................पञ्चगव्य- चिकित्सा.................
१ - बवासीर के मस्सों से अधिक रक्त स्त्राव होता हो तो ३-८ ग्राम अावलाचूर्ण का सेवन गाय के दूग्ध सेवन बनी दही की मलाई के साथ दिन मे २-३ बार देनी चाहिए ।लाभ अवश्य होगा ।
२ - रक्तातिसार - रक्तातिसार से अधिक रक्त स्राव हो तो आवॅला के १०-२० ग्राम रस मे १० ग्राम शहद और गाय का घी ५ ग्राम मिलाकर पिलावें और उपर से बकरी का दूध १०० ग्राम तक दिन में तीन बार पिलावें ।
३ - पित्तदोष- आवॅलाे का रस सर्वत्र मधु, गाय के घी इन सब द्रव्यों को सम्भाग लेकर आपसे घोंटकर कि गयी रस क्रिया पित्तदोष तथा रक्तविकार जनित नेत्ररोग का नाश करती है यह तिमिररोग नेत्र पटल में उत्पन्न रोगों को भी दूर करती है ।
४ - मूत्रातिसार- पका हुआ केला एक,आवॅलाे का रस १० ग्राम ,मधु४ ग्राम ,तथा गाय का दूध २५० ग्राम ,इन्हें एकेत्रित करके सेवन करने से सोमरोग नष्ट होता है ।
५ - विसर्प- आँवले के १०-२० ग्राम रस मे १० ग्राम गाय का घी मिलाकर दिन में दो- तीन बार पिलाने से विसर्प रोग मिटता है ।
६ - अनार के ताज़े पत्तों का रस १०० ग्राम ,गौमूत्र ४०० ग्राम ,और तिल तैल १०० ग्राम ,तीनों को धीमी आँच पर पकायें ,तैल मात्र शेष रहने पर छानकर रख लें ।इसकी कुछ बूँदें थोड़ा गर्म कर प्रात: - सायं कान में डालने से कान की पीड़ा , कर्णनाद और वधिरता में लाभ होता है ।
७ - अनार के छाया शुष्क आधा किलो पत्तों में आधा किलो सुखा धनियाँ मिलाकर चूर्ण बना लें ,इसमें एक किलो गेहूँ का आटा मिलाकर ,दो किलो गाय के घी में भून लें ,ठंडा होने पर चार किलो खाण्ड मिला लें ।प्रात: - सायं गाय के गर्म दूध से पचास ग्राम तक मात्रा सेवन करने से सिर दर्द ,सिर चकराना दूर होता है ।
८ - अनार के पत्ते और गुलाब के ताज़े पुष्प १०-१० ग्राम ( ताज़े फुलों के अभाव में सूखे फूल ५ग्राम ) लें ।आधा किलो जल में पकाकर २५० ग्राम शेष रहने पर ,१० ग्राम गाय का घी मिलाकर गर्म ही गर्म सुबह - सायं पिलाने से उन्माद व मिर्गी में लाभ होता है ।
९ - अनार के २० ग्राम पत्तों के क्वाथ मे १०-१० ग्राम गाय का घी और खाण्ड मिलाकर पिलाने से मिर्गी या अपस्मार में लाभ होता है ।
१० - अनार के पत्तों के रस में सम्भाग बेलपत्र स्वरस और गाय का घी मिला घी सिद्ध कर लें ।२० ग्राम घी ( गरम) २५० ग्राम मिश्री मिले दूध के साथ प्रात: - सायं लेने से बहरापन में लाभ होता है ।
१ - बवासीर के मस्सों से अधिक रक्त स्त्राव होता हो तो ३-८ ग्राम अावलाचूर्ण का सेवन गाय के दूग्ध सेवन बनी दही की मलाई के साथ दिन मे २-३ बार देनी चाहिए ।लाभ अवश्य होगा ।
२ - रक्तातिसार - रक्तातिसार से अधिक रक्त स्राव हो तो आवॅला के १०-२० ग्राम रस मे १० ग्राम शहद और गाय का घी ५ ग्राम मिलाकर पिलावें और उपर से बकरी का दूध १०० ग्राम तक दिन में तीन बार पिलावें ।
३ - पित्तदोष- आवॅलाे का रस सर्वत्र मधु, गाय के घी इन सब द्रव्यों को सम्भाग लेकर आपसे घोंटकर कि गयी रस क्रिया पित्तदोष तथा रक्तविकार जनित नेत्ररोग का नाश करती है यह तिमिररोग नेत्र पटल में उत्पन्न रोगों को भी दूर करती है ।
४ - मूत्रातिसार- पका हुआ केला एक,आवॅलाे का रस १० ग्राम ,मधु४ ग्राम ,तथा गाय का दूध २५० ग्राम ,इन्हें एकेत्रित करके सेवन करने से सोमरोग नष्ट होता है ।
५ - विसर्प- आँवले के १०-२० ग्राम रस मे १० ग्राम गाय का घी मिलाकर दिन में दो- तीन बार पिलाने से विसर्प रोग मिटता है ।
६ - अनार के ताज़े पत्तों का रस १०० ग्राम ,गौमूत्र ४०० ग्राम ,और तिल तैल १०० ग्राम ,तीनों को धीमी आँच पर पकायें ,तैल मात्र शेष रहने पर छानकर रख लें ।इसकी कुछ बूँदें थोड़ा गर्म कर प्रात: - सायं कान में डालने से कान की पीड़ा , कर्णनाद और वधिरता में लाभ होता है ।
७ - अनार के छाया शुष्क आधा किलो पत्तों में आधा किलो सुखा धनियाँ मिलाकर चूर्ण बना लें ,इसमें एक किलो गेहूँ का आटा मिलाकर ,दो किलो गाय के घी में भून लें ,ठंडा होने पर चार किलो खाण्ड मिला लें ।प्रात: - सायं गाय के गर्म दूध से पचास ग्राम तक मात्रा सेवन करने से सिर दर्द ,सिर चकराना दूर होता है ।
८ - अनार के पत्ते और गुलाब के ताज़े पुष्प १०-१० ग्राम ( ताज़े फुलों के अभाव में सूखे फूल ५ग्राम ) लें ।आधा किलो जल में पकाकर २५० ग्राम शेष रहने पर ,१० ग्राम गाय का घी मिलाकर गर्म ही गर्म सुबह - सायं पिलाने से उन्माद व मिर्गी में लाभ होता है ।
९ - अनार के २० ग्राम पत्तों के क्वाथ मे १०-१० ग्राम गाय का घी और खाण्ड मिलाकर पिलाने से मिर्गी या अपस्मार में लाभ होता है ।
१० - अनार के पत्तों के रस में सम्भाग बेलपत्र स्वरस और गाय का घी मिला घी सिद्ध कर लें ।२० ग्राम घी ( गरम) २५० ग्राम मिश्री मिले दूध के साथ प्रात: - सायं लेने से बहरापन में लाभ होता है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें