शनिवार, 28 मार्च 2015

रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाये

श्रीराम साक्षात धर्म हैं। राम आनंद हैं। राम ब्रह्म हैं। राम चरित्र हैं। यही नहीं इस राष्ट्र का अर्थात हमारे भारत का चरित्र श्रीराम हैं।
यदि विश्व में एकता आ सकती है तो उसका मार्ग अध्यात्म की ही गली से जाता है।
आज हम जो भी हैं, वह अपनी सोच, विचार और चिंतन का परिणाम है। अध्यात्म से शुद्ध अंतःकरण का निर्माण होता है। अध्यात्म से हम अपने स्वभाव की ओर लौटते हैं।
मनुष्य का स्वभाव है कि वह दुख नहीं चाहता, चिंता नहीं चाहता, वह स्वतंत्र, स्वावलंबी, प्रसन्न और सुखी रहना चाहता है।
इस परम आनंद का मार्ग भी अध्यात्म है।

श्री रामनवमी की आपको एवं आपके समस्त परिवार को हार्दिक शुभकामनायें और ढेरों बधाइयाँ.
श्रीराम...

गुरुवार, 26 मार्च 2015

पंचगव्य

पंचगव्य : पंचगव्य कई रोगों में लाभदायक है। पंचगव्य
का निर्माण गाय के दूध, दही, घी, मूत्र, गोबर
द्वारा किया जाता है। पंचगव्य द्वारा शरीर
की रोग
निरोधक क्षमता को बढ़ाकर रोगों को दूर
किया जाता है। ऐसा कोई रोग नहीं है
जिसका इलाज पंचगव्य से न किया जा सके।

