मंगलवार, 24 जनवरी 2017

करोड़पति बनना है तो गाय पालन करें ..

करोड़पति बनना है तो गाय पालन करें ..
गाय का यूं तो पूरी दुनिया में ही काफी महत्व है, लेकिन भारत के संदर्भ में बात की जाए तो प्राचीन काल से यह भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है। चाहे वह दूध का मामला हो या फिर खेती के काम में आने वाले बैलों का। वैदिक काल में गायों की संख्‍या व्यक्ति की समृद्धि का मानक हुआ करती थी। दुधारू पशु होने के कारण यह बहुत उपयोगी घरेलू पशु है। गाय पालन ,दूध उत्पादन व्यवसाय या डेयरी फार्मिंग छोटे व बड़े स्तर दोनों पर सबसे ज्यादा विस्तार में फैला हुआ व्यवसाय है। गाय पालन व्यवसाय, व्यवसायिक या छोटे स्तर पर दूध उत्पादन किसानों की कुल दूध उत्पादन में मदद करता है और उनकी आर्थिक वृद्धि को बढ़ाता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि, भारत में कई वर्षों से गाय पालन कर डेयरी फार्मरों ने दूध उत्पादन से आर्थिक वृद्धि में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। गाय पालन कर दूध उत्पादन ने हमारे देश की अर्थव्यवस्था में बड़े स्तर पर भागीदारी की है और बहुत से गरीब किसानों को गाय पालन कर अपना व्यवसाय स्थापित करने में सहयोग किया है। यदि किसी के पास दूध उत्पादन का व्यवसाय स्थापित करने के लिए प्रारंभिक पूँजी है तो, दूध उत्पादन व्यवसाय को किसी भी क्षेत्रों में आसानी से स्थापित किया जा सकता है।
गाय पालन की तैयारी
गाय की नस्ल का चुनाव – जब कभी भी आप गाय पालन  का व्यवसाय करने को सोंचे तो आपके लिए ये जानना बहुत जरुरी है की कौन सी नस्ल की गाय सबसे ज्यादा दूध देती है। किस नस्ल की गाय का बछड़ा दूध का उत्पादन करने के जल्दी बढ़ता है या फिर पुरुष बछड़ों को आप कितना बेच सकते है इन सभी बातों का अच्छे से पता कर लेना चाहिए । गाय को अपने शहर के जलवायु के अनुसार हीं खरीदना चाहिए ताकि वे आपके शहर की जलवायु को बर्दास्त कर सके इसलिए बेहतर होगा की गाय आप अपने शहर से हीं ख़रीदे। आपके लिए ये जानना भी बेहत जरुरी है की किस नस्ल के दूध के लिए स्थानीय मांग ज्यादा है । निचे हम आपको बताएँगे की कौन सी नस्ल की गाय ज्यादा दूध उत्पादन करती है :-
मालवी :ये गायें दुधारू नहीं होतीं। इनका रंग खाकी होता है तथा गर्दन कुछ काली होती है। अवस्था बढ़ने पर रंग सफेद हो जाता है। ये ग्वालियर के आस-पास पाई जाती हैं।
नागौरी :इनका प्राप्तिस्थान जोधपुर के आस-पास का प्रदेश है। ये गायें भी विशेष दुधारू नहीं होतीं, किंतु ब्याने के बाद बहुत दिनों तक थोड़ा-थोड़ा दूध देती रहती हैं।
थरपारकर :ये गायें दुधारू होती हैं। इनका रंग खाकी, भूरा, या सफेद होता है। कच्छ, जैसलमेर, जोधपुर और सिंध का दक्षिणपश्चिमी रेगिस्तान इनका प्राप्तिस्थान है। इनकी खुराक कम होती है।
पवाँर: पीलीभीत, पूरनपुर तहसील और खीरी इनका स्थान है। इनका मुँह सँकरा और सींग सीधी तथा लंबी होती है। सींगों की लबाई १२-१८ इंच होती है। इनकी पूँछ लंबी होती है। ये स्वभाव से क्रोधी होती है और दूध कम देती हैं।
भगनाड़ी : नाड़ी नदी का तटवर्ती प्रदेश इनका स्थान है। ज्वार इनका प्रिय भोजन है। नाड़ी घास और उसकी रोटी बनाकर भी इन्हें खिलाई जाती है। ये गायें दूध खूब देती हैं।
दज्जल :पंजाब के डेरागाजीखाँ जिले में पाई जाती हैं। ये दूध कम देती हैं।
गावलाव :दूध साधारण मात्रा में देती है। प्राप्तिस्थान सतपुड़ा की तराई, वर्धा, छिंदवाड़ा, नागपुर, सिवनी तथा बहियर है। इनका रंग सफेद और कद मझोला होता है। ये कान उठाकर चलती हैं।
हरियाना :ये 8-12 लीटर दूध प्रतिदिन देती हैं। गायों का रंग सफेद, मोतिया या हल्का भूरा होता हैं। ये ऊँचे कद और गठीले बदन की होती हैं तथा सिर उठाकर चलती हैं। इनका स्थान रोहतक, हिसार, सिरसा, करनाल, गुडगाँव और जिंद है।
करन फ्राइ :   करण फ्राइ का विकास राजस्थान में पाई जाने वाली थारपारकर नस्ल की गाय को होल्स्टीन फ्रीज़ियन नस्ल के सांड के द्वारा किया गया।  थारपारकर गाय की दुग्ध उत्पाद औसत होता है. गर्म और आर्द्र जलवायु को सहन करने की क्षमता के कारण वे महत्वपूर्ण होती हैं।
अन्य राठ अलवर की गाएँ हैं। खाती कम और दूध खूब देती हैं।
गीर- ये प्रतिदिन 50-80 लीटर दूध देती हैं। इनका मूलस्थान काठियावाड़ का गीर जंगल है।
देवनी - दक्षिण आंध्र प्रदेश और हिंसोल में पाई जाती हैं। ये दूध खूब देती है।
नीमाड़ी - नर्मदा नदी की घाटी इनका प्राप्तिस्थान है। ये गाएँ दुधारू होती हैं।सायवाल जाति :सायवाल गायों में अफगानिस्तानी तथा गीर जाति का रक्त पाया जाता है। इन गायों का सिर चौड़ा, सींग छोटी और मोटी, तथा माथा मझोला होता है। ये पंजाब में मांटगुमरी जिला और रावी नदी के आसपास के स्थानों में पाई जाती है। ये भारत में कहीं भी रह सकती हैं। एक बार ब्याने पर ये 10 महीने तक दूध देती रहती हैं। दूध का परिमाण प्रति दिन 10-16 लीटर होता है। इनके दूध में मक्खन का अंश पर्याप्त होता है।
सिंधी : इनका मुख्य स्थान सिंध का कोहिस्तान क्षेत्र है। बिलोचिस्तान का केलसबेला इलाका भी इनके लिए प्रसिद्ध है। इन गायों का वर्ण बादामी या गेहुँआ, शरीर लंबा और चमड़ा मोटा होता है। ये दूसरी जलवायु में भी रह सकती हैं तथा इनमें रोगों से लड़ने की अद्भुत शक्ति होती है। संतानोत्पत्ति के बाद ये 300 दिन के भीतर कम से कम 2000 लीटर दूध देती हैं।
काँकरेज :कच्छ की छोटी खाड़ी से दक्षिण-पूर्व का भूभाग, अर्थात् सिंध के दक्षिण-पश्चिम से अहमदाबाद और रधनपुरा तक का प्रदेश, काँकरेज गायों का मूलस्थान है। वैसे ये काठियावाड़, बड़ोदा और सूरत में भी मिलती हैं। ये सर्वांगी जाति की गाए हैं और इनकी माँग विदेशों में भी है। इनका रंग रुपहला भूरा, लोहिया भूरा या काला होता है। टाँगों में काले चिह्न तथा खुरों के ऊपरी भाग काले होते हैं। ये सिर उठाकर लंबे और सम कदम रखती हैं। चलते समय टाँगों को छोड़कर शेष शरीर निष्क्रिय प्रतीत होता है जिससे इनकी चाल अटपटी मालूम पड़ती है।
गाय रखने की जगह
जब भी आप गाय पालन व्यवसाय का सोच रहे हों तो सबसे पहले आपको गाय को रखने के लिए जगह की अव्यश्कता होगी। गाय को रखने के लिए ऐसे जगह का चयन करना चाहिए जो main market से ज्यादा दूर ना हो और उस जगह पर transport की सुविधा भी अच्छी हो। भले हीं आप व्यवसाय 2-3 गाय से शुरु कर रहे हों लेकिन जगह का चुनाव इतना बड़ा जरुर से करे जिससे आप future में और भी गाय को वहां रख सकें । गाय रखने वाली जगह पर कुछ और चीजो की जरूरत होती है जैसे की :-
    उस जगह पर गाय के रहने के लिए केवल ऊपर से shade किया हुआ छोटा छोटा घर बना दें जो की चारो ओर से हवादार हो ।
    जमीन चिकनी और हलकी ढलाव वाली होनी चाहिए ताकि जब गाय पेशाब (toilet) करे तो वो जमने के वजय आसानी से बह जाए ।
    चिकनी जमीं पर गाय की गोबर को उठाने में भी आसानी होती है ।
    क. प्रजनन
    (अ) अपनी आय को अधिक दूध वाले सांड के बीज से फलावें ताकि आने वाली संतान अपनी माँ से अधिक दूध देने वाली हो| एक गाय सामान्यत: अपनी जिन्दगी में 8 से 10 बयात दूध देती हैं आने वाले दस वर्षों तक उस गाय से अधिक दूध प्राप्त होता रहेगा अन्यथा आपकी इस लापरवाही से बढ़े हुए दूध से तो आप वंचित रहेंगे ही बल्कि आने वाली पीढ़ी भी कम दूध उत्पादन वाली होगी| अत: दुधारू गायों के बछड़ों को ही सांड बनाएँ|
    (आ) गाय के बच्चा देने से 60 से 90 दिन में गाय पुन: गर्भित हो जाना चाहिए| इससे गाय से अधिक दूध, एवं आधिक बच्चे मिलते हैं तथा सूखे दिन भी कम होते है|
    (इ) गाय के फलने के 60 से 90 दिन बाद किसी जानकार पशु चिकित्सा से गर्भ परिक्षण करवा लेना चाहिए| इससे वर्ष भर का दूध उत्पादन कार्यक्रम तय करने में सुविधा होती है|
    (ई) गर्भावस्था के अंतिम दो माह में दूध नहीं दूहना चाहिए तथा गाय को विशेष आहार देना चाहिए| इससे गाय को बच्चा जनते वक्त आसानी होती है तथा अगले बयात में गाय पूर्ण क्षमता से दूध देती है|
    ख. आहार
    (अ) दूध उत्पादन बढ़ाने तथा उसकी उत्पादन लागत कम करने के लिए गाय की सन्तुलित आहार देना चाहिए| संतुलित आहार में गाय की आवश्यकता के अनुसार समस्त पोषक तत्व होते हैं, वह सुस्वाद, आसानी से पचने वाला तथा सस्ता होता है|
    (आ) दूध उत्पादन से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए, पशु को बारह मास पेट भर हरा चारा खिलाएं| इससे दाने का खर्च भी घटेगा तथा गाय का नियमित प्रजनन भी होगा|
    (इ) गाय को आवश्यक खनिज लवण नियमित देंवे|
    (ई) गाय को आवश्यक चारा- दाना- पानी नियत समय के अनुसार देवे| समय के हेर-फेर से भी उत्पादन प्रभावित होता है|
    ग. रोग नियंत्रण
    (अ) संक्रामक रोगों से बचने के लिए नियमित टिके लगवाएं|
    (आ) बाह्य परिजीवियों पर नियंत्रण रखे| संकर पशुओं में तो यह अत्यंत आवश्यक है|
    (इ) आन्तरिक परजीवियों पर नियंत्रण रखने के लिए हर मौसम परिवर्तन पर आन्तरिक परजिविनाशक दवाएँ दें|
    (ई) संकर गौ पशु, यदि चारा कम खा रहा है या उसने कम दूध दिया तो उस पर ध्यान देवें| संकर गाय देशी गाय की आदतों के विपरीत बीमारी में भी चारा खाती तथा जुगाली भी करती है|
    (उ) थनैला रोग पर नियंत्रण रखने के लिए पशु कोठा साफ और हवादार होना चाहिए| उसमें कीचड़, गंदगी न हो तथा बदबू नहीं आना चाहिए| पशु के बैठने का स्थान समतल होना चाहिए तथा वहाँ गड्ढे, पत्थर आदि नुकीले पदार्थ नहीं होना चाहिए| थनैला रोग की चिकित्सा में लापरवाही नहीं बरतें|
कितने गाय से गाय पालन व्यवसाय  करना चाहिए
जब आप d गाय पालन व्यवसाय अकेले करने जा रहे है तो शुरुआत  में आप 2 से 3 गाय से हीं व्यवसाय शुरु करे उसके बाद धीरे धीरे आप गाय की संख्या को बढ़ा सकते है । जब आपकी गाय की संख्या बढ़ जाये तो आपको हर 10 गाय के देखरेख के पीछे 1 worker की अव्यश्कता पड़ेगी ।
पूंजी
अगर आप 2-3 गाय से हीं अपने व्यवसाय को शुरु करते है तो आपको बहुत हीं कम पूंजी लगाना होगा लकिन वहीँ अगर आप 10 या उससे भी ज्यादा गाय से अपना व्यवसाय करते है तो आपको बहुत पैसे की अव्यश्कता पड़ेगी । अगर आपको ज्यादा गाय से  व्यवसाय  करना है तो आप बैंक से ऋण ले सकते है ।
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गाय का दाम कैसे जाने
गाय का दाम जोड़ने का सबसे अच्छा तरीका उसकी दूध उत्पादन छमता पर निर्भर करता है | उदाहरण  – अगर 1 गाय  एक दिन में 1 लीटर दूध देती है तो उसका दाम Rs 3,500 से ले कर 4,500 तक होगा |
कीमत  = Rs 35,000 to 45,000
प्रतिदिन ढूध  प्रति गाय = 10 Liter
कुल उत्पादन का मूल्य  = Rs 52,000 to 68,000
प्रतिदिन ढूध  प्रति गाय = 20 Liter
Price = Rs 70,000 to 90,000
जल प्रबंधन
जिस जगह पर आप गाय को रख रहे हों ध्यान रहे की उस जगह पर जल का प्रबंध अच्छा होना चाहिए । गायों को नहाने के लिए या फिर उनके जगह की साफ़ सफाई के लिए पानी की बहुत खपत होती है ।
नित्य पशु का दूध निकाले – दूध उत्पादक जानवर आमतौर पर एक दिन में दो या तीन बार दूध देते है। इसलिए आपको चाहिए की आप नित्य हीं उनका दूध निकाले । दूध निकालने का सही समय होता है :-
सुबह 5 से 7 बजे – सुबह में 5 बजे से 7 बजे के बिच का समय गाय का दूध दुहना सही रहता है । इस समय में गाय अच्छे quantity में दूध देती है ।
शाम 4 से 6 बजे – सुबह के बाद शाम के time में गाय का दूध निकलने से ज्यादा दूध की प्राप्ति होती है । इस तरह से आप एक दिन में 2 बार कर के ज्यादा से ज्यादा quantity में दूध की प्राप्ति कर सकते है ।
दूध कैसे निकालें – गाय को हर वक्त बांध कर नहीं रखना चाहिए उन्हें समय समय पर खुली हवा में घांस चढ़ने के लिए छोड़ देना चाहिए इससे गाय स्वस्थ रहती है और दूध भी ज्यादा देती है । गाय के दूध को दुहने का भी एक तरीका होता है । चलिए हम जानते है कैसे गाय का दूध निकला जाता है :-
    जब कभी भी गाय का दूध दुहना हो तो उन्हें shade में ले आयें जहां उनके पुआल खाने का इन्तेजाम किया हुआ हो ।
    जब गाय पुआल खाने में व्यस्त हो जाती है तो उसी वक्त उसका दूध दुह लेना चाहिए ।
    दूध दुहने वक्त अपने हाँथो में हल्का सरसों तेल लगा लें इससे हांथो पर ज्यादा जोड़ नहीं पड़ता है और दूध भी आसानी से निकल जाता है ।
    जो लोग इस काम में expert होते है वो लोग इस तरह से एक बार में कई गायों का दूध दुह लेते है।
    जब तक आप एक गाय को दुह रहें हो तब तक के लिए बांकी की गायों को घांस चढ़ने के लिए छोड़ दें ।

