गाय ही श्रेष्ठ क्यों
‘‘गाय ही श्रेष्ठ क्यों’’? मात्र कम फैट वाले दूध के कारण हमने गाय को पालना कम कर दिया और भैंसों का पालन बढ़ा दिया। कभी ये नहीं सोचा कि फैट व दूध की मात्रा के साथ गुणों का ध्यान भी रखा जाना चाहिये। ‘शंख’ चाहे जितना बड़ा हो पर छोटे से ’’मोती’ की बराबरी नहीं कर सकता। वनस्पति घी तथा देशी घी में फैट समान है फिर भी दोनों के भावों में दुगना अंतर है क्योंकि दोनों के गुणों में अंतर है। तो फिर गाय और भैंस के दूध—दही—मक्खन, घी आदि में भी अतंर होता है इस बात को स्वीकार करना चाहिये। पशुओं के स्वयं के गुण दोष का प्रभाव उनके उत्पाद अर्थात् दूध—दही पर भी पड़ता ही है
जैसी उत्तम खेती गाय की संतान बैल से हो सकती है, वैसे पाड़ों से नहीं। गाय सूर्य किरणों के ताप का सामना कर सकती है, इससे गाय (विशेष रूप से देशी गाय) का दूध ज्यादा स्वास्थ्यप्रद होता है। (युगशक्ति गायत्री, सित. ९०)
इन सब तथ्यों से बुद्धिमान व्यक्ति सहज रूप से ही समझ सकता है कि ‘‘गाय ही हमारी अर्थव्यवस्था के लिये श्रेष्ठ क्यों है?’’ क्योंकि हमारे अर्थव्यवस्था को संचालित करने वाले व्यक्ति तथा बच्चे (कल के नागरिक) जैसा गुणों वाला भोज्य पदार्थ ग्रहण करेंगे, वे वैसे बनेंगे और देश को भी वैसी ही गति एवं विकास प्रदान करेंगे।
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