शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2016

कैसे होगा आपके घर माँ लक्ष्मी का वास आइये जानते हैं कैसे ?

गाय बचाएँ पर्यावरण बचाएँ इस दीपावली सिर्फ़ गाय के घी का ही दीप जलाएँ. क्योकि यदि आप गाय के 10 ग्राम घी से हवन अनुष्ठान (यज्ञ,) करते हैं तो इसके परिणाम स्वरूप वातावरण में लगभग 1 टन ताजा ऑक्सीजन का उत्पादन कर सकते हैं। यही कारण है कि मंदिरों में गाय के घी का दीपक जलाने कि तथा , धार्मिक समारोह में यज्ञ करने कि प्रथा प्रचलित है। इससे वातावरण में फैले परमाणु विकिरणों को हटाने की अदभुत क्षमता होती है।

     माँ लक्ष्मी का गृह प्रवेश जैसा कि आप जानते ही है गाय के गौबर में माँ लक्ष्मी का वास होता है और हमारे शास्त्रो के अनुसार दीपावली पर गोबर के ही लक्ष्मी गणेश का प्रतीक रूप में पूजन करने से माँ लक्ष्मी प्रसन्न होकर साल भर उस घर में वास करती हैं और जो दीपावली के दिन गायों के घर या गौशाला को अपने घर के तरह सुन्दर और सुसज्जित बनाने का संकल्प लेता है स्वयं भगवान विष्णु उससे प्रसन्न होकर उसके लिय कुबेर के भण्डार खोल देते हैं और सदैव माँ लक्ष्मी के संग उस घर में रहने का वरदान देते है।
     अन्त में प्रण ले कि हम चांदी का बर्क लगी मिठाई नहीं खरीदेंगे बर्क कि मिठाई का घर में प्रवेश भी बहुत बड़ा पाप है क्योंकि गाय की आँतों में रख कर चाँदी को गाय के चमडीयुक्त से कूटा जाता है जबकि किसी भी मेटल को भस्म किए बिना खाने से अलसर तो होता ही है साथ ही पेट का कैंसर होने कि संभावना 80% बढ़ जाती है| बहुत लोग जाने/अनजाने में इस पाप के भागीदार बनेंगे, ऐसे में हम सभी का कर्तव्ये बनता है कि हम ज्यादा से ज्यादा लोगो तक चांदी/सोने के वर्क के बारे में लोगो को बताये।

केसरिया रंग हिन्दुओं के लिए बड़ा शुभ माना गया है। गाय को तो वैसे ही हिन्दुओं में देवों के तुल्य माना जाता है।शकुन शास्त्र के अनुसार केसरिया गाय देवत्व का प्रतीक है और दीपावली पर इनके दर्शन करना समृद्धि का संकेत है।

आप सभी अति प्रिय स्नेहीजनो को दीपावली की हार्दिक शुभकामना । आज गौपूजन जरूर करे । क्योकि शास्त्रो में कहा गया है “गोमय वसते लक्ष्मी” गोबर में ही लक्ष्मी जी बिराजति है। गौमाता लक्ष्मी जी की बड़ी बहेन है समुन्द्र मंथन में लक्ष्मी माता से पहले गौमाता प्रकट हुई।
दीपोत्सव के ज्योतिर्मय पर्व पर पूज्या गोमाता आपके जीवन में नवीन सात्विक ऊर्जा, सकारात्मक समझ, निर्मल मन, विवेकवती बुद्धि, हृदय अनुरागी तथा उज्जवल भविष्य के साथ सरलता, विनम्रता, दया, करुणा, संस्कार, स्वास्थ्य, दीर्घायु, समृद्धि, दानशीलता, धैर्य, शौर्य, वीरता एवं पूज्या गोमाता के प्रति पूर्ण समर्पण व सेवा का भाव प्रदान करें यही मंगल कामना करता हूँ।
आपका मित्र
गोवत्स राधेश्याम रावोरिया

