आयुर्वेद पध्दति से इलाज करने वाले "वैद्य" हजारों वर्षों से भारतीय जन को स्वास्थ प्रदान करते आये है। ऐलोपॅथी के इस युग में भी "वैद्य" गाँव - गाँव में विराजमान है व सेवा कर रहे है। आज भी भारत के लाखों गाँवो के निवासियों के जीवनदाता वैद्य ही है। गोमाता व वैद्य का रिश्ता हजारों वर्षों से अटूट बना हुआ है। गोरक्षण गो संवर्धन गोर्सेवा का कार्य इनकी रग रग में है। निम्न बिन्दु स्मरणार्थ समर्पित है :-
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१. पंचगव्यें (गोदुग्ध, गोबर, गोमूत्र, गोघृत, गोदहि) से निर्मित औषधियों का प्रयोग बीमारियों के इलाज में अधिक से अधिक करें तथा इसका प्रचार करें ।
२. स्वस्थ बने रहने में पंचगव्य के महत्वपूर्ण योगदान का प्रचार आम जन में करें ।
३. व्रणरोपन (ड्रेसिंग) में डेटॉल इत्यादि के बजाय "गो अर्क", त्वचा संबंधी विकारों में सोफ्रामायसिन के बजाय जात्यादि घृत जैसे विकल्प अपनायें ।
४. अर्वाचीन चिकित्सा (ऐलोपॅथी) से होने वाले दुष्प्रभावों (साईड इफेक्टस्) की जानकारी जन सामान्य को देवें । तुलनात्मक पंचगव्य औषधियों की सफलता की जानकारी भी देवें ।
५. पंचगव्य आयुर्वेद का विशेष रुचि के साथ अध्ययन करें। नये छात्रों को पंचगव्य आयुर्वेद अध्ययन की सलाह देवें ।
६. संगोष्टियों में पंचगव्य अनुसंधान पर शोधपत्र प्रस्तुत कर दुसरे वैद्यों को भी इस विषय से जुडने हेतु प्रोत्साहित करें ।
७. सब लोगों को भारतीय नस्ल की गाय के दुग्ध पान की प्रेरणा देवें ।
८. अपने कार्यस्थल पर गो माता का चित्र लगावें व घर में अनिवार्य रुप से गाय पालकर गो सेवा करें ।
९. गो पर्वो व गो उत्सवों जैसे गोपाष्टमी गोवत्सव्दादशी, बलराम जयंती (हलधर षष्ठी), श्री कृष्ण जन्माष्टमी इत्यादी मनाने की प्रेरणा लोगों को देने और स्वयं भी मनावें ।
१०. गो सेवा, गो शाला हेतु धन संग्रह करने में सहयोग देवें ।
११. स्वयं पंचगव्य औषधि निर्माण करें।
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