शनिवार, 21 जनवरी 2017

'साहिवाल' गाय की विशेषता और प्रदर्शन- Features and Benefits of Sahiwal Cow

साहिवाल गाय और उसकी खासियत:- 
साहीवाल नस्ल कि गाय  पाकिस्तान में साहिवाल जिले  से उत्पन्न मानी जाती है । 

आज साहीवाल भारत और पाकिस्तान में सबसे अच्छा डेयरी नस्लों में से एक है।

साहीवाल गाय शारीरिक  विशेषताएं :-
गहरा शारीर , ढीली चमड़ी, छोटा  सिर  व  छोटे  सींग इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं  इसका शरीर साधारणत: लंबा और मांसल होता है। इनकी टाँगे छोटी होती है, स्वभाव कुछ आलसी और तथा इसकी खाल चिकनी होती है।  पूंछ पतली और छोटी होती है। 

यह गाय लाल और गहरे  भूरा रंग की होती  है  कभी-कभी इसके शरीर पर सफेद चमकदार धब्बे भी होते हैं  ।

ढीली चमड़ी होने के कारण इसे लोग लोला भी कहते हैं  

नर साहिवाल के पीठ पर बड़ा कूबड़ होता है व इसकी ऊंचाई 136 सेमी और मादा कि ऊंचाई 120 सेमी के आसपास होती है।

नर गाय  का वजन 450 से 500 किलो और मादा  गाय का वजन 300-400 किलो तक होता है 

साहीवाल गाय का दूध उत्पादन :- 

यह गाय 10 से 16 लीटर तक दूध देने कि क्षमता रखती है | अपने एक दूग्ध्काल के दौरान ये गायें औसतन2270  लीटर दूध देती हैं | साथ ही इसके दूध में पर्याप्त वसा होता है | ये विदेशी गायों की तुलना में दूध कम देती हैं, लेकिन इन  पर खर्च भी काफी कम होता है। साहीवाल की खूबियों और उसके दूध की गुणवत्ता के चलते वैज्ञानिक इसे सबसे अच्छी देसी दुग्ध उत्पादक गाय मानते हैं।

इनकी कम होती संख्या से चिंतित वैज्ञानिक ब्रीडिंग के जरिये देसी गायों की नस्ल सुधार कर उन्हें साहीवाल में बदलने पर जोर दे रहे हैं, जिसके तहत देसी गाय की पांचवीं पीढ़ी पूर्णतः साहीवाल में बदलने में कामयाबी हासिल हुई है।

साहीवाल गाय की अन्य विशेषता :- 

इसका शरीर गर्मी, परजीवी और किलनी प्रतिरोधी होता है जिससे इसे पालने में अधिक मशक्कत नहीं करनी पड़ती है और डेरी किसानो को इससे पालने में बहोत फायदा होता है ।

इस गाय की अन्य विशेशताएँ हैं:

1. उच्च दूध की पैदावार

2. प्रजनन की आसानी
3. सूखा प्रतिरोधी
4. अच्छा स्वभाव अच्छी देखभाल करने पर ये कहीं भी रह सकती हैं।

गर्मी सहने की अच्छी क्षमता और उच्च दुग्ध उत्पादन के कारण इन गायों को एशिया, अफ्रीका और कई कैरेबियाई देशों में भी निर्यात किया गया है। 