शनिवार, 22 अक्टूबर 2016

यज्ञ स्वरूप गौमाता

यज्ञस्वरूपा गाय

भगवान ने विश्व के पालनार्थ यज्ञपुरुष की प्रधान सहायिका के रूप में गोशक्ति का सृजन किया है।

इस यज्ञ की प्रक्रिया को सशक्त बनाने वाली रसदात्री गोमाता है। क्योंकि यज्ञ की सम्पूर्ण क्रियाओं में गाय द्वारा प्रदत्त दुग्ध, दही, घृत, पायस आदि द्रव्य अनिवार्य होते हैं।

हविष्य को धारण करने की अग्निशक्ति का कारण भी गोघृत ही है। गौओं को साक्षात् यज्ञरूप बतलाया है। इनके बिना यज्ञ किसी भी तरह नहीं हो सकता। देवगण मन्त्रों के अधीन हैं, मन्त्र ब्राह्मणों के अधीन हैं और ब्राह्मणों को भी हव्य-कव्य, पंचगव्यादि गौ के द्वारा ही प्राप्त होती हैं।

                   महर्षि पाराशरके अनुसार ब्रह्माजी ने एक ही कुल के दो भाग कर दिए–एक भाग गाय और एक भाग ब्राह्मण। ब्राह्मणों में मन्त्र प्रतिष्ठित हैं और गायों में हविष्य प्रतिष्ठित है। अत: गायों से ही सारे यज्ञों की प्रतिष्ठा है। स्कन्दपुराण में ब्रह्मा, विष्णु व महेश के द्वारा कामधेनु की स्तुति की गई है–

त्वं माता सर्वदेवानां त्वं च यज्ञस्य कारणम्।
त्वं तीर्थं सर्वतीर्थानां नमस्तेऽस्तु सदानघे।।

अर्थात् हे अनघे ! तुम समस्त देवों की जननी तथा यज्ञ की कारणरूपा हो और समस्त तीर्थों की महातीर्थ हो, तुमको सदैव नमस्कार है।

वेद हमारे ज्ञान के आदिस्त्रोत हैं। वे हमें देवताओं को प्रसन्न करने की विद्या–यज्ञानुष्ठान का पाठ पढ़ाते हैं। संसारचक्र का पालन करने वाले देवताओं की प्रसन्नता ही हमारी सुख-समृद्धि का साधन है। अत: यज्ञ हमारी लौकिक उन्नति और कल्याण दोनों के लिए आवश्यक हैं। यज्ञ से हम जो चाहें प्राप्त कर सकते हैं। इस यज्ञचक्र को चलाने के लिए ही वेद, अग्नि, गौ एवं ब्राह्मणों की सृष्टि हुई। वेदों में यज्ञानुष्ठान की विधि बताई गई है एवं ब्राह्मणों के द्वारा यह विधि सम्पन्न होती है। अग्नि के द्वारा आहुतियां देवताओं को पहुंचाई जाती हैं और

         गौ से हमें देवताओं को अर्पण करने योग्य हवि प्राप्त होता है। इसलिए हमारे शास्त्रों में गौ को‘हविर्दुघा’(हवि देने वाली) कहा गया है। गोघृत देवताओं का परम हवि है और यज्ञ के लिए भूमि को जोतकर तैयार करने एवं गेहूं, चावल, जौ, तिल आदि हविष्यान्न पैदा करने का काम बैलों (गाय के बछड़ों) द्वारा किया जाता है। यही नहीं, यज्ञभूमि को शुद्ध व परिष्कृत करने के लिए उस पर गोमूत्र छिड़का जाता है और गोबर से लीपा जाता है तथा गोबर के कंडों से ही यज्ञाग्नि प्रज्जवलित की जाती है।
                  गोमय से लीपे जाने पर पृथ्वी पवित्र यज्ञभूमि बन जाती है और वहां से सारे भूत-प्रेत और अन्य तामसिक पदार्थ दूर हो जाते हैं। यज्ञानुष्ठान से पूर्व प्रत्येक यजमान की देहशुद्धि के लिए पंचगव्य पीना होता है जो गाय के ही दूध, दही, घी, गोमूत्र व गोमय (गोबर) से तैयार होता है। जो पाप किसी प्रायश्चित से दूर नहीं होते, वे गोमूत्र के साथ अन्य चार गव्य पदार्थ (दूध, दही, घी, गोमय) से युक्त होकर पंचगव्य रूप में हमारे अस्थि, मन, प्राण और आत्मा में स्थित पाप समूहों को नष्ट कर देते हैं।

