वन्दे धेनु मातरम
भारतीय संस्कृति में कृषि व गौपालन का अति उत्तम स्थान रहा है। एक दो नहीं लाखों करोड़ों गाँव वाले इस देश में दूध दही की नदियाँ बहती थी। हर परिवार की कन्या दुहिता यानी दुहने वाली कहलाई । ब्रह्म मुहूर्त में उठते ही गृहनीयाँ झूमती हुई दही बिलोती और माखन मिश्री खिलाती थीं व अन्न्दा सुखदा गौमाता के लिए भोजन से पहले गौग्रास निकालना धर्म का अंग था। तेरहवी सदी में मक्रोपोलो ने लिखा की भारतवर्ष में बैल हाथिओं जैसे विशालकाय होते हैं, उनकी मेहनत से खेती होती है, व्यापारी उनकी पीठ पर फसल लाद कर व्यापार के लिए ले जाते हैं। पवित्र गौबर से आँगन लीपते हैं और उस शुद्ध स्थान पर बैठ कर प्रभु आराधना करते हैं। "कृषि गौरक्ष्य वाणीज्यम" के संगम ने भारतीय अर्थव्यवस्था को पूर्णता, स्थिरता, व्यापकता वः प्रतिष्ठा दी जिसके चलते भारत की खोज करते भारत से कल्पतरु (गन्ना) और कामधेनु (गाय) लेकर गया. माना जाता है की इनकी संतति से अमरीका इंग्लैंड डेनमार्क आस्ट्रेलिया न्युजीलैंड सहीत समस्त साझा बाज़ारके नौ देशों में गौधन बढा,वह देश सम्पन्न हुए और(भारत) सोने की चिडिया लुट गयी. अंग्रेजी सरकार ने फ़ुट डालने के लिए गौकशी का सहारा लिया और चरागाह सम्बन्धी नाना कर लगाये गाय बैलों को उनकी गौचर भूमि पर भी चरना कठिन कर दिया .
स्वतंत्रता संग्राम के सभी सेनानियों ने गौरक्षा के पक्ष में आवाज उठाई. महामना मदन मोहनजी मालवीय, देश की स्वतन्त्रता का अर्थ गोरक्षा से लगाते थे. यानी देश के आजाद होने पर कलम की पहली नौक से देश में गोहत्या रोक दी जाएगी ऐसा संकल्प पूजनीय मालवीय जी, लोकमान्य तीलक जी और महात्मा गाँधी जी जैसी महान विभुतिओं का था. रास्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने कितनी ही बार गोरक्षा को देश की स्वतन्त्रता बड़ा प्रश्न कहा था.जिस पार्टी की यह बात है वोह तो दो बैलों की जोड़ी फिर गाय बछड़ा देश को दिखा कर हाथ दिखा चुकी लेकिन हमे गर्व है की हमारी पार्टी, जो की भारत की जनता की अपनी पार्टी है, ने गोवंश की महता समझते हुए गोवंश विकास प्रकोस्ट की स्थापना की
स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माताओं ने मूलभूत अधिकार ५१-a और निर्देशक सिधांत४८-a में पृकृति सुरक्षा व राज्य सरकारों को कृषि और पशुपालन को आदुनिक ढंग से संवर्द्धित व विशेषत: गाय बछड़े एवम दुधारू व खेती के लिए उपयोगी पशुओं की सुरक्षा का निर्देश दिया आज का द्रश्य बिल्कुल विपरीत है। अनुपयोगी पशुओं के नाम पर उपयोगी पशुओ का निर्मम यातायात व अवैधानिक कत्ल देश के हर कोने में हो रहा है ।
तात्कालिक लाभ के लिए देश की वास्तविक पूंजी को नष्ट किया जा रहा है । गाँव, नगर, जिला राज्य या देश की आवश्यकता ही नहीं, विदेशी गौमांस की जरूरतें मूक पशुओं की निर्मम हत्या कर पूरी की जा रही हैं. मुम्बई का देवनार आन्ध्र का अल कबीर या केरला का केम्पको यांत्रिक कसाई खानों का जाल प्रति वर्ष लाखों प्राणियों का संहारकर रहा है
मांस का उत्पादन ही नहीं वरन विभिन्न यांत्रिक उपयोगों ने, रासायनिक खाद प्रयोगों ने ग्राम शहरीकरण व विदेशी चालचलन ने इन मूक प्राणियों को ग्रामीण विकास, अर्थव्यवस्था व रोजगार से दूर कर दिया है. आज रहट की जगह नलकूप, हल की जगह ट्रेक्टर, कोल्हू की जगह एक्सपेलर, बैलगाडी के स्थान पर टेंपो, उपलों की जगह गैस, प्राकृतिक खाद की जगह रासायनिक खाद आदि ले चुकी हैं। इस प्रदूषण और प्राणी हनन के परिणाम आज असहनीय हो चुके हैं.