गाय के गोबर की खाद किसे बनाये सरल तरीका

१ गाय की सींग की खाद
गाय की सींग गाय का रक्षा कवच है। गाय को इसके द्वारा सीधे तौर पर प्राकृतिक ऊर्जा मिलती है। यह एक प्रकार से गाय को ईश्वर द्वारा प्रदत्त एंटीना उपकरण है। गाय की मृत्यु के 45 साल बाद तक भी यह सुरक्षित बनी रहती है। गाय की मृत्यु के बाद उसकी सींग का उपयोग श्रेठ गुणवत्ता की खाद बनाने के लिए प्राचीन समय से होता आ रहा है। सींग खाद भूमि की उर्वरता ब़ाते हुए मृदा उत्प्रेरक का काम करती है जिससे पैदावार बढ जाती है।
निर्माण सामग्री:
गाय की सींग, गोबर, बाल्टी
निर्माण विधि
सींग को साफकर उसमें ताजे गोबर को अच्छी तरह से भर लें। सितंबरअक्तूबर महीने में जब सूर्य दक्षिणायन पक्ष में हों, तब इस गोबर भरी सींग को एक से डेढ़    फिट गहरे गड्ढे में नुकीला सिरा ऊपर रखते हुए लगा देते हैं। इस सींग को गड्ढे से छः माह बाद मार्चअप्रैल में चंद्र दक्षिणायन पक्ष में भूमि से निकाल लेते हैं। इस खाद से मीठी महक आती है जो इसके अच्छी प्रकार से तैयार हो जाने का प्रमाण है। इस प्रकार एक सींग से तीनचार एकड़ खेत के लिए खाद तैयार हो सकती है।
प्रयोग कराने का तरीका :
इस खाद को प्रयोग करने के लिए 25 ग्राम सींग खाद को तेरह लीटर स्वच्छ जल में घोल लेते हैं। घोलने के समय कम से कम एक घंटे तक इसे लकड़ी की सहायता से हिलाते -मिलाते रहना चाहिए।
प्रयोग विधि
सींग खाद से बने घोल का प्रयोग बीज की बुआई अथवा रोपाई से पहले सायंकाल छिड़काव विधि से करना चाहिए।
२  सिलिका युक्त सींग की खाद
सिलिका पाउडर आटे की लोईनुमा बनाकर गाय की सींग में भर दें। छः माह बाद गोबर की सींग खाद के समान ही उसे निकाल कर जल में घोल लें। इसका भंडारण सदा शीशे के पात्र में करना चाहिए। इस प्रकार से निर्मित सिलिका खाद फंफूदनाशक के रूप में प्रभावी तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
3 गाय के ताजे गोबर की खाद
निर्माण सामग्री
गाय का ताजा गोबर
250 ग्राम बेन्टोनाइट पाउडर, काली मिट्टी या वसाल्ट
250 ग्राम अण्डे के छिलके का चूर्ण
बायोडायनामिक प्रिपरेशन नामक औषधीय कल्चर
ईंट, फावड़ा, टाट पट्टी आदि।
निर्माण विधिः
सबसे पहले तीन फुट चौड़ा, दो फुट लंबा और ड़ेढे फुट गहरा गड्ढा    तैयार कर लेते हैं। गड्ढे की दीवार ईंटों से चुन दें। अब 60 किलोग्राम गाय का कम से कम 24 घंटे पुराने गोबर में 250 ग्राम अण्डे के छिलके का चूर्ण और 250 ग्राम बसाल्ट पाउडर भलीभांति मिला लें। अब इस मिश्रण को गड्ढे में भरकर इसमें 23 इंच गहरे छिद्र बना लें। इन छिद्रों में बायोडायनमिक प्रिपरेशन भरकर छिद्रों को बंद कर दें। सतह को टाट पट्टी से ढंक दें।
इस प्रकार लगभग 40 से 45 किलोग्राम खाद हमें 80 दिन बाद उपयोग के लिए तैयार मिलेगी। ८० -९०  एकड़ भूमि में खेती के लिए इतनी खाद पर्याप्त है। सावधानी यह रखनी होगी कि खाद तैयार होते समय गड्ढे  में पानी नहीं जाना चाहिए।
प्रयोग विधि
500 ग्राम खाद एक ड्रम में 40 लीटर पानी में अच्छी प्रकार से घोल लें। इस घोल का सूर्यास्त के बाद या सूर्योदय से पूर्व खेत में या फसल पर छिड़काव करें। यह खाद पौधों के लिए कीटनियंत्रक का काम भी करती है। इसमें बीजशोधन करने से अंकुरण अच्छा होता है।
४ बायो डायनामिक तरल कीटनियंत्रक
यह कीटनियंत्रक गोबर, गोमूत्र तथा विभिन्न औषधीय पौधों एवं वृक्षों की पत्तियों द्वारा तैयार किया जाता है।
निर्माण सामग्री:
प्लास्टिक ड्रम, गोबर, गोमूत्र, बी.डी.उपक्रम, आवश्यकतानुसार दलहनी पौधे, नीम, मदार, करंज आदि की पत्तियां
निर्माण विधिः
5 लीटर गोमूत्र एवं 5 किलोग्राम गोबर को 200 लीटर क्षमता वाले प्लास्टिक ड्रम में डालकर 150 लीटर पानी भरें। बायोडायनामिक उत्प्रेरकों के एक सेट कपड़े की छोटीछोटी पोटली में लटका दें या पत्तियों में रखकर पैकेट बनाकर ड्रम में डालें। इस प्रकार निर्मित तरल को दिन में दो बार लकड़ी की सहायता से हिलाते-मिलाते रहें। ड्रम को बोर या जाली से कस कर रखें। 30 से 35 डिग्री तापमान पर यह तरल कीटनियंत्रक ३४  सप्ताह में तैयार हो जाता है। कीटनाशक का प्रभाव बढ़ाने  के लिए इस तरल में नीम, सदाबहार, कनेर, करंज, मदार तथा अरण्डी आदि की पत्तियों का प्रयोग किया जाता है।
प्रयोग विधिः
एक लीटर तरल खाद को 45 लीटर पानी में घोलकर पौधों और वृक्षों पर आवश्यकतानुसार छिड़काव करने से पौधे के स्वास्थ्य पर अनुकूल असर पड़ता है।
५  नेडेप कम्पोस्ट खाद
निर्माण सामग्री:
100 किलोग्राम गोबर, वनस्पतियों के अवशिष्ट  एक क्विंटल से डेढ़  क्विंटल, खेत या नाले की सूखी छनी मिट्टी, 1500 से 2000 लीटर पानी, गोमूत्र एवं अन्य पशुओं का मूत्र आदि
निर्माण विधिः
सर्वप्रथम 12 फिट लंबा, 5 फिट चौड़ा एवं 3 फिट गहरा गड, ईंटों से चुना हुआ, निर्मित करें। सबसे पहले गड्ढे के फर्श  को गोबर एवं पानी छिड़ककर गीला कर लें। उसके बाद उसमें वानस्पतिक अपशिष्ट ६ इंच ऊंचाई तक भर दें। इसमें 3 से 4 प्रतिशत तक कड़वे नीम की पत्तियां या पलास की हरी पत्ती मिलाना लाभदायक रहता है।
इसके बाद दूसरी परत में 125 से 150 लीटर पानी में 5 किलो गोबर घोलकर इस प्रकार छिड़काव करें कि वनस्पति अपशिष्ट की परत पूरी तरह से भीग जाए।
इसके बाद साफ, सूखी और छनी मिट्टी जो वजन में वनस्पति अपशिष्ट की मात्रा की आधी हो, उसे समतल रूप में वनस्पति की परत के ऊपर बिछा दें। फिर इस पर थोड़ा पानी छिड़क दें।
15 से 20 दिनों के बाद उपरोक्त सामग्री गड्ढे  में 8 से 9 इंच अंदर चली जाएगी। अब पुनः वानस्पतिक अपशिष्ट भरें और उसके ऊपर गोबर के घोल का छिड़काव कर इसे तीन इंच तक मिट्टी से भर दें। अब इसे लीपकर सीलबंद कर दें।
अब इस खाद को तैयार होने में 90 से 120 दिन लगते हैं। बीच-बीच में गोबर के घोल का छिड़काव गड्ढे में करते रहना चाहिए ताकि नीचे तक नमी बनी रहे।
तीन से चार महीने बाद गहरे भूरे रंग की खाद तैयार हो जाती है। इसमें दुर्गंध की बजाए मीठी खुशबू आने लगती है। यह खाद सूखनी नहीं चाहिए और इसे नम रहते हुए ही खेतों में डालना चाहिए।
नॉडेप पद्धति से खाद बनाते समय यदि बायोडायनमिक कल्चर अर्थात विभिन्न औषधीय  महत्व की वनस्पतियों और उनकी पत्तियों का प्रयोग किया जाए तो इसकी गुणवत्ता में सुधार होने लगता है।
६  जीवामृत खाद
निर्माण सामग्री:
गाय का गोबर, गोमूत्र, दही, दाल का आटा एवं गुड़।
निर्माण विधि
60 किलोग्राम गोबर, 10 लीटर गोमूत्र, किसी दाल का 2 किलो आटा, 2 किलोग्राम गुड़, 2 किलोग्राम दही को अच्छी प्रकार मिलाकर मिश्रण बना लें और इसे दो दिनों तक छाया में रखें।
प्रयोग विधिः
दो दिन बाद तैयार मिश्रण को 200 लीटर जल में मिलाकर एक एकड़ खेत में बिखेर दें या छिड़काव करें। यह खाद खेत में असंख्य लाभप्रद जीवाणुओं को पैदा कर देगी। किसी फलदार वृक्ष में तने से 2 मीटर दूर एक फुट चौड़ी तथा एक फुट गहरी नाली खोदकर खेत पर उपलब्ध कूड़ा-करकट भर दें और इसे जीवामृत खाद से अच्छे से गीला करें। इसका परिणाम फलोत्पादन पर पड़ता है। पेड़ की पैदावार ब़ढ जाती है।
७ मटका खाद
निर्माण सामग्री:
गाय का गोबर, गोमूत्र एवं गुड़
निर्माण विधिः 15 किलोग्राम गाय के ताजे गोबर और 15 लीटर ताजे गोमूत्र को 15 लीटर पानी एवं आधा किलोग्राम गुड़ में अच्छी तरह से घोलकर मिला लें। उपरोक्त सामग्री को मिट्टी के बड़े घड़े में रखें और घड़े का मुंह ठीक प्रकार से किसी कपड़े की सहायता से बंद कर दें।
प्रयोग विधिः
46 दिन बाद 200 लीटर पानी मिलाकर इस घोल को एक एकड़ खेत में समान रूप से बोने से 15 दिन पूर्व तथा बुआई के एक सप्ताह बाद दूसरा छिड़काव करें।
8 केंचुआ खाद
निर्माण सामग्री:
पौधों के डंठल, पत्तियां, भूसा, गन्ने की खोई, खरपतवार, फूल, सब्जियों के छिलके, केले के पत्ते व तने, नारियल के पत्ते, जटाएं, पशुओं के मलमूत्र एवं बायोगैस सलरी आदि। शहरी कूड़ाकचरा, रसोई का कचरा, मण्डी का कचरा, फलफूलों को कचरा आदि एवं गोबर
निर्माण विधिः
किसी छायादार स्थान पर गड खोद लें। इस गड्ढे को तीन परतों से भरते हैं। पहली परत में 6 सेंटीमीटर तक मोटे बांस, बजरी, चारा, लकड़ी, नारियल, जूट आदि भरते हैं। दूसरी बीच की परत में 9 सेंटीमीटर ऊंचाई तक पुरानी खाद, सलरी, पुराना गोबर आदि भर देते हैं। ऊपरी परत में 30 सेंटीमीटर ऊंचाई तक 20 दिन पुराना नमीयुक्त गोबर, भूसा, हरे पत्ते, फलसब्जियों के छिलके व अन्य कचरा भर दिया जाता है। कभी भी गड्ढे  में ताजा एवं गरम गोबर नहीं भरना चाहिए क्योंकि इसमें केंचुए जीवित नहीं रह पाते।
इस प्रकार 45 सेंटीमीटर अर्थात लगभग डेढ़  फीट तक कार्बनिक पदार्थ की बेड तैयार कर 25 से 30 किलो केंचुए इस गड्ढे में डाल दिए जाते हैं। यह केंचुए धीरेधीरे खाद की परत छोड़ते हुए नीचे की ओर barhate  चलते हैं। केंचुओं द्वारा छोड़ी गई परत को एकत्रित कर अलग करते रहना चाहिए।
अब इस खाद का प्रयोग खेतों में करना चाहिए। इस खाद के प्रयोग से फलों, सब्जियों एवं अनाजों के स्वाद, आकार, रंग एवं उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि देखी गई है।

