बुधवार, 11 दिसंबर 2013

घटना सन १९४७ ही है |

भारत माता के अंग-भंग, खण्ड-खण्ड होकर पाकिस्तान बनने की घोषणा होते ही समस्त पंजाब, सिंध, बंगाल के मुस्लिम गुंडों ने हिन्दुओं को मारना-काटना तथा ग्रामों को आग की लपटों में भस्मीभूत करना प्रारम्भ कर दिया था | हिन्दुओं को या तो तलवार के बल पर हिन्दूधर्म छोड़ कर मुसलमान बनने को बाध्य किया जा रहा था, अन्यथा उन्हें मार मार कर भगाया जा रहा था |

पंजाब के ग्राम टहलराम में भी मुसलमानों ने हिन्दूओं को आतंकित करना प्रारम्भ कर दिया | गुंडों की एक शाश्स्त्र भीड़ ने हिन्दुओं के घरों को घेर लिया और हिन्दुओं के सम्मुख प्रस्ताव रखा की - 'या तो सामूहिक रूप से मुसलमान हो जाओं, अन्यथा सभी को मौत के घाट उतार दिया जायेगा |' बेचारे बेबस हिन्दुओं ने सोचा की जब तक हिन्दू मिलिट्री न आये इतने समय तक कलमा पढने का बहाना करके जान बचाई जाय | उन्होंने मुसलमानों के कहने से कलमा पढ़ लिया, किन्तु राम राम का जप करते रहे |

'ये काफ़िर हमे धोखा दे रहे हैं | हिन्दू-सेना के आते ही जान बचा कर भाग जायेंगे | इन्हें गौ-मॉस खिला कर इनका धर्म-भ्रष्ट किया जाय और जो गौ-मॉस न खाये उसे मौत के घाट उतार दिया जाय |' एक शरारती मुसलमान ने धर्मान्ध मुसलमानों की भीड़ को सम्बोधित करते हुए कहा |

'ठीक है, इन्हें गौ-मॉस खिला कर इनकी परीक्षा ली जाय |' मुसलमानों की भीड़ ने समर्थन किया |

मुसलमानों ने गाँव टहलराम के प्रतिष्टित व्यक्ति तथा हिन्दुओं के नेता पंडित बिहारीलाल जी से कहाँ की -'आप सभी लोग गौ-मॉस खाकर यह सिद्ध करे की अप हृदय से हिन्दू-धर्म को छोड़ कर मुसलमान हो गए है | जो गौ-मॉस नहीं खायेगा, उसे हम काफ़िर समझ कर मौत के घाट उतार डालेंगे |'

पंडित बिहारीलाल जी ने मुस्लिम गुंडों के मुख से गौ-मॉस खाने की बात सुनी तो उनका ह्रदय हाहाकार कर उठा ! उन्होंने मन में विचार किया की धर्म की रक्षा के लिए प्राणोत्सर्ग
करने, सर्वस्व समर्पित करने का समय आ गया है | उनकी आँखों के समुख धर्मवीर हकीकतराइ तथा गुरु गोविन्दसिंह के पुत्रों द्वारा धर्म की रक्षा के लिए प्राणोत्सर्ग करने की
झाकी का मॉस गर्म-गरम चिमटों से नुचवाये जाने का द्रश्य सामने आ गया |

पंडित बिहारीलाल जी ने विचार किया की i गौ-हत्यारे, धर्म-हत्यारे मलेच्छो के अपवित्र हाथों से मरने की अपेक्षा स्वयं प्राण देना अधिक अच्छा है | हमारे प्राण रहते ये मलेच्छ
हमारी बहिन-बेटियों को उड़ा-कर न ले जायँ और उनके पवित्र शरीरों को इन पापात्माओं का स्पर्श भी न हो सके, ऐसी युक्ति निकालनी चाहिए |

पंडित बिहारीलाल जी ने मुसलमानों से कहाँ की 'हमे चार घंटे का समय दो, जिससे सभी को समझाकर तैयार किया जा सके |' मुसलमान तैयार हो गए |

पंडित बिहारीलाल जी ने घर जाकर अपने समस्त परिवारवालों को एकत्रित किया | घर के एक कमरे में पत्नी, भीं, बेटियाँ, बालक, बूढ़े आदि- सभी को एकत्रित करके बतया की 'मुसलमान नराधम गौ-मॉस खिलाकर हमारा प्राणप्रिय धर्म भ्रष्ट करना चाहते है | अब एक और गौ-मॉस खा कर धर्म भ्रष्ट करना है, दूसरी और धर्म की रक्षा के लिए प्राणोत्सर्ग करना है | सभी मिलकर निश्चय करों की दोनों में से कौन सा मार्ग अपनाना है |'