हमारा नित्य आहार रासायनिक हो विषयुक्त हो चूका है . कृषि की लागत कई गुना बढ़ चुकी है. गाँव में रोजगार के अवसर निरंतर घट रहे हैं. पर्यावरण दूषित हो रहा है. कीमती विदेशी मुद्रा खनिज तेल व रासायनिक खाद के आयात में बेदर्दी से खर्च हो रही है .कभी २ डालर(८५/-) प्रति बैरल का तेल जल्द २०० डालर ८,४००/- हो सकता है स्त्री शक्ति पशु पालन का अभिन्न अंग है। मूक पशु के निर्मम संहार ने इcvसके उत्थान को रोक लगा दी है। आज जगह जगह अन्नदाता कृषक आत्महत्या करने पर मजबूर है ।भारतवर्ष की लगभग ४८ करोड़ एकड़ कृषि योग्य भूमि तथा १५ करोड़ ८० लाख एकड़ बंtजर भूमि के लिए ३४० करोड़ टन खाद की आवश्यकता आंकी गई है। जबकि अकेला पशुधन वर्ष में १०० करोड़ टन प्राकृतिक खाद देने में सक्षम है । उपरोक्त भूमि को जोतने के लिए ५ करोड़ बैल जोड़ीयों की आवश्यकता खेती, सिचाई, गुडाई परिवहन, भारवहन, के लिए है. इतनी पशु शक्ति आज भी हमारे देश में प्रभु कृपा से बची हुयी है. उपरोक्त कार्यों में इसका उपयोग कर के ही कृषि तथा ग्रामीण जीवन यापन की लागत को कम किया जा सकता है. प्राकृतिक खाद, गौमुत्र द्वारा निर्मित कीट नियंत्रक व औषधियों के प्रचलन और उपयोग से रसायनरहित पोष्टिक व नैसर्गिक आहार द्वारा मानव जाति को दिघ्र आयु कामना की जासकती है .देश की लगभग १५,००० छोटी बड़ी गौशालाओं के कंधे पर बड़ा दायित्व है. अहिंसा, प्राणी रक्षा तथा सेवा में रत्त यह संस्थाएं हमारी संस्कृति की धरोहर हैं जो विभिन्न अनुदानों व सामाजिक सहायता पर निर्भर चल रही हैं. अहिंसक समाज का अरबों रुपिया देश में इन गौशालाओं के संचालन पर प्राणी दया के लिए खर्च हो रहा है. समय की पुकार है की बची हुई पशु सम्पदा के निर्मम हनन को रोका जाये और पशु धन की आर्थिक उपयोगिता सिद्ध की जाये.
आमजन के मानस में मूक प्राणी के केवल दो उपयोग आते हैं. दूध व मांस यानी गौपालक गाय की उपयोगिता व कीमत उसकी दुग्ध क्षमता पर आंकता है और जब की कसाई उपलब्ध मांस हड्डी खून खाल आदि नापता है. गौपालक को प्रति प्राणी प्रति दिन रु.१५-२० खर्च ज्कारना होता है और येही २५०-३०० किलो की गाय या बैल लगभग २-३,००० में कसाई को मिल जाता है जब तक यह गाय दुधारू होती है गौपालक पालन करता है अन्यथा कसाई के हाथों में थमा देता है. पशु शक्ति, गोबर, गौमुत्र की आय या उपयोगिता का कई हिसाब ही नहीं लगाया जाता है. जो जानवर २-३,००० में ख़रीदा गया, २-३ दिनों में कत्ल कर रु.१००/- प्रति किलो २०० किलो गोमांस, चमडा रु.१,०००/- १५-२० किलो हड्डियाँ रु. २०/- प्रति किलो से और १२ लीटर खून दवाई उत्पादकों यो गैरकानूनी दारू बनाने वालों को बेच दिया जाता है. प्रति प्राणी औसतन २०-२५,००० का व्यापार हो जाता है. प्रति वर्ष अनुमानत: ७.५ करोड़ पशुधन का अन्तिम व्यापार रु. १८७५ अरब का आंका जासकता है . इस व्यापार पर कोई सरकारी कर या रूकावट नहीं देखने में आती है. गौशालाएं दान से और कसाई खाने विभिन्न नगरपालिकाओं द्वारा करदाताओं के पैसे से बना कर दिएजाते है।
कानून की धज्जियाँ उड़ते देखने को आइये आपको इस पूर्ण कार्य का भ्रमण कराते है. इस अपराध की शुरुआत सरकारी कृषि विपन्न मंडियों से होती देखी जासकती है. मंडीकर की चौरी के साथ में विपन्न धरो का साफ उलंघन यहाँ देखा जा सकता है. पशु चिकत्सा व पशु संवर्धन विभाग के अधिकारियो से हाथ मिला कर कानून के विपरीत पशु स्वास्थ्य प्रमाणपत्र के अंदर, वहां नियंत्रक, नाका अधिकारियों को नमस्ते कर, पुलिस को क्षेत्रिय राजनीतिज्ञों की ताकत प्रयोग में ला कर मूक प्राणी एक गाँव से दुसरे गाँव, शहर, तालुक जिला तथा राज्य सीमा पार करा कसाईखाने तक पहुंचा दिए जाते है.. इन सरकारी या गैर कानूनी कसयिखानो पर भी माफियों का एकछत्र राज देखा जासकता है. स्वास्थ्य, क्रूरता निवारण, पशु वध निषेध आदि बिसीओं कानूनों की धज्जिँ उडाते हुए बिना किसी चिकित्सक निरक्षण के विभिन्न रोगों ग्रस्त मांस जनता की जानकारी बिना परोसा जा रहा है
साथिओं, जनमानस के सोच का पता चलता है गतवर्ष की विश्व मंगल गौ ग्राम यात्रा से, जिसका पूर्ण देश के ४,११,७३७ ग्रामो और शहरों में स्वागत हुआ और जाति, धर्म, क्षेत्र की सीमाओं को तोड़ते हुए ८ करोड़ ५० लाख हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, ग्रामीण, शहरी, आदिवासी भारत के नागरिक गोभक्तो ने हस्ताक्षर किये जो महामहिम रास्त्रपति जी को दिए गये
हम क्या चाहते हैं ? हम चाहते हैं पूर्ण गोवंश रक्षा आज जहाँ भी भारतीय जनता पार्टी की सरकारें आई हैं हमने पूर्ण गोवंशहत्या पर रोक लगाने का अहम् प्रयास किया है और केन्द्रीय सरकार पर पूर्ण दबाव बना रहे हैं. हमे जवाब मिलता है की यह तो राज्य का विषय है. मैं कर्णाटक से हूँ और हमारे जनप्रिय मुख्यमंत्री ने कर्नाटक गोवंश हत्यानिषेध एवम संवर्धन बिल, २०१० विधानसभा में विपक्ष के, विरोध के कारण विरोध, का सामना करते हुए पास करवाया. पूर्ण प्रान्त में ख़ुशी की लहर थी लेकिन 'महामहिम' राज्यपाल महोदय ने जनमानस को धत्ता बताते हुए वह बिल महामहिम रास्ट्रपत्ति महोदया के पास राय के लिए भेज दिया जो माननीय मुख्य मंत्रीजी सहित विभिन्न उच्त्तम प्रतिनिधिमंडलों के मिलने, जानकारी देने के बाद भी, गत ६ मास से दफ्तरों की धुल खा रहा है.आज भी देश के कई राज्यों में गोवंशहत्या का निर्माणकार्य कानून ना होने के कारण गोभ्क्तों की आँखों के सामने चल रहा है.
देश के संविधान के निर्देश सिधांत ४८ का गोवंश हत्या को रोकने में प्रयोग होना चाहिए था लेकिन साथिओं गोहत्या में उपयोग हो रहा है . इस मूक प्राणी को अनुपयोगी और कृषक पर भार बताते हुए १२ वर्ष के ऊपर के बैल काटना वैधानिक घोषित यानी कसाई के हाथ में तलवार देना हो गया है और इस छुट के आधार पर सुंदर, सुद्रढ़ बैलों की जोदियन तो काटी ही जा रही हैं इनके साथ में नवजात बछड़े, बछियाँ भी स्वादिस्ट गोमांस के लिए काटी जा रही हैं. जिन राज्यों, जैसे केरल, आसाम, आदि में यह गोरक्षा कानून भी नही है या जो बंगलादेश, पाकिस्तान से जुड़े हैं उनके हम उनके गोवंश आपूर्तिकर्ता हो गये हैं
साथिओं, देश में सरकार कसाईखाने बनाती है, हर शहर में बनाती है जैसे कोई बहुत बड़ा सामाजिक उत्थान कार्य हो और फिर कसायिओं को नीलामी में इतने कम पैसे में दे दिया जाता है जिसमे उस कसाई खाने में एक अर्ध कालिक सफाई कर्मचारी भी नियुक्त नही किया जा सकता. गोवंश सुरक्षा का तो प्रश्न ही नहीं उठता.
देश की कृषि उत्पाद मंडियां, जिन,मे गोवंश भी एक वस्तु माना गया है, प्रति सप्ताह कसाई और उनके दलालों से भारी पाई जाती हैं और जिस देश के मोटर यातायात नियम एक ट्रक में ४-५ से ज्यादा पशु लड़ने पर रोक लगाते है, उस देश में सरकारी पुलिस, यातायात, वन,मंडी, पशु कल्याण विभागों के विभिन्न विधि विधानों को तोड़ते हुए एक ग्रामसे दुसरे ग्राम, एक जिले से दुसरे जिले, एक राज्य से दुसरे राज्य की सभी व्यवस्थाओं के साथ समझोता करते हुए, कसाईखानों में पहुंचा दिए जाते हैं. मुझे भारत सरकार के जीव जंतु कल्याण बोर्ड के कर्णाटक केरल प्रभारी होने के नाते माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार कर्नाताकौर केरल के पशु व्यापर और कसाईखानों का दौरा करना पड़ा और जिंदा गाय को कैसे कटा जारहा है देखने का दुर्भाग्य भी झेलना पड़ा. लेकिन, उस रिपोर्ट को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मान्य किया और पूर्ण देश के कसाईखानों के लिए निर्देश भी जारी किये.