‘पंचगव्यप्राशनं महापातकनाशनम्।’

देवताओं को आहुति पहुंचाने के लिए हमारे यहां दो ही मार्ग माने गये हैं–अग्नि और ब्राह्मणों का मुख। दूध में पकाये गये चावल जिन्हें आधुनिक भाषा में खीर कहते हैं और संस्कृत में परमान्न (सर्वश्रेष्ठ भोजन)–यही देवताओं और ब्राह्मणों को विशेष प्रिय होती है। घी को सर्वश्रेष्ठ रसायन माना गया है; गोमूत्र सब जलों में श्रेष्ठ है; गोरस सब रसों में श्रेष्ठ है।

ॐ जय गौ राम ॐ

शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2016

गाय क्यो है लक्ष्मी...???

गाय क्यो है लक्ष्मी...???
देश मे खाद की आपूर्ति के लिए बहुत बड़ी पूंजी लगाकर बड़े-बड़े कारखाने खोले गए।
फिर भी आज बहुत बड़ी मात्रा मे खाद विदेशो से आयात करनी पड़ रही है।
यदि इसकी जगह गोमूत्र का प्रयोग यूरिया खाद के रूप मे किया जाय तो विदेशी मुद्रा भी बचेगी और *ज़हर से भी बचेंगे।*
गाय जहा पर खड़ी होती है वहा पर गौमूत्र गिरता है उस जगह की मिट्टी को खेतो मे यूरिया की तरह छीटने से यूरिया खाद का एक बहुत अच्छा और सफल विकल्प है।
कीटनाशक दवाओ से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव से पूरा विश्व चिंतित है।

इसलिए अनेक देशो ने इस पर पावन्दी लगा रखी है परन्तु भारत की सरकार इस पर जरा भी गम्भीर नही है।
*गौमूत्र मे बराबर का पानि मिलाकर पेड़ पौधो पर छिड़काव किया जाय तो वहा पर कीड़ो से हिनेवाले नुकसान से बचाव हो सकता है।*
भारतीय गाय के मूत्र से घनवटी बनाकर 112 रीगो पर सफल इलाज किया जा चुका है।
कूड़े के ढेर पर गाय जे गोबर को पानी मे घोलकर छिड़काव कर देने से उसकी दुर्गन्ध समाप्त हो जाती है।
उसमे पलने वाले हानिकारक कीडो की जगह लाभदायक कीड़े उतपन्न हो जाते है और यह कूड़ा कुछ ही दिनों मे सफल खाद बन जाता है।
बंजर भूमि मे गायो को बांधकर उसके कच्चे गोबर गौमूत्र की पर्याप्त मात्रा देने से भूमि का उसरपन बहुत शीघ्र ही ठीक होने लगता है।
गाय के दूध से बनी छाछ किसी भी प्रकार के नसे जैसे-
गांजा, भांग, चिलम, तम्बाखू, शराब, हेरोइन, समेक, चरस इत्यादि
से होने वाले प्रभाव को ही कम नही करती अपितु इसके नियमित सेवन से नशे की इच्छा ही खत्म होने लगती है।
गौ मूत्र पीने से हजारो रोग स्वीम ही ठीक हो जाते है
ऐसे मे डॉक्टर और हॉस्पिटल मे लाखो रुपये देने से अच्छा है आज ही देशी गाय का पालन करे और पंचगव्य का सेवन करे।

