कोई भाजपा का मंत्री है राधा मोहन सिंह
उस्ने तो विदेश से कुछ है hybrid सांड भी मंगवाये हैं नस्ल सुधार हेतु ।
इसे नकली हिन्दू राष्ट्रवाद की पराकाष्ठा ही कहेंगे ।
ये उस सन्गठन के लोगों का कार्य है जो हिंदुत्ववादी होने का दंभ भरता है और शास्त्रों को मानता नही है ।
एक मुसलमान अपने मुहम्मद साहब का कार्टून भी बर्दाश्त नहीं कर सकता और हिनदू उसगाय का काटे जाना बर्दाश्त कर रहे है जिस उनके धर्मग्रन्थ उनके ईश्वर से भी बडा बताते हैं।
करपात्री जी ने जीवन भर गोरक्षा के लिये क्या नहीं किया...रामराज्य परिषद् बनाई ...जिसके चुनाव घोषणापत्र में गोहत्या बन्द करने की बात सबसे पहले होती थी।
लेकिन यह हिन्दू जनता ही है जिसने गोहत्यारों को वोट दिया और गोरक्षा की बात करने वालों की जमानत जब्त करवा दी।
.
"लक्ष्मी शक्ति कलियुगे।"
कुछ अंतर्राष्ट्रीय फुड-चेन कम्पनियाँ अपने गौ-माँस युक्त उत्पाद भारत में उतारने के लिये पिछले एक दशक से लॉबिंग कर रही हैं। पर ये जानती हैं कि भारतीय जनमानस में गाय का सम्मान घटाये बगैर यह असम्भव होगा।
इसीलिये सोशल मीडिया आदि में गौ-उपासक हिन्दुओं का मखौल बनवा रही हैं, कुछ नेतागण भी इनके धनबल की चपेट में हैं, जो इस तरह के तुगलकी फरमान जारी कर देते हैं व इनके अन्धे समर्थक अपने उपास्य के आदेश को औचित्यपूर्ण बताने के प्रयास मै येन-केन-प्रकारेण जुट जाते हैं।
किसी ने सच कहा हे बाजार-वाद में आप सोचते नहीं...अपितु... "आपको सोचने के लिये बाध्य किया जाता है।"
अगर यही सब चलता रहा और गौ-वंश के प्रति हमारी उदासीनता, और उपरामता इसी तरह बढ़ती गयी तो इसमेँ कोई आस्चर्य नहीं कि देश में कुछ वर्षों बाद खुले आम गौ-माँस विक्रय प्रारम्भ हो जाय।
कैसे कैसे चित्र-विचित्र तर्क हम अपनी अधमताओं के लिये देते हैं, गायें शहर में कचरा पन्नी खा रही हैं, कई बार घायल भी हो जाती हैं, इसलिये इन्हें शहर से बाहर ही कर देना चाहिये।
इसका प्रकार तो अत्यंत दुर्दशा में जीवन-यापन कर रहे और आये दिन सड़क दुर्धटना में मारे जा रहे गरीबों को भी शहर के बाहर फ़ेंक देना चाहिये।
गायों की दुर्दसा सुधारने, गौ-पालन को व्यवस्थित बनाने की बजाय हम शहर से गायें ही समाप्त कर देना चाहते हैं।
इसी प्रकार के अजब-गजब तर्क वालों के कारण ही शहर में दर्जनों वृद्ध-आश्रम खुल गये हैं।
ये नवीनचंद घर में चार कुत्ते तो पाल लेते हैं, पर अपने खुदके बूढ़े माँ-बाप इनसे नहीं पाले जाते।
अब तालिबान अलकायदा जैसे संगठन हिन्दुओं की ऐसी तैसी करने में लगे है।
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महर्षि पतंजलि योग सूत्र में कहते है :
"कृत, कारित,अनुमोदिता"।
अर्थात दुष्कर्म करने, कराने, या दुष्कर्म के अनुमोदन करने के सामान परिणाम होते हैं।
पता नहीं इस महापाप के परिणाम किस किस को भोगना पड़ेंगें।
अपनी दुर्दशा के लिये हिन्दू खुद जिम्मेदार है।
धर्मो रक्षति रक्षित:।
