वर्तमान भारत में गौ दशा – एक गंभीर विचार
भारत भूमि को सदैव से गौमाता की भूमि कहा गया है। प्राचीन काल से ही गाय केवल एक पशु नहीं, बल्कि धन, धर्म और जीवन का आधार रही है। वेदों और धर्मशास्त्रों में गौ को ‘अघ्न्या’ अर्थात जिसे कभी न मारा जाए, कहा गया है। भारतीय कृषि प्रणाली, अर्थव्यवस्था और संस्कृति – सब कुछ गाय पर आधारित रहा है।
लेकिन आज स्थिति इतनी भयावह है कि कहना पड़ता है – गौ की दशा केवल शोचनीय नहीं, बल्कि यह भारत को एक गंभीर संकट की ओर ले जा रही है।
1. प्राचीन भारत में गौ का स्थान
- गाय को माता का दर्जा दिया गया – "गावः विश्वस्य मातरः"।
- गौ का दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर – पंचगव्य के रूप में आयुर्वेदिक चिकित्सा और यज्ञीय परंपरा का अंग रहा।
- कृषि में बैल हल चलाने और परिवहन का प्रमुख साधन थे।
- समाज और धर्म में गाय का वध घोर पाप माना गया।
2. वर्तमान स्थिति – उपेक्षा और संकट
- आवारा गौ: शहरों और गाँवों में हजारों गाय सड़क पर भटकती हैं।
- गोचर भूमि का नाश: सरकारी नीतियों और शहरीकरण ने चारागाह की जमीन खत्म कर दी।
- दूध के लिए प्रयोग, फिर त्याग: आधुनिक डेयरी सिस्टम में केवल दूध देने तक गाय की उपयोगिता समझी जाती है।
- सड़क हादसे और भूखमरी: सड़क पर भटकती गायें न केवल खुद पीड़ित होती हैं बल्कि सड़क दुर्घटनाओं का बड़ा कारण भी बनती हैं।
- पाश्चात्य देशों की तुलना: पश्चिम में गाय को वैज्ञानिक पद्धति से सँभाला जाता है, डेयरी फार्मिंग उन्नत है, जबकि भारत में परंपरा और आधुनिकता दोनों की अनदेखी है।
3. कारण – कहाँ चूके हम?
- सरकारी उदासीनता – गोचर भूमि का अतिक्रमण, गौशालाओं की उपेक्षा।
- आर्थिक दृष्टिकोण की कमी – गाय को केवल दूध से जोड़कर देखना, उसके अन्य उत्पादों (गोबर, गोमूत्र, जैविक खाद, ऊर्जा) को न समझना।
- सामाजिक लापरवाही – लोग गौमाता को पूजते तो हैं, पर उनकी सेवा और पालन से कतराते हैं।
- शहरीकरण और औद्योगिक खेती – पारंपरिक गो-आधारित कृषि से दूरी।
4. समाधान – भविष्य की राह
👉 भारत को इस संकट से बचाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे:
- गोचर भूमि का पुनः संरक्षण और विकास।
- गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाना, जहाँ दूध के साथ-साथ गोबर व गोमूत्र आधारित उद्योग विकसित हों।
- जैविक खेती को प्रोत्साहन, ताकि गाय फिर से कृषि की रीढ़ बने।
- जनजागरण – गौ सेवा केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि आर्थिक और पर्यावरणीय आवश्यकता है।
- सरकारी नीतियाँ – पशुपालन मंत्रालय को गौ संरक्षण के लिए अलग और सशक्त नीति बनानी चाहिए।
5. निष्कर्ष
गौ केवल धार्मिक प्रतीक नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति, कृषि और अर्थव्यवस्था का आधार है।
यदि आज हम गौ की रक्षा और संवर्धन के लिए नहीं जागे तो आने वाली पीढ़ियाँ न केवल गौमाता को खो देंगी, बल्कि कृषि-आधारित भारतीय जीवन पद्धति भी समाप्त हो जाएगी।
🌿 गौ रक्षा = भारत रक्षा।
समय आ गया है कि हम सब मिलकर गाय की स्थिति सुधारें और भारत को पुनः ‘गौमय भूमि’ बनाने का संकल्प लें।
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