विश्व में ऐसा कोई शिवालय नही होगा की जीसमे नंदी महाराज विराजमान न हो । हमे शिवालयो मे प्रवेश करते ही पहले नंदी महाराज ही मीलेगें। हमे शिवजी के दर्शन करना है। तो पहले नंदी महाराज के दर्शन करके नंदी महाराज से आशिर्वाद लेना पडता है। क्योंकी भगवान भक्त के वशीभुत होते है।
हम शिवजी को तो मानते है। पर शिवजी के वाहन नंदी महाराज को भुलते जा रहे है।आज नंदी महाराज सडको पर कचरा खाने को मजबुर है। क्या भगवान शिवजी हमे माफ कर पायेगें ?
धर्म को बचाना चाहते हो तो नंदी महाराज गौ वंशो को बचाना होगा क्योकीं नंदी महाराज गौ वंश ही धर्म का रूप है।
गौ सेवा ही गोपाल सेवा है।
सोमवार, 25 जनवरी 2016
क्या भगवान शिवजी हमे माफ कर पायेगें ?
गुरुवार, 21 जनवरी 2016
28 फ़रवरी 2016 दिल्ली चलो
उठो भारत के नर नारियो हुंकार भरो।
गौमाता को राष्ट्र माता स्वीकार करो।।
गौहत्या का कलंक भारत के माथे से मिटाना हैं ,
पुनः राष्ट्र को विश्व गुरु बनाना है।
1966 में धर्म सम्राट करपात्रीजी महाराज के नेतृत्व में गौहत्या बंदी आंदोलन को 2016 में 50 वर्ष पुरे हो रहे हैं।उस आंदोलन में हजारो गौभक्तो ने प्राणों की आहुति दि थी ।उन शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिये गौमाता को राष्ट्र माता के पद पर सुशोभित करवाने हेतु ।
।। महा जन आंदोलन ।।
दिनाँक 28 फरवरी 2016 रविवार को दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में पूज्य गोपाल मणि जी महाराज एंव देश के पूज्य सन्तों के सानिध्ये में।
जिसमे देश के सभी राज्यो से हजारो गौभक्तो ने हिश्सा लेंगे ।
भारत के ऋिषयों ने पूरे देश और दुनिया को एक परिवार या घर के रूप में देखा है। घर बनता ही माँ से है। इस देश में राष्ट्र गीत भी है राष्ट्र गान भी है राष्ट्र पक्षी भी है राष्ट्र पशु भी है राष्ट्रपिता भी हैै। लेकिन हमारे राष्ट्र रूपी घर में राष्ट्र माता नही है
इसलिए गो माता को राष्ट्र माता बनाओ। वेदों में लिखा है
गोस्तु मात्रा न विद्यते
गाय की बराबरी कोई नही कर सकता। उस गो माता के लिए हमे किसी मंदिर बनाने की जरूरत नही है गो माता के घर पहुंचते ही वह घर मंदिर बन जाता है
गो माता को वो सम्मान दो जो हम भगवान को देते हैं ।
आप एक दिन आकर गो रक्षा के लिए खडे हो जाओ ।
भारत सरकार एंव राज्य सरकार से हमारी निम्न पांच मांगे है।
1. गौ माता को राष्ट्रमाता के पद पर सुशोभित करे एंव गौ मंत्रालयों का अलग से गठन हो।
2. रासायनिक खादो पर प्रतिबंध लगे,गोबर की खाद का उपयोग हो,गोबर गैस का चूल्हा जलाने एंव गोबर गैस को सी.न.जी गैस में परिवर्तन कर मोटर गाड़ी चलाने में उपयोग हो।
4 . 10 वर्ष तक के बालक-बालिकाओ को सरकार की और से भारतीय गाय का दूध नि:शुल्क उपलब्ध हो,किसानो को गाय अनुदान में दी जाये,प्रत्येक गाँव में भारतीय नंदी(सांड)की व्यवस्था हो।
4. जर्सी आदि विदेशी गायों पर पूर्ण प्रतिबंध उसके दूध की विकृति को सार्वजनिक किया जाये,गोचरान भूमि गौवंश के लिये ही मुक्त हो।