सभी स्र्त्री-पुरुष, बाल-वृद्धो ने निर्भीकतापूर्वक उत्तर दिया - 'गौ-मॉस खाकर, धर्म-भ्रष्ट होकर परलोक बिगाड़ने की अपेक्षा धर्म की बलिदेवी पर प्राण देने अच्छे हैं | हम सभी मृत्यु का
आलिन्गन करने को तैयार है |'

पंडित बिहारीलाल जी ने महिलाओं को आदेश दिया -'तुरन्त नाना प्रकार के सुस्वादु भोजन बनाओं और भगवान को भोग लगा कर खूब छक कर खाओं, अंतिम बार खाओं और फिर सुन्दर
वस्त्राभूषण पहनकर धर्म की रक्षा के लिए मृत्यु से खलेने के लिए मैदान में डट जाओं |'

तुरंत तरह-तरह के सुस्वादु भोजन बनाये जाने लगे | भोजन बनने पर ठाकुर जी को भोग लगाकर सबने डटकर भोजन किया तथा अच्छे से वस्त्र पहिने | सजकर एवं वस्त्राभूषण धारण करके
सभी एक लाइन में खड़े हो गये | सभी में अपूर्व उत्साह व्याप्त था | पंडित बिहारीलाल जी का समस्त परिवार गौ-रक्षणार्थ, धर्म-रक्षणार्थ प्राणों पर खेल कर सीधे गौ-लोक धाम जाने के लिए,
शीघ्रअतिशीघ्र मृत्यु का आलिन्गन करने के लिए व्याकुल हो रहा था |

सभी को एक लाइन में खड़ा करके पंडित बिहारीलाल जी ने कहा - 'आज हमे हिन्दू से मुसलमान बनाने और अपनी पूज्य गौ-माता का मॉस खाने के लिए बाध्य किया जा रहा है | हमे धमकी
दी गयी है की यदि हम् गौ-मॉस खा कर मुसलमान नहीं बनेगे तो सभी को मौत के घाट उतार दिया जायेगा | हम सभी अपने प्राण-प्रिय सनातन धर्म की रक्षा के लिए, गौ-माता की रक्षा के लिए
हसँते-हसँते बलिदान होना चाहते है |'

सबने श्रीभगवतस्मरण किया, और पंडित बिहारीलाल जी ने अपनी बन्दुक उठाकर धाय ! धाय !! करके अपनी धर्मपत्नी, पुत्रियों, बंधू-बान्धवों तथा सभी को गोली से उड़ा दिया | किसी के
मुख से उफ़ तक न निकली - हसते हुए, मुस्कुराते हुए गौ-रक्षार्थ, धर्म रक्षार्थ बलिदान हो गए | घर लाशों के ढेर से भर गया |
अब पंडित बिहारीलाल एवं उनके दो भाई ही जीवित थे | दोनों ने आपस में संघर्ष हुआ की 'पहले आप मुझे गोली मारे', दुसरे ने कहाँ, नहीं 'पहले आप मुझे गोली का निशाना बनाये |'

अन्त में दोनों ने अपने-अपने हाथों में बन्दुक थाम कर आमने-सामने खड़े होकर एक-दुसरे पर गोली दाग दी | पूरा परिवार ही धर्म की रक्षा के लिए बलिदान हो गया !

ग्राम के अन्य हिन्दुओं ने जब पंडित बिहारीलाल जी के परिवार के इस बलिदान को देखा तो उनका हो खून खौल उठा | वे भी धर्मपर प्राण देने को मचल उठे | मुसलमान शरातियों के आने से
पूर्व ही हिन्दुओं ने जलकर, कुओं में कूद कर एवं मकान की छत से छलांग लगाकर प्राण दे दिए, किन्तु गौ-मॉस का स्पर्श तक नहीं किया |

मुसलमानों की भीड़ ने जब कुछ समय पश्चात पुन: ग्राम टहलराम में प्रवेश किया, तब उन्होंने ग्राम की गली-गली में हिन्दू वीरों में लाशें पड़ी देखीं | पंडित बिहारीलाल के मकान में घुसने पर लाखों का ढेर देखकर तो गुंडे दांतों-तले अँगुली दबा उठे |

गोसेवा के चमत्कार (सच्ची घटनाएँ), संपादक - हनुमानप्रसाद पोद्दार, पुस्तक कोड ६५१, गीताप्रेस गोरखपुर, भारत

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