मंगलवार, 18 अगस्त 2020

गौमाता के आशीर्वाद से गोपालक बने द्वारिकाधीश



श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की सभी को बहुत बहुत शुभकामनाएं। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के साथ बहुत सी पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। लेकिन सबसे अहम है श्रीकृष्ण का गऊ माता से प्रेम और अटूट रिश्ता। श्रीकृष्ण के सैंकड़ो नामों में सबसे मधुर, प्रिय और प्रचलित नाम गौमाता से जुड़े गोपाल या गोविंद ही हैं। प्राचीन काल में सबसे पहले श्रीकृष्ण ने ही हमें गऊ माता की पूजा के लिए प्रेरित किया था। भगवान के जन्म के साथ ही कामधनु भी बहुला नाम से जन्म लेकर नन्द जी की गायों में शामिल हो गई थी। दरअसल भगवान श्रीकृष्ण ने मानव मात्र को सन्देश दिया कि गाय ही हमारे जीवन का आधार है। उन्होंने गाय के दूध, गऊमूत्र, गोबर यानी गोधन को लोगों के जीवन से जोड़ा। गोवर्धन पूजा के दिन गाय के गोबर से बने गोवर्धन की पूजा की जाती है। इसलिए गोवर्धन को आप गौसंवर्धन अथवा गोबरधन का अपभ्रंश मान सकते हैं। कथाओं के मुताबिक गोकुल में नंद बाबा के पास सवा लाख गायें थीं और उनकी गणना क्षेत्र के सबसे समृद्ध व्यक्तियों में होती थी। उस समय गौधन ही समृद्धि का प्रतीक था। जनता से कर के रूप में मथुरा का राजा कंस दूध, दही और मक्खन लेता था। श्रीकृष्ण ने अपने बाल्यकाल में गाय चराकर ग्वाले और गौपालक का कार्य किया और गोधूलि की महिमा अपने बाल सखाओ को बताई।
पूतना वध के बाद गोपियों ने कान्हा के अंगों पर पदमा गाय के गोमूत्र, गोरज व गोमय लगा कर उन्हें शुद्ध किया क्योंकि उन्होंने पूतना के मृत शरीर को छुआ था। गाय की पूंछ को चारों ओर घुमाकर उनकी नजर उतारती। तीनों लोकों के कष्ट हरने वाले श्रीकृष्ण के अनिष्ट हरण का काम गाय करती है।
बाल कृष्ण यमुना में अपने हाथों से मल-मल कर गायों को स्नान कराते हैं। अपने वस्त्रों से गायों का शरीर पोंछते हैं। बछड़ों को पुचकारते और सहलाते हैं। उनका श्रृंगार करते हैं और स्वयं चारा एकत्र कर अपने हाथों से खिलाते हैं। गौपालक कृष्ण गायों को वन में नंगे पांव चराने जाते थे। यह बताने के लिए कि गाय उनकी आराध्य हैं और आराध्य का अनुगमन पादुका पहनकर नहीं होता। कृष्ण गायों को चराने के लिए जाते समय हाथ में छड़ी नही बल्कि मुरली रखते थे।
श्री कृष्ण और बलदाऊ की शक्ति का रहस्य गौसेवा और पंचगव्य ही था। श्रीकृष्ण द्वारा ग्यारह वर्ष की अवस्था में मुष्टिक, चाणूर, मदमस्त हाथी और कंस का वध गोरस के अद्भुत चमत्कार के प्रमाण हैं। इसी गो दुग्ध का पान कर भगवान श्रीकृष्ण ने दिव्य गीता रूपी अमृत संसार को दिया। गौमाता की भक्ति से प्राप्त शक्ति ने गोकुल के माक्खनचोर गोपाल को द्वारकाधीश बना दिया। आज एक बार फिर हमें गाय के महत्व को समझना है। भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए गौ आधारित व्यवस्था की तरफ लौटना होगा। आइए, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर हम प्रण करें कि भारतीय नस्ल की गाय को न केवल बचाएंगे, बल्कि उसके संवर्द्धन के लिए गौ उत्पादों के प्रयोग को प्राथमिकता देंगे। श्रीकृष्ण भगवान का भी यही सन्देश है।

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