5.गौ-हत्यारों को मृत्यु दण्ड दिया जायें।
ये जानकारी भारतीय गोक्रांति मंच तमिलनाडु चेन्नई के गोवत्स राधेश्याम रावोरिया ने दी।
गौमाता राष्ट्रमाता के चरणों में,हमारा कोटी-कोटी वंदन।
बुधवार, 13 जनवरी 2016
किसने शुरु करवाया था कसाईखानों में गौवध…
धर्मपाल द्वारा लिखित साहित्य में दिए गए प्रमाणों के अनुसार मुस्लिम
शासन के समय गौवध अपवादस्वरूप ही होता था। अधिकांश शासकों ने अपने शासन को
मजबूत बनाने और हिन्दुओं में लोकप्रिय होने के लिए गौवध पर प्रतिबंध लगाए।
यह तो वे अंग्रेज और ईसाई आक्रमणकारी थे जिन्होंने भारत में गौवध को
बढ़ावा दिया। अपने इस कुकर्म पर पर्दा डालने के लिए उन्होंने मुस्लिम
कसाइयों की नियुक्ति बूचड़खानों में की।धर्मपालजी
द्वारा दिए प्रमाणों से पता चलता है कि ब्रिटेन की रानी के निर्देशन पर
मुस्लिम कसाइयों को नियुक्त करने की नीति अपनाई गई थी। आज भी देश में वही
अंग्रेजकालीन नीतियां जारी हैं। इनके चलते देश में गौवधबंदी असंभव है।
स्मरणीय है कि भारत आज भी इंग्लैंड की डौमिन स्टेट हैं तथा अभी तक हम
स्वतंत्र देश नहीं है। यही कारण है कि पूरी संसद द्वारा गौवध बंदी करने का
समर्थन करने पर भी प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि यदि यह
प्रस्ताव पास होता है तो मैं प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र पद से
त्यागपत्र दे दूंगा। अनुमान यह है कि गौवध बंदी न करने का इंग्लैंड सरकार
का आदेश नेहरू को मिला था।
भारतीय गौवंश विशेष क्यों…
स्थित भारत सरकार के करनाल स्थित ब्यूरो के द्वारा किए गए शोध के अनुसार
भारत की 98 प्रतिशत नस्लें ‘ए2’ प्रकार के प्रोटीन वाली अर्थात विषरहित
हैं। इनके दूध की प्रोटीन की एमीनो एसिड चेन (बीटा कैसीन ए2) में 67वें
स्थान पर ‘प्रोलीन’ है और यह अपने साथ की 66वीं कड़ी के साथ मजबूती के साथ
जुड़ी रहती है तथा पाचन के समय टूटती नहीं।66वीं
कड़ी में एमीनो एसिड आइसोसोल्यूसीन होता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि
भारत की 2 प्रतिशत नस्लों में ‘ए1’ नामक एलिल (विषैला प्रोटीन) विदेशी
गौवंश के साथ हुए ‘म्युटेशन के कारण’ आया हो सकता है।
करनाल द्वारा भारत की 25 नस्लों की गऊओं के 900 सैंपल लिए गए। उनमें से
97-98 प्रतिशत ‘ए2ए2’ पाए गए तथा एक भी ‘ए1ए1’ नहीं निकला। कुछ सैंपल
‘ए1ए2’ थे जिसका कारण विदेशी गौवंश का संपर्क होने की संभावना प्रकट की
जा रही है।
जोड़ों में होते हैं अत: स्वदेशी-विदेशी गौवंश की डीएनए जांच करने पर ‘ए1,
ए2’, ‘ए1, ए2’ तथा ‘ए2ए2’ के रूप में गुणसूत्रों की पहचान होती है।
स्पष्ट है कि विदेशी गौवंश ‘ए1ए1’ गुणसूत्र वाला तथा भारतीय ‘ए2ए2’ है।
दूध के प्रोटीन के आधार पर ही भारतीय गौवंश की श्रेष्ठता बतलाना अपर्याप्त
होगा, क्योंकि बकरी, भैंस, ऊंटनी आदि सभी प्राणियों का दूध विषरहित ‘ए2’
प्रकार का है। भारतीय गौवंश में इसके अतिरिक्त भी अनेक गुण पाए गए हैं।
भैंस के दूध के ग्लोब्यूल अपेक्षाकृत अधिक बड़े होते हैं तथा मस्तिष्क पर
बुरा प्रभाव करने वाले हैं। आयुर्वेद के ग्रंथों के अनुसार भी भैंस का दूध
मस्तिष्क के लिए अच्छा नहीं, वातकारक (गठिया जैसे रोग पैदा करने वाला),
गरिष्ठ व कब्जकारक है जबकि गौदुग्ध बुद्धि, आयु व स्वास्थ्य, सौंदर्यवर्धक
बतलाया गया है।
के अनुसार भारतीय गऊओं के दूध में ‘सैरिब्रोसाइट’ नामक तत्व पाया गया है,
जो मस्तिष्क के ‘सैरिब्रम’ को स्वस्थ-सबल बनाता है। यह स्नायु कोषों को
बल देने वाला व बुद्धिवर्धक है।
भारतीय देसी नस्ल की गाय का दूध ही पौष्टिक : करनाल के ‘नेशनल ब्यूरो ऑफ
एनिमल जैनिटिक रिसोर्सेज’ (एनबीएजीआर) संस्था ने अध्ययन कर पाया कि भारतीय
गायों में प्रचुर मात्रा में ए-2 एलील जीन पाया जाता है, जो उन्हें
स्वास्थ्यवर्धक दूध उत्पन्न करने में मदद करता है। भारतीय नस्लों में इस
जीन की फ्रिक्वेंसी 100 प्रतिशत तक पाई जाती है।
में विषयुक्त और विषरहित (ए1 और ए2) गाय की पहचान उसकी पूंछ के बाल की
डीएनए जांच से हो जाती है। इसके लिए एक 22 डॉलर की किट बनाई गई थी। भारत
में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। केंद्र सरकार के शोध संस्थानों में यह जांच
होती है, पर किसानों को तो यह सेवा उपलब्ध ही नहीं है। वास्तव में हमें इस
जांच की जरूरत भी नहीं है। हम अपने देसी तरीकों से यह जांच सरलता से कर
सकते हैं।
विदेशी गायों का दूध और अन्य कितना हानीकारक
के ‘पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय एवं गौपाल अनुसंधान संस्थान’ में नेशनल
ब्यूरो ऑफ जैनेटिक रिसोर्सिज, करनाल (नेशनल काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च,
भारत सरकार) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. देवेन्द्र कुमार सदाना द्वारा एक
प्रस्तुति 4 सितंबर को दी गई।मथुरा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के सामने दी गई प्रस्तुति में डॉ. सदाना ने जानकारी दी कि:-
अधिकांश विदेशी गौवंश (हॉलस्टीन,
जर्सी, एचएफ आदि) के दूध में ‘बीटा कैसीन ए 1’ नामक प्रोटीन पाया जाता है
जिससे अनेक असाध्य रोग पैदा होते हैं। पांच रोग होने के स्पष्ट प्रमाण
वैज्ञानिकों को मिल चुके हैं-
2. मधुमेह-मिलाइटिस या डायबिटीज टाइप-1 पैंक्रियाज का खराब होना जिसमें इंसुलिन बनना बंद हो जाता है।)
3. आटिज्म (मानसिक रूप से विकलांग बच्चों का जन्म होना)।
4. सीजोफ्रेनिया (स्नायु कोषों का नष्ट होना तथा अन्य मानसिक रोग)।
5. सडन इनफैण्ट डेथ सिंड्रोम (बच्चे किसी ज्ञात कारण के बिना अचानक मरने लगते हैं)।
यह है कि हानिकारक ‘ए1’ प्रोटीन के कारण यदि उपरोक्त पांच असाध्य रोग होते
हैं तो और भी अनेक रोग भी तो होते होंगे। यदि इस दूध के कारण मनुष्य का
सुरक्षा तंत्र नष्ट हो जाता है तो फिर न जाने कितने ही और रोग भी हो रहे
होंगे जिन पर अभी खोज नहीं हुई।
हिन्दू धर्म में गाय को क्यों पवित्र माना जाता है?
Hindu dharam mein cow ko kyon pavitar mana jata hai
33 कोटि देवता :
हिन्दू धर्म अनुसार गाय में 33 कोटि के देवी-देवता निवास करते हैं। कोटि का अर्थ करोड़ नहीं, प्रकार होता है। इसका मतलब गाय में 33 प्रकार के देवता निवास करते हैं। ये देवता हैं- 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और 2 अश्विन कुमार। ये मिलकर कुल 33 होते हैं। यही कारण है कि दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के अवसर पर गायों की विशेष पूजा की जाती है और उनका मोर पंखों आदि से श्रृंगार किया जाता है। हिन्दुओं के हर धार्मिक कार्यों में सर्वप्रथम पूज्य गणेश व उनकी माता पार्वती को गाय के गोबर से बने पूजा स्थल में रखा जाता है।
सकारात्मक ऊर्जा का भंडार :
वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि गाय में जितनी सकारात्मक ऊर्जा होती है उतनी किसी अन्य प्राणी में नहीं। किसी संत में ही उतनी ऊर्जा हो सकती है। वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो ऑक्सीजन ग्रहण करता है और ऑक्सीजन ही छोड़ता है, जबकि मनुष्य सहित सभी प्राणी ऑक्सीजन लेते और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं। पेड़-पौधे इसका ठीक उल्टा करते हैं।
गाय की सूर्यकेतु नाड़ी :
गाय की पीठ पर रीढ़ की हड्डी में स्थित सूर्यकेतु स्नायु हानिकारक विकिरण को रोककर वातावरण को स्वच्छ बनाते हैं। यह पर्यावरण के लिए लाभदायक है। दूसरी ओर, सूर्यकेतु नाड़ी सूर्य के संपर्क में आने पर यह स्वर्ण का उत्पादन करती है। गाय के शरीर से उत्पन्न यह सोना गाय के दूध, मूत्र व गोबर में मिलता है। यह स्वर्ण दूध या मूत्र पीने से शरीर में जाता है और गोबर के माध्यम से खेतों में। कई रोगियों को स्वर्ण भस्म दिया जाता है।
84 लाख योनियों के बाद :
गौमूत्र :
गौमूत्र : गौमूत्र को सबसे उत्तम औषधियों की लिस्ट में शामिल किया गया है। वैज्ञानिक कहते हैं कि गौमूत्र में पारद और गंधक के तात्विक गुण होते हैं। यदि आप गो-मूत्र का सेवन कर रहे हैं तो प्लीहा और यकृत के रोग नष्ट कर रहे हैं।
* गौमूत्र कैंसर जैसे असाध्य रोगों को भी जड़ से दूर कर सकता है। गोमूत्र चिकित्सा वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय का लीवर 4 भागों में बंटा होता है। इसके अंतिम हिस्से में एक प्रकार का एसिड होता है, जो कैंसर जैसे रोग को जड़ से मिटाने की क्षमता रखता है। गौमूत्र का खाली पेट प्रतिदिन निश्चित मात्रा में सेवन करने से कैंसर जैसा रोग भी नष्ट हो जाता है।
* गाय के मूत्र में पोटेशियम, सोडियम, नाइट्रोजन, फॉस्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड होता है। दूध देते समय गाय के मूत्र में लैक्टोज की वृद्धि होती है, जो हृदय रोगियों के लिए लाभदायक है।
* गौमूत्र में नाइट्रोजन, सल्फर, अमोनिया, कॉपर, लौह तत्व, यूरिक एसिड, यूरिया, फॉस्फेट, सोडियम, पोटेशियम, मैगनीज, कार्बोलिक एसिड, कैल्सियम, विटामिन ए, बी, डी, ई, एंजाइम, लैक्टोज, सल्फ्यूरिक अम्ल, हाइड्राक्साइड आदि मुख्य रूप से पाए जाते हैं। यूरिया मूत्रल, कीटाणुनाशक है। पोटेशियम क्षुधावर्धक, रक्तचाप नियामक है। सोडियम द्रव मात्रा एवं तंत्रिका शक्ति का नियमन करता है। मैग्नीशियम एवं कैल्सियम हृदयगति का नियमन करते हैं।
* गौमूत्र में प्रति-ऑक्सीकरण की क्षमता के कारण डीएनए को नष्ट होने से बचाया जा सकता है। गौमूत्र से बनी औषधियों से कैंसर, ब्लडप्रेशर, आर्थराइटिस, सवाईकल हड्डी संबंधित रोगों का उपचार भी संभव है।
* वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय के गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। आम मान्यता है कि गाय के गोबर के कंडे से धुआं करने पर कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते हैं तथा दुर्गंध का नाश हो जाता है।
* गाय के सींग गाय के रक्षा कवच होते हैं। गाय को इसके द्वारा सीधे तौर पर प्राकृतिक ऊर्जा मिलती है। यह एक प्रकार से गाय को ईश्वर द्वारा प्रदत्त एंटीना उपकरण है। गाय की मृत्यु के 45 साल बाद तक भी ये सुरक्षित बने रहते हैं। गाय की मृत्यु के बाद उसके सींग का उपयोग श्रेष्ठ गुणवत्ता की खाद बनाने के लिए प्राचीन समय से होता आ रहा है।
* गौमूत्र और गोबर, फसलों के लिए बहुत उपयोगी कीटनाशक सिद्ध हुए हैं। कीटनाशक के रूप में गोबर और गौमूत्र के इस्तेमाल के लिए अनुसंधान केंद्र खोले जा सकते हैं, क्योंकि इनमें रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों के बिना खेतिहर उत्पादन बढ़ाने की अपार क्षमता है। इसके बैक्टीरिया अन्य कई जटिल रोगों में भी फायदेमंद होते हैं। गौमूत्र अपने आस-पास के वातावरण को भी शुद्ध रखता है।
* कृषि में रासायनिक खाद्य और कीटनाशक पदार्थ की जगह गाय का गोबर इस्तेमाल करने से जहां भूमि की ऊर्वरता बनी रहती है, वहीं उत्पादन भी अधिक होता है। दूसरी ओर पैदा की जा रही सब्जी, फल या अनाज की फसल की गुणवत्ता भी बनी रहती है। जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में स्वतः खाद डलती जाती है।
* प्रकृति के 99% कीट प्रणाली के लिए लाभदायक हैं। गौमूत्र या खमीर हुए छाछ से बने कीटनाशक इन सहायक कीटों को प्रभावित नहीं करते। एक गाय का गोबर 7 एकड़ भूमि को खाद और मूत्र 100 एकड़ भूमि की फसल को कीटों से बचा सकता है। केवल 40 करोड़ गौवंश के गोबर व मूत्र से भारत में 84 लाख एकड़ भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है।
* गाय के गोबर का चर्म रोगों में उपचारीय महत्व सर्वविदित है। प्राचीनकाल के मकानों की दीवारों और भूमि को गाय के गोबर से लीपा-पोता जाता था। यह गोबर जहां दीवारों को मजबूत बनाता था वहीं यह घरों पर परजीवियों, मच्छर और कीटाणुओं के हमले भी रोकता था। आज भी गांवों में गाय के गोबर का प्रयोग चूल्हे बनाने, आंगन लीपने एवं मंगल कार्यों में लिया जाता है।
गौशाला और पंचगव्य उत्पादों के प्रयोग
अन्य पशुओं की तुलना में गाय का दूध बहुत उपयोगी होता है। बच्चों को विशेष तौर पर गाय का दूध पिलाने की सलाह दी जाती है क्योंकि भैंस का दूध जहां सुस्ती लाता है, वहीं गाय का दूध बच्चों में चंचलता बनाए रखता है। माना जाता है कि भैंस का बच्चा (पाड़ा) दूध पीने के बाद सो जाता है, जबकि गाय का बछड़ा अपनी मां का दूध पीने के बाद उछल-कूद करता है।
गाय न सिर्फ अपने जीवन में लोगों के लिए उपयोगी होती है वरन मरने के बाद भी उसके शरीर का हर अंग काम आता है। गाय का चमड़ा, सींग, खुर से दैनिक जीवनोपयोगी सामान तैयार होता है। गाय की हड्डियों से तैयार खाद खेती के काम आती है।
शारीरिक संरचना : गाय का एक मुंह, दो आंखें, दो कान, चार थन, दो सींग, दो नथुने तथा चार पांव होते हैं। पांवों के खुर गाय के लिए जूतों का काम करते हैं। गाय की पूंछ लंबी होती है तथा उसके किनारे पर एक गुच्छा भी होता है, जिसे वह मक्खियां आदि उड़ाने के काम में लेती है। गाय की एकाध प्रजाति में सींग नहीं होते।