मंगलवार, 24 मार्च 2015

ग्राम एवं राष्ट्रीय विकास के लिये अधिष्ठान रूप गोवंश का सार्थक उपयोग करें

ग्राम एवं राष्ट्रीय विकास के लिये अधिष्ठान रूप गोवंश का सार्थक उपयोग करें
ईश्वर ने हरेक प्रजा को भले ही फिर वह भारतीय हो, अफगानिस्तानी हो या यूरोपीय हो, शारीरिक और बौद्धिक शक्ति बराबर दी है। इस सम्पत्ति को मानव स्वयं के कर्म से घटा—बढ़ा सकता है। जिस प्रजा या मानव में यह सम्पत्ति अधिक है व मानव अथवा प्रजा कम संपत्ति वाले मानव या प्रजा पर राज्य करते हैं। रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथ इसके साक्षी हैं कि उस समय जब आर्य मात्र गाय का पालन करते थे, तब पृथ्वी पर उन्हीं की सत्ता थी। इतिहास देखने से यह भी ज्ञात होता है कि लगभग साढ़े तीन हजार वर्ष पूर्व भारत में भैंस का आगमन हुआ और उसके दूध, घी के सेवन से भारतीयों के बुद्धि, बल, विवेक तथा शांति का विनाश होता चला गया। इसके बाद भारतीय अफगानिस्तानी, मुस्लिम और अंग्रेजों से पराधीन होते रहे। यूरोप में भैंस के दूध का सेवन कभी नहीं होता है। गाय के दूध व उससे बनी वस्तुओं का ही सेवन होता है क्योंकि वे गाय के गुणों से सुपरिचित हैं जबकि दूसरी ओर भारत में स्थिति यह है कि आज खेती के सारे संसाधन गांवों से निकल रहे हैं। खेती के लिए खाद, बीज, पानी, बिक्री के लिए बाजार सब सरकार के हाथों में केन्द्रित हो गये हैं। महंगाई के आगे किसान घुटने टेक चुका है इसीलिए बैल की अच्छी कीमत जब मांस का व्यापारी उनके सामने फेंकता है तो वे लालच या लाचारी में उसे बेच देता है। आज गांव में बैल की कीमत आसमान छू रही है। उसे कौन खरीदे और कौन पाले? जब किसान को बैलों की आवश्यकता होती है तो वह गांव के भूपति से जो चार बैलों की हैसियत रखता हे, किराये पर ले लेता है। इसी कारण गाय जैसे उपयोगी पशु कत्लखाने की ओर जा रहे हैं। गौवंश की हत्या का सवाल वर्षों से उलझा हुआ है। इस समय देश में गोमांस का निर्यात करके अधिक से अधिक विदेशी मुद्रा कमाने की दौड़ चल रही है। इस कारण सरकार ने भी बड़े बड़े कत्लखाने बनवाये हैं। बंबई का देवनार कत्लखाना एशिया में अपने ढंग का सबसे बड़ा कत्लखाना है।
यहाँ के मांस के सबसे बड़े ग्राहक अरब देश हैं। गोमांस की कीमत २५०/ रु. प्रति किलो तक बताई जाती है। इन कत्लखानों में जानवरों को कत्ल करने के कुछ कानून बनाये गये हैं परन्तु इन कानूनों का कितना पालन हो रहा है, इसको कोई व्यक्ति किसी भी कत्लखाने के मुख्य द्वार पर खड़े होकर देख सकता है। अगर यही क्रम चलता रहा तो हमारी दूध देने वाली ९०% गायेेंं खत्म हो जायेंगी और दूध का उत्पादन ७०% कम हो जायेगा।
बंबई, कलकत्ता और मद्रास जैसे शहरों में ५० हजार से ज्यादा उपयोगी व कम उम्र के पशुओं का कत्ल होता है क्योंकि सरकार इस योजनावधि में ५०० करोड़ रुपये का मांस निर्यात करना चाहती है।
विदेशी लोगों की कूटनीति तो देखिए कि वे गाय के दूध को पीने के लिये गायों को हमारे यहाँ से ले गये और अब गाय के मांस को खाने के लिये हमसे ही हमारी गायों को कत्ल करवाकर मांस आयात कर रहे हैं। अगर ऐसी ही स्थिति रही तो भविष्य मेें भारत के बच्चे गाय को प्राणी संग्रहालयों में ही देख पायेंगे। यह हमारे लिये कितने शर्म की और त्रासदी की बात है। इसे देखकर तो रघुवंश की यह उक्ति याद आती है जिसे गाय की रक्षा के लिये अपने आपको समर्पित करने वाले महाराजा दिलीप ने कहा है कि—
अल्पस्य हे बहुहातुमिच्छन् विचारमूढ: प्रतिभासि मे त्वम्।।
अर्थात् छोटी से छोटी चीज के लिये बहुत बड़ा लुटा देने वाले विचारमूढ़ होते हैं।
यह विचारमूढ़ता ही है कि जो वृहद् मुंबई नगरपालिका द्वारा संचालित देवनार बूचड़खाने में प्रतिवर्ष १८० करोड़ रुपये मूल्य का पशुधन काटा जा रहा है। यदि ये काटना बन्द हो जाये तो ३ लाख ७० हजार टन अनाज,१० लाख टन चारा,३० लाख टन खाद, २० करोड़ ५७ हजार टन दूध और ९ लाख ८० हजार लोगों को रोजगार मिल सकता है।
अपने देश के कृषकों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी तो ही हम समय के साथ दौड़ सकेंगे। किसानों के पास उत्तम बीज खरीदने हेतु पर्याप्त धन होगा, जमीन के लिये छोटे—छोटे टुकड़ों में गहन खेती करने हेतु पर्याप्त भोजन होगा तभी तो बढ़ती जनसंख्या का भार वे उठा सकेंगे।
गोपालन को प्रत्येक किसान पूरक व्यवसाय के रूप में अपनायेगा तो उसकी समस्त समस्याओं का समाधान हो जायेगा तथा देश की आर्थिक स्थिति को भी सुदृढ़ बना सकेगा।
अत: ग्राम एवं राष्ट्रीय विकास के लिये अधिष्ठान रूप गोवंश का सार्थक उपयोग करें ताकि कुपोषण रुके, पौष्टिक अनाज, स्वस्थ पर्यावरण, स्थानीय उद्योग बढ़े और पुरुषार्थ प्रकट हो।

