!!जय गो माता - जय गोपाल !!
आदरणीय गो भक्त मित्रों गो माताओं को घास (गो त्रृण दान)करते हैं उसका महात्म आप गो भक्तो के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास करता हूँ --
!!गो माता को चारा प्रदान करने की महिमा !!
घासमुष्टिं परगवे दद्यात् संवत्सरं तु यः!
अकृत्वा स्वयमाहारं व्रतं तत् सार्वकामिकम् !! (महाभारत अनु.69/12)
अर्थात- जो एक वर्ष तक प्रतिदिन स्वयं भोजन से पहले दूसरे की गाय को एक मुट्ठी घास खिलता है, उसका वह व्रत संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है ।
तृणोदकादिसंयुक् तं यः प्रदद्यात् गवाह्निकम् !!
सोऽश्मेधसमं पुण्यं लभते नात्र संशयः ! (बृहत्पाराशरस्म ृति 5/26-27)
अर्थात- जो गौओं को प्रतिदिन जल और तृणसहित भोजन प्रदान करता है, उसे अश्वमेधयज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है, इसमें किंचिन्मात्र भी संदेह नहीं है ।
तीर्थस्थानेषु यत्पुण्यं यत्पुण्यं विप्रभोजने!
सर्वव्रतोपवासेष ु सर्वेष्वेव तपःसु च!!
यत्पुण्यं च महादाने यत्पुण्यं हरिसेवने!
भुवः पर्यटने यत्तु वेदवाक्येषु सर्वदा!!
यत्पुण्यं सर्वयज्ञेषु दीक्षया च लभेन्नरः!
तत्पुण्यं लभते सद्यो गोभ्यो दत्वा तृणानि च !!
तीर्थस्थानों में जाने से, ब्राह्मणों को भोजन कराने से जो पुण्य प्राप्त होता है,सभी व्रत- उपवासों एवं तपस्याओं में जो पुण्य है, महादान करने में जो पुण्यं है, श्रीहरि के पूजन मेँ जो पुण्य है, वेदवाक्यों के पठन-पाठन में जो पुण्य है और समस्त यज्ञों की दीक्षा ग्रहण करने में जो पुण्य है, वे सभी पुण्य मनुष्य को केवल गायों को तृण(घास)खिलानेम ात्र से तत्काल मिल जाते हैं ।
आदरणीय गो भक्त मित्रों गो माताओं को घास (गो त्रृण दान)करते हैं उसका महात्म आप गो भक्तो के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास करता हूँ --
!!गो माता को चारा प्रदान करने की महिमा !!
घासमुष्टिं परगवे दद्यात् संवत्सरं तु यः!
अकृत्वा स्वयमाहारं व्रतं तत् सार्वकामिकम् !! (महाभारत अनु.69/12)
अर्थात- जो एक वर्ष तक प्रतिदिन स्वयं भोजन से पहले दूसरे की गाय को एक मुट्ठी घास खिलता है, उसका वह व्रत संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है ।
तृणोदकादिसंयुक्
सोऽश्मेधसमं पुण्यं लभते नात्र संशयः ! (बृहत्पाराशरस्म
अर्थात- जो गौओं को प्रतिदिन जल और तृणसहित भोजन प्रदान करता है, उसे अश्वमेधयज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है, इसमें किंचिन्मात्र भी संदेह नहीं है ।
तीर्थस्थानेषु यत्पुण्यं यत्पुण्यं विप्रभोजने!
सर्वव्रतोपवासेष
यत्पुण्यं च महादाने यत्पुण्यं हरिसेवने!
भुवः पर्यटने यत्तु वेदवाक्येषु सर्वदा!!
यत्पुण्यं सर्वयज्ञेषु दीक्षया च लभेन्नरः!
तत्पुण्यं लभते सद्यो गोभ्यो दत्वा तृणानि च !!
तीर्थस्थानों में जाने से, ब्राह्मणों को भोजन कराने से जो पुण्य प्राप्त होता है,सभी व्रत- उपवासों एवं तपस्याओं में जो पुण्य है, महादान करने में जो पुण्यं है, श्रीहरि के पूजन मेँ जो पुण्य है, वेदवाक्यों के पठन-पाठन में जो पुण्य है और समस्त यज्ञों की दीक्षा ग्रहण करने में जो पुण्य है, वे सभी पुण्य मनुष्य को केवल गायों को तृण(घास)खिलानेम
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें