भारतीय गौवंश विशेष क्यों…
भारतीय गौवंश विशेष क्यों : करनाल
स्थित भारत सरकार के करनाल स्थित ब्यूरो के द्वारा किए गए शोध के अनुसार
भारत की 98 प्रतिशत नस्लें ‘ए2’ प्रकार के प्रोटीन वाली अर्थात विषरहित
हैं। इनके दूध की प्रोटीन की एमीनो एसिड चेन (बीटा कैसीन ए2) में 67वें
स्थान पर ‘प्रोलीन’ है और यह अपने साथ की 66वीं कड़ी के साथ मजबूती के साथ
जुड़ी रहती है तथा पाचन के समय टूटती नहीं।66वीं
कड़ी में एमीनो एसिड आइसोसोल्यूसीन होता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि
भारत की 2 प्रतिशत नस्लों में ‘ए1’ नामक एलिल (विषैला प्रोटीन) विदेशी
गौवंश के साथ हुए ‘म्युटेशन के कारण’ आया हो सकता है।
स्थित भारत सरकार के करनाल स्थित ब्यूरो के द्वारा किए गए शोध के अनुसार
भारत की 98 प्रतिशत नस्लें ‘ए2’ प्रकार के प्रोटीन वाली अर्थात विषरहित
हैं। इनके दूध की प्रोटीन की एमीनो एसिड चेन (बीटा कैसीन ए2) में 67वें
स्थान पर ‘प्रोलीन’ है और यह अपने साथ की 66वीं कड़ी के साथ मजबूती के साथ
जुड़ी रहती है तथा पाचन के समय टूटती नहीं।66वीं
कड़ी में एमीनो एसिड आइसोसोल्यूसीन होता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि
भारत की 2 प्रतिशत नस्लों में ‘ए1’ नामक एलिल (विषैला प्रोटीन) विदेशी
गौवंश के साथ हुए ‘म्युटेशन के कारण’ आया हो सकता है।
एनबीएजीआर-
करनाल द्वारा भारत की 25 नस्लों की गऊओं के 900 सैंपल लिए गए। उनमें से
97-98 प्रतिशत ‘ए2ए2’ पाए गए तथा एक भी ‘ए1ए1’ नहीं निकला। कुछ सैंपल
‘ए1ए2’ थे जिसका कारण विदेशी गौवंश का संपर्क होने की संभावना प्रकट की
जा रही है।
करनाल द्वारा भारत की 25 नस्लों की गऊओं के 900 सैंपल लिए गए। उनमें से
97-98 प्रतिशत ‘ए2ए2’ पाए गए तथा एक भी ‘ए1ए1’ नहीं निकला। कुछ सैंपल
‘ए1ए2’ थे जिसका कारण विदेशी गौवंश का संपर्क होने की संभावना प्रकट की
जा रही है।
गुणसूत्र विज्ञान : गुणसूत्र
जोड़ों में होते हैं अत: स्वदेशी-विदेशी गौवंश की डीएनए जांच करने पर ‘ए1,
ए2’, ‘ए1, ए2’ तथा ‘ए2ए2’ के रूप में गुणसूत्रों की पहचान होती है।
स्पष्ट है कि विदेशी गौवंश ‘ए1ए1’ गुणसूत्र वाला तथा भारतीय ‘ए2ए2’ है।
जोड़ों में होते हैं अत: स्वदेशी-विदेशी गौवंश की डीएनए जांच करने पर ‘ए1,
ए2’, ‘ए1, ए2’ तथा ‘ए2ए2’ के रूप में गुणसूत्रों की पहचान होती है।
स्पष्ट है कि विदेशी गौवंश ‘ए1ए1’ गुणसूत्र वाला तथा भारतीय ‘ए2ए2’ है।
केवल
दूध के प्रोटीन के आधार पर ही भारतीय गौवंश की श्रेष्ठता बतलाना अपर्याप्त
होगा, क्योंकि बकरी, भैंस, ऊंटनी आदि सभी प्राणियों का दूध विषरहित ‘ए2’
प्रकार का है। भारतीय गौवंश में इसके अतिरिक्त भी अनेक गुण पाए गए हैं।
भैंस के दूध के ग्लोब्यूल अपेक्षाकृत अधिक बड़े होते हैं तथा मस्तिष्क पर
बुरा प्रभाव करने वाले हैं। आयुर्वेद के ग्रंथों के अनुसार भी भैंस का दूध
मस्तिष्क के लिए अच्छा नहीं, वातकारक (गठिया जैसे रोग पैदा करने वाला),