गाय व उससे प्राप्त पदार्थों की महत्ता

गाय व उससे प्राप्त पदार्थों की महत्ता

‘‘गाय ही श्रेष्ठ क्यों’’? मात्र कम फैट वाले दूध के कारण हमने गाय को पालना कम कर दिया और भैंसों का पालन बढ़ा दिया। कभी ये नहीं सोचा कि फैट व दूध की मात्रा के साथ गुणों का ध्यान भी रखा जाना चाहिये। ‘शंख’ चाहे जितना बड़ा हो पर छोटे से ’’मोती’ की बराबरी नहीं कर सकता। वनस्पति घी तथा देशी घी में फैट समान है फिर भी दोनों के भावों में दुगना अंतर है क्योंकि दोनों के गुणों में अंतर है। तो फिर गाय और भैंस के दूध—दही—मक्खन, घी आदि में भी अतंर होता है इस बात को स्वीकार करना चाहिये। पशुओं के स्वयं के गुण दोष का प्रभाव उनके उत्पाद अर्थात् दूध—दही पर भी पड़ता ही है। आओ निम्न तथ्यों पर इसका परीक्षण करें:—
गाय का बछड़ा तीन घण्टे में उछल कूद शुरू कर देता है जबकि भैंस का नहीं। इससे स्पष्ट है कि भैंस का दूध—
दही आदि में जड़ता या आलस स्वाभाविक रूप से ज्यादा होता है जबकि गाय के दूध में चेतनता।
पचास गायों के झुण्ड मेें बछड़े को छोड़ देने पर भी वह अपनी मां के पास सीधे पहुंचता है जबकि भैंस का बच्चा
बीस के झुण्ड में छोड़ते हैं तब भी एक के बाद एक सूंघकर अपनी मां के पास पहुंचता है। इससे दोनों की बुद्धिमत्ता
का अनुमान लगा सकते हैं।
गायों को उनका नामकरण करने पर नाम से बुलाने पर दौड़कर आती है पर भैंस में यह बुद्धि नहीं होती है।
राजस्थान में अनेकों जिलो में मात्र एक गाय के गले में घण्टी बांध देने से घण्टी वाली गाय के साथ—साथ अन्य गायें भी आठ दस मील घूम कर घास चर के आ जाती हैं, वापसी में एक गाय भी छूट नहीं पाती
जबकि मात्र दस भैंसें भी घण्टी बांध के छोड़ें तो साथ नहीं रहेंगी। उन्हें समय स्थान के अनुशासन का भान नहीं
रहता है।
जैसी उत्तम खेती गाय की संतान बैल से हो सकती है, वैसे पाड़ों से नहीं।
गाय सूर्य किरणों के ताप का सामना कर सकती है, इससे गाय (विशेष रूप से देशी गाय) का दूध ज्यादा स्वास्थ्यप्रद
 होता है। (युगशक्ति गायत्री, सित. ९०)
इन सब तथ्यों से बुद्धिमान व्यक्ति सहज रूप से ही समझ सकता है कि ‘‘गाय ही हमारी अर्थव्यवस्था के लिये श्रेष्ठ क्यों है?’’ क्योंकि हमारे अर्थव्यवस्था को संचालित करने वाले व्यक्ति तथा बच्चे (कल के नागरिक) जैसा गुणों वाला भोज्य पदार्थ ग्रहण करेंगे, वे वैसे बनेंगे और देश को भी वैसी ही गति एवं विकास प्रदान करेंगे।