' नहीं पहुँचते अल्लाह के पास लहू-गोस्त के लुकमे - पहुँचती है परहेजगारी" कोई भी धर्म हिंसा, नहीं सिखाता,
हमारे देश में शिक्षा विभाग को हमे चेताना और विद्यार्थिओं को सही मार्ग दर्शन देना होगा साथिओं इस ११२ करोड़ की विशाल जनसंख्या वाले देश में सरकारी आंकड़ो के अनुसार देशी- विदेशी नर मादा बछड़े बछिया सभी मिला कर भी २८ अक्तूबर, २०१० को गोवंश 32,57,58,250 पाया गया है. अगर भैसों को भी मिलालें तो यह ४५ करोड़ माना गया है.
हालाँकि इसका ७०% भी गोवंश शायद नहीबचा है. सरकारी आंकड़ो को सही मानलें तो हमारे पास लगभग २०.५ करोड़ गोमाता हैं जो प्रति वर्ष कम से कम ६ करोड़ नये गोवंश को जन्म देती हैं और यह ६ करोड़ औरइसही अनुपात से १० करोड़ भैंस भी लगभग ३ करोड़ भैसों को जन्म देती हैं. यह प्रजनन पूर्णतया गोचर ही नहीं होता. यानी लगभग ९-१० करोड़ गाय- बैल, भैंस, रु. २,००,००० करोड़ का २ करोड़ टन गोमांस प्रदान करती हैं ५०,००० करोड़ का चरम, हड्डी,खून, आदि का व्यापार होता है. यह २.५० लाख करोड़ का व्यापर देश के विकास में कोई सहयोग नहीं देता पाया गया है. ना ही ग्रामीण विकास में ना ही रोजगार देने में समर्थ है.सिर्फ कुछ विशेष सम्प्रदाय के लोगो, विभिन्न विभागों के निरक्षकों, अधिकारिओं,
Table No Description सूची इस प्रकार है. Rural Urban Total
1A Cattle Exotic& Crossbreed - Male 29952994 3107066 3,30,60,660
1B Cattle Exotic & Crossbreed-Female 6287311 556386 68,43,697
1C Cattle Indigenous-Male 74990525 1788963 7,67,79,488
1D Cattle Indigenous-Female 190297452 8777553 19,90,75,005
1E Buffalo – Male 18774888 822504 1,95,97,392
1F Buffalo-Female 99916144 5426500 10,53,42,644
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राजनीतिज्ञों को, जो इस घृणित व्यवसाय से जुड़े हैं, को समृद्ध बना रहा है.आप अपने राज्यों में, प्रकोस्ट की राज्य, जिला, शहर, ग्राम शाखाओं का विकास कर अपने क्षेत्र कार्यकर्ताओं को विधि विधान की पूर्ण जानकारी प्रदान करें और अपने अपने क्षेत्रों की समश्याओं से रास्ट्रीय प्रकोस्ट को साथ लें. मेरा अटूट विश्वास है की जो भी केन्द्रीय और राज्यों के कानून हैं उनका अगर सही पालन करवा सकें तो हम पूर्ण गोवंश रक्षा में आज भी सफल हो सकते हैं. देश और प्रान्तों में लागु कुछ विधानों की जानकारी सलंग्न है .
देश का सर्व हारा गोपालक, कृषक, आज आत्म हत्या कर रहा है क्योंकी उसको महानाशकारी रासायनिक खाद लगा दिया गया है, खेतों में ट्रेक्टर, नलकूप आदि के उपयोग ने बैल शक्ति को नीर उपयोगी बना दिया है. खेती की लागत में उर्वरक, जल और डीजल मुख्य घटक बन चुके हैं इसके अलावा देश की २५% भूमि चरागाहों के लिए रखी जाने के प्रावधान आज भूले जाकर शहरीकरण की दौड़ में कब्जा किये जा चुके हैं. यह दीवानगी भरा मूक प्राणी संहार आज पर्यावरण, स्वास्थ्य, स्वच्छता, रोजगारविकास , स्त्रीशक्ति, ग्रामीण विकास को तहस नहस कर रहा है.
