मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

राम रक्षा से सुरक्षा अथवा कुत्ते से सुरक्षा ---- फैसला स्वयं लीजिये

राम रक्षा से सुरक्षा अथवा कुत्ते से सुरक्षा ---- फैसला स्वयं लीजिये---------

वर्तमान समय में एक बड़ा प्रचलन है की लोग अपने घरों में कुत्तों का पालन करते है | शास्त्रोक्त दृष्टि से तो घर में केवल गाय की सर्व-सम्मति से अनुमति देखी जाती है, इसके अतिरिक्त आप जिसको भी घर में रखे जैसे कुत्ते, बिल्ली, भेड़, बकरी या मुर्गा आदि, इसमें अधिकतर लोग अपना व्यापार का माध्यम देखते है अथवा भोजन का माध्यम । माँसाहारी इनमे से मॉस और शाकाहारी दूध आदि के दृष्टिकोण से इनको लाभ से रखते है पर इनका घर में होना क्लेश-झगड़ा या अन्य-उत्पात ही है | ऐसा प्राय देखने में समझने में आता है | अब यहाँ मुख्यता जो गौ-पालन करते है वे तो विशेष रूप से धन्यवाद के पात्र है साथ ही साथ वे बड़े बडभागी हैं | भगवान के प्रेम द्वारा उनका सीचंन होता है | जैसे यह तो सब मानते है के सन्तों का पालन भगवान करते है ऐसे ही गौ-पालन में सहयोगी लोगों का भी पालन भगवान ही करते है बशर्ते वे अपने को प्रेम से, ईमानदारी से और भक्ति से इस कार्य में जोड़े |

वर्ष १९८० तक गौ-पालन बहुतायत में देखा जाता था । उस समय तो गौ-दूध की नदी, दूध, घी, छाछ सब ऐसे था जैसे कि आज के समय में पाश्चात्य संस्कृति (बेशर्म माँ-बाप-बेशर्म संताने), वाहियात हरकते (स्त्री-पुरुष का खुलेआम भोग्य-वस्तु बन कर रह जाना, वर्ण संकरता (अपने धर्म से द्वेष- दुसरे के धर्म में प्रेम जिसका परिणाम हानि-हानि और केवल हानि है ) देखने में आति है | बस हुआ इतना कि समय की पलटी हुई, आज पाप-रुपी धन बढ़ा और उसकी रक्षा के लिए लोगों ने पाप-रुपी नियम से पाप की रक्षा के लिए अपनी पाप-बुद्धि लगा ली है |

आप एक बार गम्भीरता से तो सोचिये क्या पाप बुद्धि से पाप का पैसा, पाप रुपी नियम से कमाया हुआ आपको सद्बुद्धि, सद्व्यवहार, सद-संगति देगा ।

आज क्या है जगह जगह गौ-पालन, गौ-रक्षा, गौ-सवर्धन, गौ-वृद्धि, गौ-रक्षा निति की चर्चा सुनने में आती है, देखि भी जाती है, कुछ इसमें से इमानदारी और कुछ इसमें भी अपनी पाप बुद्धि को नहीं छोड़ते ... ऐसा स्पष्ट दिखाई देता है ...

पहले गाव में कुआ, गौ-शाला, मंदिर, श्मशान इन चार जगह को एक-दम प्रमुखता दी जाती थी, आज यह जो अधुनिकीकरण (URBAN-SECTOR) ने कुआँ को कबाड़-खाने ने, गौ-शाला को सरकारी निति ने, श्मशान को गरीबी रेखा ने, और मन्दिर को पुजारी जी ने पूर्ण रूप से अतिक्रमित कर लिया है ... ऐसा जायदातर दीख जायेगा |
आज URBAN-SECTOR एक बड़ी प्रतिष्ठा का विषय बन गया है | आज हमारे भाई-बहनों को गाँव का नाम लेने में भी शर्म आती है, और जब ऐसा माहौल हो तो लाखों में कोई एक विरला इस पर अपना समय देता है की आज की क्या दशा हो रही है | उसके भाव-विचार फिर उसकी औलाद उसको केक-पिज़्ज़ा-बर्गर-ड्रिंक-चोकलेट खिला खिला के खतम कर देती है |

आज के समय के भाई-माता-बहनों की बात सुन लीजिये- कुत्ते की पूछ सहलाना, उसको सैम्पू से नहलाना, उसकी पोटी साफ़ करना, उसके साथ किस्सिंग आज के समय जिसको प्यार भी कहते है करना बड़ा पसन्द है, और मैंने तो यहाँ तक देखा है, कुछ उपन्यास से पढ़ा भी है के लोग कुत्तों को अपने साथ बिस्तर पर सुलाते भी है | उसी को धीरे धीरे सब परिवार ऐसी ही वाहियात हरकते कर-करके अपनी (बर्बादी) वर्तमान में और भविष्य की गारन्टी शास्त्र लेते है की जैस कर वैसा भोग |

उनको गाय से डर लगता है, अकेले कुत्ते से कोई बात नहीं पर संस्कारित गौ माँ से डर लगता है, गोबर में बदबू आती है जबकि कुत्ते की टट्टी में तो यह तो चलता है, प्रति महिना कुत्ते पर कम-से-कम २०००-५००० का खर्चा करना कोई बड़ी बात नहीं पर गौ-माता के लिए गौ-रोटी तो निकलती नहीं गौ-ग्रास भी उस दिन दिखावे को के आज दादा जी का पुण्य-तिथि-श्राद्ध है चलो कुछ पुण्य कमा लेते है दादा-जी खुस रहेंगे.. आदि आदि. कुत्ते को भोग (sex) भी उसके स्वाद के अनुसार करवाना है जिसका आजकल खर्चा १०००० तो सामान्य है, पर गौ-शाला में एक-हज़ार भी साल में एक बार दे दिए तो पूरी रिश्तेदारी में यह खबर दो की यह पुण्य कार्य कर दिया, और कुछ तो इसमें भी इश्ताहर, या बड़ा ढोग-ढकोसला जिससे घर के नौकर से लेकर गौ-शाला तक के मालिक की झूठी वाहवाही के लिए बेताब नहीं तो अगली बार जगह बदल देनी है |

अच्छा बड़े मजे की बात देखिये की 'कुत्ता वफादार होता है', पर धैर्य से सोचिये किसका? और गौ-किसका बुरा करती है --- वो तो माँ है – “पुत्रो कुपुत्रो भवति माता कुमाता न भवति” पुत्र ख़राब हो सकता है पर माँ कभी ख़राब नहीं होती |

पाप का धन कुत्ता तो क्या कुत्ते का बाप भी नहीं बचा पायेगा, आप रामायण देखिये उसमे स्पष्ट लिखा है 'पापी का धन प्रलय जाई, ज्यो कीड़ी संचय तीतर खाई' तो आप एक कुत्ता पालिए, दो पालिए या दर्जनों कुत्ते पालिए, रक्षा होगी आपकी, परिवार की, यह आपका फैसला है, पर एक विनम्र-विन्तीं हमारी भी सुन लीजिये ...

चेतावनी ---- चेतवानी ---- चेतावनी -----

गौ-पालन कुत्ते के पालन से कहीं जायदा लाभकारी है , बल्कि यह तुलना करना ही हमारी नीचता हो रही है यहाँ तो... गौ पालन का किसी से कोई तुलना नहीं हजारों रुद्राभिषेक और सैकड़ो भागवत-गीता-रामायण पाठ गौ-पालन की तुलना नहीं कर सकते फिर यह एक छोटा सा पशु कुत्ता तो है क्या ? ---

आप जन्मे तब से लेकर मरोगे तब तक मानो या मत मानो गौ-संदर्भित पदार्थ आपको लेने होंगे,,, तो क्यूँ न आज से चेतना जगा ले...

भारत में कम से कम १५० से जायदा भाषा और ३० स्टेट हैं,... गौ-की आज बहुत बुरी हालत है इसके लिए सबसे जायदा धनी-पढ़े लिखे-शक्ति-सम्पन्न और ऐश्र्वर्य प्रधान भोगी लोग जिम्मेदार है ....

आप जितना कुत्ते पर खर्च करते हो उसका २५% ईमानदारी से गौ-सेवा में लगा दीजिये... नहीं तो जितना कुत्तों पर खर्च करते हो उसका कितना ज्यदा गुना पाप भोगन पड़ेगा सोच नहीं सकते ....

धर्मिक-अनुष्ठान उतने जरुरी नहीं जितना यह गौ-सरक्षण जरुरी है ....

आपको भगवान ने विद्या दी, धन दिया, ऐश्वर्या दिया, तो इसका अर्थ यह नहीं आप गौ-माता के प्रति अंधे-बहरे-लंगड़े-लूले बनोगे... यह सारा का सारा आपको अस्पतालों में देना पड़ेगा, कानूनी पचड़ों में देना पड़ेगा, और अन्त में रोना पड़ेगा वह अलग ... तब भी गौ-माता ही याद आयेगी ...

रे मूर्ख प्राणी ! क्या तू आज इतना मद-वाल हाथी हो गया की कोई तेरा अन्त-नहीं कर सकता, ध्यान से देख ये कुत्ता जिसको तू प्रेम से गले में रस्सी बाध कर खीच रहा है न, यह भी तेरी जिंदगी को भी कुते-के जैसा न कर दे तो याद रखना ...

यह समय बहुत महंगा है... समय निकले जा रहा है ..अपनी विद्या, बल, बुद्धि, शक्ति का अगर गौ-सेवा में नहीं लगेयेगा तो तेरा अन्त भी इस कुत्ते के अन्त की तरह से ही होगा ... देख लेना

------ क्षमा कीजिये हमरा लेख किसी व्यक्ति-विशेष-धनी-विद्या-शक्ति-सम्पन्न-ऐश्वर्य भोगी के लिए न होकर आज के समय में सामान्यत सनातनी जो अपने धन-बल-विद्या-शक्ति में चूर होकर गौ-माता की उपेक्षा कर रहे है उनको केवल चेतवानी रूप लेख देने की है ..

यह लेख पूर्ण रूप से भगवद-भाव से भगवत्कृपा से गौ-रक्षा-निमित ही बना है सो इसको जितना जायदा लोगों तक ले-जा सके तो गौ-रक्षा में सहयोगी बन कर गौ-माता का आशीर्वाद लेना चाहिये...

जय गौ माँ ! जय गौ माँ ! जय गौ माँ ! जय गौ माँ !

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