उस्ने तो विदेश से कुछ है hybrid सांड भी मंगवाये हैं नस्ल सुधार हेतु ।
इसे नकली हिन्दू राष्ट्रवाद की पराकाष्ठा ही कहेंगे ।
ये उस सन्गठन के लोगों का कार्य है जो हिंदुत्ववादी होने का दंभ भरता है और शास्त्रों को मानता नही है ।
एक मुसलमान अपने मुहम्मद साहब का कार्टून भी बर्दाश्त नहीं कर सकता और हिनदू उसगाय का काटे जाना बर्दाश्त कर रहे है जिस उनके धर्मग्रन्थ उनके ईश्वर से भी बडा बताते हैं।
करपात्री जी ने जीवन भर गोरक्षा के लिये क्या नहीं किया...रामराज्य परिषद् बनाई ...जिसके चुनाव घोषणापत्र में गोहत्या बन्द करने की बात सबसे पहले होती थी।
लेकिन यह हिन्दू जनता ही है जिसने गोहत्यारों को वोट दिया और गोरक्षा की बात करने वालों की जमानत जब्त करवा दी।
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"लक्ष्मी शक्ति कलियुगे।"
कुछ अंतर्राष्ट्रीय फुड-चेन कम्पनियाँ अपने गौ-माँस युक्त उत्पाद भारत में उतारने के लिये पिछले एक दशक से लॉबिंग कर रही हैं। पर ये जानती हैं कि भारतीय जनमानस में गाय का सम्मान घटाये बगैर यह असम्भव होगा।
इसीलिये सोशल मीडिया आदि में गौ-उपासक हिन्दुओं का मखौल बनवा रही हैं, कुछ नेतागण भी इनके धनबल की चपेट में हैं, जो इस तरह के तुगलकी फरमान जारी कर देते हैं व इनके अन्धे समर्थक अपने उपास्य के आदेश को औचित्यपूर्ण बताने के प्रयास मै येन-केन-प्रकारेण जुट जाते हैं।
किसी ने सच कहा हे बाजार-वाद में आप सोचते नहीं...अपितु... "आपको सोचने के लिये बाध्य किया जाता है।"
अगर यही सब चलता रहा और गौ-वंश के प्रति हमारी उदासीनता, और उपरामता इसी तरह बढ़ती गयी तो इसमेँ कोई आस्चर्य नहीं कि देश में कुछ वर्षों बाद खुले आम गौ-माँस विक्रय प्रारम्भ हो जाय।
कैसे कैसे चित्र-विचित्र तर्क हम अपनी अधमताओं के लिये देते हैं, गायें शहर में कचरा पन्नी खा रही हैं, कई बार घायल भी हो जाती हैं, इसलिये इन्हें शहर से बाहर ही कर देना चाहिये।
इसका प्रकार तो अत्यंत दुर्दशा में जीवन-यापन कर रहे और आये दिन सड़क दुर्धटना में मारे जा रहे गरीबों को भी शहर के बाहर फ़ेंक देना चाहिये।
गायों की दुर्दसा सुधारने, गौ-पालन को व्यवस्थित बनाने की बजाय हम शहर से गायें ही समाप्त कर देना चाहते हैं।
इसी प्रकार के अजब-गजब तर्क वालों के कारण ही शहर में दर्जनों वृद्ध-आश्रम खुल गये हैं।
ये नवीनचंद घर में चार कुत्ते तो पाल लेते हैं, पर अपने खुदके बूढ़े माँ-बाप इनसे नहीं पाले जाते।
अब तालिबान अलकायदा जैसे संगठन हिन्दुओं की ऐसी तैसी करने में लगे है।
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महर्षि पतंजलि योग सूत्र में कहते है :
"कृत, कारित,अनुमोदिता"।
अर्थात दुष्कर्म करने, कराने, या दुष्कर्म के अनुमोदन करने के सामान परिणाम होते हैं।
पता नहीं इस महापाप के परिणाम किस किस को भोगना पड़ेंगें।
अपनी दुर्दशा के लिये हिन्दू खुद जिम्मेदार है।
धर्मो रक्षति रक्षित:।
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