गोवंश ४ टन प्रति वर्ष की दर से १२० करोड़ टन गोबर और ८० करोड़ किलो लीटर गोमूत्र प्रदान करता है. यह मात्रा लो की देश के विकास में सहायक होनी चाहिए आज पर्यावरण की समस्या बन गयी है ग्राम- शहर की नालिओं से बह कर क्षेत्र के जलाशयों, और नदिओं के जल स्तर को ऊँचा करती जा रही है. अगर इस गोवंशशक्ति को उपयोग में लाया जाये तो १२० करोड़ टन गोबर ५०,००० करोड़ का प्राकृतिक उर्वरक, ३५,००० करोड़ की १०,००० करोड़ यूनिट बिजली और एक बैल ८ अश्वशक्ति ८० करोड़ अश्व शक्ति के सामान बैलशक्ति देश की ग्रामीण विद्युत्, इंधन और पेय जल समाश्या का निदान है.
बैल शक्ति का कृषि, सिचाई, परिवहन, अन्य कल कारखानों को चलने में उपयोग ग्रामीण बेरोजगारी समाप्त कर ग्राम विकास की धुरी बन भूतपुरव राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे अब्दुल कलाम जी की कल्पना 'पूरा' (ग्राम में शहर की सुविधा) प्रदान कर सकता है.
कृषक और गोपालक की लागत में कमी लाकर, कृषि को लाभदायक बनाते हुए हमारा गोवंश देश की अर्थ व्यवस्था में अशीम योगदाता बन सकता है. पचासिओं वस्तुओं के निर्माण का साधन, अगर राज्य और केंद्र सरकारें, इस और तनिक ध्यान दे दें तो ग्रामीण उद्योग, देश की अर्थ व्यवस्था में खरबों रुपैये का योगदाता बन सकता है. बीसिओं वस्तुएं, जैसे, साबुन, शेम्पू, फिनियाल, धूप, अगबती, रंग रोगन, कीमती टायल, प्लाई बोर्ड, मूर्ति, कागज, उर्वरक, किटनियंत्रक, १७० रोगों की रोकथाम दवाईयां, मछर नियंत्रक तेल, कोइल और तो और गोकोला, गोज्योती जैसी विभिन्न दैनिक जरुरत में कम आने वाली वस्तुएं जो की विभिन्न विदेशी महा कंपनियो द्वारा विज्ञापन के जोर से जन मानस में जहर की तरह घुटी जा रही हैं, उन्हें ग्राम ग्राम में बना कर लाभप्रद गोवंश उद्योग मै जोड़ कर गोबरसे रु.५ और गोमूत्र और गोमूत्रसे रु. २० प्रति लिटरके दाम प्राप्त कर गोपालक को समृद्ध और गोवंश में बढ़ोतरी की जा सकती है .
मुझे प्रेरणा मिली और देश का पृथम गोवंश आधारित उद्योग गोवर्धन ओरगेनिक लिमिटेड आज लगभग ५०,००० किलो गोबर और ५००० लिटर गोमूत्र उपयोग क्षमता के साथ पार्टिकल बोर्ड , फिनायल, हस्त प्रक्षालन पावडर गोमूत्र अर्क, आदि का सफलता पूर्वक उत्पादन कर रहा है, केवल गोवंश ही नही पर्यावरण में योगदान देते हुए प्रतिवर्ष लगभग १,००,००० वृक्षों की रक्षा करेगा.अगर पूर्ण गोवंश द्वारा प्रदित गोबर गोमूत्र का लेखा करे तो करोड़ो वृक्षों की रक्षा का यह साधन है.