सोमवार, 17 अक्टूबर 2016

सूरदासजी ने यशोदामाता और लाड़ले कान्हा के आपसी संवादों से गो-महिमा और श्रीकृष्ण की गो-भक्ति का कितना मधुर वर्णन किया है

सूरदासजी ने यशोदामाता और लाड़ले कान्हा के आपसी संवादों से गो-महिमा और श्रीकृष्ण की गो-भक्ति का कितना मधुर वर्णन किया है–

आजु मैं गाइ चरावन जैहौं।
बृंदाबन के भांति-भांति फल अपने कर मैं खेहौं।।

ऐसी बात कहौ जनि बारे, देखो अपनी भांति।
तनक-तनक पग चलिहौ कैसैं, आवत ह्वैह्वै राति।।

प्रात जात गैया लै चारन, घर आवत हैं सांझ।
तुम्हरौ कमल-बदन कुम्हिलैहैं, रेंगत घामहिं मांझ।।

तेरी सौं मोहिं घाम न लागत, भूख नहीं कछु नेक।
सूरदास प्रभु कह्यौ न मानत, परयौ आपनी टेक।।

कन्हैया ने आज माता से गाय चराने के लिए जाने की जिद की और कहने लगे कि भूख लगने पर वे वन में तरह-तरह के फलों के वृक्षों से फल तोड़कर खा लेंगें।

पर माँ का हृदय इतने छोटे और सुकुमार बालक के सुबह से शाम तक वन में रहने की बात से डर गया और वे कन्हैया को कहने लगीं कि तुम इतने छोटे-छोटे पैरों से सुबह से शाम तक वन में कैसे चलोगे, लौटते समय तुम्हें रात हो जाएगी।

तुम्हारा कमल के समान सुकुमार शरीर कड़ी धूप में कुम्हला जाएगा परन्तु कन्हैया के पास तो मां के हर सवाल का जवाब है। वे मां की सौगन्ध खाकर कहते हैं कि न तो मुझे धूप (गर्मी) ही लगती है और न ही भूख और वे मां का कहना न मानकर गोचारण की अपनी हठ पर अड़े रहे।
मोरमुकुटी, वनमाली, पीताम्बरधारी श्रीकृष्ण यमुना में अपने हाथों से मल-मल कर गायों को स्नान कराते, अपने पीताम्बर से ही गायों का शरीर पौंछते, सहलाते और बछड़ों को गोद में लेकर उनका मुख पुचकारते और पुष्पगुच्छ, गुंजा आदि से उनका श्रृंगार करते।

तृण एकत्रकर स्वयं अपने हाथों से उन्हें खिलाते। गायों के पीछे वन-वन वे नित्य नंगे पांव कुश, कंकड़, कण्टक सहते हुए उन्हें चराने जाते थे। गाय तो उनकी आराध्य हैं और आराध्य का अनुगमन पादत्राण (जूते) पहनकर तो होता नहीं।
परमब्रह्म श्रीकृष्ण गायों को चराने के लिए जाते समय अपने हाथ में कोई छड़ी आदि नहीं रखते थे; केवल वंशी लिए हुए ही गायें चराने जाते थे।

वे गायों के पीछे-पीछे ही जाते हैं और गायों के पीछे-पीछे ही लौटते हैं, गायों को मुरली सुनाते हैं। सुबह गोसमूह को साष्टांग प्रणिपात (प्रणाम) करते और सायंकाल‘पांडुरंग’बन जाते (गायों के खुरों से उड़ी धूल से उनका मुख पीला हो जाता था)। इस अद्भुत दृश्य को देखने के लिए देवी-देवता अपने लोकों को छोड़कर व्रज में चले आते और आश्चर्यचकित रह जाते कि जो परमब्रह्म श्रीकृष्ण बड़े-बड़े योगियों के समाधि लगाने पर भी ध्यान में नहीं आते, वे ही श्रीकृष्ण गायों के पीछे-पीछे नंगे पांव वनों में हाथ में वंशी लिए घूम रहे हैं।

      पर्म इश्वर गौपाल हमे यही बता रहे है गाय माता मेरी इष्ट है और गाय माता की सेवा करना ये तो अनन्द, शांती और भक्ती प्राप्त करने का सहज मार्ग है तो क्यों नहि सेवा से अपना कल्यान कर लेते.......