इक्कीसवीं सदी में बैलों का भविष्य

इक्कीसवीं सदी में बैलों का भविष्य

भारत में अधिकतर किसानों के पास दो हेक्टेयर से कम भूमि है,लेकिन भारत सरकार की जो नीतियां चल रही हैं वे अधिकतर बड़े किसानों के लिये हैं। यंत्रीकरण और ट्रेक्टरों के लिए ऋण, अनुदान व अन्य सुविधायें उपलब्ध कराई जाती है, जिनका उपयोग वे किसान नहीं कर सकते जिनके पास चार पाँच हेक्टेयर भूमि है। उन्हें तो पशुशक्ति पर ही आधारित रहना होगा। प्रश्न यह उठता है कि क्या पशुशक्ति आर्थिक दृष्टि से ट्रैक्टर का मुकाबला नहीं कर सकती? यदि सभी पहलू देखे जाएं और उनका मूल्यांकन किया जाय तो पशुशक्ति न केवल इक्कीसवीं सदी में बल्कि शायद २५ वीं सदी में भी अधिक उपयोगी बनी रहेगी।
अमेरिका के एक प्रतिष्ठित संस्थान ‘‘वर्ल्ड वॉच इंस्टीट्यूट’’ ने अपनी हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट में सिफारिश की है कि ‘‘स्थायी कृषि और पर्यावरण सुधार के लिए कृषि का आधार पशुओं को ही दोबारा बनाना होगा।’’ फिर हम यंत्रीकरण की ओर क्यों भाग रहे हैं? १९८२ की पशुगणना के आधार पर हमारे देश में ८ करोड़ २० लाख बैल खेती में लगे थे। उसके बाद के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं अत: इसी को आधार मानकर:—
एक ट्रैैक्टर चार बैलों का काम कर पाता है अत: ८ करोड़ २० लाख बैलों के लिये हमें २ करोड़ ५ लाख ट्रैक्टरों
की आवश्यकता होगी।
आज हमारे देश में केवल ५ लाख ट्रैक्टर कार्यरत् हैं, इनकी संख्या २ करोड़ ५ लाख करने में कितने वर्ष लगेंगे?
इसका अनुमान आप स्वयं लगा सकते हैं।
प्रतिवर्ष ५० से ६० हजार ट्रैक्टर ही अधिकाधिक बढ़ पाते हैं और दस बारह वर्षों के बाद नये ट्रैक्टर भी
बेकार हो जाते हैं।
इन ट्रैक्टरों के लिए आज विदेशी मुद्रा में पेट्रोलियम पदार्थों का आयात प्रतिवर्ष कम से कम ५० हजार करोड़
का करना होगा। इस समय पेट्रोलियम पदार्थों का आयात मात्र १५ हजार करोड़ रुपये का है लेकिन इसके लिये
भी हमें विदेशी कर्ज लेना पड़ता है।
जिन बड़े किसानों ने ट्रैक्टर ले भी लिए हैं उन्हें भी कुछ बैल तो रखने ही पड़ते हैं, बहुत से ऐसे कार्य हैं जो सिर्फ
बैलों से होते हैं।
बैलों द्वारा जो भार वहन का कार्य होता है, वह भी करीब २५०० करोड़ किलोमीटर के बराबर है। इतना भारवाहन
तो हमारी संपूर्ण रेलवे भी नहीं कर पाती है। यदि इसका भी यंत्रीकरण किया जाय तो न जाने कितने ट्रकों की
आवश्यकता होगी और फिर इनके लिये वही प्रश्न उठेगा,पेट्रोलियम पदार्थों का आयात।
गोवंश एक ऐसा धन है जिसका बहुउद्देशीय उपयोग है। जब ट्रैक्टरों के माध्यम से खेती करते हैं तो न तो गोमूत्र और न ही गोबर मिलेगा। गोबर व सेन्द्रिय खाद के कितने गुण हैं इसे अमेरिका व पाश्चात्य देशों ने बहुत अच्छी तरह से समझ लिया है और वहां लाखों ऐसी दुकाने खुल गई हैंं जो ऐसे खाद्यान्न और फलफूल बेचती हैं जिन्हें गोबर व सेन्द्रिय खाद द्वारा ही उत्पादित किया गया है। ऐसे पदार्थों के वे अधिक दाम देने में भी नहीं हिचकिचाते हैं।’’

@@भावुकता और नारों से नहीं बचेगी गाय@@

भावुकता और नारों से नहीं बचेगी गाय
गाय हमारी माता है,  गाय को बचाना है,  गाय देश की पहचान है- जैसे नारे समय-समय पर सुनाई पड़ते रहते हैं। सड़क पर ट्रकों में लदी गायों को पुलिस से पकड़वा करके,  उन गाड़ियों में आग लगाकर व कुछ एक को पीटकर लोग मान लेते हैं कि उन्होंने गौ-सेवा का पुण्य कमा लिया। लेकिन आंकड़े कुछ और बताते हैं। हमारे गांवों में बैल आधारित खेती की जोत तेजी से घटती हुई लगभग खत्म हो रही है। हमारी गाय दुनिया में सबसे कम दूध देने वाली गाय है। लगातार बंट रहे परिवारों के कारण ग्रामीण अंचलों में घर के आकार छोटे हो रहे हैं। ऐसे में,  गाय-बैल को रखने की जगह निकालना काफी कठिन होता जा रहा है। जब तक ऐसी व्यावहारिक बातों को सामने रखकर गो-धन संरक्षण की बात नहीं होगी,  तब तक यह कार्य किसी कथा-वाचक के भागवत वाचन की ही तरह होगा,  जहां कथा सुनते समय तो भक्तगण भाव-विभोर होते हैं। लेकिन वहां से बाहर निकलकर वे अपनी उसी दुनियादारी में वापस लौट जाते हैं,  जिससे मुक्ति की खोज के लिए वे उस कथा में गए थे।

सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि हमारे यहां अब भी गाय को ‘दान की बछिया’  ही माना जाता है। जाहिर है कि भारत में गाय पालना बेहद घाटे का सौदा है। जब गाय दूध देती है,  तब तो पालक उसे घर रखता है और जब वह सूख जाती है,  तो सड़क पर छोड़ देता है। बारिश के दिनों में गायों को कहीं सूखी जगह बैठने को नहीं मिलती,  वे मक्खियों व अन्य कीटों से तंग रहती हैं, सो राजमार्गों पर कुनबे सहित बैठी होती हैं। विडंबना है कि हर दिन इस तरह मुख्य सड़क पर बैठी या टहलती गायों की असामयिक मौतें होती हैं और उनकी चपेट में आकर इंसान भी चोटिल होते हैं और इस तरह आवारा गायें आम लोगों की संवेदना खो देती हैं। गायों की रक्षा के लिए धार्मिक उद्धरण देने या इसे भावुक जुमलों में उलझाने की बजाय इसके लिए कई जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए। सबसे पहले तो भारतीय गाय की नस्ल सुधारने,  उसकी दूध-क्षमता बढ़ाने के वैज्ञानिक प्रयास किए जाने जरूरी हैं।

कुछ हद तक गायों की विदेशी नस्लों पर पाबंदी लगे व देशी नस्ल को विकसित किया जाए। कुछ कार्या,  जैसे पूजा, बच्चों के मिल्क पाउडर आदि में गाय के दूध, घी आदि की अनिवार्यता करने से गाय के दूध की मांग बढ़ेगी और इससे गो-पालक भी उत्साहित होंगे। गो-मूत्र व गोबर को अलग से संरक्षित करने व उनसे निर्मित खाद व कीट नाशकों का व्यावसायिक उत्पादन हो,  ताकि पशु पालक को इससे भी कुछ आय हो और वे उसे आवारा न छोड़ें। गायों के संरक्षण के साथ हमें बैल का उपयोग बढ़ाने पर भी लगातार सोचना होगा। अगर हम गाय को सचमुच बचाना चाहते हैं,  तो हमें इसकी धार्मिकता नहीं,  इसकी आर्थिकी को मजबूत बनाना होगा। ग्रामीण और कस्बायी अर्थव्यवस्था में गाय को महत्वपूर्ण स्थान देकर ही उसे बचाया जा सकता है।

शनिवार, 21 मार्च 2015

सभी गौभक्तो को हमारी तरफ से नये साल की हार्दिक शुभकामनाये॥

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
आप सभी हिन्दू भाईयो और सभी गौभक्तो को हमारी तरफ से नये साल की हार्दिक शुभकामनाये॥
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देवी मा और गौमाता से मै विनती करता हू कि सभी गौभक्तो को इतनी शक्ती दे कि हम सभी गौ सेवा और देश सेवा के सभी कार्यो को आसानी से पूरा कर सके॥
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🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
आप सभी हिन्दू वीरो से एक निवेदन है कि नये साल के उपलक्ष्य मे क्यू ना हम सब एक वादा करे?
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मित्रो हिन्दूस्तान की सरकार गऊ माता को राष्ट्र माता घोषित करे या ना करे लेकिन हम सभी गऊ भक्त और हिन्दू भाई-बहन तो गऊ माता को माता मानकर उनकी पूजा कर सकते है?
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
आप सभी से अनुरोध है कि आप सब आज से अपने इष्ट देवता के साथ गौमाता का भी पूजन करेन्गे और साथ मे अपने मित्र और रिस्तेदारो से भी गौमाता का पूजन करने के लिये प्रेरित करेन्गे॥
एक कदम तो बढाईये॥🙏
👉हम अपने देश की सरकार चुन सकते है॥
👉तो गौमाता को राष्ट्र माता घोषित क्यू नही कर सकते?
👉हम सब जिसे चाहे  प्रधानमन्त्री और मुख्यमन्त्री बना सकते है॥
👉तो क्या गौमाता को राष्ट्र माता मानकर उनकी पूजा नही कर सकते?
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
👉जरा सोचिये क्या हम अपना कर्तव्य निभा रहे है?
👉जब तक हम सब गौमाता का पूजन हर घर मे नही करेन्गे तब तक हमारी आपकी सरकार गौमाता के लिये कुछ नही करेगी
👉पहला कदम हमे बढाना होगा देश की सरकार तो खुद घुटने टेक देगी॥
👉पहले हम तो गौमाता को राष्ट्र माता माने और हर घर मे गौमाता का पूजन करे तभी तो सरकार कुछ कदम उठा सकती है?
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
🙏मुझे यकीन है कि आजसे आप सभी के घरो मे अपने-अपने इष्ट देवताओ के साथ गौमाता का भी पूजन किया जायेगा🙏
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
👉इस मैसेज को ज्यादा से ज्यादा शेयर करे ताकी सभी हिन्दू वीरो को इसकी जानकारी हो और हमारा ये प्रयास सफल हो सके🙏
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
🙏जय श्रीराम 🙏
🙏जय गौमाता🙏
🙏जय गोपाल🙏
🙏जय हिन्द🙏
👉आपका मित्र
गोवत्स राधेश्याम रावोरिया

शनिवार, 14 मार्च 2015

Scientific Propertiess

  • Scientific Propertiess


Cow Milk

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Cow’s milk is a Tonic.  An 8 oz. glass of milk provides a large percentage of your recommended daily allowance of important vitamins and minerals :-

  1. 17% Protein
  2. 29% Calcium
  3. 23% Phsphorus
  4. 23% Riboflavin
  5. 25% Vitamin D
  6. 15% Vitamin B-12

Cow Ghee

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Milk fat is the richest natural dietary source of conjugated linoic acid (CLA), which has been shown in animal and cell culture
studies to have potent anti-carcinogenic (anti-cancer) properties.
The experiments have shown that dietary supplementation with
CLA reduced the incidence of chemically
induced tumors in the epidermis, stomach and mammary glands.


“Ghee made from Cow’s milk improves memory, intelligence, complexion, voice and personal beauty.  It provides strength to the body, improves eyesight and increase duration of life.  It is a cooling tonic that brings peace to the mind.  It eliminates toxins from the body.”

In vedic way, the burning cow ghee is part of many vedic religious
fire sacrifices, Science has discovered that
the burning of cow gheeused in fire sacrifice purifies the air. 
When cow ghee is burned with rice it produces ethylene oxide,
propylene oxide and Formaladeyore, which are used in the operation theatre, provide immunity from bacteria.

GO-ARK

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Cow urine contains natural disinfectant and antiseptic properties.  In Ayurveda, cow urine is used in a variety of medicinal preparations that are effective in treating problems such as acne, headaches, influenza, indigestion and asthma. It haseven show effectiveness in the treatment of more serious diseases, such as Diabetes, T.B., Cancer and AIDS.

Organisations such as the Cow Urine Therapy and Research Institute in Indore, M.P., India, have dedicated themselves to rediscovering
the benefits of this remarkable wonder medicine. 
Their studies have shown significant results in the treatment of numerous ailments.Cow urine and dung have also been
analyzed in laboratories and proven
to contain disinfectant and antibiotic properties.  Through many
experiments on cow dung, the famous Italian Scientist,
Prof. G. E. Bea, has proven that fresh cow dung kills the
germs of Malaria and Tuberculosis.

Cow urine contains 24 types of salts as well as iron, calcium, phosphorous, carbonic acid, potash and lactose, For diabetics, tests have shown that it controls the sugar level and aids fitness.   These are just a few indications of how cow products are invaluable to mankind and how science is helping to confirm this forgotten truth. 


Ayurveda recommends GO-ARK to help lower cholesterol levels and reduce body fat. A gift of cow urine is its ability to balance the three doshas (mucous, bile, and air). It boosts the immune system, serves as a complete detoxifier, and as a health promoting anti-oxidant. It also enhances brain power and strengthens the heart while bringing your consciousness to a higher level of goodness. Generally, it repairs and regenerates damaged tissues and cells. Very effective in obesity, controlling cholesterol levels, reducing stones, swelling, and joint pains. Also cures respiratory problems. It is useful in all kinds of children’s cough and other diseases. It gives strength and energy. Also serves as an anti-bacterial agent.