गायों की प्रमुख नस्लें : गायों की यूं तो कई नस्लें होती हैं, लेकिन भारत में मुख्यत: सहिवाल (पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, बिहार), गीर (दक्षिण काठियावाड़), थारपारकर (जोधपुर, जैसलमेर, कच्छ), करन फ्राइ (राजस्थान) आदि हैं। विदेशी नस्ल में जर्सी गाय सर्वाधिक लोकप्रिय है। यह गाय दूध भी अधिक देती है। गाय कई रंगों जैसे सफेद, काला, लाल, बादामी तथा चितकबरी होती है। भारतीय गाय छोटी होती है, जबकि विदेशी गाय का शरीर थोड़ा भारी होता है।
भारत में गाय का धार्मिक महत्व : भारत में गाय को देवी का दर्जा प्राप्त है। ऐसी मान्यता है कि गाय के शरीर में 33 करोड़ देवताओं का निवास है। यही कारण है कि दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के अवसर पर गायों की विशेष पूजा की जाती है और उनका मोर पंखों आदि से श्रृंगार किया जाता है।
प्राचीन भारत में गाय समृद्धि का प्रतीक मानी जाती थी। युद्ध के दौरान स्वर्ण, आभूषणों के साथ गायों को भी लूट लिया जाता था। जिस राज्य में जितनी गायें होती थीं उसको उतना ही सम्पन्न माना जाता है। कृष्ण के गाय प्रेम को भला कौन नहीं जानता। इसी कारण उनका एक नाम गोपाल भी है।
निष्कर्ष : कुल मिलाकर गाय का मनुष्य के जीवन में बहुत महत्व है। गाय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की तो आज भी रीढ़ है। दुर्भाग्य से शहरों में जिस तरह पॉलिथिन का उपयोग किया जाता है और उसे फेंक दिया जाता है, उसे खाकर गायों की असमय मौत हो जाती है। इस दिशा में सभी को गंभीरता से विचार करना होगा ताकि हमारी 'आस्था' और 'अर्थव्यवस्था' के प्रतीक गोवंश को बचाया जा सके। गाय का विषय राजीव भाई का प्रिय विषय है | क़त्ल खानों में जाने वाली गायों को रोकने के लिए उनके गोबर, गोमूत्र से पंचगव्य उत्पाद बनाकर तथा खेती में प्रयोग होने वाली गोबर खाद व कीट नियंत्रक बनाकर गाय को बचाया जा सकता है और उनकी सेवा की जा सकती है | इस उद्देश्य से एक गौशाला और पंचगव्य उत्पादों का उत्पादन और प्रशिक्षण करने की योजना है और गाँव-गाँव में उनकी जानकारी पहुंचे इसकी तैयारी चल रही है |
अन्य पशुओं की तुलना में गाय का दूध बहुत उपयोगी होता है। बच्चों को विशेष तौर पर गाय का दूध पिलाने की सलाह दी जाती है क्योंकि भैंस का दूध जहां सुस्ती लाता है, वहीं गाय का दूध बच्चों में चंचलता बनाए रखता है। माना जाता है कि भैंस का बच्चा (पाड़ा) दूध पीने के बाद सो जाता है, जबकि गाय का बछड़ा अपनी मां का दूध पीने के बाद उछल-कूद करता है।
गाय न सिर्फ अपने जीवन में लोगों के लिए उपयोगी होती है वरन मरने के बाद भी उसके शरीर का हर अंग काम आता है। गाय का चमड़ा, सींग, खुर से दैनिक जीवनोपयोगी सामान तैयार होता है। गाय की हड्डियों से तैयार खाद खेती के काम आती है।
शारीरिक संरचना : गाय का एक मुंह, दो आंखें, दो कान, चार थन, दो सींग, दो नथुने तथा चार पांव होते हैं। पांवों के खुर गाय के लिए जूतों का काम करते हैं। गाय की पूंछ लंबी होती है तथा उसके किनारे पर एक गुच्छा भी होता है, जिसे वह मक्खियां आदि उड़ाने के काम में लेती है। गाय की एकाध प्रजाति में सींग नहीं होते।
गायों की प्रमुख नस्लें : गायों की यूं तो कई नस्लें होती हैं, लेकिन भारत में मुख्यत: सहिवाल (पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, बिहार), गीर (दक्षिण काठियावाड़), थारपारकर (जोधपुर, जैसलमेर, कच्छ), करन फ्राइ (राजस्थान) आदि हैं। विदेशी नस्ल में जर्सी गाय सर्वाधिक लोकप्रिय है। यह गाय दूध भी अधिक देती है। गाय कई रंगों जैसे सफेद, काला, लाल, बादामी तथा चितकबरी होती है। भारतीय गाय छोटी होती है, जबकि विदेशी गाय का शरीर थोड़ा भारी होता है।