जय माँ सुरभी के लाडले श्री कृष्ण की
जय गौ राम

शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2016

गौ हित में हम क्या करें , क्या न करें :-

गौ हित में हम क्या करें , क्या न करें :-
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*::: ये करें:::--*
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-- पहली रोटी गौ माता के लिए पकाएं व
खिलाएं ।
-- प्रत्येक मांगलिक कार्यों में गौ माता को
अवश्य शामिल करें।
-- प्रतिदिन बच्चों के सामने गौमाता का
जिक्र करें।
-- बच्चे अगर कहने से बाहर हो तो गौमाता
को भोजन उन के हाथ से या हाथ लगवा
कर खिलाएं ।
-- प्रतिदिन,सप्ताह में या महीने में एक बार
गौशाला परिवार समेत जाने का नियम
बनाएं।
-- गर्मियों में गौ माता को पानी अवश्य
पिलाएं।
-- सर्दियों में गौ माता को गुड़ खिलाएं।
-- देसी-गौ-दुग्ध की मांग व पान करें ।
-- परिवार में गौ से प्राप्त पंचगव्य युक्त
पदार्थों का उपयोग करें।
-- गौ गोबर से निर्मित शुद्ध धूप-बत्ती का
उपयोग करें।
-- जाँच-परख कर गौ हित में कार्यरत संस्थाओं
को तन-मन-धन से सहयोग करें, ताकि
गौ हित का कार्य निर्विघ्न चलता रहें ।
-- गौ माता की रक्षा के लिए होने वाले धरने
व आंदोलनों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लें ।
-- याद रखिए पहले गौमाता का घर गौशाला
नहीं था अपितु अपने ही घर-परिवार थे,
पर आजकल घर पर सम्भव न हो सके तो
समृद्ध परिवार अपनी ओर से एक गौ
माता को गोद लेकर उस के भरण-
पोषण का खर्च गौशाला को अवश्य दें।
-- किसी भी सुख-दुख के मोके पर #सवामणी (सवा मन )
करवाएं, इस से अत्यंत लाभ होता है।

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*::: ये ना करें:::*
________________
-- घर के दरवाजे पर गाय आये तो उसे
खाली न लोटाएं ।
-- गाय माता को कभी पैर न लगाए ।
-- पोलीथिन में बांधकर कभी सब्जी व फ्रूट
के छिलके बाहर न फैंकें।
-- गर्मियों में गाय को गुड़ न खिलाएं ।
-- अनजान व्यक्ति को अपनी गाय न
बेचें।
-- जरसी गाय के दूध का सेवन कदापि न
करें ।

गुरुवार, 13 अक्टूबर 2016

गावो विश्वस्ये मातर: भाग 2

-- गावो विश्वस्य मातरः भाग 2--
वही से दूध आ रहा है तब यह शंका हो सकती है जब मूल में स्टॉक दूध का क्षीरसागर में है और वही से परमात्मा की अचिन्त्य शक्ति से सभी माताओं में दूध आ रहा है चाहे वो नारिया हो चाहे वो बकरी हो भेड़ हो भैस हो.तो सब दूध गाय का ही हुआ.
फिर ये क्यों कहा जाता है की भारतीय देसी गाय का ही दूध पीना चाहिए.
..इसका समाधान है पात्र के भेद से वस्तु का भेद हो जाता है .वस्तु वही है पर अशुद्ध पात्र में रख दी जाए तो भेद हो जायेगा.
जैसे खटाई वाले बर्तन में दूध धरो तो वो फट जायेगा या दही हो जायेगा.सुरभि गौ माता का दूध जो उनकी वंशज भारतीय गौ माताए है उनमे जब उतरता है तो साक्षात सुरभि माता कामधेनु माता का होता है और जब वो ,भेड़ बकरी या भैस या जर्सी के भीतर चला जाता है तो उस पात्र की अशुद्धि के कारण वह दुग्ध भी अग्रहण हो जाता है।