मंगलवार, 17 जनवरी 2017

राजस्थान के शिक्षा मंत्री का बयान, गाय ऑक्सीजन ग्रहण करने और छोड़ने वाली इकलौती जीव

राजस्थान के शिक्षा मंत्री का बयान, गाय ऑक्सीजन ग्रहण करने और छोड़ने वाली इकलौती जीव


जयपुर :16.01.2017  राजस्थान के शिक्षा व पंचायती राज मंत्री वासुदेव देवनानी ने यह कहा कि गाय इकलौता जानवर है जो सांस में ऑक्सीजन लेती भी और ऑक्सीजन छोड़ती भी है. मंत्री ने कहा, इसलिए इसके वैज्ञानिक महत्ता पर ध्यान देना चाहिए. राजस्थान के शिक्षा विभाग के अनुसार शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने अक्षय पात्र फाउंडेशन के द्वारा आयोजित हिंगोनिाया गौ पुनर्वास केंद्र में यह  बात कही. शिक्षा मंत्री यही नहीं रुके,  उन्होंने कहा कि गाय के समीप जाने से ही संक्रामक रोग कफ सर्दी, खांसी, जुकाम का नाश हो जाता है.
उन्होंने कहा कि गाय के गोबर में विटामिन बी ही प्रचुर मात्रा में नहीं पाया जाता बल्कि यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है. उन्होंने गौ मूत्र के औषधीय उपयोग, गाय के गोबर से गैस प्लांट लगाए जाने आदि पर जोर देते हुए कहा कि आधुनिक बनने व दिखने की दौड़ में गाय से जुड़ी भारतीय सनातन परंपराओं मूत्र के वैज्ञानिक पक्ष की जो अनदेखी हो रही है, उसे तर्क सहित दूर किए जाने की जरूरत है. इसमें युवा प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं.



सरल तरीके से किसान गोबर की खाद केसे बनाये

सरल तरीके से किसान गोबर की खाद केसे बनाये


मेरे बहुत सारे दोस्तों ने मुझेसे खाद के बारे में जानकारियां मागी तो आज हम इस पोस्ट खाद बनाने की विधिया बताउगा। 
1गोबर की खाद
2कंपोस्ट खाद
और अगली पोस्ट में बाकी जो और खाद बनाने की जो विधिया हे वो बताउगा ।

1 गोबर की खाद:-
गोबर की खाद बनाना बहुत सरल होता हे किसानो के घर पर जो गाय भेस बेल या अन्य पालतू पशु से जो गोबर प्राप्त होता हे उसेसे गोबर खाद तैयार किया जाता हे खाद बनाने के लिए विधि बताता हु।
 विधि:-
इसमे जमीन के अंदर 20से25 फिट लंबे और 5से 7 फिट  चौडे एवम 10फिट गहरा गड्डा बनाना पड़ता हे
ये गड्डा पशुओ की संख्या के अनुसार छोटा मोटा भी कर सकते है।
अब उसमे गोबर और पशुओ के खाया हुआ चारा सुखला आदि जो बचा हुआ पर्दाथ को उस खड्डे में डाला जाता हे
फिर उसमें पानी डाला जाता हे उस गड्ढे को गोबर और पानी से भर के ऊपर गोबर से ढक दिया जाता हे 3 महीने में सारा गोबर सड़ कर एक अछी खाद बन जाती है। इस खाद में  इस खाद में नाइट्रोजन,फास्फोरस,और पोटाश की मात्रा होती है।
काम्पोस्ट खाद की  विधि:-
इस विधि में जमीन के ऊपर इटो की चोकोर दीवाल बनाई जाती हे उसमे जाली दार दिवाल बनाई जाती हे ताकि पर्याप्त् मात्रा में हवा मिलती रहे इसकी लम्बाई 25 फिट और चौड़ाई 5फिट और उचाई 4 से 6फिट तक होती हे।इस विधि में थोड़े से गोबर से भी ज्यदा खाद बन जाती हे सबसे पहले निचे गोबर को पानी मिला कर पतला लेप कर दे फिर सड़ा हुआ घास फुस और पत्तो को एक फिट तक भर दे बाद में फिर आधे फिट की गोबर की लेप कर दे उसके बाद उसपर मिट्ठी का एक फिट लेप कर दे और उसे पानी से गिला कर दे हो सके तो गो मूत्र भी डाल दे उसके बाद वापिस एक डेढ फिट गोबर का लेप से अच्छी तरह से ढक दे फिर उसपर त्रिपाल या प्लास्टिक से ढक दे ।फिर 2 से 3 माह के बिच खाद बन कर तैयार हो जाता हे इस विधि में खासकर के ये ध्यान रखना होता है की वो ही घास या फसलो के उपविष्ट पर्दाथ डाले जिसमे बीज आदि ना हो वरना खेतो में निदाई गुड़ाई का खर्चा अधिक आ जायेगा
ये बहुत ही साधरण तरीके हे जिससे आप अच्छी खाद बना सकते है।
अगली पोस्ट में हम खाद की सभी वैज्ञानिक और पारंपरिक तरीको पर चर्चा करेगे
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गाय होने से बहुत सारी अशुभ चीजें दूर हो जाती हैं

गाय से शरीर से जो सात्विक उर्जा निकलती है, उस घर या इलाके में गाय होने से बहुत सारी  अशुभ चीजें दूर हो जाती हैं l गाय के शरीर में सुर्यकेतु नाड़ी होती है, जो सूर्य किरणों को पीती है, इसलिए गाये के गोबर व मूत्र में भी सात्विक पॉवर होता है l मरते समय भी गाय के गोबर का लीपन करके व्यक्ति को सुलाया जाता है l
  • कैसी भी जहरी दवाएं खायी हो, गौमूत्र थोड़े दिन पिये, Blockage खुल जायेगा और जहरी दवाओं का असर उतर जायेगा l
  • बच्चों को गाय की पूंछ का झाड़ा देने से ऊपर की आई हुई हवा या कुप्रभाव नाश होता है l
  • जिसको रात को ठीक से नींद न आती हो, वो मोर के पंख रख दे, सिरहाने के नीचे और "हरि ॐ" का गुंजन करे , नींद आने लगेगी l
  • जिसको बुरे स्वप्न आते हों वो बुरे स्वप्न न आयें इसका आग्रह छोड़ दें l पैरों को गाय का घी मल दें और सिर में थोड़ा हलकी मालिश कर दें किसी भी तेल की l
  • गाए के दूध से बनी दही शरीर पर रगड़कर स्नान करने से स्वास्थ्य, प्रसन्नता और दरिद्रता दूर हो जाती है l
  • चावल पानी में पका लें फिर गाय के दूध में डालकर खीर बना लें, ज्यादा मीठा और मेवा न डालें और फिर "ॐ" का १२० माला जप करें l ७ सप्ताह तक करें तो ७ जनम की दरिद्रता दूर हो जाती है और ७ जनम तक कुटुंब में दरिद्रता नहीं आती l
  • जिस रोग के लिए डॉक्टर ने मना कर दिया हो की ये रोग ठीक नहीं हो सकता, वो व्यक्ति घर में गाय पालें और चारा-पानी खुद खिलाये और स्नेह करें l गाय की प्रसन्नता उसके रोमकूपों से प्रकट होगी और आप अपने हाथ गाय की पीठ पर घुमाएंगे तो आपके हाथों की उँगलियों द्वारा वो प्रसन्नता, रोग प्रतिकारक शक्ति बढाएगी l २-४ महीने तक ऐसा करें l
  • काली गाय का घी बुढापे में भी जवानी ले आता है l हार्ट अटैक की तकलीफ है और चिकनाहट खाने की मनाही है तो गाए का घी खाएं, हार्ट मज़बूत बनता है l