GO-ARK is prepared by boiling cow-urine in an iron pot to which a vapor condensing device is attached. Benefit is achieved by using for long period. It can be given to children and ladies without any harm. It is more effective when mixed with honey.

Directions: Take 2 tsp. diluted in water or mix with honey to your taste on empty stomach once or twice a day.


Cow Curd

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Curd or Yogurt is a lactic fermentation of milk.It is esteemed for its smoothness,its pleasant and refreshing taste.It is highly versatile and one of the most valuable therapeutic foods. The best and purest milk should always be used for preparing the curd.Before it is curdled,the milk should be boiled for about 10 minutes and the temperature of the milk brought down to lukewarm state.Freshly cultured starter should then be added to it and mixed thoroughly with the milk.Generally one teaspoonful of starter is sufficient for every 500 ml. of milk.The quality of curd depends to a great extent on the starter used. The better the seed the sweeter will be the aroma and firmer, will be texture of the curd. In hot season the milk curdless easily. But in cold season, it is necessary to cover it with a blanket and keep it in a warm place. It generally takes about six to eight hours for the milk to coagulate in the hot season. In cold weather it takes 12 to 16 hours for it form a firm mass.Curd* is a very nourishing food. It is a valuable source of protein, essential vitamins and minerals.It is a valuable source of protein, essential vitamins and minerals. It is also a rich source of calcuim and riboflavin,The proteins in curd is more readily digested than the protein in milk .It has been estimated that regular milk is only 32 per cent digested after an hour in the digestive tract, whereas 91 percent of curd id digested with in the ame period of time , It is ,therefore , an ideal diet for those with sensitive digestive systems, particularly young children and elderly persons.
(* Food value Minerals and Vitamins Moisture-89.1 % Calcuim-149 mg Protein-3.1% Phosphorus-93 mg Fat-4.0% Iron-0.2 mg Minerals -0.8% Vitamin A -102 1.U Carbohydrates-3.0% Vitamin C small amounts of Vitamin B Complex I mg Calorific Value-60 *Values per 100 gms edible portion)

Cow Dung

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It has been mixed with after ingredients in the Cow Dung Cake, so that burning it could purify the environment.  It is very useful for biogas plants.  It is insect repellant & thermal insulator in cold places.  Its smoke is a powerful disinfectant and anti-pollutant. Through many experiments on cow dung, the famous Italian scientist, Prof. G.E.Bea, has proven that fresh cow dung kills the germs of Malaria and tuberculosis.
These cow dung cakes are very useful for fire sacrifices (yajnas) and in various ceremonial activities. They create a pure and holy atmosphere when burnt. The reaction of cow dung and ghee when mixed releases oxygen into the air.


 





Some intresting facts from Research

Some intresting facts from Research

1.The organic treatments resulted in a higher soil fertility capacity and in crops with      higher quality protein, a higher starch content, and a greater ability to tolerate stressful conditions and long-term storage in comparison with the inorganic treatments. Furthermore, the crops produced in the organic treatments developed a structure that can be studied through a picture formation method (Crystallization with CuCl2). This has also been described as a higher organizational level which is evident in terms of both soil and crop formation as a result of the long-term effects of organic manure compared with conventional NPK-fertilizer. 
2. People who want to know the facts, truth and Health benefits of Organic foods in the very remote farming villages must travel here to find out how foods and fruits taste in those areas. Scarcely would one find diseases like hypertension etc in those remote. In simple knowledge Organic foods have long shelve life  
3. There is no synthetic pesticide that does not affect the environment in a negative way 
4.Cow Dung  protects from Radioactive Rays 
5.Cow Milk protects from Nuclear Radiation
6.By burning cow ghee + rice + cow dung releases Ethylene oxide (C2H40), Propylene                                    oxide  (CH3CHCH2O) and Formaldehyde (CH2O) which causes to produce rain 
7.Burning 10 grams of Ghee produce 1 ton of Oxygen 
8.Go-Arkha contains Nitrogen, Carbolic acids, Lactose, Sulphur, Copper, Manganese,Potassium, Ammonia, Urea which is useful in medicine to cure lot of diseases 

शनिवार, 7 मार्च 2015