कार्बन क्रेडिट साथिओं, आपने ओजोन परत के विषय में पढ़ा होगा कार्बन क्रेडिट के रूक में अगर हम एक टन कोयले, तेल इंधन की बचत करते हैं तो विदेशी कम्पनिओं से लगभग डॉलर १५-१६ प्राप्त होते हैं. इस प्रकार के उद्योग लगाये जाने तो १२० करोड़ टन गोबर हमे १८०० करोड़ डॉलर यानी ९०,००० करोड़ रूपया विदेशी मुद्रा लाने में सहायक हो सकता है
रास्ट्रीय और प्रांतीय सरकारों के विभिन्न मंत्रालयों के कार्यों में गोवंश जुड़ा हुआ है आपकी जानकारी के लिए कुछ विभाग निम्नलिखित हैं गोवंश विकास प्रकोस्ट यह सभी जानकारियाँ आपके माध्यम से देश के कोने कोने में पहुंचा कर सर्वहारा के रोजगार, सुन्दर जीवनयापन, स्वास्थ्य की कल्पना करते हुए भा ज पा का सन्देश हर घर में पंहुचा सकता है.
आईये हम आज से ही जूट जाएँ और
· गोबध बंदी को कठोरता पूर्वक लागु करवा कर उदाहरण पेश करें केन्द्रीय और प्रांतीय सरकारों पर दबाव बना कर पूर्ण गोवंश हत्याबंदी बंदी और अवैधानिक कसायिखानो को रुकवाएं.
· केन्द्रीय एवम राज्य सरकारों से बजट में विभिन्न योजनाओं में गोवंश आधार शामिल करने का प्रयास करें
· केन्द्रीय और राज्य सरकारों को गोवंश आधारित उद्योग स्थापना में प्रोत्साहन देने का अनुरोध करें.
· हर जिले में कामधेनु अरण्य के निर्माण का प्रयास करें मैं इस प्रयास को अटल गो वन योजना का नाम देते हुए परम पूजनीय अटल को समर्पित करना चाहता हूँ.
· विदेशी नस्ल से गर्भाधान बंद हो और देसी नस्ल सुधार को प्रोत्साहन हो करें .
· चारागाह क्षेत्रो की सूची बना कर जिला प्रशासन को उसे विम्मुक्त करवा गोपालक, गोशाला व् कृषक को चारा उगाने को दिलवाने का प्रयास करें
· जैविक खाद और कीटनियंत्रक के विक्रय और केंद्र और राज्यों से छूट का अनुरोध करें
· गोवंश आधारित उद्योगिक क्षेत्रों की स्थापना,राजकीय विभिन्न अनुदान, कर रियायतें राज्य बजटों का भाग बने
· आदर्श ग्राम योजना जिसमे जैविक कृषि, गोवंश आधारित उद्योग, बैल चालित उपकरण उपयोग में ला कर जल, इंधन, विद्युत्, परिवहन, उर्वरक, किट नियंत्रक, दुग्ध और इसके उत्पाद प्रारंभ कर पूर्ण ग्राम उत्थान कर दिखाएँ.
· हर तहसील में गोशाला, नंदीशाला, वर्षभशाला हो जो आत्मनिर्भरता कार्य करे गोवंश नस्लसुधार कर देश के गोवंश को स्वास्थ्य, सुद्रढ़ और सम्पन्न बनायें.
साथिओं, मुझे पूर्ण विश्वास है क़ि अगर हम आज कमर कस लें तो यक़ीनन, देश के हरगाँव, हरशहर में हम गोवंश विकास की धरा बहा देंगे हमने ८.५ करोड़ हस्ताक्षर दिए और अगर हम इन गोभ्क्तों को मत दाता के रूप में परिवर्तित कर सकें तो मुझे पूर्ण विश्वास है की हम गोवंश की रक्षा, संवर्धन, ग्राम विकास, मानवसेवा के उच्चतम मानकों को स्थापित करते हुए में गोमाता के आशीर्वाद से स्वास्थ्य, सुद्रढ़ और सम्पन्न बनायें जय गोमाता जय भारत आपका साथी
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