गौ संरक्षण हमारी एक महती आवश्यकता

गौ संरक्षण हमारी एक महती आवश्यकता 

अपने देश में गौरक्षा का गौ-पालन और गौ-पूजा का महत्व बहुत है। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी अभिरुचि इस दिशा में सबसे अधिक प्रदर्शित करके सर्वसाधारण का ध्यान इस ओर आकर्षित किया था कि उन्हें गौ का महत्व और उपयोग भली प्रकार समझना चाहिये और इस संदर्भ में व्यवहारतः कुछ करते रहना चाहिए
मानवी स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए जिस पौष्टिक आहार की आवश्यकता है, उसमें गौ दुग्ध अग्रणी है। यों दूध तो भैंस और भेड़-बकरी का भी मिलता है और कहीं-कहीं गधी और ऊँटनी का भी प्रयुक्त होता है पर विटामिन ‘ए’ जैसे बहुमूल्य तत्त्व जितनी मात्रा में गाय के दुग्ध में है, उतने और किसी में नहीं। देखने में भैंसा या भेड़ का दूध चिकना, गाढ़ा निकलता है पर गुणों में गोरस से उनकी कोई तुलना नहीं। जितने उपयोगी खनिज, लवण, रोग निरोधक, बलवर्धक जीवन तत्त्व गाय के दूध में हैं, और शिक्षित देशों में जो गुण और लाभ को परखना जानते हैं, केवल गौदुग्ध ही उपयुक्त होता है। योरोप और अमेरिका का समस्त देश प्रायः गौ दुग्ध ही सेवन करता है। भैंस तो अफ्रीका और भारत को छोड़कर अन्यत्र पाई भी नहीं जाती।
आयुर्वेद शास्त्र में भी गौदुग्ध का ही प्रतिपादन है। धर्म ग्रन्थों में जहाँ कहीं दूध, घी की आवश्यकता का वर्णन है, वहाँ गौरस का ही उल्लेख समझना चाहिये। दूरदर्शी ऋषियों को शारीरिक दृष्टि से गोरस की शारीरिक उपयोगिता विदित ही थी, इसके अतिरिक्त वे उसके मानसिक और आध्यात्मिक गुणों से भी परिचित थे। गाय में, गाय के बछड़े में-जैसी फुर्ती और चतुरता रहती है, वैसी भेड़ या भैंस में नहीं। स्पष्टतः इन पशुओं का मानसिक स्तर भी दूध में धुला रहता है। भैंस का दूध पीने से उसी जैसा आलस्य, प्रमाद एवं बुद्धूपन बढ़ता है। ‘भेड़चाल’ उक्ति में उस प्राणी की अदूरदर्शिता का ही वर्णन है। गाय इन सबसे निराली है। उसकी स्फूर्ति एवं चतुरता बात-बात में परखी जा सकती है। मार्ग में खेलते हुए बच्चे को गाय बचाती हुई चलेगी पर भैंस अपनी राह चलती जाएगी, चाहे बूढ़ा, बच्चा कोई भी क्यों न कुचल जाय। तनिक-सी गर्मी-सर्दी और थकान, बर्दाश्त करना भैंस के लिए कठिन है। पर गाय की सहिष्णुता प्रख्यात है। यही गुण उसके दूध में रहते है। माता के दूध का बच्चे पर असर पड़ता है। माता का जैसा स्वभाव होता है, बच्चा भी वैसी प्रकृति का बन जाता है। यह दूध का गुण है। भैंसा या भेड़-बकरी का दूध पीने वाले उन्हीं जैसे हेय गुणी वाले बनते चले जाते हैं।
गाय की सबसे बड़ी विशेषता उसमें पाई जाने वाली आध्यात्मिक विशेषता है। हर पदार्थ एवं प्राणी में कुछ अति सूक्ष्म एवं रहस्यमय गुण होते हैं। सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण की मात्राएँ सबमें पाई जाती हैं। जिस प्रकृति के पदार्थों और प्राणियों से हम संपर्क रखते हैं, हमारी अंतःस्थिति भी उसी प्रकार छलने लगती है। हँस पाल कर बढ़ता हुआ सतोगुण और कौआ पाल कर घर में में बढ़ता हुआ तमोगुण कभी भी अनुभव किया जा सकता है। भेड़-बकरी और भैंस को तमोगुण प्रधान माना गया है। गाय में सतोगुण की भारी मात्रा विद्यमान् है। अपने बच्चे के प्रति गाय की ममता प्रसिद्ध है। वह अपने पालन करने वाले तथा उस परिवार को भी बहुत प्यार करती है। जंगलों में शेर, बाघ का सामना होने पर अपने ग्वाले की चारों और से घेर कर गाय झुण्ड बना लेती हैं और अपनी जान पर खेल कर अपने रक्षक को बचाने का त्याग, बलिदान एवं कृतज्ञता आत्मीयता का आदर्श भरा उदाहरण प्रस्तुत करती है। ऐसी आध्यात्मिक विशेषता और किसी प्राणी में नहीं पाई जाती। इस स्तर के उच्च सद्गुण उन लोगों में भी बढ़ते हैं जो उसका दूध पीते हैं। बैल की परिश्रम-शीलता ओर सहिष्णुता प्रख्यात है। यह विशेषताएँ गौ दुग्ध का उपयोग करने वाले में भी बढ़ती है।
गौरस एक सर्वांगपूर्ण परिपुष्ट आहार है। उसमें मानसिक स्फूर्ति एवं आध्यात्मिक सतोगुणी तत्त्वों का बाहुल्य रहता है, इसलिए मनीषियों तथा शास्त्रकारों ने-गाय का वर्चस्व स्वीकार करते हुए उसे पूज्य, संरक्षणीय एवं सेवा के योग्य माना है। गाय की ब्राह्मण से तुलना की है और उसे अवध्य-मारे न जाने योग्य घोषित किया गया है। गोपाष्टमी और गोवर्धन दो त्यौहार ही गौरक्षा की और जनसाधारण का ध्यान स्थिर रखने के लिए बनाये गये हैं। चूँकि ये पहली रोटी गाय के लिए निकालने की परम्परा भी इसीलिये है कि गाय को एक कुटुम्ब का प्राणी समझते रहा जाय। राजा दिलीप जैसे ऐतिहासिक महापुरुषों की गौ-भक्ति प्रसिद्ध है जिसके कारण उन्होंने सुसन्तति प्राप्त की। आज भी वह तथ्य ज्यों का त्यों है। गाय के संपर्क में रहने वाले, गोरस पीने वाले पति-पत्नि निस्सन्देह सुयोग्य और स्वस्थ सन्तान पैदा कर सकते हैं, उनका पुरुषत्व साँड़ की तरह सुस्थिर बना रहता है। पुराणों में गौ भक्ति और गौ सेवा के लिये बहुत कुछ करने वाले सत्पुरुषों के अगणित उदाहरण विद्यमान् है। उस समय-शिक्षा की गुरुकुल प्रणाली थी। हर छात्र को आश्रम की गौएं चरानी पड़ती थी और आहार में गोरस की समुचित मात्रा मिलती थी। उस समय के छात्रों की प्रतीक्षा परिपुष्टता एवं सज्जनता की अभिवृद्धि के जो महत्त्वपूर्ण लाभ मिलते थे, उसमें गौ संपर्क भी एक बहुत बड़ा कारण था।
भारत कृषि प्रधान देश है। यहाँ जुताई, सिंचाई और गुड़ाई, (अन्न को पौधे से अलग करना) के लिए बैल की अनिवार्य आवश्यकता है। गाय का गोबर अपने ढंग का अति उर्वरक खाद्य है। अपने देश की कृषि गौवंश पर निर्भर है। रासायनिक खाद अचार, चटनी की तरह है, उनसे धरती की भूख नहीं बुझ सकती, वह तो गोबर से ही सम्भव है। महंगी बार-बार बिगड़ने वाली, खर्चीली ओर तकनीकी ज्ञान की अपेक्षा रखने वाली मशीनें भारत की कृषि समस्या को हम नहीं कर सकती। अनेक कारणों से यहाँ तो बैल ही सफल होगा। अन्न और दूध हम गौवंश की कृपा से ही प्राप्त कर सकते हैं, इसलिये उसका संरक्षण सब प्रकार से उपयुक्त है।
गोबर से लीपने पर घर रोग कीटाणु मुक्त होते हैं। गौ मूत्र असाध्य रोगों में भी रामबाण औषधि का काम करता है। इनकी गन्ध से विषैले रोगकर्मी अनायास ही मरते हैं और स्वास्थ्य रखा की एक सहज व्यवस्था बनती रहती है।
आवश्यकता है कि हम गौरक्षा पर ध्यान दें और अपनी शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, आर्थिक एवं धार्मिक स्थिति की परिपुष्ट बनाने के लिए इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाये
यह एक दुर्भाग्य ही है कि जिस देश में गौ को पूज्य और गौरक्षा को धर्म माना जाता है, उसी में उसकी सबसे अधिक दुर्गति हो। गौ नस बुरी तरह खराब हो चुकी है। जरा सा दूध देती और बेकार समझी जाती है। कलाई को छुरी के नीचे ही उन्हें आश्रय मिलता है। गौवंश बुरी तरह घटता और नष्ट होता चला जा रहा है। उसका एक मात्र कारण उस ओर बरती जाने वाली हमारी उपेक्षा ही प्रधान कारण है। माँसाहारी देशों में गायें एक-एक मन दूध दें और गौरस की नहरें बहे और हम गौ-भक्तों में उसका दर्शन भी दुर्लभ रहें, यह कैसी विडम्बना है।

हमें चाहिये कि गौ-दूध की उपयोगिता स्वीकार करें और उसी की माँग करें। ऐसी दशा में भैंस पालने वाले सहज ही गौ पालने लगेंगे। जिसकी माँग होगी उसका उत्पादन भी होगा और उसका स्तर भी उठेगा। हम जय गाय की बोलते हैं और दूध भैंस का पीते हैं। इस प्रकार गौरक्षा कैसे सम्भव होगी? जिस दिन जनसाधारण की समझ में गौरस की उपयोगिता आ जाएगी, उसी की माँग की जाएगी तो देखते-देखते यह देश गौधन से भरा-पूरा गौ संवर्धन और गोरस उत्पादन के लिए बड़े पैमाने पर व्यवसायिक स्तर पर काम करें, चाय वालों की तरह गोरस की महत्ता समझने के लिए व्यापक प्रचार करें और धन, पुण्य तथा राष्ट्र की महती सेवा का सुयोग प्राप्त करें। सरकार और जनता ये दोनों वर्ग मिलकर गौरक्षा के लिए कुछ ठोस काम करें, यह आज की एक महती आवश्यकता है।


