~~~ भगवान् शंकरकी गौभक्ति - (भाग १) ~~~
देवाधिदेव महादेव भगवान् शंकर 'पशुपति' कहें जाते हैं, -- 'पशूनां पतिं पापनाशं परेशम् |' ऊन्हें गौएँ ईतनी प्रिय हैं कि वे गौओ के ही साथ रहते हैं |
ऊनका वाहन वृषभराज नंदी हैं, ऊन्होंने धर्म स्वरुप वृषभ को ही अपनी ध्वजामें भी स्थान दिया हैं, ईसीलिए वे 'वृषभध्वज' कहलाते हैं|
भगवान् शंकर को तपस्या करना अति प्रिय हैं, और वे तपस्या भी गौओंके साथ रहकर ही करते हैं, क्योकीं गौएं समस्त तपस्वियोंसे बढ़कर है, ---
भगवान् शंकर को तपस्या करना अति प्रिय हैं, और वे तपस्या भी गौओंके साथ रहकर ही करते हैं, क्योकीं गौएं समस्त तपस्वियोंसे बढ़कर है, ---
गावोऽधिकास्तपस्विभ्यो यस्मात् सर्वेभ्य एव च ||
तस्मान्महेश्वरो देवस्तपस्ताभिः सहास्थितः|
( महाभारत• अनुशासनपर्व• ६६|३७-३८ )
तस्मान्महेश्वरो देवस्तपस्ताभिः सहास्थितः|
( महाभारत• अनुशासनपर्व• ६६|३७-३८ )
भगवान् शंकर अपने भक्तोंको भी गौएँ प्रदान करते हैं, बाणासुरसे प्रसन्न होकर ऊन्होंने ऊसे बारह हज़ार गौएँ दी थीं, जो समस्त संपत्तियों की शिरोमणि थीं | ऊषा- अनिरुद्धके विवाहमें बाणासुरने बहुत सारी दहेज-सामग्री भगवान् कृष्णको अर्पित की थी, परंतु भगवान् शंकरसे प्राप्त ऊन गौओंको ऊसने दहेजमें नहीं दिया था |
भगवान् श्री कृष्ण ईस तथ्य को जानते थे, अतः ऊन्होने गौओंकी मांग की , तब बाणासुरको भगवान् शंकर के कहने पर ऊन्हें गौएँ समर्पित करनी ही पड़ी |
भगवान् शंकर की गौभक्ति अद्भुत हैं, ऊन्होंने स्वयं नीलवृषभ के रुपमें गौमाता सुरभिके गर्भसे अवतार लिया |
भगवान् शंकर की गौभक्ति अद्भुत हैं, ऊन्होंने स्वयं नीलवृषभ के रुपमें गौमाता सुरभिके गर्भसे अवतार लिया |
स्कंदपुराणके नागर-खंडमें ईसकी कथा विस्तारसे आती हैं,
ऋषियोंसे श्राप पाकर वे गोलोक गए और वहां जाकर ऊन्होने गौमाता सुरभिकी ईस प्रकार स्तुति की ---
ऋषियोंसे श्राप पाकर वे गोलोक गए और वहां जाकर ऊन्होने गौमाता सुरभिकी ईस प्रकार स्तुति की ---
' हे सृष्टि, स्थिति और प्रलयकरनेवाली माता ! आपको बारंबार नमस्कार हैं | आप रसमय भावोंसे समस्त पृथ्वीतल, देवका, और पितरोंको तृप्त करती हों, रसभिज्ञ सभीसे आप परिचित हों, और मधुरस्वाद देनेवाली हों, संपूर्ण विश्वको आपनेहीं बल और स्नेहका दान दीया हैं | आप रुद्रोकी माता, वसुओंकी पुत्री, आदित्योकी बहन और संतोषमयी वाञ्छित फल देनेवाली हो | आप ही धृति, तुष्टि, स्वाहा, स्वधा, ऋद्धि, सिद्धि, लक्ष्मी, धारणा, कीर्ति, मति, कांति, लज्जा, महामाया, श्रद्धा, और सर्वार्थसाधिनी हो |
हे अनघे ! मैं प्रणत होकर आपकी पूजा करता हूँ, आप विश्वदुःखहारिणी हो, मेरे प्रति प्रसन्न हो | हे अमृतसम्भवे ! ब्राह्मणोंके प्रति शापसे मेरा शरीर दग्ध हुआ जा रहा हैं (जला जा रहा है) आप ऊसे शीतल करीए |
यह स्तवन करके शिवजी सुरभी माँ मे समा गए और ऊनके गर्भसे नीलवृष के रुप मे अवतार लिया |
ऊपरोक्त शिवजी रचित सुरभिस्तवन मे स्पष्ट होता हैं की पूरे संसार की अधिष्ठात्री एकमात्र कल्याणी गौमाता ही हैं, स्वयं त्रिदेवो की आधार ऊनकी शक्ति एकमात्र गौमाता ही हैं | ऊनके सिवा संपूर्ण ब्रह्मांड मे कोई अन्य ईतना कृपालु व दयालु हो ही नही सकता | ऊनके बीना संसार की कल्पना भी शून्य हैं |
ऊपरोक्त शिवजी रचित सुरभिस्तवन मे स्पष्ट होता हैं की पूरे संसार की अधिष्ठात्री एकमात्र कल्याणी गौमाता ही हैं, स्वयं त्रिदेवो की आधार ऊनकी शक्ति एकमात्र गौमाता ही हैं | ऊनके सिवा संपूर्ण ब्रह्मांड मे कोई अन्य ईतना कृपालु व दयालु हो ही नही सकता | ऊनके बीना संसार की कल्पना भी शून्य हैं |
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