गरिष्ठ व कब्जकारक है जबकि गौदुग्ध बुद्धि, आयु व स्वास्थ्य, सौंदर्यवर्धक
बतलाया गया है।
दूध के प्रोटीन के आधार पर ही भारतीय गौवंश की श्रेष्ठता बतलाना अपर्याप्त
होगा, क्योंकि बकरी, भैंस, ऊंटनी आदि सभी प्राणियों का दूध विषरहित ‘ए2’
प्रकार का है। भारतीय गौवंश में इसके अतिरिक्त भी अनेक गुण पाए गए हैं।
भैंस के दूध के ग्लोब्यूल अपेक्षाकृत अधिक बड़े होते हैं तथा मस्तिष्क पर
बुरा प्रभाव करने वाले हैं। आयुर्वेद के ग्रंथों के अनुसार भी भैंस का दूध
मस्तिष्क के लिए अच्छा नहीं, वातकारक (गठिया जैसे रोग पैदा करने वाला),
गरिष्ठ व कब्जकारक है जबकि गौदुग्ध बुद्धि, आयु व स्वास्थ्य, सौंदर्यवर्धक
बतलाया गया है।
भारतीय गौवंश अनेक गुणों वाला है : 1. खोजों
के अनुसार भारतीय गऊओं के दूध में ‘सैरिब्रोसाइट’ नामक तत्व पाया गया है,
जो मस्तिष्क के ‘सैरिब्रम’ को स्वस्थ-सबल बनाता है। यह स्नायु कोषों को
बल देने वाला व बुद्धिवर्धक है।
के अनुसार भारतीय गऊओं के दूध में ‘सैरिब्रोसाइट’ नामक तत्व पाया गया है,
जो मस्तिष्क के ‘सैरिब्रम’ को स्वस्थ-सबल बनाता है। यह स्नायु कोषों को
बल देने वाला व बुद्धिवर्धक है।
केवल
भारतीय देसी नस्ल की गाय का दूध ही पौष्टिक : करनाल के ‘नेशनल ब्यूरो ऑफ
एनिमल जैनिटिक रिसोर्सेज’ (एनबीएजीआर) संस्था ने अध्ययन कर पाया कि भारतीय
गायों में प्रचुर मात्रा में ए-2 एलील जीन पाया जाता है, जो उन्हें
स्वास्थ्यवर्धक दूध उत्पन्न करने में मदद करता है। भारतीय नस्लों में इस
जीन की फ्रिक्वेंसी 100 प्रतिशत तक पाई जाती है।
भारतीय देसी नस्ल की गाय का दूध ही पौष्टिक : करनाल के ‘नेशनल ब्यूरो ऑफ
एनिमल जैनिटिक रिसोर्सेज’ (एनबीएजीआर) संस्था ने अध्ययन कर पाया कि भारतीय
गायों में प्रचुर मात्रा में ए-2 एलील जीन पाया जाता है, जो उन्हें
स्वास्थ्यवर्धक दूध उत्पन्न करने में मदद करता है। भारतीय नस्लों में इस
जीन की फ्रिक्वेंसी 100 प्रतिशत तक पाई जाती है।
स्वदेशी-विदेशी गौवंश की पहचान : न्यूजीलैंड
में विषयुक्त और विषरहित (ए1 और ए2) गाय की पहचान उसकी पूंछ के बाल की
डीएनए जांच से हो जाती है। इसके लिए एक 22 डॉलर की किट बनाई गई थी। भारत
में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। केंद्र सरकार के शोध संस्थानों में यह जांच
होती है, पर किसानों को तो यह सेवा उपलब्ध ही नहीं है। वास्तव में हमें इस
जांच की जरूरत भी नहीं है। हम अपने देसी तरीकों से यह जांच सरलता से कर
सकते हैं।
में विषयुक्त और विषरहित (ए1 और ए2) गाय की पहचान उसकी पूंछ के बाल की
डीएनए जांच से हो जाती है। इसके लिए एक 22 डॉलर की किट बनाई गई थी। भारत
में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। केंद्र सरकार के शोध संस्थानों में यह जांच
होती है, पर किसानों को तो यह सेवा उपलब्ध ही नहीं है। वास्तव में हमें इस
जांच की जरूरत भी नहीं है। हम अपने देसी तरीकों से यह जांच सरलता से कर
सकते हैं।
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