्ञ,) करते हैं तो इसके परिणाम स्वरूप वातावरण में लगभग 1 टन ताजा ऑक्सीजन का उत्पादन कर सकते हैं। यही कारण है कि मंदिरों में गाय के घी का दीपक जलाने कि तथा , धार्मिक समारोह में यज्ञ करने कि प्रथा प्रचलित है। इससे वातावरण में फैले परमाणु विकिरणों को हटाने की अदभुत क्षमता होती है।
गाय के घी के अन्य महत्वपूर्ण उपयोग :–
1.गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर होता है।
2.गाय का घी नाक में डालने से एलर्जी खत्म हो जाती है।
3.गाय का घी नाक में डालने से लकवा का रोग में भी उपचार होता है।
4.20-25 ग्राम घी व मिश्री खिलाने से शराब, भांग व गांझे का नशा कम हो जाता है।
5.गाय का घी नाक में डालने से कान का पर्दा बिना ओपरेशन के ही ठीक हो जाता है।
6.नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तारो ताजा हो जाता है।
7.गाय का घी नाक में डालने से कोमा से बहार निकल कर चेतना वापस लोट आती है।
8.गाय का घी नाक में डालने से बाल झडना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते है।
9.गाय के घी को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है।
10.हाथ पाव मे जलन होने पर गाय के घी को तलवो में मालिश करें जलन ढीक होता है।
11.हिचकी के न रुकने पर खाली गाय का आधा चम्मच घी खाए, हिचकी स्वयं रुक जाएगी।
12.गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है।
13.गाय के घी से बल और वीर्य बढ़ता है और शारीरिक व मानसिक ताकत में भी इजाफा होता है
14.गाय के पुराने घी से बच्चों को छाती और पीठ पर मालिश करने से कफ की शिकायत दूर हो जाती है।
15.अगर अधिक कमजोरी लगे, तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पी लें।
16.हथेली और पांव के तलवो में जलन होने पर गाय के घी की मालिश करने से जलन में आराम आयेगा।
17.गाय का घी न सिर्फ कैंसर को पैदा होने से रोकता है और इस बीमारी के फैलने को भी आश्चर्यजनक ढंग से रोकता है।
18.जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक की तकलीफ है और चिकनाइ खाने की मनाही है तो गाय का घी खाएं, हर्दय मज़बूत होता है।
19.देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है। इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता है।
20.संभोग के बाद कमजोरी आने पर एक गिलास गर्म दूध में एक चम्मच देसी गाय का घी मिलाकर पी लें। इससे थकान बिल्कुल कम हो जाएगी।
21.फफोलो पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता है।गाय के घी की झाती पर मालिस करने से बच्चो के बलगम को बहार निकालने मे सहायक होता है।
22.सांप के काटने पर 100 -150 ग्राम घी पिलायें उपर से जितना गुनगुना पानी पिला सके पिलायें जिससे उलटी और दस्त तो लगेंगे ही लेकिन सांप का विष कम हो जायेगा।
23.दो बूंद देसी गाय का घी नाक में सुबह शाम डालने से माइग्रेन दर्द ढीक होता है। सिर दर्द होने पर शरीर में गर्मी लगती हो, तो गाय के घी की पैरों के तलवे पर मालिश करे, सर दर्द ठीक हो जायेगा।
24.यह स्मरण रहे कि गाय के घी के सेवन से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता है। वजन भी नही बढ़ता, बल्कि वजन को संतुलित करता है । यानी के कमजोर व्यक्ति का वजन बढ़ता है, मोटे व्यक्ति का मोटापा (वजन) कम होता है।
25.एक चम्मच गाय का शुद्ध घी में एक चम्मच बूरा और 1/4 चम्मच पिसी काली मिर्च इन तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाट कर ऊपर से गर्म मीठा दूध पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है।
26.गाय के घी को ठन्डे जल में फेंट ले और फिर घी को पानी से अलग कर ले यह प्रक्रिया लगभग सौ बार करे और इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें। इस विधि द्वारा प्राप्त घी एक असर कारक औषधि में परिवर्तित हो जाता है जिसे जिसे त्वचा सम्बन्धी हर चर्म रोगों में चमत्कारिक मलहम कि तरह से इस्तेमाल कर सकते है। यह सौराइशिस के लिए भी कारगर है।
27.गाय का घी एक अच्छा(LDL)कोलेस्ट्रॉल है। उच्च कोलेस्ट्रॉल के रोगियों को गाय का घी ही खाना चाहिए। यह एक बहुत अच्छा टॉनिक भी है। अगर आप गाय के घी की कुछ बूँदें दिन में तीन बार,नाक में प्रयोग करेंगे तो यह त्रिदोष (वात पित्त और कफ) को संतुलित करता है।
28.घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शक्कर (बूरा) तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बाँध लें। प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा कुनकुना दूध घूँट-घूँट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता है, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता है

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