“ मां ” इस एक शब्द में सब कुछ समाहित है , इसकी परिभाषा तो विश्व में एक नवजात शिशु के अलावा कोई और बयां नहीं कर सकता है ।
समस्त विश्व में यदि मां की पूर्ति कोई कर सकता है तो वो है - गौमाता ।
कितना प्यारा शब्द है “ गौमाता ” करुणा व प्रेम भाव से परिपूर्ण । लेकिन आज मानवीय हिंसा के चलते ना तो घर में “ बूढ़ी मां ” सुरक्षित है और ना ही हमारी “ गौमाता ” । आखिर मानव किस बात का प्रतिशोध लेने पर तुला हुआ है । परमात्मा ने धरती मां की संरचना की फिर उस पर प्रकृति की संरचना की और उसके बाद इन सबसे परे एक शिशु की रक्षा के लिए “ मां ” की रचना की , लेकिन प्रभु ने अपनी छवि का दर्शन देने हेतु “ गौमाता ” की रचना की ।
ईश्वर के समस्त गुणों तथा मातृत्व के प्रेम से परिपूर्ण गौमाता दर - दर भटक रही है , आखिरकार क्या ऐसी ताक़त है कि मानव स्वयं को ईश्वरीय शक्ति से भी बड़ा मानने पर उतारू है । विश्व में केवल “ मां और गौमाता ” ही ऐसी शक्तियां है , जो अदृश्य नहीं है , जिनकी कोई परिभाषा नहीं है , लेकिन मानव गौमाता की केवल स्वार्थवश ही सेवा करता है , और सेवा के नाम पर महज दिखावा ।
आज आदमी “ गौमाता ” के दूध से बनी महंगी - महंगी मिठाईयां और पकवान बड़े ही चटकारे ले - लेकर खाता है , परन्तु गौमाता को पालने की जब बात आती है तो चुपचाप खिसक जाता है । केवल गौमाता को थोड़े दिन पालकर दूध खाने वालों आखिर स्वार्थ पूर्ति होने पर इनको लावारिस क्यो छोड़ देते हो , क्या धर्म केवल पैसा कमाने तक ही सीमित हो गया है । अगर सेवा करनी है तो बड़े प्यार से और नि:स्वार्थ भाव से भी कर सकते है ।
धन - दौलत और पद - प्रतिष्ठा से मोह रखने वालों जीवन में सेवा नाम की भी एक बहुमूल्य दौलत है जिसे अर्जित करना धन - दौलत कमाने से कई गुना ज्यादा है । धन से व्यक्ति अपना कर्ज चुका सकता है ,किन्तु जीवन में किए गए अच्छे व बुरे कर्मो से मुक्ति पाने के लिए भी कुछ ना कुछ अर्जित करना ही पड़ता है वो है “ गौमाता की सेवा ”।
गौमाता का त्याग करने वालों को जरा शर्म करनी चाहिए , आपको पता है आपके द्वारा जिसकी उलाहना की जा रही है वो किन - किन संकटों के दौर से गुजरेगा। गांव - शहर , गली - मुहल्लों में ठोकरें खा - खाकर गौमाता कितना कष्ट सहन कर रही है , करे भी क्यो ना वो एक मां जो है । वैसे भी वर्तमान युग में मानव को मां - बाप के लिए वक़्त ही कहां मिलता है , बेटे अफसर जो बन गए ।
खैर जो भी हो परिस्थितियों को देखते हुए आज मानव इतना तो लायक है कि गौमाता के लिए साथ ही समस्त मूक प्राणियों के लिए खाने - पीने की व्यवस्था कर सके । गौशाला में जो सेवा की जा रही है , उसमे सभी गौमाता की सेवा कर पाना मुश्किल है । जीवन भर आदमी धन के पीछे भागता है और अंत समय में अपनी संतान के लिए सब कुछ छोड़ के चला जाता है , तो क्यो ना उस धन से गौमाता की रक्षा के लिए कोई पुण्य कार्य करे , ताकि परलोक बड़ी ही शांति से सुधर सके ।
हालांकि गौमाता को छोड़ने वाले कितने बड़े पाप के भागीदार बनेंगे , कहना मुश्किल है परन्तु उनको भूखी - प्यासी देखते हुए भी लोग मुंह मोड़ लेते है , यकीन मानिए आप अपनी मां के साथ छल कर रहे हैं । हर किसी व्यक्ति को गौमाता के पुण्य पाने का सौभाग्य नहीं प्राप्त होता है , लाखों योनियां भटकने के बाद मानव जीवन प्राप्त होता है , परमात्मा के इस प्रसाद का मजाक मत बनाइए , गौमाता की रक्षा कीजिए , बूचड़खानों में गौमाता को कटने से रोकिए । गौमाता के नाम पर संस्था चलाने वाले सेवाभावी लोगो को गौमाता की रक्षा करने के साथ उनको क्रूर एवम् हिंसक लोगो से बचाए रखना ही सच्ची सेवा है।
अतः समस्त गौपालक गौमाता को खुला ना छोड़े , आपके बाद उनका स्वामी कोई नहीं है , इसलिए गौमाता की सच्चे हृदय से सेवा करे । एक - एक गौ माता की सेवा एक - एक देश वासी यदि संपूर्ण प्रेमभाव व भाईचारे के साथ करे तो निश्चित ही हमारा सत्य सनातन धर्म पुनः स्थापित होगा एवम् देश की उन्नति होगी , जहां पुनः दूध की नदियां बहेगी और वही भारत जो सालों पीछे चला गया , हमारे समक्ष पुनः स्थापित होगा । इसलिए गौ सेवा , मातृ सेवा , राष्ट्र सेवा ,,, सत्य सनातन धर्म की सेवा ,,, गौमाता बचाए ,,,देश बचाए ,,,!