भारत में गाय का धार्मिक महत्व : भारत में गाय को देवी का दर्जा प्राप्त है। ऐसी मान्यता है कि गाय के शरीर में 33 करोड़ देवताओं का निवास है। यही कारण है कि दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के अवसर पर गायों की विशेष पूजा की जाती है और उनका मोर पंखों आदि से श्रृंगार किया जाता है।
प्राचीन भारत में गाय समृद्धि का प्रतीक मानी जाती थी। युद्ध के दौरान स्वर्ण, आभूषणों के साथ गायों को भी लूट लिया जाता था। जिस राज्य में जितनी गायें होती थीं उसको उतना ही सम्पन्न माना जाता है। कृष्ण के गाय प्रेम को भला कौन नहीं जानता। इसी कारण उनका एक नाम गोपाल भी है।
निष्कर्ष : कुल मिलाकर गाय का मनुष्य के जीवन में बहुत महत्व है। गाय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की तो आज भी रीढ़ है। दुर्भाग्य से शहरों में जिस तरह पॉलिथिन का उपयोग किया जाता है और उसे फेंक दिया जाता है, उसे खाकर गायों की असमय मौत हो जाती है। इस दिशा में सभी को गंभीरता से विचार करना होगा ताकि हमारी 'आस्था' और 'अर्थव्यवस्था' के प्रतीक गोवंश को बचाया जा सके।
गौमाता को राष्ट्र माता स्वीकार करो।।
पुनः राष्ट्र को विश्व गुरु बनाना है।
।। महा जन आंदोलन ।।
दिनाँक 28 फरवरी 2016 रविवार को दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में पूज्य गोपाल मणि जी महाराज एंव देश के पूज्य सन्तों के सानिध्ये में।
जिसमे देश के सभी राज्यो से हजारो गौभक्तो ने हिश्सा लेंगे ।
भारत के ऋिषयों ने पूरे देश और दुनिया को एक परिवार या घर के रूप में देखा है। घर बनता ही माँ से है। इस देश में राष्ट्र गीत भी है राष्ट्र गान भी है राष्ट्र पक्षी भी है राष्ट्र पशु भी है राष्ट्रपिता भी हैै। लेकिन हमारे राष्ट्र रूपी घर में राष्ट्र माता नही है
इसलिए गो माता को राष्ट्र माता बनाओ। वेदों में लिखा है
गोस्तु मात्रा न विद्यते
गाय की बराबरी कोई नही कर सकता। उस गो माता के लिए हमे किसी मंदिर बनाने की जरूरत नही है गो माता के घर पहुंचते ही वह घर मंदिर बन जाता है
गो माता को वो सम्मान दो जो हम भगवान को देते हैं ।
2. रासायनिक खादो पर प्रतिबंध लगे,गोबर की खाद का उपयोग हो,गोबर गैस का चूल्हा जलाने एंव गोबर गैस को सी.न.जी गैस में परिवर्तन कर मोटर गाड़ी चलाने में उपयोग हो।
4 . 10 वर्ष तक के बालक-बालिकाओ को सरकार की और से भारतीय गाय का दूध नि:शुल्क उपलब्ध हो,किसानो को गाय अनुदान में दी जाये,प्रत्येक गाँव में भारतीय नंदी(सांड)की व्यवस्था हो।
4. जर्सी आदि विदेशी गायों पर पूर्ण प्रतिबंध उसके दूध की विकृति को सार्वजनिक किया जाये,गोचरान भूमि गौवंश के लिये ही मुक्त हो।
5.गौ-हत्यारों को मृत्यु दण्ड दिया जायें।
पंचगव्य निर्माण और फायदे
देसी गाय के गोमूत्र और गोबर बेहद शक्तिशाली हैं। यदि वैज्ञानिक तौर से देखा जाए तो 23 प्रकार के प्रमुख तत्व गाय के मूत्र में पाए जाते हैं। इन तत्वों में कई मिनरल, विटामिन और प्रोटीन पाए जाते हैं।
शुक्रवार, 1 जनवरी 2016
अपना नया साल जब आयेगा जब हमें घर घर गोमाता का दर्शन प्राप्त होगा।
अपना नया साल जब आयेगा जब
हमें घर घर गोमाता का दर्शन प्राप्त होगा।
।। जय गौमाता जय गोपाल।।
हमे चाहिये गौ हत्या मुक्त हिंदुस्तान।