गौ संवर्धन एवं कृषि

गौ संवर्धन एवं कृषि


वैदिक काल में समद्ध खेती का मुख्य कारण कृषि का गौ आधारित होना था। प्रत्येक घर में गोपालन एवं पंचगव्य आधारित कृषि होती थी, तब हम विश्व गुरू के स्थान पर थे। भारतीय मनीषियों ने संपूर्ण गौवंश को मानव के अस्तित्व, रक्षण, पोषण, विकास एवं संवर्धन के लिये आवश्यक समझा और ऐसी व्यवस्थाऐं विकसित की थी जिसमें जन मानस को विशिष्ट शक्ति बल तथा सात्विक वृद्धि प्रदान करने हेतु गौ दुग्ध, खेती के पोषण हेतु गोबर-गौमूत्र युक्त खाद, कृषि कार्यो एवं भार वहन हेतु बैल तथा ग्रामद्योग के अंतर्गत पंचगव्यों का घर-घर में उत्पादन किया जाता था। प्राचीन काल से ही गोपालन भारतीय जीवन शैली व अंर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग रहा है।
वर्तमान में मनुष्य को अनेकों समस्याओं जैसे मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण असंतुलन, जल का दूषित होना, कृषि भूमि का बंजर होना आदि से जूझना पड़ रहा हैं। इन विपरित परिस्थतियों में हमें अपने आप को स्वस्थ एवं आर्थिक रूप से सम्पन्न रखना है तो दैनिक जीवन में गौ-दूग्ध एवं पंचगव्य उत्पादों का तथा कृषि में गौबर एवं गौमूत्र से उत्पादित कीटनाशकों एवं जैविक खादों का उपयोग बढ़ाना होगा।
भारत वर्ष ही एक एैसा राष्ट्र है जिसमें दूध उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। आज हमारा देश संसार में सर्वाधिक 140.3 मिलीयन टन दूध उत्पादन करने वाला देश हैं। जो 2019-20 तक 177 मिलीयन टन बढकर हो जाने का अनुमान है। भारत में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 290 ग्राम है जो संसार के औसत उपलब्धता से ज्यादा हैं। पिछले 5 वर्षो में भारत का दूध उत्पादन 25 मिलीयन टन बढ़ा, इसकी तुलना में अमेरिका में 6.6 मिलीयन टन, चीन में 5.4 मिलीयन टन एवं न्यूजीलैन्ड में 2.7 मिलीयन टन ही बढ़ा। इससे सिद्ध होता है कि हमारा पशुपालक एवं पशुधन किसी से कम नहीं है।
यद्यपि हमारे पास 304 मिलीयन का विशाल दुधारू पशुधन है, जिसमें 16.60 करोड़ भारतीय नस्लकीदेशी व 3.3 करोड़ संकर नस्ल की गाये है तथा 10.53 करोड़ भैसे है, जिनसे 7 करोड़ पशुपालकों द्वारा प्रतिदिन 33 करो़ड लीटर दूध का उत्पादन किया जाता है, जो अपने आप में एक कीर्तिमान हैं। 
समय समय पर निति निर्धारकों एवं चिंतको द्वारा ऐसे विचार व्यक्त किये जाते रहे है कि भारत में दूध उत्पादन में ब़ढ़ोतरी करने हेतु संकर गायों की संख्या बढ़ानी होगी। तथापि देशी गायों की उत्पादकता को उत्तरोतर बढ़ाने के उपाय करने होंगें। भारतीय गौवंश गुणवत्ता के आधार पर दुनिया में सर्वश्रेष्ठ और सभी विदेशी नस्लों में श्रेयस्कर है। भारत में अधिक दूध देने वाली नस्लें भी है गुजरात राज्य की गीर नस्ल की गाय ने ब्राजील में आयोजित विश्व प्रतियोगिता में 64 लीटर दूध देकर विश्व कीर्तिमान स्थापित किया है। भारतीय नस्लों की गायों का दूध अधिक गुणकारी है जिसमें प्रोटीन ।.2 किस्म की होती है, जिसकी प्रकृति धमनियों में रक्त जमाव विरोधी, कैसंर विरोधी एवं मधुमेह विरोधी होती है, इसलिए देशी गाय का दूध दौहरा लाभदायक है वहीं भारतीय गाय के दूध में बच्चों के दिमाग की वृद्धि करने हेतु आवश्यक तत्व सेरेब्रोसाईड, कन्जूगेटेड लिनोलिक ऐसिड एवं ओमेगा थ्री फेटी ऐसिड आवश्यक अनुपात में पाया जाता है।
भारतीय गौवंश में 34 निर्धारित एवं 30 स्थानीय नस्लें अपने-अपने प्रजनन क्षैत्रों में बखूबी योगदान दे रही है। साहीवाल, गीर, रेडसिन्धी, राठी और थारपारकर नस्ल की गायें प्रजनन एवं उत्पादन दोनों में श्रेष्ठ है। उचित प्रबन्धन से इन नस्लों की गायें 12-18 लीटर दूध प्रतिदिन देते हुए दूध की जरूरत को पूरा कर, ग्रामीणों को वर्षपर्यन्त रोजगार एवं भूमि को उपजाऊ बनाऐ रखने के लिए जैविक खाद उपलब्ध करवा सकती है।
हमारे पास देशी गौवंश में 4.80 करोड़ दुधारू गायों सहित 8.92 करोड़ व्यस्क मादा देशी गौवंश है, जिनकी उत्पादकता बढ़ाकर, दो ब्यांत का अन्तराल कम कर दूध एवं दूध उत्पादों की बढ़ती मांगो का पूरा किया जा सकता है । लेकिन हमारे पशुपालकों द्वारा पुराने प्रचलित सिद्धातों जैसे केवल भूसा या कड़वी ही खिलाना, घरों में उपलब्ध एक या दो खाद्यान्न वह भी अल्प मात्रा में दूध देते समय अपने सुविधा अनुसार खिलाना, पशु प्रबंधन जैसे-
ब्याने के पूर्व नहीं खिलाना, ब्याने के 2 माह बाद ग्याभिन नहीं करवाना, नियमित रूप से नमक एवं खनिज मिश्रण नहीं देना, बिमार पशुओं का उचित उपचार नहीं करवाना आदि को अपनाया जाता है, जिनके परिणामस्वरूप पीक दूध उत्पादन का कम होना या एक ब्यांत में कम दिनों तक कम दूध का देना एवं दो ब्यांत का अन्तराल बढ जाने से कम दूध उत्पादन होने की बजह से गोपालन व्यवसाय अलाभकारी सिद्ध होता जा रहा है, जबकि देशी गायों की क्षमता प्रतिदिन 10 से 12 लीटर दूध देते हुये 1 ब्यात में 2000 से 2500 लीटर दूध देने एवं प्रतिवर्ष ब्याने की हैं। इस क्षमता का दौहन करने की आवश्यकता है।
अनुसंधान परिणाम दर्शाते है कि संतुलित आहार से दूध उत्पादन बढ़ता है, उत्पादन लागत घटती हैं तथा मीथेन गैस उत्सर्जन में कमी आती है। दुधारू गायों को संतुलित आहार खिलाये बिना केवल अनुवांशिक क्षमता बढ़ा कर बेहतर दूध प्राप्त करना संभव नहीं है। आमतौर पर दूधारू गायों को स्थानीय स्तर पर उपलब्ध पशु खाद्य पदार्थ, घास एवं सूखे चारे तथा फसल अवशेष ही खिलाये जाते हैं, जिनके फलस्वरूप उनका आहार प्रायः असंतुलित रहता है और उसमें प्रोटीन, ऊजो, खनिज तत्वों तथा विटामिनों की मात्रा कम या ज्यादा हो जाती हैं। असंतुलित आहार न केवल गायों के स्वास्थ्य एवं उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है अपितु दूग्ध उत्पादन में होने वाली आय को भी प्रभावित करता है, क्योकि आहार खर्च में दुग्ध उत्पादान की कुल लागत का 70 प्रतिशत हिस्सा होता हैं। पशुओं की प्रजनन एवं दूध उत्पादन क्षमता में सुधार लाने, दो ब्यात का अन्तराल कम करने तथा दूध उत्पादको की शुद्ध आय में बढ़ोतरी हेतु दूध उत्पादकों को संतुलित आहार के बारे में शिक्षित करना अत्यन्त आवश्यक है।
हरा चारा पशुओं के लिये पोषक तत्वों का एक किफायती स्त्रोत है परन्तु इसकी उपलब्धता सीमित है। चारे की खेती के लिये सीमित भूमि के कारण, चारा फसलों एवं आम चारागाह भूमि से चारे की उत्पादकता में सुधार पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है साथ ही अतिरिक्त उत्पादित हरे चारे के संरक्षण के तरीकों को प्रदर्शित करना होगा, जिससे कि हरे चारे की कमी के समय इनकी उपलब्धता बढ़ाई जा सके।
विभिन्न प्रयोगों में पाया गया है कि खनिज तत्वों की कमी वाले आहारों का निरन्तर उपयोग करते रहने से पशु शरीर में उपस्थित खनिजों के क्रियात्मक संयोगों एवं विशिष्ठ सांद्रताओं में परिवर्तन उत्पन्न हो जाते है कई प्रकार की व्याधिया उत्पन्न हो जाती है। पशुओं को दूध देने, पुनः ग्याभिन होने एवं ब्याने के दौरान प्रोटीन व ऊर्जा की ज्यादा आवश्यकता पड़ने के कारण खनिज तत्वों एवं विटामिनों की आवश्यकता बढ़ जाती है। अतः पशुओं की सामान्य वृद्धि दर, प्रजनन क्षमता एवं उत्पादन के स्तर को बनाये रखने के लिए सभी खनिज तत्व प्रर्याप्त मात्रा में उपलब्ध करवाना आवश्यक है। इन दिनों अधिकांश गौपालकों द्वारा महसूस किया जाने लगा है कि गायों को पर्याप्त मात्रा में दाना/बाटा/चारा देने के उपरान्त भी दूध उत्पादन में कमी, प्रजनन क्षमता में कमी, अधिक उम्र में परिपक्व होना, समय पर ग्याबिन नहीं होना आम बात हो गई है।
दूध के साथ निकलने वाले खनिजों की पूर्ति करने एवं पशु शरीर की सामान्य वृद्धि व उत्पादन के स्तर को बनाये रखने, परासरण दाब एवं तापमान को नियंत्रित रखने के लिए नियमित रूप से पशु की इच्छा अनुसार या पच्चीस से 30 ग्राम साधारण नमक एवं 40-50 ग्राम कम्पलीट खनिज मिश्रण अवश्य ही दिया जाना चाहिये।

गौ पालन और गाय के रखरखाव में कई सारी कमियों के बावजूद आज भारत विश्व का प्रथम स्थान वाला दुध उत्पादित देश है। अगर हम अपनी इन कमियों को कम करने की कोशिश करते है तो हम दुध उत्पादन की क्षमता का अंदाजा भी नहीं लगा सकते है। गाय के पालन और रखरखाव में बुनियादी चीजों को जोड़ने से देश की न सिर्फ अर्थव्यवस्था को फायदा होगा, बल्कि भारत की रीड़ भारतीय किसानो को भी पैकेट खाद्य और नए तकनीक के उपकरणों पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा। जो जमीन को समय अंतराल पर बंजड़ बना देते है। गौपालन एंव गौसंवर्धन में जागरुकता लाकर हम दुध उत्पादन में विश्व नम्बर एक पर बने रहने वरण और कई क्षेत्र में कई देशों से आगे निकल सकते है।

गाय हम सब की मां

 गाय हम सब की मां

गाय के दूध, घृत, दही, गोमूत्र और गोबर के रस को मिलाकर पंचगव्य तैयार होता है। पंचगव्य के प्रत्येक घटक द्रव्य महत्वपूर्ण गुणों से संपन्न हैं।

इनमें गाय के दूध के समान पौष्टिक और संतुलित आहार कोई नहीं है। इसे अमृत माना जाता है। यह विपाक में मधुर, शीतल, वातपित्त शामक, रक्तविकार नाशक और सेवन हेतु सर्वथा उपयुक्त है।
गाय का दही भी समान रूप से जीवनीय गुणों से भरपूर है। गाय के दही से बना छाछ पचने में आसान और पित्त का नाश करने वाला होता है।
गाय का घी विशेष रूप से नेत्रों के लिए उपयोगी और बुद्धि-बल दायक होता है। इसका सेवन कांतिवर्धक माना जाता है।
गोमूत्र प्लीहा रोगों के निवारण में परम उपयोगी है। रासायनिक दृष्टि से देखने पर इसमें पोटेशियम, मैग्रेशियम, कैलशियम, यूरिया, अमोनिया, क्लोराइड, क्रियेटिनिन जल एवं फास्फेट आदि द्रव्य पाये जाते हैं।
गोमूत्र कफ नाशक, शूल गुला उदर रोग, नेत्र रोग, मूत्राशय के रोग, कष्ठ, कास, श्वास रोग नाशक, शोथ, यकृत रोगों में राम-बाण का काम करता है।
चिकित्सा में इसका अन्त: बाह्य एवं वस्ति प्रयोग के रूप में उपयोग किया जाता है। यह अनेक पुराने एवं असाध्य रोगों में परम उपयोगी है।
गोबर का उपयोग वैदिक काल से आज तक पवित्रीकरण हेतु भारतीय संस्कृति में किया जाता रहा है।
यह दुर्गंधनाशक, पोषक, शोधक, बल वर्धक गुणों से युक्त है। विभिन्न वनस्पतियां, जो गाय चरती है उनके गुणों के प्रभावित गोमय पवित्र और रोग-शोक नाशक है।
अपनी इन्हीं औषधीय गुणों की खान के कारण पंचगव्य चिकित्सा में उपयोगी साबित हो रहा है।

ध्यान दें:≈> 

दुग्धाहार, श्रेष्ठाहार- दूध स्तनधारी प्राणियों के लिये वरदान है उस ईश्वर का जिसने दुनिया में उन्हें भेजा। गाय के साथ-साथ भैंस और बकरी के दूध का भी हम इस्तेमाल करते हैं। शायद ही ऐसा कोई मनुष्य हो जो दूध का पान किए बगैर ही बड़ा हो गया हो। “मातृ क्षीरंत अमृतं शिशुभ्य:” मां का दूध बच्चे के लिये अमृत है।
गौमाता की सुरक्षा के लिए संकल्प लीजिए, गौमाता की पूजा के लिये संकल्प लीजिए। चाहे किसी भी जाति सम्प्रदाय के हों, दूध पीने की आदत डालें। प्रक्रिया जो भी हो, मांस लाल होता है, दूध सफेद होता है। सफेद यानी शांति का प्रतीक। यह भी ईश्वर का एक संकेत ही है।
गाय को लेकर विशेष चर्चा इसलिए है कि गाय को बचाने के प्रयास हो रहे हैं। गाय हमारी माता है। हम सब उसके बच्चे हैं, उसके दूध पर आश्रित हैं। गाय का दूध गिलास में लेकर हम पीते हैं तो यह पुष्टिका है, कम से कम इतना तो कहा जा सकता है। गाय के दूध की उपयोगिता का वर्णन प्राय: असंभव है। ये बड़ी-बड़ी डेयरियां कहां से चलती हैं? ये पकवान कहां से बनते हैं? ये चाकलेट कहां से बनती है? ये मिठाइयां कहां से बनती हैं? स्वादिष्ट पनीर, दही, मावा सब के सब दूध से ही ताे बनते हैं। एक तरह से दूध न होता तो संसार नहीं होता।
गौमाता को अपने घर में रखकर तन-मन-धन से सेवा करनी चाहिये, ऐसा कहा गया है जो तन-मन-धन से गौ की सेवा करता है, तो गौमाता उसकी सारी मनोकामनाएँ पूरी करती है।
प्रातः काल उठते ही श्री भगवत्स्मरण करने के पश्चात यदि सबसे पहले गौमाता के दर्शन करने को मिल जाये तो इसे अपना सौभाग्य मानना चाहिये।
यदि रास्ते में गौ आती हुई दिखे, तो उसे अपने दाहिने से जाने देना चाहिये।
गौ के सामने कभी पैर करके बैठना या सोना नहीं चाहिये, न ही उनके ऊपर कभी थूकना चाहिये, जो ऐसा करता है वो महान पाप का भागी बनता है।
गौमाता को घर पर रखकर कभी भूखी – प्यासी नहीं रखना चाहिये, न ही गर्मी में धूप में बाँधना चाहिये। ठण्ड में सर्दी में नहीं बाँधना चाहिये, जो गाय को भूखी – प्यासी रखता है उसका कभी श्रेय नहीं होता।
नित्य प्रति भोजन बनाते समय सबसे पहले गाय के लिए रोटी बनानी चाहिये। गौग्रास निकालना चाहिये। गौ ग्रास का बड़ा महत्व है।
गौओ के लिए चरणी बनानी चाहिये, और नित्य प्रति पवित्र ताजा ठंडा जल भरना चाहिये, ऐसा करने से मनुष्य की “२१ पीढियाँ” तर जाती है।
गाय उसी ब्राह्मण को दान देना चाहिये, जो वास्तव में गाय को पाले, और गाय की रक्षा सेवा करे, यवनों को और कसाई को न बेचे। अनाधिकारी को गाय दान देने से घोर पाप लगता है।
नित्य प्रति गाय के परम पवित्र गोबर से रसोई लीपना और पूजा के स्थान को भी, गोमाता के गोबर से लीपकर शुद्ध करना चाहिये।
गाय के दूध, घी, दही, गोबर और गौमूत्र, इन पाँचो को ‘पञ्चगव्यऽ के द्वारा मनुष्यों के पाप दूर होते है।
कहते हैं गौ के “गोबर में लक्ष्मी जी” और “गौ मूत्र में गंगा जी” का वास होता है इसके अतिरिक्त दैनिक जीवन में उपयोग करने से पापों का नाश होता है, और गौमूत्र से रोगाणु नष्ट होते है।
जिस देश में गौमाता के रक्त का एक भी बिंदु गिरता है, उस देश में किये गए योग, यज्ञ, जप, तप, भजन, पूजन , दान आदि सभी शुभ कर्म निष्फल हो जाते है।
नित्य प्रति गौ की पूजा आरती परिक्रमा करना चाहिये। यदि नित्य न हो सके तो “गोपाष्टमी” के दिन श्रद्धा से पूजा करनी चाहिये।
गाय यदि किसी गड्डे में गिर गई है या दलदल में फस गई है, तो सब कुछ छोडकर सबसे पहले गौमाता को बचाना चाहिये। गौ रक्षा में यदि प्राण भी देना पड़ जाये तो सहर्ष दे देने से गौलोक धाम की प्राप्ति होती है।
यदि तीर्थ यात्रा की इच्छा हो, पर शरीर में बल या पास में पैसा न हो, तो गौ माता के दर्शन, गौ की पूजा और परिक्रमा करने से, सारे तीर्थो का फल मिल जाता है। गाय सर्वतीर्थमयी है। गौ की सेवा से घर बैठे ही ३३ करोड़ देवी – देवताओ की सेवा हो जाती है।