महाभारत में जैमिनी अश्वमेध पर्व में लिखा है की राजा जल्लादों को किसी के वध की आज्ञा देता तो उन जल्लादों को उनके फासी देने के बाद पुरस्कार के रूप में भैस देता था .अब ये विचारणीय बात है की ऐसी दुष्ट प्रकृति के लोगो को भैस दी जाती थी.
महाभारत में एक जगह लिखा है -"महिषा च सुरा इति"-
असुरांश से महिष उत्पन्न हुआ है इसलिए भैस का दूध ,दही,घी कोई पहलवान खाए पर देवता के लिए ग्राह नहीं है यज्ञ के लिए उपयुक्त नहीं है,पितरो के लिए भी वो ग्राह नहीं है ,ऋषियों के लिए भी वो ग्राह नहीं है.क्योकि उसमे तमोगुण का अंश अधिक है.शुद्ध सात्विक दुग्ध है भारतीय देसी गाय का उसी का दूध हम सबको पीना चाहिए.
#जयश्रीसीताराम

मंगलवार, 11 अक्टूबर 2016

गावो विश्वस्य मातर: भाग -1

-- गावो विश्वस्य मातरः भाग 1--
नित्य गोलोकधाम में एक समय की बात है भगवान श्याम सुन्दर नित्य गोलोक में रास विलास (नृत्य ) कर रहे थे ,नृत्य करते करते ठाकुर जी थोडा श्रमित हो गए और जब ठाकुर जी श्री जी थोडा श्रमित हो गए तो सुन्दर कल्पवृक्ष के नीचे बैठ कर  ठाकुर जी विश्राम करने लगे,असंख्य गोपियाँ  ठाकुर जी को घेरे हुए है उस समय  ठाकुर जी को इक्षा हुई दुग्ध पान की तो उस समय श्री  ठाकुर जी ने बड़े प्रेम से राधा रानी की ओर देखा और राधा रानी ने  ठाकुर जी को देखा दोनों युगल एक दुसरे को प्रेम से निहारने लगे और इस अवलोकन में उनसे प्रेम का एक प्रकाश निकला जो एक सवत्सा गौ के रूप में प्रकट हुआ.
विशेष ->  *--राधा कृष्ण का प्रेम ही गौ माता के रूप में प्रकट हुआ --*
वह सुरभि गौ माँ थी जिसके साथ एक बछड़ा भी था उस बछड़े का नाम था "मनोरथ".
विशेष -> "मनोरथ" नाम क्यों ठाकुर जी का मनोरथ था दूध पीने का इसलिए वह मनोरथ नाम का वत्स प्रकट हो गया.
उस बछड़े को गौ दूध पिला रही थी.ठाकुर जी के श्रीदामा नामक गोप ने प्रसन्न होकर सोने की दोहनी में दूध दुहा और दूध दोह कर के ठाकुर जी ने और राधा रानी ने पिया , ठाकुर जी के हाथ से वह दूध का भांड गिरा,और उस अनंत गोलोक से धरती पर गिरा और जहा गिरा वहा फूटते ही समुद्र बन गया.और उस समुद्र का नाम हुआ "क्षीरसागर" दूध का समुद्र..
-- अब ये जो दूध का समुद्र प्रकट हुआ है ये भगवान का बनाया हुआ बड़ा टंका है और वही से जितनी माताए है सबमे दूध की सप्लाई हो रही है ..दुनियाभर की माताओं में जो दूध आ रहा है वो वही क्षीरसागर से आ रहा है ..क्रमशः..
#जयश्रीसीताराम