आओ हम-सब मिलकर गौमाता की रक्षा करने का दृढ़ संकल्प ले।


सही प्रबंधन से गाय पालने में बेहतर आय

सही प्रबंधन से गाय पालने में बेहतर आय=========================
कृषि ग्रामीण व्यवसाय में दुग्ध उत्पादन किसानों के लिए सबसे ज्यादा आसान और फायदेमंद है। किसानों के पास विभिन्न फसल से चारा आसानी से मिल जाता है। इसीलिए भारत में दुग्ध उत्पादन की लागत दुनिया में सबसे कम रहती है। लेकिन डेयरी का सही तरह से प्रबंधन न होने के कारण किसानों को इसमें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। देश में घरेलू स्तर पर दुधारू पशु पालने वाले लोग आमतौर पर दस से पंद्रह पशु पालते हैं।
इतने पशुओं की डेयरी लघु स्तर पर ही कहलाएगी। सालभर दूध देने के कारण गाय की उपयोगिता ज्यादा है। किसानों द्वारा चलाने वाले लघु डेयरी फार्म के लिए गाय पालन करना लाभकारी है। 
पशुओं का चयन
राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ.एम.पी. सिंह का कहना है कि पशुओं की उत्पादकता तीन कारकों पर निर्भर करती है। पहला गाय की नस्ल का अनुवांशिक गुण, दूसरा- जिस क्षेत्र में पालन किया जाना है, वहां का मौसम, पोषण और पशुओं के रोग, तीसरा- परिस्थितियों के अनुसार पशुओं के ढलने की क्षमता। देसी नस्ल की गाय दूध जरूर कम देती हैं, लेकिन इनमें रोगों और मौसम में बदलाव सहने की क्षमता संकर नस्ल की गाय की तुलना में अधिक होती है।
छोटे किसानों के लिए उनके क्षेत्र के अनुसार अच्छा दूध देने वाली देसी नस्ल की गाय उपयुक्त रहती हैं। इनमें साहीवाल (1400-2500 ली. दूध प्रतिवर्ष), लाल सिंधी (1300-2200), हरियाणा (1200-1500), गिर (1400-1900), थारपारकर (1100- 1900) नस्ल की गायें प्रमुख हैं। शुद्घ नस्ल की गायें न मिलने की स्थिति में ज्यादा दूध देने वाली कुछ स्थानीय संकर नस्लों की गायें पाली जा सकती हैं। इन सभी नस्लों की गाय का मूल्य उनकी दूध देने की दैनिक क्षमता के अनुसार तय होता है। इनकी कीमत करीब 2,000 से 2,500 रुपये प्रति किलोग्राम दूध के अनुसार होगी।
डेयरी के लिए जरूरी स्थान
छोटे किसानों के पास उपलब्ध स्थान के मुताबिक ही पशुओं का पालन करना होता है। आमतौर पर दूध न देने वाली बछिया के लिए 2.5-3 वर्ग मीटर की जरूरत होती है। दूध देने वाली गाय को 3.5-5 वर्ग मीटर तक की आवश्यकता होती है। शेड हवादार होना चाहिए और बीच में गर्म हवा के निकलने के लिए जगह होनी चाहिए। कम जगह होने पर पशुओं के खाने के लिए नादें अलग बनाई जा सकती हैं। वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉ. हेमंत पंत के अनुसार नाद की गहराई करीब 40 सेंटीमीटर होनी चाहिए और नाद के दोनो कोने में पानी की व्यवस्था होनी चाहिए।
पशुओं में रोगों से बचाव
डॉ. हेमंत पंत का कहना है कि आमतौर पर डेयरी पशुओं में थनैला रोग का काफी प्रकोप होता है। यह रोग सही देखभाल के अभाव में होता है। सिर्फ थोड़ी सी सावधानी से पशुओं को थलैना रोग से बचाया जा सकता है। थनैला रोग के कारण प्रभावित थन में खराब दूध आता है, जिसे बाकी दूध में मिलाने से सारा दूध खराब हो जाता है।
इससे बचाव के लिए हमेशा दूध निकालने से पहले एक मग में पानी में पोटेशियम परमाग्नेट (लाल दवा) मिला लें और थनों को अच्छी तरह इस घोल से साफ कर लें, इसके बाद दूध निकालें। गाय का दूध रोजाना पूरी तरह निकालना चाहिए। ऐसा न होने पर संक्रमण हो सकता है। दूध निकालने के बाद थनों को डिटॉल के पानी से साफ कर लें, इससे थन में संक्रमण होने की संभावना काफी कम हो जाती है। इसके अलावा समय पर पशुओं को टीके लगवाएं, जिससे खुरपका-मुहंपका रोग और गलघोंटू जैसे रोगों की रोकथाम हो सके। पशुओं के शरीर पर चिपकने वाले पिस्सुओं और अन्य परजीवियों की रोकथाम करें।समय -समय पर ग्रोवेल एग्रोवेट कि दवाएं दें जो कि काफी प्रभावकारी है।
डेयरी फार्म से आय
गाय पालकर दूध उत्पादन करके किसानों को होने वाली आय कई बिंदुओं पर निर्भर होती है। अगर पशुपालक के पास अपने खेत का चारा है तो निश्चित ही उसका पशु पालने का खर्च कम होता। इससे उसकी आय बेहतर होगी। लेकिन यह तय है कि डेयरी का प्रबंधन ठीक ढंग से किया जाए तो पशुओं के रोगों से दूध उत्पादन में आने वाली बाधा से बचा जा सकेगा। इसके अलावा रोगी पशु के इलाज के खर्च से भी निजात मिलेगी।


सोमवार, 2 जनवरी 2017

पूरी शंकराचार्य महाभाग के वचन। गौ हत्या बन्द हो

पुरी शंकराचार्य महाभाग के वचन
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गौ हत्या बंद हो ...........लेकिन हो रही है बंद क्या ?
तो क्या हमारी प्रार्थना निरर्थक जा रही है क्या ?
प्रार्थना का एक रहस्य बता दें ...प्रभुप्रदत्त – प्राप्त विवेक का समादर करो , अभिमान मत करो...... लेकिन जब कोई प्राप्त शक्ति का उपयोग नही करता और भगवान् से प्रार्थना करता है तो भगवान् बहरे हो जाते है ,.....अरे जितनी शक्ति भगवान् ने दी उसका उपयोग कर और उसका अभिमान मत कर ....जो अपूर्णता है उसके लिए भगवान् से प्रार्थना कर .........हे प्रभु यह जो शक्ति है आपसे ही मिली है ऐसी कृतज्ञता प्रकट करो तो प्रार्थना सफल होगी !
नहीं तो – बहेलिया आवेगा , जाल बिछावेगा , दाना डालेगा .....फसना मत ......
सबसे पहले यह गीत बिना तबला , हारमोनियम के किसने गाया .....नेताओ ने ....... बहेलिया आवेगा , जाल बिछावेगा , दाना डालेगा .....फसना मत .....और सबसे पहले वे फँस गए ......गोहत्या बंद के नाम पर !
हमारे गुरुदेव को गोहत्या बंद के लिए आगे करके जो साधु वेषधारी व्यक्ति आया था वही इंदिरागांधी से मिलकर हमारे महाराज आदि पर प्रहार करवाया ......अब वह करोडो पति बना हुआ है , तीन बार नाम बदल चूका है तब भी वह वृन्दावन में आए तो लगेगा इससे बड़ा गोभक्त विश्व में नही होगा !
गायो को कटवाने में जिन धनियों का हाथ है .....वही गौशाला में जाकर दो हजार का दान देकर दानवीरों में भी अपना नाम लिखवा लेते है .........आखिर प्रार्थना सुनी भी जाए तो कब .....प्राप्त शक्ति का विनियोग करते है क्या गोरक्षा के लिए ....नही न !
भगवान राम ने सुग्रीव से कहा – देख , बाली को  तो मै मारूँगा लेकिन युद्ध के लिए तो तुझे ही जाना होगा ....एक चोट तो खानी पड़ेगी ......समझ गए .....तो शंकराचार्य या अन्य कोई सातवे आसमान की छड़ी घुमा दे और आप हम आराम से पड़ें रहें और सब काम हो जाएं .......ऐसा कभी नही होता !
हमने पुरी के राजा से कह दिया – महाभारत में लिखा है ....जो क्षत्रिय युद्ध से डरता है पृथ्वी उसे निगल लेती है ......जो हिन्दू अपने आदर्श व् आस्तित्व की रक्षा के लिए कटिबद्धता का परिचय नही देता ......जहाँ समर्थ है वहां भी सहयोग नही करता और कहता है सब भगवान् करेंगे ..........तो भगवान् की दृष्टि में वह दण्ड का पात्र हो जाता है तथा भगवान् उसके इस छल को सहन नही कर पाते ........  मोहि कपट छल छिद्र न भावा .....!
दो ही बात है ......गोहत्या बंद हो , यह कहना हम कब बंद करेंगे ........एक तो गाय न रहें ....अब तो लगता है दूसरा पक्ष ज्यादा प्रबल हो रहा है ........पहला पक्ष क्या है ....गोहत्या न हो , तो हम क्यों कहे गोहत्या बंद हो ....जीवित है तभी तो कह रहे है न ..........दूसरा पक्ष इतना प्रबल लग रहा है यह जर्सी आदि रहेंगी , देशी गाय नही रहेंगी तो क्या कहेंगे गोहत्या बंद हो ?                                                            
लेकिन गोहत्या बंद हो कह भी देते है और गुप्त अथवा प्रकट हाथ भी होता ही है ........आप बुरा न माने ...इसी वृन्दावन धाम में .....एक संत के यहाँ मुह से निकल गया ......सारी गाय आपके यहाँ जर्सी है और आप भागवत की कथा कहते है ....गोविन्द जय जय , गोपाल जय जय का कीर्तन करवाते है ...क्या है यह तमाशा ....
उन्होंने बुलाना और मुह देखना ही बंद कर दिया जैसे हमने अपराध कर दिया हो .....अरे भागवत के पंडितो के यहाँ भी यह हाल होगा तो कैसे क्या होगा .....उड़ियाबाबा के ट्रस्ट में मैंने कह दिया मेरा नाम इस पर से हटा दो... क्या है यह सब ? ज्यादा दूध के नाम पर ........विदेशो में देशी नस्ल की गाय से १२० लीटर दूध लिया जा रहा है , क्या वह अनुसन्धान भारत में नही हो सकता ......गोविन्द जय जय कहेंगे और पालेंगे जर्सी ....तो क्या देशी गाय केवल काटने के लिए पैदा होती है ? इस बईमानी से क्या दशा होगी !
इसलिए आत्मनिरीक्षण पूर्वक भगवान् से प्रार्थना करें !!

!! हर हर महादेव !!